13.1.17

फौजी का वायरल वीडियो बनाम कार्मिक प्रबंधन में सुधार की ज़रुरत

   
वायरल  वीडियो देख दु:ख हुआ कि न तो वीडियो वायरल होना था ही वीडियो पर मीडिया में बहस होनी थी पर अब संभव नहीं क्योंकि पाकिस्तान के टीवी चैनल्स पर इस वीडियो पर आधारित नकारात्मक कार्यक्रम पेश किये जा चुके हैं.
जो हुआ सो हुआ पर अब सभी को व्यवस्था में अव्यवस्था पर कड़ी निगाह रखने की ज़रूरत है. ये सर्वदा सत्य है कि प्रशासनिक व्यवस्था में डेमोक्रेटिक सिस्टम का होना ज़रूरी नहीं है वरना अनुशासन हीनता की स्थिति में सदैव इजाफा होगा जो बेहद दुखद और घृणास्पद स्थितियों को जन्म देगा.
जवान का वीडियो वायरल करना उसी अनुशासन हीनता का एक परिणाम है परन्तु इस अनुशासन हीनता की वज़ह  “अधिकारियों में प्रबंधन क्षता का अभावकेवल वो जवान दोषी है यह अर्थ सत्य है दोषी अधिकारी भी हैं . जो प्रबंधकीय-क्षमता के अल्फाबेट से गोया अपरिचित है.
केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों में मशीनरी के साथ अपनाए जा रहे व्यवहारों में प्रशासन का आधिक्य है जबकि उसमें प्रबंधन की ज़रूरत है.
कर्मियों के प्रति सदभावना विहीन व्यवहारों के किस्से दबी जुबान में आते रहते हैं . कई बार तो ऐसे मुद्दे वर्ग संघर्ष को भी जन्म देते हैं. इन स्थितियों को मैंने अपनी  सर्किट हाउस नामक दीर्घ कहानी में दर्शाया है. कथानक में कई चरित्र ऐसे हैं जो उच्च प्रबंधकीय सदभाव से उपकृत्य हैं तो कई ऐसे भी हैं जो बेहद उपेक्षित एवं शिकार होते हैं- कार्मिक प्रबंधन में कई खामियों के चलते हीन भावना उपजतीं है. और व्यवस्था में सिन्कोनाइज़ेश्न समाप्त होने लगता है फिर वो भोजन का मुद्दा बन के वायरल हो या आपसी संवाद के ज़रिये वायरल हो. इस प्रकार की गैर-बराबरी को महसूस किया जा सकता.
जहां तक सुरक्षा संस्थानों का मुद्दा है सैनिकों को इतना उत्तेजित होना किसी भी तरह से अमान्य है.. अतएव व्यवस्था में आतंरिक सुधार की नितांत ज़रूरत है. अब तो प्रशासनिक और कार्मिक प्रबंधन के सुधार के लिए कदम तेज़ी से उठाने ज़रूरी हैं.  
देश के एक महत्वपूर्ण  विभाग के कुछ अधिकारियों ने तो एक नए तरह के वर्ग संघर्ष के चलते  “प्रमोटी अधिकारियोंका संघ भी बना रखा है जहां वे अपना दर्द बाँट लेते हैं ..... किन्तु भोजन जैसे मुद्दे को लेकर वायरल हुआ ये वीडियो बेहद नि:शब्द करने वाला है. अगर मुद्दा सेना का न होता तो इतनी पीढा न होती पर सेना जिसे सामान्य व्यक्ति पैरा सैनिक बल सेना ही मानता है तो देश के कार्मिक विभाग को उसे सामान्य सैनिक मानने में परेशानी नहीं होनी चाहिए..
हम जन सामान्य के रूप में पुलिस के प्रति भी  सदभावी विचारों के हिमायती हैं क्योंकि वे सामान्य जीवन त्याग विपरीत परिस्थितियों में काम करते हैं.  किन्तु कुछ सोच ऐसी नहीं हैं..  देश जो युगों युग से सिगमेंट में जीने का आदी है उसमें बदलाव लाने के लिए बड़े कदंम उठाने ही होंगे सरकारी और सामाजिक दौनों तौर पर 
सच माने या न मानें मैं भी इस व्यवस्था जिसमें द्वेष पूर्णता मौजूद है का शिकार होता रहा हूँ.. पर संस्कारवश नियंत्रित हूँ .......
       

12.1.17

लूट लाए थे मुफलिस दुकानें आज कपड़ों की – बाँट पाए न आपस में, सभी के सब कफ़न निकले !!


गिरह खोली गिने हमने, हमारे गम भी कम निकले
नमी क्यों आपकी आँखों में मेरे गम,  तो सनम निकले .
   
रोज़ बातें अंधेरों की,  फसानों के बड़े किस्से -
खौफ़ खाके जो तुम निकले, उसी दहशत में हम निकले .

किसी शफ्फाक गुंचे पे, यकीं बेहद नहीं करना
सिपाही कह रहे थे – “गुंचों में कई बार बम निकले ..!!”

लूट लाए थे मुफलिस, दुकानें आज कपड़ों की  
बाँट पाए न आपस में, सभी के सब कफ़न निकले !!

ख्वाहिशें पाल मत यारां , कोई  ग़ालिब नहीं है तू 
हज़ारों ख्वाहिशें हों और,  हर ख्वाहिश पे दम निकले ?
                         *गिरीश बिल्लोरे मुकुल”*







   

9.1.17

*संगीत कक्ष से उपजी एक कविता*


वहीं पे मैं जहां भी हारता हूँ
लिखा करता हूँ
किसी दीवार पे
मैं जीत लूंगा ...
जीतना मेरी ज़रूरत है..
ज़रूरत है ज़रुरत है..
मुझे ये ओहदे सितारे कुर्सियां
और दर्ज़ा कुछ नहीं भाता !
इन्हें जीत लेना –
सच मानिए मुझको नहीं आता..
कोई बच्चा जिससे मेरा
नहीं है कोई भी नाता ...
वो जब पर्दा हटाके मुस्कुराके . कहता है
. गुड मार्निग सर
तभी मुझको जीत का एहसास होता है..
चले आओ मेरे दफ्तर ये मंजर
हर रोज़ मेरे पास होता है.
देखकर मुझको बेहतर सुनाने की गरज से  
सिखाए  पाठ टीचर के बच्चे भूल जाते हैं ...
तभी हम उनमें अपनेपन का मीठा स्वाद पाते हैं
टीचर भी मुस्कुरातीं हैं ... बच्चे समझ जाते हैं..
सच कहो क्या जीत ऐसी आप पाते हैं..?


                                   *गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

7.1.17

बॉबी नाटक : छोटे परिवारों की बड़ी समस्या का सजीव चित्रण


बॉबी टीम का तआरुफ़ कराते आर्टिस्ट दलविंदर भाई नाट्यलोक के अध्यक्ष 
                 
मशहूर नाटक लेखक स्व. विजय तेंदुलकर द्वारा लिखित कथानक पर आधारित बाल-नाटक "बॉबी" का निर्माण  संभागीय बालभवन जबलपुर द्वारा श्री संजय गर्ग के निर्देशन में तैयार कराया गया है. जिसकी दो प्रस्तुतियां भोपाल में दिसंबर माह में की जा चुकीं है. 
जहाँपनाह की जहाँपनाह बॉबी
सुभद्रा कुमारी चौहान जी के गीतों से भरा
पूर्वरंग 
                  बॉबी  नौकरी पेशा माता पिता की इकलौती बेटी है जिसे स्कूल से लौटकर आम बच्चों की तरह माँ की घर से अनुपस्थिति बेहद कष्ट पहुंचाने वाली महसूस होती है. उसे टीवी खेल पढने लिखने से अरुचि हो जाती है. स्कूली किताबों के पात्र शिवाजी, अकबर बीरबल, आदि से  उसे  घृणा होती है.   इतिहास के के इन पात्रों की कालावधि याद करना उसे बेहद उबाऊ कार्य लगता है. साथ ही बाल सुलभ रुचिकर पात्र मिकी माउस, परियां गौरैया से उसे आम बच्चों की तरह स्नेह होता है. और वह एक फैंटेसी में विचरण करती है.  शिवाजी, अकबर बीरबल,  से वह संवाद करती हुई वह उनको वर्त्तमान परिस्थियों की शिक्षा देती है तो परियों गौरैया मिकी आदि के साथ खेलती है. अपनी पीढा शेयर करती है... कि उसे माँ और पिता के बिना एकाकी पन कितना पीढ़ा दायक लगता है.
फुदक चिरैया के साथ बॉबी

              बॉबी एक ऐसा चरित्र है जो हर उस परिवार का हिस्सा होता है जो माइक्रो परिवार हैं. जिसके माता पिता जॉब करतें हैं।  स्कूल से आने से लेकर शाम को माँ और पिता के लौटने तक वास्तविकता और स्वप्नलोक तक विचरण करने वाली बॉबी अपनी फैंटेसी  के बीच झूलती है. इस अंतर्द्वंद को बहुतेरे बच्चे झेलते हैं परंतु माता-पिता को इस स्थिति से बहुधा अनभिज्ञ रहते है।  बॉबी यानी श्रेया खंडेलवाल यह सिखाने समझाने में सफल रहीं।
             महानगरों की तरह   अब  मध्य-स्तरीय शहरों तक  संयुक्त परिवार के बाद तेज़ी से परिवारों का छोटा आकार होने  लगे हैं  तथा  उससे बालमन पर पड़ने वाले प्रभाव को प्रभावी तरीके से इस नाटक में उकेरा गया है.
मिकी चूहे के साथ नृत्य करती बॉबी

                           बालरंग निर्देशकों द्वारा बच्चों के ज़रिये ऐसे कथानक के मंचन का जोखिम  बहुधा काम ही उठाया होगा लेकिन संस्कारधानी के इस नाटक को देखकर अधिकांश दर्शकों की पलकें भीगी नज़र आईं थी   संस्कारधानी में बालरंग-कर्म की दिशा में कार्य करने वाले नाट्य-निर्देशक संजय गर्ग  एवम बालभवन जबलपुर के बालकलाकारों की कठिन तपस्या ही मानेंगे कि नाटक दर्शकों के मन को छूने की ताकत रख सका. 
मंचन की सफलता से भावविभोर बेटियाँ  

                 मुख्य पात्र बॉबी के चरित्र को जीवंत बनाने में बालअभिनेत्री श्रेया खंडेलवाल पूरे नाटक में गहरा प्रभाव छोड़तीं है. जबकि अकबर -प्रगीत शर्मा , बीरबल हर्ष सौंधिया, मिकी समृद्धि असाटी , शिवाजी -सागर सोनी, के अलावा पलक गुप्ता (गौरैया)  ने अपनी भूमिकाओं में प्रोफेशनल होने का आभास करा ही दिया।   इसके अलावा मानसी सोनी, मिनी दयाल, परियां- वैशाली बरसैंया, शैफाली सुहानी, आकृति वैश्य, आस्था अग्रहरी , रिद्धि शुक्ला, दीपाली ठाकुर, का अभिनय भी प्रभावी बन पड़ा था. 
बॉबी की नसीहत  फैंटेसी में बनी मित्र मंडली को  
                  नाटक की प्रकाश, ध्वनि एवम संगीत की ज़िम्मेदारी सुश्री शिप्रा सुल्लेरे सहित कु. मनीषा तिवारी , कुमारी महिमा गुप्ता,  के ज़िम्मे थी जबकि बाल गायक कलाकार - उन्नति तिवारी, श्रेया ठाकुर, सजल सोनी, राजवर्धन सिंह कु. रंजना निषाद, साक्षी गुप्ता, आदर्श अग्रवाल, परिक्षा राजपूत के गाये गीतों से नाटक बेहद असरदार बन गया था. 
अपने माता पिता को पाकर आया धीरज बॉबी को

      संभागीय बालभवन के संचालक ने बताया कि - "बच्चों से ऐसे विषय पर मंचन कराना बेहद कठिन काम है किन्तु निर्देशक  श्री संजय गर्ग इस नाटक के ज़रिए उन चुनिंदा लोगों में शुमार हो गए हैं जिनको भारत में ख्याति प्राप्त हुई है. भोपाल में समीक्षकों ने बॉबी नाटक को उत्कृष्ट बता कर पुनः  मंचन कराया था."

2.1.17

BRAND NEW YEAR

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Nights are Dark,
but Days are Light,
Wish your Life will always be Bright.
So don’t get Fear Coz,
God Gift us a “BRAND NEW YEAR”
*HAPPY NEW YEAR 2017* 
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31.12.16

समय चक्र हूँ आऊंगा, लौट तुम्हारे गाँव ।।

न मैं बीता हूँ कभी , नया बरस क्या मीत ?
बँटवारा तुमने किया, यही तुम्हारी रीत ।।
पंख नहीं मेरे कोई, कहाँ हैं  मेरे पाँव -
समय चक्र हूँ आऊंगा, लौट तुम्हारे गाँव ।।
एक सिंहासन के लिए, मत कर गहन प्रयास
सहज राज मिल जाएगा, दिल में रहे मिठास
जिनके मन कुंठा भरी, जले भरम की आग
ऐसे सहचर त्यागिये - न रखिये अनुराग ।।
नए वर्ष की मंगल कामनाएं

25.12.16

मुझे रियलस्टिक फ़िल्में ही पसंद हैं जैसे ... दंगल,

यूँ तो मुझे फ़िल्में देखना सबसे कष्टदाई काम लगता है. क्योंकि बहुधा फ़िल्में रियलिटी से दूर फैंटेसी में ले जातीं हैं. परन्तु हालिया रिलीज़ फिल्म दंगल की आन लाइन टिकट बुक कराने मेरी बेटी ने एमस्टर्डम से पूछा तो सबसे पहले मैंने उसके कथानक की जानकारी ली . फिर कथानक सुनकर कर  यकायक मुझे कामनवेल्थ गेम्स की महिला कुश्ती में भारत की  असाधारण विजय का समाचार धुंधला सा याद आया. किसी अखबार में विजेता गीता के पिता के जूनून की कहानी याद आई पर बस इतनी की एक पिता ने अपनी बेटियों को लड़कों के साथ भी कुश्ती के मुकाबले में खड़ा किया .जो सामाजिक परम्पराओं को तोड़ने की पहल थी. हिन्दी पट्टी वाले राज्यों में  हरियाणा जैसे प्रांत की स्थिति बेटियों के मामले लगभग सामान ही है. और वहां से आयकानिक रास्ते निकल पड़ें तो तय है बदलाव करीब है. आज जब  की फिल्म दंगल देखी तो लगा लम्बी लड़ाई लड़नी होती है बदलाव के लिए . 
यहाँ पाठकों से पूरी शिद्दत से कहना चाहता हूँ कि आप फिल्म  दंगल अवश्य देखिये. आपकी सोच अवश्य बदलेगी. और अगर  #Geeta_Phogat (गीता फोगट)   की बायोपिक Dangal को देखकर भी नज़रिया न बदला तो कुछ भी न बदल पाएगा.. सभी को  अपना विज़न बदलना ही होगा. खुद के लिए जैसा भी जितना भी सोचो कोई हर्ज़ नहीं पर किसी को कमजोर साबित करने की कोशिशों में मत लगे रहा करो .........                          Amir Khan का विज़न हमेशा व्यापक रहा है.. बहुधा लोग समानता के हिमायती नहीं होते. 
दंगल बायोपिक देखने के बाद मुझे जीवन का हर वो दृश्य क्रमश: सामने से गुज़रता आया जो मुझे एहसास कराने के लिए सामने होता था कि मैं औसत से कम हूँ. बेशक ये है पर औसत से कम होने के मायने क्या हैं.. ?
ये एक बड़ा सवाल है. कठोर परिश्रम से लक्ष्य को साधना बेहद कठिन है . और ये तब अधिक जिल्लतों भरा होता है जब कि आप पुरातन से प्रतिष्ठित मान्यताओं को तोड़ने पर आमादा हों. एक तो मान्यता टूटतीं नहीं दूजे आपको आम सहमति तो क्या आप बदलाव की वज़ह से उपेक्षा और तिरस्कार भोगतें हैं. महावीर फोगट उन में से एक मिसाल है. ऐसे चरित्र कम ही नज़र आते हैं वर्ना सामान्य तौर पर "जैसी बहे बयार पीठ पुनि तैसी कीजे" का अनुशरण करते हैं. बायोपिक तो एक बहाना है ...... मुद्दा तो यह है कि समानता के लिए बदलाव को कोई स्वीकारता क्यों नहीं.. स्वीकारे न तो भी मुझे कोई एतराज़ नहीं  ऐसे प्रयोग आप जारी रखिये ऐसे कथानक आपको बदलाव के लिए आत्मशक्ति देते हैं. यदि आप बदलाव न भी करें तो कम से कम बदलाव लाने वाले को अपमानित करना भी भूल जाएंगे . 

     

24.12.16

हार नहीं मानूंगा रार नहीं ठानूंगा :डॉ. सौरभ मालवीय

भारतरत्न  श्रीयुत अटलबिहारी बाजपेई जी   जन्म दिवस 25 दिसंबर 

भारतीय जहां जाता है, वहां लक्ष्मी की साधना में लग जाता है. मगर इस देश में उगते ही ऐसा लगता है कि उसकी प्रतिभा कुंठित हो जाती है. भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता-जागता राष्ट्रपुरुष है. हिमालय इसका मस्तक है, गौरीशंकर शिखा है, कश्मीर किरीट है, पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं. दिल्ली इसका दिल है. विन्ध्याचल कटि है, नर्मदा करधनी है. पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघाएं हैं. कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है. पावस के काले-काले मेघ इसके कुंतल केश हैं. चांद और सूरज इसकी आरती उतारते हैं, मलयानिल चंवर घुलता है. यह वन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है. यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है. इसका कंकर-कंकर शंकर है, इसका बिंदु-बिंदु गंगाजल है. हम जिएंगे तो इसके लिए, मरेंगे तो इसके लिए. यह कथन कवि हृदय राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी का है. वह कहते हैं, अमावस के अभेद्य अंधकार का अंतःकरण पूर्णिमा की उज्ज्वलता का स्मरण कर थर्रा उठता है. निराशा की अमावस की गहन निशा के अंधकार में हम अपना मस्तक आत्म-गौरव के साथ तनिक ऊंचा उठाकर देखें.

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर के शिंके का बाड़ा मुहल्ले में हुआ था. उनके पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी अध्यापन का कार्य करते थे और माता कृष्णा देवी घरेलू महिला थीं. अटलजी अपने माता-पिता की सातवीं संतान थे. उनसे बड़े तीन भाई और तीन बहनें थीं. अटलजी के बड़े भाइयों को अवध बिहारी वाजपेयी, सदा बिहारी वाजपेयी तथा प्रेम बिहारी वाजपेयी के नाम से जाना जाता है. अटलजी बचपन से ही अंतर्मुखी और प्रतिभा संपन्न थे. उनकी प्रारंभिक शिक्षा बड़नगर के गोरखी विद्यालय में हुई. यहां से उन्होंने आठवीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त की. जब वह पांचवीं कक्षा में थे, तब उन्होंने प्रथम बार भाषण दिया था. लेकिन बड़नगर में उच्च शिक्षा की व्यवस्था न होने के कारण उन्हें ग्वालियर जाना पड़ा. उन्हें विक्टोरिया कॉलेजियट स्कूल में दाखिल कराया गया, जहां से उन्होंने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की. इस विद्यालय में रहते हुए उन्होंने वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लिया तथा प्रथम पुरस्कार भी जीता. उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज से स्नातक स्तर की शिक्षा ग्रहण की. कॉलेज जीवन में ही उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना आरंभ कर दिया था. आरंभ में वह छात्र संगठन से जुड़े. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख कार्यकर्ता नारायण राव तरटे ने उन्हें बहुत प्रभावित किया. उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शाखा प्रभारी के रूप में कार्य किया. कॉलेज जीवन में उन्होंने कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं. वह 1943 में कॉलेज यूनियन के सचिव रहे और 1944 में उपाध्यक्ष भी बने. ग्वालियर की स्नातक उपाधि प्राप्त करने के बाद वह कानपुर चले गए. यहां उन्होंने डीएवी महाविद्यालय में प्रवेश लिया. उन्होंने कला में स्नातकोत्तर उपाधि प्रथम श्रेणी में प्राप्त की. इसके बाद वह पीएचडी करने के लिए लखनऊ चले गए. पढ़ाई के साथ-साथ वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य भी करने लगे. परंतु वह पीएचडी करने में सफलता प्राप्त नहीं कर सके, क्योंकि पत्रकारिता से जुड़ने के कारण उन्हें अध्ययन के लिए समय नहीं मिल रहा था. उस समय राष्ट्रधर्म नामक समाचार-पत्र पंडित दीनदयाल उपाध्याय के संपादन में लखनऊ से मुद्रित हो रहा था. तब अटलजी इसके सह सम्पादक के रूप में कार्य करने लगे. पंडित दीनदयाल उपाध्याय इस समाचार-पत्र का संपादकीय स्वयं लिखते थे और शेष कार्य अटलजी एवं उनके सहायक करते थे. राष्ट्रधर्म समाचार-पत्र का प्रसार बहुत बढ़ गया. ऐसे में इसके लिए स्वयं की प्रेस का प्रबंध किया गया, जिसका नाम भारत प्रेस रखा गया था.

कुछ समय के पश्चात भारत प्रेस से मुद्रित होने वाला दूसरा समाचार पत्र पांचजन्य भी प्रकाशित होने लगा. इस समाचार-पत्र का संपादन पूर्ण रूप से अटलजी ही करते थे. 15 अगस्त, 1947 को देश स्वतंत्र हो गया था. कुछ समय के पश्चात 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या हुई. इसके बाद भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबंधित कर दिया. इसके साथ ही भारत प्रेस को बंद कर दिया गया, क्योंकि भारत प्रेस भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रभाव क्षेत्र में थी. भारत प्रेस के बंद होने के पश्चात अटलजी इलाहाबाद चले गए. यहां उन्होंने क्राइसिस टाइम्स नामक अंग्रेज़ी साप्ताहिक के लिए कार्य करना आरंभ कर दिया.  परंतु जैसे ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगा प्रतिबंध हटा, वह पुन: लखनऊ आ गए और उनके संपादन में स्वदेश नामक दैनिक समाचार-पत्र प्रकाशित होने लगा.  परंतु हानि के कारण स्वदेश को बंद कर दिया गया.  इसलिए वह दिल्ली से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र वीर अर्जुन में कार्य करने लगे. यह दैनिक एवं साप्ताहिक दोनों आधार पर प्रकाशित हो रहा था. वीर अर्जुन का संपादन करते हुए उन्होंने कविताएं लिखना भी जारी रखा. 

अटलजी को जनसंघ के सबसे पुराने व्यक्तियों में एक माना जाता है. जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लग गया था, तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भारतीय जनसंघ का गठन किया था. यह राजनीतिक विचारधारा वाला दल था. वास्तव में इसका जन्म संघ परिवार की राजनीतिक संस्था के रूप में हुआ. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसके अध्यक्ष थे. अटलजी भी उस समय से ही इस दल से जुड़ गए. वह अध्यक्ष के निजी सचिव के रूप में दल का कार्य देख रहे थे. भारतीय जनसंघ ने सर्वप्रथम 1952 के लोकसभा चुनाव में भाग लिया. तब उसका चुनाव चिह्न दीपक था. इस चुनाव में भारतीय जनसंघ को कोई विशेष सफ़लता प्राप्त नहीं हुई, परंतु इसका कार्य जारी रहा. उस समय भी कश्मीर का मामला अत्यंत संवेदनशील था. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अटलजी के साथ जम्मू-कश्मीर के लोगों को जागरूक करने का कार्य किया. परंतु सरकार ने इसे सांप्रदायिक गतिविधि मानते हुए डॉ. मुखर्जी को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया, जहां 23 जून, 1953 को जेल में ही उनकी मृत्यु हो गई.  अब भारतीय जनसंघ का काम अटलजी प्रमुख रूप से देखने लगे. 1957 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनसंघ को चार स्थानों पर विजय प्राप्त हुई. अटलजी प्रथम बार बलरामपुर सीट से विजयी होकर लोकसभा में पहुंचे. वह इस चुनाव में 10 हज़ार मतों से विजयी हुए थे. उन्होंने तीन स्थानों से नामांकन पत्र भरा था. बलरामपुर के अलावा उन्होंने लखनऊ और मथुरा से भी नामांकन पत्र भरे थे. परंतु वह शेष दो स्थानों पर हार गए. मथुरा में वह अपनी ज़मानत भी नहीं बचा पाए और लखनऊ में साढ़े बारह हज़ार मतों से पराजय स्वीकार करनी पड़ी. उस समय किसी भी पार्टी के लिए यह आवश्यक था कि वह कम से कम तीन प्रतिशत मत प्राप्त करे, अन्यथा उस पार्टी की मान्यता समाप्त की जा सकती थी. भारतीय जनसंघ को छह प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे. इस चुनाव में हिन्दू महासभा और रामराज्य परिषद जैसे दलों की मान्यता समाप्त हो गई, क्योंकि उन्हें तीन प्रतिशत मत नहीं मिले थे. उन्होंने संसद में अपनी एक अलग पहचान बना ली थी. 1962 के लोकसभा चुनाव में वह पुन: बलरामपुर क्षेत्र से भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी बने, परंतु उनकी इस बार पराजय हुई. यह सुखद रहा कि 1962 के चुनाव में जनसंघ ने प्रगति की और उसके 14 प्रतिनिधि संसद पहुंचे. इस संख्या के आधार पर राज्यसभा के लिए जनसंघ को दो सदस्य मनोनीत करने का अधिकार प्राप्त हुआ. ऐसे में अटलजी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय राज्यसभा में भेजे गए. फिर 1967 के लोकसभा चुनाव में अटलजी पुन: बलरामपुर की सीट से प्रत्याशी बने और उन्होंने विजय प्राप्त की. उन्होंने 1972 का लोकसभा चुनाव अपने गृहनगर अर्थात ग्वालियर से लड़ा था. उन्होंने बलरामपुर संसदीय चुनाव का परित्याग कर दिया था. उस समय श्रीमती इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं, जिन्होंने जून, 1975 में आपातकाल लगाकर विपक्ष के कई नेताओं को जेल में डाल दिया था. इनमें अटलजी भी शामिल थे. उन्होंने जेल में रहते हुए समयानुकूल काव्य की रचना की और आपातकाल के यथार्थ को व्यंग्य के माध्यम से प्रकट किया. जेल में रहते हुए ही उनका स्वास्थ्य ख़राब हो गया और उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया. लगभग 18 माह के बाद आपातकाल समाप्त हुआ. फिर 1977 में लोकसभा चुनाव हुए, परंतु आपातकाल के कारण श्रीमती इंदिरा गांधी चुनाव हार गईं. विपक्ष द्वारा मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व में जनता पार्टी की सरकार बनी और अटलजी विदेश मंत्री बनाए गए. उन्होंने कई देशों की यात्राएं कीं और भारत का पक्ष रखा.  4 अक्टूबर, 1977 को उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिवेशन में हिंदी मंस संबोधन दिया. इससे पूर्व किसी भी भारतीय नागरिक ने राष्ट्रभाषा का प्रयोग इस मंच पर नहीं किया था. जनता पार्टी सरकार का पतन होने के पश्चात् 1980 में नए चुनाव हुए और इंदिरा गांधी पुन: सत्ता में आ गईं. इसके बाद 1996 तक अटलजी विपक्ष में रहे. 1980 में भारतीय जनसंघ के नए स्वरूप में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ और इसका चुनाव चिह्न कमल का फूल रखा गया. उस समय अटलजी ही भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेता थे. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के पश्चात् 1984 में आठवीं लोकसभा के चुनाव हुए, परंतु अटलजी ग्वालियर की अपनी सीट से पराजित हो गए. मगर 1986 में उन्हें राज्यसभा के लिए चुन लिया गया.

13
मार्च, 1991 को लोकसभा भंग हो गई और 1991 में फिर लोकसभा चुनाव हुए. फिर 1996 में पुन: लोकसभा के चुनाव हुए.  इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी. संसदीय दल के नेता के रूप में अटलजी प्रधानमंत्री बने. उन्होंने 21 मई, 1996 को प्रधानमंत्री के पद एवं गोपनीयता की शपथ ग्रहण की. 31 मई, 1996 को उन्हें अंतिम रूप से बहुमत सिद्ध करना था, परंतु विपक्ष संगठित नहीं था. इस कारण अटलजी मात्र 13 दिनों तक ही प्रधानमंत्री रहे. इसके बाद वह अप्रैल, 1999 से अक्टूबर, 1999 तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे. 1999 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ और 13 अक्टूबर, 1999 को अटलजी ने प्रधानमंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली. इस प्रकार वह तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और अपना कार्यकाल पूरा किया.

अटल बिहारी वाजपेयी दलगत राजनीति से दूर रहे. उन्होंने विपक्ष की उपलब्धियों को भी खूब सराहा. वर्ष 1971 की बात है. उस समय जनता पार्टी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी लोकसभा में विपक्ष के नेता थे और श्रीमती इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं. जब भारत को पाकिस्तान पर 1971 की लड़ाई में विजय प्राप्त हुई थी. पाक के 93 हजार सैनिकों ने भारत की सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था, तब अटलजी ने श्रीमती इंदिरा गांधी की तुलना देवी दुर्गा से की थी. इतना ही नहीं, उन्होंने परमाणु शक्ति को देश के लिए अतिआवश्यक बताते हुए परमाणु कार्यक्रम की आधारशिला रखने वाली भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को धन्यवाद दिया. उन्होंने 11 मई, 1998 को पोखरन में पांच परमाणु परीक्षण कराए. उनका कहना है कि दुर्गा समाज की संघटित शक्ति की प्रतीक हैं. व्यक्तिगत और पारिवारिक स्वार्थ-साधना को एक ओर रखकर हमें राष्ट्र की आकांक्षा प्रदीप्त करनी होगी. दलगत स्वार्थों की सीमा छोड्कर विशाल राष्ट्र की हित-चिंता में अपना जीवन लगाना होगा. हमारी विजिगीषु वृत्ति हमारे अन्दर अनंत गतिमय कर्मचेतना उत्पन्न करे.

पत्रकार के रूप में अपना जीवन आरंभ करने वाले अटलजी को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. राष्ट्र के प्रति उनकी समर्पित सेवाओं के लिए वर्ष 1992 में राष्ट्रपति ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया. वर्ष 1993 में कानपुर विश्वविद्यालय ने उन्हें डी लिट की उपाधि प्रदान की. उन्हें 1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार दिया गया. वर्ष 1994 में श्रेष्ठ सासंद चुना गया तथा पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इसी वर्ष 27 मार्च, 2015 भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

अटलजी ने कई पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें कैदी कविराय की कुंडलियां, न्यू डाइमेंशन ऒफ़ एशियन फ़ॊरेन पॊलिसी, मृत्यु या हत्या, जनसंघ और मुसलमान, मेरी इक्यावन कविताएं, मेरी संसदीय यात्रा (चार खंड), संकल्प-काल एवं गठबंधन की राजनीति सम्मिलित हैं.

अटलजी को इस बात का बहुत हर्ष है कि उनका जन्म 25 दिसंबर को हुआ. वह कहते हैं- 25 दिसंबर! पता नहीं कि उस दिन मेरा जन्म क्यों हुआ?  बाद में, बड़ा होने पर मुझे यह बताया गया कि 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्मदिन है, इसलिए बड़े दिन के रूप में मनाया जाता है. मुझे यह भी बताया गया कि जब मैं पैदा हुआ, तब पड़ोस के गिरजाघर में ईसा मसीह के जन्मदिन का त्योहार मनाया जा रहा था. कैरोल गाए जा रहे थे. उल्लास का वातावरण था. बच्चों में मिठाई बांटी जा रही थी. बाद में मुझे यह भी पता चला कि बड़ा धर्म पंडित मदन मोहन मालवीय का भी जन्मदिन है. मुझे जीवन भर इस बात का अभिमान रहा कि मेरा जन्म ऐसे महापुरुषों के जन्म के दिन ही हुआ. 

अटलजी ने कभी हार नहीं मानी. अपनी एक कविता में वह कहते हैं-
टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात
कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी
अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा
रार नहीं ठानूंगा
काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं.
स्रोत :- स्टार न्यूज़ एजेंसी 

21.12.16

भ्रमर दंश सहे कितने, उसको कैसे कहो, कहूंगा ?

आभार :- नितिन कुमार पामिस्ट 

  एक अकेला कँवल ताल में,  संबंधों की रास खोजता !
     रोज़ त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!

बहता दरिया  चुहलबाज़ है,
 तिनका तिनका छीन कँवल से ,
दौड़ लगा देता है अक्सर
,   पागल सा फिर त्राण  मसल के ! 
है सबका सरोज प्रिय किन्तु  
,
 उसे दर्द क्या.? कौन सोचता !!
     एक अकेला कँवल ताल में,  संबंधों की रास खोजता !

रात कुमुदनी जागेगी तब,  मैं विश्रामागार रहूँगा
भ्रमर दंश सहे कितने, उसको कैसे कहो, कहूंगा ?
कैसे पीढा व्यक्त करूंगा अभिव्यक्ति की राह खोजता !!
              जाग भोर की प्रथम किरन से, अंतिम तक मैं संत्रास भोगता !

20.12.16

जबलपुर में एक लाख से अधिक स्कूली बच्चों ने रचा इतिहास : श्री अभिमनोज

जबलपुर. ‘‘हम सब ने ये ठाना है शहर को नम्बर 1 बनाना है’’ जैसे नारों के साथ शहर के एक लाख से अधिक स्कूली बच्चों ने आज इतिहास रच दिया. शहर के 448 शासकीय और अशासकीय स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थी पूरे उत्साह के साथ सड़कों पर आये और बड़ों को स्वच्छता का संदेश दिया. स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत जबलपुर को साफ सुथरा रखने और देश में जबलपुर को प्रथम स्थान दिलाने इस महाअभियान का आयोजन किया गया. कहीं हाथों में बैनर पोस्टर लेकर विद्यार्थियों ने स्व्च्छता का संदेश दिया तो कहीं छात्र छात्राओं ने आम लोगों और व्यापारियों को डस्ट बिन का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया.
स्वच्छता को लेकर पहली बार आयोजित इस व्यापक जागरूकता अभियान के दौरान महापौर डॉ श्रीमती स्वाती सदानंद गोडबोले, एमआईसी सदस्य और निगमायुक्त श्री वेदप्रकाश भी स्कूली विद्यार्थियों के बीच पहुंचे और उनका उत्साह बढ़ाया. महापौर ने कहा कि स्वच्छता को लेकर स्कूली विद्यार्थियों में आई जागरूकता समाज के लिए अच्छा संकेत है और उनके माध्यम से बड़े भी साफ सफाई के प्रति प्रेरित होंगे . स्वच्छता क्रांति का नजारा एक ही समय में शहर भर के स्कूली विद्यार्थियों द्वारा सड़कों पर आ जाने से पहली बार स्वच्छता क्रांति का एहसास हुआ. भविष्य को लेकर स्कूली बच्चोंकी चिंता और जागरूकता को देखकर बड़े भी प्रेरित हुए और उन्होंने विद्यार्थियों के हौसले और जज्बे को सराहा.
स्वच्छता को लेकर शहर में बड़ें पैमाने पर पहली बार हुए जागरूकता अभियान की सफलता पर महापौर डॉ श्रीमति स्वाती सदानंद गोडबोले और निगमायुक्त श्री वेदप्रकाश ने सहभागिता करने वाले सहयोग के लिये जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन का आभार व्यक्त किया है . महापौर ने आशा व्यक्त की है कि स्वच्छता के प्रति जागरूकता लाने के लिये इस अभियान से समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और नागरिकों में सफाई के प्रति गंभीरता आएगी.

इस अवसर पर महापौर डॉं. श्रीमती स्वाती सदानंद गोडबोले, मेयर इन काउंसिल के सदस्य श्री मनप्रीत सिंह आनंद, श्री कमलेश अग्रवाल, श्री श्रीराम शुक्ला, श्री नवीन रिछारिया, श्री रमेश प्रजापति, श्रीमती दुर्गा देवी उपाध्याय, श्रीमती रेखा सिंह ठाकुर, श्रीमती इन्द्रजीत कौर कुंवरपाल सिंह शेरू, श्रीमती वीणा रजनीश जैन, श्रीमती ज्योति कुरील, पार्षदगण, निगमायुक्त श्री वेदप्रकाश, अपर आयुक्त श्री गजेन्द्र सिंह नागेश, श्री रोहित सिंह कौशल, उपायुक्त श्री राकेश अयाची, श्री जी.एस. बघेल, श्रीमती अंजू सिंह ठाकुर के साथ साथ सभी नगर निगम के विभागीय प्रमुख, संभागीय अधिकारी, तथा समस्त मुख्य स्वास्थ्य निरीक्षकों ने भी स्कूलों के प्राचार्यो तथा प्राध्यापकों के साथ बच्चों का उत्साहवर्धन कर उनकी निगरानी की.

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