21.9.17

‘लोहस्तंभ’ - प्रशांत पोळ

दक्षिण दिल्ली से मेहरोली की दिशा में जाते समय दूर से ही हमें ‘क़ुतुब मीनार’ दिखने लगती हैं. २३८ फीट ऊँची यह मीनार लगभग २३ मंजिल की इमारत के बराबर हैं. पूरी दुनिया में ईटों से बनी हुई यह सबसे ऊँची वास्तु हैं. दुनियाभर के पर्यटक यह मीनार देखने के लिए भारत में आते हैं.
साधारणतः ९०० वर्ष पुरानी इस मीनार को यूनेस्को ने ‘विश्व धरोहर’ घोषित किया हैं. आज जहां यह मीनार खड़ी हैं, उसी स्थान पर दिल्ली के हिन्दू शासक पृथ्वीराज चौहान की राजधानी ‘ढिल्लिका’ थी. इस ढिल्लिका के ‘लालकोट’ इस किले नुमा गढ़ी को ध्वस्त कर, मोहम्मद घोरी के सेनापति ‘कुतुबुद्दीन ऐबक’ ने यह मीनार बनाना शुरू किया था. बाद में आगे चलकर इल्तुतमिश और मोहम्मद तुघलक ने यह काम पूरा किया. मीनार बनाते समय लालकोट में बने मंदिरों के अवशेषों का भी उपयोग किया गया हैं, यह साफ़ दिखता हैं.
किन्तु इस ‘ढिल्लिका’ के परिसर में इस क़ुतुब मीनार से भी बढकर एक विस्मयकारी स्तंभ अनेक शतकों से खड़ा हैं. क़ुतुब मीनार से कही ज्यादा इसका महत्व हैं. क़ुतुब मीनार से लगभग सौ – डेढ़ सौ फीट दूरी पर एक ‘लोहस्तंभ’ हैं. क़ुतुब मीनार से बहुत छोटा... केवल ७.३५ मीटर या २४.११ फीट ऊँचा. क़ुतुब मीनार के एक दहाई भर की ऊँचाई वाला..! लेकिन यह स्तंभ क़ुतुब मीनार से बहुत पुराना हैं. सन ४०० के आसपास बना हुआ. यह स्तंभ भारतीय ज्ञान का रहस्य हैं. इस लोहस्तंभ में ९८% लोहा हैं. इतना लोहा होने का अर्थ हैं, जंग लगने की शत प्रतिशत गारंटी..! लेकिन पिछले सोलह सौ - सत्रह सौ वर्ष निरंतर धूप और पानी में रहकर भी इसमें जंग नहीं लगा हैं. विज्ञान की दृष्टि से यह एक बड़ा आश्चर्य हैं. आज इक्कीसवी सदी में, अत्याधुनिक तकनिकी होने के बाद भी ९८% लोहा जिसमे हैं, ऐसे स्तंभ को बिना कोटिंग के जंग से बचाना संभव ही नहीं हैं.
फिर इस लोहस्तंभ में क्या ऐसी विशेषता हैं की यह स्तंभ आज भी जैसे था, वैसे ही खड़ा हैं..?
आई आई टी कानपुर के ‘मटेरियल्स एंड मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग’ विभाग के प्रमुख रह चुके प्रोफेसर आर. सुब्रमणियम ने इस पर बहुत अध्ययन किया हैं. इन्टरनेट पर भी उनके इस विषय से संबंधित अनेक पेपर्स पढने के लिए उपलब्ध हैं.
प्रोफेसर सुब्रमणियम के अनुसार लोह-फॉस्फोरस संयुग्म का उपयोग इसा पूर्व ४०० वर्ष, अर्थात सम्राट अशोक के कालखंड में बहुत होता था. और उसी पध्दति से इस लोहस्तंभ का निर्माण हुआ हैं. प्रोफ़ेसर सुब्रमणियम और उनके विद्यार्थियों ने अलग अलग प्रयोग कर के यह बात साबित कर के दिखाई हैं. उनके अनुसार लोहे को जंग निरोधी बनाना, आज की तकनिकी के सामने एक बड़ी चुनौती हैं. भवन निर्माण व्यवसाय, मशीनी उद्योग, ऑटोमोबाइल उद्योग आदि में ऐसे जंग रोधक लोहे की आवश्यकता हैं. उसके लिए इपोक्सी कोटिंग, केडोडिक प्रोटेक्शन पध्दति आदि का प्रयोग किया जाता हैं. लेकिन इस प्रकार की पध्दति लोहे को पूर्णतः जंग से मुक्त नहीं कर सकती. वह तो उसे कुछ समय के लिए जंग लगने से बचा सकती हैं. अगर लोहा पूर्णतः जंग निरोधक चाहिए हो तो उस लोहे में ही ऐसी क्षमता होनी चाहिए.
आज इक्कीसवी सदी में भी इस प्रकार का जंग निरोधी लोहा निर्मित नहीं हो पाया हैं. लेकिन भारत में इसा पूर्व से इस प्रकार का लोहा निर्माण होता था, जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण यह दिल्ली का लोहस्तंभ हैं. वास्तव में यह स्तंभ दिल्ली के लिए बना ही नहीं था. चन्द्रगुप्त मौर्य ने यह स्तंभ सन ४०० के आसपास मथुरा के विष्णु मन्दिर के बाहर लगाने के लिए बनवाया था. इस स्तंभ पर पहले गरुड़ की प्रतिमा अंकित थी, इसलिए इसे ‘गरुड़ स्तंभ’ नाम से भी जाना जाता हैं. यह स्तंभ विष्णु मंदिर के लिए बनाया गया था, इसका प्रमाण हैं, इस स्तंभ पर ब्राम्ही लिपि में कुरेदा गया एक संस्कृत श्लोक..! ‘चन्द्र’ नाम के राजा की स्तुति करता हुआ यह श्लोक विष्णु मन्दिर के सामने के लोह स्तंभ का महत्व बताता हैं. चूँकि इस श्लोक में ‘चन्द्र’ नाम के राजा का उल्लेख हैं तथा चौथे शताब्दी में इसका निर्माण हुआ था, इसलिए यह माना गया की इसका निर्माण चन्द्रगुप्त मौर्य ने किया होगा. इस श्लोक की लेखन शैली गुप्त कालीन हैं. इस कारण से भी इस स्तंभ का निर्माण चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा ही हुआ होगा, इस मान्यता को बल मिलता हैं. मथुरा के निकट स्थित ‘विष्णुपद’ पहाड़ी पर बसे हुए विष्णु मंदिर के सामने रखने के लिए इस स्तंभ का निर्माण किया हैं इसकी पुष्टि उस संस्कृत श्लोक से भी होती हैं. (किन्तु अनेक इतिहासकार इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं हैं. उनके अनुसार इस स्तंभ का निर्माण इसा के पूर्व सन ९१२ में किया गया था.)
७ मीटर ऊँचाई वाला यह स्तंभ, ५० सेंटिमीटर (अर्थात लगभग पौने दो फीट) जमीन के नीचे हैं. नीचे ४१ सेंटीमीटर का व्यास हैं, जो बिलकुल ऊपर जाकर ३० सेंटीमीटर का रह जाता हैं. सन १९९७ तक इस को देखने के लिए आने वाले पर्यटक इसको पीछे से दोनो हाथ लगाकर पकड़ने का प्रयास करते थे. दोनों हाथों से अगर इसे पकड़ने में सफल हुए तो वांछित मनोकामना पूरी होती हैं, ऐसी मान्यता थी. लेकिन स्तंभ को पकड़ने के चक्कर में उसपर कुछ कुरेदना, ठोकना, नाम लिखना आदि बाते होने लगी, जो इस वैश्विक धरोहर को क्षति पहुचाने लगी. इसलिए इसकी सुरक्षा के लिए आर्चिओलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया ने इसके चारों और संरक्षक फेंसिंग लगा दिया. अब कोई भी इस स्तंभ को छू नहीं सकता.
यह एक मात्र लोहस्तंभ अब शेष हैं, ऐसा नहीं हैं. भारत में यह कला इसा के पूर्व ६०० – ७०० वर्ष से विकसित थी, इसके अनेक प्रमाण मिले हैं. सोनभद्र जिले का ‘राजा-नाल-का-टीला, मिर्जापुर जिले में मल्हार और पश्चिम बंगाल के पांडुराजार, धिबी, मंगलकोट आदि जिलों में सर्वोत्तम गुणवत्ता के लोहे के अवशेष प्राप्त हुए हैं. इससे यह साबित होता हैं की लोहे का, ऊँची गुणवत्ता का धातुकर्म भारत में ढाई-तीन हजार वर्ष पहले से मौजूद था. अत्यंत ऊँचे दर्जे का लोहा भारत में होता था, यह अनेक प्राचीन विदेशी प्रवासियों ने भी लिख रखा हैं.
अत्यंत प्राचीन काल से भारत में लोहा बनाने वाले विशिष्ट समूह / समाज हैं. उनमे से ‘आगरिया लुहार समाज’ आज भी आधुनिक यंत्र सामग्री को नकारते हुए जमीन के नीचे की खदानों से लोहे की मिट्टी निकालता हैं. इस मिट्टी से लोहे के पत्थर बीन कर उन पत्थरों पर प्रक्रिया करता हैं, और शुध्द लोहा तैयार करता हैं. लोहा बनाने की, आगरिया समाज की यह पारंपरिक पध्दति हैं.
‘आगरिया’ यह शब्द ‘आग’ इस शब्द से तैयार हुआ हैं. लोहे की भट्टी का काम याने आग का काम होता हैं. ‘आग’ में काम करने वाले इसलिए ‘आगरिया’. मध्यप्रदेश के मंडला, शहडोल, अनुपपुर और छत्तीसगढ़ के बिलासपुर और सरगुजा जिलों में यह समाज पाया जाता हैं, जो गोंड समाज का ही एक हिस्सा हैं. इस समाज की दो उपजातियां हैं - पथरिया और खुंटिया. लोहे की भट्टी तैयार करते समय ‘पत्थर’ का जो उपयोग करते हैं, उन्हें पथरियां कहा जाता हैं. और भट्टी तैयार करते समय ‘खूंटी’ का उपयोग करने वाले ‘खुंटिया’ कहलाते हैं. आज भी यह समाज लोहा तैयार करके उसके औजार और हथियार बनाने का व्यवसाय करता हैं.
भोपाल के एक दिग्दर्शक संगीत वर्मा ने आगरिया समाज पर एक वृत्तचित्र बनाया हैं. इसमें जंगल की मिट्टी से लोहे के पत्थर बीनने से लेकर लोहे के औजार बनाने तक का पूरा चित्रण किया गया हैं.
ढाई – तीन हजार वर्ष पूर्व की यह धातुशास्त्र की परंपरा इस आगरिया समाज ने संवाहक के रूप में जीवित रखी हैं. प्राचीन काल में जब इस परंपरा को राजाश्रय और लोकाश्रय था, तब धातुशास्त्र की इस कला का स्वरुप क्या रहा होगा, इस कल्पना मात्र से ही मन विस्मयचकित होता हैं..!

- प्रशांत पोळ

19.9.17

पोते को मिलेंगे 130 करोड़ : एडवोकेट आनंद अधिकारी

ऊपर वाला जब देता है तो छप्पर फाड़ के देता है इस बात का खुलासा किया ज़ी बिजनेस के एक फोनइन कार्यक्रम में ।  एक आदमी 1990 को कोमा मै चला गया उसके बेटे ने उसकी बहुत सेवा की और उसके बेटे की मौत के बाद उस आदमी के पोते ने बहुत सेवा की। अकस्मात 2017 मे कोमा वाला आदमी होश मे आ गया वह आपने पोते को होश मे आने के बाद कहता है कि मेरे पास ज्यादा कुछ तो नहीं था पर 1990 में मैंने MRF Company के 20000 Share लिए थे वो तू ले ले उसके पोते ने 2017 में Zee Business से फोन करके उसकी आज की असली  पता की तो उसके होश ही उड गए आप भी सुनिए इस वीडियो क्लिप में जो हमने
 ज़ी बिजनेस से साभार प्राप्त5 की है ।
नोट :- यह समाचार एडवोकेट आनंद अधिकारी ने एक वाट्सएप समूह में पोस्ट की है । 


16.9.17

बामियान से बुद्ध को मिटा

सोचता था आज न लिखूं..... 
पर क्यों न लिखूं.. ? 
लिखना ज़रूरी है .. वरना नींद न आएगी.. 
आज नहीं तो कल सो सकता हूँ . अदद चार घंटे तो सोना है.. फिर क्या था बैठ गया लिखने . किसी माई के लाल ने न रोका... 
मित्रो अक्सर मुझे यही सिचुएशन हैरान कर देती है . तीन बज जाते हैं कभी तो रात तीन बजे तक  ज़ारी होता है लखना... यानी देखना फिर लिखना ... क्या देखता हूँ ... देखता हूँ.. विचारों के साथ तैरतें हैं दृश्य ... फिर लिखता रात भर उन पर आओ एक मुक्त कविता देता हूँ ... 

हाँ लिखता हूँ  
कविता लिखना गुनाह नहीं है .. 
अगर तुम घायल होते  हो   !
मुझे परवाह नहीं है. 
बामियान से बुद्ध को मिटा 
रोहिंग्या के बारे में सोचते हो .. 
रो तो मैं भी रहा हूँ .. बुद्ध पर .. 
चीखते रोहिंग्या लोगों पर ..
गलत लिखा क्या .. ?
गलत लिखता नहीं 
गलत तुम समझते हो ..
क्यों डरते हो इलाहाबाद के 
प्रयागराज होने पर लिखा है न वही प्रयाग था.. 
तो होने दो प्रयाग को प्रयाग ..
क्या फर्क पड़ता है 
रोटी कहो ब्रेड कहो .
पेट तो सबका भरता है 
सच कहूं  
मैं निर्विकार ब्रह्म से मिलता हूँ 
एकांत में तब कविता उभरती है 
और जब साकार ब्रह्म से बात करता हूँ तो 
गीत अपनी अपनी धुन सहित आते हैं..
ज़ेहन में . 
मंटो आते हैं तो रेशमां भी आतीं हैं 
पता नहीं मेरे  मामा किसी 
मुस्लिम दोस्त के पाकिस्तान जाने पर क्यों 
उसे तलाशते .. थे ..!
जब उनने जाना कि दोस्त दुनिया में नहीं है 
तो उसके नाम का तर्पण करते थे ,,?
क्यों .. न खुदा के घर से कोई नोटिस मिला 
उनको न भगवान ने कोई परवाना भेजा .. 
पर हाँ 
मुझे एक एहसास मिला 
जो गुरुदेव ने कहा - "प्रेम ही संसार की नींव है"
तुम नफरत न बोना ... 
नफरत से न सम्प्रदाय बचेंगे न धर्म 
बचेगी कुंठा ... और होंगे युद्ध .. 
बच्चे जो भगवान हैं.. 
बच्चे जो फ़रिश्ते हैं .. 
उनके जिस्म मिलेंगे ... सडकों पर 
कविता लिखना गुनाह नहीं है .. 
अगर तुम घायल होते  हो   !
मुझे परवाह नहीं है... 



  
   

सजल उन्नति और शाम्भवी ने रिकार्ड बनाए


जबलपुर में गायत्री परिवार 2015 से वाइस ऑफ प्रज्ञा संगीत स्पर्धाओं का वार्षिक आयोजन कर रही है । विगत वर्ष 2016 में मास्टर नयन सोनी मास्टर जैन और इशिता ने पुरस्कार प्राप्त किये थे । इस बार भी मुझे शुक्रवार 15 सितंबर 2017 सुखद लगा जब ग्रुप A शाम्भवी पंड्या विशेष पुरस्कार मोमेंटो प्रमाण पत्र एवम म्यूज़िक सिस्टम । ग्रुप A प्रथम पुरस्कार सजल सोनी :- मोमेंटो प्रमाण पत्र एवम लैपटॉप । ग्रुप B तृतीय पुरस्कार  :- उन्नति तिवारी , मोमेंटो प्रमाण पत्र एवम एंड्रायड फोन । सब कुछ के अलावा जनसमूह का प्यार । बधाई बच्चों आभार
@⁨Dr Shipra Sullere⁩ ( Sangeet Guru )
Congratulations #Ishita_Vishvkarma D/o #Anjani_Vishvakarma  #Smt_Tejal   for superb guest  performance in #Voice_Of_Pragya Tejal Vishwakarma Vishwakarma

14.9.17

हलीमा बिंते याकूब भारतीय मूल की राष्ट्रपति

सिंगापुर संसद स्पीकर रहीं  हलीमा बिंते याकूब का जन्म 23 अगस्त 1954 में हुआ सिंगापुर की पहली महिला राष्ट्रपति बन गई हैं। 13 सितम्बर 2017 को उनको निर्वाचन अधिकारी ने राष्ट्रपति घोषित कर दिया. अगर आप इस बात से न चौके हों तो अब जो आपको ज्ञात होगा कि उनके डी एन ए में भारतीयता मौजूद है अवश्य चौंक सकते हैं . वे एक भारतीय मुस्लिम की बेटी हैं जो चौकीदारी का काम किया करते थे, जब उनके पिता  का नि:धन हुआ तो वे केवल 8 वर्ष की थीं.
सिंगापुर एक अजब देश इस लिए है क्योंकि उसका विस्तार भारत की मायानगरी मुंबई से कम है . 16 सितंबर 1963 को मलायासिंगापुरसबा एवं सरवाक का औपचारिक रूप से विलय कर दिया गया और मलेशिया का गठन हुआ किन्तु दो बरस बाद ही यानी 9 अगस्त 1965 को मलेशिया से सिंगापुर अलग एवं एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया. कारण यह था कि अंग्रेज़ सरकार  साम्यवादी व्यवस्था के पूर्णत: खिलाफ थी. तथा वे सिंगापुर में उग्र साम्यवाद के विस्तार के खिलाफ थे.   
सिंगापुर में निर्वाचित राष्ट्रपति के कार्यकाल पूरा होने पर उनको पद मुक्त होना पड़ता है . परन्तु राष्ट्रपति का पद किसी भी स्थिति में रिक्त कभी नहीं होता . ऐसी स्थिति में वहां भारतीय मूल के श्री जे. वाई. पिल्लै राष्ट्रपति चुने जाते हैं . ऐसा अब तक 60 बार हो चुका है.
भारत में नौकरियों में आरक्षण होता है पर सिंगापुर में राष्ट्रपति का पद आरक्षित होता है. मोहतरमा हलीमा ने निर्वाचन पत्र लेते हुए कहा कि वे समूचे सिंगापुर की राष्ट्रपति हैं न कि अल्पसंख्यक आरक्षित समुदाय की.  
हलीमा सिंगापुर की एक मलय राजनीतिज्ञ हैं तथा इनका नाता  सिंगापुर की सत्तारूढ़ पीपुल्स एक्शन पार्टी की सदस्य हैं. इनको उन्हें 14 जनवरी, 2013 को सिंगापुर की संसद का अध्यक्ष चुना गया। सिंगापुर में वे प्रथम महिला संसद प्रधान   थीं .  हलीमा निरंतर 2000 के बाद से सक्रीय राजनीतिज्ञ हैं.  


11.9.17

बच्चों के हितों के संरक्षण

 सादर वन्दे मातरम
विषय :- बच्चों के हितों के संरक्षण बाबत
 मान्यवर 
               7 वर्षीय प्रद्युम्न ठाकुर की निर्मम हत्या के संबंध में जो न्यायिक जांच की कार्रवाई हो रही है वो विधि सम्मत ही होगी ऐसा विश्वास सभी भारतवासी करते हैं । 
      
मान्यवर में एक रचनाधर्मी हूँ । जो संवेदनशीलओं से अपेक्षाकृत अधिक भरा हो सकता है ! इससे आप निश्चित रूप से सहमत अवश्य होंगें । 
मान्यवर जब भी किसी मासूम के साथ कोई घटना होती है हर व्यक्ति विचलित हो जाता है । यही स्थिति घटना के बाद मेरी भी थी.  अबसे लगभग  30 घंटे पहले  इस द्रवित करने वाली खबर गहरा असर किया है ।  सोने की कोशिशें काम करने लिखने की कोशिशें निरंतर बेकार रहीं । एक मायूस और स्तब्ध स्थिति में हूँ ।  
        
रेयान इंटरनेशनल  शिक्षण संस्था  में घटित  इस अमानवीय घटना के लिए ज़िम्मेदारी तय होना एक प्रक्रिया एवम व्यवस्था के तहत ही होगी इस बात का  सबको ज्ञान है । 
      
तथापि मेरा  "बच्चों के हितों के संरक्षण के लिए* कुछ सुझाव हैं 
1 :- 
किसी भी शिक्षण संस्थान को नर्सरी से लेकर हायर सेकंडरी स्कूल की अनुमति न दी जावे । 
2 :- 
नर्सरी स्कूलों/ प्रायमरी की स्थापना के लिए ठीक उसी तरह से अमले को निजी एवम शासकीय संस्थानों में नियुक्तियां दी जावें जिस प्रकार  रेल विभाग के कुछ विशेष पदों के लिए सायको-टेस्ट लिया जाता है । 
3 :- 
नर्सरी के लिए  विशेष तरह के प्रोफेशनल कोर्स समर्पित   महिलाओं को  नर्सरी टीचिंग स्टाफ बनाने के पूर्व देना अनिवार्य है। नर्सरी स्कूलों में बिना मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ की सहमति के शिक्षकों की तैनाती न हो । 
       
शैक्षिकेत्तर स्टाफ को भी इसी प्रकार के प्रशिक्षण एवम  परीक्षण से गुजरना होगा । 
                         
              *बाल सुरक्षा के लिए उपाय* 

4 :- सी सी टी वी मॉनिटरिंग :- हर संस्थान में जहां बच्चे पढ़ रहे हों अथवा आवासीय सुविधा सहित किसी भी कारण से निवासरत हों की सी सी टी वी मॉनिटरिंग सतत रूप से संभव है । हर संस्थान में संस्थान के खुलने से बंद होने तक की हर एक स्थान पर  खेल का मैदान प्रवेश द्वार अध्ययन कक्ष (क्लासरूम) कॉरिडोर इंडोर गेम्स रूमसिकरूमटॉयलेट / बाथरूम के प्रवेश द्वार  आदि  में लगाएं जा सकतें हैं । आवासीय संस्थानों के मामलों में 24x7 कालखंड के लिए ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिये । 
       
कंट्रोल रूम :-  यह एक ऐसी जगह हो जो प्राचार्य की निगरानी के लिए अनुकूलित हो तथा एक एक टैक्नीशियन लगातार एक से दो घण्टे निगरानी कर । आवासीय संस्थाओं के मामलों में 4पाली में कार्य संभव है ।
                         
*अतिरिक्त्त व्यवस्था*
        
      वेबकास्टिंग एक ऐसी प्रणाली है जिससे कई स्तर से सी सी टी वी के ज़रिए मॉनिटरिंग संभव है । सरकार इस प्रणाली को NIC के माध्यम से वेबकास्टिंग करा सकतीं है । जिसकी लिंक मॉनिटरिंग  पुलिस कन्ट्रोल रूम में यातायात व्यवस्था की मॉनिटरिंग की तरह की जा सकती है । 
          
सी सी टी वी मॉनिटरिंग योजना के लिए हर संस्थान का सक्षम होना आवश्यक होगा । केवल उन्हीं NGO's को नर्सरी शिक्षा की अनुमति मिले जो ऐसा कर सकतीं हैं । 
5 :-  
ग्रामीण क्षेत्रों के मामलों में आंगनबाड़ी केंद्रों का सार्वजनिक स्थानों जैसे पंचायत द्वारा निर्मित सामुदायिक भवन स्कूलों भवनों के साथ आंगनबाड़ी केंद्रों का संचालन हो सकता है । जहां जनसामान्य की सहजरूप से सतत निगरानी होती है । मध्यप्रदेश में ऐसे प्रयोग सरकार के सांझा चूल्हा कार्यक्रम के ज़रिए मिड डे मील की आपूर्ति के कारण अधिकांश गाँवों में हुआ भी । 
6 :- बच्चों के लिए जीपीएस मानिटरिंग बैंड और साउंड रिकार्डर :- ऐसी जीपीएस मानिटरिंग डिवाइस के विकास के लिए काम करना होगा जो साधारण व्यक्ति की क्रय सीमा के भीतर हो . जिनका लिंकिंग  अभिभावकों के सेलफोन पर संभव हो सकती है. जिओ द्वारा जिस सस्ती प्रणाली से डाटा उपलब्ध कराया जा रहा है उसी नेटवर्क प्रणाली से जीपीएस डिवाइस का पोजीशनिग डाटा एवं साउंड डाटा अभिभावकों / स्कूल के डाटा बैंक जो सेलफोन हो में अंतरित हो सकते हैं .     
                    
तकनीकी विकास के दौर में उपरोक्त व्यवस्थाएं असंभव कदापि नहीं हैं ।
            
              इस व्यवस्था को नर्सरी/प्रायमरी स्कूलों में लागू कराना प्रस्तावित है

7.9.17

स्व शरद बिल्लोरे को समर्पित : कविता


💐💐💐💐💐💐💐
*इस कविता की सृजन प्रक्रिया बेहद जटिल रही इसे मुक्कमल करना मेरे बस में न था वो बिछुड़ा हुआ आया अश्कों में घुला और मैंने भी इस बार टपकने न दिया और तब कहीं जाकर पूरा हुआ ये शोकगीत*
💐💐💐💐💐💐💐💐 
वो था तो न था
नहीं है तो तैर कर 
आ जाता है आँखों में 
टप्प से टपक जाता है 
आँसुओं के साथ 
फिर गुम हो जाता है वाष्पित होकर 
विराट में 
आता ज़रूर है 
गाहे बगाहे 
भाई था न 
बड़ा था 
आएगा क्यों नहीं 
सुनो तुम सब रोना 
ये एक कायिक सत्य है 
सबको उसे याद रखना है 
इन यादों में -
इक हूक सी उठती है आंखे डबडबातीं हैं 
भर जातीं हैं अश्कों से इन्हीं में घुला होता है वो
टपकने मत देना ... 
वो अश्रुओं के साथ हवा में 
खो जाता है .... !!
                                                  * गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

5.9.17

आतंकवाद के खिलाफ नवम ब्रिक्स सम्मेलन का घोषणापत्र


“हम क्षेत्र में तालिबान, आईएसआईएस, अल कायदा और उनके साथी संगठनों पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट, इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान, हक्कानी नेटवर्क, लश्करे तैयबा और जैश ए मोहम्मद, तहरीके तालिबान पाकिस्तान, हिज़्ब उत्तहरीर आदि की हिंसा के कारण नाज़ुक सुरक्षा स्थिति से चिंतित हैं।

जो  तोड़ी  चुप्पी तो सलवटों ने,  किसी  के  माथे पे घर बनाया

किसी ने अपना छिपाया चेहरा ,  किसी का रुतबा है तमतमाया !
          ब्रिक्स सम्मलेन  में आतंकवाद के खिलाफ आए घोषणापत्र के आम होते ही आतंकवाद लिए शैल्टर बने चीन, मुख्य पालनहार  बने पाकिस्तान और खुद  टेरेरिस्ट ग्रुपों की स्थिति इस शेर में अभिव्यक्त है. लगातार आतंकवाद और आतंकियों को यू एन में रक्षाकवच पहनाकर सुरक्षित निकालने वाले चीन की जिस तरह से कूटनीतिक पराजय हुई है उससे साबित हुआ है कि - हिंसा के खिलाफ सारा विश्व एक धुन में शान्तिगीत गा रहा है . 
          सिक्के के दूसरे भाग को देखें तो  चीन अब मदमत्त सांड को अपने आंगन में बांधने से कहीं न कहीं परहेज़ कर रहा है. वज़ह साफ़ है कि उसे अपनी उत्पादित सामग्रियों को बेचना है. एक चतुर व्यापारी तभी सफल होता है जब वह  ग्राहक की नज़र में कर्कश क्रूर न हो ईमानदार हो. लोग दूकान को भी साफ सुथरी देखना चाहतें हैं . चीन रूपी दूकान के सामने "आतंकवाद के संरक्षण का सांड" अधिक समय तक बंधे रहने में चीन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बार बार शर्मिन्दगी उठानी पड़ रही है. 
        चीन को इस बात का इल्म भी अच्छी तरह है कि - आतंकवाद का संपोषण का परिणाम 9/11 से अधिक भी हो सकता है. भारत में "भस्मासुर" को बच्चा बच्चा जानता है विश्व ने भले उसे 9/11 को देखा हो . 
        भारतीय विश्वनीति में जिस तेज़ी से बदलाव आये हैं उसे समझाने की अब ज़रूरत महसूस नहीं हो रही . 
ब्राजील रूस इंडिया चीन दक्षिण अफ्रीका के संगठन ब्रिक्स में भारत ब्राजील रूस और दक्षिण आफ्रीका के बीच अत्यंत समझदारी भरे सम्बन्ध हैं जबकि चीन एक ऐसा देश है जिसके वैश्विक सम्बन्ध अगर बेहतर हैं भी तो सिन्क्रोनाइज़्ड शायद ही हों. भारत के साथ तो सम्बन्ध सदा असामान्य ही रहे हैं.
दक्षिण एशिया में नवम  ब्रिक्स सम्मेलन के पूर्व डोकलाम पर भारत के साथ चीन का तनावयुक्त वातावरण चीनी विश्वनीति का दुष्परिणाम ही रहा है. जिस तेज़ी से चीन के सरकारी मीडिया के ज़रिये चीन  की चीखें सुनाई दे रहीं थीं उसका उत्तर हमारे देश के निजी मीडिया (टेक्स्ट एवं डिजिटल मीडिया ) ने देकर ऐसा वातावरण बनाया कि चीन ने  खुदको अपनी सीमाओं में सीमित करने को ही उचित माना . हमारी सरकार ने अधिकृत रूप से कम ही कहा और जब भी कहा तो ये सन्देश पूरे विश्व में यही गया कि एशिया में सबसे शरारती चीन है . यही कूटनीति थी कि विश्व के अधिकाँश देश भारत के पक्षधर हुए और केवल वह अपने  पालित दास पाक सनकी पडौसी उत्तर-कोरिया के साथ नज़र आया. स्थिति सामान्य होते ही ब्रिक्स सम्मेलन में श्री नरेन्द्र मोदी जी का सभी सदस्य राष्ट्राध्यक्षों को आतंकवाद की मुखालफत के लिए तैयार कर  भारत ने  कूटनीतिक सफलता का नया कीर्तीमान स्थापित कर लिया जो इतिहास में अब दर्ज है
 चीन पर भरोसा कितना किया जावे :- इस तरह के सवाल स्वाभाविक हैं अभी तो चीन पर भरोसा 100% करना ज़ल्दबाजी ही है . विश्व चाहता है कि चीन उत्तर-कोरिया की सनक को कम करे यदि जिंग-पिंग साहब  यह कर सके तो विश्व में उनका सम्मान बढ़ सकता हैं . 
क्या पाकिस्तान में पल रहे आतंकवादी संगठन प्रभावित होंगे :- ये दूसरा अहम सवाल है अगर आप पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को देखें तो यह देश हमसे 20 वर्ष पीछे है . यही  सवाल बरसों से उसकी आवाम कर  रही है कि- रक्षा बज़ट के सापेक्ष विकास के लिए पाक कब संवेदित होगा ? अगर पाकिस्तान चाहे तो अपनी आवाम के मुस्तकबिल को खुद सवाँरे अन्यथा आने वाले 20 वर्षों में उसकी जनता विश्व की सर्वाधिक दुखी जनता होगी. विकल्प पाक के पास थाल में सजा उसकी आर्मी-डोमिनेटेड सरकार के सामने है. 
तीसरा और अंतिम सवाल यह भी इस सम्मेलन के बाद सामने आता है कि क्या - ब्रिक्स सफल होगा ? अगर आतंक के विरोध में सब एक सुर में हैं तो ब्रिक्स देशों के विकास की ऊँचाइयों को कोई रोक नहीं सकता . इन राष्ट्रों में आपसी व्यावसायिक  समन्वयन की प्रक्रिया अन्य कोई विषम  परिस्थिति पेश न आए तो तेज़ होना तय है . यद्यपि पूरे संयुक्त घोषणा पत्र के अध्ययन के उपरांत कुछ कहना बेहतर होगा . 
     
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  • सम्मेलन :- ब्रिक्स शिखर बैठक
  • आयोजन स्थल : चीन के फुजियान प्रांत में तटीय शहर शियामेन 
  • आवृत्ति :-  नवम 
  •  सम्मिलित सदस्य देश एवं उनके राष्ट्राध्यक्ष  :   मेज़बान चीन / राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत /  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी , रूस / राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन, दक्षिण अफ्रीका/ राष्ट्रपति जैकब जूमा और ब्राज़ील / राष्ट्रपति मिशेल तेमेर 
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2.9.17

कुछ ऊंट ऊंचा कुछ पूंछ ऊंची ऊंट की

जीभ-पलट गीत गाने में जितने कठिन लिखने में लगे उतने  पढ़ने में नहीं  . पर एक बात तयशुदा है कि जब आप जीभ के लिए कठिनाई पैदा करने वाला ये गीत गाएंगें तो न तो आप न ही कोई जो सुन रहा होगा हँसे बिना रह न सकेगा ..
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             कुछ ऊंट ऊंचा कुछ पूंछ ऊंची ऊंट की
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ऊबड़-खाबड़ रास्ता , बूढ़ा  बक़रा  हांफता  !
चीकू की कापी ले बन्दर बैठा- डाल पे जांचता !
मम्मी पापा बाहर निकले, रुत आई तब छूट की 
कुछ ऊंट ऊंचा कुछ पूंछ ऊंची ऊंट की
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एक कहानी गोधा रानी मल्ला चोर खींचे डोर
पांव देख के रोए मोरनी , बादल देखे नाचे मोर
नाच मयूरी ले लाऊंगा.. सोलह जोड़ी बूट की
कुछ ऊंट ऊंचा कुछ पूंछ ऊंची ऊंट की
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सरपट गांव का रास्ता, बकरा कैसे खांसता ?
बन्दर का टूटा था चश्मा कैसे कापी जांचता ?
गोधा रानी कहां की रानी मल्ला चोर कैसा चोर
बनी दुलहनियां देख मोरनी, मस्ती में फ़िर नाचे मोर ..
पहले-पहल कही मेरी...... सारी बातें झूठ थीं
कुछ ऊंट ऊंचा कुछ पूंछ ऊंची ऊंट की
गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”

1.9.17

पाकिस्तान में सकारात्मक विचारक भी हैं


हमसाये मुल्क पाकिस्तान  में भारत की तरक्की से सबक लेने की सलाह देने वालों की कमी नहीं हैं .  भारत की तरक्की की वज़ह के बारे में पाकिस्तानी विचारकों की सोच बेहद सकारात्मक है कुछ विद्वान् भारतीय सनातनियों के योग्यता के इतने कायल हैं कि वे मानतें हैं कि अगर भारत ने आज जो मुकाम हासिल किया है वो भारतीयों को विरासत में हासिल पठन-पाठन की अभिरुची से ही  हासिल हैं . वे भारतीय शिक्षा  प्रणाली को मुग़ल काल से ही बेहतर मानते हैं . क्लासरा और इनकी तरह के पाकिस्तानी विचारक एवं विश्लेषक जब तुलनात्मक विश्लेष्ण करतें हैं तो उनका नज़रिया पाकिस्तानी सरकार को विकास के एजेंडे को प्राथमिकता  देने की सलाह  होता  है.
रऊफ क्लासरा  एक ऐसे ही विश्लेषक पत्रकार हैं जो अपने एपिसोडस में बड़े अदब से न केवल हाकिम-ओ-हुक्मरानों को समझातें है बल्कि पाकिस्तानी आवाम को भी बाकायदा नसीहतें देना नहीं भूलते .
वास्तव में अब वैश्विक समग्र विकास के दौर में हर  देश को धर्म पंथ विचारधारा क्षेत्रवाद  आदि से इतर केवल मानवतावादी विश्व की स्थापना के लिए काम करना ही होगा . जहां से जो बेहतर मिले उसे स्वीकारने में कोई संकोच किसी को भी न हो . पर पाक की आर्मी डोमिनेटेड  सिविल सरकार ने भारत से संपर्क सम्बन्ध न रखने के निर्णय को  पाकिस्तानी मीडिया ने सार्क सैटेलाईट में शामिल न होना गलत माना है . तो हामिद बशनी भी अपनी सरकार को समझाते नज़र आतें हैं . अब हसन निसार ने तो भारत की तरक्की का सटीक विश्लेष्ण किया.  हास्य व्यंग्य में अपनी बात कहने वाले एक विश्लेषक शो में जुनैद सलीम ने खुलासा किया जो दवाई हिन्दुस्तान मे 2 रूपए मे बिकती है,वोपाकिस्तान मे 1000 रूपए मे बिक रही है तो व्यंग्यात्मक शैली में अज़ीज़ ने कहा कि पाकिस्तान में  बीमार दवाओं की बढ़ी  कीमतों  के डर से ठीक हो जाता है. 
 क्लासरा या तारेक फतह के बारे में जब भी धैर्य से सोचें तो आप पाएंगें कि वे और उनके जैसे कई विचारक मानवतावाद को प्राथमिकता के क्रम में सर्वोपरि रखतें हैं . अगर आप वैश्वीकरण के हिमायती हैं तो आप अवश्य वैश्वीकरण में मानवता के समावेशन के महत्व को स्वीकारेंगे . 


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