चिरंजीव कन्हैया ........
चिरंजीव कन्हैया ..... “समझदार बनो भारत को पढो ” भारत के सामाजिक सांस्कृतिक मुद्दों को सदा ही जाति धर्म के चश्में से राजनैतिक फायदे के लिए देख कर सम्वाद करना तुम्हारा शगल ही है. भारतीय सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन के लिए किसी सियासी हस्तेक्षेप की कतई ज़रुरत नहीं है . समाज खुद को जिस सहजता से परिवर्तित करता है उसमें बाह्यबल की ज़रा सी भी ज़रुरत नहीं है . भारतीय व्यवस्था ने स्मृतियों खासकर मनुस्मृति में प्रावाधित व्यवस्था को अंगीकृत कदापि नहीं किया न ही उसे स्वीकारने की कोई ललक नज़र आ रही है . जो स्वीकृत ही नहीं है उस पर अनर्गल प्रलाप अपने सियासी नफे के लिए करना एक दुखद बिंदु है . सियासी हस्तक्षेप शीर्षक से राष्ट्रीय जागरण में इस आलेख का प्रकाशन 18 मार्च 2016 अंक में किया । प्रकाशित आलेख इसी ब्लॉग पोस्ट का हिस्सा है भारतीय सामाजिक व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन तेज़ी से आ रहे हैं . न केवल बदलाव आ रहे हैं वरन उसे सामाजिक सम्मति भी प्राप्त होती नज़र आ रही है.