28.9.14

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा रोकने हुआ सीधा संवाद

संभागायुक्त श्री दीपक खांडेकर, आई.जी.
महिला सेल श्रीमति प्रग्यारिचा श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में महिला सशक्तिकरण
विभाग एवम पुलिस विभाग के संयुक्त तत्वावधान में
सीधा :संवाद
कार्यक्रम का आयोजन किया गया . दो सोपान में आयोजित  इस कार्यक्रम में बोलते हुए संभागीय आयुक्त
श्री  दीपक खांडेकर ने कहा
–“ दिन प्रतिदिन
विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं कीभागीदारी बढ़ रही है ।  ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि जहां पर
महिलाएं जा रही हैं  काम कर रही हैं
, वे
स्थल चाहे शासकीय हों अथवा अशासकीय हों या निजी हों
, कार्य करने की दृष्टि से
पूरी तरह सुरक्षित हों
,जिससे महिलाएं बिना किसी झिझक के कार्य कर सकें या कार्य करवा सकें । उनमें
असुरक्षा की भावना नरहे ।  किसी भी प्रकार
से उनका लैंगिक उत्पीड़न न हो । महिलाओं के कार्य करने के स्थल सुरक्षित
औरसुविधाजनक हो । यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो समानता की बात करना बेमानी होगी
।  देश की संसद ने इसके लिए वर्ष 2013 में
कार्य स्थल पर सुरक्षा को लेकर लैंगिक उत्पीड़न निवारण
, प्रतिषेध
एवं प्रतितोषण
,
अधिनियम बनाया है । इस अधिनियम में महिलाओं की सुरक्षा के
संबंध में विभिन्न प्रावधान किए गए हैं।
कार्यालय या किसी भी कार्य स्थल पर कार्यालय या संस्था प्रमुख की जवाबदेही
होगी कि कार्य स्थल परसुरक्षित कार्य का वातावरण उपलब्ध करायें । कार्य स्थल के
लोगों को इसके प्रति जागरूक बनाया जाये । अपने कार्यालय में एक समिति गठित करें जो
इस प्रकार के मामलों की मानीटरिंग करे और कार्यवाही करे। 
कार्यशाला में पुलिस महानिरीक्षक डी. श्रीनिवास राव ने कहा
कि कार्य स्थल पर महिलाओं के लैंगिक उत्पीड़न रोकने के लिए बनाये गये अधिनियम में जो
प्रावधान किए गए हैं उनका सभी संभागीयएवं जिलों के कार्यालयों में पालन हो ।
  महिलाओं के लिए कार्य स्थल पर एक सुरक्षित
वातावरण दिया जाए ।
  जिससे वे गरिमा और
सम्मान के साथ अपने दायित्वों का निर्वहन कर सकें ।
  उनके अंदर कभी भीअसुरक्षा की भावना न आए । यदि
कोई कर्मचारी या सहकर्मी प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो उसके विरूद्ध सख्त
कार्यवाही हो ।
पुलिस महानिरीक्षक (महिला अपराध) श्रीमती प्रज्ञा ऋचा
श्रीवास्तव ने कहा
–“ समाज की 50% प्रतिशत आबादी महिलाओं की है ।
इस आधी आबादी को सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराना होगा । सुरक्षित वातावरण
में ही समाज के निर्माण में यह अपना योगदान दे पायेगी । यदि हम वास्तव में चाहते
हैंकि महिलाएं आगे आयें तो उन्हें कार्य स्थल पर बेहतर वातावरण मुहैया कराना होगा ।
कार्यशाला में अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों पर प्रकाश डाला गया ।
लैंगिक उत्पीड़न में शारीरिक सम्पर्क, लैंगिक
स्वीकृति के लिए कोई मांग या अनुरोध
,
लैंगिक  टिप्पणी करना, अश्लील साहित्य दिखाना, लैंगिक
प्रकृति का कोई अन्य निंदनीय
,
शारीरिक,
शाब्दिक या गैरशाब्दिक आचरण करना शामिल है ।  इसी प्रकार कार्य स्थल की व्याख्या इस प्रकार बताई गई ऐसा कोई विभागसंगठन उपक्रमस्थापन,उद्यमसंस्थाकार्यालय,
शाखा या यूनिटगैर सरकारी संगठनकोई प्राइवेट सेक्टरसोसाइटीन्यासअस्पतालप्रशिक्षण केंद्रकोई खेलकूद संस्थान कोई निवास गृह या कोईअन्य गृह । नियोजन से आशय है उसके उपक्रम के दौरान कर्मचारी द्वारा भ्रमण किया गया कोई स्थान एवंउपलब्ध कराया गया परिवहन भी है ।
              कार्यशाला के द्वितीय सोपान में टाक शो का समावेश बेहद प्रभावी रहा जिसमें श्री अमृतलाल वेगड, श्री रवींद्र बाजपेई, महिला मुद्दों पर विशेषरूप से आदिवासी दलित महिलाओं के लिये कार्य करने वाली  सामाजिक कार्यकर्ता दया मां (हर्रई) , श्री मनीष दत्त, श्रीमति उपमा राय, फ़िलम अभिनेता श्री आशुतोष राणा, मनोवैज्ञानिक श्रीमती जैन (सागर), अपराध शास्त्र विशेषज्ञ राजू टंडनस्त्री रोग विशेषज्ञ डा.रूपलेखा चौहान ने तीन पीढियों से सीधा संवाद किया. युवा, प्रौढ़, वयोवृद्ध जनों से हुई बातचीत में अंतत: एक सारभूत तत्व सामने आया कि "महिलाओं के विरुद्ध बढ़ते जा रहे संत्राष का मूल आधार समकालीन  सामजिक परिस्थितियां हैं. ज़रूरत है आत्मअंवेषण की"
  सिने कलाकर आशुतोष राणा ने अपने वक्तव्य एवम पूछे गये सवालों के ज़वाब आद्यात्मिक आधार पर दिये, जबकि अमृतलाल वेगड़ ने नारी के सशक्त स्वरूप की व्याख्या करते हुए रोचक शैली में कहा कि- "समकालीन परिस्थियां तुरंत वैचारिक रूप से संवेदित  होने एवं आत्मचिंतन करने के लिये प्रेरित कर रहीं हैं.. "
   वरिष्ट पत्रकार श्री रवींद्र वाजपेई ने सामाजिक सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण से महिलाओं के विरुद्ध हो रही हिंसा लैंगिक अपराधों को रोकने का कारगर एवं प्रभावी तरीक़ा निरूपित किया. 
   दया मां ने महिलाओं को उनके अधिकारों मौज़ूदा क़ानूनों की जानकारी मुहैया कराने पर बल दिया. 
डा. रूपलेखा चौहान ने कहा कि- "सामाजिक सोच में परिवर्तन लाए बिना न तो भ्रूण हत्याएं रोकी जा सकेंगी और न ही महिलाओं के खिलाफ़ होती घटनाओं को रोका जा सकता है"  

     एड. मनीष दत्त ने मौज़ूदा कानूनों का ज़िक्र करते हुए महिलाओं को स्वयं तत्परता के लिये प्रेरित किया.   


       इस अवसर पर श्री मनु श्रीवास्तव, सी एम डी विद्युत-वितरण कम्पनी,  पुलिस महक़मे के अधिकारी गण,  संयुक्त-संचालक महिला बाल विकास श्री हरिकृष्ण शर्मा, संभागीय उपसंचालक महिला सशक्तिकरण  श्रीमति शालिनी तिवारी सहित  जिला महिला सशक्तिकरण अधिकारी, संरक्षण अधिकारीयों एवं  संभाग के विभिन्न जिलों से आए स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि , विभिन्न विभागों के अधिकारीगण, महिलाओं के लिये कार्य करने वाले विचारक एवं एक्टिविष्ट, मीडिया से जुड़े प्रतिनिधि, किशोर बालक बालिकाएं,  वयो वृद्ध जन विषेश रूप से आमंत्रित थे
_________________________
 विषय से भटके पेनलिस्ट राणा जबकि दादा अमृतलाल बेगड़  रवींद्र बाजपेई, उपमा राय,राय ने तथ्यात्मक जानकारी देकर प्रश्नों के सटीक उत्तर दिये  

         संगोष्ठी में आशुतोष राणा विषय से भटक कर कराधान पर बोल पड़े जबकि बेगड़ जी, रवींद्र बाजपेई, उपमा राय जी ने जितना भी कहा अत्यंत प्रबावी रहा . प्रश्नकर्ताओं के सवाल आक्रामक थे ऐसा लगा कि उनमें परिवेश को आंकने में तथा सामाजिक मुद्दों पर व्यवहारिक अध्ययन कमज़ोर या सिर आंकड़ों पर आश्रित था. 
प्रख्यात चिकित्सक डा.रूपलेखा चौहान, पी एन डी टी एक्ट के उल्लंघन में डाक्टरों की मिलीभगत  के सवाल पर चिकित्सक समुदाय को बचातीं नज़र आईं.   

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चित्र वीथी
प्रथम सोपान 

संभागायुक्त श्री दीपक खांडेकर जी

कार्यक्रम संचालन करते हुए राकेश राव

प्रतिभागी 

प्रतिभागी 


26.9.14

आभार डिंडोरी

डिंडोरी वासियों का विनम्र आभार जिनके सहयोग से दो वर्ष से अधिक समय बाल विकास परियोजना अधिकारी डिंडोरी के पद पर सफलता पूर्वक कार्य कर सका
आभार उन सबका भी जिनने मुझे मार्गदर्शन दिया
उन सबका भी आभार जो मेरे काम में बाधा पैदा करते रहे और मैं नए नए निर्बाध रास्ते खोजता रहा रास्ते मिले भी और मुझे रास्ते खोजने का तरीका भी मिला । इस कवायद में मेरे कार्य कौशल में इजाफा ही हुआ है
दोस्तों आपका आभार जो मुझसे बायस थे पर अब किसी भी कारण से स्तब्ध हैं शायद अब समझ गए होगे कि सूचनाओं के आधार पर राय कायम करना मूर्खता होती है ।
उन व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक तौर पर चुगलखोरों का विशेष का आभार जो आदतन निंदा कर मेरे सचेतक बने तथा एक्सपोज़ हुए बड़ी आसानी से । ऐसे आस्तीन वाले सहयोगियों को विश्वास करना होगा कि दीवारों के कान फूटे नहीं आज भी दीवारें सुनतीं हैं सुनातीं है।
आभार उन कुछ कलमकारों के   जो ये साबित कर पाए कि भिखारी किसी भी रूप में हो भिखारी होता है ।
आभार उन मूर्खों का जो बताने में सफल हुए कि वे निरे मूर्ख हैं वरना गलत पहचान का दोष मेरे माथे होता ।
जो मित्र दफ्तर दफ्तर भिक्षा वृत्ति करने निकलते हैं उनको मेरी एक मात्र सलाह है कि ब्लैकमेलिंग और व्यवस्था सुधार में ज़मीन आसमान का फर्क है ।
उन स्नेहियों का आभार जो वास्तव में जीवनरूपी  नर्मदा की पवित्रता का अर्थ  समझते हैं तथा पवित्र हैं भी

22.9.14

सिस्टम : एक अवलोकन



सरकारी अफ़सर हो या उसकी ज़िंदगी चौबीसों-घंटे के लिये सरकारी होते हैं जो भी होता है सब कुछ सरकारी ही तो होता है. दफ़्तर का चपरासी आफ़िस से ज़्यादा घर का काम करे तो वफ़ादार , जो बाबू घर जाके चापलूसी करे पूरी निष्ठा और ईमानदारी चुगलखोरी करे वो निष्ठावान, बाकी  बाकियों कोकिसी काम के नहीं वाली श्रेणी में रखा जा सकता है..!”
ईमानदारी का दम भरने वाला साहब उसके कान में चुपके से कुछ कह देता है और वो बस हो जाता है हलाकान गिरी से न रहा गया उसने पूछा-राजेंद्र क्या बात है किस तनाव में हो भई..?
राजेंद्रका बतावैं,साहब, सोचता हूं कि बीमार हो जाऊं..!
गिरी-बीमार हों तुमाए दुश्मन तुम काए को..
राजेंद्र-अरे साहब, दुश्मन ही बीमार हो जाए ससुरा !
गिरी ने पूछा- भई, हम भी तो जानें कौन है तुम्हारा दुश्मन..?
राजेंद्र- वही, जो अब रहने दो साहब, का करोगे जानकर..
गिरी-अरे बता भी दो भाई.. हम कोई गै़र तो नहीं..
राजेंद्र-साहब, साठ मीटर पर्दे को एडजस्ट करने में कित्ती स्टेशनरी लगेगी.. गणित में कमज़ोर हूं सा..
गिरी समझ गया कि राजेंद्र को उसके बास ने घरके पर्दे बदलने का आदेश दिया है. एक दीर्घ सांस छोड़ते हुए उसने बताया-“अरे, हर सेक्शन से मांग पत्र ले ले स्टेशनरी का कमसे कम सात हज़ार का इंतज़ाम करना होगा
राजेंद्र-सा ये तो चार माह की खपत है.. बाप रे मर जाऊंगा
गिरी- लाया तो भी तो मरना है है न..?
हां साहब सच्ची बात हैराजेंद्र ने हर बाबू की तरफ़ नोटशीट बढ़ा दी की तीन दिवस में सब अपनी शाखा की स्टेशनरी मांग ले.
सब कुछ वैसे ही हुआ. सब के सब बिना कुछ बोले हज़ूर के आदेश की भाषा समझ गये थे गोया.
सबने बिना नानुकुर के स्टाक-रजिस्टर में भी दस्तखत कर दिये राजेंद्र ने वही किया जो बास ने कहा था. घर के पर्दे बदल गए. बस सब कुछ सामान्य सा हो गया

और इस तरह एक अदृश्य किंतु अति महत्वपूर्ण कार्य निष्पादित हो गया.

21.9.14

हम विकास की भाषा से अनजान हैं..

          विश्व में  शांति की बहाली को लेकर समझदार लोग बेहद बेचैन हैं  कि किस प्रकार विश्व में अमन बहाल हो ? चीनी राष्ट्रपति के भारत आगमन के वक़्त तो अचानक मानों चिंतन और चर्चा को पंख लग गए . जिधर देखिये उधर चीन की विस्तारवादी नीति के कारण प्रसूते सीमाई विवाद के चलते  व्यवसायिक अंतर्संबंधों को संदर्भित करते हुए  चर्चाओं में खूब ऊर्ज़ा खर्च की जा रही है . 
 
            हम भारतीयों की एक आदत है कि हम किसी मुद्दे को या तो सहज स्वीकारते हैं या एकदम सिरे से खारिज़ कर देते हैं. वास्तव में आज़कल जो भी वैचारिक रूप से परोसा जा रहा है उसे पूरा परिपक्व तो कहा नहीं जा सकता. आप जानते ही हैं कि जिस तरह अधपका भोजन शरीर के लिये फ़ायदेमंद नहीं होता ठीक उसी तरह संदर्भ और समझ विहीन वार्ताएं मानस के लिये . तो फ़िर इतना वैचारिक समर क्यों .. ? इस बिंदु की पड़ताल से पता चला कि बहस   कराने वाला एक ऐसे बाज़ार का हिस्सा है जो सूचनाओं के आधार पर अथवा सूचनाओं (समाचारों को लेकर ) एक प्रोग्राम प्रस्तुत कर रहा होता है. उसे इस बात से कोई लेना देना नहीं कि संवादों के परिणाम क्या हो सकते हैं. 
             बाज़ार का विरोध करने वाले लोग, सांस्कृतिक संरचनाओं की बखिया उधेड़ने वाले लोग, सियासत, अर्थशास्त्र, सामाजिक मुद्दों पर चिंतन हेतु आधिकारिक योग्यता रखने वाले लोग बहुतायत में उन जगहों पर काम कर रहे हैं जहां ऐसी बहसें होतीं हैं. कई बार तो वार्ताएं अखाड़ों का स्वरूप ले लेतीं हैं. 
            चलिये चीन की जीवनशैली पर विचार करें तो हम पाते हैं कि वहां विकास   हमसे बेहतर हुआ है. और जापान भी हमसे तेज़ गति से गतिमान है. जिसका श्रेय केवल वहां के लोगों में काम करने की असाधारण क्षमता को जाता है.  विकास की बोली भाषा से भी अपरिचित हैं अगर थोड़ा जानते भी हैं तो सिर्फ़ ये कि सरकार की व्यस्था क्या है.. सरकार हमारे लिये क्या करेगी , सरकार को ये करना चाहिये वो करना चाहिये वगैरा वगैरा. लेकिन हम घर का कचरा सड़क पर फ़ैंक सरकारी सफ़ाई व्यवस्था के न होते ही मीडिया के सामने रोते झीखते हैं अथवा घर बैठकर कोसतें हैं व्यवस्था को .  मीडिया जो सूचनाओं का बाज़ार है उसे अपनी शैली में सामने ले आता है. बात इस हद तक उत्तम है कि मीडिया अपना काम कर देता है पर हम .. हम तो अपनी आदत से बाज़ नहीं आते हमको सदा ही घर साफ़ रखने और सड़क गंदी करने का वंशानुगत अभ्यास है. शायद ही कुछ गांव ऐसे मिलेंगें जहां शौचालयों को स्टोर रूम की तरह स्तेमाल न किया जा रहा हो. सुधि पाठको अभी हमें विकास की भाषा समझनी है न कि समझ विहीन वार्ताओं में शरीक होना है.. चलो गांधी जयंति नज़दीक आ रही है... जुट जाएं कुछ अच्छा करने के लिये स्वच्छता को ही आत्मसात करने की कोशिश तो करें .. शायद विकास गाथा यहीं से लिख  पाएं हम...........

19.9.14

न्यायालय से हुए समाचार घर


मन चिकित्सक बना देखता ही रहा, दर्द ने देह पर हस्ताक्षर किये...!
आस्था की दवा गिर गई हाथ से और रिश्ते कई फ़िर उजागर हुए...!!

हमसे जो बन पड़ा वो किया था मग़र  कुछ कमी थी हमारे प्रयासों में भी
हमसे ये न हुआ, हमने वो न किया, कुछ नुस्खे लिये  न किताबों से ही
लोग समझा रहे थे हमें रोक कर , हम थे खुद के लिये खुद प्रभाकर हुए
मन चिकित्सक बना देखता ही रहा, दर्द ने देह पर हस्ताक्षर किये...!

चुस्कियां चाय की अब सियासत हुईं  प्याले ने आगे आके बदला समां,
चाय वाले का चिंतन गज़ब ढा गया पीने वाले यहीं और वो है कहां..?
उसने सोचा था जो सच वही हो गया, गद्य बिखरे बिखरके आखर हुए
मन चिकित्सक बना देखता ही रहा, दर्द ने देह पर हस्ताक्षर किये...!

हर तरफ़ देखिये नागफ़नियों के वन, गाज़रीघास की देखो भरमार है
*न्यायालय से हुए समाचार घर, ये समाचार हैं याकि व्यापार हैं....?
छिपे बहुत से हिज़ाबों ही, कुछेक ऐसे हैं जो उज़ागर हुए...!!
मन चिकित्सक बना देखता ही रहा, दर्द ने देह पर हस्ताक्षर किये...!

*News Room's like Court 

15.9.14

आभार ए बी पी न्यूज़ : हिंदी ब्लागिंग को पहचानने के लिये किंतु सवाल शेष रह गये


                       हिंदी भाषा  को लेकर ए बी पी न्यूज़ पर आज़ एक उत्सव का आयोजन बेशक चिंतन को दिशा दे गया. चिंतन में  पहला सवाल हिंदी के उत्सव के मनाने न मनाने को लेकर विमर्श में सबने कहा कि -" हिंदी के लिये उत्सव मनाना चाहिये हिंदी विपन्न नहीं हुई है संवाहकों संवादकर्ताओं की विफ़लता है."


मेरी मान्यता इससे ज़रा सी अलग है हिन्दी जब तक रोटी की भाषा न बनेगी तब तक मैं सोचता हूं  हिन्दी दिवस हिन्दी सप्ताह हिन्दी पखवाड़े हिन्दी माह के बेमानी है. ये अलग बात है कि हमारे प्रधान सेवक हिंदी में अपनी बात रख रहे हैं. फ़िर भी मैं हिंदी उत्सव तब मनाऊंगा   जबकि  हिंदी विकीपीडिया वाले हिन्दी के सन्दर्भों जब तक टांग अड़ाना बंद करेंगेदेश के वकील हिंदी में  रिट पिटीशन और डाक्टर नुस्खे हिन्दी  में लिखेंगे तथा कर्ज़ के लिये आवेदन हिंदी में भरवाए जाएंगे हां तब तक  कम से कम मैं तो उत्सव न मनाऊंगा. यहां स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैं भारतीय भाषाओं के महत्व के लिये उतना ही उत्तेजित हूं जितना कि हिंदी के लिये. 

                    भाषा की समृद्धि का आधार  है भाषा और  रोटी का समीकरण . भाषा यदि रोटी से जुड़ी हो तो उसका प्रवाह सहज होता है .
ए.बी.पी. न्यूज़ पर हुई  बहस में  बाज़ार के सवाल पर  नीलेश मिश्र एवम कुमार विश्वास से सहमत हूं  कि बाज़ार की वज़ह से अगर हिंदी आम बोल चाल की भाषा बनी रहती है तो अच्छा ही है.  यद्यपि मुझे हिंदी को  ज्ञान की भाषा न बनाने के विदेशी भाषा के दबाव पर चर्चा की कमी खली । ए बी पी न्यूज़ पर  सुधीश पचौरी इस बिंदू के नज़दीक आते नज़र आए परंतु फ़टफ़टिया चैनल्स के पास समयाभाव होता है. जिसकी वज़ह से शायद किसी भी प्रतिभागी ने  क़ानून , चिकित्सा, अर्थ-विज्ञान , समाज अथवा अन्य विषयों से  हिंदी के बढ़ते  अंतराल पर कोई चर्चा नहीं की ?  

 ए बी पी न्यूज़ ने  अपने वादे के मुताबिक हिंदी को सम्मानित दर्ज़ा दिलाने की  दिलाने की निरंतर कोशिश करने वाले ब्लॉगर्स यानी चिट्ठाकारों को सम्मानित करने के लिए ए  बी पी न्यूज़ का हिंदी के सभी चिट्ठाकारों स्वागत किया.  सम्मानित हुए अन्य ब्लॉगरों में दिल्ली की रचना (महिलाओं के मुद्दों पर लेखन), दिल्ली के पंकज चतुर्वेदी (पर्यावरण विषयपर लेखन इन्डिया वाटर पोर्टल), दिल्ली के मुकेश ‍तिवारी (राजनीतिक मुद्दों पर लेखन),  दिल्ली के प्रभात रंजन (हिन्दी साहित्य और समाज पर लेखन)  अलवर के शशांक द्विवेदी (विज्ञान के विषय पर लेखन),  मुंबई के अजय ब्रम्हात्जम (सिनेमा, लाइफ़ स्टाइल पर लेखन), इंदौर के प्रकाश हिंदुस्तानी (समसामायिक विषयों पर ब्लॉग), फ़तेहपुर के प्रवीण त्रिवेदी (स्कूली शिक्षा और बच्चों के मुद्दों पर ब्लॉग) और लंदन की शिखा वार्ष्णेय (महिला और घरेलू विषयों पर लेखन) शामिल हैं.

10.9.14

मर्मस्पर्श (कहानी)

       "गुमाश्ता जी क्या हुआ भाई बड़े खुश नज़र आ रहे हो.. अर्र ये काज़ू कतली.. वाह क्या बात है.. मज़ा आ गया... किस खुशी में भाई..?"
        "तिवारी जी, बेटा टी सी एस में स्लेक्ट हो गया था. आज  उसे दो बरस के लिये यू. के. जाना है... !" लो आप एक और लो तिवारी जी.. 
       तिवारी जी काज़ू कतली लेकर अपनी कुर्सी पर विराज गये. और नक़ली मुस्कान बधाईयां देते हुए.. अका़रण ही फ़ाइल में व्यस्त हो गए. सदमा सा लगता जब किसी की औलाद तरक़्की पाती, ऐसा नहीं कि तिवारी जी में किसी के लिये ईर्षा जैसा कोई भाव है.. बल्कि ऐसी घटनाओं की सूचना उनको सीधे अपने बेटे से जोड़ देतीं हैं. तीन बेटियों के बाद जन्मा बेटा.. बड़ी मिन्नतों-मानताओं के बाद प्रसूता... बेटियां एक एक कर कौटोम्बिक परिपाटी के चलते ब्याह दीं गईं. बचा नामुराद शानू.. उर्फ़ पंडित संजय कुमार तिवारी आत्मज़ प्रद्युम्न कुमार तिवारी. दिन भर घर में बैठा-बैठा किताबों में डूबा रहता . पर क्लर्की की परीक्षा भी पास न कर पाया. न रेल्वे की, न बैंक की. प्रायवेट कम्पनी कारखाने में जाब लायक न था. बाहर शुद्ध हिंदी घर में बुंदेली बोलने वाले लड़का मिसफ़िट सा बन के रह गया. किराना परचून की दुक़ान पर काम करने वाले लड़कों से ज़्यादा उसकी योग्यता का आंकलन न तो तिवारी जी ने किया न ही दुनियां का कोई भी कर सकता है. शुद्ध हिंदी ब्रांड युवक था जो उसकी सबसे बड़ी अयोग्यता मानी जाने लगी. तिवारी जी एक दिन बोल पड़े- संजय, तुम्हारे जैसो नालायक दुनियां में दिन में टार्च जला खैं ढूढो तो न मिलहै. देख गुमाश्ता, शर्मा, अली सबके मौड़ा बड़ी बड़ी कम्पनी मैं चिपक गए और तैं हमाई छाती पै सांप सरीखो लोट रओ है. आज लौं. सुनत हो शानू की बाई.. हमाई किस्मत तो लुघरा घांईं या हो गई.. मोरी पेंशन खा..है और  हम हैं सुई ..
भीख मांग है.. पंडत की औलाद जो ठहरो. एम ए पास कर लओ मनौं कछु काबिल नै बन पाओ जो मौड़ा
                                             शानू की मां बुदबुदाई.. "को जानै का का गदत बक़त रहत हैं.मना करो हतो कै सिरकारी स्कूल में न डालो नै माने कहत हते सरकारी अदमी हौं उतई पढ़ै हों.. लो आ गयो न रिज़ल्ट..अब न बे मास्साब रए न स्कूल.. अब भोगो एम ए पास मौड़ा इतै-उतै कोसिस भी करत है तो अंग्रेजी से हार जाउत है."
      अब तुम कछू कहो न.. बाम्हन को मौड़ा है.. कछु कर लै हे.. मंदिर खुलवा दैयो..
"तैं सुई अच्छी बात कर रई है. मंदर खुलावा हौं.. मंदर कौनऊ दुकान या 
                                         ******************************
                         धीरे धीरे सब तिवारी दम्पत्ति के जीवन में तनाव   कढ़वे करेले की मानिंद घुलने लगा. पीढ़ा तब और तेज़ी से उभर आती जब कि गुमाश्ता जी टाइप का कोई व्यक्ति अपनी औलाद की तरक़्क़ी की काज़ू-कतली खिलाता. शानू का नाकारा साबित होना निरंतर जारी है. उधर एक दिन तिवारी जी को दिल की बीमारी से घेर लिया. काजू-कतलियां.. रोग का प्रमुख कारण साबित हो रहीं थीं.. अब तो प्रद्युम्न तिवारी को काज़ू-कतली से उतनी ही  घृणा होने लगी  थी जितना कि चुनाव के समय उम्मीदवारों को आपस में घृणा हो जाती है. 
                     शाम घर लौटेते तिवारी जी के पांव तले शानू गिरा पैरों को धोक देते हुए बोला- पिताजी, मैंने शिक्षा कर्मी की परीक्षा पास कर ली. अब व्यक्तिगत -साक्षात्कार शेष है. शुद्ध हिंदी बोलने वाले विप्र पुत्र को विप्र ने हृदय से लगा लिया. आंखें भीग गईं. सिसकते सुबक़ते बोले - जा, काज़ू कतली ले आ कल सुबह आफ़िस ले जाऊंगा..
सानू- पिताजी, अभी नहीं,  व्यक्तिगत -साक्षात्कार के बाद परिणाम आ जाए. तिवारी जी ने सहमति स्वरूप सहमति वाली मुंडी मटका दी.
                घटना ने परिवार को उत्साह से सराबोर कर दिया . बहनों-बेटियों नातेदारों को फ़ोन करकर के सूचित किया तिवारी जी को लगा कि उनको दुनिया भर की खुशियां मिल गईं. 
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     आज़ का दौर खुशियों और कपूर के लिये अनूकूल नहीं. हौले हौले पर्सनल इंटरव्यू का दिन आया . अब तक पराजित हुए शानू ने पूछा - पिताजी, यदि आज़ मैं न चुना गया तो.. ?
पिता ने कहा -बेटा, शुभ शुभ बोलो, तुम पक्का सलेक्ट होगे. 
शानू ने कहा- पर   मान लीजिये न हो पाया तो .......
 तो .. तो ठीक है.. घर मत आना.. आना तब जब बारोज़गार हो.. हा हा.. अरे बेटा कैसी बात करते हो.. 
            "घर मत आना" संजय के मर्म पर चिपका हुआ द्रव्य सा था... जो बार बार युवा नसों में बह रहे लहू में ज़रा ज़रा सा घुलता.. और संजय उर्फ़ शानू के ज़ेहन को जब जब भी चोट करता तब तब  संजय सिहर उठता .. शाम को जनपद पंचायत के दफ़्तर में लगी लिस्ट में अपना नाम न पाकर .. संजय ने जेब टटोला जेब में एक हज़ार रुपए थे जो काफ़ी थे जनरल डिब्बे की टिकट और रास्ते में रोटी खरीदने के लिये. घर न पहुंच संजय   गाड़ी में जा बैठा.   गाड़ी की दिशा उसे मालूम थी वो जान चुका था कि वो दिल्ली सुबह दस ग्यारह बजे पहुंच जाएगा. वहां क्या करना है इस बात से अनभिग्य था. 
                                     और इस तरह  शाम संजय कुमार तिवारी के घर वापस न आने से तय हो गया  
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          अल्ल सुबह रेल हबीबगंज रेल्वे स्टेशन पर जा रुकी. टिकट तो इंदौर तक का था पर संजय ने सोचा कि पहले यहीं रुका जाए. फ़िर अगर भाग्य ने सहयोग न किया तो आगे चलेंगे. स्टेशन के बाहर उतरकर शानू ने दो कप चाय पीकर सुबह का स्वागत किया . संकल्प ये था कि कोशिश करूंगा शाम तक कोई मज़दूरी वाला काम मिले तब कुछ खाऊं . दिन भर मशक्क़त के बाद भी काम न मिला तो शाम एक चादर खरीद लाया बस स्टेशन पर  सो गया. उसकी जेब के एक हज़ार रुपये खर्च के ताप से घुल के अब सिर्फ़ तीन सौ हो चुके थे. सामने पराठे वाले से एक परांठा खरीदा. खाया और स्टेशन पर सो गया. शक्लो-सूरत से सभ्य सुसंस्कृत दिखने की वज़ह से जी आर पी वाले ने तलाशी के वक़्त उससे कोई पूछताछ न की. एक ऊंचा-पूरा युवा तेज़स्वी चेहरा लिये सुबह उठा और फ़िर गांव की आदत के मुताबिक निकल पड़ा सुबह की सैर को.
            तय ये किया कि रोटी का इंतज़ाम किया जाए. चाहे मज़दूरी क्यों न करनी पड़े . सैर करते कराते  शक्तिनगर वाले मंदिर के पास पहुंचते ही देव दर्शन की आकांक्षा जोर मारने लगी. आदत के मुताबिक विप्र पुत्र ने शिव के सामने जाकर सस्वर शिव महिम्न स्त्रोत का पाठ किया. उसके पीछे भीड़ खड़ी हो गई. भीड़ में बुज़ुर्गों की संख्या अधिक थी. लाफ़िंग-क्लब के सदस्य सदाचारी युवक को अवाक देख रहे थे. एक बोला-पंडिज्जी, किस फ़्लेट में आएं हैं..?
“हा हा, फ़्लेट, न दादा जी न.. शहर मे आज़ ही आया हूं. मज़दूरी के लिये..”
मज़दूरी......?
जी हां मज़दूरी....... ! और क्या हिंदी मीडियम से एम ए पास करने वाला क्या किसी कम्पनी के क़ाबिल होता है.
            बुज़ुर्गों की पारखी आंखों ने उसे पहचान लिया ... लाफ़िंग क्लब की गतिविधि से  लौटने तक रुकने का कह के सारे बुजुर्ग मंदिर परिसर में खाली मैदान जैसे हिस्से में हंसने का अभ्यास करने लगे. शानू खड़ा खड़ा वहीं से उनकी गतिविधियां देख रहा था. कुछ  बुज़ुर्गों के पोपले  चेहरे  उसे गुदगुदा रहे थे.
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बेकार नाकारा किंतु जीवट शानू अपनी जगह बनाने के गुंताड़े में कस्बे से पलायन तो कर आया पर केवल मज़दूर बनने से ज़्यादा योग्यता उसे अपने आप में महसूस नहीं कर पा रहा था. छलनी हृदय में केवल जीत की लालसा पता नहीं कैसे बची थी . शायद संघर्ष के संस्कार ही वज़ह हों.. सोच मंदिर से जाने के लिये बाहर निकल ही रहा था कि- सारे बूढ़े बुज़ुर्ग उसके  क़रीब आ गये. सबने उसे रोका और मंदिर में पूजा और देखभाल की ज़िम्मेदारी सम्हालने की पेशक़श कर डाली.. 
क्रमश: अगले अंक तक ज़ारी   

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धर्म और संप्रदाय

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