29.10.14

रेहाना को भावपूर्ण श्रृद्धांजलियां "ॐ शांति शांति शांति "

    रेहाना जब्बारी  गुनाह को उनके क़ानून ने 25 अक्टूबर 2014  को सज़ा-ए-मौत दे दी. इसका अर्थ साफ़ है कि न तो वे न ही उनकी अदालतें किसी सूरत में औरतों के अनुकूल नहीं हैं.  औरत के खिलाफ़ किसी भी देश का क़ानून ही हो तो उस देश में न तो औरतें सामाजिक तौर पर महफ़ूज़ हैं और न ही उस देश को मानवता का संरक्षक माना जा सकता. क़ानून और न्याय व्यवस्था केवल अपराध के खिलाफ़ हों ये सामान्य सिद्धांत हैं. किंतु  रेहाना जब्बारी के खिलाफ़ हुए फ़ैसला देते हुए न्यायाधीश ने साबित कर दिया कि यदि उसे अपनी जननी या बहन बेटी के खिलाफ़ ऐसे मामले की सुनवाई करनी हो तो वो उनके खिलाफ़ भी कुछ इसी तरह का न ठीक यही फ़ैसला देगा. भारतीय सामाजिक व्यवस्था इससे इतर मानवता की पोषक है तभी यहां के क़ानून न तो नस्ल आधारित हैं, न ही किसी लिंगभेद को बढ़ावा दे रहे हैं. रेहाना की कहानी आप जानते ही हैं. एक जासूस अब्दोआली सरबंदी  ने उन पर यौनाक्रमण किया रेहाना ने रसोई के चाकू से इस आक्रमण से बचाव के लिये वार किया और कामांध सरकारी जासूस मर गया.
  हम आप रेहाना के इस क़दम के कायल हैं. वास्तव में यह कोई हत्या न थी. आत्मरक्षा के प्रयास के फ़लस्वरूप एक व्यक्ति की जान जाना आत्मरक्षक का अपराध नहीं.  इस तरह के कार्य को सनातनी एवम अन्य सहिष्णु समूह एवम समाज  पूजन योग्य मानते हैं.. जबकि असहिष्णु समूह और समाज की नज़र में यह एक अपराध है. मेरा मत है कि "विक्टिम नेवर क्रिमिनल " वो जो भी करता है समय की ज़रूरत के मुताबिक करता है. रेहाना ने चंडिका का रूप लिया और जो भी किया सही किया. रेहाना ताउम्र किसी काक्रोच को भी मारने से संकोच करती थी उसने हत्या की भी है तो हत्या इस कारण नहीं मानी जा सकती क्योंकि वो किसी आसन्न आक्रमण को रोक रही थी. ठीक वैसे ही जैसे किसी मोटे मज़बूत बुलेट-प्रूफ़ सी कांच की दीवार को पूरे आवेग से आप पार करने की कोशिश करते हैं. और चोटिल हो जा गिरते हैं. अस्तु आप का रक्षा कवच से टकरा कर चोटिल हो जाना कवज़ को अपराधी साबित नहीं कर सकता अल्प बुद्धि न्यायाधीश के दिमाग़ में कितनी अक्ल है.. और उस देश के बीमार क़ानून को बनाने वाले की क्या दशा है आप समझ सकते हैं. जो भी हो समाज के ग़रीब, कमज़ोर, तबकों को जिस देश का क़ानून संरक्षण न दे सके उस देश में ऐसी रेहानाएं अक्सर सुपुर्दे-खाक होती रहेंगी ये तय है.  रेहाना को भावपूर्ण श्रृद्धांजलियां "ॐ शांति शांति शांति "    
रेहाना ने अपनी मां को लिखा था ये खत मरने से पहले जो इस बात का सबूत है कि वि बेशक आध्यात्मिक नारी थी हिंसक न थी उसने काक्रोच भी नहीं मारा .. पर यह भी साबित हुआ कि कई देश और उनकी  अदालतें आज़ भी मानवता विरोधी हैं 
{पत्र :भारत टाइम्स से साभार}  
री प्रिय मां, 

आज मुझे पता चला कि मुझे किस्सास (ईरानी विधि व्यवस्था में प्रतिकार का कानून) का सामना करना पड़ेगा। मुझे यह जानकर बहुत बुरा लग रहा है कि आखिर तुम क्यों नहीं अपने आपको यह समझा पा रही हो कि मैं अपनी जिंदगी के आखिरी पन्ने तक पहुंच चुकी हूं। तुम जानती हो कि तुम्हारी उदासी मुझे कितना शर्मिंदा करती है? तुम क्यों नहीं मुझे तुम्हारे और पापा के हाथों को चूमने का एक मौका देती हो?

मां, इस दुनिया ने मुझे 19 साल जीने का मौका दिया। उस मनहूस रात को मेरी हत्या हो जानी चाहिए थी। मेरा शव शहर के किसी कोने में फेंक दिया गया होता और फिर पुलिस तुम्हें मेरे शव को पहचानने के लिए लाती और तुम्हें पता चलता कि हत्या से पहले मेरा रेप भी हुआ था। मेरा हत्यारा कभी भी पकड़ में नहीं आता क्योंकि हमारे पास उसके जैसी ना ही दौलत है, ना ही ताकत। उसके बाद तुम कुछ साल इसी पीड़ा और शर्मिंदगी में गुजार लेती और फिर इसी पीड़ा में तुम मर भी जाती। लेकिन, किसी श्राप की वजह से ऐसा नहीं हुआ। मेरा शव तब फेंका नहीं गया। लेकिन, इविन जेल के सिंगल वॉर्ड स्थित कब्र और अब कब्रनुमा शहरे रे जेल में यही हो रहा है। इसे ही मेरी किस्मत समझो और इसका दोष किसी पर मत मढ़ो। तुम बहुत अच्छी तरह जानती हो कि मृत्यु जीवन का अंत नहीं होती।


तुमने ही कहा था कि आदमी को मरते दम तक अपने मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए। मां, जब मुझे एक हत्यारिन के रूप में कोर्ट में पेश किया गया तब भी मैंने एक आंसू नहीं बहाया। मैंने अपनी जिंदगी की भीख नहीं मांगी। मैं चिल्लाना चाहती थी लेकिन ऐसा नहीं किया क्योंकि मुझे कानून पर पूरा भरोसा था।'

मां, तुम जानती हो कि मैंने कभी एक मच्छर भी नहीं मारा। मैं कॉकरोच को मारने की जगह उसकी मूंछ पकड़कर उसे बाहर फेंक आया करती थी। लेकिन अब मुझे सोच-समझकर हत्या किए जाने का अपराधी बताया जा रहा है। वे लोग कितने आशावादी हैं जिन्होंने जजों से न्याय की उम्मीद की थी! तुम जो सुन रही हो कृपया उसके लिए मत रोओ। पहले ही दिन से मुझे पुलिस ऑफिस में एक बुजुर्ग अविवाहित एजेंट मेरे स्टाइलिश नाखून के लिए मारते-पीटते हैं। मुझे पता है कि अभी सुंदरता की कद्र नहीं है। चेहरे की सुंदरता, विचारों और आरजूओं की सुंदरता, सुंदर लिखावट, आंखों और नजरिए की सुंदरता और यहां तक कि मीठी आवाज की सुंदरता।
मेरी प्रिय मां, मेरी विचारधारा बदल गई है। लेकिन, तुम इसकी जिम्मेदार नहीं हो। मेरे शब्दों का अंत नहीं और मैंने किसी को सबकुछ लिखकर दे दिया है ताकि अगर तुम्हारी जानकारी के बिना और तुम्हारी गैर-मौजूदगी में मुझे फांसी दे दी जाए, तो यह तुम्हें दे दिया जाए। मैंने अपनी विरासत के तौर पर तुम्हारे लिए कई हस्तलिखित दस्तावेज छोड़ रखे हैं।
मैं अपनी मौत से पहले तुमसे कुछ कहना चाहती हूं। मां, मैं मिट्टी के अंदर सड़ना नहीं चाहती। मैं अपनी आंखों और जवान दिल को मिट्टी बनने देना नहीं चाहती। इसलिए, प्रार्थना करती हूं कि फांसी के बाद जल्द से जल्द मेरा दिल, मेरी किडनी, मेरी आंखें, हड्डियां और वह सब कुछ जिसका ट्रांसप्लांट हो सकता है, उसे मेरे शरीर से निकाल लिया जाए और इन्हें जरूरतमंद व्यक्ति को गिफ्ट के रूप में दे दिया जाए। मैं नहीं चाहती कि जिसे मेरे अंग दिए जाएं उसे मेरा नाम बताया जाए और वह मेरे लिए प्रार्थना करे।    

28.10.14

पोलिओ-प्रतिरोधक टीके के अविष्कारक जोनस साल्क को नमन

Credit: Image donated by Corbis-Bettmann
explorepahistory
Pioneering research led by Dr. Jonas Salk at
the University of Pittsburgh's Virus Research Laboratory
led to production of the world's first polio vaccine in 1955.
Subsequent inoculations of school children
eradicated polio in the United States by 1962.
जोनास सॉल्क  एक महान उपकारी विषाणु विषेशग्य थे. जिनका जन्म आज यानी 28 अक्टूबर 2014 को न्यूयार्क में हुआ. वे यहूदी अप्रवासी दम्पत्ति की संतान थे. सामान्य शिक्षित माता पिता ने उनको चिकित्सकीय शिक्षा दिलाई . न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में मेडिकल स्कूल में पढ़ते हुए उन्होंने एक चिकित्सक बनने की बजाए चिकित्सा अनुसंधान की ओर कदम बढ़ा कर अपने लिए अलग राह चुनी ।
मित्रो मेरे जन्म यानी 20.11.1963 के ठीक 09 माह बाद मुझे पोलियो हुआ .  जबकि पोलियो रोधक टीके का विकास एवम उसकी प्रस्तुति  12 अप्रेल सन 1955 में अमेरिका के पिट्सबर्ग  में  हो चुकी थी. अर्थात लगभग आठ बरस बाद भी  अमेरिका में विकसित यह टीका आज़ाद भारत में न आ सका था.
सॉल्क ने जब  पोलियो का टीका प्रस्तुत  किया था तब  तब पोलियो की बीमारी  एक विकराल समस्या ले चुकी थी. 1952 तक इस बीमारी से प्रतिवर्ष तीन लाख  लोग प्रभावित और 58 हज़ार लोग औसतन काल का ग्रास बन रहे थे. यह आंकड़ा  अन्य दूसरी संक्रामक बीमारी की तुलना में सबसे अधिक था और भयानक भी. । इनमें से ज्यादातर बच्चे थे। राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट इस बीमारी के सबसे ख्यात शिकार थे, साल्क ने Salk Institute for Biological Studies नाम से  सन  1963 एक संस्थान की स्थापना की जिसका उद्देश्य बीमारियों की रोकथाम के लिये अनुसंधान कर प्रतिरोधकों का विकास करना             23 जून 1995 को 80 वर्ष की उम्र में उनने दुनिया से विदा ली. 

21.10.14

जी हाँ मैं धर्म सापेक्ष हूँ ।

जी हाँ मैं धर्म सापेक्ष हूँ ।
            मेरा धर्म सनातन है शाश्वत सनातन है । वो सनातन इस वज़ह से है क्योंकि उसमें विकल्प  और नए मिश्रण किये जाने योग्य तत्व मौजूद हैं इसी वज़ह से सनातन होकर भी नया नया लगता है । जो रूढीयाँ हैं समयातीत हैं उसे हटाना या परामर्जित करना सम्भव है । धर्म को मैं सामाजिक सांस्कृतिक विधान मानता हूँ । ये मेरे विचार हैं मैं ऐसा सोचता हूँ आपकी सहमति मेरा उत्साहवर्धन कर सकती है तो असहमति मुझे निराश नहीं कर सकेगी बल्कि ताकत देगी कि मैं अपने कथन की पुष्टि के लिए अनुसंधान करूँ मैं बलात समर्थन का पक्षधर नहीं । धर्म के लिए न मैं बन्दूक उठाऊंगा न ही प्रलोभन दूंगा । अगर कोई हिंसा करेंगे तो मानवता की रक्षा के लिए आक्रामक हो सकता हूँ इसे मेरा कट्टर वादी होना साबित न किया जावे । क्योंकि जीव मात्र की रक्षा करना मेरा धार्मिक अधिकार है । तुम जिस धर्म की स्थापना आतंक के सहारे करना चाहते हो उसे मैं भी सम्मान देता हूँ पर तुम्हारे आतंक को नहीं । मैंने यहूदियों के बारे में कुछ जाना है उनकी संस्कृतियों के अंत के घटकों के बारे में सुना है चाहे जो भी हो ग़लत है सुनो बताता हूँ कि सत्य सदैव सनातन है सनातन पथ सर्वे जना सुखिना भवन्तु के दिव्य प्रकाश से दैदीप्यमान है । तुम अपने अबोध बच्चों को विद्वेष मत सिखाओ वरना सर्वे जाना सुखिना भवन्तु का भाव आ ही न सकेगा.
मिर्ज़ा ग़ालिब ने कहा है कि 
                                खुदा के वास्ते परदा ना काबे से उठा ज़ालिम
कहीं ऐसा ना हो याँ भी वही काफ़िर सनम निकले
एक दिव्य सत्य कहा है मिर्ज़ा ने..  बेहतरी इसी में है कि बच्चों को इबादत सिखाओ इबादत जो विनम्र और ज़हीन बनाती है । मुझे भी इबादतगाहों में दिव्यानुभूतियाँ हो चुकीं है मुझे मंदिर में भी वही इहसास मिलता है । बच्चों को बताओ कि  धर्म जो वर्षों से मानवता का पोषक और संरक्षक है उसे सुरक्षित अथवा बचाने असलहे आवश्यक नहीं होते ! तो क्यों ये सब करते हो ?
सोचो सनातन में साम्य भी है लचीलापन भी है । हिंसा नहीं है ।

राम ने केवल मानवता की रक्षा एवं अति भोगवादी असहिष्णु रक्षसंस्कृति से रक्षार्थ युद्ध के लिए युवानर संगठित किये थे फिर युद्ध भी किया था  राम का यह प्रयास  किसी राज्य के अंत के लिए न था । अन्यथा वे लंका को भारत का उपनिवेश बनाते पर उनने द्वि राष्ट्रधर्म का पालन किया वे विभीषण को राजा बना आए । अर्थात सनातन विस्तार को अस्वीकारता है सहअस्तित्व का पोषक है सनातन अजर  है अमर है सार्वकालिक है क्योंकि वो साधने योग्य, समयानुकूलित एवं स्थानानुकूलित है । शायद आप इस बात को स्वीकारेंगे न भी स्वीकारें तो भी मेरे विचार हैं इस पर मेरा नैसर्गिक अधिकार है . 

11.10.14

भूत-प्रेत : बकौल राज भाटिया जी

मित्रो वैज्ञानिक युग में किसी को भी पारा जीवों के अस्तिव पर यकीं नहीं होगा मुझे भी नहीं था राज़ भाटिया की तरह पर उनके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता आज श्री राज दादाजी की आपबीती जो फेस बुक पर उनने भेजी है का प्रकाशन कर रहा हूँ ………राज जी जर्मनी में रहते है उनके ब्लॉग निम्नानुसार हैं

भूत प्रेत, आत्मा वगैरा को मै नहीं मानता था,लेकिन एक हादसा ऎसा हुआ कि आत्मा को मानने लगा, भूत प्रेत के बारे तो पता नही, मुझे कोमा से निकले करीब तीन सप्ताह हो गये थे, लेकिन अभी भी अपने बिस्तर पर बिना सहारे बैठ नही सकता था, शरीर पर एक बडा सा चोला ही था, जो मेरे घुटनो तक था, पानी का कप भी ऊठाने के लिये मुझे नर्स को सिंगनल दे कर बुलाना पडता था, अभी भूख भी नही लगती थी, सारे दिन मे पानी ओर पानी ही पीता था, 
एक दिन दोपहर को करीब एक बजे मै जाग रहा था, लेकिन नर्से ओर डाक्टर उस समय आई सी यू मे यानि मेरे कमरे मे नही थे, तभी एक महिला डाक्टर की ड्रेस मे आई, जिसे मैने कमरे मे घुसते देखा, फ़िर वो सभी रजिस्टर को देखने लगी, दो चार बार उलट पलट के देखा, फ़िर उस ने कई दराज खोले, मै उसे चुपचाप देखता रहा, उस ने कुछ दवाये अपनी जेब मे डाली ओर चली गई, तभी उस के जाने के बाद डाक्टर र नर्से आ गई, मुझे उस महिला की हरकते अच्छी नही लगी, तो मैने डाक्टर को बुलाया सिगनल दे कर, डाक्टर जब मेरे पास आया तो मै उस महिला के बारे बताने लगा, डाक्टर ने कहा कि ऎसी कोई भी महिला इस अस्पताल मे नही है, तभी वही महिला फ़िर से कमरे मे आई, मैने डाक्टर को उस की तरफ़ इशारा कर के बताया कि वो फ़िर आ गई, डाक्टर ने मुड के देखा तो मुझे कहा वहां तो कोई नही, मैने कहा अरे वो देखो डाक्टर ने फ़िर देखा ओर मना किया कि वहां कोई नही, र मेरे सर पे हाथ फ़ेर कर चला गया.
        अब वो महिला मेरे पास आई, मुझे वो महिला बिलकुल भी अच्छी नही लग रही थी, उस के बाल उस की आंखे, एक तरह से मुझे डर लग रहा था, मेरे पास आ कर वोली हाय, मैने भी जबाब मे हाय कह दिया, बोली तुम्हारा बडा अपरेशान हुआ है ना, मैने कहा हां, वोली दिखाओ, तो मैने कहा खुद देख लो मेरे मे हिम्मत नही, मेरी वाजू नही उठती, उस महिला ने मेरे चोला छाती से ऊपर किया तो मै थर थर कांपने लगा, मेरे सामने बाकी सभी लोग उस कमरे मे थे, लेकिन दूर थे,   

वो महिला मेरी छाती पर अपने नाखुन फ़िराने लगी तो पता नही कहां से मेरे मुंह से बहुत जोर से चीख निकली मैने उसे कहा-  मुझे अच्छा नही लग रहा, कृपया मुझे ढक दो, उस ने मुझे ढक दिया ओर वापिस चली गई उसी वक्त मेरे पास एक नर्स आई बोली सब ठीक हे... मैने पूछा वो कौहै..? जो उस जगह खडी हे, लेकिन नर्स को भी वो नही दिखी, अब मुझे वहां डर लगने लगा था, लेकिन वो महिला फ़िर नही आई, मैने सभी नर्सो से ओर डाक्टर से पूछा सब ने कहा – यहां  ऎसी डाक्टर या नर्स यहां कोई नहीं है. उस दिन वो सिर्फ़ मुझे सारा समय दिखी किसी र को नही दिखी , जब कि मै उस समय होश मे था ओर जाग रहा था....ओर उस ने मेरा नुकसान भी नही किया...... भूत प्रेत, आत्मा...????
आगामी पोस्ट में मेरा व्यक्तिगत अनुभव प्रतीक्षा कीजिये 

7.10.14

मन:स्थितियां


अति महत्वाकांक्षाएं 
हिलोरे लेतीं हैं..
व्यग्रता के वायु-संवेग से 
ऊपर और ऊपर उठतीं अचानक 
धराशायी हो जातीं लहरें
और मै भी गिर पड़ता हूं.. 
उसी आघात से.. 
पर फ़िर तलाशता हूं किसी सर को
जिस पर मढ़ देना चाहता हूं.. 
अपकृत्य की ज़वाबदेही.. 
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 एक अदद देवता की तलाश में पूरी उम्र बिता दी
 कदाचित आत्मचिंतन करता 
तो शायद देवत्व का सामीप्य अवश्य मिलता 
पर भीड़ का हिस्सा हूं उसका मान ज़रूर रखूंगा.. 
आपसे विदा लेते लेते किसी देवता की  
आखिरी सांस तक ... तलाश में...

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3.10.14

*लाडली लक्ष्मी योजना : बेटियों के प्रति सामाजिक सोच एवं विचारों में बदलाव*

आराध्या और आर्या यानि  लाड़लियों के पिता श्री संतोष रायकवार एवम मां श्रीमति रेखा रायकवार  एक निजी हास्पिटल में कंपाऊंडर है जबकि मां रेखा नर्सिंग प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी हैं.  कर रहीं हैं . जबलपुर के गेट नम्बर 04 के पास वाली घनी बस्ती में रहने वाली मां रेखा उन लाखों माताओं के लिये आइकान क्यों न  हो .. जो भ्रूण के लिंग का पता लगाने के प्रयास में सक्रीय  हैं.
 आपको ये कहानी उन सबके लिए प्रेरणा दायक है बेटे के लिए बेटियों को कोख में निशाना साध के मारने का अपराध बेहद शातिर तरीके से करतें हैं . अथवा जो सामर्थ्य वान होकर भी बेटी का जन्म बर्दाश्त नहीं कर पाते हों. संतोष की कमाई 8000 /- प्रतिमाह से अधिक नहीं है. उस पर भी ज़िम्मेदारियां हैं.. दो छोटी बहनों की शादी करनी है. इन दो बेटियों को पढ़ाना है..
आराध्या और आर्या के  माता-पिता सामान्य रूप से शिक्षित हैं आय भी कम है पर समझदार है वो उन सब पढ़े लिखे मां-बाप से भी जो जन्म के पहले अथवा जन्म के बाद मार देते है . बाल विकास परियोजना जबलपुर क्र. एक के मदन महल गेट न. 4 इलाके के श्रीमति रेखा-संतोष रायकवार ने तीन साल पहले अपनी जुड़वां बेटियों के बाद आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की सलाह पर  परिवार कल्याण कार्यक्रम अपनाने का मन बनाया और अपनी जुड़वां बेटियों के जन्म के तुरंत बाद नसबंदी आपरेशन कराया भी.  
रेखा ने बताया- “दुनिया जिस तेजी से बदल रही है उसी तेजी से सोच भी बदलनी चाहिये. जब आंगनवाड़ी कार्यकर्ता बहन जी ने समझाया कि बच्चों में फर्क नहीं करना चाहिए बेटा-बेटी सब सामान है . बस फिर क्या था हमने अपनी जुड़वां बेटियों आराध्या और आर्या के अच्छे कल के लिए परिवार कल्याण कार्यक्रम अपनाने का मन बनाया और बेटियों के जन्म के तुरंत बाद नसबंदी आपरेशन करा भी लिया”
 संतोष कहते हैं -  आज कन्या भोजन में आराध्या और आर्या ने अपने मनमोहक अंदाज़ में सबको खूब लुभाया. आराध्या बातूनी है .. उससे उलट आर्या शांत एवं अंतर्मुखी . दौनों बेटियों को लाडली लक्ष्मी योजना का प्राप्त है.  बेटियां घर की शान हैं. इनकी अनुपस्थिति में घर सूना सूना लगता है. निम्न आय वर्ग परिवार की इन बेटियों के माता पिता ने लाड़लियों के जन्म के बाद पुत्र की ज़रूरत न होने का ऐलान कर सबको चकित कर दिया.  

लाडली लक्ष्मी योजना के उद्देश्य में बेटियों के प्रति  सामाजिक सोच एवं विचारों में आ रहे बदलाव का सबसे सटीक उदाहरण है ये कहानी..  

28.9.14

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा रोकने हुआ सीधा संवाद

संभागायुक्त श्री दीपक खांडेकर, आई.जी.
महिला सेल श्रीमति प्रग्यारिचा श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में महिला सशक्तिकरण
विभाग एवम पुलिस विभाग के संयुक्त तत्वावधान में
सीधा :संवाद
कार्यक्रम का आयोजन किया गया . दो सोपान में आयोजित  इस कार्यक्रम में बोलते हुए संभागीय आयुक्त
श्री  दीपक खांडेकर ने कहा
–“ दिन प्रतिदिन
विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं कीभागीदारी बढ़ रही है ।  ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि जहां पर
महिलाएं जा रही हैं  काम कर रही हैं
, वे
स्थल चाहे शासकीय हों अथवा अशासकीय हों या निजी हों
, कार्य करने की दृष्टि से
पूरी तरह सुरक्षित हों
,जिससे महिलाएं बिना किसी झिझक के कार्य कर सकें या कार्य करवा सकें । उनमें
असुरक्षा की भावना नरहे ।  किसी भी प्रकार
से उनका लैंगिक उत्पीड़न न हो । महिलाओं के कार्य करने के स्थल सुरक्षित
औरसुविधाजनक हो । यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो समानता की बात करना बेमानी होगी
।  देश की संसद ने इसके लिए वर्ष 2013 में
कार्य स्थल पर सुरक्षा को लेकर लैंगिक उत्पीड़न निवारण
, प्रतिषेध
एवं प्रतितोषण
,
अधिनियम बनाया है । इस अधिनियम में महिलाओं की सुरक्षा के
संबंध में विभिन्न प्रावधान किए गए हैं।
कार्यालय या किसी भी कार्य स्थल पर कार्यालय या संस्था प्रमुख की जवाबदेही
होगी कि कार्य स्थल परसुरक्षित कार्य का वातावरण उपलब्ध करायें । कार्य स्थल के
लोगों को इसके प्रति जागरूक बनाया जाये । अपने कार्यालय में एक समिति गठित करें जो
इस प्रकार के मामलों की मानीटरिंग करे और कार्यवाही करे। 
कार्यशाला में पुलिस महानिरीक्षक डी. श्रीनिवास राव ने कहा
कि कार्य स्थल पर महिलाओं के लैंगिक उत्पीड़न रोकने के लिए बनाये गये अधिनियम में जो
प्रावधान किए गए हैं उनका सभी संभागीयएवं जिलों के कार्यालयों में पालन हो ।
  महिलाओं के लिए कार्य स्थल पर एक सुरक्षित
वातावरण दिया जाए ।
  जिससे वे गरिमा और
सम्मान के साथ अपने दायित्वों का निर्वहन कर सकें ।
  उनके अंदर कभी भीअसुरक्षा की भावना न आए । यदि
कोई कर्मचारी या सहकर्मी प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो उसके विरूद्ध सख्त
कार्यवाही हो ।
पुलिस महानिरीक्षक (महिला अपराध) श्रीमती प्रज्ञा ऋचा
श्रीवास्तव ने कहा
–“ समाज की 50% प्रतिशत आबादी महिलाओं की है ।
इस आधी आबादी को सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराना होगा । सुरक्षित वातावरण
में ही समाज के निर्माण में यह अपना योगदान दे पायेगी । यदि हम वास्तव में चाहते
हैंकि महिलाएं आगे आयें तो उन्हें कार्य स्थल पर बेहतर वातावरण मुहैया कराना होगा ।
कार्यशाला में अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों पर प्रकाश डाला गया ।
लैंगिक उत्पीड़न में शारीरिक सम्पर्क, लैंगिक
स्वीकृति के लिए कोई मांग या अनुरोध
,
लैंगिक  टिप्पणी करना, अश्लील साहित्य दिखाना, लैंगिक
प्रकृति का कोई अन्य निंदनीय
,
शारीरिक,
शाब्दिक या गैरशाब्दिक आचरण करना शामिल है ।  इसी प्रकार कार्य स्थल की व्याख्या इस प्रकार बताई गई ऐसा कोई विभागसंगठन उपक्रमस्थापन,उद्यमसंस्थाकार्यालय,
शाखा या यूनिटगैर सरकारी संगठनकोई प्राइवेट सेक्टरसोसाइटीन्यासअस्पतालप्रशिक्षण केंद्रकोई खेलकूद संस्थान कोई निवास गृह या कोईअन्य गृह । नियोजन से आशय है उसके उपक्रम के दौरान कर्मचारी द्वारा भ्रमण किया गया कोई स्थान एवंउपलब्ध कराया गया परिवहन भी है ।
              कार्यशाला के द्वितीय सोपान में टाक शो का समावेश बेहद प्रभावी रहा जिसमें श्री अमृतलाल वेगड, श्री रवींद्र बाजपेई, महिला मुद्दों पर विशेषरूप से आदिवासी दलित महिलाओं के लिये कार्य करने वाली  सामाजिक कार्यकर्ता दया मां (हर्रई) , श्री मनीष दत्त, श्रीमति उपमा राय, फ़िलम अभिनेता श्री आशुतोष राणा, मनोवैज्ञानिक श्रीमती जैन (सागर), अपराध शास्त्र विशेषज्ञ राजू टंडनस्त्री रोग विशेषज्ञ डा.रूपलेखा चौहान ने तीन पीढियों से सीधा संवाद किया. युवा, प्रौढ़, वयोवृद्ध जनों से हुई बातचीत में अंतत: एक सारभूत तत्व सामने आया कि "महिलाओं के विरुद्ध बढ़ते जा रहे संत्राष का मूल आधार समकालीन  सामजिक परिस्थितियां हैं. ज़रूरत है आत्मअंवेषण की"
  सिने कलाकर आशुतोष राणा ने अपने वक्तव्य एवम पूछे गये सवालों के ज़वाब आद्यात्मिक आधार पर दिये, जबकि अमृतलाल वेगड़ ने नारी के सशक्त स्वरूप की व्याख्या करते हुए रोचक शैली में कहा कि- "समकालीन परिस्थियां तुरंत वैचारिक रूप से संवेदित  होने एवं आत्मचिंतन करने के लिये प्रेरित कर रहीं हैं.. "
   वरिष्ट पत्रकार श्री रवींद्र वाजपेई ने सामाजिक सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण से महिलाओं के विरुद्ध हो रही हिंसा लैंगिक अपराधों को रोकने का कारगर एवं प्रभावी तरीक़ा निरूपित किया. 
   दया मां ने महिलाओं को उनके अधिकारों मौज़ूदा क़ानूनों की जानकारी मुहैया कराने पर बल दिया. 
डा. रूपलेखा चौहान ने कहा कि- "सामाजिक सोच में परिवर्तन लाए बिना न तो भ्रूण हत्याएं रोकी जा सकेंगी और न ही महिलाओं के खिलाफ़ होती घटनाओं को रोका जा सकता है"  

     एड. मनीष दत्त ने मौज़ूदा कानूनों का ज़िक्र करते हुए महिलाओं को स्वयं तत्परता के लिये प्रेरित किया.   


       इस अवसर पर श्री मनु श्रीवास्तव, सी एम डी विद्युत-वितरण कम्पनी,  पुलिस महक़मे के अधिकारी गण,  संयुक्त-संचालक महिला बाल विकास श्री हरिकृष्ण शर्मा, संभागीय उपसंचालक महिला सशक्तिकरण  श्रीमति शालिनी तिवारी सहित  जिला महिला सशक्तिकरण अधिकारी, संरक्षण अधिकारीयों एवं  संभाग के विभिन्न जिलों से आए स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि , विभिन्न विभागों के अधिकारीगण, महिलाओं के लिये कार्य करने वाले विचारक एवं एक्टिविष्ट, मीडिया से जुड़े प्रतिनिधि, किशोर बालक बालिकाएं,  वयो वृद्ध जन विषेश रूप से आमंत्रित थे
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 विषय से भटके पेनलिस्ट राणा जबकि दादा अमृतलाल बेगड़  रवींद्र बाजपेई, उपमा राय,राय ने तथ्यात्मक जानकारी देकर प्रश्नों के सटीक उत्तर दिये  

         संगोष्ठी में आशुतोष राणा विषय से भटक कर कराधान पर बोल पड़े जबकि बेगड़ जी, रवींद्र बाजपेई, उपमा राय जी ने जितना भी कहा अत्यंत प्रबावी रहा . प्रश्नकर्ताओं के सवाल आक्रामक थे ऐसा लगा कि उनमें परिवेश को आंकने में तथा सामाजिक मुद्दों पर व्यवहारिक अध्ययन कमज़ोर या सिर आंकड़ों पर आश्रित था. 
प्रख्यात चिकित्सक डा.रूपलेखा चौहान, पी एन डी टी एक्ट के उल्लंघन में डाक्टरों की मिलीभगत  के सवाल पर चिकित्सक समुदाय को बचातीं नज़र आईं.   

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चित्र वीथी
प्रथम सोपान 

संभागायुक्त श्री दीपक खांडेकर जी

कार्यक्रम संचालन करते हुए राकेश राव

प्रतिभागी 

प्रतिभागी 


26.9.14

आभार डिंडोरी

डिंडोरी वासियों का विनम्र आभार जिनके सहयोग से दो वर्ष से अधिक समय बाल विकास परियोजना अधिकारी डिंडोरी के पद पर सफलता पूर्वक कार्य कर सका
आभार उन सबका भी जिनने मुझे मार्गदर्शन दिया
उन सबका भी आभार जो मेरे काम में बाधा पैदा करते रहे और मैं नए नए निर्बाध रास्ते खोजता रहा रास्ते मिले भी और मुझे रास्ते खोजने का तरीका भी मिला । इस कवायद में मेरे कार्य कौशल में इजाफा ही हुआ है
दोस्तों आपका आभार जो मुझसे बायस थे पर अब किसी भी कारण से स्तब्ध हैं शायद अब समझ गए होगे कि सूचनाओं के आधार पर राय कायम करना मूर्खता होती है ।
उन व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक तौर पर चुगलखोरों का विशेष का आभार जो आदतन निंदा कर मेरे सचेतक बने तथा एक्सपोज़ हुए बड़ी आसानी से । ऐसे आस्तीन वाले सहयोगियों को विश्वास करना होगा कि दीवारों के कान फूटे नहीं आज भी दीवारें सुनतीं हैं सुनातीं है।
आभार उन कुछ कलमकारों के   जो ये साबित कर पाए कि भिखारी किसी भी रूप में हो भिखारी होता है ।
आभार उन मूर्खों का जो बताने में सफल हुए कि वे निरे मूर्ख हैं वरना गलत पहचान का दोष मेरे माथे होता ।
जो मित्र दफ्तर दफ्तर भिक्षा वृत्ति करने निकलते हैं उनको मेरी एक मात्र सलाह है कि ब्लैकमेलिंग और व्यवस्था सुधार में ज़मीन आसमान का फर्क है ।
उन स्नेहियों का आभार जो वास्तव में जीवनरूपी  नर्मदा की पवित्रता का अर्थ  समझते हैं तथा पवित्र हैं भी

22.9.14

सिस्टम : एक अवलोकन



सरकारी अफ़सर हो या उसकी ज़िंदगी चौबीसों-घंटे के लिये सरकारी होते हैं जो भी होता है सब कुछ सरकारी ही तो होता है. दफ़्तर का चपरासी आफ़िस से ज़्यादा घर का काम करे तो वफ़ादार , जो बाबू घर जाके चापलूसी करे पूरी निष्ठा और ईमानदारी चुगलखोरी करे वो निष्ठावान, बाकी  बाकियों कोकिसी काम के नहीं वाली श्रेणी में रखा जा सकता है..!”
ईमानदारी का दम भरने वाला साहब उसके कान में चुपके से कुछ कह देता है और वो बस हो जाता है हलाकान गिरी से न रहा गया उसने पूछा-राजेंद्र क्या बात है किस तनाव में हो भई..?
राजेंद्रका बतावैं,साहब, सोचता हूं कि बीमार हो जाऊं..!
गिरी-बीमार हों तुमाए दुश्मन तुम काए को..
राजेंद्र-अरे साहब, दुश्मन ही बीमार हो जाए ससुरा !
गिरी ने पूछा- भई, हम भी तो जानें कौन है तुम्हारा दुश्मन..?
राजेंद्र- वही, जो अब रहने दो साहब, का करोगे जानकर..
गिरी-अरे बता भी दो भाई.. हम कोई गै़र तो नहीं..
राजेंद्र-साहब, साठ मीटर पर्दे को एडजस्ट करने में कित्ती स्टेशनरी लगेगी.. गणित में कमज़ोर हूं सा..
गिरी समझ गया कि राजेंद्र को उसके बास ने घरके पर्दे बदलने का आदेश दिया है. एक दीर्घ सांस छोड़ते हुए उसने बताया-“अरे, हर सेक्शन से मांग पत्र ले ले स्टेशनरी का कमसे कम सात हज़ार का इंतज़ाम करना होगा
राजेंद्र-सा ये तो चार माह की खपत है.. बाप रे मर जाऊंगा
गिरी- लाया तो भी तो मरना है है न..?
हां साहब सच्ची बात हैराजेंद्र ने हर बाबू की तरफ़ नोटशीट बढ़ा दी की तीन दिवस में सब अपनी शाखा की स्टेशनरी मांग ले.
सब कुछ वैसे ही हुआ. सब के सब बिना कुछ बोले हज़ूर के आदेश की भाषा समझ गये थे गोया.
सबने बिना नानुकुर के स्टाक-रजिस्टर में भी दस्तखत कर दिये राजेंद्र ने वही किया जो बास ने कहा था. घर के पर्दे बदल गए. बस सब कुछ सामान्य सा हो गया

और इस तरह एक अदृश्य किंतु अति महत्वपूर्ण कार्य निष्पादित हो गया.

21.9.14

हम विकास की भाषा से अनजान हैं..

          विश्व में  शांति की बहाली को लेकर समझदार लोग बेहद बेचैन हैं  कि किस प्रकार विश्व में अमन बहाल हो ? चीनी राष्ट्रपति के भारत आगमन के वक़्त तो अचानक मानों चिंतन और चर्चा को पंख लग गए . जिधर देखिये उधर चीन की विस्तारवादी नीति के कारण प्रसूते सीमाई विवाद के चलते  व्यवसायिक अंतर्संबंधों को संदर्भित करते हुए  चर्चाओं में खूब ऊर्ज़ा खर्च की जा रही है . 
 
            हम भारतीयों की एक आदत है कि हम किसी मुद्दे को या तो सहज स्वीकारते हैं या एकदम सिरे से खारिज़ कर देते हैं. वास्तव में आज़कल जो भी वैचारिक रूप से परोसा जा रहा है उसे पूरा परिपक्व तो कहा नहीं जा सकता. आप जानते ही हैं कि जिस तरह अधपका भोजन शरीर के लिये फ़ायदेमंद नहीं होता ठीक उसी तरह संदर्भ और समझ विहीन वार्ताएं मानस के लिये . तो फ़िर इतना वैचारिक समर क्यों .. ? इस बिंदु की पड़ताल से पता चला कि बहस   कराने वाला एक ऐसे बाज़ार का हिस्सा है जो सूचनाओं के आधार पर अथवा सूचनाओं (समाचारों को लेकर ) एक प्रोग्राम प्रस्तुत कर रहा होता है. उसे इस बात से कोई लेना देना नहीं कि संवादों के परिणाम क्या हो सकते हैं. 
             बाज़ार का विरोध करने वाले लोग, सांस्कृतिक संरचनाओं की बखिया उधेड़ने वाले लोग, सियासत, अर्थशास्त्र, सामाजिक मुद्दों पर चिंतन हेतु आधिकारिक योग्यता रखने वाले लोग बहुतायत में उन जगहों पर काम कर रहे हैं जहां ऐसी बहसें होतीं हैं. कई बार तो वार्ताएं अखाड़ों का स्वरूप ले लेतीं हैं. 
            चलिये चीन की जीवनशैली पर विचार करें तो हम पाते हैं कि वहां विकास   हमसे बेहतर हुआ है. और जापान भी हमसे तेज़ गति से गतिमान है. जिसका श्रेय केवल वहां के लोगों में काम करने की असाधारण क्षमता को जाता है.  विकास की बोली भाषा से भी अपरिचित हैं अगर थोड़ा जानते भी हैं तो सिर्फ़ ये कि सरकार की व्यस्था क्या है.. सरकार हमारे लिये क्या करेगी , सरकार को ये करना चाहिये वो करना चाहिये वगैरा वगैरा. लेकिन हम घर का कचरा सड़क पर फ़ैंक सरकारी सफ़ाई व्यवस्था के न होते ही मीडिया के सामने रोते झीखते हैं अथवा घर बैठकर कोसतें हैं व्यवस्था को .  मीडिया जो सूचनाओं का बाज़ार है उसे अपनी शैली में सामने ले आता है. बात इस हद तक उत्तम है कि मीडिया अपना काम कर देता है पर हम .. हम तो अपनी आदत से बाज़ नहीं आते हमको सदा ही घर साफ़ रखने और सड़क गंदी करने का वंशानुगत अभ्यास है. शायद ही कुछ गांव ऐसे मिलेंगें जहां शौचालयों को स्टोर रूम की तरह स्तेमाल न किया जा रहा हो. सुधि पाठको अभी हमें विकास की भाषा समझनी है न कि समझ विहीन वार्ताओं में शरीक होना है.. चलो गांधी जयंति नज़दीक आ रही है... जुट जाएं कुछ अच्छा करने के लिये स्वच्छता को ही आत्मसात करने की कोशिश तो करें .. शायद विकास गाथा यहीं से लिख  पाएं हम...........

19.9.14

न्यायालय से हुए समाचार घर


मन चिकित्सक बना देखता ही रहा, दर्द ने देह पर हस्ताक्षर किये...!
आस्था की दवा गिर गई हाथ से और रिश्ते कई फ़िर उजागर हुए...!!

हमसे जो बन पड़ा वो किया था मग़र  कुछ कमी थी हमारे प्रयासों में भी
हमसे ये न हुआ, हमने वो न किया, कुछ नुस्खे लिये  न किताबों से ही
लोग समझा रहे थे हमें रोक कर , हम थे खुद के लिये खुद प्रभाकर हुए
मन चिकित्सक बना देखता ही रहा, दर्द ने देह पर हस्ताक्षर किये...!

चुस्कियां चाय की अब सियासत हुईं  प्याले ने आगे आके बदला समां,
चाय वाले का चिंतन गज़ब ढा गया पीने वाले यहीं और वो है कहां..?
उसने सोचा था जो सच वही हो गया, गद्य बिखरे बिखरके आखर हुए
मन चिकित्सक बना देखता ही रहा, दर्द ने देह पर हस्ताक्षर किये...!

हर तरफ़ देखिये नागफ़नियों के वन, गाज़रीघास की देखो भरमार है
*न्यायालय से हुए समाचार घर, ये समाचार हैं याकि व्यापार हैं....?
छिपे बहुत से हिज़ाबों ही, कुछेक ऐसे हैं जो उज़ागर हुए...!!
मन चिकित्सक बना देखता ही रहा, दर्द ने देह पर हस्ताक्षर किये...!

*News Room's like Court 

15.9.14

आभार ए बी पी न्यूज़ : हिंदी ब्लागिंग को पहचानने के लिये किंतु सवाल शेष रह गये


                       हिंदी भाषा  को लेकर ए बी पी न्यूज़ पर आज़ एक उत्सव का आयोजन बेशक चिंतन को दिशा दे गया. चिंतन में  पहला सवाल हिंदी के उत्सव के मनाने न मनाने को लेकर विमर्श में सबने कहा कि -" हिंदी के लिये उत्सव मनाना चाहिये हिंदी विपन्न नहीं हुई है संवाहकों संवादकर्ताओं की विफ़लता है."


मेरी मान्यता इससे ज़रा सी अलग है हिन्दी जब तक रोटी की भाषा न बनेगी तब तक मैं सोचता हूं  हिन्दी दिवस हिन्दी सप्ताह हिन्दी पखवाड़े हिन्दी माह के बेमानी है. ये अलग बात है कि हमारे प्रधान सेवक हिंदी में अपनी बात रख रहे हैं. फ़िर भी मैं हिंदी उत्सव तब मनाऊंगा   जबकि  हिंदी विकीपीडिया वाले हिन्दी के सन्दर्भों जब तक टांग अड़ाना बंद करेंगेदेश के वकील हिंदी में  रिट पिटीशन और डाक्टर नुस्खे हिन्दी  में लिखेंगे तथा कर्ज़ के लिये आवेदन हिंदी में भरवाए जाएंगे हां तब तक  कम से कम मैं तो उत्सव न मनाऊंगा. यहां स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैं भारतीय भाषाओं के महत्व के लिये उतना ही उत्तेजित हूं जितना कि हिंदी के लिये. 

                    भाषा की समृद्धि का आधार  है भाषा और  रोटी का समीकरण . भाषा यदि रोटी से जुड़ी हो तो उसका प्रवाह सहज होता है .
ए.बी.पी. न्यूज़ पर हुई  बहस में  बाज़ार के सवाल पर  नीलेश मिश्र एवम कुमार विश्वास से सहमत हूं  कि बाज़ार की वज़ह से अगर हिंदी आम बोल चाल की भाषा बनी रहती है तो अच्छा ही है.  यद्यपि मुझे हिंदी को  ज्ञान की भाषा न बनाने के विदेशी भाषा के दबाव पर चर्चा की कमी खली । ए बी पी न्यूज़ पर  सुधीश पचौरी इस बिंदू के नज़दीक आते नज़र आए परंतु फ़टफ़टिया चैनल्स के पास समयाभाव होता है. जिसकी वज़ह से शायद किसी भी प्रतिभागी ने  क़ानून , चिकित्सा, अर्थ-विज्ञान , समाज अथवा अन्य विषयों से  हिंदी के बढ़ते  अंतराल पर कोई चर्चा नहीं की ?  

 ए बी पी न्यूज़ ने  अपने वादे के मुताबिक हिंदी को सम्मानित दर्ज़ा दिलाने की  दिलाने की निरंतर कोशिश करने वाले ब्लॉगर्स यानी चिट्ठाकारों को सम्मानित करने के लिए ए  बी पी न्यूज़ का हिंदी के सभी चिट्ठाकारों स्वागत किया.  सम्मानित हुए अन्य ब्लॉगरों में दिल्ली की रचना (महिलाओं के मुद्दों पर लेखन), दिल्ली के पंकज चतुर्वेदी (पर्यावरण विषयपर लेखन इन्डिया वाटर पोर्टल), दिल्ली के मुकेश ‍तिवारी (राजनीतिक मुद्दों पर लेखन),  दिल्ली के प्रभात रंजन (हिन्दी साहित्य और समाज पर लेखन)  अलवर के शशांक द्विवेदी (विज्ञान के विषय पर लेखन),  मुंबई के अजय ब्रम्हात्जम (सिनेमा, लाइफ़ स्टाइल पर लेखन), इंदौर के प्रकाश हिंदुस्तानी (समसामायिक विषयों पर ब्लॉग), फ़तेहपुर के प्रवीण त्रिवेदी (स्कूली शिक्षा और बच्चों के मुद्दों पर ब्लॉग) और लंदन की शिखा वार्ष्णेय (महिला और घरेलू विषयों पर लेखन) शामिल हैं.

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...