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कलाकार की सफलता के सूरज के 9 अश्व

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मेरे एक मुम्बइया परिचित ने गलती से अपनी कलाकृति मुझे भेज दी मैनें जबलपुरिया स्नेहवश नहीं जान बूझकर कहा -वाह क्या बात है इसे अपने चैनल पर पोस्ट कर दूं । श्रीमन मेरे झांसे में आए सो हाँ कह दिया फिर तुरन्त कॉलबैक किया - अरे भाई हमने कर दिया है आप परेशान न हों ।  मित्रो व्यक्ति कितना सतर्क रहें मुम्बई वालों से सीखो हमारे जबलपुरी कलाकार बहुत भोले हैं । उनको समझना चाहिए कि जब रोटियों की ज़रूरत होती है तो ये तालियाँ किसी काम की नहीं होतीं ।      मेरे कलाजगत के मकसद परस्तों के साथ कि बार मुठभेड़ हो चुकी है ।       मेरे परिचित एक युवा ने मुझे सपत्नीक घर आकर अपनी आर्थिक तंगी का किस्सा सुनाया सो मैने उनको संस्थान से काम दिलाने का वादा कर उनको काम भी दिलाया । भाई को जब ये लगा कि मेरा काम उनके बिना नहीं चल पाएगा तो भाई ने एक बार छोटे से काम के लिए इतना बड़ा बिल दिया जो किसी भी हालात नें उस काम के लायक तो न था ।        इस बीच भाई ने अनवांछित मांग का प्रपोगन्दा शुरू कर दिया । मेरे अधिकारी ने उसे विवादों से बचने के लिए भुगतान कर दिया पर मुझे कलाजगत के इस भ्रष्टाचार पर बहुत दर्द हुआ । आज भी है । उ

ॐ का कंठ संगीत में महत्व : एक प्रयोग

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इसके आगे भौतिक और सौर विज्ञानी इसके उदगम तक जा पहुँचे । सूर्य की घूर्णन प्रक्रिया से ॐ के सृजन को NASA - National Aeronautics and Space Administration ने आइडेंटीफाई किया । ॐ के अनुनाद से वाणीगत मधुरता के लिए आप स्वयम एक प्रयोग करें 30 दिन में आपको अपनी भाषा में लयात्मकता एवम उसके उत्पन्न करने के लिए ध्वनि आघात की आवृत्ति का स्वयम बोध होगा ।  Balbhavan में संगीत के विद्यार्थियों को मेरा  निर्देश है कि वे 5 से 10 बार इस का अनुनाद का अभ्यास करें । डॉ शिप्रा सुल्लेरे की देखरेख में बच्चे ॐ का अभ्यास करतें भी हैं । कुछ घर में करतें है ।  इससे ध्वनि  फेफड़ों जीभ और वोकल काड के आटो सिंक्रोनाइज शरीररूपी मशीन से उत्पादित होगी जो आकर्षक और गेयता के काफी नजदीक होगी ।  आप  वेस्टर्न गीतों में गायिकाओं की ध्वनि को  महसूस करें तो पाएंगे कि आवाज़ हमारी गायिकाओं से एकदम भिन्न हैं मेनिष्ट हैं जबकि भारतीय गायिकाओं की आवाज़ मूलतः फेमिनिस्ट ही होती है । अधिकतर गायिकाएं किसी न किसी रूप में A U M के संयुक्त शब्द ॐ का उदघोष करने के कारण फेमिनिस्ट ही होती हैं ।    कर्नाटक राबिंद संगीत में भी यही ॐ स्वर स

और यूँ उत्सव मनाया आनंद गोत्रीयों ने

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पलपल इंडिया , जबलपुर. से साभार  'ओशो ट्रेल' के कारण ओशो के महाप्रयाण के 27 साल बाद मध्यप्रदेश के जबलपुर में 'ओशो अवतरण दिवस' खास बन गया, जिसका चर्चा सोशल मीडिया के जरिए देश-दुनिया तक फैल गया. सुबह 10 बजे एक सैकड़ा से अधिक ओशो प्रेमी ओशो संबोधि स्थली भंवरताल स्थित मौलश्री वृक्ष के तले एकत्र हुए. वहां से ओशो ट्रेल योगेश भवन नेपियर टाउन पहुंची, जहां 'ओशो हॉल' के दर्शन कर ओशो के निवास-काल की स्मृतियां साकार की गईं. तीसरे चरण में 'निःशुल्क ओशो ट्रेल' महाकोशल कॉलेज पहुंची, जहां 'ओशो चेयर' के दर्शन कर सभी ओशो प्रेमी मंत्रमुग्ध हो गए. इसी के साथ ओशो ट्रेल देवताल स्थित ओशो संन्यास अमृतधाम पहुंची, जहां ओशो सेलिब्रेशन की मस्ती में चार चांद लग गए. सभी ने ओशो ध्यान शिला के दर्शन किए. फिर सभी 'ओशो मार्बल रॉक' के दीदार करने भेड़ाघाट पहुंचे, जहां आयोजक संस्था विवेकानंद विज्डम इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल ने स्वागत किया. ओशो ट्रेल जब भेड़ाघाट ने भंवरताल कल्चरल स्ट्रीट पहुंची तो ओशो के महासूत्र हंसिबा, खेलिबा, धरिबा ध्यानम और उत्सव आमार जाति, आनंद आमार गोत्र

आज ओशो ट्रेल कर ओशो प्रेमी करेंगे प्रेम का इज़हार

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पलपल जबलपुर. साभार प्रेस कॉन्फ्रेंस रपट प्रेसवार्ता का दृश्य  ओशो ट्रेल के प्रति संस्कारधानी में लगातार बढ़ रही उत्सुकता को दूर करने विवेकानंद विजडम इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल के डायरेक्टर और इस ट्रेल के आयोजक प्रशांत कौरव ने एक पत्रकार वार्ता की. उनके साथ ही पत्रकार एवं सुदेशना गुरु सुरेन्द्र दुबे एवं अन्य आयोजको ने बताया की इस आयोजन के प्रति शहर वासियों और ओशोप्रेमियों में जितनी उत्सुकता है उसी तरह वे भी इस ट्रेल को लेकर बेहद उत्साहित हैं. उन्होंने कहा की यह उनका नहीं बल्कि शहरवासियों का है एक आयोजन हैं. अब भी महसूस की जाती है ओशो की चेतना रूपी सूक्ष्म उपस्थिति श्री कौरव ने बताया कि सत्ताइस साल पूर्व 19 जनवरी 1990 को ओशो इस संसार से भौतिक रूप से महाप्रयाण कर गए लेकिन समग्र अस्तित्व में उनकी चेतना रूपी सूक्ष्म उपस्थिति सतत महसूस की जा रही है, उनकी 750 से अधिक पुस्तकें और ऑडियो, वीडियो प्रवचन व चित्ताकर्षक स्टिल फोटोग्राफ्स देश-दुनिया में फैले करोड़ो ओशो प्रेमियों और जिज्ञासुओं के सम्मोहन का केन्द्र बने हुए हैं. ओशो का जबलपुर से 1951 से 1970 के मध्य यानी लगभग 2 दशक तक बेहद गहरा

ओशो और सामाजिकता 02

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पिछले आलेख के  बाद पब्लिक रिएक्शन से साफ हो गया कि धारणा स्थापित कर दी गई है कि ओशो का सामाजिकता से कोई सरोकार नहीं  था । मन ही मन  हँसने के अलावा कोई बात मेरे पास शेष कुछ  नहीं रहा । पर समाधान आवश्यक है । मित्रो मुझे लगा था कि संक्षिप्त आलेख से समाधान हो जाएगा । पर लगता है ओशो महाशय मुझे छोड़ेंगे नहीं स्वाभाविक हैं रजनीश और गिरीश के बीच डीएनजैन कॉलेज वाला नाता तो है इस नाते ही सही समाधान करने आज फिर एक आलेख लिखना तय किया  । सबकी मान्यता है  कि प्रतिष्ठित सामाजिक नियमों निर्देशों को जो भी अस्वीकार  उसे असामाजिक माना जाए ?         तो फिर मुझे एक  सवाल का उत्तर दीजिये दीजिये - विवाह संस्था के प्रति वे असहमत थे पर नर-मादा संबंध पर उनकी कोई असहमति भरी टिप्पणी नहीं की         उनके बाद देखिये भारतीय  न्याय व्यवस्था ने लिव इन संबंधों को भाषित कर दिया । लिव इन रिलेशनशिप तो समाजी विवाह संस्था के विपरीत वाला छोर है न ? तो क्या उत्तर है आपका ?    आदिम व्यवस्था में झुंड हुए होंगे फिर कबीले फिर शनै: शनै: विवाह संस्था आदि से विकसित हुए अर्थात परिवर्तन हुआ न  जिसे हम सामाजिकता कहतें हैं उस स

ओशो की सामाजिकता 01

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    जबलपुर वाले ओशो की सामाजिकता पर सवाल खड़ा हुआ . मेरी नज़र  में प्रथम दृष्टया   ही   प्रश्न गैरज़रूरी   सा है ऐसा मुझे इस लिए लगा क्योंकि लोग अधिकतर ऐसे सवाल तब करतें हैं जब उनके द्वारा किसी का समग्र मूल्यांकन किया जा रहा हो तब सामान्यतया लोग ये जानना चाहतें हैं की फलां  व्यक्ति ने कितने कुँए खुदवाए , कितनी राशि दान में दी , कितनों को आवास दिया कितने मंदिर बनवाए . मुझे लगता है  कि सवाल कर्ता ने उनको     व्यापारी अफसर नेता जनता समझ के ये सवाल कर  रहे हैं . जो   जनता   के बीच जाकर   और किसी आम आदमी की / किसी ख़ास   की ज़रूरत पूरी   करे ? ओशो ऐसे धनाड्य तो न थे बाद में यानी अमेरिका जाकर वे धनाड्य हुए वो जबलपुर के सन्दर्भ में ओरेगान  प्रासंगिक नहीं है. पूना भी नहीं है प्रासंगिक      पर ओशो सामाजिक थे समकालीन उनको टार्च बेचने वाले की उपाधि दे गए यानी वे सामाजिक थे इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा... ? सामाजिक वो ही होता है जिससे सत्ता को भय हो जावे .. टार्च बेचने वाले की उपाधि सरकारी किताबों के ज़रिये खोपड़ियों  में ठूंस दी गई थी . स्पष्ट है कि समकालीन व्यवस्था कितनी भयभीत थी.        

गुलज़ार साहब के लिए

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गम्भीर रूप से एक्सीडेंट होने के कारण मेरी पोलियो ग्रस्त पैर की फीमर बोन के सबसे ऊपरी भाग की हड्डी टूटी गई थी ।  नवम्बर 1999 की इस घटना के बाद वरिष्ठ अस्थि रोग विशेषज्ञ स्व  डा  बाबुलर  नागपुर के  हॉस्पिटल में मेरा पुनर्जन्म हुआ । माँ भैया आदि  सभी ने बाद में बताया था  कि  स्व डाक्टर बाभुलकर जी ने मेरा ऑपरेशन किया वो सबसे रिस्की था ।  सैंट्रल इंडिया का अबसे अनोखा एवम रिस्की ऑपरेशन किया जो 100% सफल था । ऐसी चर्चा सर्वत्र थी । उस समय मेरे सिरहाने संगसाथ होते थे गुलज़ार साहब जैसे लोग भी एक दिन अस्पताल में किसी कार्ड बोर्ड पर उनके लिए लिखी नज़्म शायद आपको पसंद आए *गुलज़ार जी के लिए* रोज़ रात देर तलक गुलज़ार के हर्फ़ हर्फ़ से बुने नज़्म गीत जब पढ़ता हूँ तो लगता है गोया माँ के नर्म आँचल ने मुझे ढांप लिया हो और फिर हौले से पता नहीं कब अविरल रात के बहाव में में नीँद की नाव पर सवार सुबह की ओर चला जाता हूँ । गुलज़ार जी होती है सुबह हर्फ़ हर्फ़ ज़िंदगी जुड़ते बिखरते पल समेटता हूँ । तक कर कभी  गीत सुनता हूँ आपके जो टूटती जुड़ती ज़िंदगी को बना देती है तुम्हारी नज़्म और फिर हो जाता हूँ गुलज़ार

परदेसी पाखियों का आना जाना

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#अमेया मेरे भतीजे Ankur Billore की बेटी एक हफ्ते तक हमारी आदत में शुमार थी । कुछ दिनों में अपने दादू का देश छोड़  वापस ट्रम्प दादू के देश फुर्र हो जाएगी । कब आएगी कौन जाने । थैंक्स मीडिया के नए वर्जन को जिसके के ज़रिए मिलती रहेगी । हज़ारों लाखों परिवार बच्चों को सीने पे पत्थर रख भेजते हैं । विकास के इस दौर में गोद में बिठाकर घण्टों बच्चों से गुटरगूँ करते रहने का स्वप्न केवल स्वप्न ही रह जाता है । देश के कोने कोने के चाचे मामे ताऊ माँ बाबा दादा दादी इस परदेशियों के लिए तड़पते हैं मुझे इस बात का मुझे और हम सबको अंदाज़ है ।  पहली बार रू ब रू मिला वो मुझे पहचान गई  2 बरस का इन्वेस्टमेंट था नींद तब आती थी जब अमेया से नेट के  ज़रिए मस्ती न कर लूं । दिन भर Balbhavan के बच्चों में अमेया मिला करती है । प्रवास से देश का विकास ज़रूरी भी है । इस देश में यूं तो कुछ हासिल नहीं होता योग्यताएं सुबकतीं है तो तय ही है बच्चों का प्रवासी पंछी बन जाना । साउथ एशिया में भारत के योग्य बच्चे भले ही विदेशों में राजनीतिक रूप से महिमा मंडित किये जाते हैं किंतु किसी बड़बोले सियासी की जुबान पर ये नहीं आया कि बच्चों ब

ब्राह्मणों के विरुद्ध अभियान को उमेश सिंह का उत्तर

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           मैं ब्राह्मण नही हूँ। कल एक वामी satya Raja मेरी पोस्ट पर ब्राह्मण के खिलाफ गालियां लिख रहा था। उस मनहूस को ये पोस्ट समर्पित करता हूँ। सवर्णों में एक जाति आती है ब्राह्मण, जिस पर सदियों से राक्षस, पिशाच, दैत्य, यवन, मुगल, अंग्रेज, कांग्रेस, सपा, बसपा, वामपंथी, भाजपा, सभी राजनीतिक पार्टियाँ, विभिन्न जातियाँ आक्रमण करते आ रहे हैं। आरोप ये लगे कि ~ब्राह्मणों ने जाति का बँटवारा किया। उत्तर - सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद जो अपौरुषेय है और जिसका संकलन वेद व्यास जी ने किया, जो मल्लाहिन के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। 18 पुराण, महाभारत, गीता सब व्यास जी रचित है जिसमें वर्णव्यवस्था और जाति व्यवस्था दी गयी है। रचनाकार व्यास ब्राह्मण जाति से नही थे। ऐसे ही कालीदास आदि कई कवि जो वर्णव्यवस्था और जातिव्यवस्था के पक्षधर थे जन्मजात ब्राह्मण नहीं थे। अब मेरा प्रश्न उस satya raja के लिए कोई एक भी ग्रन्थ का नाम बताओ जिसमें जाति व्यवस्था लिखी गयी हो और उसे ब्राह्मण ने लिखा हो? शायद एक भी नही मिलेगा। मुझे पता है तुम मनु स्मृति का ही नाम लोगे, जिसके लेखक मनु महाराज थे, जो कि क्षत्रिय थे।

हिंदी में ग़ज़ल

धुंध रोगन की पुती आकाश में और हम हैं रौशनी की आस में । एक अंगुल दुःख समीक्षा ग्रंथ सी चेतनाएँ है गुमशुदा संत्रास में । चार लोगों का कहा सच कहाँ ? मथनियाँ डालो ज़रा जिज्ञास में । ज़िंदगी जी लो अरु जीतो भी उसे रोए दुनियाँ रोती रहे संत्रास में । । ज़िन्दगी क्या है ? पूछा किसी ने पढ़ के देखो प्रथम अंतिम सांस में ।। *गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

राष्ट्रीय बाल सभा एवं एकीकरण शिविर में भाग लेने बालभवन से सांस्कृतिक दल रवाना

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                           राष्ट्रीय बाल सभा एवं एकीकरण शिविर में भाग लेने जबलपुर से 4 बच्चों सहित 6 सदस्यीय सांस्कृतिक दल को दिनांक 12 नवम्बर 17 को दिल्ली राष्ट्रीय बालभवन के लिए रवाना किया. ये बच्चे महाकौशल क्षेत्र की कला का प्रदर्शन करेंगें .                                        बुन्देली लोक नृत्य , लोक संगीत , गोंडी भित्ती चित्रकला , के अलावा बच्चे गिरीश बिल्लोरे द्वारा लिखे रानी दुर्गावती एवं दीवान आधारसिंह के बीच 16 वीं सदी की सामरिक परिस्थियों पर हुई चर्चा के विवरण एवं रानी दुर्गावती के बलिदान पर केन्द्रित विवरण का नाट्य रूपान्तारण , प्रस्तुत करेंगें.                      संभागीय बालभवन जबलपुर में इनको एक माह तक श्री इंद्र पाण्डेय , डा. शिप्रा सुल्लेरे , कुमारी रेशम ठाकुर ,  सुश्री रूचि केशरवानी , संजय गर्ग व मनीषा तिवारी ने विशेष रूप से प्रशिक्षण दिया गया है. बाल कलाकार 14 से 16 नवम्बर तक एकल एवं सामूहिक प्रस्तुतियों में शामिल होंगे. बालकलाकारों को मिष्ठान एवं दिल्ली के प्रदूषण से बचाव के लिए मास्क देकर श्रीमती सुलभा बिल्लोरे , एवं कार्यालयीन अधिकारियों एवं कर्मचार

प्रमुख सचिव श्री जे एन कंसौटिया का बालभवन का दौरा

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     ` प्रमुख सचिव जी माननीय श्रीयुत जे एन कंसौटिया जी आदरणीया मनिषा लुम्बा जी ने संभागीय बालभवन जबलपुर का आज दिनाँक  9  नवम्बर  2017  को भ्रमण किया ।   भ्रमण के दौरान प्रमुख सचिव महोदय से भवन निर्माण हेतु भूमि  ,  वित्तीय मदद आदि स्थितियों पर विस्तृत चर्चा हुई । श्री कंसौटिया सर द्वारा आयुक्त नगर निगम से फोन पर चर्चा कर भूमि आवंटन अथवा स्मार्ट सिटी परियोजना में बालभवन को शामिल करने के लिए कहा गया । बालभवन की गतिविधियों को संप्रेक्षण ग्रह ,  बालगृह ,  दिव्यांग बच्चों के विशेष स्कूलों अजा जजा आवासीय स्कूलों तक गतिविधियों को जोड़ने के निर्देश संचालक को दिए । प्रमुख सचिव जी द्वारा बालिकाओं के लिए चलाए जा रहे * 30  शौर्या शक्ति आत्मरक्षा प्रशिक्षण* कार्यक्रम की तारीफ की ।   निरीक्षण के दौरान *चित्रकला एवम गायन वादन के दिव्यांग छात्र बालक मास्टर   गौतम सोनी* के बारे में जानकर बेहद प्रसन्नता व्यक्त की गई तथा यह निर्देश दिए कि दिव्यांगता से ग्रसित बच्चो की संस्थाओं के बच्चों के लिए बालभवन की सेवा देने के लिए संचालक बालभवन संस्थाओं के साथ संपर्क कर सेवाएँ विस्तारित करें ।   इ

पुश्तैनी मकान , मकान नहीं घर होते थे

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पुश्तैनी मकान , मकान नहीं घर होते थे गोबर से लिपे सौंधी खुशबू वाले आधा फीट छुई की ढीग से सजे पुश्तैनी मकान ... दरवाजों पर खनकती कुण्डियाँ देर रात जब बजतीं  चर्र से खुलते दरवाजे दो घर दूर  वाले रामदीन के दादा खांसते खकारते पूछते – बहू कालू आया क्या .. हओ दद्दा हम आ गए ... पूरा मुहल्ला जो रात नौ बजे सोता था पर जागता एक साथ सामान्य दशा में सुबह चार बजे या रात को किसी अनियमित स्थिति में .,. सभी मकान सिर्फ मकान थे ..? न सभी मकान भर थे .. घरों का नाता थी कॉमन दीवार ... जो मुहल्ले को किले में बदल देती थी...! पुश्तैनी मकानों के वाशिंदे  प्रजा थे .. जिनपर राज  था ......... राजा  प्रेम और रानी स्नेह का .. किसी एक का शोक हर्ष सब पर लागू होता .. जब कालू हँसता तो सब हँसते जब दुर्गा रोती तो सब रोते तुलसी क्यारे में कभी हवा से तो कभी तेल चुकने तक दीपशिखा नाचती मोहल्ले वाले पटवारी को न बुलाते घरों को नापवाने .. पुश्तैनी घर ज़िंदा देह थे ज़िंदा देहों को कोई पटवारी मापता है क्या.. ? पुश्तैनी मकान अमर होते हमने मारा है उनको .. बिलखते होंगे पुरखे