17.6.14

देश का पहला वन स्टाप क्राइसिस सेंटर गौरवी जयप्रकाश अस्पताल भोपाल उदघाटित



मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि आर्थिक और राजनैतिक सशक्तिकरण के माध्यम से महिला सशक्तिकरण किया जा सकता है। मध्यप्रदेश इस दिशा में नेतृत्व करेगा। उन्होंने समाज से महिला सशक्तिकरण के लिये साथ देने का आव्हान किया। मुख्यमंत्री श्री चौहान आज यहाँ महिला सम्मान एवं संरक्षण के गौरवी अभियान के शुभारंभ समारोह में कही। समारोह की अध्यक्षता केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने की। कार्यक्रम में प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता आमिर खान विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि बेटियों के प्रति भेदभाव मानसिकता का दोष है। इसे बदलने के लिये सामूहिक प्रयास की जरूरत है। समाज में महिलाओं के प्रति नजरिया बदलने का अभियान चलाना होगा। गौरवी अभियान इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। मध्यप्रदेश में बेटियों को वरदान बनाने के लिये बेटी बचाओ अभियान शुरू किया गया। मुख्यमंत्री कन्यादान और लाड़ली लक्ष्मी जैसी अभिनव योजनाएँ बनाई गई जिन्हें अन्य प्रदेशों ने भी अपनाया। प्रदेश में स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिये 50 प्रतिशत आरक्षण किया गया। उन्होंने कहा कि घरेलू हिंसा को रोकने के लिये समाज को आगे आना होगा। प्रदेश में गौरवी अभियान के तहत वन स्टाप क्राइसिस रिज्यूलेशन सेंटर खोले जायेंगे। मध्यप्रदेश में महिला अपराध के मामले में 15 दिन के भीतर जाँच के बाद चालान प्रस्तुत करने की व्यवस्था की गई है। इस तरह के प्रकरणों में अपराधियों को समय-सीमा में कठोर सजा दिलाई गई है।



डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि मध्यप्रदेश में गौरवी अभियान शुरू कर पूरे देश के सामने उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई अनूठी योजनाएँ शुरू की हैं जिन्हें देश में अपनाया जा सकता है। जिस प्रकार पोलियो को समाप्त किया गया है। उसी प्रकार खसरा, प्याज और कुष्ठ रोग भी समाप्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार मध्यप्रदेश को पूरा सहयोग देगी। महिला सुरक्षा को सुदृढ़ करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है। महिलाओं के सम्मान की रक्षा एक संवेदनशील विषय है। महिला सुरक्षा और संरक्षण के इस अभियान में सभी विभागों की भूमिका रहे। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में स्वास्थ्य को एक बड़ा जन आंदोलन बनाने की जरूरत है। मध्यप्रदेश इस दिशा में पहल करें। उन्होंने कहा कि भोपाल में बन रहे एम्स को एम्स दिल्ली के समकक्ष बनाया जायेगा। इसे समय-सीमा में पूरा किया जायेगा। उन्होंने कहा कि भोपाल का एम्स ऐसा अस्पताल है जहाँ एक पूरा परिसर आयुष को समर्पित है। सभी चिकित्सा पद्धतियों को एक साथ रखा गया है।
स्वास्थ्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि पूर्ववर्ती केंद्रीय सरकार के असहयोग के चलते मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को निचले स्तर तक ले जाने में बाधाएँ आती थीं, अब यह स्थिति नहीं रहेगी। उन्होंने गौरवी अभियान को अनुपम पहल बताते हुए कहा कि मुख्यमंत्री की पहल और विशेष रुचि बेटियों को बचाने और उनकी गरिमा की रक्षा करने के लिये प्रदेश में कई योजनाएं चलायी गई हैं। इस दिशा में रचनात्मक कार्य करने वाले वे पहले मुख्यमंत्री हैं। श्री मिश्रा ने कहा कि महिला हिंसा, उत्पीड़न और शोषण के प्रकरण में मध्यप्रदेश के सख्त रवैये के कारण अपराधियों को तत्काल दंडित किया गया है। स्वास्थ्य क्षेत्र में उपलब्धियों को बताते हुए कहा कि प्रतिदिन 4 लाख रोगी को 450 प्रकार की दवाइयाँ नि:शुल्क मिलती हैं। आज तक कोई गंभीर शिकायत नहीँ हुई। गंभीर मरीजों को आर्थिक सहायता देने में भी प्रदेश आगे है। यहाँ हर वर्ष 100 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता मरीज को मिलती है। अस्पतालों में भर्ती करीब 90 हजार मरीज को नाश्ता एवं भोजन मिलता है।
महिला-बाल विकास मंत्री श्रीमती माया सिंह ने कहा कि मध्यप्रदेश में महिलाओं के सम्मान और उनका गौरव बढ़ाने की दिशा में अनूठी पहल हुई है। उन्होंने कहा कि महिला हिंसा रोकने संबंधी केंद्रीय कानून पारित होने के तत्काल बाद मध्यप्रदेश ने ऊषा किरण योजना लागू कर पहल की थी। उन्होंने कहा कि महिलाओं को अधिकार संपन्न बनाने के लिये अशासकीय संस्थाओं और समाज के हर वर्ग की भागीदारी जरूरी है । 
प्रसिद्ध सिने अभिनेता-निदेशक आमिर खान अपने भाषण में कहा कि सत्यमेव जयते कार्यक्रम में पीड़ित महिलाओं को एक ही स्थान पर स्वास्थ्य, मनोचिकित्सीय, कानूनी और पुलिस सहायता देने का सुझाव आया था। इस विचार को एक करोड़ से ज्यादा लोगों ने समर्थन दिया था। इस पर अमल करने में मध्यप्रदेश ने सबसे पहले पहल की, इसके लिये मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडलीय टीम बधाई की पात्र है। श्री आमिर खान ने कहा कि वे वन स्टॉप क्राइसिस रेजोल्यूशन सेंटर में पदस्थ होने वाले चिकित्सकों, कानूनी विशेषज्ञों, परामर्शदाताओं एवं अमले के प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेना चाहेंगे और उनसे संवाद करेंगे। उन्होंने कहा कि अपराधियों के विरुद्ध अतिशीघ्र और पक्की कार्रवाई कर उन्हें दंड देने से ही महिलाओं के प्रति न्याय होगा और समाज में सुरक्षा का भाव आयेगा। उन्होंने कहा कि महिलाओं और बेटियों को भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक रूप से ताकत देना होगी। इसके अलावा बेटों को सही शिक्षा देने की शुरूआत करना होगी ताकि वे बहनों और महिलाओं का सम्मान और आदर करना सीखें। उन्होंने आशा व्यक्त की है कि मध्यप्रदेश की यह पहल सफल होगी और इसमें लोगों का ज्यादा से ज्यादा सहयोग मिलेगा।
प्रमुख सचिव स्वास्थ्य श्री प्रवीण कृष्ण ने कहा कि गौरवी अभियान स्वास्थ्य, गृह और महिला-बाल विकास विभाग की समन्वित पहल है। देश का पहला वन स्टाप क्राइसिस सेंटर जयप्रकाश अस्पताल भोपाल में स्थापित हो रहा है। इसका संचालन स्वास्थ्य विभाग एवं एक्शन एड संस्था द्वारा किया जायेगा। इस अवसर पर स्वास्थ्य राज्य मंत्री श्री शरद जैन, भोपाल के सांसद श्री आलोक संजर, प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा श्री अजय तिर्की, स्वास्थ्य आयुक्त श्री पंकज अग्रवाल, केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव श्री लव वर्मा, संचालक स्वास्थ्य श्री राजीव दुबे, श्री फेज अहमद किदवई, संचालक राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन एवं वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

[भोपाल 16 जून 2014 समाचार स्रोत : जनसंपर्क ]

16.6.14

गृहणी श्रीमति विधी जैन के कोशिश से आयकर विभाग में हरक़त

        भारतीय भाषाओं के सरकारी एवम लोक कल्याणकारी , व्यावसायिक संस्थानों द्वारा अपनाने में जो  समस्याएं आ रही थीं वो कम्प्यूटर अनुप्रयोग से संबंधित थीं.  यूनिकोड की मदद से अब कोई भी हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं को प्रयोग में लाने से इंकार करे तो जानिये कि संस्थान या तो तकनीकि के अनुप्रयोग को अपनाने से परहेज कर रहा है अथवा उसे भारतीय भाषाओं से सरोकार नहीं रखना है. 
           भारतीय भाषाओं की उपेक्षा अर्थात उनके व्यवसायिक अनुप्रयोग के अभाव में गूगल का व्यापक समर्थन न मिल पाना भी भाषाई सर्वव्यापीकरण के लिये बाधक हो रहा है. ये वही देश है जहां का युवा विश्व को सर्वाधिक तकनीकी मदद दे रहा है. किंतु स्वदेशी भाव नहीं हैं.. न ही नियंताओं में न ही समाज में और न ही देश के ( निर्णायकों में ? ) बदलाव से उम्मीद  है कि इस दिशा में भी सोचा जावे. वैसे ये एक नीतिगत मसला है पर अगर हिंदी एवम अन्य भारतीय भाषाई महत्व को प्राथमिकता न दी गई तो बेतरतीब विकास ही होगा. आपको आने वाले समय में केवल अंग्रेज़ियत के और कुछ नज़र नहीं आने वाला है. हम विदेशी भाषाओं के विरुद्ध क़दापि नहीं हैं किंतु भारतीय भाषाओं को ताबूत में जाते देखने के भी पक्षधर नहीं. भारत का दुर्भाग्य ये ही है यहां रोटी के लिये अंग्रेज़ी, कानूनी मदद के लिये अंग्रेजी, चिकित्सा- अभियांत्रिकी , यानी सब के लिये अंग्रेज़ी सर्वोपरि है. 
    यानी स्वतंत्रता के बाद भारतीय भाषाओं के विकास तथा उनके प्रशासनिक क़ानूनी, चिकित्सकीय, व्यवसायिक अनुप्रयोग के लिये एक संपृक्त कोशिशें की हीं नहीं गईं. विश्वविद्यालयों विद्वतजनों से क्षमा याचना के साथ हम उनको उनकी भूलों की तरफ़ ले जाना चाहेंगे. कि उन्हौंने भारतीय भाषाई विकास को तरज़ीह नहीं दी यहां तक कि सर्वाधिक उपयोग में लाई जाने वाली हिंदी की उपेक्षा होते देखा वरना क़ानून चिकित्सा, प्रशासन, व्यवसाय, अर्थात सभी  भी विषयों की भाषा हिंदी होती.  
मुझे प्राप्त एक ई संदेश में हिंदी की प्रतिष्ठा के लिये संघर्षरत श्री मोतीलाल गुप्ता ने आज एक मेल किया  में एक सफ़ल कोशिश का विवरण दर्ज़ है. विवरण अनुसार मुम्बई निवासी एक गृहणी श्रीमति विधि जैन  ने एक आवेदन लिख कर आयकर विभाग को हिंदी के अनुप्रयोग को बढ़ावा देने की अपेक्षा विभाग से की गई. 
श्रीमति विधि जैन
मुम्बई निवासी श्रीमति विधि जैन की कोशिश को अब आकार मिल सकता है . उनके आवेदन पर  राजस्व विभाग, केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के उपनिदेशक (राजभाषा) श्री आर.एन.त्रिपाठी, ने  समुचित कार्यवाही करने के निर्देश आयकर निदेशालय को दे दिए हैं।
                  अब द्विभाषी पैन कार्ड की सम्भावना प्रबल हो गई है. 


ऑनलाइन आयकर विवरणी भरने और जमा करने की सुविधा केवल अंग्रेजी में होने से आम जनता परेशान  होती रहती है और अब तक आयकर सम्बन्धी सारा काम सलाहकारों के भरोसे होता है, उसे पता ही नहीं चलता कि सलाहकार क्या कर रहा है? श्रीमती जैन ने बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्री से मांग की है कि आयकर सम्बन्धी सभी ऑनलाइन सेवाएँ अविलम्ब राजभाषा हिन्दी में और आगे देश की सभी प्रमुख भाषाओं में उपलब्ध करवाने का अनुरोध किया है.
उन्होंने बताया कि उनका अगला लक्ष्य ऑनलाइन रेल टिकट बुक करने की सुविधा 10 प्रमुख  भारतीय भाषाओं में उपलब्ध करवाने के लिए अभियान चलाना है ताकि आम यात्रा बिना परेशानी के इस सेवा का लाभ उठा सके.


              

15.6.14

जिसके बाबूजी वृद्धाश्रम में.. है सबसे बेईमान वही.

बरगद पीपल नीम सरीखेतेज़ धूप में बाबूजी
मां” के बाद नज़र आते हैं , “मां” ही जैसे बाबूजी ..!!
अल्ल सुबह सबसे पहले , जागे होते बाबूजी-
पौधों से बातें करते पाए  जाते बाबूजी ...!!
अखबारों में जाने क्या बांचा करते रहते हैं
दुनिया भर की बातों से जुड़े हुए हैं बाबूजी ..!!
साल चौरासी बीत गए जाने  क्या क्या देखा है
बातचीत न कर पाएं हम  घबरा जाते बाबूजी..!!
जाने कितनी पीढ़ा भोगी होगी जीवन में
उसे भूल अक्सर मित्रों संग  मुस्काते हैं बाबूजी ..!!
चौकस रहती आंखें उनकी,किसने क्या क्या की गलती
पहले डांटा करते थे वेअब समझाते हैं बाबूजी...!!
दौर पुराना याद है उनको, सैतालिस की रातों का
देश हुआ आज़ाद जिस दिन, वो पल था सौगातों का
उपरैनगंज की कुलियों में हो खुश  घूमे हैं बाबूजी ...
 खेल कबड्डी हाकी कुश्ती, चैस वैस सब उनके थे –
शिब्बू दादा बोले भैया- बहुत तेज़ थे बाबूजी .

           आज़ साथ हैं हम सबके वो हम सब का धन मान वही
जिसके बाबूजी वृद्धाश्रम में.. है सबसे बेईमान वही.
लेकर आओ, झटपट आके पूजो पिता प्रभू ही हैं
समझाते इक नवल युगल को, वो थे मेरे बाबूजी.!!    

“भारत में शिक्षा : एक चिंतन "



विश्व  के सापेक्ष हमारा अक्षर ज्ञान 
 कमतर है ऐसा कथन हमारी सामाजिक व्यवस्था के  माथे पर लगा सवाल है जिसका हल तलाशना न केवल अब ज़रूरी है वरन समग्र विकास के लिये आवश्यक है कि  शिक्षा को अब अक्षर ग्यान से ऊपर उठाना ही होगा .
“भारत में शिक्षा” को केंद्रीय विषय बना कर अगर आप विचार करें तो पाएंगे कि भारत में शिक्षा एक अज़ीबोगरीब स्थिति या कहूं कि आकार ले चुकी है. जहां लोग अपने बच्चों के लिये शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता वाले पायदान पर रख रहें हैं वहीं दूसरी ओर शिक्षा के लिये उन लोगों परिवारों की कमी नहीं जो आज़ भी इस तरह के मिथक से बाहर नहीं आ पाए हैं जिसमें कहा है-“पढ़ै लिखै कछु न होय : हल जोते कुटिया भर होय ” ऐसी कुठिया भर होय की कल्पना उन दिनों की है जब कि  किसान के पास विकल्पों की कमी थी . हाथ में केवल हल-बैल थे, पारिवारिक विरासत वाली भूमियां थीं, आकाश  से बरसात की उम्मीदें थीं. गांव था जहां शिक्षा का मंदिर न था, शिक्षा की गारंटी न देती थी सरकार, संचार संसाधन न थे, अब सब कुछ है तो   क्यों स्कूल न भेजने वाली इस जनोक्ति जिसमें कहा है - ल जोते कुटिया भर होय को जन मानस  बाहर का रास्ता नहीं दिखाता . 
 वास्तव में भारतीय मानस अपनी विचारधारा न बदलने की आदत से मज़बूर है. उसे पूर्वज़ों का सिखाया सदा अच्छा लगा है .. परंतु परिवर्तित होते समय के साथ ग्रामीण भारत को अपनी सोच बदली है.. उसे मालूम कराना होगा कि अन्न की चिंता उसे कम से कम शिक्षा स्वास्थ्य के संदर्भों में नहीं करनी चाहिये.  भारत एक ऐसा देश बन चुका है जो खाने की गारंटी दे रहा है अपने सारे नागरिकों कों.    तो आम नागरिक को चाहिये कि शिक्षा जिसका अधिकार है उसे हासिल हो . कोई भी बच्चा स्कूल न जाने वाला न रहे. सड़क पर भीख न मांगी जावे. बूट पालिश न करें बच्चे.. फ़िर कोई विदेशी फ़िल्मकार "स्लम डाग " कहकर भारतीय बच्चों का अपमान न करे . 
स्रोत : विकी पीडिया 
स्रोत : विकी पीडिया 


केंद्र और राज्यों की सरकारें जिस ज़द्दोज़हद में हैं वो है शिक्षा के अधिकार को ठीक तरीके से लागू कराना . अब तो भारत सरकार ने निराश्रित यानी माता पिता विहीन बच्चों के लिये "फ़ास्टर केयर " नाम से एक ऐसी कारगर योजना राज्य सरकारों के ज़रिये लागू करने की कोशिश कर दी है जिससे माता-पिता विहीन बच्चों को प्रतिमाह रु. 750/- उनके पालकों को दिये जावेगें. इस की राशि अब दुगने से ज़्यादा हो जाने की उम्मीद है. फ़िर राज्य सरकारें भी अपने अपने वित्तीय प्रबंधन से धन मुहैया करा रहीं हैं. तो फ़िर सवाल उठता है कि आम नागरिक इससे बेखबर हो क्यों शिक्षा के महत्व को समझ नहीं पा रहे हैं. गहरी पड़ताल करने पर पता चलता है कि  सामाजिक पारिवारिक प्राथमिकताएं शिक्षा को पीछे ढकेलतीं हैं. उसमें कहीं न कहीं मान्यताएं भी शामिल हैं.  विकी पीडिया पर प्रकाशित NFHS 2007 के आंकड़े यद्यपि पुराने हैं पर उनका ज़िक्र इस कारण ज़रूरी है ताकि यह समझा जा सके कि अब स्कूल के खिलाफ सोच का अंत शुरू हो रहा है. वर्त्तमान में स्कूल के प्रति सकारात्मक  समझ में इज़ाफ़ा हुआ है.  

            
                                        ताज़ा  स्थिति देखिये 

http://iipsenvis.nic.in से साभार
लिंक "भारत में साक्षरता दर: 1951-2011"

  भारत में शिक्षा के विकास के लिये ग्राम स्तर तक किये जा रहे प्रयासों को अनदेखा करना भी गलत है. देश की आंगनवाड़ियां अब फ़ीडर यूनिट के मानिंद कार्य करने लगीं हैं. प्रमाण स्वरूप  आदिवासी क्षेत्र की एक आंगनवाड़ी का दृश्य देखा जा सकता है =>  https://www.facebook.com/photo.php?v=651301521612296&l=5268434772482404739
(Post by Girish  Mukul )
अब अगर देश के सम्पूर्ण एवम सर्वांगीण विकास की बात करनी है तो हमें इन बिंदुओं पर काम, करना ही होगा

  1. सामाजिक एवम पारिवारिक प्राथमिकता के क्रम में शिक्षा को सबसे ऊपर रखने के प्रयास तेज़ करना
  2. शिक्षा के अधिकार को प्रबलता से लागू करना कराना,
  3. फ़ीडर यूनिट्स को मज़बूत बनाना
  4. निज़ी शिक्षण संस्थानों को व्यवसायिकता से मुक्त कराना 
  5. व्यवसायिक शिक्षा के पाठ्यक्रम माध्यमिक स्तर के लिये तैयार कराना
  6. उच्चतर माध्यमिक शिक्षा को शिक्षा के अधिकार में शामिल करना        

9.6.14

कुपोषण से निज़ात पाने सोच बदलो ..

केवल सुव्यवस्था न
संदेश भी तो है 
बच्चों की भाषा बोलना और
समझना ज़रूरी है 
                    मध्य-प्रदेश में कुपोषण से निज़ात पाने एक ऐसी अनोखी कार्ययोजना सामने आई है जिसने एक रास्ता दिखा दिया कि कुपोषण निवारण के लिये परिवारों को पोषण के महत्व, उसके तरीक़ों कि किस तरह से कुपोषण का शमन किया जा सकता है.  बाल विकास सेवाओं के मिशन मोड में आने के बाद मध्य-प्रदेश की सरकार ने जिस तरह से मार्च महीने की पहली से बारहवीं तारीख तक स्नेह-शिविरों का आयोजन किया उससे चौंकाने वाले परिणाम सामने आए. विभागीय दावों के अनुरूप 01 मार्च 2012 से 12 मार्च 2012 तक अत्यधिक कम वज़न वाले बच्चों के वज़न में 200 ग्राम का न्यूनतम इज़ाफ़ा होना था किंतु 40% बच्चों का इस अवधि में वज़न  उससे कहीं अधिक यानी 400 ग्राम तक का वज़न बढ़ा जो एक चौंकने वाला परिणाम है. . व्यवस्था के खिलाफ़ आदतन वाकविलास करते रहने वाले लोग अथवा नैगेटिव सोच वालों के लिये यह कहानी आवश्यक है ....
हां, इसी घर में कम वज़न
वाला बच्चा रहता है.
       कुपोषण के संदर्भ में आठ बरस पूर्व की घटना का स्मरण करना चाहूंगा कि  पूर्व मेरे एक पत्रकार जी ने मुझ पर सवालों की बौछार कर दी उनने अपने बेहतर किताबी  एवम खबरिया मालूमात के आधार पर मुझे कठघरे में खड़ा करने की  कोशिश की . मेरे पास उनके सवालों का ज़वाब न था. मध्यप्रदेश के जबलपुर में तैनाती थी मेरी लगभग 28 वार्डों की मलिन बस्तियों में चल रहे मात्र 215 आंगनवाड़ी केंद्रों के ज़रिये कुपोषण से जूझना  हर केंद्र को एक हज़ार के आसपास की आबादी देखनी होती थी .  रिक्शे वालों, मज़दूरों के घरों में ही नहीं निम्न एवं सीमांत मध्य-वर्ग के परिवारों में बाल-पोषण आदतों के प्रति उदासीनता तब ज़ोरों पर थी. साफ़ पानी, खानपान से ज़्यादा धन का अनावश्यक कार्यों में प्रयोग करना शहरी एवम ग्रामीण बस्तियों में समान रूप से  मौज़ूद था भी और है भी . पत्रकार भाई को खुला न्यौता दिया कि आप- मेरा पार्ट देखने किसी भी बस्ती में चलें चुनौती भी है कि मेरा पार्ट उतना बुरा न होगा जितना कि आप समझ रहें हैं.. शीतलामाई क्षेत्र को मित्र ने स्वयं चुना . नियत तिथि और समय पर हम मौज़ूद थे हमने साथ साथ घर घर का दौरा किया . सवाल पूछे गए अगली सुबह के अखबार में एक बड़ी स्पेशल रिपोर्ट “ उनकी प्राथमिकता शराब है बच्चे नहीं...!” शीर्षक से छपी . निष्कर्ष था अपनी आमदनी  एक रुपए का 15% हिस्सा भी बच्चों पर खर्च नहीं करते लोग. लोगों की स्वास्थ्य, स्वच्छता, शिक्षा को दोयम मानतें हैं. प्रसव के दौरान  आयरन गोलियां न लेना, उत्सव प्रवास शराब पर अधिक धन व्यय करना कुपोषण का कारण साबित हुआ . साबित ये भी हुआ कि खान पान की आदतों में भ्रांतियां एवम खानपान के तरीकों में अनियमितता अटी पड़ीं हैं. बच्चे बार बार बीमार होते हैं.. पर पानी अनुपचारित ही पिलाया जाता है.  
छै बरस पहले  मीडिया ने कुपोषण जनित बाल एवम शिशु मृत्यु पर आधारित समाचारों को प्रकाशित किया उच्च न्यायालय जबलपुर पीठ ने भी इस संबंध में सरकार से जवाब तलब किया फलत: स्वास्थ्य एवम बाल विकास सेवा विभाग ने अपनी पड़ताल तेज़ की .
स्थल भ्रमणों से स्पष्ट हुआ कि लोग बच्चों एवम उनकी माताओं के पोषण एवम स्वास्थ्य को लेकर अत्यधिक उदासीन थे .
 इस तथ्य की पुष्टि के लिये विभाग के तत्कालीन अतिरिक्त संचालक श्री हरीश अग्रवाल के खालवा विज़िट के घटना क्रम का उल्लेख आवश्यक हो गया है जिनका उल्लेख करते हुए वे हम सबको बैठकों कहा करते  थे कि “अतिरिक्त आहार खिलाना    खालवा के लोगों ने तब उनको बताया था कि – “हमारे बच्चे फ़िर पैदा हो सकते हैं किंतु अगर हमने बैल खो दिये तो हमारा पालन हार कौन होगा. हम दूसरा बैल कैसे खरीदेंगे हम ग़रीब हैं.. हम आपके किसी भी केंद्र में न बच्चे को भेज सकते न ही हमारे परिवार से कोई जा सकता”
असामयिक मौत की कगार पर बैठे बच्चे के पिता ने कहा – कि हम आपको समय दे ही नहीं सकते हमारी प्राथमिकता आय अर्जित करना है .  
  सरपंच का कथन तो और भी विष्मयकारी लगा उनको – “आप चालीस बच्चों की बात कर रहें हैं पिछले साल तो अस्सी बच्चे मरे थे. ”.. इन उद्दहरणों का हवाला देते हुए श्री अग्रवाल कहा करते थे – कि सामुदायिक सोच को बदलो संकल्प लो तो सही सुविधा देने के साथ सोच बदलने संकल्प लेना ही होगा.  
    इन सभी परिस्थियों पर न केवल भारत सरकार की नज़र है. बल्कि मध्यप्रदेश सरकार के बाल विकास संचालनालय की सूक्ष्म अनवेषी अधिकारी श्रीमति नीलम शम्मी राव ने सुपोषण स्नेह शिविरों  की छै माही कार्ययोजना तैयार की है. छै माह तक चलने इस कार्यक्रम की शुरुआत होती है स्नेह शिविर से. जो चार या उससे अधिक अति कम वज़न के बच्चों के लिये एक ऐसे स्थान पर लगाए जाते हैं हैं जहां परिस्थितियां शिविर लगाने अनुकूल हो.      
            बच्चों को  उनकी माताओं के साथ बुलवाया जाता है. प्रात: दस बजे से शाम पांच बजे तक बच्चों के तीन बार आहार दिया जाता है. दिन भर महिलाओं को मनोरंजक गतिविधियों के साथ साथ पोषण शिक्षा दी जाती है. बच्चों के बढ़ते हुए वज़न को देख कर और अधिक उत्साहित होती हैं महिलाएं.
प्रमुख सचिव महिला बाल विकास श्री बी आर नायडू  आशांवित ही नहीं बल्कि परिणामों से खुश हैं पर उनकी चिंता ये है कि – अगले छै माह तक सिलसिला जारी रहे तो  
स्नेह शिविर के अच्छे परिणाम देने वाले जिले डिंडोरी और कटनी में क्या हुआ

मध्य-प्रदेश का आखिरी जिला डिंडोरी छत्तीसगढ़ के एकदम नज़दीक है. आर्थिक गतिविधियों का अभाव यहां के लोगों को "आर्थिक-प्रवास" के लिये बाहर भेजता है घर के घर खाली हो जाते हैं. म.प्र., छत्तीसगढ़, मुम्बई, दिल्ली, यहां तक कि पंजाब हरियाणा तक के लिये इनके प्रवास होते हैं. गांव में रह जाते हैं नन्हे-मुन्ने अगर उनके घर में कोई सम्हालने वाला हुआ तो. सरकार यहीं से उनकी सेवा का ज़िम्मा उठाती है
       जाकर पोषण सन्देश देना बेहद ज़रूरी है. संदेश देने वालों की योग्यता को परखने . मानिटरिंग करने आए राकेश जी अतिप्रसन्न इस लिये हुए क्योंकि हमारी श्रीमति दीप्ति पाराशर "पोषण सहयोगिनी" के ज्ञान स्तर में कोई कमी न थी . सुपरवाईज़र कौतिका को सब कुछ मालूम था कि बिना सिखाए कुछ भी संभव नहीं है.
लाल सूट में बैठी जिला कार्यक्रम अधिकारी श्रीमति कल्पना तिवारी ने मुख्यालय से आए श्री आनंद स्वरूप शिवहरे को जो बताया उससे साफ़ हो गया कि चयन एवम प्रशिक्षण में योग्यता को महत्व दिया था.
मुख्यालय के दल ने किया
परीक्षण 
बारीक पड़ताल के बाद निरीक्षण एवम मूल्यांकन पर आने वाली टीम ने पाया कि वाक़ई 15 में से 03 बच्चे तीस दिन में ही कुपोषण से मुक्ति पा गए. 11 बच्चों को नियमित रूप से वज़न बढ़ा है. जबकि गम्भीर कुपोषण श्रेणी के मात्र 8 बच्चे शेष हैं  जो अगस्त-सितम्बर 2014 तक कुपोषण की ज़द से बाहर आ ही जाएंगें.  ऐसा आंगनवाड़ी कार्यकर्ता श्रीमति पुष्पा श्रीवास का मानना है.
इस क्रम में कटनी जिले की बहोरीबंद बाल विकास परियोजना के इंचार्ज सतीष पटेल ने बताया कि हमने 09 शिविरों में  102 बच्चों को जोड़ा जिनमें से 82% बच्चों का वज़न 200 ग्राम से 400 ग्राम तक बढ़ा  शेष बच्चों का वज़न बढ़ेगा और वे अगले छै माह में खतरे से बाहर वाली सीमा रेखा में अवश्य आएंगे.
अच्छे परिणाम से प्रेरित हुई चंद्रावती
बहोरीबंद  परियोजना के नैगवां की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता चंद्रवती गौड़ ने स्वप्रेरणा से अपने केंद्र ग्राम को स्नेहशिविर लगा कर सुपोषित कर दिया है . वे चाहतीं हैं कि अब जो तीन बच्चे मध्यम कम वज़न की श्रेणी में हैं को सामान्य वज़न श्रेणी में ले आया जावे .

       चलिये देखें इधर का दृश्य   
अनौपचारिक शिक्षा : ग्राम संगवा में 

Post by Girish Mukul.)

6.6.14

“जबलपुर संभाग में सुपोषण लाने जिला स्तर पर बने एक्शन प्लान की पड़ताल “


जबलपुर में जून 2014 को आयोजित
बैठक मैराथन बैठक में जिलों नें रखीं कार्य योजनाएं प्रमुख सचिव महिला बाल विकास, श्री बी आर नायडू, आयुक्त जबलपुर संभाग श्री दीपक खांडेकर, कलेक्टर श्री विवेक पोरवाल (जबलपुर), श्रीमति छवि भारद्वाज़, (डिंडोरी) श्री लोकेश जाटव,(मंडला) बी. किरण गोपाल (बालाघाट), भरत यादव (नरसिंहपुर),  सहित सभी जिलों के कलेक्टर्स, मुख्य कार्यपालन अधिकारी छिंदवाड़ा  के अलावा राज्य स्तर से आये अधिकारी संयुक्त संचालक श्री महेंद्र द्विवेदी, उपसंचालक  श्री दीपक संकत, श्री विशाल मेढ़ा, सहायक संचालक श्री आनंद शिवहरे, श्री गोविंद सिंह रघुवंशी, श्री हरीश माथुर, श्री पियूष मेहता,  श्री बालमुकुंद शुक्ला, उपस्थित थे.

बाल विकास कार्यक्रम के मिशन मोड में आने के बाद  कुपोषण को समाप्त कर सुपोषण लाने की कार्ययोजना जिला स्तर पर बनायी जायेगी। इसके लिए समुदाय आधारित प्रयासोंपोषण आहार कार्यक्रम को प्रभावी और शाला पूर्व शिक्षा को असरदार बनाने के निर्देशप्रमुख सचिव महिला एवं बाल विकास श्री बी.आरनायडूसंभागायुक्त दीपक खांडेकर और आयुक्त आई.सी.डी.एस नीलम शम्मी राव द्वारा जबलपुर में आयोजित संभागीय समीक्षा बैठक में जिला कलेक्टर्स द्वारा प्रस्तुत कार्ययोजना की समीक्षा की गई. 
बैठक में संभाग के जिलों के कलेक्टर्समहिला एवं बाल विकासविभाग के जिला स्तरीय अधिकारी,परियोजना अधिकारीस्वास्थ्यविभाग के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारीसंयुक्त संचालकस्वास्थ्य और भोपाल से आये अधिकारी मौजूद थे।
जिला कलेक्टर्स द्वारा अपने जिले की शिशु एवं पोषण विकासकार्ययोजना प्रस्तुत की गयी। मंडला जिले की सूचना प्रौद्योगिकीआधारितडिंडौरी जिले के समुदाय आधारित प्रस्तावोंछिंदवाड़ा  जिले केसमुदाय स्वास्थ्य अन्य विभिन्न क्षेत्रों के समन्वय पर आधारित तथाकटनी जिले की स्वास्थ्य आधारित कार्ययोजना को विशेष सराहना मिली। संभाग के अन्य जिलों की कार्ययोजनाओं को सराहा गया। सभीकार्ययोजनायें जिले की परिस्थिति और जरूरत को देखते हुए तैयार कीगयी थीं।
आयुक्त आईसीडीएस ने सुपोषण अभियान के अच्छे परिणामबताये। उन्होंने कहा कि गर्भवती महिलाओं की सूची तैयार कर पोषणप्रदान करने की शुरूआत कर दी जानी चाहिए। जन्म के साथ ही सुपोषणके लिए सभी जरूरी प्रयासों को करना जरूरी है। इसके लिए स्वास्थ्यविभाग के साथ बेहतर समन्वय स्थापित कर कार्य करना होगा। जन्मलेने वाले हर बच्चे का पंजीयन एवं पोषण का रिकार्ड होना चाहिए।जबलपुर संभाग में संभागायुक्त दीपक खांडेकर द्वारा तीनों विभागों केसंयुक्त प्रयास से हुए सर्वे से कार्य योजना बनाने में मिली सहूलियत काउल्लेख किया गया। कुपोषित बच्चों के चिन्हांकननियमित वजन लेने,वजन लेने वाली मशीन की उपलब्धता की जरूरत रेखांकित की गयी।
बैठक में कहा गया कि शिशु के पोषण के साथ जरूरी है कि शालापूर्व शिक्षा पर भी ध्यान केंद्रित किया जाए। बाल चौपाल में अभिभावकों केसाथ चर्चा एवं जागरूकता की जरूरत रेखांकित की गयी। आंगनवाड़ी केंद्रोंके भवन के लिए बजट आवंटन पर चर्चा हुई।
प्रमुख सचिव श्री नायडू ने बताया कि महिला एवं बाल विकासविभाग द्वारा मुख्यमंत्री सामुदायिक क्षमता विकास कार्यक्रम शुरू कियाजा रहा है। जिसका उद्देश्य समाजसेवी गुण वाले व्यक्तियों में क्षमताविकास कर उन्हें अवसर प्रदान करना है। इस कार्यक्रम से उनके द्वारा किएगए कार्य को पहचान मिलेगी तथा रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। बताया गयाकि यह तीन वर्ष का प्रशिक्षण कार्यक्रम होगा। जिसमें प्रशिक्षणार्थियों कोविश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त प्रमाण पत्र प्रदान किया जायेगा। हर जिलेके लिए निर्धारित सीट में 18 से 45 वर्ष अवस्था तक की 75 प्रतिशतमहिलायें तथा 25 प्रतिशत पुरूष आवेदन कर सकेंगे। चयन कलेक्टर द्वाराचयन प्रक्रिया अपना कर किया जाएगा। यह कार्य जून-जुलाई माह मेंसंपन्न होगा। योजना का पूरा विवरण स्वास्थ्य एवं महिला एवं बालविकास विभाग के सूचना पटल पर चस्पा किया जाएगा।
   प्रमुख सचिव श्री नायडू ने कहा कि मुख्यमंत्री जी ने भीख मांगनेवाले बच्चों के लिए चिंता व्यक्त की है इस हेतु खुले आश्रय-गृह की स्थापना पर बल देते हुए नायडू ने कहा कि भारत सरकार ने प्रत्येक स्ट्रीट  बच्चे पर एक लाख रुपए व्यय करेगी . जिला कलेक्टर्स यथा शीघ्र एन.जी.ओ अथवा रेडक्रास सोसायटी से प्रस्ताव भेजें ताक़ि भारत सरकार को स्वीकृति के लिये प्रस्ताव भेजे जा सकें.   
                 बदलेगा लाड़ली लक्ष्मी का स्वरूप
प्रमुख सचिव महोदय ने कहा कि –“लाड़ली लक्ष्मी योजना के  स्वरूप को बरकरार रखते हुए सरकार अब कुछ ऐसे परिवर्तन करने जा रही है जिससे अट्ठारह साल बाद लाड़ली को मैट्रिक पास होने के बाद परिपक्कवता निधि प्राप्त हो सकेगी, योजना में लम्बित आनलाइन फ़ीडिंग का कार्य समय रहते पूर्ण कर लिया जावे ताकि सरलीकरण के साथ योजना के लाभ से कोई भी बालिका लाभ से वंचित न रह सके.  ”
डिंडोरी मंडला, छिंदवाड़ा, कटनी की कार्ययोजनाएं चर्चित रहीं . 

26.5.14

“मैं नरेंद्र दामोदर दास मोदी.. ईश्वर की शपथ.... !"

      मित्रो, देश एक अनोखे नुक्कड़ पर आ कर हतप्रभ था चकित कर देने वाले किसी परिणाम के लिये सवाल बार बार देख रहा था. सवाल थे :-
“अब क्या.होगा..!”  
“सब कैसे.होगा..!”  
“ये सब कौन करेगा भई..!”

मित्रो सवाल हल हो चुके हैं उत्सव भी मना लिया. अब आपके पास आईकान है.. न .. न भाई.. अब आईकान्स हैं. अपने कई आलेखों में आईकान के अभाव की.. चिंता मैने व्यक्त भी की थी अपने आलेखों में. 
           आपको याद होगा कि अन्ना के आंदोलन के दौर में  “अन्ना” एक आईकान के रूप में नज़र आए . पर मुझे ऐसा कुछ खास न लगा  न ही मुझ सा अदना लेखक उनको आइकान मान रहा था. इसके कई कारण थे जिसमें सबसे अव्वल था एक  क्योंकि उनके अभियान  से एक सज्जन को जब करीब से जाना और जानने  के तुरंत बाद मुझे एहसास हो गया था कि अन्ना के इर्दगिर्द जुड़ाव शायद आकस्मिक और हड़बड़ाहट  का जुड़ाव था. अथवा अन्ना जी का लक्ष्य केवल मुद्दे को हवा देना मात्र रहा हो जो भी हो वे आईकान बनने में असफ़ल  रहे.. कारण जो भी हो आईकान की ज़रूरत यानी एक पोत के लिये दिशासूचक की ज़रूरत थी . अचानक मोदी को सामने गया.. थोड़ी अचकचाहट के साथ भारतीय जनता जनार्दन में अंतर करंट प्रवाहित हो गया. ढाबे वाला ड्रायवर जो पंजाब और यूपी से लौट रहा था उसने एहसास दिला दिया कि क्या होने जा रहा है वैसा ही हुआ. ये अलग बात थी कि मैं और खाना खा रहे लोगों ने बेहद सामान्य ढंग से लिया. जो भी हुआ गोया तय कर लिया था कि क्या करना है. आपको याद होगा कि किसी राजा ने राज्य के लोगों से टंकी को  भरने दूध मंगाया पर सब ने पानी लाए ये सोच कि मेरे एक लोटे पानी लाने से क्या होगा सब तो दूध ही लाएंगें.. और सबके सबों ने पानी से  भर दी टंकी... इस बार सबने दूध से लबालब कर दिया टंकी को .. दूध लाने वालो आपसे एक अपेक्षा है कि - सिर्फ़ दूध इस लिये लाएं हैं कि कल उनके लिये दूध से बनी मिठाईयां.. मिलने लगेंगी. 
                                 प्रिय देशवासियो, अब केवल एक वोट का मामला नहीं देश को हर मोर्चे पर अव्वल लाने के लिये आत्म आचरणों में बदलाव लाना ही होगा .. अब नल की टोंटी न चुराना, मुफ़्त में सरकारी इमदाद को न लूटना, सरकारी कर्मचारी के रूप में सतत काम करना . बिना बारी और पात्रता के येनकेन प्रकारेण लाभ लेने की लालच छोड़ना होगा. अब सिगमेंट में जीना छोड़ना होगा. देश वासियो....धर्म आधारित व्यवस्था की अपेक्षा न करेंगें.. जाति के समूह के.. समुदाय के भाषा के  नफ़े नुकसान का मीजान न लगाना वरना आप को फ़िर उन्ही दिनों की ओर लौटना होगा.. जिनसे आप उकता रहे थे. इस आलेख का आशय पूर्णतया आप समझ ही रहे होगे... शायद नहीं तो साफ़ साफ़ समझ लीजिये ... अब व्यक्तिगत लाभ के भाव को त्याग कर सार्वभौमिक विकास के भाव को आत्मसात करना होगा. 

    

25.5.14

नरेंद्र मोदी जी और उनकी टीम को अग्रिम शुभकामनाऎं.


                      प्रधान मंत्री के रूप में श्री नरेंद्र दामोदर मोदी जी का व्यक्तित्व मानो उदघोषित कर रहा है  कि  शून्य का विस्फ़ोट हूं..!!  एक शानदार व्यक्तित्व जब भारत में सत्तानशीं होगा ही तो फ़िर यह तय है कि अपेक्षाएं और आकांक्षाएं उनको सोने न देंगीं. यानी कुल मिलाकर एक प्रधानमंत्री के रूप में सबसे पहले सबसे पीछे वाले को देखना और उसके बारे में कुछ कर देने के गुंताड़े में मशरूफ़ रहना ... बेशक सबसे जोखिम भरा काम होगा. बहुतेरे तिलिस्म और  ऎन्द्रजालिक परिस्थितियां निर्मित  होंगी. जो सत्ता को अपने इशारों पर चलने के लिये बाध्य करेंगी. परंतु भाव से भरा व्यक्तित्व अप्रभावित रहेगा इन सबसे ऐसा मेरा मानना है. 
                              शपथ-ग्रहण समारोह में आमंत्रण को लेकर मचे कोहराम के सियासी नज़रिये से हटकर देखा जावे तो साफ़ हो जाता है कि - दक्षेस राष्ट्रों में अपनी प्रभावी आमद को पहले ही झटके में दर्ज़ कराना सबसे बड़ी कूटनीति है. विश्व को भारत की मज़बूत स्थिति का संदेश देना भी तो बेहद आवश्यक था जो कर दिखाया नमो ने. सोचिये नवाज़ साहब को पड़ोसी के महत्व का अर्थ समझाना भी तो आवश्यक था यानी पहला पांसा ही सटीक अंक लेकर आया . 
                               इस बार भारतीय प्रज़ातांत्रिक रुढ़ियों एवम कुरीतियों पर जनता ने जिस तरह वोट से  हमला कर पुरानी गलीच मान्यताओं को  नेत्सनाबूत किया है उसे देख कर भारतीय आवाम का विकास की सकरात्मक दृष्टि के सुस्पष्ट संकेत मिले हैं साथ ही  प्रजातांत्रिक मान्यताएं  बेहद मज़बूत हुईं हैं . अब वक़्त है सिर्फ़ और सिर्फ़ राष्ट्र के बारे में सोचना जो भी करना राष्ट्र हित में करना. 
                              अब व्यक्ति और परिवार गौड़ हैं. समुदाय सर्वोपरि. चुनने वालों  की अपेक्षा है  नरेंद्र मोदी सरकार से आंतरिक स्वच्छता और बाह्य-छवि   का विशेष ध्यान रखा जावे. यद्यपि सत्ता मद का कारक होती है पर आत्मोत्कर्ष से सत्ता से अंकुरित मद को ऊगने से पूर्व ही मिटाया जा सकता है. मोदी जी से ये अपेक्षाएं तो हैं हीं. 
                भारतीय औद्योगिक घरानों को बढ़ावा देकर रोटी कपड़ा मकान  के लिये रोज़गार बढ़ाने के मौके देना सर्वोच्च प्राथमिकता हो . शिक्षा और चिकित्सा राज्य के अधीन एवम सस्ती हों. विकास का आधार भूखे को भीख देना किसी भी अर्थशास्त्रीय सिद्धांत का अध्याय नहीं है.. सरकार इस तरह की कोई योजना न लाए जिनसे भिखमंगों की संख्या में इज़ाफ़ा हो बल्कि उन कार्यक्रमों को लाना ज़रूरी है जिनकी वज़ह से रोज़गार पैदा हों .. लेकिन एक बात सत्य है कि  भारत में दो पवित्र कार्य व्यावसायिक दुष्चक्र में फ़ंस चुके हैं.. एक शिक्षा दूजी चिकित्सा... सरकार को इस पर लगाम कसनी ही होगी... 
               भारतीय आंतरिक शांति के लिये नक्सलवाद का समूल खात्मा, एक अहम चुनौती है. पूर्वोत्तर राज्यों में पनपते अलगाववादी प्रयास, के अलावा वे सारे बिंदु जो  आंतरिक शांति को क्षति पहुंचा रहे हैं को निशाने पर लेना ही होगा. भारतीय संविधान में दी गई कुछ रियायतों की समीक्षा भी एक महत्वपूर्ण बिंदू है. 
                  
श्री नरेंद्र मोदी जी और उनकी टीम  को अग्रिम शुभकामनाऎं.   

18.5.14

“मोदी विजय : पाकिस्तानी मीडिया की टिप्पणियां”

भारतीय सियासी तस्वीर बदलते ही पड़ौसी देशों में हलचल स्वभाविक थी. हुई भी... बीबीसी की मानें तो पाकिस्तानी अखबारों ने उछलकूद मचानी शुरू कर दी है. मोदी को कट्टरपंथी बताते हुए कट्टरपंथी राष्ट्र पाकिस्तान का मीडिया आधी रोटी में दाल लेकर कूदता फ़ांदता नज़र आ रहा है. मोदी विजय पर पाकिस्तानी मीडिया बेचैन ही है.. अखबारों को चिंता है कि –“ कहीं मोदी सरकार 370,राम मंदिर निर्माण, कामन सिविल कोड पर क़दम न उठाए ”
 अखबार अपने आलेखों में सूचित करते नज़र आते हैं कि “मोदी ने  विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ा है..!” यानी सिर्फ़ विकास की बात करें ... तो ठीक ही है.. !
            पाकिस्तान जो भारत जैसे वास्तविक प्रजातंत्र से कोसों दूर की चिंता बेमानी और अर्थहीन प्रतीत होती है. उम्मत अखबार ने तो सीमा पार करते हुए मोदी को कसाई का दर्ज़ा दे रहा है. इसे पाक़िस्तानी प्रिंट मीडिया की कुंठा-ग्रस्तता एवम हीनभावना से ग्रस्तता के पक़्क़े सबूत मिल रहे हैं.
            नवाए-वक़्त को कश्मीर मुद्दे पर चचा चीन की याद आ रही है. भारत इस मुद्दे पर न तो कभी सहमत था न ही होगा.
       पाक़िस्तानी मीडिया को भारत में मुस्लिमों की सही दशा का अंदाज़ा नहीं है. तभी तो आधी अधूरी सूचनाओं पर आलेख रच देते हैं. भारत के मुसलमान पाकिस्तान की तुलना में अधिक खुश एवम खुशहाल हैं. किसी भी देश को भारतीय जनता के निर्णय पर अंगुली उठाने का न तो हक़ है न ही उनके मीडिया को . ज़रूरत तो अब इस बात की है कि भारत में विकास को देखें उसका अनुसरण करें.. और अपने अपनी आवाम को खुश रखें.
सहअस्तित्व की अवधारणा पडौसी का सर्वश्रेष्ठ धर्म है ...!!पाकिस्तान को ये मानना ही होगा. 

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...