*॥ श्री सूक्तम् ॥* (अर्थ सहित)
*_ मंत्र -१ _* *_ ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्। _* *_ चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥ (१) _* _ भावार्थः हे जातवेदा अग्निदेव आप मुझे सुवर्ण के समान पीतवर्ण वाली तथा किंचित हरितवर्ण वाली तथा हरिणी रूपधारिणी सुवर्नमिश्रित रजत की माला धारण करने वाली , चाँदी के समान धवल पुष्पों की माला धारण करने वाली , चंद्रमा के सद्रश प्रकाशमान तथा चंद्रमा की तरह संसार को प्रसन्न करने वाली या चंचला के सामान रूपवाली ये हिरण्मय ही जिसका सरीर है ऐसे गुणों से युक्त लक्ष्मी को मेरे लिए बुलाओ। _ * तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ।। (२)* _ भावार्थः हे जातवेदा अग्निदेव आप उन जगत प्रसिद्ध लक्ष्मी जी को मेरे लिए बुलाओ जिनके आवाहन करने पर मै सुवर्ण , गौ , अश्व और पुत्र पोत्रदि को प्राप्त करूँ। _ * अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् ।* * श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ।। (३)* _ भावार्थः जिस देवी के आगे और मध्य में रथ है अथवा जिसके सम्मुख घोड़े रथ से जुते हुए हैं , ऐसे रथ में बैठी हुई , हथियो की निनाद स संसार को प