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पुरस्कृत होकर प्रसन्न हुए बालभवन जबलपुर के बच्चे

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म.प्र. प्रदूषण बोर्ड जबलपुर , हिन्दुस्तान इको सॉफ्ट  जबलपुर एवं संभागीय बाल भवन जबलपुर द्वारा पर्यावरण दिवस पर चित्रकला प्रतियोगिता का पुरस्कार वितरण समारोह शुभारम्भ दीप प्रज्जवल एवं शिप्रा सुल्लेरे के संगीत निर्देशन में बालभवन के  बच्चों द्वारा पर्यावरण गीत  से हुआ । कार्यक्रम  के मुख्य अतिथि श्री एच. के. शर्मा संयुक्त संचालक , एकीकृत बाल विकास सेवाएं , जबलपुर तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता  श्री व्ही के अहिरवार , वरिष्ठ अधीक्षण अभियन्ता , म.प्र.प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ( भोपाल ) रहे ।  संभागीय उपंसचालक श्रीमती मनीषा लुम्बा (महिला  सशक्त्किरण) एवं क्षेत्रीय समन्वयक , महिला संसाधन केन्द्र , जबलपुर श्रीमती शालिनी तिवारी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थिति थीं ।                                      मुख्य अतिथि श्री एच. के. शर्मा सयुक्त संचालक ने कहा कि बाल भवन द्वारा सामाजिक एवं ज्वलंत मुद्दों पर जो कार्य किया जा रहा है इसकी जितनी तारीफ की जावे कम है उससे अधिक तारीफ प्रशंसा उनकी करना होगी जो स्पर्धा में शामिल होते हैं . अपनी अभिव्यक्ति में राष्ट्रीय बालश्री  पुरस्कार हेतु चयनित शुभमराज अ

“क्यों नहीं कर पा रहे हैं भारतीय पूंजी निर्माण”

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        भारत जिन मौलिक समस्याओं से जूझ रहा है उसमें सबसे आगे रखना चाहूंगा भारतीयों की पूंजी निर्माण की गति में कमी . भारतीय औसतन सार्वजनिक सोच वाला होता है . उसे अपने अलावा परिवार, कुटुंब, आस-पड़ोस, समाज सबके बारे में सोचना होता है .  उसकी उत्सव प्रियता को कोई प्रतिबंधित करे कदापि स्वीकार्य नहीं . उत्सव एवं मुदिता के मुद्दों पर उसे धन खर्चना सर्वाधिक पसंद है . अवकाश भी उसे निरंतर ज़रूरी होते हैं पर सामान्य रूप से अपेक्षाकृत अधिक कर्मठ होने के गुण एवं तीव्र उत्पादन  क्षमता के कारण भारतीय व्यक्ति कभी पराजित नहीं होता . जब वो पूंजी बनाने के लिए आमादा हो जाता है तो शुद्ध रूप से कर्मठता के सहारे  जीतता है आगे बढ़ता है समृद्धि के करीब जाता है .. समृद्ध भी होता है इसके कई उदाहरण हैं . जिनका यहाँ ज़िक्र तुरंत करना आवश्यक नहीं है . संक्षेप में यह संकेत है कि भारतीय अगर पूंजी-निर्माता हो जाए तो तय है कि उसकी उद्यमिता उसे आगे ले जाने में सहायक होगी . किन्तु पूंजी निर्माण की अपनी बाधाएं हैं रोज़ रोज़ मूल्यों में अस्थिरता भारतीयों को पूंजी निर्माण से रोक रही है . फिर कराधान एवं लाभ के व्यापारि

नदियों के घाटों पर महिलाओं की सुरक्षा : कुछ सुझाव

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नदियों  के तटों पर  परिवार सहित भक्त जन  भक्ति भाव से   आते हैं अपने बेटे   बेटियों बहुओं महिलाओं के साथ . कल शाम ग्वारीघाट पर आध्यामिक भ्रमण के दौरान मैंने भी स्नान किया देखा जहां महिलाएं स्नान कर रहीं थीं वहां शोहदे टाइप के लोग अधिक सक्रीय थे . बाकायदा अपने सेलफोन से फोटोग्राफी में मशगूल भी थे.           कुछ परिवारों ने विरोध भी जताया जो जायज था . भद्र मीडिया जिताना समय और स्पेस सनी लियोनी को अथवा सियासत को दे रहा है उससे आधा समय भी दे दे तो महिलाओं के खिलाफ होते इस सामाजिक नज़रिए को  बदला जा सकता है.  मेरी तस्वीर को देखिये क्या मैंने ग़दर फिल्म में काम किया है ?           न्यू-मीडिया एरा  में सबसे फास्ट-इन्फार्मेशन स्प्रेड करने वाले सारे संसाधन मौजूद  हैं . पलक झपकते ही  आप की तस्वीर कहाँ जाएगी इस बात का आपको गुमान भी नहीं  हो पाता. फिर आपकी तस्वीर को सेलफोन पर मौजूद सॉफ्टवेयर के ज़रिये क्या से क्या बनाया जा सकता है इस बात का तो अंदाजा कोई भी नहीं लगा सकता . मेरी तस्वीर को देखिये क्या मैंने ग़दर फिल्म में काम किया है ... न फिर भी हीरो की ज़गह मेरी तस्वीर चस्पा है ... ये सॉफ्

हीट स्ट्रोक के मामलों में इज़ाफ़ा, एहतियात बरतने की सलाह :सरफ़राज़ ख़ान

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भीषण गर्मी के कारण देश में हीट स्ट्रोक के मामलों में इज़ाफ़ा हो रहा है. हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने गर्मी में मरीजों द्वारा की जाने वाली गलतियों और प्रबंध के बारे में दिशा-निर्देश जारी किए हैं. हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल   के मुताबिक़ हीट स्ट्रोक दो तरह के होते हैं। पहला , वे जो युवा काफ़ी समय तक गर्मी के दौरान मेहनत वाले काम में संलिप्त होते हैं , हीट स्ट्रोक के षिकार होते हैं. हालांकि नॉन एक्जरशनल हीट स्ट्रोक कम सक्रिय रहने वाले वृध्दों या ऐसे लोगों पर अधिक असर डालती है जो बीमार होते हैं या कम उम्र वाले बच्चों में होती हैं. अगर इस पर समय पर ध्यान नहीं दिया जाए तो सैकड़ों लोग 72 घंटों में जान गंवा सकते हैं. अगर उपचार में देरी हुई तो मृत्यु की संभावना 80 फ़ीसदी तक होती है , इसमें भी दस फ़ीसदी की कमी की जा सकती है अगर संभावित गलतियों से बचा जाए व जल्द ज़रूरी उपाय कर लिए जाएं। बीमारी का पता न लगा पाना : यह रेक्टल तापमान है जो कि एग्जिलरी या ओरल तापमान से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है। व्यक्ति को हीट स्ट्रोक हो सकता है जिसमें उपचार न करा पाने की

फास्ट एरा बनाम फेसबुक, टिवटर और व्हाट्सएप : डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी

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समीक्षक का काम टिप्पणी करना होता है। उसकी समझ से वह जो भी कर रहा है , ठीक ही है। मैं यह कत्तई नहीं मान सकता , क्योंकि टिप्पणियाँ कई तरह की होती हैं। कुछेक लोग उसे पसन्द करते हैं , बहुतेरे नकार देते हैं। पसन्द और नापसन्द करना यह समीक्षकों की टिप्पणियाँ पढ़ने वालों पर निर्भर हैं। बहरहाल कुछ भी हो आजकल स्वतंत्र पत्रकार बनकर टिप्पणियाँ करने वालों की संख्या में वृद्धि हुई हैं , जिनमें कुछ नए हैं तो बहुत से वरिष्ठ (उम्र के लिहाज से) होते हैं। 21 वीं सदी फास्ट एरा कही जाती है , इस जमाने में सतही लेखन को बड़े चाव से पढ़ा जाता हैं। बेहतर यह है कि वही लिखा जाये जो पाठको को पसन्द हो! आकरण अपनी विद्वता कर परिचय देना सर्वथा उपयुक्त नहीं हैं। चार दशक से ऊपर की अवधि में मैने भी सामयिकी लिखने में अनेकों बार रूचि दिखाई , परिणाम यह होता रहा कि पाठकों के पत्र आ जाते थे , वे लोग स्पष्ट कहते थे कि मैं अपनी मौलिकता न खोऊँ। तात्पर्य यह कि वही लिखूँ जिसे हर वर्ग का पाठक सहज ग्रहण कर ले। जब जब लेखक साहित्यकार बनने की कोशिश करता है , वह नकार दिया जाता है। जिसे साहित्य ही पढ़ना होगा , वह अखबार/पोर्टल क्यों सब्

रेवा तट के बच्चे

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माँ रेवा देती है इनको नारियल चुनरी .. फोटो:- तिलवाराघाट , जबलपुर  भेडाघाट के धुआंधार पर यूं तो बरसों से सुनाई देती आवाज़ कि     सा ' ब चौअन्नी मैको हम निकाल हैं. . .!!  अब फ़र्क ये है कि बच्चे अब दस रूपए की मांग करते हैं भगत लोग बड़े दिलदार हैं दस का तो क्या पचार रूपए का सिक्का धुंआधार में फैंकने में आनाकानी  नहीं करते करें भी क्यों परसाई दद्दा वाली अफीम जो दबा रखी है . टुन्न हैं टुन्न और टुन्नी में (ठेठ जबलईपुरी मेंकहूं तो ये कहूंगा ..सा'ब... सब चलत है वोट.... रेप.... लड़ाई....... झगड़ा .... हओ...! सब कछु  ....!!  गलत तौ है मनो चलत है .   हमारा नज़रिया गरीबों के लिए साफ़ तौर पर सामाजिक कम धार्मिक अधिक होता है . जिसके चलते बच्चे दस-पांच रुपयों के पीछे दिन भर नर्मदा तटों पर लहरों से गलबहियां करते हुए गोताखोरी किया करते हैं . चाहे ग्वारीघाट वाले ढीमर-कहारों के बच्चे हों या तिलवारा के पटेलों के ... सब जन्म के बाद बड़े होते हैं फिर नदी को पढ़ते हैं तट पर खेलते हैं . अनुशासित पाठ्यक्रम से दूर  का नाम है....? गुलाब..... स्कूल ........ छुट्टी चल रई है ... स्कूल में नाम लिखो ह

पोट्रेट्स

  अक्सर उसे किसी न किसी को अपमानित करते अथवा किसी की चुगली करते देखना लोंगों का अभ्यास सा बन गया था .   सुबह दोपहर शाम निंदा और चुगलियाँ करना   उसके जीवन का मौलिक उद्देश्य था . कई लोगों ने कई बार सोचा कि उसे नसीहत दी जावे पर इस प्रकार का काम करने का लोग जोखिम इस वज़ह से नहीं उठाना चाहते क्योंकि वे जानते हैं कि अति के दुःखद परिणामों का आना निश्चित ही होता है .   संस्थानों में ऐसे दुश्चरित्रों से लोग बाकायदा सुविधाजनक अंतराल स्थापित कर ही लेते हैं . करना भी चाहिए नगर निगम की नालियों से बहने वाली गन्दगी में कोई पत्थर फैंक कर अपने वस्त्र क्यों खराब करे ..भला  !   समय के साथ साथ फतेहचंद का चेहरा  गुणानुरूप विकृत सा दिखाई देने लगा था सामने से टूटे हुए दांत ये साबित कर रहे थे कि बाह्य शारीरिक बल के प्रयोग से यह बदलाव आया है . ये लग बात है कि उसे किस रूप में परिभाषित किया जा रहा था किन्तु ज्ञान सभी को था . फिर भी बुद्धि चातुर्य के सहारे फ़तेह अक्सर अपनी मजिल फतह कर ही लेता था . मित्रो किसी ने उसे सुझाया कि वो एक बेहतरीन विश्लेषक है तो क्यों नहीं चित्रकारी करे लोगों को पोट्रेट करे