23.10.17

*समाज सुधार का रूमाल*


इन दिनों हमको समाज सुधार के प्रेत ने गुलाम बना लिया है । बहुत बड़ा काम है समाज सेवा कर समाज में सुधार लाना ।
समाज सुधार के प्रेत से हम पूछते हैं कि , प्रभू हमारे लिए आगे क्या आदेश हैं बाद में देना पहले आप हमारे सवालों के उत्तर देना जी । बड़ी ना नुकुर के प्रेत तैयार हुए सो सुधिजन आप भी मज़े लीजिये ।
हम - हे भाई समाज सुधार क्या है ?
प्रेत - समाज सुधार एक सादे रुमाल को फाड़कर सिलने की प्रक्रिया है । आप समाज के किसी ऐसे विषय को उठाइये जो आपके विरुद्ध हो या न हो सबमें प्रसिद्धि पाने के लिए उसे समाज के लिए गैरज़रूरी बताइये । यानी आपने सबसे पहले रुमाल निकाला जेब से ।
हम - फिर प्रभो ?
प्रेत - फिर बताइये इस रुमाल में असंख्यक जीवाणु हैं जिससे एक वर्गफीट से लाखों वर्ग किलोमीटर तलक बीमारियों के फैलने का ख़तरा है । आप एक ज़िम्मेदार शहरी हैं सो बस आप रुमाल को ..
हम - रूमाल को डस्टबिन में डाल दें
प्रेत - मूर्ख मानव इससे समस्या हल होगी क्या
हम - तो आप रूमाल के खिलाफ धरना प्रदर्शन आदि कर सम्पूर्ण समाज को बताएं कि इस रूमाल नें असंख्य बैक्टीरिया हैं । जो सिर्फ और सिर्फ इस रूमाल में पनपतें हैं । इन बैक्टेरियास की चपेट में अगर विश्वजनसँख्या आ गई तो तय है कि मानवता ओर सभ्यता का अंत शीघ्र तय है ।
हम - प्रभो इतना करने से बेहतर है कि हम रुमाल को स्टारलाइज़्ड कर दें ।
प्रेत - मूर्ख जैसी बात करते हो फिर काहे का समाज सुधार । अरे समाज सुधार सामाजिक समस्याओं के पहचानने एवम उसके निदान की प्रक्रिया है ।
हम :- ओ के तो हम तैयार हैं लाइये दीजिए रुमाल
प्रेत - जेब से निकाल बड़ा आया रुमाल मांगने वाला
हमने रुमाल निकाला और मालवीय चौक पे फोटोशूट करवाते हुए जम के रुमाली बैक्टेरियाज़ की भयानकता पर भाषण दिया । यार भाई नेशनल चैनल वाले तो ठीक थे पर ये क्या लोकल चैनल्स वाले तो मूँ में ठूंस रहे थे । हम तो क्या बताएं भैया ।
अगले पल सबसे तेज़ समाचार ब्रेकिंग न्यूज़ के नाम पे चलने लगे अगले दिन रूमाल में बैक्टेरिया के प्रभाव के पर लंबी खबरों से अखबार अटे थे ।
टीसरे दिन हमें क्या करना था हमने पूछा प्रेत से । प्रेत बोला - अब किसी साबुन वाले से बात कर इस समय हर्बल का ज़माना है जा बाबा रामदेव के पतंजलि से ही चर्चा कर ले । 99.99% बैक्टेरिया खात्मे की गारंटी से ज़्यादा मत देना गारंटी समझा । हमें 00.01 % की इस लिए नहीं देना है कि समाज 100 कभी सुधरता है क्या बताओ भला मितरो समझ गए न ?
💐💐💐💐💐
पसंद आए तो शेयर अवश्य कीजिए

22.10.17

टीपू सुल्तान महानायक न थे ?

विश्व भर में इस बात का ढिंढोरा पिटवाया है इतिहासकारों ने कि टीपू सुल्तान एक महान व्यक्ति था । परन्तु सोशल मीडिया पर इस बारे में बेहद सनसनीखेज पोस्ट आ रहीं हैं । जिसमें दावा है कि 800 आयंगर ब्राह्मणों की हत्या करवाने वाला टीपू सुल्तान न्याय प्रिय शासक न होकर असहिष्णुता का समकालीन उदाहरण था । उसने 800 आयंगर ब्राह्मणों की हत्या  रूप चतुर्दशी के दिन कराई थी । एक मित्र ने लंदन के संग्रहालय में सुरक्षित तस्वीर पोस्ट करते हुए अपनी पोस्ट में लिखा है -
 क्रूर और निर्दयी राजा -कर्नाटक का औरंगजेब टीपू सुल्तान
यह है टीपू सुल्तान की असली तस्वीर । जो ब्रिटिश संग्रहालय में रखी है और सन 1789 ईस्वी की बताई जाती है
इतिहास में हमें जो बताया गया वो केवल पेंटिंग मात्र थी ।
टीपू सुल्तान ने अपनी तलवार पर लिखाया था कि अल्लाह उसे सभी काफिरों को खत्म करने की ताकत दे
दीपावली पर टीपू सुल्तान ने 700 अयंगारों का कत्ले आम किया था ... कल जब सारे देश ने दीवाली मनाई, अयंगार शोक मना रहे थे
एक प्रत्यक्षदर्शी पुर्तगाली ने लिखा है कि टीपू ने बच्चों को उनकी मांओं के गले से लटका कर, उन मांओं को फांसी देकर मारा ...... पुरूषों को हाथियों के पावों से बांधकर हाथियों को दौड़ा दौड़ा कर उन्हें कुचला कर मारा ... 
कर्नाटक का औरंगजेब!
मुझे इतिहास की बहुत ज्यादा जानकारी तो नहीं है मगर जहाँ तक स्वतन्त्रता संग्राम की बात है तो उसने फ्रांसीसी सेना की सहायता से अपना राज्य बचाने के लिए अंग्रेजी सेना से युद्ध जरूर किया था लेकिन इस घटना का भारत के स्वातन्त्र्य समर से संबंध नहीं है।"
  भारतीय इतिहासकारों के  संदर्भों में देखा जाए तो ऐसा प्रतीत होता कि भारतीय इतिहासकार अधिक श्रम किये बिना ऐसा इतिहास लिख गए जो सही नहीं है । ये सत्य है कि आयंगर ब्राह्मण आज भी दीपावली नहीं मनाते तो क्या इतिहासकार इस तथ्य की पुष्टि करने में चूक गए । यदि हां तो नए सिरे से इतिहास के लेखन की ज़रूरत नहीं । एक इतिहास लेखक का दायित्व होता है कि वह केवल प्रामाणिक बिंदु ही लिखे ।
 अभी भी समय है इतिहास का पुनरावलोकन कर आयातित विचारधारा वाले विद्वानो से इतर विचारकों को तैयार कर  इतिहास का पुनर्लेखन हो ।

20.10.17

पाकिस्तानी सैनिक विद्रोह कर सकतें हैं ?

एक शर्मनाक पराजय जो आज भी पाकिस्तानी सेना के लिए
टीस का कारण है 

पाकिस्तानी आंतरिक व्यवस्था इतनी जर्जर गोया कभी न रही होगी जितनी वर्तमान में नज़र आ रहीं है । क्या बिना मज़बूत आर्थिक ढांचे के पाकिस्तानी रक्षा व्यवस्था स्थायित्व रह सकती है ? तो मेरे मतानुसार इसका उत्तर न में सबसे सरल है ।
इन दिनों पाकिस्तान की माली हालात भी बेहद नाजुक हैं । एक ऐसे बड़ी हवेली की तरह है जो शानो शौकत को बनाए रखने लायक आमद भी हासिल कर पाने में कमज़ोर साबित हो रही है । आखिर नवाबी थ्योरी पर बने पाकिस्तान के लोग क्या विकास के मायने नहीं जानते । बेशक नहीं जानतें क्योंकि पाकी हुकूमतों के ज़रिये उनको मिलीं जन्मजात अमेरिकी सहूलियतों ने अपाहिज़ बना दिया । उस पर पाकिस्तानी दिफ़ाई-डेमोक्रेसी (आर्मी डोमिनेटेड डेमोक्रेसी ) में डेवलपमेन्ट यानी सामाजिक विकास के मुददे सेकंडरी हो गए । जबकि भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य देशों की तरह पाकिस्तान में बौध्दिक संपदा के विकास के समुचित अवसर मौज़ूद थे और हैं भी । इसनें जेनेटिक प्रभाव को अनदेखा नहीं किया जा सकता ।
 एक सियासी ज़िद की वजह से
सैनिकों के झुके सिर 1971

फिर क्या हुआ कि एक मुल्क अपनी आज़ादी को अब सम्हाल पाने में असहाय नज़र आ रहा है ?
इस सवाल की पड़ताल करें तो पता चलता है कि - पाकिस्तानी हुकूमतों ने हमसाया मुल्कों के साथ व्यक्तिगत द्वेषपूर्ण व्यवहार का न केवल इज़हार किया वरन दुश्मनी का बर्ताव भी किया । पाकिस्तानी हुकूमतों के पास अगर एजुकेशन और एके47 देने के विकल्पों में चुनने को कहा जाय तो तय मानिये वे कश्मीरियों और अन्य लोगों को एके47 देना अधिक मुनासिब समझेंगे । जबकि भारत में भले ही धीरे धीरे पर एजूकेशन पर खासा ध्यान दिया । क्योंकि भारत डेमोक्रेटिक रूप से आर्मी पर आधारित न था न ही होगा बल्कि भारत आर्मी को एक सम्मानित ईकाई के रूप में विकसित कर चुका है , यही नीतिकारों का संकल्प भी था ।
भारतीय सैनिकों ने 1960 से जितने भी ज़ुल्म सहे उनमें भारतीय सेना ने क़दम से क़दम मिला कर भारतीय संकल्पना को आकार दिया । युद्ध में सामान्य से बूट पहने पुरानी राइफलों से काम चलाया और आज सेना विश्व की सबसे ताकतवर सेनाओं में शुमार है ।
इतना ही नहीं भारतीय वैज्ञानिकों विचारकों कानूनविदों सियासी थिंकर्स और तो और आम आदमी ने भी भारत की अस्मिता की रक्षा के लिए खुद को तैयार रखा , किसान भी पीछे न रहे अमेरिकन लाल गेंहूँ खाने वाला भारत अब कृषि उत्पादन में आगे ही आगे बढ़ रहा है ।
अपवादों को छोड़ दिया जाए तो औसतन भारत अपनी जनशक्ति के बूते फिर शक्तिशाली नज़र आ रहा है ।
उधर पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों और नेताओं पर खुले आम भ्रष्टाचारी होने के मामले बहसों के ज़रिए सामने आ रहे हैं यानी उस देश का धन या तो उनके ही शब्दों में गुड आतंक के हवाले हुआ अथवा भ्रष्टाचार के ज़रिए वहां के रसूखदारों के गुप्तख़ज़ानों में आइंदा नस्लों के लिए महफूज़ रखा गया है ।
जब इस बात का खुलासा होने लगा तो पाकिस्तानी आम आदमी बगावत अवश्य करेगा जिसका सबसे बड़ा असर वहां की फोर्स पर पड़ना स्वभाविक है, पाक फ़ौज के सैनिक विद्रोही हो जाएं इस बात से इंकार करना भी गलत है ।
मुझे तो इस बात का पूरा पूरा अंदेशा है कि - पाक आर्मी की तुलना में पाकिस्तानी फौज और सिविल सरकार धर्म के नाम पर आतंकवादियों के ज़रिए मिशन अशांति को पूरा कर रहें हैं, अर्थात फ़ौज ने आउट सोर्सिंग का सहारा ले लिया है ।
चीन को इस बात का इल्म यकीनी तौर पर हो चुका है कि पाकिस्तान को दिया कर्ज़ वसूलने में उसे कितनी तकलीफ़ होगी सो चीनी सरकार की पाकिस्तान-नीतियों में शनै: शनै: बदलाव स्वाभाविक रूप से आएगा ।
भारतीय टीम भी इस अवसर को अवश्य भुनाएगी और भुनाने में कोई बुराई नहीं है । क्योंकि पाकिस्तानी सियासी सोच उसके विखंडन तक बदलेगी ऐसा कुछ दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहा ।
वैसे भारत समताधारित द्विराष्ट्रीय रिश्ते का हिमायती है परंतु पाकिस्तान नहीं । कारण वहां के सैन्य और सिविल प्रशासन-प्रवंधन में इन बातों के लिए कोई स्थान नहीं । अगर पाकिस्तान को अपना नक्शा बचाए रखना है तो उसे विश्व व्यापारिक सम्बन्धों पर आधारित वैश्विक नीति अपनानी होगी । अब न तो धर्ममान्धता पर आधारित नीति कारगर रह सकती है और न ही अन्य किसी देश को कमज़ोर करने वाली नीति । अगर ऐसा होता तो अमेंरिका सहित विश्व के कई विकसित देशों में भारतीय ब्रेन उनके विकास के लिए काम न कर रहे होते ।
पाकिस्तान की एक सबसे बड़ी कमजोरी यह भी है कि वहां की फ़ौज और सिविल सरकार के बीच अजीब सा रिश्ता कायम है । जिसे विकास करना है वो सिविल सरकार  पंगु है फ़ौज के आगे फ़ौज एक विशेष कार्य के संपादन के लिए सक्षम होतीं हैं न कि हर किसी विषय के लिए । आर्थिक सामाजिक न्यायिक कृषि क्षेत्र सहित विकास के सारे क्षेत्र के निर्णय  केवल सामरिक एवम रक्षा का दायित्व सम्हालने वाली ईकाई द्वारा रेग्यूलेट होना अपने आप में अवैज्ञानिक अव्यवहारिक है ।
  पाकिस्तानी आवाम को सम्पूर्ण क्रांति के ज़रिये बदलाव लाने के लिये वहाँ की परिस्थितियाँ अनुकूल कदापि नहीं । वहां सिंध बलूचिस्तान अफ़ग़ान जैसे विषय के साथ साथ पीओके कश्मीरी मुद्दा आंतरिक विघटन के खुले उदाहरण हैं ।
फिर अनुत्पादकता अशिक्षा कमज़ोर वाइटल समंक , अनुत्पादक आबादी, फिरका-परस्ती, जैसी परिस्थितियों से उस देश की जर्जर स्थिति है । जबकि हमारे साथ सामान्य रिश्ते पाकिस्तान के लिए एक सहज एवम सरल रास्ता था । परंतु कुंठित मानसिकता से पाकिस्तान जहां था उससे भी पीछे नज़र आ रहा है ।
चलिए देखतें हैं आत्मसमर्पण करने वाली सेना कहीं विद्रोह न कर दे वरना बलूचिस्तान पीओके सिंध अलग होने में देर न होगी


18.10.17

अदृश्य स्याही एक पहेली : श्रीमन प्रशांत पोल


 प्राचीन भारत में ऋषि-मुनियों को जैसा अदभुत ज्ञान था, उसके बारे में जब हम जानते हैं, पढ़ते हैं तो अचंभित रह जाते हैं. रसायन और रंग विज्ञान ने भले ही आजकल इतनी उन्नति कर ली हो, परन्तु आज से 2000 वर्ष पहले भूर्ज-पत्रों पर लिखे गए "अग्र-भागवत" का यह रहस्य आज भी अनसुलझा ही है.
जानिये इसके बारे में कि आखिर यह "अग्र-भागवत इतना विशिष्ट क्यों है? अदृश्य स्याही से सम्बन्धित क्या है वह पहेली, जो वैज्ञानिक आज भी नहीं सुलझा पाए हैं.

आमगांव… यह महाराष्ट्र के गोंदिया जिले की एक छोटी सी तहसील, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की सीमा से जुडी हुई. इस गांव के ‘रामगोपाल अग्रवाल’, सराफा व्यापारी हैं. घर से ही सोना, चाँदी का व्यापार करते हैं. रामगोपाल जी, ‘बेदिल’ नाम से जाने जाते हैं. एक दिन अचानक उनके मन में आया, ‘असम के दक्षिण में स्थित ‘ब्रम्हकुंड’ में स्नान करने जाना है. अब उनके मन में ‘ब्रम्हकुंड’ ही क्यूँ आया, इसका कोई कारण उनके पास नहीं था. यह ब्रम्हकुंड (ब्रह्मा सरोवर), ‘परशुराम कुंड’ के नाम से भी जाना जाता हैं. असम सीमा पर स्थित यह कुंड, प्रशासनिक दृष्टि से अरुणाचल प्रदेश के लोहित जिले में आता हैं. मकर संक्रांति के दिन यहाँ भव्य मेला लगता है.
‘ब्रम्ह्कुंड’ नामक स्थान अग्रवाल समाज के आदि पुरुष/प्रथम पुरुष भगवान अग्रसेन महाराज की ससुराल माना जाता है. भगवान अग्रसेन महाराज की पत्नी, माधवी देवी इस नागलोक की राजकन्या थी. उनका विवाह अग्रसेन महाराज जी के साथ इसी ब्रम्ह्कुंड के तट पर हुआ था, ऐसा बताया जाता है. हो सकता हैं, इसी कारण से रामगोपाल जी अग्रवाल ‘बेदिल’ को इच्छा हुई होगी ब्रम्ह्कुंड दर्शन की..! वे अपने ४–५ मित्र–सहयोगियों के साथ ब्रम्ह्कुंड पहुंच गए. दुसरे दिन कुंड पर स्नान करने जाना निश्चित हुआ. रात को अग्रवाल जी को सपने में दिखा कि, ‘ब्रम्ह्सरोवर के तट पर एक वटवृक्ष हैं, उसकी छाया में एक साधू बैठे हैं. इन्ही साधू के पास, अग्रवाल जी को जो चाहिये वह मिल जायेगा..! दूसरे दिन सुबह-सुबह रामगोपाल जी ब्रम्ह्सरोवर के तट पर गये, तो उनको एक बड़ा सा वटवृक्ष दिखाई दिया और साथ ही दिखाई दिए, लंबी दाढ़ी और जटाओं वाले वो साधू महाराज भी. रामगोपाल जी ने उन्हें प्रणाम किया तो साधू महाराज जी ने अच्छे से कपडे में लिपटी हुई एक चीज उन्हें दी और कहा, “जाओं, इसे ले जाओं, कल्याण होगा तुम्हारा.” वह दिन था, ९ अगस्त, १९९१.
आप सोच रहे होंगे कि ये कौन सी "कहानी" और चमत्कारों वाली बात सुनाई जा रही है, लेकिन दो मिनट और आगे पढ़िए तो सही... असल में दिखने में बहुत बड़ी, पर वजन में हलकी वह पोटली जैसी वस्तु लेकर, रामगोपाल जी अपने स्थान पर आए, जहां वे रुके थे. उन्होंने वो पोटली खोलकर देखी, तो अंदर साफ़–सुथरे ‘भूर्जपत्र’ अच्छे सलीके से बांधकर रखे थे. इन पर कुछ भी नहीं लिखा था. एकदम कोरे..! इन लंबे-लंबे पत्तों को भूर्जपत्र कहते हैं, इसकी रामगोपाल जी को जानकारी भी नहीं थी. अब इसका क्या करे..? उनको कुछ समझ नहीं आ रहा था. लेकिन साधू महाराज का प्रसाद मानकर वह उसे अपने गांव, आमगांव, लेकर आये. लगभग ३० ग्राम वजन की उस पोटली में ४३१ खाली (कोरे) भूर्जपत्र थे. बालाघाट के पास ‘गुलालपुरा’ गांव में रामगोपाल जी के गुरु रहते थे. रामगोपाल जी ने अपने गुरु को वह पोटली दिखायी और पूछा, “अब मैं इसका क्या करू..?” गुरु ने जवाब दिया, “तुम्हे ये पोटली और उसके अंदर के ये भूर्जपत्र काम के नहीं लगते हों, तो उन्हें पानी में विसर्जित कर दो.” अब रामगोपाल जी पेशोपेश में पड गए. रख भी नहीं सकते और फेंक भी नहीं सकते..! उन्होंने उन भुर्जपत्रों को अपने पूजाघर में रख दिया.
कुछ दिन बीत गए. एक दिन पूजा करते समय सबसे ऊपर रखे भूर्जपत्र पर पानी के कुछ छींटे गिरे, और क्या आश्चर्य..! जहां पर पानी गिरा था, वहां पर कुछ अक्षर उभरकर आये. रामगोपाल जी ने उत्सुकतावश एक भूर्जपत्र पूरा पानी में डुबोकर कुछ देर तक रखा और वह आश्चर्य से देखते ही रह गये..! उस भूर्जपत्र पर लिखा हुआ साफ़ दिखने लगा. अष्टगंध जैसे केसरिया रंग में, स्वच्छ अक्षरों से कुछ लिखा था. कुछ समय बाद जैसे ही पानी सूख गया, अक्षर भी गायब हो गए. अब रामगोपाल जी ने सभी ४३१ भुर्जपत्रों को पानी में भिगोकर, सुखने से पहले उन पर दिख रहे अक्षरों को लिखने का प्रयास किया. यह लेखन देवनागरी लिपि में और संस्कृत भाषा में लिखा था. यह काम कुछ वर्षों तक चला. जब इस साहित्य को संस्कृत के विशेषज्ञों को दिखाया गया, तब समझ में आया, की भूर्जपत्र पर अदृश्य स्याही से लिखा हुआ यह ग्रंथ, अग्रसेन महाराज जी का ‘अग्र भागवत’ नाम का चरित्र हैं. लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व जैमिनी ऋषि ने ‘जयभारत’ नाम का एक बड़ा ग्रंथ लिखा था. उसका एक हिस्सा था, यह ‘अग्र भागवत’ ग्रंथ. पांडव वंश में परीक्षित राजा का बेटा था, जनमेजय. इस जनमेजय को लोक साधना, धर्म आदि विषयों में जानकारी देने हेतू जैमिनी ऋषि ने इस ग्रंथ का लेखन किया था, ऐसा माना जाता हैं.
रामगोपाल जी को मिले हुए इस ‘अग्र भागवत’ ग्रंथ की अग्रवाल समाज में बहुत चर्चा हुई. इस ग्रंथ का अच्छा स्वागत हुआ. ग्रंथ के भूर्जपत्र अनेकों बार पानी में डुबोकर उस पर लिखे गए श्लोक, लोगों को दिखाए गए. इस ग्रंथ की जानकारी इतनी फैली की इंग्लैंड के प्रख्यात उद्योगपति लक्ष्मी मित्तल जी ने कुछ करोड़ रुपयों में यह ग्रंथ खरीदने की बात की. यह सुनकर / देखकर अग्रवाल समाज के कुछ लोग साथ आये और उन्होंने नागपुर के जाने माने संस्कृत पंडित रामभाऊ पुजारी जी के सहयोग से एक ट्रस्ट स्थापित किया. इससे ग्रंथ की सुरक्षा तो हो गयी. आज यह ग्रंथ, नागपुर में ‘अग्रविश्व ट्रस्ट’ में सुरक्षित रखा गया हैं. लगभग १८ भारतीय भाषाओं में इसका अनुवाद भी प्रकाशित हुआ हैं. रामभाऊ पुजारी जी की सलाह से जब उन भुर्जपत्रों की ‘कार्बन डेटिंग’ की गयी, तो वह भूर्जपत्र लगभग दो हजार वर्ष पुराने निकले.
यदि हम इसे काल्पनिक कहानी मानें, बेदिल जी को आया स्वप्न, वो साधू महाराज, यह सब ‘श्रध्दा’ के विषय अगर ना भी मानें... तो भी कुछ प्रश्न तो मन को कुरेदते ही हैं. जैसे, कि हजारों वर्ष पूर्व भुर्जपत्रों पर अदृश्य स्याही से लिखने की तकनीक किसकी थी..? इसका उपयोग कैसे किया जाता था..? कहां उपयोग होता था, इस तकनीक का..? भारत में लिखित साहित्य की परंपरा अति प्राचीन हैं. ताम्रपत्र, चर्मपत्र, ताडपत्र, भूर्जपत्र... आदि लेखन में उपयोगी साधन थे.

मराठी विश्वकोष में भूर्जपत्र की जानकारी दी गयी हैं, जो इस प्रकार है – “भूर्जपत्र यह ‘भूर्ज’ नाम के पेड़ की छाल से बनाया जाता था. यह वुक्ष ‘बेट्युला’ प्रजाति के हैं और हिमालय में, विशेषतः काश्मीर के हिमालय में, पाए जाते हैं. इस वृक्ष के छाल का गुदा निकालकर, उसे सुखाकर, फिर उसे तेल लगा कर उसे चिकना बनाया जाता था. उसके लंबे रोल बनाकर, उनको समान आकार का बनाया जाता था. उस पर विशेष स्याही से लिखा जाता था. फिर उसको छेद कर के, एक मजबूत धागे से बांधकर, उसकी पुस्तक / ग्रंथ बनाया जाता था. यह भूर्जपत्र, उनकी गुणवत्ता के आधार पर दो – ढाई हजार वर्षों तक अच्छे रहते थे. भूर्जपत्र पर लिखने के लिये प्राचीन काल से स्याही का उपयोग किया जाता था. भारत में, ईसा के पूर्व, लगभग ढाई हजार वर्षों से स्याही का प्रयोग किया जाता था, इसके अनेक प्रमाण मिले हैं. लेकिन यह कब से प्रयोग में आयी, यह अज्ञात ही हैं. भारत पर हुए अनेक आक्रमणों के चलते यहाँ का ज्ञान बड़े पैमाने पर नष्ट हुआ है. परन्तु स्याही तैयार करने के प्राचीन तरीके थे, कुछ पध्दतियां थी, जिनकी जानकारी मिली हैं. आम तौर पर ‘काली स्याही’ का ही प्रयोग सब दूर होता था. चीन में मिले प्रमाण भी ‘काली स्याही’ की ओर ही इंगित करते हैं. केवल कुछ ग्रंथों में गेरू से बनायी गयी केसरियां रंग की स्याही का उल्लेख आता हैं.
मराठी विश्वकोष में स्याही की जानकारी देते हुए लिखा हैं – ‘भारत में दो प्रकार के स्याही का उपयोग किया जाता था. कच्चे स्याही से व्यापार का आय-व्यय, हिसाब लिखा जाता था तो पक्की स्याही से ग्रंथ लिखे जाते थे. पीपल के पेड़ से निकाले हुए गोंद को पीसकर, उबालकर रखा जाता था. फिर तिल के तेल का काजल तैयार कर उस काजल को कपडे में लपेटकर, इस गोंद के पानी में उस कपडे को बहुत देर तक घुमाते थे. और वह गोंद, स्याही बन जाता था, काले रंग की..’ भूर्जपत्र पर लिखने वाली स्याही अलग प्रकार की रहती थी. बादाम के छिलके और जलाये हुए चावल को इकठ्ठा कर के गोमूत्र में उबालते थे. काले स्याही से लिखा हुआ, सबसे पुराना उपलब्ध साहित्य तीसरे शताब्दी का है. आश्चर्य इस बात का हैं, की जो भी स्याही बनाने की विधि उपलब्ध हैं, उन सब से पानी में घुलने वाली स्याही बनती हैं. जब की इस ‘अग्र भागवत’ की स्याही, भूर्जपत्र पर पानी डालने से दिखती हैं. पानी से मिटती नहीं. उलटें, पानी सूखने पर स्याही भी अदृश्य हो जाती हैं. इस का अर्थ यह हुआ, की कम से कम दो – ढाई हजार वर्ष पूर्व हमारे देश में अदृश्य स्याही से लिखने का तंत्र विकसित था. यह तंत्र विकसित करते समय अनेक अनुसंधान हुए होंगे. अनेक प्रकार के रसायनों का इसमें उपयोग किया गया होगा. इसके लिए अनेक प्रकार के परीक्षण करने पड़े होंगे. लेकिन दुर्भाग्य से इसकी कोई भी जानकारी आज उपलब्ध नहीं हैं. उपलब्ध हैं, तो अदृश्य स्याही से लिखा हुआ ‘अग्र भागवत’ यह ग्रंथ. लिखावट के उन्नत आविष्कार का जीता जागता प्रमाण..!
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि ‘विज्ञान, या यूं कहे, "आजकल का शास्त्रशुध्द विज्ञान, पाश्चिमात्य देशों में ही निर्माण हुआ" इस मिथक को मानने वालों के लिए, ‘अग्र भागवत’ यह अत्यंत आश्चर्य का विषय है. स्वाभाविक है कि किसी प्राचीन समय इस देश में अत्यधिक प्रगत लेखन शास्त्र विकसित था, और अपने पास के विशाल ज्ञान भंडार को, पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित करने की क्षमता इस लेखन शास्त्र में थी, यह अब सिध्द हो चुका है..! दुर्भाग्य यह है कि अब यह ज्ञान लुप्त हो चुका है. यदि भारत में समुचित शोध किया जाए एवं पश्चिमी तथा चीन की लाईब्रेरियों की ख़ाक छानी जाए, तो निश्चित ही कुछ न कुछ ऐसा मिल सकता है जिससे ऐसे कई रहस्यों से पर्दा उठ सके.



17.10.17

मिट्टी पूजतीं हैं दीपावाली पर


मिट्टी के दिये के साथ दीपशिखाऐं
जितनी स्वर्णिम आभा देतीं है
उससे अधिक चमकदार होते हैं
उनके मुस्कान भरे चेहरे
औऱ
मिट्टी वाले घरों को
बड़ी मेहनत से बने
माटी के आंगन को
जहां छुई से उकेरीं थीं
अम्माजी ने अपनी उत्साही
उत्सवी सृजनात्मकता
मिट्टी की लक्ष्मी मिट्टी के गणेश
रात भर दीप जगाने लायक तेल
माँ अम्मा दीदी बुआ
मिट्टी पूज के मनातीं हैं
दीवाली
वो दीवाली जो शायद
कोई कुबेर भी न मना पाए
*संतुष्टि लक्ष्मी* की इन सखियों के साथ
आप सबको दीपावली की शुभकामनाएं


16.10.17

कौन होगा अब निराला


निराला जी की पुण्यतिथि पर विनम्र शब्द श्रद्धांजली 

💐💐💐💐💐💐


सभी अपने खंड में हैं !
कुछेक तो पाखंड में हैं !!
सभी की अपनी है हाला 
सभी का अपना है प्याला !
कौन होगा अब निराला ?

एक अक्खड़ सादगी थे ।
विषमता के पारखी थे ।।
निगलते तो निगल लो -
कष्ट का सूखा निवाला ।।
कौन होगा अब निराला ?

वो गुलाबी झड़प उनकी
याद है न तड़प उनकी ?
शब्द के हथियार लेकर 
मोरचा कैसे सम्हाला !!
कौन होगा अब निराला ?
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

15.10.17

भारतीय राष्ट्रीय खाद्य पदार्थ कसम


    राम धई, राम कसम, अल्ला कसम, रब दी सौं, तेरी कसम, मां कसम,पापा कसम, आदि कसमें भारत का  लोकप्रिय खाद्य पदार्थ हैं. इनके खाने से मानव प्रजाति को बहुत कुछ हासिल होता है. चिकित्सालय में डाक्टर बीमारी के लिये ये खाना वो मत खाना जैसी सलाह खूब देते हैं पर किसी चिकित्सक ने कसम नामक खाद्य-पदार्थ के सेवन पर कभी एतराज़ नहीं जताया. न तो किसी वैद्य ने न हक़ीम ने, इस से इस बात की तस्दीक होती है कि कसम कितनी भी मात्रा में खाएं नुकसान न होगा. 
इसी क्रम में बता दूं कि-   फ़ुटपाथ पे ज़वानी बचाए रखने वाली दवा बेचने वाले भाईयों मर्दानगी की कसम खा खा बहुतेरों की खोई हुई जवानी वापस लाने का दावा किया किसी भी माई के लाल ने उस दावे को खारिज नहीं करने की कोशिश नहीं की . यानी कुल मिला कर क़सम किसी प्रकार से नुक़सान देह नहीं डाक्टरी नज़रिये से. 
फ़िल्मी अदालतों में कसम खिलावाई जातीं हैं. अदालतों में खिलवाई जाती है .  हम नौकरी पेशा लोगों से सेवा पुस्तिका में कसम की एंट्री कराई जाती है. और तो और संसद, विधान सभाओं , मंत्री पदों अन्य सभी पदों पर चिपकने से पेश्तर इसको खाना ज़रूरी है. 
    कसम से फ़िलम वालों को भी कोई गुरेज़ नहीं वे भी तीसरी कसमकसम  सौगंधसौगंध गंगा मैया के ... बना चुके हैं. गानों की मत पूछिये कसम  का स्तेमाल  खूब किया है गीतकारों ने. भी. 
          मान लीजिये कभी ये  राम धई, राम कसम, अल्ला कसम, रब दी सौं, तेरी कसम, मां कसमजैसी जिन्सें आकार ले लें और ऊगने लगें तो सरकार कृषि विभाग की तर्ज़ पर "कसम-विभाग" की स्थापना करेगी बाक़ायदा . सरकार ऐसा इस लिये करेगी क्योंकि - यही एक खाद्य-पदार्थ है जो सुपाच्य है. इसे खाने से कब्ज़ जैसी बीमारी होना तो दूर खाद्य-जनित अथवा अत्यधिक सेवन से उपजी बीमारियां कदापि न तो अब तक किसी को हुई है न इन के जिंस में बदल जाने के बाद किसी को हो सकती है. चिकित्सा विज्ञान ने तो इस पर अनुसंधान भी आरंभ कर दिये हैं. बाक़ायदा कसम-मंत्रियों  का पद भी ईज़ाद होगा. इसके लिये विधेयक संसद में लाया जावेगा. 
      पैट्रोल-डीज़ल-गैस की तरह इनकी कीमतों में बदलाव जब जी चाहे सरकार कर सकती है. 
 कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनको कसम खाना भी नहीं आता दिल्ली वाले फ़ेसबुक स्टार 
   राजीव तनेजा नामक जंतु जो मेरे दिल्ली वासी मित्र हैं लिखते हैं
कारस्तानी कुछ बेशर्मों की 
शर्मसार है पूरा इंडिया,
अपने में मग्न बेखबर हो ?
वीणा-तार झनकाऊं कैसे ?
सौगंध राम की खाऊं कैसे..?

                             इस तरह की लाचारी उनकी होगी जैसे कि हमारे मुहल्ले के पार्षद जी   राम-रहीम की कसम खाने में *सिद्धमुख हैं हालांकि अब वे हनीप्रीत वाले राम-रहीम की वज़ह से डरे हुए हैं . इस मामले में वे पूरे सैक्यूलर नज़र आते हैं आप समझ गए न कसम क्यों खाई जाती है.. कसम भी सेक्यूलर होती है.. ये तय है.. कभी कभी नहीं भी होती. 
   
             खैर ये जब होगा तब सोचिये अभी तो इससे होने वाले लाभों पर एक नज़रफ़ेरी कर ली जाए 
1.      सच्ची-कसमें- ये तो केवल झुमरी तलैया वालों ने खाई थी . हमेशा फरमाइश करते रहने की .  इस प्रकार की कस्में अब दुनियां के बाज़ार से लापतागंज की ओर चलीं गईं हैं. लापतागंज है कहां हमको नहीं मालूम.. इत्ता ज़रूर पता है कि = झुमरी तलैया के रेडियो प्रेमी श्रोता विविध भारती के फरमाइशी कार्यक्रमों में सबसे ज्‍यादा चिट्ठियां लिखने के लिए जाने जाते हैं।" वैसे ही लापतागंज जहां  भी है है तो ज़रूर .... वहां सच्ची कसमें मौज़ूद हैं
2.      झूठी कसमें :-  ये हर जगह मौजूद हैं आप के पास भी.. मेरे पास भी .. इसे खाईये और अच्छे से अच्छा मामला सुलटाइये. सच मानिये इसे खाकर आप जनता को पटाकर आम आदमी (केजरी चच्चा वाला नहीं )   से खास बन सकते हैं. याद होगा  श्री 420 वाले राजकपूर साहब ने मंजन इसी प्रकार की कसम खाकर बेचा था. आज़कल भी व्यापारिक कम्पनियां राजू की स्टाइल में पने अपने प्रोडक्ट बेच रहीं हैं. क्या नेता क्या अफ़सर क्या मंत्री क्या संत्री अधिकांश  के पेट इसी से भरते हैं . खबरिया बनाम जबरिया चैनल्स की तो महिमा अपरम्पार है कहते हैं .. हमारी खबर सबसे सच्ची है.. ! देश का बच्चा बच्चा जानता है कि सच क्या है . 
3.      सेक्यूलर कसम :- इस बारे में ज़्यादा कुछ न कहूंगा. हम बोलेगा तो बोलेगे कि बोलता है. 
4.       दाम्पत्य कसम  :- जो शादी-नामक भयंकर घटना के दौरान खाई जाती है वो सात हैं . बाद में पति पत्नी एक दूसरे के सामने जो कसमें  खाते हैं वे सभी   सात कसमों से इतर होतीं हैं.. .इस तरह की कसम पतिदेव को ज़्यादा मात्रा में खानी होती है. पत्नी को दाम्पत्य कसम  कभी कभार खानी होती है . 
5.      इन लव  कसम  :- यह कसम यूं तो विवाह जोग होने के बाद आई एम इन लव की स्थिति में खाना चाहिये परंतु ऐसी कसम आजकल नन्हीं पौध तक खा रही है. एकता कपूर जी की कसम आने वाले समय में बच्चे ऐसी कसमें पालनें में खाएंगे. 
6.      सियासी-कसम  :-  सियासी कसम के बारे में भगवान कसम कुछ बोलने का मन नहीं कर रहा ...!! इस कसम पर बोलने से पेश्तर बहुत कुछ सोचता हूँ.
                        जो भी हो हम तो कसम के प्रकार बता रहे थे भगवान कसम  भाववेश में कुछ ज़्यादा ही कह गए. माफ़ी हो. मुद्दे की बात ये है कि जो भी आजकल कसम खा रहा नज़र आए तो समझिये वो झूठा है. सच्ची वाली कसमें तो लापतागंज चलीं गईं. परन्तु एक बात साफ़ तौर पर साफ़ है कि – भारत का सर्वप्रिय यानी सर्वाधिक खाया जाने वाला खाद्य पदार्थ कसम ही तो है .. है न हजूर



12.10.17

पल पल रिसते रिश्ते


पल पल रिसते रिश्तों के बीच सबको जीना पड़ता है. बहुत दिनों से अजीबोगरीब कश्मकश के बीच आक्सीजन ले रहा हूँ . और रिश्ते हैं कि रिसते जा रहे हैं कभी इसे नाराज़गी, तो कभी उसको तकलीफ कभी इसका इगो तो कभी उसका दर्द ... मुझसे नाराज़ लोगों की भीड़ से बड़ी लोगों की लिस्ट है. 
एक चोर को चोरी न करने का मौका मिला तो बस लगा मुझे अनाप शनाप पोट्रेट करने . आजिज़ आ गया हूँ. परन्तु मेरे  हौसलों की मुझे सलाह है ... ठाठ से जियो .. जी रहा हूँ.. किसी से डरे बिना.

अब  तो मैं ...  क्या ..! क्यों...! कैसे ....! शब्दों से बात शुरू करता हूँ.. रुकता हूँ तो बस इतना पूछ कर क्यों रुकना है.. ! इन बातों को सुन पसीने छूट जाते हैं. लोगों के . पूछो ... मत उनसे कि  क्यों मुझे गलत पोट्रेट करते हो . इसके पीछे एक कारण हैं 
जाओ पोटली में बंद मत रहो खुलो अनावृत हो जाओ.. शर्मा ...... जाएंगे .... नजरें न मिला पाएंगे जीत तुम्हारी है . ज़िंदा हो न जीते रहो खुलकर किसी की परवाह न करो !"
क्रमश: 

2.10.17

श्रेष्ठ ब्लॉग की सूची में ब्लॉग मिसफिट

http://www.indiantopblogs.com यानी टॉप ब्लॉग  ने 30 सितम्बर को देशभर के  श्रेष्ठ ब्लॉग की सूची जारी कर दी है. जिसमें आपका पसंदीदा ब्लॉग मिसफिट  ( https://sanskaardhani.blogspot.in/ ) जो अब तक 373,279  पाठकों तक जा पहुंच चुका है .  
सुधि पाठकों को इस ब्लॉग मिसफिट  पर आने के लिए  नमन 
Directory of Best Hindi Blogs हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगों की डायरेक्टरी
The 2017 edition of the Directory of Best Hindi Blogs has been released on 30th September 2017. It has 140 blogs, listed alphabetically [according to the operative part of the URL]. 
30 सितंबर 2017 को ज़ारी हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगों की डायरेक्टरी का 2017 संस्करण आपके सामने प्रस्तुत है. इसमें 140 ब्लॉग हैं जिन्हें उनके  URL के पहले अंग्रेज़ी अक्षर के क्रम में लगाया गया है.


4yashoda मेरी धरोहर
aarambha आरम्भ
abchhodobhi अब छोड़ो भी
achhikhabar Achhikhabar
agrasamachar Hindi News India : Agra Samachar
ajit09 अजित गुप्‍ता का कोना 
akanksha-asha Akanksha
akhtarkhanakela आपका-अख्तर खान "अकेला"
akoham एकोऽहम्
akpathak3107 अजित गुप्‍ता का कोना 
amitaag Safarnaamaa... सफ़रनामा...
amrita-anita डायरी के पन्नों से
anitanihalani मन पाए विश्राम जहाँ
anubhaw अनुभव
anunad अनुनाद 
apnapanchoo अपना पंचू
apninazarse अपनी नज़र से 
archanachaoji मेरे मन की 
artharthanshuman Arthaat
aruncroy सरोकार 
avojha मुक्ताकाश....
baatapani बात अपनी
bal-kishore Bal-Kishore 
bamulahija Bamulahija
bastarkiabhivyakti बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई झरना...
bhadas भड़ास blog
bhartiynari भारतीय नारी
bloglon Blog Lon
boletobindas Bole to...Bindaas....बोले तो....बिंदास 
brajeshgovind यही है जिन्दगी
brajkiduniya ब्रज की दुनिया
bulletinofblog ब्लॉग बुलेटिन
burabhala बुरा भला
chandkhem हरिहर
charchamanch चर्चा मंच
charchchit32 विशाल चर्चित 
chavannichap chavanni chap (चवन्नी चैप)
chouthaakhambha चौथा खंबा 
creativekona क्रिएटिव कोना 
dcgpthravikar कुछ कहना है 
devendra-bechainaatma बेचैन आत्मा
dillidamamla ऐवें कुछ भी 
doosrapahlu दूसरा पहलू 
dr-mahesh-parimal संवेदनाओं के पंख
drparveenchopra मीडिया डाक्टर
dudhwalive दुधवाlive
ekla-chalo एकला चलो 
ek-shaam-mere-naam एक शाम मेरे नाम 
firdausdiary Firdaus Diary
geetkalash गीत कलश
girijeshrao एक आलसी का चिठ्ठा
gulabkothari Gulabkothari's Blog
gustakh गुस्ताख़
gyandarpan ज्ञान दर्पण 
harshvardhantripathi हर्षवर्धन त्रिपाठी
hathkadh Hathkadh
hindisoch.com Hindi Soch
hinditechy Hindi Techy
indorepolice Indore Police News 
iyatta इयत्ता
jagadishwarchaturvedi नया जमाना
jankipul जानकीपुल
jhoothasach झूठा सच - Jhootha Sach
jindagikeerahen जिंदगी की राहें 
jlsingh jls
kabaadkhaana कबाड़खाना
kajalkumarcartoons Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून
kavitarawatbpl KAVITA RAWAT 
kpk-vichar मेरे विचार मेरी अनुभूति 
krantiswar क्रांति स्वर 
kuchhalagsa कुछ अलग सा
kumarendra रायटोक्रेट कुमारेन्द्र
laharein लहरें 
laltu आइए हाथ उठाएँ हम भी
lamhon-ka-safar लम्हों का सफ़र
lifeteacheseverything मेरी भावनायें...
madhurgunjan मधुर गुंजन
mainmusafir1 मैं मुसाफ़िर अनजानी राहों का...
masharmasehar Sehar
mykalptaru कल्पतरु
naisadak कस्‍बा qasba
neerajjaatji मुसाफिर हूँ यारों
omjaijagdeesh वंदे मातरम्
onkarkedia कविताएँ
opsambey चलाचले च संसारे
opsambey चलाचले च संसारे 
pachhuapawan पछुआ पवन (The Western Wind)
pahleebar पहली बार 
pammisingh गुफ़्तगू 
paramjitbali-ps2b ******दिशाएं****** 
pittpat बर्ग वार्ता - Burgh Vartaa
pramathesh jigyasa जिज्ञासा
prasunbajpai पुण्य प्रसून बाजपेयी
pratibhakatiyar प्रतिभा की दुनिया 
purushottampandey जाले 
purvaai पुरवाई
radioplaybackindia रेडियो प्लेबैक इंडिया
ranars Agri Commodity News English-Hindi
rangwimarsh रंगविमर्श
raviratlami छींटे और बौछारें
rekhajoshi Ocean of Bliss
rooparoop रूप-अरूप
rozkiroti रोज़ की रोटी - Daily Bread
sabkuchhindi Tips in Hindi [आई. सी. टिप्स हिंदी]
sadalikhna सदा 
sanjaybhaskar शब्दों की मुस्कुराहट :)
sanskaardhani मिसफिट Misfit                                     
sanyalsduniya2 अग्निशिखा :
sapne-shashi sapne(सपने)
sarokarnama सरोकारनामा
satish-saxena मेरे गीत !
seedhikharibaat सीधी खरी बात..
shabdankan शब्दांकन 
shabdshikhar शब्द-शिखर
shalinikaushik2 ! कौशल !
sharadakshara sharadakshara 
sharmakailashc Kashish - My Poetry 
shashwat-shilp शाश्वत शिल्प
shesh-fir शेष फिर...
shoutmehindi ShoutMeहिंदी 
shubhravastravita मंथन
shwetabhmathur Memories
sriramprabhukripa श्रीराम प्रभु कृपा: मानो या न मानो
sudhinama Sudhinama
sumitpratapsingh सुमित के तड़के 
supportmeindiablog Support Me India
sushma-aahuti 'आहुति'
swapnmere स्वप्न मेरे................
teesarakhamba तीसरा खंबा 
travelwithmanish मुसाफ़िर हूँ यारों... (Musafir Hoon Yaaron…) 
tsdaral अंतर्मंथन
udantashtari उड़न तश्तरी ....
ulooktimes उलूक टाइम्स 
vandana-zindagi जिन्दगी 
vigyanvishwa विज्ञान विश्व 
wwwsamvedan सहज साहित्य
yatra-1 शिप्रा की लहरें 

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...