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संतूर ईरान से कश्मीर होते हुए सम्पूर्ण भारत में

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भारत में संतूर मूलत: काश्मीर का तार वाद्य है किन्तु इसका जन्म 1800 साल पहले  ईरान में हुआ था ।   इसे वाद्य का प्रयोग  सूफ़ी संगीत में इस्तेमाल किया जाता था अब यह एशिया   सहित पश्चिमी देशों में भी किसी न किसी स्वरुप में प्रचलित हुआ जिन्होंने अपनी-अपनी सभ्यता और संस्कृति     के अनुसार इसके रूप में परिवर्तन किए ।   संतूर लकड़ी का एक चतुर्भुजाकार बक्सानुमा यंत्र है जिसके ऊपर दो-दो मेरु की पंद्रह पंक्तियाँ होती हैं । एक सुर से मिलाये गये     के चार तार एक जोड़ी मेरु के ऊपर लगे होते हैं। इस प्रकार तारों की कुल संख्या   100   होती है । संतूर अखरोट की लकड़ी से बजाया जाता है जो आगे से मुड़ी हुई डंडियों से इसे बजाया जाता है । यद्यपि संतूर का ज़िक्र  वेदों में इस वाद्ययंत्र का ज़िक्र है शततंत्री वीणा  ।   काश्मीर भजन सपोरी, अभय सपोरी, रुस्तम सपोरी ने इस वाद्य को बजाने अपनी ऐसी शैली को अपनाया जो  बनारस घराने के पंडित श्रीयुत शिवकुमार शर्मा की शैली से ज़रा हटकर है. जिन्हौने सम्पूर्ण देश में संतूर को शास्त्रीय वाद्य के रूप में स्थापित कर दिया है . मध्यप्रदेश  से श्रीमती श्रुति अधिकारी भोपाल,  

विश्व विकलांग दिवस 03 दिसंबर 15 पर विशेष टिप्पणी

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“आज भी सामाजिक बदलाव नज़र नहीं आया..!” विशेष रूप से सक्षम लोंगों के मुद्दे पर आज भी सामाजिक बदलाव न आने से कल्याण कार्यक्रमों की प्रभावशीलता दिखाई नहीं दे रही है. साथ ही विकलागों की स्थिति में कोई ख़ास बदलाव दिखाई नहीं दे रहा. सामाजिक सोच में कभी संवेदनाओं का अतिरेक होता है तो कहीं छद्म-घृणा भी दिखाई देती है. ऐसा नहीं है कि सम्पूर्ण वातावरण नकारात्मक है परन्तु सामाजिक नज़रिया जिस तेज़ी से सहज होना चाहिए वैसी दिखाई नहीं देती. कारण जो भी हो सत्यता लाख आयोजन कर लीजिये छिपेगी नहीं कि विशेष-रूप से योग्य तबके के प्रति समानता वाली  सोच में सकारात्मक बदलाव अन्य मुद्दों पर हो रहे सामाजिक बदलाव से काफी धीमी  है. अपने 52 वर्षीय जीवन में मुझे कई ऐसे लोंगों से भी मुलाक़ात करना पडा है जो मुझे बराबरी का दर्ज़ा देते काफी आहत हुए हैं . दरअसल इसी सामंती-वृत्ति से निजात की ज़रुरत है परन्तु संभावना नकारात्मक दौर में दूर दूर तक नज़र नहीं आती . यद्यपि ऐसे लोगों का प्रतिशत कम ही रहा है परन्तु इस सत्य को अनदेखा करने से आने वाले समय में परिलक्षित हो  दुखद एवं नकारात्मक  परिणामों को नकारा नहीं जा सकता ह

सुश्री समीक्षा शर्मा “अरुण” ने कार्यशाला में बाल कलाकारों को प्रशिक्षित किया

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                बालभवन जबलपुर ,   एवं   स्पिक-मैके के संयुक्त प्रयासों से बाल-भवन के बच्चों के बीच कथक   नृत्य की कार्यशाला का आयोजन किया गया । दिल्ली निवासी दिल्ली दूरदर्शन की “ बी-ग्रेड ” कलाकार  देश की प्रतिभावान कथक साधिका सुश्री समीक्षा शर्मा “ अरुण ” ने कार्यशाला में बालकलाकारों को प्रशिक्षित किया । कथक विधा शोध कर रहीं सुश्री समीक्षा ने प्रादेशिक एवं   राष्ट्रीय   अलंकरण प्राप्त हुए हैं। उजबेककिस्तान ,   स्पेन ,   वेनेजुएला ,   नार्वे ,   एवं जर्मनी में   अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में प्रस्तुतियाँ दीं हैं । जबलपुर में 2008 के नर्मदा-उत्सव में भागीदारी करने वाली युवा साधिका ने देश के कई शहरों में प्रस्तुतियाँ दीं हैं ।   PRESENT PROFESSIONAL STATUS AND WORK EXPERIENCE. ·          Associated with Lal Bahadur Shastri Centre for Indian Culture, Embassy of India Tashkent Uzbekistan as a Kathak dance teacher cum performer, since Aug. 2009 to April 2013. ·         Worked as a Director of “Gurukul” Guru Kundan Lal Sangeet Academy Gwalior M.P.(2006 to 2009) ·         Working

"आज सिर्फ इतना ही ...........!"

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हरेक मामले में उठाते हो अंगुलियाँ – क्या हश्र होगा आपका जो हाथ उठेंगे .. ?

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मैं जाउंगा तो अश्क  के सैलाब उठेगें, झुक जाएँगी नज़रें,  कई  लोग झुकेंगे महफ़िल कभी चिराग  बिना, रौशन हुई है क्या  .....? रोशन न रहोगे तुम भी, जो चिराग बुझेंगे..!! दिल खोल के मिलिए गर मिलना हो किसी से – वो फिर न मिला लम्हे ये दिन रात चुभेंगे !! हरेक मामले में उठाते हो अंगुलियाँ – क्या हश्र होगा आपका जो हाथ उठेंगे .. ?                                 गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”   :::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: पग पग पे मयकदा है हर शख्स है बादाकश बहका वही है जिसने, कभी घूँट भर न पी !! रिन्दों के शहर में हमने भी दूकान सज़ा ली इक वाह के बदले में हम करतें हैं शायरी ..!!                               गिरीश बिल्लोरे “मुकुल” :::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: मसले हल हुए न थे कि, कुहराम मच गया- बदली हुई सूरत में वो    आवाम तक गया ! अक्सर हुआ यही है मेरे हिन्दोस्तान के साथ – जिसपे किया यकीं वही बदनाम कर गया .!! फिर कहने लगा चीख के,  संगे-दिल हो आप- रिश्तों तार तार कर नुकसान कर गया !! मुम्बई के धमाकों की समझ पेरिस में पा