11.3.14

भीड़ तुम्हारा कोई धर्म है ..?


भीड़ तुम्हारा
कोई धर्म है ..
यदि है तो तुम
किसी के भरमाने में क्यों आ जाती हो..
अनजाने पथ क्यों अपनाती हो
भीड़ ....
तुम अनचीन्हे रास्ते मत अपनाओ
क़दम रखो मौलिक सोच के साथ
पावन पथों पर
मोहित मत होना
आभासी दृश्यों में उभरते
आभासी रथों पर
तब तो तुम सच्ची शक्ति हो !
वरना हिस्से हिस्से अधिनायकत्व
के अधीन कोर्निस करते नज़र आओगे
सामंती ठगों के सामने
सबकी सुनो
अपनी बुनों
चलो बिना लालच के
बिको मत
 दृढ़ दिखो
 स्वार्थ साधने
बिको मत

6.3.14

हल्की खांसी और आचार-संहिता


साभार : अमर उजाला
हम- डा. साब लगातार हल्की खांसी बनी है..
डा. - वैसे अब आप भले चंगे हैं.. कुछ दवाएं लिख देता हूं.. हल्की फ़ुल्की खांसी बनी रहेगी ! घबराएं न .
हम - घबराना तो पड़ेगा ही... लोग कह रहे हैं.. आचार-संहिता लग चुकी है.. क्या केजरी बाबू की मानिंद खौं-खौं किये जा रहे हो...
डाक्टर सा’ब हंसे और लिख मारा पर्चा. हम दूकान से दवा लेके निकले रास्ते में आम आदमी नामक जीव-जन्तु तलासते तपासते हम और  रास्ते भर मन में  उछलकूद मचाते विचार एक अज़ीब सी स्थिति के शिकार से घर की तरफ़ भागे चले आ रहे थे कि मित्र ( जो मित्र होकर हमको अपना गुरु मान लेने का अभिनय कर रहे हैं कई दिनों से ) ने फ़ुनियाना शुरु किया ..... सेल फ़ोन पर हमने उनके नम्बर के साथ "नकली चेहरा सामने आये असली सूरत छिपी रहे.." वाला रिंगटोन सेट किया था.. सो समझ गये किस का फ़ोन है.. हमने फ़ोन न उठाया. फ़िर सोचा चलो बतिया लेते हैं.. सो बतियाने लगे . हमने उनसे पूछा- भई बताओ, ये केजरी बाबू खास से आम और अब आम से खास कैसे बने ?

चेला- असल में अब उनको खासी आने लगी है.. वो खांस खखार के खास बन रहे हैं.. जैसे बहू-बेटियों वाले घरों में जेठ-ससुर टाईप के लोग खास खखार के खास बनते हैं.. पर गुरू आप काहे सियासी बात कर रए हो.. अरे आचार-संहिता लग गई सरकारी लोग ऐसा नहीं करते.. !
हम- भई, इसी डर से तो हम अपनी खांसी का इलाज़ करवा रए हैं.. डाक्टर भंडारी जी ने लम्बी पर्ची लिखी है. हमारी  खांसी कहीं आचार-संहिता का उल्लंघन न हो जाए. 
बातों बातों में हमारा फ़ोन कट गया मित्रो ...  सच्ची बात तो ये है कि अब केजरी बाबू की खांसी कहर बरपाने पे आमादा है. 
     खैर छोड़िये जब चर्चा निकल ही पड़ी तो सच्चे आम आदमी की चर्चा भी कर ली जावे. हमारे एक बड़े अफ़सर को एक चुगलखोर के सिखाए पूत ने फ़ोन पे चुगलियाया - सा’ब, आपका एक मातहत अफ़सर, गायब है . हमारे बड़े अफ़सर भी मस्त बतियाते रहे उनकी चुगलखोरी का मज़ा लेते रहे.. फ़ोन पर चुगलखोर की चुगली समाप्त होते ही बोले- भाई, उनसे मिलना है... ?
चुगलखोर - जी सा’ब, 
सा’ब - तो, फ़लां अस्पताल के पलंग नम्बर ... में चले जाओ ... श्रीमान जी, वो सा’ब वहीं भर्ती है.. देखो जीते जी आपके काम आ जाए ..
     चुगलखोर के दिल में बैठा आम इंसान जाग उठा फ़ट से उसने बता भी दिया कि किसने उसे चुगली के लिये उकसाया है.. 
                      मित्रो   ये हालिया दिनों में मेरे साथ घटी सत्य घटना हैं. पर मैं उन गिरे चरित्र वालों का नाम लिख कर उनको अमर न बनाऊंगा . क्योंकि राम के साथ आज़ भी रावण  जीवित  है  . मेरे कथानक में धूर्त ज़िंदा नहीं रहेंगें.. बस उनको क्षमा करने की याचना करता हूं .  





27.2.14

"फ़ेसबुक पर महाशिवरात्रि की धूम से नंदी भाव-विभोर !!"


 परम आदरणीय महान भारतीयो

                      "हैप्पी महाशिवरात्रि " 
  आज़ फ़ेसबुक पर आप सभी ने जिस तरह महाशिवरात्रि की धूम से मैं शिववाहन नंदी हार्दिक रूप से अभिभूत हुआ हूं. प्रभू को फेसबुक पर देख अभिभूत हूँ आज मैने गणेश जी के एंड्रायड पर प्रभू को पृथ्वी लोक की लीला का अवलोकन कराया . प्रभू एवम मां पार्वती भी अतिशय प्रसन्न हैं. 
हे भारतीयों इनका नाम ही भोले भंडारी है.. यथा नाम तथा गुण वाले प्रभू ने माता पार्वती से कहा -"हे देवी एक ओर जहां पृथ्वी लोक से चुनावी अटपट-चटपट-गटपट संवाद सुनाई दे रहें हैं कहीं कुंठित अनुगुंठित, अवगुंठित गठबंधनो का समाचार दिखाई सुनाई दे रहे हैं वहीं दूसरी ओर भारतीय जन इस पर्व को बड़े उत्साह से मना रहे हैं एक दूसरे को Wish U Very Happy Mahashivratri…….कह रहे हैं...!!"
           देवी पार्वती ने जब व्यग्र होकर पूछा- प्रभू, इन दिनों शिवाष्टक, पुष्पदंत विरचित शिवमहिम्न्स्त्रोत, शिवलीलामृत, रावण विरचित शिवतांडव   की ध्वनीयां सुनाईं नहीं दे रहीं..
    इस पर प्रभू मुस्कुराए और उनने कहा- देवी, धरा पर ध्वनि आधिक्य के कारण ऐसी ध्वनियों की संभावना कम ही मानो . 
  हे भारतीयो, देश में "हैप्पी.... ये...दिन /  हैप्पी.... वो...दिन" कहने का अवसर जब भी मिले अवश्य कहिये भले आप किसी को हैप्पी रखें या न रखें परंतु आपके ऐसे कह देने मात्र से एक पुण्य आपके एकाउंट में जमा हो जावेगा. ऐसे अवसर निरंतर आते हैं उनका लाभ उठाते रहिये . 
पुन: शिवरात्री की हार्दिक शुभकामानाएं....
                                                    Wish U Very Happy Mahashivratri…….
आपका स्नेही
"नंदी"
अंत में उड़नतश्तरी के एकमेव स्वामी समीरलाल विरचित 
पैग़ाम 


                                



25.2.14

गांव के गांव बूचड़ खाने से लगने लगे अब सियासी-परिंदे गांवों पे मंडराने लगे हैं.

आभार इनका जी 
http://www.blendwithspices.com/2010_08_01_archive.html

रजाई ओढ़ तो ली मैनें मगर वो नींद न पाई ,
जो पल्लेदारों को  बारदानों में आती है.!
वो रोटी कलरात जो मैने छोडी थी थाली में
मजूरे को वही रोटी सपनों में लुभाती है.
***********
फ़रिश्ते   आज कल घर मेरे आने लगे हैं
मुझे बेवज़ह कुछ रास्ते बतलाने लगे हैं
मुझे मालूम है तरीके़ अबके फ़रिश्तों की
फ़रिश्ते घूस लेकर काम करवाने  लगे हैं.
***********
तरक़्क़ी की लिस्टें महक़में से हो गईं जारी
तभी तो लल्लू-पंजू इतराने लगे हैं....!!
खुदा जाने नौटंकी बाज़ इतने क्यों हुए हैं वो
जिनको लूटा उसी को भीख दिलवाने चले हैं.
***********
जिन गमछों से आंसू पौंछते हमारे बड़े-बूढ़े-
वो गमछे अब गरीबों को डरवाने लगे हैं.
गांव के गांव बूचड़ खाने से लगने लगे अब
सियासी-परिंदे गांवों पे मंडराने लगे हैं.
***********

24.2.14

टी.वी. चैनल्स के लिये चुनौती है न्यू-मीडिया ?

 
साभार : learningtimes
             

  के. एम. अग्रवाल कलावाणिज्य एवं विज्ञान महाविद्यालयकल्याण(प) के हिंदी विभाग द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान  आयोग के सहयोग से 9-10 दिसबर 2011 को दो दिवसीयराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जाना था जो केंद्रित थी "हिन्दी ब्लागिंग : स्वरूप, व्याप्ति और संभावनायें" विषय पर   डॉ.मनीष कुमार मिश्रा का स्नेहिल आमंत्रण सम्पूर्ण व्यवस्थाश्रीमति अनिता कुमार जी के आचार्य कालेज मुम्बई में मेरा वक्तव्य सुनिश्चित किया था कई सारे प्रोग्राम तो फ़ोन पे तय हो गये थे कुछ तय हो जाते वहां जाकर  सब कुछ सटीक समयानुकूलित था कि अचानक  7.12.2011 की रात मुझ पर  अस्थमेटिक हमला हुआ सपत्नीक कल्याण और फ़िर मुम्बई जाना अब किसी सूरत में संभव न था. जबलपुर से नागपुर फ़िर वहां से फ़्लाईट पकड़नी थी .जात्रा के लिये  सजा सजाया साजो सामान और तेज़ बुखार खांसी एक विपरीत परिस्थिति डाक्टर ने भी बिस्तर से न हिलने की सलाह दी थी. श्रीमति अनिता कुमार जी तो शायद आज़ तक नाराज़ है. नाराज़गी ज़ायज़ है भई .. होनी भी चाहिये ...आचार्य कालेज मुम्बई के बच्चे उस दौर में मुझसे वेबकास्टिंग का हुनर जो सीखते जब लाइव स्ट्रीमिंग के लिये गूगल बाबा ने भी न सोचा था (शायद )..  जी हां अस्ट्रीम और बैम्बशर दो ऐसी साइट्स मेरे हाथ लगी थीं जिनके ज़रिये एक साथ हज़ारोंलाखो  लोग किसी कार्यक्रम से जुड़ जाते चाहे वे कहीं भीं हों. ये करिश्मा खटीमा-ब्लागर्स मीट   की लाइव स्ट्रीमिंग में हो भी चुका था . स्ट्रीमिंग पर कई दिनों तक काम किया था कई सारे प्रसारण प्रसारण मेरे, श्रीमति अर्चना चावजी, भाई अविनाश वाचस्पति  एवम पद्मसिंह द्वारा किये जा चुके थे .
 हिंदी ब्लागिंग में टेक्स्ट के अलावा आडियो कंटेंट्स तो पुरानी बात लगने लगी थी तब.  ब्लागिंग में वीडियों कंटेंट्स की मौज़ूदगी मुहैया कराना एक करिश्मा ही तो था. इसके सहारे कल्याण  मुम्बई जाता तो बहुत कुछ हासिल होता पर जब जब जो जो होना है तब तब वो वो होता है खैर हमारी इस तरह की उछलकूद ने   गूगल बाबा को लाइव-स्ट्रीमिंग की दिशा में सोचने शायद मज़बूर कर ही दिया . लगभग एक बरस से  नेट यूज़र्स  अब लाइव स्ट्रीमिंग का लाभ ले रहे हैं. वो दिन दूर नहीं जब हर पी सी से एक चैनल उपजेगा. न्यू-मीडिया खबरिया चैनल्स के लिये एक सूचना-स्रोत हो सकता है. (अभी कई मामलों में है भी )   प्रिंट मीडिया तो न्यू-मीडिया का भरपूर और सार्थक प्रयोग कर भी रहा है.
       तो लाइव स्ट्रीमिंग के तीव्र होते ही  खबरिया-चैनल्स को कोई खतरा है ? तो जान लीजिये आज़ से बरसों पहले जब फ़िल्में सिनेमाघरों में देखी जातीं थीं तब आम आदमी का मनोरंजन व्यय बेहद अधिक था. मुझे पांच रुपए खर्चने होते थे . पर अब दस बीस फ़िल्में मेरे सेल फ़ोन में उतनी ही कीमत पर देख सकता हूं. वो भी इच्छानुसार . 
अब आवश्यक्ता अविष्कार की जननी नहीं बल्कि बेहतर विकल्पों की तलाश की वज़ह से अविष्कार हो रहे हैं.       
              संचार के क्षेत्र में भी एक आवेग सतह के नीचे पल रहा है.  जो सिर्फ सतह देखने के  आदी है वे देखें न देखें इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता ।
             चिन्तक सत्य को समझ पा रहे कि विचार और सरिता में  अनाधिकृत तट बंधों को तोड़ देने की क्षमता होती है । जहां तक न्यू मीडिया का सवाल है ठीक वैसा ही आतुर है में  अनाधिकृत तट बंधों को तोड़ देने जिसका सबसे बड़ा खामियाज़ा लापरवाह निरंकुश टी.वी. चैनल्स को भुगतना पड़ सकता है विज़ुअलिटी के दौर में मनोरंजक, फ़िल्मी चैनल्स, खबरिया चैनल्स पर अब ये सवाल उठने लगे  हैं कि – निरंकुश एवम  अत्यधिक आक्रामक हो रहे हैं .. परिवारों में तांक-झांक करने लगे हैं तो  अगर ये आरोप सही साबित होते  हैं तो तय है कि आने वाले समय में दर्शक जुड़ने से परहेज करेंगें . जो इनके  मीडिया-संस्थानों के लिये बेहद नुकसान देह साबित होंगें. दर्शक तलाशेंगे विकल्प तब मौज़ूद होगा एक मज़बूत विकल्प भले ही तकनीकि तौर पर कमज़ोर सही परंतु मौलिक होंगे. क्या होगा विकल्प ... यक़ीनन वेबकास्टिंग... 4G के आते ही इसकी आहट आप सुन सकते हैं. 
         इस तरह के बदलावों को रोकना सम्भव नहीं होगा. न्यू-मीडिया का यह विकल्प एक ओर विचार-संप्रेषण का माध्यम होगा वहीं दूसरी ओर सूचना-संचरण का तीव्रतम साधन. चूंकि एक या दो अथवा कुछ  लोग के ज़रिये प्रसारण होंगे तो तय है कि तब कि "वेबकास्टिंग" अपेक्षाकृत अधिक उद्दण्ड और अराजक होगी. इस बात को नकारना असम्भव तो है  किंतु विकल्प के रूप में उनकी मौज़ूदगी तय है.!!


               

22.2.14

क्या ये चुनौती है न्यू-मीडिया ? (भाग-01)

                                                   के. एम. अग्रवाल कलावाणिज्य एवं विज्ञान महाविद्यालयकल्याण(प) के हिंदी विभाग द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान  आयोग के सहयोग से 9-10 दिसबर 2011 को दो दिवसीयराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जाना था जो केंद्रित थी "हिन्दी ब्लागिंग : स्वरूप, व्याप्ति और संभावनायें" विषय पर   डॉ.मनीष कुमार मिश्रा का स्नेहिल आमंत्रण सम्पूर्ण व्यवस्था, श्रीमति अनिता कुमार जी ने भी अपने कालेज में मेरा वक्त्य सुनिश्चित किया था यहां तक कि रवी भैया आभास-श्रेयश, काकाजी श्रीयुत रमेश नारायण बिल्लोरे जी ने बहुत सारी व्यवस्थाएं तय कीं थीं .. कई सारे प्रोग्राम तो फ़ोन पे तय हो गये थे कुछ तय हो जाते वहां जाकर  सब कुछ सटीक समयानुकूतित था कि  7.12.2011 की रात मुझ पर  अस्थमेटिक हमला हुआ सपत्नीक कल्याण और फ़िर मुम्बई जाना अब किसी सूरत में संभव न था. जबलपुर से नागपुर फ़िर वहां से फ़्लाईट पकड़नी थी .जात्रा के लिये  सजा सजाया साजो सामान और तेज़ बुखार खांसी एक विपरीत परिस्थिति डाक्टर ने भी बिस्तर से न हिलने की सलाह दी थी. श्रीमति अनिता कुमार जी तो शायद आज़ तक नाराज़ है. नाराज़गी ज़ायज़ है भई .. होनी भी चाहिये ...आचार्य कालेज मुम्बई के बच्चे उस दौर में मुझसे वेबकास्टिंग का हुनर जो सीखते जब लाइव स्ट्रीमिंग के लिये गूगल बाबा ने भी न सोचा था .. अस्ट्रीम और बैम्बशर दो ऐसी साइट्स मेरे हाथ लगी थीं जिनके ज़रिये एक साथ हज़ारोंलाखो  लोग किसी कार्यक्रम से जुड़ जाते चाहे वे कहीं भीं हों. ये करिश्मा खटीमा-ब्लागर्स मीट   की लाइव स्ट्रीमिंग में हो भी चुका था . स्ट्रीमिंग पर कई दिनों तक काम किया था कई सारे प्रसारण किये "समीरलाल बवाल और समाधिया से बातचीत " - ये तो एक नमूना था हिंदी ब्लागिंग में टेक्स्ट के अलावा आडियो कंटेंट्स तो पुरानी बात थी तब ब्लागिंग में वीडियों कंटेंट्स की मौज़ूदगी एक करिश्मा ही तो था. मुम्बई जाता बहुत कुछ हासिल होता पर जितना भी हासिल होना था हुआ  गूगल को इस दिशा में सोचना पड़ा कि लोग अब लाइव स्ट्रीमिंग के आकांक्षी हैं. हैंगआउट और लाइव ओन यू-ट्यूब को इसी तरह की पहल की श्रेणी में रखना ग़लत न होगा.  अब तो मतदान केंद्रों की लाइव स्ट्रीमिंग सभी ने अपना ली है. वो दिन दूर नहीं जब हर पी सी से एक चैनल उपजेगा. न्यू-मीडिया खबरिया चैनल्स के लिये एक सूचना-स्रोत हो सकता है. (अभी कई मामलों में है भी )   प्रिंट मीडिया तो न्यू-मीडिया का भरपूर और सार्थक प्रयोग कर भी रहा है.
       तो लाइव स्ट्रीमिंग के तीव्र होते ही  खबरिया-चैनल्स को कोई खतरा है ? तो जान लीजिये आज़ से बरसों पहले जब फ़िल्में सिनेमाघरों में देखी जातीं थीं तब आम आदमी का मनोरंजन व्यय बेहद अधिक था. मुझे पांच रुपए खर्चने होते थे . पर अब दस बीस फ़िल्में मेरे सेल फ़ोन में उतनी ही कीमत पर देख सकता हूं. वो भी इच्छानुसार . 
क्रमश: जारी......................  


21.2.14

गलती किसी की भी हो कटते तो मुर्गे ही हैं.

               मुर्गों का आतंक देख मुर्गियां खुद विलापरत थीं.दौनों मुर्गे ज़मीन से आकाश वाली लड़ाई लड़ते देख लगा गोया wwwF की फ़ाईट चल रही हो एक खली तो दूसरा जान सीना नज़र आ रहा था. पूरे गांव भर के तमाशबीन झोप लगाके झगड़ा देख तालियां पीट रहे थे ... जब इस तरह के हादसे हुआ करते हैं तो गांव दो हिस्से में बंट जाता है . एक ग्रुप काले खां की तरफ़ दूसरा लालचंद की तरफ़ दौनों की गुंडा गर्दी से हलाकान मुर्गियों ने लालचंद की मालकन शकुन को उकसाया कि - बाईसा, लालचंद को चंडी मेले में दान कर दो ..
बाईसा ने अनसुनी कर दी और धुत-धुत कर भगा दिया. कालेखां के मालिक ने भी उनका  यही हाल किया.     अब मुर्गियां चुग्गा कम चुनतीं दौनों को हटाने पर विशेष चर्चा करतीं . लालचंद की मालकिन को नौकरी की तलब हुई सो राजा के हाकिम के पास पहुंची . हाक़िम ने उससे एक मुर्गे और पांच अशर्फ़ीयों की मांग कर डाली . मामला सेट हुआ.  मुर्गे और पांच अशर्फ़ी लेने के बाद हाक़िम यूं भूला जैसे आम तौर पर एक पति अपनी सगाई और शादी की तारीख भूल जाते हैं. 
            जब मरे हुए लालचंद की आत्मा ने दुहाई दी तू ने अकारण कटवाया अगर तू राजनौकर न बनी तो समझ लेना ... मारे डर के थर थर कांपती शकुन ने मुखिया से मुर्गे के भूत वाली बात बताई . मुखिया ने मालगुज़ार को, मालगुज़ार ने कोतवाल को कोतवाल ने वज़ीर को तब जाकर कहीं वज़ीर ने बुलावा भेजा फ़रियादिन शकुन और हाक़िम के बीच बातचीत के ज़रिये सुलह सफ़ाई कराई गई . पांच अशर्फ़ियां और दो मुर्गे वापसी पे मामला सेट हुआ. 
          मुकरर किये  दिन पर हाकिम एक मुर्गा  लेकर शकुन बाई के घर जा पहुंचा . दूसरा मुर्गा छै:आने में खरीदा गया. मुर्गा क्या वो काले खां था लालचंद का दुश्मन .
                              शाम को सारा गांव इस जीत पर खुश था  दावत हुई दोनों मुर्गे काटे और पकाए गये सब ने छक के खाए . आज़ रात शकुन बाई को फ़िर दौनों मुर्गों के भूत दिखे - जो आपस में बतिया रहे थे - गलती किसी की भी हो कटते तो मुर्गे ही हैं. 

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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...