28.9.14

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा रोकने हुआ सीधा संवाद

संभागायुक्त श्री दीपक खांडेकर, आई.जी.
महिला सेल श्रीमति प्रग्यारिचा श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में महिला सशक्तिकरण
विभाग एवम पुलिस विभाग के संयुक्त तत्वावधान में
सीधा :संवाद
कार्यक्रम का आयोजन किया गया . दो सोपान में आयोजित  इस कार्यक्रम में बोलते हुए संभागीय आयुक्त
श्री  दीपक खांडेकर ने कहा
–“ दिन प्रतिदिन
विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं कीभागीदारी बढ़ रही है ।  ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि जहां पर
महिलाएं जा रही हैं  काम कर रही हैं
, वे
स्थल चाहे शासकीय हों अथवा अशासकीय हों या निजी हों
, कार्य करने की दृष्टि से
पूरी तरह सुरक्षित हों
,जिससे महिलाएं बिना किसी झिझक के कार्य कर सकें या कार्य करवा सकें । उनमें
असुरक्षा की भावना नरहे ।  किसी भी प्रकार
से उनका लैंगिक उत्पीड़न न हो । महिलाओं के कार्य करने के स्थल सुरक्षित
औरसुविधाजनक हो । यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो समानता की बात करना बेमानी होगी
।  देश की संसद ने इसके लिए वर्ष 2013 में
कार्य स्थल पर सुरक्षा को लेकर लैंगिक उत्पीड़न निवारण
, प्रतिषेध
एवं प्रतितोषण
,
अधिनियम बनाया है । इस अधिनियम में महिलाओं की सुरक्षा के
संबंध में विभिन्न प्रावधान किए गए हैं।
कार्यालय या किसी भी कार्य स्थल पर कार्यालय या संस्था प्रमुख की जवाबदेही
होगी कि कार्य स्थल परसुरक्षित कार्य का वातावरण उपलब्ध करायें । कार्य स्थल के
लोगों को इसके प्रति जागरूक बनाया जाये । अपने कार्यालय में एक समिति गठित करें जो
इस प्रकार के मामलों की मानीटरिंग करे और कार्यवाही करे। 
कार्यशाला में पुलिस महानिरीक्षक डी. श्रीनिवास राव ने कहा
कि कार्य स्थल पर महिलाओं के लैंगिक उत्पीड़न रोकने के लिए बनाये गये अधिनियम में जो
प्रावधान किए गए हैं उनका सभी संभागीयएवं जिलों के कार्यालयों में पालन हो ।
  महिलाओं के लिए कार्य स्थल पर एक सुरक्षित
वातावरण दिया जाए ।
  जिससे वे गरिमा और
सम्मान के साथ अपने दायित्वों का निर्वहन कर सकें ।
  उनके अंदर कभी भीअसुरक्षा की भावना न आए । यदि
कोई कर्मचारी या सहकर्मी प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो उसके विरूद्ध सख्त
कार्यवाही हो ।
पुलिस महानिरीक्षक (महिला अपराध) श्रीमती प्रज्ञा ऋचा
श्रीवास्तव ने कहा
–“ समाज की 50% प्रतिशत आबादी महिलाओं की है ।
इस आधी आबादी को सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराना होगा । सुरक्षित वातावरण
में ही समाज के निर्माण में यह अपना योगदान दे पायेगी । यदि हम वास्तव में चाहते
हैंकि महिलाएं आगे आयें तो उन्हें कार्य स्थल पर बेहतर वातावरण मुहैया कराना होगा ।
कार्यशाला में अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों पर प्रकाश डाला गया ।
लैंगिक उत्पीड़न में शारीरिक सम्पर्क, लैंगिक
स्वीकृति के लिए कोई मांग या अनुरोध
,
लैंगिक  टिप्पणी करना, अश्लील साहित्य दिखाना, लैंगिक
प्रकृति का कोई अन्य निंदनीय
,
शारीरिक,
शाब्दिक या गैरशाब्दिक आचरण करना शामिल है ।  इसी प्रकार कार्य स्थल की व्याख्या इस प्रकार बताई गई ऐसा कोई विभागसंगठन उपक्रमस्थापन,उद्यमसंस्थाकार्यालय,
शाखा या यूनिटगैर सरकारी संगठनकोई प्राइवेट सेक्टरसोसाइटीन्यासअस्पतालप्रशिक्षण केंद्रकोई खेलकूद संस्थान कोई निवास गृह या कोईअन्य गृह । नियोजन से आशय है उसके उपक्रम के दौरान कर्मचारी द्वारा भ्रमण किया गया कोई स्थान एवंउपलब्ध कराया गया परिवहन भी है ।
              कार्यशाला के द्वितीय सोपान में टाक शो का समावेश बेहद प्रभावी रहा जिसमें श्री अमृतलाल वेगड, श्री रवींद्र बाजपेई, महिला मुद्दों पर विशेषरूप से आदिवासी दलित महिलाओं के लिये कार्य करने वाली  सामाजिक कार्यकर्ता दया मां (हर्रई) , श्री मनीष दत्त, श्रीमति उपमा राय, फ़िलम अभिनेता श्री आशुतोष राणा, मनोवैज्ञानिक श्रीमती जैन (सागर), अपराध शास्त्र विशेषज्ञ राजू टंडनस्त्री रोग विशेषज्ञ डा.रूपलेखा चौहान ने तीन पीढियों से सीधा संवाद किया. युवा, प्रौढ़, वयोवृद्ध जनों से हुई बातचीत में अंतत: एक सारभूत तत्व सामने आया कि "महिलाओं के विरुद्ध बढ़ते जा रहे संत्राष का मूल आधार समकालीन  सामजिक परिस्थितियां हैं. ज़रूरत है आत्मअंवेषण की"
  सिने कलाकर आशुतोष राणा ने अपने वक्तव्य एवम पूछे गये सवालों के ज़वाब आद्यात्मिक आधार पर दिये, जबकि अमृतलाल वेगड़ ने नारी के सशक्त स्वरूप की व्याख्या करते हुए रोचक शैली में कहा कि- "समकालीन परिस्थियां तुरंत वैचारिक रूप से संवेदित  होने एवं आत्मचिंतन करने के लिये प्रेरित कर रहीं हैं.. "
   वरिष्ट पत्रकार श्री रवींद्र वाजपेई ने सामाजिक सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण से महिलाओं के विरुद्ध हो रही हिंसा लैंगिक अपराधों को रोकने का कारगर एवं प्रभावी तरीक़ा निरूपित किया. 
   दया मां ने महिलाओं को उनके अधिकारों मौज़ूदा क़ानूनों की जानकारी मुहैया कराने पर बल दिया. 
डा. रूपलेखा चौहान ने कहा कि- "सामाजिक सोच में परिवर्तन लाए बिना न तो भ्रूण हत्याएं रोकी जा सकेंगी और न ही महिलाओं के खिलाफ़ होती घटनाओं को रोका जा सकता है"  

     एड. मनीष दत्त ने मौज़ूदा कानूनों का ज़िक्र करते हुए महिलाओं को स्वयं तत्परता के लिये प्रेरित किया.   


       इस अवसर पर श्री मनु श्रीवास्तव, सी एम डी विद्युत-वितरण कम्पनी,  पुलिस महक़मे के अधिकारी गण,  संयुक्त-संचालक महिला बाल विकास श्री हरिकृष्ण शर्मा, संभागीय उपसंचालक महिला सशक्तिकरण  श्रीमति शालिनी तिवारी सहित  जिला महिला सशक्तिकरण अधिकारी, संरक्षण अधिकारीयों एवं  संभाग के विभिन्न जिलों से आए स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि , विभिन्न विभागों के अधिकारीगण, महिलाओं के लिये कार्य करने वाले विचारक एवं एक्टिविष्ट, मीडिया से जुड़े प्रतिनिधि, किशोर बालक बालिकाएं,  वयो वृद्ध जन विषेश रूप से आमंत्रित थे
_________________________
 विषय से भटके पेनलिस्ट राणा जबकि दादा अमृतलाल बेगड़  रवींद्र बाजपेई, उपमा राय,राय ने तथ्यात्मक जानकारी देकर प्रश्नों के सटीक उत्तर दिये  

         संगोष्ठी में आशुतोष राणा विषय से भटक कर कराधान पर बोल पड़े जबकि बेगड़ जी, रवींद्र बाजपेई, उपमा राय जी ने जितना भी कहा अत्यंत प्रबावी रहा . प्रश्नकर्ताओं के सवाल आक्रामक थे ऐसा लगा कि उनमें परिवेश को आंकने में तथा सामाजिक मुद्दों पर व्यवहारिक अध्ययन कमज़ोर या सिर आंकड़ों पर आश्रित था. 
प्रख्यात चिकित्सक डा.रूपलेखा चौहान, पी एन डी टी एक्ट के उल्लंघन में डाक्टरों की मिलीभगत  के सवाल पर चिकित्सक समुदाय को बचातीं नज़र आईं.   

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चित्र वीथी
प्रथम सोपान 

संभागायुक्त श्री दीपक खांडेकर जी

कार्यक्रम संचालन करते हुए राकेश राव

प्रतिभागी 

प्रतिभागी 


26.9.14

आभार डिंडोरी

डिंडोरी वासियों का विनम्र आभार जिनके सहयोग से दो वर्ष से अधिक समय बाल विकास परियोजना अधिकारी डिंडोरी के पद पर सफलता पूर्वक कार्य कर सका
आभार उन सबका भी जिनने मुझे मार्गदर्शन दिया
उन सबका भी आभार जो मेरे काम में बाधा पैदा करते रहे और मैं नए नए निर्बाध रास्ते खोजता रहा रास्ते मिले भी और मुझे रास्ते खोजने का तरीका भी मिला । इस कवायद में मेरे कार्य कौशल में इजाफा ही हुआ है
दोस्तों आपका आभार जो मुझसे बायस थे पर अब किसी भी कारण से स्तब्ध हैं शायद अब समझ गए होगे कि सूचनाओं के आधार पर राय कायम करना मूर्खता होती है ।
उन व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक तौर पर चुगलखोरों का विशेष का आभार जो आदतन निंदा कर मेरे सचेतक बने तथा एक्सपोज़ हुए बड़ी आसानी से । ऐसे आस्तीन वाले सहयोगियों को विश्वास करना होगा कि दीवारों के कान फूटे नहीं आज भी दीवारें सुनतीं हैं सुनातीं है।
आभार उन कुछ कलमकारों के   जो ये साबित कर पाए कि भिखारी किसी भी रूप में हो भिखारी होता है ।
आभार उन मूर्खों का जो बताने में सफल हुए कि वे निरे मूर्ख हैं वरना गलत पहचान का दोष मेरे माथे होता ।
जो मित्र दफ्तर दफ्तर भिक्षा वृत्ति करने निकलते हैं उनको मेरी एक मात्र सलाह है कि ब्लैकमेलिंग और व्यवस्था सुधार में ज़मीन आसमान का फर्क है ।
उन स्नेहियों का आभार जो वास्तव में जीवनरूपी  नर्मदा की पवित्रता का अर्थ  समझते हैं तथा पवित्र हैं भी

22.9.14

सिस्टम : एक अवलोकन



सरकारी अफ़सर हो या उसकी ज़िंदगी चौबीसों-घंटे के लिये सरकारी होते हैं जो भी होता है सब कुछ सरकारी ही तो होता है. दफ़्तर का चपरासी आफ़िस से ज़्यादा घर का काम करे तो वफ़ादार , जो बाबू घर जाके चापलूसी करे पूरी निष्ठा और ईमानदारी चुगलखोरी करे वो निष्ठावान, बाकी  बाकियों कोकिसी काम के नहीं वाली श्रेणी में रखा जा सकता है..!”
ईमानदारी का दम भरने वाला साहब उसके कान में चुपके से कुछ कह देता है और वो बस हो जाता है हलाकान गिरी से न रहा गया उसने पूछा-राजेंद्र क्या बात है किस तनाव में हो भई..?
राजेंद्रका बतावैं,साहब, सोचता हूं कि बीमार हो जाऊं..!
गिरी-बीमार हों तुमाए दुश्मन तुम काए को..
राजेंद्र-अरे साहब, दुश्मन ही बीमार हो जाए ससुरा !
गिरी ने पूछा- भई, हम भी तो जानें कौन है तुम्हारा दुश्मन..?
राजेंद्र- वही, जो अब रहने दो साहब, का करोगे जानकर..
गिरी-अरे बता भी दो भाई.. हम कोई गै़र तो नहीं..
राजेंद्र-साहब, साठ मीटर पर्दे को एडजस्ट करने में कित्ती स्टेशनरी लगेगी.. गणित में कमज़ोर हूं सा..
गिरी समझ गया कि राजेंद्र को उसके बास ने घरके पर्दे बदलने का आदेश दिया है. एक दीर्घ सांस छोड़ते हुए उसने बताया-“अरे, हर सेक्शन से मांग पत्र ले ले स्टेशनरी का कमसे कम सात हज़ार का इंतज़ाम करना होगा
राजेंद्र-सा ये तो चार माह की खपत है.. बाप रे मर जाऊंगा
गिरी- लाया तो भी तो मरना है है न..?
हां साहब सच्ची बात हैराजेंद्र ने हर बाबू की तरफ़ नोटशीट बढ़ा दी की तीन दिवस में सब अपनी शाखा की स्टेशनरी मांग ले.
सब कुछ वैसे ही हुआ. सब के सब बिना कुछ बोले हज़ूर के आदेश की भाषा समझ गये थे गोया.
सबने बिना नानुकुर के स्टाक-रजिस्टर में भी दस्तखत कर दिये राजेंद्र ने वही किया जो बास ने कहा था. घर के पर्दे बदल गए. बस सब कुछ सामान्य सा हो गया

और इस तरह एक अदृश्य किंतु अति महत्वपूर्ण कार्य निष्पादित हो गया.

21.9.14

हम विकास की भाषा से अनजान हैं..

          विश्व में  शांति की बहाली को लेकर समझदार लोग बेहद बेचैन हैं  कि किस प्रकार विश्व में अमन बहाल हो ? चीनी राष्ट्रपति के भारत आगमन के वक़्त तो अचानक मानों चिंतन और चर्चा को पंख लग गए . जिधर देखिये उधर चीन की विस्तारवादी नीति के कारण प्रसूते सीमाई विवाद के चलते  व्यवसायिक अंतर्संबंधों को संदर्भित करते हुए  चर्चाओं में खूब ऊर्ज़ा खर्च की जा रही है . 
 
            हम भारतीयों की एक आदत है कि हम किसी मुद्दे को या तो सहज स्वीकारते हैं या एकदम सिरे से खारिज़ कर देते हैं. वास्तव में आज़कल जो भी वैचारिक रूप से परोसा जा रहा है उसे पूरा परिपक्व तो कहा नहीं जा सकता. आप जानते ही हैं कि जिस तरह अधपका भोजन शरीर के लिये फ़ायदेमंद नहीं होता ठीक उसी तरह संदर्भ और समझ विहीन वार्ताएं मानस के लिये . तो फ़िर इतना वैचारिक समर क्यों .. ? इस बिंदु की पड़ताल से पता चला कि बहस   कराने वाला एक ऐसे बाज़ार का हिस्सा है जो सूचनाओं के आधार पर अथवा सूचनाओं (समाचारों को लेकर ) एक प्रोग्राम प्रस्तुत कर रहा होता है. उसे इस बात से कोई लेना देना नहीं कि संवादों के परिणाम क्या हो सकते हैं. 
             बाज़ार का विरोध करने वाले लोग, सांस्कृतिक संरचनाओं की बखिया उधेड़ने वाले लोग, सियासत, अर्थशास्त्र, सामाजिक मुद्दों पर चिंतन हेतु आधिकारिक योग्यता रखने वाले लोग बहुतायत में उन जगहों पर काम कर रहे हैं जहां ऐसी बहसें होतीं हैं. कई बार तो वार्ताएं अखाड़ों का स्वरूप ले लेतीं हैं. 
            चलिये चीन की जीवनशैली पर विचार करें तो हम पाते हैं कि वहां विकास   हमसे बेहतर हुआ है. और जापान भी हमसे तेज़ गति से गतिमान है. जिसका श्रेय केवल वहां के लोगों में काम करने की असाधारण क्षमता को जाता है.  विकास की बोली भाषा से भी अपरिचित हैं अगर थोड़ा जानते भी हैं तो सिर्फ़ ये कि सरकार की व्यस्था क्या है.. सरकार हमारे लिये क्या करेगी , सरकार को ये करना चाहिये वो करना चाहिये वगैरा वगैरा. लेकिन हम घर का कचरा सड़क पर फ़ैंक सरकारी सफ़ाई व्यवस्था के न होते ही मीडिया के सामने रोते झीखते हैं अथवा घर बैठकर कोसतें हैं व्यवस्था को .  मीडिया जो सूचनाओं का बाज़ार है उसे अपनी शैली में सामने ले आता है. बात इस हद तक उत्तम है कि मीडिया अपना काम कर देता है पर हम .. हम तो अपनी आदत से बाज़ नहीं आते हमको सदा ही घर साफ़ रखने और सड़क गंदी करने का वंशानुगत अभ्यास है. शायद ही कुछ गांव ऐसे मिलेंगें जहां शौचालयों को स्टोर रूम की तरह स्तेमाल न किया जा रहा हो. सुधि पाठको अभी हमें विकास की भाषा समझनी है न कि समझ विहीन वार्ताओं में शरीक होना है.. चलो गांधी जयंति नज़दीक आ रही है... जुट जाएं कुछ अच्छा करने के लिये स्वच्छता को ही आत्मसात करने की कोशिश तो करें .. शायद विकास गाथा यहीं से लिख  पाएं हम...........

19.9.14

न्यायालय से हुए समाचार घर


मन चिकित्सक बना देखता ही रहा, दर्द ने देह पर हस्ताक्षर किये...!
आस्था की दवा गिर गई हाथ से और रिश्ते कई फ़िर उजागर हुए...!!

हमसे जो बन पड़ा वो किया था मग़र  कुछ कमी थी हमारे प्रयासों में भी
हमसे ये न हुआ, हमने वो न किया, कुछ नुस्खे लिये  न किताबों से ही
लोग समझा रहे थे हमें रोक कर , हम थे खुद के लिये खुद प्रभाकर हुए
मन चिकित्सक बना देखता ही रहा, दर्द ने देह पर हस्ताक्षर किये...!

चुस्कियां चाय की अब सियासत हुईं  प्याले ने आगे आके बदला समां,
चाय वाले का चिंतन गज़ब ढा गया पीने वाले यहीं और वो है कहां..?
उसने सोचा था जो सच वही हो गया, गद्य बिखरे बिखरके आखर हुए
मन चिकित्सक बना देखता ही रहा, दर्द ने देह पर हस्ताक्षर किये...!

हर तरफ़ देखिये नागफ़नियों के वन, गाज़रीघास की देखो भरमार है
*न्यायालय से हुए समाचार घर, ये समाचार हैं याकि व्यापार हैं....?
छिपे बहुत से हिज़ाबों ही, कुछेक ऐसे हैं जो उज़ागर हुए...!!
मन चिकित्सक बना देखता ही रहा, दर्द ने देह पर हस्ताक्षर किये...!

*News Room's like Court 

15.9.14

आभार ए बी पी न्यूज़ : हिंदी ब्लागिंग को पहचानने के लिये किंतु सवाल शेष रह गये


                       हिंदी भाषा  को लेकर ए बी पी न्यूज़ पर आज़ एक उत्सव का आयोजन बेशक चिंतन को दिशा दे गया. चिंतन में  पहला सवाल हिंदी के उत्सव के मनाने न मनाने को लेकर विमर्श में सबने कहा कि -" हिंदी के लिये उत्सव मनाना चाहिये हिंदी विपन्न नहीं हुई है संवाहकों संवादकर्ताओं की विफ़लता है."


मेरी मान्यता इससे ज़रा सी अलग है हिन्दी जब तक रोटी की भाषा न बनेगी तब तक मैं सोचता हूं  हिन्दी दिवस हिन्दी सप्ताह हिन्दी पखवाड़े हिन्दी माह के बेमानी है. ये अलग बात है कि हमारे प्रधान सेवक हिंदी में अपनी बात रख रहे हैं. फ़िर भी मैं हिंदी उत्सव तब मनाऊंगा   जबकि  हिंदी विकीपीडिया वाले हिन्दी के सन्दर्भों जब तक टांग अड़ाना बंद करेंगेदेश के वकील हिंदी में  रिट पिटीशन और डाक्टर नुस्खे हिन्दी  में लिखेंगे तथा कर्ज़ के लिये आवेदन हिंदी में भरवाए जाएंगे हां तब तक  कम से कम मैं तो उत्सव न मनाऊंगा. यहां स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैं भारतीय भाषाओं के महत्व के लिये उतना ही उत्तेजित हूं जितना कि हिंदी के लिये. 

                    भाषा की समृद्धि का आधार  है भाषा और  रोटी का समीकरण . भाषा यदि रोटी से जुड़ी हो तो उसका प्रवाह सहज होता है .
ए.बी.पी. न्यूज़ पर हुई  बहस में  बाज़ार के सवाल पर  नीलेश मिश्र एवम कुमार विश्वास से सहमत हूं  कि बाज़ार की वज़ह से अगर हिंदी आम बोल चाल की भाषा बनी रहती है तो अच्छा ही है.  यद्यपि मुझे हिंदी को  ज्ञान की भाषा न बनाने के विदेशी भाषा के दबाव पर चर्चा की कमी खली । ए बी पी न्यूज़ पर  सुधीश पचौरी इस बिंदू के नज़दीक आते नज़र आए परंतु फ़टफ़टिया चैनल्स के पास समयाभाव होता है. जिसकी वज़ह से शायद किसी भी प्रतिभागी ने  क़ानून , चिकित्सा, अर्थ-विज्ञान , समाज अथवा अन्य विषयों से  हिंदी के बढ़ते  अंतराल पर कोई चर्चा नहीं की ?  

 ए बी पी न्यूज़ ने  अपने वादे के मुताबिक हिंदी को सम्मानित दर्ज़ा दिलाने की  दिलाने की निरंतर कोशिश करने वाले ब्लॉगर्स यानी चिट्ठाकारों को सम्मानित करने के लिए ए  बी पी न्यूज़ का हिंदी के सभी चिट्ठाकारों स्वागत किया.  सम्मानित हुए अन्य ब्लॉगरों में दिल्ली की रचना (महिलाओं के मुद्दों पर लेखन), दिल्ली के पंकज चतुर्वेदी (पर्यावरण विषयपर लेखन इन्डिया वाटर पोर्टल), दिल्ली के मुकेश ‍तिवारी (राजनीतिक मुद्दों पर लेखन),  दिल्ली के प्रभात रंजन (हिन्दी साहित्य और समाज पर लेखन)  अलवर के शशांक द्विवेदी (विज्ञान के विषय पर लेखन),  मुंबई के अजय ब्रम्हात्जम (सिनेमा, लाइफ़ स्टाइल पर लेखन), इंदौर के प्रकाश हिंदुस्तानी (समसामायिक विषयों पर ब्लॉग), फ़तेहपुर के प्रवीण त्रिवेदी (स्कूली शिक्षा और बच्चों के मुद्दों पर ब्लॉग) और लंदन की शिखा वार्ष्णेय (महिला और घरेलू विषयों पर लेखन) शामिल हैं.

10.9.14

मर्मस्पर्श (कहानी)

       "गुमाश्ता जी क्या हुआ भाई बड़े खुश नज़र आ रहे हो.. अर्र ये काज़ू कतली.. वाह क्या बात है.. मज़ा आ गया... किस खुशी में भाई..?"
        "तिवारी जी, बेटा टी सी एस में स्लेक्ट हो गया था. आज  उसे दो बरस के लिये यू. के. जाना है... !" लो आप एक और लो तिवारी जी.. 
       तिवारी जी काज़ू कतली लेकर अपनी कुर्सी पर विराज गये. और नक़ली मुस्कान बधाईयां देते हुए.. अका़रण ही फ़ाइल में व्यस्त हो गए. सदमा सा लगता जब किसी की औलाद तरक़्की पाती, ऐसा नहीं कि तिवारी जी में किसी के लिये ईर्षा जैसा कोई भाव है.. बल्कि ऐसी घटनाओं की सूचना उनको सीधे अपने बेटे से जोड़ देतीं हैं. तीन बेटियों के बाद जन्मा बेटा.. बड़ी मिन्नतों-मानताओं के बाद प्रसूता... बेटियां एक एक कर कौटोम्बिक परिपाटी के चलते ब्याह दीं गईं. बचा नामुराद शानू.. उर्फ़ पंडित संजय कुमार तिवारी आत्मज़ प्रद्युम्न कुमार तिवारी. दिन भर घर में बैठा-बैठा किताबों में डूबा रहता . पर क्लर्की की परीक्षा भी पास न कर पाया. न रेल्वे की, न बैंक की. प्रायवेट कम्पनी कारखाने में जाब लायक न था. बाहर शुद्ध हिंदी घर में बुंदेली बोलने वाले लड़का मिसफ़िट सा बन के रह गया. किराना परचून की दुक़ान पर काम करने वाले लड़कों से ज़्यादा उसकी योग्यता का आंकलन न तो तिवारी जी ने किया न ही दुनियां का कोई भी कर सकता है. शुद्ध हिंदी ब्रांड युवक था जो उसकी सबसे बड़ी अयोग्यता मानी जाने लगी. तिवारी जी एक दिन बोल पड़े- संजय, तुम्हारे जैसो नालायक दुनियां में दिन में टार्च जला खैं ढूढो तो न मिलहै. देख गुमाश्ता, शर्मा, अली सबके मौड़ा बड़ी बड़ी कम्पनी मैं चिपक गए और तैं हमाई छाती पै सांप सरीखो लोट रओ है. आज लौं. सुनत हो शानू की बाई.. हमाई किस्मत तो लुघरा घांईं या हो गई.. मोरी पेंशन खा..है और  हम हैं सुई ..
भीख मांग है.. पंडत की औलाद जो ठहरो. एम ए पास कर लओ मनौं कछु काबिल नै बन पाओ जो मौड़ा
                                             शानू की मां बुदबुदाई.. "को जानै का का गदत बक़त रहत हैं.मना करो हतो कै सिरकारी स्कूल में न डालो नै माने कहत हते सरकारी अदमी हौं उतई पढ़ै हों.. लो आ गयो न रिज़ल्ट..अब न बे मास्साब रए न स्कूल.. अब भोगो एम ए पास मौड़ा इतै-उतै कोसिस भी करत है तो अंग्रेजी से हार जाउत है."
      अब तुम कछू कहो न.. बाम्हन को मौड़ा है.. कछु कर लै हे.. मंदिर खुलवा दैयो..
"तैं सुई अच्छी बात कर रई है. मंदर खुलावा हौं.. मंदर कौनऊ दुकान या 
                                         ******************************
                         धीरे धीरे सब तिवारी दम्पत्ति के जीवन में तनाव   कढ़वे करेले की मानिंद घुलने लगा. पीढ़ा तब और तेज़ी से उभर आती जब कि गुमाश्ता जी टाइप का कोई व्यक्ति अपनी औलाद की तरक़्क़ी की काज़ू-कतली खिलाता. शानू का नाकारा साबित होना निरंतर जारी है. उधर एक दिन तिवारी जी को दिल की बीमारी से घेर लिया. काजू-कतलियां.. रोग का प्रमुख कारण साबित हो रहीं थीं.. अब तो प्रद्युम्न तिवारी को काज़ू-कतली से उतनी ही  घृणा होने लगी  थी जितना कि चुनाव के समय उम्मीदवारों को आपस में घृणा हो जाती है. 
                     शाम घर लौटेते तिवारी जी के पांव तले शानू गिरा पैरों को धोक देते हुए बोला- पिताजी, मैंने शिक्षा कर्मी की परीक्षा पास कर ली. अब व्यक्तिगत -साक्षात्कार शेष है. शुद्ध हिंदी बोलने वाले विप्र पुत्र को विप्र ने हृदय से लगा लिया. आंखें भीग गईं. सिसकते सुबक़ते बोले - जा, काज़ू कतली ले आ कल सुबह आफ़िस ले जाऊंगा..
सानू- पिताजी, अभी नहीं,  व्यक्तिगत -साक्षात्कार के बाद परिणाम आ जाए. तिवारी जी ने सहमति स्वरूप सहमति वाली मुंडी मटका दी.
                घटना ने परिवार को उत्साह से सराबोर कर दिया . बहनों-बेटियों नातेदारों को फ़ोन करकर के सूचित किया तिवारी जी को लगा कि उनको दुनिया भर की खुशियां मिल गईं. 
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     आज़ का दौर खुशियों और कपूर के लिये अनूकूल नहीं. हौले हौले पर्सनल इंटरव्यू का दिन आया . अब तक पराजित हुए शानू ने पूछा - पिताजी, यदि आज़ मैं न चुना गया तो.. ?
पिता ने कहा -बेटा, शुभ शुभ बोलो, तुम पक्का सलेक्ट होगे. 
शानू ने कहा- पर   मान लीजिये न हो पाया तो .......
 तो .. तो ठीक है.. घर मत आना.. आना तब जब बारोज़गार हो.. हा हा.. अरे बेटा कैसी बात करते हो.. 
            "घर मत आना" संजय के मर्म पर चिपका हुआ द्रव्य सा था... जो बार बार युवा नसों में बह रहे लहू में ज़रा ज़रा सा घुलता.. और संजय उर्फ़ शानू के ज़ेहन को जब जब भी चोट करता तब तब  संजय सिहर उठता .. शाम को जनपद पंचायत के दफ़्तर में लगी लिस्ट में अपना नाम न पाकर .. संजय ने जेब टटोला जेब में एक हज़ार रुपए थे जो काफ़ी थे जनरल डिब्बे की टिकट और रास्ते में रोटी खरीदने के लिये. घर न पहुंच संजय   गाड़ी में जा बैठा.   गाड़ी की दिशा उसे मालूम थी वो जान चुका था कि वो दिल्ली सुबह दस ग्यारह बजे पहुंच जाएगा. वहां क्या करना है इस बात से अनभिग्य था. 
                                     और इस तरह  शाम संजय कुमार तिवारी के घर वापस न आने से तय हो गया  
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          अल्ल सुबह रेल हबीबगंज रेल्वे स्टेशन पर जा रुकी. टिकट तो इंदौर तक का था पर संजय ने सोचा कि पहले यहीं रुका जाए. फ़िर अगर भाग्य ने सहयोग न किया तो आगे चलेंगे. स्टेशन के बाहर उतरकर शानू ने दो कप चाय पीकर सुबह का स्वागत किया . संकल्प ये था कि कोशिश करूंगा शाम तक कोई मज़दूरी वाला काम मिले तब कुछ खाऊं . दिन भर मशक्क़त के बाद भी काम न मिला तो शाम एक चादर खरीद लाया बस स्टेशन पर  सो गया. उसकी जेब के एक हज़ार रुपये खर्च के ताप से घुल के अब सिर्फ़ तीन सौ हो चुके थे. सामने पराठे वाले से एक परांठा खरीदा. खाया और स्टेशन पर सो गया. शक्लो-सूरत से सभ्य सुसंस्कृत दिखने की वज़ह से जी आर पी वाले ने तलाशी के वक़्त उससे कोई पूछताछ न की. एक ऊंचा-पूरा युवा तेज़स्वी चेहरा लिये सुबह उठा और फ़िर गांव की आदत के मुताबिक निकल पड़ा सुबह की सैर को.
            तय ये किया कि रोटी का इंतज़ाम किया जाए. चाहे मज़दूरी क्यों न करनी पड़े . सैर करते कराते  शक्तिनगर वाले मंदिर के पास पहुंचते ही देव दर्शन की आकांक्षा जोर मारने लगी. आदत के मुताबिक विप्र पुत्र ने शिव के सामने जाकर सस्वर शिव महिम्न स्त्रोत का पाठ किया. उसके पीछे भीड़ खड़ी हो गई. भीड़ में बुज़ुर्गों की संख्या अधिक थी. लाफ़िंग-क्लब के सदस्य सदाचारी युवक को अवाक देख रहे थे. एक बोला-पंडिज्जी, किस फ़्लेट में आएं हैं..?
“हा हा, फ़्लेट, न दादा जी न.. शहर मे आज़ ही आया हूं. मज़दूरी के लिये..”
मज़दूरी......?
जी हां मज़दूरी....... ! और क्या हिंदी मीडियम से एम ए पास करने वाला क्या किसी कम्पनी के क़ाबिल होता है.
            बुज़ुर्गों की पारखी आंखों ने उसे पहचान लिया ... लाफ़िंग क्लब की गतिविधि से  लौटने तक रुकने का कह के सारे बुजुर्ग मंदिर परिसर में खाली मैदान जैसे हिस्से में हंसने का अभ्यास करने लगे. शानू खड़ा खड़ा वहीं से उनकी गतिविधियां देख रहा था. कुछ  बुज़ुर्गों के पोपले  चेहरे  उसे गुदगुदा रहे थे.
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बेकार नाकारा किंतु जीवट शानू अपनी जगह बनाने के गुंताड़े में कस्बे से पलायन तो कर आया पर केवल मज़दूर बनने से ज़्यादा योग्यता उसे अपने आप में महसूस नहीं कर पा रहा था. छलनी हृदय में केवल जीत की लालसा पता नहीं कैसे बची थी . शायद संघर्ष के संस्कार ही वज़ह हों.. सोच मंदिर से जाने के लिये बाहर निकल ही रहा था कि- सारे बूढ़े बुज़ुर्ग उसके  क़रीब आ गये. सबने उसे रोका और मंदिर में पूजा और देखभाल की ज़िम्मेदारी सम्हालने की पेशक़श कर डाली.. 
क्रमश: अगले अंक तक ज़ारी   

5.9.14

चैनल V के दिल दोस्ती डांस में नवोदित सितारा : आशुतोष बिल्लोरे


 खरगौन जिले के भीकनगांव कस्बे में बतौर  पंडित राजेंद्र बिल्लोरे अपने बेटे को किसी ऐसे अच्छे प्रोफ़ेशन में डालना चाहते थे जिससे बेटे को आर्थिक-समृद्धि एवम  सामाजिक तौर पर  प्रतिष्ठा दे सके. सामान्यरूप से ऐसा मंज़र आम मध्य-वर्ग परिवारों में होता है. किंतु  पिता माता ने आशुतोष की कला को सर्वोपरि रखा और 11वीं के बाद कला-साधना को साधन और अवसर देने के लिये इंदौर जाने की अनुमति दे दी. जहां उन्हैं बी.काम. की पढ़ाई के साथ साथ पर्फ़ार्मिंग कला के विस्तार के अवसर मिले. मध्य-प्रदेश टेलेंट शो, मलवा कला अकादमी, डांस इंडौर डांस, आइ.आइ.एम इन्दौर, डांश का महा संग्राम जैसी प्रतियोगिताओं में बेहद प्रसंशा एवम अव्वल स्थान अर्जित किये. इंदौर में ही जावेद जाफ़री, गीता कपूर, धर्मेष  कुंवर अमर, जैसी हस्तियों ने आशुतोष की कला साधना को सराहा और सतत साधना जारी रखने की सलाह दी.
        आशुतोष ने भारतीय और विदेशी शैली में नृत्य एवं अभिनय को अपनाया. पर अपने जन्म भूमि भीकनगांव में कला-साधकों के लिये लगातार कई शार्ट-टर्म-कोर्स, वर्कशाप आयोजित कीं.
        भीकनगांव के स्कूल शिक्षक का बेटा जब मायानगरी गया तब उसके साथ संकल्प थे , संघर्ष था और थी आत्मविश्वास की पोटली. “दिल दोस्ती डांस” के आडिशन में उसे स्किल्ड कलाकार के रूप में देखा और तुरंत  आफ़र कर दिया. अब तक आशुतोष बिल्लोरे के चैनल v पर छै से अधिक एपीसोड टेलिकास्ट हो चुके और शूटिंग जारी हैं.
आशुतोष का मानना है- “अभी आगे और भी आसमान हैं.. संघर्ष और साधना” से ही उन तक पहुंचा जा सकता है.
जबलपुर से जुड़ाव है आशुतोष का
आशुतोष जबलपुर से जुड़े हैं. उनके मामा श्री विकास टेमले एवम मेरे परिवार से करीबी रिश्ता रखने वाली इस प्रतिभा ने जबलपुर में अपने प्रतिभा-प्रदर्शन का आश्वाशन दिया है.
               आशुतोष का संकल्प है कि वे कोरियोग्राफ़ी को करियर के रूप में आगे अपनाएंगे.


3.9.14

अदभुत सोचते हैं पी नरहरि जी

नित नया करना सहज़ है लेकिन नित नया सोचना वो भी आम आदमी की मुश्किलों से बाबस्ता मुद्दों पर और फ़िर रास्ता निकाल लेना सबके बस में कहां. जितना मानसिक दबाव कलेक्टर्स पर होता है शायद आम आदमी उसका अंदाज़ा सहज नहीं लगा पाते होंगें. ऐसे में क्रियेटिविटी को बचाए रखना बहुत मुश्किल हो जाता है. किंतु कुछ सख्त जान लोग ऐसे भी हैं जो दबाव को अपनी क्रिएटिविटी के आधिक्य से मानसिक दबाव को शून्यप्राय: कर देने में सक्षम साबित हो जाते हैं.
इनमें से कुछेक नहीं लम्बी फ़ेहरिस्त है.. मेरे ज़ेहन में इस क्रम में आई ए. एस. श्री पी. नरहरी की क्रियेटिविटि का प्रमाण प्रस्तुत है.


       

30.8.14

आदर्श आंगनवाड़ी केंद्र शाहपुर : प्रयासों की सफ़लता की झलक नज़र आ रही है..

आयुक्त श्री दीपक खाण्डेकर को आदर्श केंद्र
में जाकर हार्दिक प्रसन्नता हुई 
  माडल आंगनवाड़ी केंद्र डिंडोरी की गतिविधियों के अवलोकन के लिये 28.08.14 को जबलपुर से  कमिश्नर श्री दीपक खांडेकर ने डिंडोरी  कलेक्टर श्रीमति छवि भारद्वाज़ की क्रियेटिविटी का अवलोकन किया तो यकायक बोल उठे- "बड़ी तारीफ़ सुनी थी.. वैसा ही आदर्श केंद्र है. " उनके इस कथन ने हम सबको और अधिक उत्साहित कर दिया है. इस उच्च स्तरीय भ्रमण दल में श्री कर्मवीर शर्मा मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत डिंडोरी, एवम अन्य विभागों के अधिकारी भी थे.. आइये जानें क्यों मोहित हुए श्री खांडेकर ...  


                       एक बरस पहले जब आदिवासी बाहुल्य जिला डिंडोरी का गांव शाहपुर की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता कुमारी रेनु शर्मा और उनकी सहायिका श्रीमति राधा नामदेव सहित सभी स्थानीय बाल विकास कार्यक्रम से जुडीं कार्यकर्ताओं से मैंने अनुरोध किया कि केंद्रों पर प्री-स्कूल गतिविधियां सुचारू रूप से संपादित कराईं जावें  ताक़ि बच्चों की केंद्रों से उपस्थिति कम न हो तो सभी आंगनवाड़ी कर्मी को रास्ता न सूझ रहा था. सभी  बेहद तनाव में थीं कि कैसे सम्भव होगा.. बच्चों को केंद्र में लम्बी अवधि तक बैठाए रखना .. बिना किसी संसाधन भी तो चाहिये.. सभी की सोच एकदम सही थी . मुझे भी इस बात का एहसास तो था कि  बच्चे एक अनोखी और रंगीन दुनियां के साथ बचपन जीना चाहते हैं.  मध्यम उच्च आय वर्गों के बच्चे प्ले ग्रुप में, घर में, संसाधनों एवम सुविधाओं से लैस होकर अपने-अपने बचपन में रंग भर पाते हैं. पर जहां अभाव है .. वहां ..?
वहां कुछ नवाचार ज़रूरी होता है. सीमित साधनों में की गईं असीमित कोशिशें कहीं कहीं असफ़ल भी हो जातीं हैं.  हमने आंगनवाड़ी कार्यकर्ता कुमारी रेनु शर्मा और उनकी सहायिका श्रीमति राधा नामदेव को बताया कि- एकीकृत विकास कार्यक्रम यानी IAP के तहत एक आंगनवाड़ी केंद्र लगभग बन ही गया है. अब इस केंद्र को आप वहां शिफ़्ट करेंगी . हमने सरपंच श्री लोकसिंह परस्ते जी से सम्पर्क कर  काम शीघ्र कराने का अनुरोध भी किया. सरपंच जी ने आश्वस्त किया कि वे नया  साल आने से पहले ही आंगनवाड़ी केंद्र भवन पूर्ण कर देंगे. वचन के पक्के सरपंच श्री लोकसिंह परस्ते जी ने 1 जनवरी 2014 केंद्र भवन का निर्माण कार्य पूरा करवा कर उसमें आंगनवाड़ी केंद्र संचालन शुरू करवा दिया.
अब बारी थी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता- सहायिका की कि वे केंद्र में बच्चों की अधिकाधिक उपस्थिति सुनिश्चित करें. जो आसन न था. गीत कहानियां सुना सुनाकर बच्चों को बांध तो सकते हैं पर उससे जिग्यासा तृप्त नहीं हो सकती थी बच्चों की . बच्चे आते नाश्ता फ़िर प्रथम आहार लेते और घर जाने की ज़िद करते . कुछ तो रो-गाकर घर पहुंचाने की स्थिति खड़ी कर देते. बच्चों को जिन रंगों की तलाश थी शायद वे वहां पा नहीं रहे थे .


इस समस्या को को जब श्रीमति कल्पना तिवारी जिला कार्यक्रम अधिकारी के साथ साझा किया तो उन्हौंने मन में किसी योजना को रोप लिया. यह भी कहा कि कुछ खिलौने जन सहयोग से जुटाओ .कोशिशें कीं गईं किंतु महानगर के लिये यह आसान था हमारे डिंडोरी के लिये  कठिन किंतु आप सब जानतें हैं कि जो कार्य कठिन होते हैं वही तो करने योग्य होते हैं. कलेक्टर श्रीमति छवि भारद्वाज़ के सामने जब ये बात साझा हुई तो “बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिये कलेक्टर श्रीमति छवि भारद्वाज़ ने बढ़ाए   कद़म : रचनात्मक सोच के साथउन्हौनें राह आसान कर दी  एकीकृत विकास कार्यक्रम यानी IAP से संसाधनों वित्तीय सहायता मुहैया कराने का आश्वासन दिया आंगनवाड़ी केंद्र क्र. 3 शाहपुर को आदर्श आंगनवाड़ी केंद्र बनाने की कोशिशें तेज़ हो गईं . 
 एक सप्ताह में हुआ बदलाव !!
श्रीमति तारेश्वरी धुर्वे सेक्टर पर्यवेक्षक ने बताया की सामुदायिक बैठकों में अभिभावक माताओं को इस बात का भरोसा दिलाने में कुछ कठिनाई अवश्य हुई उनके बच्चों के लिये उससे भी अधिक  कुछ जुटाया जा रहा है जो एक स्कूल द्वारा किया जाता है. और फ़िर अगस्त माह के आखिरी सप्ताह के आते ही केंद्र पर रंग-बिरंगे खिलौने भेजे गये. फ़िर क्या था कुल 25 बच्चों में से 22 से 24 की उपस्थिति  होने लगी है. अब तो शिवा भी आने लगा है जिसे आंगनवाड़ी आना सख्त नापसंद था.
 शाला पूर्व अनौपचारिक शिक्षा में प्ले-ग्रुप के बच्चों के लिये ज़रूरी है कि उनको उनके शारीरिक मानसिक विकास के साथ साथ उनके सामाजिक-विकास के बिंदुओं को प्रथक प्रथक रूप से आंकलित किया जाए. इस क्रम में एक प्रबंधक के रूप में हमारे दायित्व है कि



Ø कार्यकारी अमले के साथ हमारा सतत संवाद रहे
Ø कार्यकारी अमले की कठनाईयों का हम मूल्यांकन करें
Ø समुदाय को विश्वास दिलाएं कि हम समुदाय के मित्र हैं और समुदाय के महत्वपूर्ण हिस्से का यानी बच्चों का सर्वांगींण विकास चाहते हैं
Ø हम अपना अनुभव साझा करें

        इस ज़िम्मेदारी के निर्वहन के लिये मैं अपने जिला अधिकारी श्रीमति कल्पना रिछारिया तिवारीएवम अधीनस्त पर्यवेक्षक श्रीमति तारेश्वरी धुर्वे के साथ केंद्र खुलने के साथ ही  दिनांक 28.08.2014 को पूरे दिन के लिये केंद्र पर पहुंचे . आज़ देखा कि अधिकांश अभिभावक माताएं स्वयं ही बच्चों को केंद्र पर ला रहीं हैं. इस परिवर्तन की पतासाजी करने पर पता चला कि  रंग बिरंगे केंद्र भवन में खिलौनों की भरमार, उन्मुक्त-विकास के अवसरों के लिये मौज़ूद संसाधनों ने बच्चों को मोहित कर रखा है. और बच्चे अब स्वयं मां से आंगनवाड़ी केंद्र जल्द पहुंचने की ज़िद्द करने लगे हैं. शिवा जिसे आंगनवाड़ी केंद्र में आना सख्त ना पसंद था अपने दस वर्षीय चाचा करन के साथ आ ही गया.   केंद्र पर बच्चों ने बाहर अपने जूते-चप्पल उतारे . और लम्बे सुर में रेनू.. दीदी नमस्ते कहा . रेनू शर्मा ने मुस्कुराते हुए बच्चों का स्वागत किया. और फ़िर सभी बच्चों को एक घेरे में बैठाकर मुक्त-वार्तालाप शुरु किया. एक ओर नीलम बड़े ध्यान से रेनु दीदी को निहार रही थी. वहीं नव्या की नज़र सायकल पर थी. प्रगति भी तो फ़िसलपट्टी को अपलक निहारने में व्यस्त थी.. कुल मिला कर संवाद खत्म होने की प्रतीक्षा कर रहे थे बच्चे और इस बीच सांझा-चूल्हा से नाश्ता आ गया . सहायिका  श्रीमति राधा नामदेव ने तब तक बाहर हाथ धोने की जुगत संजो दी थी. साथ ही दरी और पोषाहार के खाली बैग्स की बिछायत लगा भी तैयार थी . हाथ धोकर बच्चे एक कतार में अपनी पसंदीदा जगहों पर बैठ गए. सहायिका ने नाश्ता परोसा पर क्या मज़ाल कि कोई बच्चा बिना दीदी के संकेत के खाना शुरु कर दे . बच्चे प्रार्थना के पहले नहीं खाते. ईश्वर को आहार देने के लिये आभार अभिव्यक्त्ति कराई तब कहीं बच्चों ने खाना शुरु किया.  फ़िर लगातार एक घंटे तक बच्चों ने खूब मस्ती की जी भर झूले, जी भर रस्सी कूदी गई.. किसी ने चाक से दीवार पर लम्बी छोटी लक़ीरें खींची.
सेक्टर पर्यवेक्षक श्रीमति तारेश्वरी धुर्वे का बेटा पृथ्वी भी एकदम बच्चों में घुला मिला . तारेश्वरी अपने बेटे पृथ्वी को अक्सर फ़ील्ड भ्रमण के दौरान साथ ही रखतीं हैं. आज़ तो भरपूर उन्मुक्त वातावरण से पृथ्वी को वापस जाना पसंद न था .
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25.8.14

पास उसके न थे-गहने मेरी मां , खुद ही गहना थी !



आज़ पोला-अमावश्या है
 मां सव्यसाची स्वर्गीया प्रमिला देवी का
जन्म दिवस ..................


वही  क्यों कर  सुलगती है   वही  क्यों कर  झुलसती  है ?
रात-दिन काम कर खटती, फ़िर भी नित हुलसती है .
न खुल के रो सके न हंस सके पल --पल पे बंदिश है
हमारे देश की नारी,  लिहाफ़ों में सुबगती  है !

वही तुम हो कि  जिसने नाम उसको आग दे  डाला
वही हम हैं कि  जिनने  उसको हर इक काम दे डाला
सदा शीतल ही रहती है  भीतर से सुलगती वो..!
 कभी पूछो ज़रा खुद से वही क्यों कर झुलसती है.?

मुझे है याद मेरी मां ने मरते दम सम्हाला है.
ये घर,ये द्वार,ये बैठक और ये जो देवाला  है !
छिपाती थी बुखारों को जो मेहमां कोई आ जाए
कभी इक बार सोचा था कि "मां " ही क्यों झुलसती है ?

तपी वो और कुंदन की चमक हम सबको पहना दी
पास उसके न थे-गहने  मेरी मां , खुद ही गहना थी !
तापसी थी मेरी मां ,नेह की सरिता थी वो अविरल
उसी की याद मे अक्सर  मेरी   आंखैं  छलकतीं हैं.

विदा के वक्त बहनों ने पूजी कोख  माता की
छांह आंचल की पाने जन्म लेता विधाता भी
मेरी जननी  तेरा कान्हा तड़पता याद में तेरी
तेरी ही दी हुई धड़कन मेरे दिल में धड़कती है.

आज़ की रात फ़िर जागा  उसी की याद में लोगो-
तुम्हारी मां तुम्हारे साथ  तो  होगी  इधर  सोचो
कहीं उसको जो छोड़ा हो तो वापस घर  में ले आना
वही तेरी ज़मीं है और  उजला सा फ़लक भी है !
         

18.8.14

प्रधान सेवक का इनसाइडर विज़न

   
योजना आयोग के खात्मे के साथ भारत एक नए अध्याय की शुरुआत करेगा . मेरी नज़र से भारतीय अर्थ-व्यवस्था का सबसे विचित्र आकार योजना आयोग था जो समंकों के आधार पर निर्णय ले रहा था. यानी आपका पांव आग में और सर बर्फ़ की सिल्ली पर रखा है तो औसतन आप बेहतर स्थिति में हैं.. योजनाकार देश-काल-परिस्थिति के अनुमापन के बिना योजना को आकृति देते . वस्तुत: आर्थिक विकास की धनात्मक दिशा वास्तविक उत्पादन खपत के बीच होता पूंजी निर्माण है. जो भारत में हो न सका . मेड इन इंडिया  नारे को मज़बूत करते हुए  प्रधान सेवक ने "मेक इन इंडिया " की बात की.. अर्थशास्त्री चकित तो हुए ही होंगे.  विश्व से ये आग्रह कि आओ भारत में बनाओ, भावुक बात नहीं बल्कि भारत के  श्रम को विपरीत परिस्थियों वाले मुल्कों में न भेज कर भारत में ही मुहैया कराने की बात कही. इस वाक्य में   भारत के औद्योगिक विकास को गति देने का बिंदु भी अंतर्निहित है . 
              रेतीले शहर दुबई में लोग जाकर गौरवांवित महसूस करते हैं. तो यू.के. यू. एस. ए. में हमारा युवा  खुद को पाकर आत्ममुग्ध कुछ दिन ही रह पाता है. फ़िर जब मां-बाप के चेहरे की झुर्रियां उनको महसूस करने लगता हैं तो सोचता है कि काश, हम घर जा पाते..? ये तो भावात्मक पहलू है "मेक-इन-इंडिया" का परंतु एक और यथार्थ ये भी है कि प्रधान सेवक के मन में उद्योगों की स्थापना से स्थानीय समुदाय को मिलने वाले रोज़गार की अधिक चिंता है. पंद्रह बरस पहले जब मैं दिल्ली ट्रेनिंग में बचे समय का सदुपयोग करने गुड़गांव गया तब मैने स्वप्न में भी न सोचा था कि वहां के लोग सामान्य नागरिक रोज़गार से जुड़ेंगे. सोच रहा था ... दिल्ली की मानिंद ये हरियाणवी बस्ती क्या विकास करेगी.   पर सायबर सिटी ने तो कमाल ही  कर दिया. वहां अब लोगों को रोज़गार के मौके ही मौके मौज़ूद हैं वहां .          आज़ादी के पहले से ही  श्रम सस्ता था जो धीरे धीरे और अधिक सस्ता होता चला गया. पेट में जाने वाली रोटीमोटा-कपड़ातक बमुश्किल कमाया जा पा रहा है . स्वास्थ्य, शिक्षा, व्यवसायिक रूप लेकर मज़दूर की पहुंच से बाहर हो गई. अब तो काम के अवसर भी निजी हाथों में हैं. यह लक्ष्यहीन बेतरतीब आंदोलनों का दुष्परिणाम है  श्रम के अधिकार में कमी आई श्रम-प्रबंधन विद्वेष इतना बढ़ा कि हमारे उद्योग कमज़ोर होते चले गए. हम विदेशी आपूर्ती के अधीन हो गये आज़ाद भारत में आधारभूत विकास जिसे अधोसंरचनात्मक विकास को प्रमुखता नहीं दी गई. ऐसा नही की घोर उपेक्षा हुई बल्कि प्राथमिकता न मिलना चिंता का विषय रहा. अब अगर लाल किले की प्राचीर से इनसाइडर विज़न ये है कि सब कुछ स्वदेशी हो  अथवा स्वदेश में ही हो तो इसमें कोई बुराई नज़र नहीं आती है .  
प्रधान सेवक ने अपने व्याख्यान में यह भी कहा कि अफ़सर, सही वक़्त पर आफ़िस आते हैं ये कोई खबर नहीं. मीडिया को सतर्क होकर खबर देने का संदेश देते हुए एक लाइन में सनसनाती क़लम को नक़ार दिया. यानी चौथे स्तम्भ को भी विकास के सार्थक प्रयासों के सापेक्ष चलने का आग्रह करना वर्तमान परिवेश में अनिवार्य था.
बेटियों की चिंता, भ्रूण-हत्या, सांसदों से आदर्श-ग्राम का आग्रह भाषण ऐसी विशेषताएं थीं जिससे सामाजिक एवम अधोसंरचनात्मक विकास को दिशा मिलेगी.
प्रधान सेवक का इनसाइडर विज़न भाव, कर्म, परिणाम की प्रथम सूचना दे रहा है. अब बारी है हमारी कि हम कितना सोच रहे हैं.. देश के बारे में विकास के बारे में..



16.8.14

इनसाइडर विज़न आफ़ आउट साइडर :: 01 ( नरेंद्र मोदी के भाषण पर बी.पी गौतम का आलेख )

स्वतंत्र भारत में 15 अगस्त 1947 को प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में लाल
किले से भाषण देने की परंपरा जवाहर लाल नेहरू ने शुरू की थी, जो गुलजारी
लाल नंदा, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई, चरण सिंह,
राजीव गांधी, विश्व नाथ प्रताप सिंह, चन्द्रशेखर, पी.वी. नरसिम्हाराव,
अटल बिहारी वाजपेई, एच. डी. देवगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल और मनमोहन सिंह
तक की यात्रा करते हुए नरेंद्र मोदी तक आ गई है। 26 मई 2014 को शपथ लेने
वाले नरेंद्र मोदी भारत के 18वें प्रधानमंत्री हैं। स्वतंत्रता दिवस की
वर्षगाँठ के अवसर पर लाल किले से उन्होंने अपना पहला भाषण दिया।

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले से प्रधानमंत्री द्वारा दिये जाने
वाले भाषण को देशवासी प्रति वर्ष ही पूरी गंभीरता से सुनते रहे हैं,
लेकिन इस बार लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण को लेकर आम
जनता में एक अलग तरह का ही रोमांच था। दिल्ली से दूर अन्य शहरों, कस्बों
और गाँवों में रहने वाले लोग भाषण सुनने को लेकर एक सीमा से अधिक उत्सुक
नज़र आ रहे थे। ध्वजारोहण का एक ही समय होता है, जिससे तमाम लोग नरेंद्र
मोदी के भाषण का टीवी पर लाइव प्रसारण नहीं देख पाये, ऐसे लोग अफ़सोस
व्यक्त करते नज़र आये। हाल के वर्षों में प्रधानमंत्री के भाषण को सुनने
को लेकर ऐसा दृश्य देखने को नहीं मिला है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी देश की जनता को निराश नहीं किया। अपनी
मनमोहक शैली में ही आम आदमी को संबोधित करते हुए उन्होंने विश्व स्तरीय
भाषण दिया। उन्होंने दावे और वादे नहीं किये और न ही आम आदमी को सपने
दिखाये। वह आम आदमी से जुड़े मुददों पर बोले ही नहीं, बल्कि प्रत्येक
व्यक्ति से विकास के आंदोलन में जुड़ने का आह्वान किया। उनका आशय था कि
सरकार विहीन जनता जब अंग्रेजों से राज वापस छीन सकती है, तो विकास करना
तो जनता के लिए और भी आसान है। उन्होंने विकास को आंदोलन का रूप देने की
पृष्ठभूमि तैयार की।

ऐसे अवसरों पर स्वतंत्रता से जुड़े आंदोलन में भाग लेने वाले महापुरुषों
और शहीदों को याद करने की औपचारिकता निभाई जाती रही है, लेकिन नरेंद्र
मोदी अंग्रेजी शासन से भी बहुत पीछे तक गये। उन्होंने स्पष्ट कहा कि "यह
देश राजनेताओं ने नहीं बनाया है, यह देश शासकों ने नहीं बनाया है, यह देश
सरकारों ने भी नहीं बनाया है, यह देश हमारे किसानों ने बनाया है, हमारे
मजदूरों ने बनाया है, हमारी माताओं और बहनों ने बनाया है, हमारे नौजवानों
ने बनाया है, हमारे देश के ऋषियों ने, मुनियों ने, आचार्यों ने, शिक्षकों
ने, वैज्ञानिकों ने, समाजसेवकों ने, पीढ़ी-दर-पीढ़ी कोटि-कोटि जनों की
तपस्या से आज राष्ट्र यहाँ पहुँचा है।"

नरेंद्र मोदी यहीं नहीं रुके। उन्होंने आगे कहा कि "देश निर्माण में इस
देश के सभी प्रधान मंत्रियों का योगदान है, इस देश की सभी सरकारों का
योगदान है, इस देश के सभी राज्यों की सरकारों का भी योगदान है। मैं
वर्तमान भारत को उस ऊँचाई पर ले जाने का प्रयास करने वाली सभी पूर्व
सरकारों को, सभी पूर्व प्रधान मंत्रियों को, उनके सभी कामों को, जिनके
कारण राष्ट्र का गौरव बढ़ा है, उन सबके प्रति इस पल आदर का भाव व्यक्त
करना चाहता हूँ, मैं आभार की अभिव्यक्ति करना चाहता हूं। उन्होंने विपक्ष
ही नहीं, बल्कि प्रत्येक सांसद को भी याद किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छोटी से छोटी बात को भी बड़े ही प्रभावी ढंग
से रखा। उन्होंने कहा कि "मैं दिल्ली के लिए आउट साइडर हूं, मैं दिल्ली
की दुनिया का इंसान नहीं हूं। मैं यहां के राज-काज को भी नहीं जानता।
यहां की एलीट क्लास से तो मैं बहुत अछूता रहा हूं, लेकिन एक बाहर के
व्यक्ति ने, एक आउट साइडर ने दिल्ली आ कर के पिछले दो महीने में, एक इन
साइडर व्यू लिया, तो मैं चौंक गया! बोले- यह मंच राजनीति का नहीं है,
राष्ट्रनीति का मंच है और इसलिए मेरी बात को राजनीति के तराजू से न तौला
जाए। आगे कहा कि ऐसा लगा जैसे एक सरकार के अंदर भी दर्जनों अलग-अलग
सरकारें चल रही हैं। हरेक की जैसे अपनी-अपनी जागीरें बनी हुई हैं। मुझे
बिखराव नज़र आया, मुझे टकराव नज़र आया। एक डिपार्टमेंट दूसरे डिपार्टमेंट
से भिड़ रहा है और यहां तक‍ भिड़ रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे
खट-खटाकर एक ही सरकार के दो डिपार्टमेंट आपस में लड़ाई लड़ रहे हैं। यह
बिखराव, यह टकराव, एक ही देश के लोग! हम देश को कैसे आगे बढ़ा सकते हैं?"

उन्होंने कहा कि "इन दिनों अखबारों में चर्चा चलती है कि मोदी जी की
सरकार आ गई, अफसर लोग समय पर ऑफिस जाते हैं, समय पर ऑफिस खुल जाते हैं,
लोग पहुंच जाते हैं। मैं देख रहा था, हिन्दुस्तान के नैशनल न्यूज़ पेपर
कहे जाएं, टीवी मीडिया कहा जाए, प्रमुख रूप से ये खबरें छप रही थीं।
सरकार के मुखिया के नाते तो मुझे आनंद आ सकता है कि देखो भाई, सब समय पर
चलना शुरू हो गया, सफाई होने लगी, लेकिन मुझे आनंद नहीं आ रहा था, मुझे
पीड़ा हो रही थी। वह बात मैं आज पब्लिक में कहना चाहता हूं। इसलिए कहना
चाहता हूं कि इस देश में सरकारी अफसर समय पर दफ्तर जाएं, यह कोई न्यूज़
होती है क्या? और अगर वह न्यूज़ बनती है, तो हम कितने नीचे गए हैं, कितने
गिरे हैं, इसका वह सबूत बन जाती है।"

उन्होंने सरकारी सेवा में कार्य करने वालों को जगाने की बात कही, उन्हें
कर्तव्यपरायढ़ बनाने की बात कही। इन सब बातों को प्रधानमंत्री के स्तर का
नहीं माना जाता है, जिससे अभी तक ऐसे बातें प्रधानमंत्री के मुंह से
लोगों को सुनने को भी नहीं मिली।

बलात्कार की घटनाओं पर भी वे चिंतित नज़र आये, लेकिन उन्होंने सीधे
माता-पिता से सवाल किया। उन्हें झकझोरा कि "हर मां-बाप से पूछना चाहता
हूं कि आपके घर में बेटी 10 साल की होती है, 12 साल की होती है, मां और
बाप चौकन्ने रहते हैं, हर बात पूछते हैं कि कहां जा रही हो, कब आओगी,
पहुंचने के बाद फोन करना। बेटी को तो सैकड़ों सवाल मां-बाप पूछते हैं,
लेकिन क्या कभी मां-बाप ने अपने बेटे को पूछने की हिम्मत की है कि कहां
जा रहे हो, क्यों जा रहे हो, कौन दोस्त है? आखिर बलात्कार करने वाला किसी
न किसी का बेटा तो है। उसके भी तो कोई न कोई मां-बाप हैं। क्या मां-बाप
के नाते, हमने अपने बेटे को पूछा कि तुम क्या कर रहे हो, कहां जा रहे हो?
अगर हर मां-बाप तय करे कि हमने बेटियों पर जितने बंधन डाले हैं, कभी
बेटों पर भी डाल कर के देखो तो सही, उसे कभी पूछो तो सही।"

वे हिंसा पर भी बोले और कहा कि "कानून अपना काम करेगा, कठोरता से करेगा,
लेकिन समाज के नाते भी, हर मां-बाप के नाते हमारा दायित्व है। कोई मुझे
कहे, यह जो बंदूक कंधे पर उठाकर निर्दोषों को मौत के घाट उतारने वाले लोग
कोई माओवादी होंगे, कोई आतंकवादी होंगे, वे किसी न किसी के तो बेटे हैं।
मैं उन मां-बाप से पूछना चाहता हूं कि अपने बेटे से कभी इस रास्ते पर
जाने से पहले पूछा था आपने? हर मां-बाप जिम्मेवारी ले, इस गलत रास्ते पर
गया हुआ आपका बेटा निर्दोषों की जान लेने पर उतारू है। न वह अपना भला कर
पा रहा है, न परिवार का भला कर पा रहा है और न ही देश का भला कर पा रहा
है और मैं हिंसा के रास्ते पर गए हुए, उन नौजवानों से कहना चाहता हूं कि
आप जो भी आज हैं, कुछ न कुछ तो भारत माता ने आपको दिया है, तब पहुंचे
हैं। आप जो भी हैं, आपके मां-बाप ने आपको कुछ तो दिया है, तब हैं। मैं
आपसे पूछना चाहता हूं, कंधे पर बंदूक ले करके आप धरती को लाल तो कर सकते
हो, लेकिन कभी सोचो, अगर कंधे पर हल होगा, तो धरती पर हरियाली होगी,
कितनी प्यारी लगेगी। कब तक हम इस धरती को लहूलुहान करते रहेंगे? और हमने
पाया क्या है? हिंसा के रास्ते ने हमें कुछ नहीं दिया है।"

उन्होंने नेपाल का उदाहरण देते हुए कहा कि "मैं पिछले दिनों नेपाल गया
था। मैंने नेपाल में सार्वजनिक रूप से पूरे विश्व को आकर्षित करने वाली
एक बात कही थी। एक ज़माना था, सम्राट अशोक जिन्होंने युद्ध का रास्ता लिया
था, लेकिन हिंसा को देख कर के युद्ध छोड़, बुद्ध के रास्ते पर चले गए। मैं
देख रहा हूं कि नेपाल में कोई एक समय था, जब नौजवान हिंसा के रास्ते पर
चल पड़े थे, लेकिन आज वही नौजवान संविधान की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उन्हीं
के साथ जुड़े लोग संविधान के निर्माण में लगे हैं और मैंने कहा था, शस्त्र
छोड़कर शास्त्र के रास्ते पर चलने का अगर नेपाल एक उत्तम उदाहरण देता है,
तो विश्व में हिंसा के रास्ते पर गए हुए नौजवानों को वापस आने की प्रेरणा
दे सकता है। उन्होंने सवाल किया कि बुद्ध की भूमि, नेपाल अगर संदेश दे
सकती है, तो क्या भारत की भूमि दुनिया को संदेश नहीं दे सकती है?"

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शांति और भाईचारे की बात करते हुए जातिवाद
और सम्पद्रायवाद को मिटाने की बात कही। उन्होंने बिगड़ते लिंगानुपात की
बात करते हुए कहा कि "एक हजार लड़कों पर 940 बेटियाँ पैदा होती हैं। समाज
में यह असंतुलन कौन पैदा कर रहा है? ईश्वर तो नहीं कर रहा है। मैं उन
डॉक्टरों से अनुरोध करना चाहता हूं कि अपनी तिजोरी भरने के लिए किसी माँ
के गर्भ में पल रही बेटी को मत मारिए। मैं उन माताओं, बहनों से कहता हूं
कि आप बेटे की आस में बेटियों को बलि मत चढ़ाइए। कभी-कभी माँ-बाप को लगता
है कि बेटा होगा, तो बुढ़ापे में काम आएगा। मैं सामाजिक जीवन में काम करने
वाला इंसान हूं। मैंने ऐसे परिवार देखे हैं कि पाँच बेटे हों, पाँचों के
पास बंगले हों, घर में दस-दस गाड़ियाँ हों, लेकिन बूढ़े माँ-बाप ओल्ड एज
होम में रहते हैं, वृद्धाश्रम में रहते हैं। मैंने ऐसे परिवार देखे हैं।
मैंने ऐसे परिवार भी देखे हैं, जहाँ संतान के रूप में अकेली बेटी हो, वह
बेटी अपने सपनों की बलि चढ़ाती है, शादी नहीं करती और बूढ़े माँ-बाप की
सेवा के लिए अपने जीवन को खपा देती है। यह असमानता, माँ के गर्भ में
बेटियों की हत्या, इस 21वीं सदी के मानव का मन कितना कलुषित, कलंकित,
कितना दाग भरा है, उसका प्रदर्शन कर रहा है। हमें इससे मुक्ति लेनी होगी
और यही तो आज़ादी के पर्व का हमारे लिए संदेश है।"

उन्होंने हाल ही में हुए राष्ट्रमंडल खेलों का उदाहरण देते हुए कहा कि
"हमारे करीब 64 खिलाड़ी जीते हैं। हमारे 64 खिलाड़ी मेडल लेकर आए हैं,
लेकिन उनमें 29 बेटियाँ हैं। इस पर गर्व करें और उन बेटियों के लिए ताली
बजाएं। भारत की आन-बान-शान में हमारी बेटियों का भी योगदान है, हम इसको
स्वीकार करें और उन्हें भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ लेकर चलें, तो
सामाजिक जीवन में जो बुराइयाँ आई हैं, हम उन बुराइयों से मुक्ति पा सकते
हैं। इसलिए एक सामाजिक चरित्र के नाते, एक राष्ट्रीय चरित्र के नाते हमें
उस दिशा में जाना है। देश को आगे बढ़ाना है।"

उन्होंने सवाल किया कि "क्या देश के नागरिकों को राष्ट्र के कल्याण के
लिए कदम उठाना चाहिए या नहीं उठाना चाहिए? आप कल्पना कीजिए, सवा सौ करोड़
देशवासी एक कदम चलें, तो यह देश सवा सौ करोड़ कदम आगे चला जाएगा।
लोकतंत्र, यह सिर्फ सरकार चुनने का सीमित मायना नहीं है। लोकतंत्र में
सवा सौ करोड़ नागरिक और सरकार कंधे से कंधा मिला कर देश की आशा-आकांक्षाओं
की पूर्ति के लिए काम करें, यह लोकतंत्र का मायना है। हमें जन-भागीदारी
करनी है। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के साथ आगे बढ़ना है। हमें जनता को
जोड़कर आगे बढ़ना है। उसे जोड़ने में आगे बढ़ने के लिए, आप मुझे बताइए कि आज
हमारा किसान आत्महत्या क्यों करता है? वह साहूकार से कर्ज़ लेता है,
कर्ज़ दे नहीं सकता है, मर जाता है। बेटी की शादी है, गरीब आदमी साहूकार
से कर्ज़ लेता है, कर्ज़ वापस दे नहीं पाता है, जीवन भर मुसीबतों से
गुज़रता है। मेरे उन गरीब परिवारों की रक्षा कौन करेगा?

बोले- इस आज़ादी के पर्व पर मैं एक योजना को आगे बढ़ाने का संकल्प करने के
लिए आपके पास आया हूँ– ‘प्रधान मंत्री जनधन योजना। इस प्रधान मंत्री
जनधन योजनाके माध्यम से हम देश के गरीब से गरीब लोगों को बैंक अकाउंट
की सुविधा से जोड़ना चाहते हैं। आज करोड़ों-करोड़ परिवार हैं, जिनके पास
मोबाइल फोन तो हैं, लेकिन बैंक अकाउंट नहीं हैं। यह स्थिति हमें बदलनी
है। देश के आर्थिक संसाधन गरीब के काम आएँ, इसकी शुरुआत यहीं से होती है।
यही तो है, जो खिड़की खोलता है। इसलिए प्रधान मंत्री जनधन योजनाके तहत
जो अकाउंट खुलेगा, उसको डेबिट कार्ड दिया जाएगा। उस डेबिट कार्ड के साथ
हर गरीब परिवार को एक लाख रुपए का बीमा सुनिश्चित कर दिया जाएगा, ताकि
अगर उसके जीवन में कोई संकट आया, तो उसके परिवारजनों को एक लाख रुपए का
बीमा मिल सकता है।"

उन्होंने कहा कि "यह देश नौजवानों का देश है। 65 प्रतिशत देश की जनसंख्या
35 वर्ष से कम आयु की है। हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा नौजवान देश है।

क्या हमने कभी इसका फायदा उठाने के लिए सोचा है? आज दुनिया को स्किल्ड
वर्क फोर्स की जरूरत है।" बोले- स्किल डेवलपमेंटऔर स्किल्ड इंडिया
यह हमारा मिशन है।"

उन्होंने इम्पोर्ट और एक्सपोर्ट में संतुलन पैदा करने की बात करते हुए
अप्रवासी भारतीयों से आह्वान करते हुए कहा कि कम, मेक इन इंडिया,” “आइए,
हिन्दुस्तान में निर्माण कीजिए।दुनिया के किसी भी देश में जाकर बेचिए,
लेकिन निर्माण यहाँ कीजिए, मैन्युफैक्चर यहाँ कीजिए। हमारे पास स्किल है,
टेलेंट है, डिसिप्लिन है, कुछ कर गुज़रने का इरादा है। हम विश्व को एक
सानुकूल अवसर देना चाहते हैं कि आइए, “कम, मेक इन इंडियाऔर हम विश्व को
कहें, इलेक्ट्रिकल से ले करके इलेक्ट्रॉनिक्स तक कम, मेक इन इंडिया”,
केमिकल्स से ले करके फार्मास्युटिकल्स तक कम, मेक इन इंडिया”,
ऑटोमोबाइल्स से ले करके ऐग्रो वैल्यू एडीशन तक कम, मेक इन इंडिया”, पेपर
हो या प्लास्टिक कम, मेक इन इंडिया”, सैटेलाइट हो या सबमेरीन कम, मेक
इन इंडिया। ताकत है हमारे देश में! आइए, मैं निमंत्रण देता हूं।"

उन्होंने सवाल किया कि "देश के नौजवानों को देश-सेवा करने के लिए सिर्फ
भगत सिंह की तरह फांसी पर लटकना ही अनिवार्य है? लालबहादुर शास्त्री जी
ने जय जवान, जय किसानएक साथ मंत्र दिया था। जवान, जो सीमा पर अपना सिर
दे देता है, उसी की बराबरी में जय किसानकहा था। क्यों? क्योंकि अन्न
के भंडार भर कर के मेरा किसान भारत मां की उतनी ही सेवा करता है, जैसे
जवान भारत मां की रक्षा करता है।"

उन्होंने कहा कि "पूरे विश्व में हमारे देश के नौजवानों ने भारत की पहचान
को बदल दिया है। विश्व भारत को क्या जानता था? ज्यादा नहीं, अभी 25-30
साल पहले तक दुनिया के कई कोने ऐसे थे, जो हिन्दुस्तान के लिए यही सोचते
थे कि ये तो सपेरों का देशहै। ये सांप का खेल करने वाला देश है, काले
जादू वाला देश है। भारत की सच्ची पहचान दुनिया तक पहुंची नहीं थी, लेकिन
हमारे 20-22-23 साल के नौजवान, जिन्होंने कम्प्यूटर पर अंगुलियां
घुमाते-घुमाते दुनिया को चकित कर दिया। विश्व में भारत की एक नई पहचान
बनाने का रास्ता हमारे आई.टी. प्रोफेशन के नौजवानों ने कर दिया। अगर यह
ताकत हमारे देश में है, तो क्या देश के लिए हम कुछ सोच सकते हैं? इसलिए
हमारा सपना डिजिटल इंडियाहै। जब मैं डिजिटल इंडियाकहता हूं, तब ये
बड़े लोगों की बात नहीं है, यह गरीब के लिए है। अगर ब्रॉडबेंड कनेक्टिविटी
से हिन्दुस्तान के गांव जुड़ते हैं और गांव के आखिरी छोर के स्कूल में अगर
हम लॉन्ग डिस्टेंस एजुकेशन दे सकते हैं, तो आप कल्पना कर सकते हैं कि
हमारे उन गांवों के बच्चों को कितनी अच्छी शिक्षा मिलेगी। जहां डाक्टर
नहीं पहुंच पाते, अगर हम टेलिमेडिसिन का नेटवर्क खड़ा करें, तो वहां पर
बैठे हुए गरीब व्यक्ति को भी, किस प्रकार की दवाई की दिशा में जाना है,
उसका स्पष्ट मार्गदर्शन मिल सकता है।"

प्रधानमंत्री ने कहा कि "हम टूरिज्म को बढ़ावा देना चाहते हैं। टूरिज्म से
गरीब से गरीब व्यक्ति को रोजगार मिलता है। चना बेचने वाला भी कमाता है,
ऑटो-रिक्शा वाला भी कमाता है, पकौड़े बेचने वाला भी कमाता है और एक चाय
बेचने वाला भी कमाता है। जब चाय बेचने वाले की बात आती है, तो मुझे ज़रा
अपनापन महसूस होता है। टूरिज्म के कारण गरीब से गरीब व्यक्ति को रोज़गार
मिलता है। लेकिन टूरिज्म के अंदर बढ़ावा देने में भी और एक राष्ट्रीय
चरित्र के रूप में भी हमारे सामने सबसे बड़ी रुकावट है हमारे चारों तरफ
दिखाई दे रही गंदगी । क्या आज़ादी के बाद, आज़ादी के इतने सालों के बाद, जब
हम 21वीं सदी के डेढ़ दशक के दरवाजे पर खड़े हैं, तब क्या अब भी हम गंदगी
में जीना चाहते हैं? मैंने यहाँ सरकार में आकर पहला काम सफाई का शुरू
किया है। लोगों को आश्चर्य हुआ कि क्या यह प्रधानमंत्री का काम है? लोगों
को लगता होगा कि यह प्रधानमंत्री के लिए छोटा काम होगा, मेरे लिए बहुत
बड़ा काम है। सफाई करना बहुत बड़ा काम है। क्या हमारा देश स्वच्छ नहीं हो
सकता है? अगर सवा सौ करोड़ देशवासी तय कर लें कि मैं कभी गंदगी नहीं
करूंगा तो दुनिया की कौन-सी ताकत है, जो हमारे शहर, गाँव को आकर गंदा कर
सके? क्या हम इतना-सा संकल्प नहीं कर सकते हैं?"

उन्होंने कहा कि 2019 में महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती आ रही है।
महात्मा गांधी की 150वीं जयंती हम कैसे मनाएँ? महात्मा गाँधी, जिन्होंने
हमें आज़ादी दी, जिन्होंने इतने बड़े देश को दुनिया के अंदर इतना सम्मान
दिलाया, उन महात्मा गाँधी को हम क्या दें? महात्मा गाँधी को सबसे प्रिय
थीसफाई, स्वच्छता। क्या हम तय करें कि सन् 2019 में जब हम महात्मा
गाँधी की 150वीं जयंती मनाएँगे, तो हमारा गाँव, हमारा शहर, हमारी गली,
हमारा मोहल्ला, हमारे स्कूल, हमारे मंदिर, हमारे अस्पताल, सभी क्षेत्रों
में हम गंदगी का नामोनिशान नहीं रहने देंगे? यह सरकार से नहीं होता है,
जन-भागीदारी से होता है, इसलिए यह काम हम सबको मिल कर करना है।"

उन्होंने फिर सवाल किया कि हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं, क्या कभी
हमारे मन को पीड़ा हुई कि आज भी हमारी माताओं और बहनों को खुले में शौच के
लिए जाना पड़ता है? डिग्निटी ऑफ विमेन, क्या यह हम सबका दायित्व नहीं है?
बेचारी गाँव की माँ-बहनें अँधेरे का इंतजार करती हैं, जब तक अँधेरा नहीं
आता है, वे शौच के लिए नहीं जा पाती हैं। उसके शरीर को कितनी पीड़ा होती
होगी, कितनी बीमारियों की जड़ें उसमें से शुरू होती होंगी! क्या हमारी
माँ-बहनों की इज्ज़त के लिए हम कम-से-कम शौचालय का प्रबन्ध नहीं कर सकते
हैं?"

स्वच्छ भारतका एक अभियान 2 अक्टूबर से चलाने की बात करते हुए उन्होंने

कहा कि हिन्दुस्तान के सभी स्कूलों में टॉयलेट हो, बच्चियों के लिए अलग
टॉयलेट हो, तभी तो हमारी बच्चियाँ स्कूल छोड़ कर भागेंगी नहीं। उन्होंने
सांसदों से कहा कि एमपीलैड फंड का उपयोग स्कूलों में टॉयलेट बनाने के लिए
खर्च कीजिए। उन्होंने कॉरपोरेट सेक्टर्स का भी आह्वान किया कि वे सोशल
रिस्पांसिबिलिटी के तहत स्कूलों में टॉयलेट बनाने को प्राथमिकता दें।

उन्होंने सांसद आदर्श ग्राम योजनाचलाने की बात कही, जिसके तहत सांसद
एक गांव पसंद करेंगे और उसे आदर्श बनायेंगे। उन्होंने जयप्रकाश नारायण की
जयंती के दिन 11 अक्टूबर को इस योजना को शुभारंभ करने का आश्वासन दिया,
साथ ही अपनी गरिमा खो चुके प्लानिंग कमीशन को बंद करने का इशारा किया।

उन्होंने लाल किले से भाषण देते हुए महर्षि अरविंद को भी याद किया। 15
अगस्त को उनकी जयंती होती है। उन्होंने स्वामी विवेकानन्द को भी याद
किया, जो अप्रत्याशित कहा जा सकता है।

15 अगस्त का दिन भारत के प्रधानमंत्री के लिए अहंकार का भाव उत्पन्न करने

का होता है, लेकिन नरेंद्र मोदी ने स्वयं को प्रधान सेवक कहा और कहा कि
अगर, आप 12 घंटे काम करोगे, तो मैं 13 घंटे करूंगा। अगर आप 14 घंटे कर्म
करोगे, तो मैं 15 घंटे करूंगा। क्यों? क्योंकि मैं प्रधानमंत्री नहीं,
प्रधान सेवक के रूप में आपके बीच आया हूं। मैं शासक के रूप में नहीं,
सेवक के रूप में सरकार लेकर आया हूं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण ऐतिहासिक सिर्फ इसलिए नहीं कहा जायेगा
कि उन्होंने आम आदमी से जुड़े मुददों पर बात की। उनका भाषण इसलिए भी याद
किया जायेगा कि उनका एक-एक शब्द भारतवासी ने गंभीरता से सुना और राष्ट्र
निर्माण में आम आदमी के अंदर सरकार का साथ देने की एक सोच पैदा की। यह
सोच कितने दिनों तक ठहर पाती है और कर्म में कितना परिवर्तित हो पाती है,
यह तो भविष्य में ही पता चल सकेगा।


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धर्म और संप्रदाय

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