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खुला खत : विषधर मित्र के नाम

 प्रिय अभिन्न मित्र विषधर जी                          मधुर-स्मृतियाँ      प्रिय तुमने जबसे मेरी आस्तीन छोड़ी तबसे मुझे अकेलापन खाए जा रहा है । तुम क्या जानो तुम्हारे बिना मुझे ये अकेला पन कितना सालता है । हर कोई ऐरा-गैरा केंचुआ भी डरा देता है।भैये.....साफ-साफ सुन लो- "दुनियाँ में तुम से बड़े वाले हैं खुले आम घूम रहें हैं तुम्हारा तो विष वमन का एक अनुशासन है इनका.... ?"               जिनका कोई अनुशासन है ही नहीं , यार शहर में गाँव में गली में कूचों में जितना भी विष फैला है , धर्म-स्थल पे , कार्य स्थल पे , और-तो-और सीमा पार से ये बड़े वाले लगातार विष उगलतें हैं....मित्र मैं इसी लिए केवल तुमसे संबंध बनाए रखना चाहता हूँ ताकि मेरे शरीर में प्रतिरक्षक-तत्व उत्पन्न   विकसित हो सके. जीवन भर तुम्हारे साथ रह कर कम से कम मुझे इन सपोलों को प्रतिकारात्मक फुंकारने का अभ्यास तो हों ही गया है।भाई मुझे छोड़ के कहीं बाहर मत जाना । तुम्हें मेरे अलावा कोई नहीं बचा सकता मेरी आस्तीनों में मैनें कईयों को महफूज़ रखा है। तुम मेरी आस्तीन छोड़ के अब कहीं न जाना भाई.... ।             देखो न आज़

विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2011 सबसे प्रभावी किन्तु विकलांगों की पकड़ से दूर

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              विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2011 सबसे प्रभावी किन्तु विकलांगों की पकड़ से दूर है जिसका मूल कारण विकलांगता से ग्रसित व्यक्ति इस कानून से अनभिज्ञ है । आज भी विकलांगों के प्रति सकारात्मक भाव रखने वालों का प्रतिशत अपेक्षाकृत कम ही है ।   साथ ही विकलांगों को स्वयं भी   विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2011 की जानकारी कम ही है । यह अधिनियम   विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों को अधिकारों के संरक्षण , एवं उनके हनन के लिए विधिसम्मत   समस्त उपचारों की व्याख्या करता है । अपवादों के अलावा भारतीय कानून विश्व के सबसे पारदर्शी एवं सहज एवं बोधगम्य कानून कहे जाते हैं । किन्तु इनसे अधिकतम दस या बीस फीसदी   लोग वाकिफ होते हैं ये हमारी विधिक साक्षरता एवं स्वाधिकारों के प्रति जागरूकता का जीवंत उदाहरण । वास्तविकता यह भी है भारत के आम नागरिक का अधिकतम वक्त अनावश्यक अथवा कम महत्वपूर्ण   विषयों पर जाया होता है । बहरहाल विकलांग व्यक्तियों के लिए बने "विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2011"     भारत ने विकलांगता ग्रसित व्यक्तियों के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र के समझौत

तो कैसे बनेंगी बेटियाँ स्त्रीशक्ति ? :- -रीता विश्वकर्मा

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यहाँ पूर्व प्राप्त तीन संवादों पर अपनी टिप्पणी दे ही रहे थे कि इसी बीच उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद में तीन लड़कियों की निर्मम हत्या काण्ड का समाचार मिलते ही मनःस्थिति असामान्य हो गई। यहाँ बता दें कि देवरिया जिले के बरहज थाना क्षेत्र में बीते शनिवार को एक साथ तीन लड़कियों के शव बरामद हुए थे। मृत लड़कियों की उम्र 18, 14 व 9 वर्ष थी। हालांकि इस तीहरे हत्याकाण्ड में संलिप्त दो लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, शेष दो की तलाश की जा रही है। इस प्रकरण में बताया गया है कि उक्त तिहरे हत्याकाण्ड की मूल वजह मुख्य हत्यारोपी का एकतरफा प्यार बताई गई है। तीनों मृतक किशोरियाँ एक ही गाँव की रहने वाली सहेलियाँ थीं। बरहज क्षेत्र के ग्राम पैना के रहने वाले धीरज गौड़ नामक एक युवक के बुलाने पर गाँव के बाहर स्थित खोह नाले के पास गई थी, जहाँ चार दरिन्दों ने बेरहमी से उनकी गला रेतकर हत्या कर दिया। इस घटना का मुख्य हत्यारोपी सोनू हरिजन नामक एक युवक बताया गया है, जिसने होली के दिन 18 वर्षीया युवती को रंग लगाने की कोशिश किया था, जिसका उक्त किशोरी ने विरोध किया था। इसे लेकर सोनू के साथ उसकी काफी

कौन है किलर झपाटा किधर गया किलर झपाटा

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              हिन्दी ब्लागिंग के   स्वर्णकाल कहे गए दौर में एक ऐसा चरित्र भी सक्रिय  था  जिसकी हर किसी से कहा-सुनी खुले आप हो जाया करती थी जिसका नाम है " किलर-झपाटा " ।            किलर झपाटे  के झापड़ कब किसे पड़ जाएँ किसी को जानकारी नहीं होती थी । ऐसा नहीं कि किलर झपाटा किसी से भी उलझता था पर उलझता अवश्य ही था । किसी भी ब्लाग लेखक से खूता मोल तब तक न लिया जाता था जब तक उसे लगता था कि उसका लेखन सार्थक है ज़रा भी बेसऊर  लेखन दिखा तो भाई टिपिया आते थे मातृ-भगनी अलंकरण से भी पीछे नहीं रहते ।           किलर झपाटा के बहाने बता दूँ कि उस दौर में खोमचे बाजी शिखर पर थी टांग खिंचाई , आलेख की प्रतिक्रिया स्वरूप प्रति लेखन देख कर लगता था कि नेट पर नेटिया साहित्य समाज में एक महान  क्रान्ति को जनने (जन्म देने ) वाला है ।   हिन्दी में  ब्लागिंग में दो सूत्र  बड़े अहम  थे एक - इग्नोर करो ... दूसरा - मौज लीजिये ..... जो इन अहम सूत्रों में से किसी एक का भी पालन करते  थे हमेशा  खुश रहते थे ...... जिसने अपनी अपनी चलाई उसका रूमाल महफूज बाबा के रूमाल की तरह सदा गीला ही रहता था ।   चलि