2.9.15

बालगृह के निराश्रित भाइयों को मिला बालभवन की बहनों का स्नेह



 महिला सशक्तिकरण अतंर्गत संचालित शासकीय बाल गृह, जबलपुर में श्रीमति मनीषा लुम्बा, संभागीय उपसंचालक
के मार्गदर्शन एवं समाज सेवी श्री नितिन अग्रवाल के आतिथ्य में बाल गृह के बच्चों एवं
बाल भवन के बच्चों द्वारा जन्मदिवस एवं  रक्षाबंधन
कार्यक्रम मनाया गया । बाल भवन की बालिकाओं ने बड़े मनोयोग से  शासकीय बाल गृह
, जबलपुर के निराश्रित बालकों को बाल भवन जबलपुर की छात्राओं द्वारा हस्तनिर्मित
राखी बांधी गई ।
इसी दौरान आज बाल
गृह के बच्चों क्रमश: ललित
,
आकाश कोहली, राकेश, मेहरबान एवं अमर का जन्मदिन भी मनाया गया । बच्चों के द्वारा केक काटकर बर्थडे
मनाया गया । बाल भवन की छात्राओं द्वारा कार्यक्रम में बच्चों के लिए बर्थडे गीत प्रस्तुत
किए गए। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बाल गृह के निराश्रित बच्चों के साथ रक्षाबंधन
मनाकर उन्हें उनके जीवन के  रिश्तों  की कमी पूर्ण करने का एक प्रयास करते हुए उनको
सामान्य बालसुलभ जीवन से जोड़ा जाना है . ।
  
कार्यक्रम में बाल भवन की ओर से आस्था अग्रहरि
, साध्वी विरहा,
शिफाली सुहाने, श्रुति जैन, प्रिया सौंधिया,
प्रांजल जैन, मनीषा तिवारी, यषी पचौरी,
तान्या बडकुल, रिंकी राय, श्रेया ठाकुर, रेशम ठाकुर  श्रेया खंडेलवाल ने
सुश्री शिप्रा सुल्लेरे के संगीत निर्देशन में गीत प्रस्तुत किये  । बालगृह के 8  बच्चों को भी बालभवन में गायन का  प्रशिक्षण दिया गया . उन में से 4 बच्चों नें भी
गीत प्रस्तुत किये गए .  
कार्यक्रम में श्रीमति
मनीषा लुम्बा
,
संभागीय उपसंचालक के द्वारा बच्चों को रक्षाबंधन के त्यौहार
पर मार्गदर्शन स्वरूप  आर्शीवचन देते हुए
राखी के  त्यौहार पर चर्चा करते हुए  शुभकामनाऐं दी गई । महिला सशक्तिकरण का प्रयास बाल
गृह के निराश्रित बच्चों का बाल भवन के कलाकार छात्रों से मेल कराकर वैचारिक सांस्कृतिक
एवं भावनात्मक समरसता  का विकास होगा .
अभाव जनित नकारात्मक सोच की समाप्ति हो इस उद्देश्य की पूर्ती हेतु  प्रतिमाह के आखिरी सप्ताह में जन्मदिन कार्यक्रम
बाल गृह में आयोजित होते रहेंगे


कार्यक्रंम बाल गृह
के अधीक्षक श्री विजय सिंह ठाकुर एवं बाल भवन के संचालक श्री गिरीष बिल्लौरे के निर्देशन
में संपादित हुआ । जबकि कार्यकारी साथियों के रूप में श्री अनिल गांधी, श्री पियूष
करे , श्री देवेन्द्र यादव, श्री इंद्र पांडे का योगदान प्रमुख रहा है .  

26.8.15

मुस्काती अक्सर दिखती है – ज्यों पट सजतें हों स्वागत के

जब  माँ सोती तब अय पलको
कुछ भी हो तुम झुंझलाना मत .
 लब जैसे हो तुम वैसे ही रहना
अनजाने में इतराना मत –..

वो थक के चूर हुई जब भी
सबकी चिंता से ताकत ले । 
मुस्काती अक्सर दिखती है
ज्यों द्वार  सजें हों स्वागत के

 अय सपने मत जाना उन तक
जो सबके सपने दिनभर लखती .
वो देवी जो इस भोर से उस तक
सबका हो भला यही तकती .


वो अनुभूति वो स्मृति से 
जाए तो रोने लगता हूँ 
उसकी गोदी में सर रखके 

खुद को ही खोने लगता हूँ  ।


उसकी यादों में डूबा तो -
नयनों से फिर माणिक छलके 
अपनी बेटी को देख देख -
मीत हुए फिर हम हलके !!

  

17.8.15

घुमंतू भारतीयों को मिली थी 31 अगस्त को आज़ादी : फ़िरदौस ख़ान

घुमंतू जातियां : आभार अभिव्यक्ति 
देशभर में 15 अगस्त को जश्ने-आज़ादी के तौर पर मनाया जाता है, लेकिन घुमंतू जातियां के लोग 31 अगस्त को आज़ादी भी का जश्न मनाते हैं.
ऑल इंडिया विमुक्त जाति मोर्चा के सदस्य भोला का कहना है कि ऐसा नहीं कि हम स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाते, लेकिन सच तो यही है कि हमारे लिए 15 अगस्त की बजाय 31 अगस्त का ज़्यादा महत्व है. वे बताते हैं कि 15 अगस्त 1947 को जब देश आज़ाद हुआ था और लोग खुली फ़िज़ा में सांस ले रहे थे, तब भी घुमंतू जातियों के लोगों को दिन में तीन बार पुलिस थाने में हाज़िरी लगानी पड़ती थी. अगर कोई व्यक्ति बीमार होने पर या किसी दूसरी वजह से थाने में उपस्थित नहीं हो पाता, तो पुलिस द्वारा उसे प्रताड़ित किया जाता था. इतना ही नहीं चोरी या कोई अन्य अपराधिक घटना होने पर भी पुलिस क़हर उन पर टूटता था. यह सिलसिला लंबे अरसे तक चलता रहा. आख़िरकार तंग आकर प्रताड़ित लोगों ने इस प्रशासनिक कुप्रथा के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की और फिर शुरू हुआ सिलसिला लोगों में जागरूकता लाने का. लोगों का संघर्ष रंग लाया और फिर वर्ष 1952 में अंग्रेज़ों द्वारा 1871 में बनाए गए एक्ट संशोधन किया गया. इसी साल 31 अगस्त को घुमंतू जातियों के लोगों को थाने में हाज़िरी लगाने से निजात मिली.
इस समय देशभर में विमुक्त जातियों के 192 कबीलों के क़रीब 20 करोड़ लोग हैं. हरियाणा की क़रीब साढ़े सात फ़ीसद आबादी इन्हीं जातियों की है. इन विमुक्त जातियों में सांसी, बावरिये, भाट, नट, भेड़कट और किकर आदि जातियां शामिल हैं. भाट जाति से संबंध रखने वाले प्रभु बताते हैं कि 31 अगस्त के दिन क़बीले के रस्मो-रिवाज के मुताबिक़ सामूहिक नृत्य का आयोजन किया जाता है. महिलाएं इकट्ठी होकर पकवान बनाती हैं और उसके बाद सामूहिक भोज होता है. बच्चे भी अपने-अपने तरीक़ों से खुशी ज़ाहिर करते हैं. कई क़बीलों में पतंगबाज़ी का आयोजन किया जाता है. जीतने वाले व्यक्ति को समारोह की शोभा माना जाता है. लोग उसे बधाइयां के साथ उपहार पेश करते हैं. इन जातियों के लोगों के संस्थानों में भी 31 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाए जाते हैं. इन कार्यक्रमों में केंद्रीय मंत्रियों से लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारी भी शिरकत करते हैं. इसकी तैयारियों के लिए संगठन के पदाधिकारी इलाक़े के गांव-गांव का दौरा कर लोगों को समारोह के लिए आमंत्रित करते हैं.
हरियाणा के अलावा देश के अन्य राज्यों में भी आदिवासी समाज की अनेक जातियां निवास करती हैं, जिनमें आंध प्रदेश में भील, चेंचु, गोंड, कांडा, लम्बाडी, सुंगली और नायक, असम में बोषे, कचारी मिकिर यानी कार्बी, लंलुग, राथा, दिमासा, हमर और हजोंग, बिहार और झारखंड में झमुर, बंजारा, बिरहोर, कोर्वा, मुंडा, ओरांव, संथाल, गोंड और खंडिया, गुजराज में भील, ढोडिया, गोंड, सिद्दी, बोर्डिया और भीलाला, हिमाचल प्रदेश में गद्दी, लाहुआला और स्वांगला, कर्नाटक में भील, चेंचु, गाउड, कुरूबा, कम्मारा, कोली, कोथा, मयाका और टोडा, केरल में आदियम, कोंडकप्पू, मलैस और पल्लियार, मध्य प्रदेश में भील, बिरहोर, उमर, गोंड, खरिआ, माझी, मुंडा और ओरांव, छत्तीसगढ़ में परही, भीलाला, भीलाइत, प्रधान, राजगोंड, सहरिया, कंवर, भींजवार, बैगा, कोल और कोरकू, महाराष्ट्र में भील, भुंजिआ, चोधरा, ढोडिया, गोंड, खरिया, नायक, ओरावं, पर्धी और पथना, मेघालय में गारो, खासी और जयंतिया, उड़ीसा में जुआंग, खांड, करूआ, मुंडारी, ओरांव, संथाल, धारूआ और नायक, राजस्थान में भील, दमोर, गरस्ता, मीना और सलरिया, तमिलनाडू में इरूलर, कम्मरार, कोंडकप्पू, कोटा, महमलासर, पल्लेयन और टोडा, त्रिपुरा में चकमा, गारो, खासी, कुकी, लुसाई, लियांग और संताल, पश्चिम बंगाल में असुर, बिरहोर, कोर्वा, लेपचा, मुंडा, संथाल और गोंड, मिजोरम में लुसई, कुकी, गारो, खासी, जयंतिया और मिकिट, गोवा में टोडी और नायक, दमन व द्वीप में ढोडी, मिक्कड़ और वर्ती, अंडमान में जारवा, निकोबारी, ओंजे, सेंटीनेलीज, शौम्पेंस और ग्रेट अंडमानी, उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में भाटी, बुक्सा, जौनसारी और थारू, नागालैंड में नागा, कुकी, मिकिट और गारो, सिक्किम में भुटिया और लेपचा तथा जम्मू व कश्मीर में चिद्दंपा, गर्रा, गाुर और गड्डी आदि शामिल हैं. इनमें से अनेक जातियां अपने अधिकारों को लेकर संघर्षरत हैं.
                इंडियन नेशनल लोकदल के टपरीवास विमुक्त जाति मोर्चा के ज़िलाध्यक्ष बहादुर सिंह का कहना है कि आज़ादी के छह दशक बाद भी आदिवासी समाज की घुमंतू जातियां विकास से कोसों दूर हैं. वे कहते हैं कि घुमंतू जातियों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए सरकार को चाहिए कि वे इन्हें स्थाई रूप से आबाद करे. इनके लिए बस्तियां बनाई जाएं और उन्हें आवास मुहैया कराए जाएं. बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दी जाए. उन्हें एसटी का दर्जा दिया जाए, ताकि उन्हें भी आरक्षण का लाभ मिल सके.
ग़ौरतलब है कि आदिवासी समाज की अधिकतर जातियां आज भी बदहाली की ज़िन्दगी गुज़ारने का मजबूर हैं. ग्रामीण विकास मंत्रालय के एक सर्वेक्षण के मुताबिक़ इन जातियों का आधे से ज़्यादा हिस्सा गरीबी की रेखा से नीचे पाया गया है. इनकी प्रति व्यक्ति आय देश में सबसे नीचे रहती है. एक रिपोर्ट के मुताबिक़ जनजातियों की 9,17,590 एकड़ जनजातीय भूमि हस्तांतरित की गई और ऐसी भूमि का महज़ 5,37,610 एकड़ भूमि ही उन्हें वापस दिलाई गई है.
घुमंतू जातियों की बदहाली के अनेक कारण हैं, जिनमें वनों का विनाश मुख्य रूप से शामिल है. वन जनजातियों के जीवनयापन का एकमात्र साधन हैं, लेकिन वन परिस्थितिकी तंत्रों में जनजातियों और वन के बीच एक अटूट रिश्ता है. ख़त्म हो रहे वन संसाधन, वन जनसंख्या के एक बड़े हिस्से के लिए खाद्य सुरक्षा को जोखिम में डाल रहे हैं. जागरूकता की कमी भी इन जातियों के विकास में रुकावट बनी है. केंद्र सरकार और प्रदेश सरकारों द्वारा शुरू किए गए विभिन्न विकास संबंधी कार्यक्रमों के बारे में घुमंतू जातियों के लोगों को जानकारी नहीं है, जिसके कारण उन्हें योजनाओं का समुचित लाभ नहीं मिल पाता.

ग़ौरतलब है कि पांचवीं पंचवर्षीय योजना से देशभर में जनजातियों के विकास के लिए जनजातीय उप योजना कार्यनीत टीएसपी भी अपनाई गई. इसके तहत अमूमन जनजातियों से बसे संपूर्ण  क्षेत्र को उनकी आबादी के हिसाब से कई वर्गों में शामिल किया गया है. इन वर्गों में समेकित क्षेत्र विकास परियोजना टीडीपी, संशोधित क्षेत्र विकास .ष्टिकोण माडा, क्लस्टर और आदिम जनजातीय समूह शामिल हैं. जनजातीय उप योजना दृष्टिकोण कम से कम राज्य में राज्य योजना से जनजातियों की आबादी के अनुपात में और केंद्रीय मंत्रालयों और वित्तीय संस्थाओं के बजट से देश के लिए जनजातीय आबादी के समग्र समानुपात में राज्य योजना के साथ-साथ केंद्रीय मंत्रालयों से जनजातीय क्षेत्रों के लिए निधि आबंटन सुनिश्चित करता है. जनजातीय कार्य मंत्रालय ने अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और विकास पर लक्षित विभिन्न योजनाओं करे कार्यान्वित करना जारी रखा है, लेकिन अफ़सोस की बात यही है कि अज्ञानता, भ्रष्टाचार और लालफ़ीताशाही के चलते ये जातियां सरकारी योजनाओं के लाभ से महरूम हैं. इसके लिए ज़रूरी है कि इन जातियों में जागरूकता अभियान चलाकर उनके चहुंमुखी विकास के लिए कारगर क़दम उठाए जाएं, वरना सरकार की कल्याणकारी योजनाएं कागज़ों तक ही सिमट कर रह जाएंगी.

16.8.15

वर्तमान की भौतिकवादी मीडिया -डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी

मीडिया जगत से जुड़े लोग कुछ उस तरह के हो गए हैं जैसे पुराने समय में एक राज्य का महामंत्री। शायद इस कहानी को अधिकाँश लोग नहीं सुने होंगे। उस कहानी का सार यहाँ प्रस्तुत करना आवश्यक हो गया है। कहानी के अनुसार उक्त राज्य में अकाल पड़ गया था प्रजा में त्राहि-त्राहि मची थी। यह बात राजा के कानो तक नहीं पहुँची थी। राजा जब भीं भरी सभा में अपने खास महामंत्री से पूछता कि बताओ राज्य की प्रजा का क्या हाल है? तब महामंत्री उत्तर देता कि हे राजन, राज्य में दूध घी की नदियाँ बह रही हैं प्रजा खुशहाल है।
इसके बावजूद राजा को गुप्तचरों ने राज्य में ‘अकाल‘ की जो विभीषिका प्रस्तुत किया उससे राजा का मन विचलित हो गया। मुलतः वह एक दिन अचानक अपने खास गुप्तचरों के साथ राज्य भ्रमण पर निकल पड़ा। हालात जो दिखाई दिए उससे ‘राजा‘ को अन्दर ही अन्दर महामंत्री के मिथ्या और भ्रामक संवाद से क्रोध भी आया। दूसरे दिन भरी सभा में राजा ने फरमान जारी कर दिया कि महामंत्री जो राजकीय सुख-सुविधाएँ प्रदान की गई हैं वह वापस ली जाएँ। राजा के हुक्म की तामील हुई और महामंत्री को प्रदत्त सभी राजकीय सुविधाएँ वापस ले ली गईं।
दरबार बैठता है। राजा ने महामंत्री से पूछाँ ‘अब बताओ राज्य में कैसा चल रहा है .....? महामंत्री ने कहा सरकार अवर्षण से सूखा पड़ गया है। राज्य में दुर्भिक्ष आ गया है। नदी नाले सूख गए हैं, प्रजा भूखो मर रही है। सर्वत्र त्राहि-त्राहि मची है। महामंत्री के इस उद्बोधन से उपस्थित सभा सदों को घोर आश्चर्य हुआ लेकिन राजा खामोश था। क्योंकि वह जानता था कि महामंत्री को इस बात का एहसास तब हुआ जब उनकी सभी राजकीय सुविधाएँ वापस ले ली गई थी। राजा ने तत्काल आदेश जारी किया कि महामंत्री अविलम्ब राज्य की प्रजा का ध्यान दें और हरहाल में जनता को कोषागार से धन निकालकर जीने के लिए समस्त सुविधाएँ मुहैया कराई जाएँं।
ठीक उसी तरह से अब मीडिया और उससे जुड़े स्वार्थी तत्व कृत्य करने लगे हैं जैसे उस राज्य का महामंत्री कर रहा था। मसलन पेड न्यूज का प्रकाशन/प्रसारण वह भी अच्छी-खासी कीमत के एवज में ये लोग करने लगे हैं। अवाम की चिन्ता नहीं है। ये स्वंय सुख-सुविधा संपन्न हैं इसलिए इनको सुविधाएं मुहैया कराने वालों की फिक्र ज्यादा रहती है। विधुत संकट, किसानों में सिंचाई के लिए पानी का संकट और अन्य कष्टोंें का प्रकाशन तभी होता है जब इनके पृष्ठों में खबरों का अकाल रहता है।
मीडिया स्वार्थपूर्ति हेतु संघर्ष समिति के रूप में कार्य करने लगी है, ऐसा देखा, पढ़ा और महसूस किया जा सकता है। अकबर इलाहाबादी का शेर याद आने लगा है- न तीर निकालो-न तलवार निकालो, गर दुश्मन हो मुकाबिल तो अखबार निकालो। अकबर साहेब ने यह उस जमाने में कहा था जब मीडिया का एक ही स्वरूप प्रचलित था वह था अखबार (प्रिण्ट)। अब तो प्रिण्ट इलेक्ट्रॉनिक और वेब मीडिया का जमाना चल रहा है। बहरहाल कुछ भी हो इस समय मनी/मीडिया/माफिया का गठजोड़ कायम है। ऐसी स्थिति में मीडिया और इससे सम्बद्ध लोगों को अवाम की पीड़ा का एहसास नहीं हो रहा है। ज्यादा क्या लिखूँ/कहूँ आप सब समझदार हैं और समझदार के लिए इशारा ही काफी होता है।
-डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
वरिष्ठ पत्रकार/स्तम्भकार
E-mail- rainbow.news@rediffmail.com

15.8.15

आज़ाद तमन्नाओं के पंख

अपनी आज़ाद तमन्नाओं के पंख लिए
उड़ चला मैं ......... उस उंचाई को छूने
जिसे हिमालय कहते हैं ?
न...
तो आकाश कहते हैं ...?  न....
जिसे विश्वास कहते हैं ....
हाँ .... आज़ादी उनके साहस का
जो मर मिटे ... 47 से पहले ...
जो हर पल मर मिटने पर आमादा हैं
सहदों पर ... सरहदों के भीतर ....
हर तरफ विकृतियों से जूझना सिखाते हैं
हाँ वे रणबांकुरे ...
जो आज़ादी की पल प्रति पल
कीमत चुकाते हैं
और मैं ..तुम ..हम सब
जब ... अपना हक़ जताते हैं ...
तब वे वीर बाँकुरे .... सीने पर गोलियां खाते हैं ...
हिमगिरि की बर्फ में पैरों को गलाते हैं
तब जब अपने स्वार्थ के लिए संसद तक रोकते हैं
तब वे सीमा पर
सांस रोककर सीने दुश्मन को छकाते हैं ...
हाँ तब जब हम अपना ज़मीर बेचते हैं
तब वो वहां सरहदों पर मर जाने की हद तक जाकर आज़ादी बचाते हैं ...



13.8.15

ज्योतिष की नींव पर विकसित हुआ है विज्ञान

लेखक : श्री बी पी गौतम 

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आईएएस संवर्ग में शीर्ष पर रहने वाली इरा सिंघल परिणाम घोषित होते ही देश
भर में लोकप्रिय हो गईं। समाज का हर वर्ग न सिर्फ उन्हें जान गया, बल्कि
इरा सिंघल को लेकर गर्वानुभूति करने लगा, इस बीच उन्होंने अपने एक
साक्षात्कार में यह कह दिया कि उन्हें ज्योतिष पर प्रचंड विश्वास है और
उन्हें पहले से ज्ञात था कि उनका आईएएस में चयन होगा, इस के बाद वे सनातन
विरोधियों और प्रगतिशीलों के निशाने पर आ गईं। कुछ लोग उनकी कड़ी आलोचना
करने लगे, उन्हें पुरातन सोच का बताने लगे, साथ में ज्योतिष पर भी सवाल
उठाने लगे।
सवाल यह उठता है कि ज्योतिष में विश्वास करने वाला क्या पुरातन सोच का
होता है? ज्योतिष विकास विरोधी है क्या? आईएएस टॉप करने वाली इरा सिंघल
और ज्योतिष की आलोचना करने वाले हाईस्कूल, इंटर, ग्रेजुएट पास और
अशिक्षित लोग ज्यादा बुद्धिमान हैं क्या?, इन सब सवालों के पीछे मूल कारण
ज्योतिष है, इसलिए ज्योतिष के संबंध में ही चर्चा करते हैं कि वास्तव में
ज्योतिष है क्या।
ज्योतिष शब्द दो शब्दों ज्योति और ईश से मिल कर बना है। ज्योतिष के दो
अर्थ हैं नक्षत्रों और ईश्वर से संबंध रखने वाली विद्या। प्रकाश शब्द
नक्षत्रों और ईश्वर दोनों के लिए कहा गया है। वैज्ञानिक नक्षत्र से संबंध
मान कर चलते हैं और फलित ज्योतिष के जानकार ईश्वर से संबंध मानते हैं,
लेकिन दोनों ही तरीकों में अंतर कुछ नहीं है। शरीर के बाहर और अंदर की
जानकारियों को प्राप्त करने के कई वैज्ञानिक साधन और माध्यम हैं, वैसे ही
संपूर्ण ब्रह्मांड का गहन अध्ययन करने के बाद ज्योतिष का निर्माण हुआ है।
जैसे सोनोग्राफी, एक्स-रे और सिटी स्केन से जानकारी ली जाती है, वैसे ही
ज्योतिष से भी जानकारी ली जाती है। मनुष्य के दिमाग में चलने वाले कब,
क्यूं, कैसे और क्या जैसे सवालों का हल ज्योतिष दे सकता है।
ज्योतिष शास्त्र के सूर्य, पितामह, व्यास, वशिष्ट, अत्रि, पाराशर, कश्यप,
नारद, गर्ग, मरीचि, मनु, अंगिरा, लोमश, पौलिश, च्यवन, यवन, भृगु और शौनक
सहित कुल 18 प्रवर्तक माने जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र के तीन स्कंध हैं,
जिसके प्रथम स्कंध ‘‘सिद्धान्तमें सृष्टि से लेकर प्रलय काल तक की
गणना, सौर मंडल, मासादि, काल, मानव का प्रभेद, ग्रह संचार का विस्तार तथा
गणित क्रिया की उत्पति के साथ पृथ्वी की स्थिति का वर्णन किया गया है, यह
सब ग्रह लाघव, मकरन्द, ज्योर्तिगणित, सूर्य सिद्धांति ग्रंथों में पढ़ा जा
सकता है। द्वितीय स्कंध ‘‘संहितामें अंतरिक्ष, ग्रह, नक्षत्र,
ब्रह्माण्ड आदि की गति, स्थिति एंव विभिन्न लोकों में रहने वाले
प्राणियों की क्रिया विशेष का वर्णन किया गया है, जिसे वाराह मिहिर की
वृहत् संहिता, भद्र बाहु संहिता में विस्तार से समझा जा सकता है। तृतीय
स्कंध ‘‘होरामें जातक, जातिक, मुहूर्त से संबंधित वर्णन हैं, जिसे
वृहत् जातक, वृहत् पाराशर होरशास्त्र, सारावली, जातक पारिजात, फलदीपिका,
उतरकालामृत, लघुपाराशरी, जैमिनी सूत्र और प्रश्नमार्गादि ग्रंथों में पढ़ा
जा सकता है। ज्योतिष की उत्पत्ति की बात करें, तो कोई निश्चित समय नहीं
है। मूल रूप से ज्योतिष को वेद का नेत्र माना जाता है और वेद संसार के
सबसे प्राचीन ग्रंथ हैं, इसलिए ज्योतिष को भी उतना ही प्राचीन माना जाता
है। वेद के शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छंद, और ज्योतिष छः अंग हैं,
लेकिन ज्योतिष को समस्त विद्याओं का उद्गम भी माना जाता है।
फलित ज्योतिष के अंतर्गत मनुष्य और पृथ्वी पर ग्रहों और तारों के शुभ तथा
अशुभ प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। ग्रहों तथा तारों के रंग
भिन्न-भिन्न प्रकार के दिखलाई पड़ते हैं। ग्रहों व नक्षत्रों से निकलने
वाली किरणों और रंगों का पृथ्वी व मानव पर भिन्न-भिन्न प्रभाव पड़ता है,
जिसका अध्ययन विद्वानों ने प्राचीन काल में ही शुरू कर दिया था। पृथ्वी
सौर मंडल का ही एक ग्रह है, इस पर मुख्य रूप से सूर्य तथा सौर मंडल के
ग्रहों और चंद्रमा का ही विशेष प्रभाव पड़ता है। पृथ्वी जिस कक्षा में
चलती है, उसे क्रांतिवृत्त कहते हैं। पृथ्वी पर रहने वालों को सूर्य इसी
कक्षा में चलता दिखाई पड़ता है। इस कक्षा के आसपास कुछ तारामंडल हैं,
जिन्हें राशियाँ कहते हैं, इनकी संख्या 12 है, इनसे भी विशेष प्रकार की
किरणें निकलती हैं, उसी आधार पर इनका नामकरण किया गया है। 12 राशियों के
27 विभाग किए गए हैं, जिन्हें नक्षत्र कहते हैं। फलित ज्योतिष मंे गणना
के लिए सूर्य के साथ चंद्रमा के नक्षत्र का भी विशेष उपयोग किया जाता है।
ज्योतिष से ही खगोल विज्ञान विकसित हुआ है और अठारहवीं सदी तक ज्योतिष ही
गणना का आधार था। बाद में नये वैज्ञानिक आये, तो ज्योतिष को अंधविश्वास
कहने लगे, जबकि विज्ञान यहाँ तक ज्योतिष के सहारे ही पहुंचा है। ज्योतिष
को मानने वाले न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया भर में हैं। विकसित और
वैज्ञानिक रूप से जीवन जीने वाले अमेरिकी भी ज्योतिष को मानते हैं।
अमेरिका में हुए एक मतदान में 31% अमेरिकियों ने ज्योतिष पर विश्वास
जताया था, साथ ही 39% अमेरिकियों ने ज्योतिष को वैज्ञानिक भी माना था।
भारत में ज्योतिष को मानने वालों की आज भी बड़ी संख्या है, लेकिन ज्योतिष
के जानकार अब कम हैं, जिससे ज्योतिष के नाम पर अधिकांश लोग आम जनता के
विश्वास के साथ खिलवाड़ करते नजर आ रहे हैं। ज्योतिष की जानकारी के अभाव
में लोगों को सवालों के सटीक जवाब नहीं मिल पाते, जिससे उनका विश्वास
डगमगा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के ज्ञाता को ‘‘दैवज्ञ‘‘ के नाम से भी जाना जाता है।
दैवज्ञ दो शब्दों से मिलकर बना है। दैव व अज्ञ। दैव का अर्थ होता है
भाग्य और अज्ञ का अर्थ होता है जानने वाला, अर्थात् भाग्य को जानने वाले
को दैवज्ञ कहते हैं। वाराह मिहिर ने वाराह संहिता में दैवज्ञ के संबंध
में लिखा है कि एक दैवज्ञ का आंतरिक व बाह्य व्यक्तित्व सर्वर्था उदात,
महनीय, दर्शनीय व अनुकरणीय होना चाहिये। शांत, विद्या विनय से संपन्न,
शास्त्र के प्रति समर्पित, परोपकारी, जितेन्द्रीय, वचन पालक, सत्यवादी,
सत्चरित्र, आस्तिक व परनिन्दा विमुख होना चाहिये। वास्तविक दैवज्ञ को
ज्योतिष के तीनों स्कन्धों का ज्ञान होना चाहिए। अगर, शास्त्र की बात
करें, तो ऐसे ज्योतिषी आज कल खोज पाना भी मुश्किल हैं, लेकिन जानकार न
होने का अर्थ यह नहीं हो जाता कि ज्योतिष निरर्थक, अथवा अन्धविश्वास है।
यूं तो कई जन्मों के कर्म और फल के आधार पर ज्योतिष चलता है, लेकिन
वर्तमान जीवन की बात करें, तो माँ के गर्भ में शिशु पर गुरुत्वाकर्ष और
नक्षत्र आदि का प्रभाव नहीं पड़ता। जन्म के बाद शिशु वातावरण में आता है,
तभी उस पर ग्रहों व नक्षत्रों का प्रभाव पड़ता है, उसी क्षण शिशु की
प्रकृति व भविष्य निश्चित हो जाता है। जन्मकाल के अनुसार ही शिशु पर
ग्रहों व राशियों की गति का प्रभाव पड़ना शुरू हो जाता है, जो जीवन
पर्यन्त रहता है। जन्म समय के आधार पर कुंडली चक्र बनता है, जिसके द्वारा
भविष्य काल की स्थिति का ज्ञान हो जाता है। स्थानीय स्पष्टकाल को इष्टकाल
कहते हैं। इष्टकाल में जो राशि पूर्व क्षितिज में होती है, उसे लग्न कहते
हैं। जिस भाव में जो राशि हो, उसका स्वामी उस भाव का स्वामी होता है। एक
ग्रह राशि चक्र पर विभिन्न प्रकार से किरणें फेंकता है। कुंडली में ग्रह
की दृष्टि भी पूरी, या कम मानी जाती है।  जिस स्थान पर ग्रह का अत्यधिक
प्रभाव रखता है, उसे उच्च तथा उससे सातवें भाव को उसका नीच कहते हैं।
किसी-किसी कुंडली में सूर्य के करीब वाले ग्रह दिखाई नहीं पड़ते, उन्हें
अस्त माना जाता है, अर्थात प्रभावहीन। कुल मिला कर ज्योतिष एक गणित पर
आधारित विधा है, जिसके परिणाम सटीक आते हैं। ज्योतिष लगभग हर देश और हर
धर्म के अनुयायी मानते हैं। भारत के अलावा समय की गणना सिर्फ चन्द्रमा,
या सिर्फ सूर्य से करते हैं, इसलिए उनकी भविष्यवाणी सटीक नहीं बैठतीं,
लेकिन भारतीय ज्योतिष में सूर्य और चन्द्रमा दोनों को मिला कर समय की
गणना की जाती है, जिससे विदेशी भी भारतीय ज्योतिष को ज्यादा सटीक मानने
लगे हैं। ज्योतिष प्राचीन और महत्वपूर्ण विधा है, जो अज्ञानता के अभाव
में अंधविश्वास का रूप लेती जा रही है, साथ ही लुप्त होने की अवस्था में
है, इसलिए सरकार को इस ओर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। ज्योतिष को
शिक्षा में पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना चाहिए, ताकि लोग अंधविश्वास से बच
सकें।





9.8.15

सुप्रसिद्ध सरोद वादक देबस्मिता बालभवन जबलपुर में



देबस्मिता जी के ट्विटस बच्चों के लिए 
सिटी भास्कर ने 5 अगस्त 2015 के अंक में

छापी प्रमुखता से खबर    
हितवाद भी पीछे न था 
देबस्मिता मशहूर सरोद वादक दिनांक 5 अगस्त 2015 को  स्पिकमैके, जबलपुर चैप्टर के साथ   बालभवन के लिए किये गए साझा संकल्प के तहत बालभवन के बच्चों से मिलीं . बच्चों से मिलकर देबस्मिता का उत्साह बढ़ गया . बालभवन के बच्चों को ज़रुरत भी है ऐसे  कलाकारों से मिलने की जो ये बताएं कि उनकी कला साधना कैसे निखरी . ?

मुझसे उनकी मुलाक़ात ट्वीटर पर हुई उन्हौने कहा प्रभावित हैं वे हमारे नन्हे कला साधकों से

हम आभारी हैं  स्पिकमैके, जबलपुर चैप्टर के





youtube पर सुनिए देबस्मिता जी का सरोद वादन 

आज का मीडिया तेज़ और कटीला है किसी को नहीं छोड़ता

खुद को आत्मिक संवाद के लिए अवसर देना ही चाहिए .... खुद को अगर आप ने खुद को ऐसा अवसर न दिया तो तय है कि आप स्वयं को शुचिता न दे पाएंगें .खुद को पावन करने का सबसे आसान तरीका है आत्म-विश्लेषण करने वालों को न तो किसी प्रीचर की ज़रुरत होती न ही आध्यात्म के नाम पर आडम्बर कर  रहे पाखण्ड के पुरोधाओं की . 
आत्मअन्वेषण के लिए कोई चढ़ावा देना किसी का पिछलग्गू नहीं बना होता हम अगर ऐसा करते हैं तो पठित मूर्ख हैं . जन्म एक अदभुत घटना है तो तो मृत्यु उससे अनुपम उपहार . इन दौनों घटनाओं के बीच के "जीवन" को संवारने की कोशिश में हम फंस जाते हैं तिलिस्म फैलाने वालों के दुश्चक्र में . जहां धन,समय,श्रम, खर्च कर एक कल्ट में समा जाते हैं. बहुत देर बाद पता चलता है कि जिसे हमने अपने आप को शुचिता पूर्ण बनाने का दायित्व सौंपा था वो एक व्यापारी है . तो स्थिति भिन्न होती है . हम न किसी से कुछ कह पाते किसी की सुनने में भी हमको शर्मिन्दगी होती है. आज का मीडिया तेज़ और कटीला है किसी को नहीं छोड़ता न आसाराम को न राधे को सब कुछ शीघ्र साफ़ हो जाता है . तब आप जो किसी के अनुयाई होते हैं स्तब्ध और स्पीचलैस हो जाते हैं .  आत्म-विश्लेषण कर शुचिता की ओर  एक एक कदम बढायें. 

वर्तमान की भौतिकवादी मीडिया -डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी

[ इस आलेख में प्रस्तुत विचार लेखक के हैं जिसे बिना संपादित किये मूल-रूप से प्रस्तुत किया जा रहा है ]
                              मीडिया जगत से जुड़े लोग कुछ उस तरह के हो गए हैं जैसे पुराने समय में एक राज्य का महामंत्री। शायद इस कहानी को अधिकाँश लोग नहीं सुने होंगे। उस कहानी का सार यहाँ प्रस्तुत करना आवश्यक हो गया है। कहानी के अनुसार उक्त राज्य में अकाल पड़ गया था प्रजा में त्राहि-त्राहि मची थी। यह बात राजा के कानो तक नहीं पहुँची थी। राजा जब भीं भरी सभा में अपने खास महामंत्री से पूछता कि बताओ राज्य की प्रजा का क्या हाल है? तब महामंत्री उत्तर देता कि हे राजन, राज्य में दूध घी की नदियाँ बह रही हैं प्रजा खुशहाल है।
                           इसके बावजूद राजा को गुप्तचरों ने राज्य में अकालकी जो विभीषिका प्रस्तुत किया उससे राजा का मन विचलित हो गया। मुलतः वह एक दिन अचानक अपने खास गुप्तचरों के साथ राज्य भ्रमण पर निकल पड़ा। हालात जो दिखाई दिए उससे राजाको अन्दर ही अन्दर महामंत्री के मिथ्या और भ्रामक संवाद से क्रोध भी आया। दूसरे दिन भरी सभा में राजा ने फरमान जारी कर दिया कि महामंत्री जो राजकीय सुख-सुविधाएँ प्रदान की गई हैं वह वापस ली जाएँ। राजा के हुक्म की तामील हुई और महामंत्री को प्रदत्त सभी राजकीय सुविधाएँ वापस ले ली गईं।
दरबार बैठता है। राजा ने महामंत्री से पूछाँ अब बताओ राज्य में कैसा चल रहा है .....? महामंत्री ने कहा सरकार अवर्षण से सूखा पड़ गया है। राज्य में दुर्भिक्ष आ गया है। नदी नाले सूख गए हैं, प्रजा भूखो मर रही है। सर्वत्र त्राहि-त्राहि मची है। महामंत्री के इस उद्बोधन से उपस्थित सभा सदों को घोर आश्चर्य हुआ लेकिन राजा खामोश था। क्योंकि वह जानता था कि महामंत्री को इस बात का एहसास तब हुआ जब उनकी सभी राजकीय सुविधाएँ वापस ले ली गई थी। राजा ने तत्काल आदेश जारी किया कि महामंत्री अविलम्ब राज्य की प्रजा का ध्यान दें और हरहाल में जनता को कोषागार से धन निकालकर जीने के लिए समस्त सुविधाएँ मुहैया कराई जाएँं।
                             ठीक उसी तरह से अब मीडिया और उससे जुड़े स्वार्थी तत्व कृत्य करने लगे हैं जैसे उस राज्य का महामंत्री कर रहा था। मसलन पेड न्यूज का प्रकाशन/प्रसारण वह भी अच्छी-खासी कीमत के एवज में ये लोग करने लगे हैं। अवाम की चिन्ता नहीं है। ये स्वंय सुख-सुविधा संपन्न हैं इसलिए इनको सुविधाएं मुहैया कराने वालों की फिक्र ज्यादा रहती है। विधुत संकट, किसानों में सिंचाई के लिए पानी का संकट और अन्य कष्टोंें का प्रकाशन तभी होता है जब इनके पृष्ठों में खबरों का अकाल रहता है।
                                                  मीडिया स्वार्थपूर्ति हेतु संघर्ष समिति के रूप में कार्य करने लगी है, ऐसा देखा, पढ़ा और महसूस किया जा सकता है। अकबर इलाहाबादी का शेर याद आने लगा है- न तीर निकालो-न तलवार निकालो, गर दुश्मन हो मुकाबिल तो अखबार निकालो। अकबर साहेब ने यह उस जमाने में कहा था जब मीडिया का एक ही स्वरूप प्रचलित था वह था अखबार (प्रिण्ट)। अब तो प्रिण्ट इलेक्ट्रॉनिक और वेब मीडिया का जमाना चल रहा है। बहरहाल कुछ भी हो इस समय मनी/मीडिया/माफिया का गठजोड़ कायम है। ऐसी स्थिति में मीडिया और इससे सम्बद्ध लोगों को अवाम की पीड़ा का एहसास नहीं हो रहा है। ज्यादा क्या लिखूँ/कहूँ आप सब समझदार हैं और समझदार के लिए इशारा ही काफी होता है।
-डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी

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