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“दुनिया एवं बघाड़ : जहां मेरा जाना असम्भव है..!!”

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उमरिया जिले से सटे डिंडोरी जिले के गांव  दुनिया एवं बघाड़  :  जहां मेरा जाना असम्भव है..!!” सीधी पर्वतीय राह से होकर पहुंचते हैं इन गांवों में . बहुत सोचा मन भी यही कह रहा था कि  कलेक्टर श्रीमति छवि भारद्वाज    के नेतृत्व में   दुनिया एवं बघाड़  जाने वाली टीम के साथ मैं भी जाऊं . किंतु सहकर्मियों के आग्रह पर मैने वहां न जाने का निर्णय लिया. सो आनन-फ़ानन सारी तैयारियां की गईं . एक टीम को (जिसमें श्रीमति उर्मिला जंघेला , श्रीमति केतकी परस्ते एवम श्रीमति कौतिका धारणे मार्गदर्शन के लिये हमारे चौकीदार श्री धनीराम जिन्हैं सब दादा  से संबोधित करता हैं  के अलावा सशक्तिकरण विंग से  प्रोबेशनरी आफ़िसर श्री प्रकाश नारायण यादव एवम प्रोटेक्शन आफ़िसर श्री अशोक परमार ) भेजा .टीम अपने साथ थी आय वाई सी एफ़ की पुस्तिका की प्रतियां जो यूनिसेफ़ एवम बी.पी.एन.आई. का संयुक्त प्रयास है. ऊषा-किरण, मुख्यमंत्री महिला सशक्तिकरण योजना के आवेदनों का प्रारूप, कुछ प्रोटीन पावडर के डब्बे, ला्डली-लक्ष्मी आवेदन प्रपत्र .            पहाड़ियों से घि रे इन   गॉ वों तक पहुंचना भले ही दुर्गम हो परंतु प्राकृतिक सौंदर्य किसी पि

मंहगा हुआ बाज़ार औ'जाड़ा है इस क़दर- किया है रात भर सूरज का इंतज़ार.!!

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हमने उनको यक़ीन हो कि न हो हैं हम तो बेक़रार चुभती हवा रुकेगी क्या कंबल है तारतार !! मंहगा हुआ बाज़ार औ'जाड़ा है इस क़दर- किया है रात भर सूरज का इंतज़ार.!! हाक़िम ने  फ़ुटपाथ पे आ बेदख़ल किया - औरों की तरह हमने भी डेरा बदल दिया ! सुनतें हैं कि  सरकार कल शाम आएंगें- जलते हुए सवालों से जाड़ा मिटाएंगें ! हाक़िम से कह दूं सोचा था सरकार से कहे मुद्दे हैं बहुत उनको को ही वो तापते रहें....! लकड़ी कहां है आप तो - मुद्दे जलाईये जाड़ों से मरे जिस्मों की गिनती छिपाईये..!! जी आज़ ही सूरज ने मुझको बता दिया कल धूप तेज़ होगी ये  वादा सुना दिया ! तू चाहे मान ले भगवान किसी को भी हमने तो पत्थरों में भगवान पा लिया !! कहता हूं कि मेरे नाम पे आंसू गिराना मत फ़ुटपाथ के कुत्तों से मेरा नाता छुड़ाना मत उससे ही लिपट के सच कुछ देर सोया था- ज़हर का बिस्किट उसको खिलाना मत !!  गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"

तो क्या अब तक का प्रजातंत्र सामंतशाही जैसा था ..?

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आम जीवन का पावर की तरफ़ पहला क़दम ही तो है साभार : ndtv  के इस पन्ने से बेशक कल आम-जीवन और खास जीवन में कोई फ़र्क न होगा तो क्या अब तक का प्रजातंत्र सामंतशाही जैसा था .. ? यह सवाल  केज़रीवाल वाले प्रजातांत्रिक मोड तक आते ही तेज़ी से ज़ेहनों में गूंजने लगा है.   ऐसे सवाल उठने तय थे अभी तो बहुत से सवाल हैं जिनका उठना सम्भव ही नहीं तयशुदा भी है  . मसलन क्या वाक़ई हम आज़ादी से दूर हैं.. क्या सियासी एवम ब्योरोक्रेटिक सिस्टम के साथ आम आज़ादी एक आभासी आज़ादी से इतर कुछ भी न थी . ..? अथवा पावर में आते ही आम आज़ादी से परहेज़ होने लगता है.. !!       वास्तव में प्रजातांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ़ जाते हुए नज़र आने वाले ये सवाल इस लिये उठ रहे हैं क्योंकि कहीं न कहीं आम-जीवन ये महसूस करने लगा था कि -"डेमोक्रेटिक-सिस्टम" में उसका हस्तक्षेप पांच बरस में बस एक बार ही हो सकता है. पांचवे बरस आते आते भोला-भाला आम-जीवन अपने आप को कुछ तय न कर पाने की स्थिति में पाता है. और तब जो भी कुछ तात्कालिक वातवरण आम जीवन के पक्ष में बनता है यक़ीनन आम जीवन उसी के साथ होता है.     पर भारतीय प्रज़ातांत्रिक व्यवस्थ

2014 कल तुम आओगे तब मैं

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2014   कल तुम आओगे तब मैं आधी रात से ही तुमको दुलारने लगूंगा पुकारने लगूंगा तुम्हारी राह बुहारने लगूंगा शुभकामनाओं के फ़ूल बिखेर बिखेर अपने तुपने संबंध को मेरे अनुकूलित करने किसी पंडित को बुला पत्री-बांचने दे दूंगा उसे ... या तुम्हारे कालपत्रक पंचांग को पाते ही पीछे छपे राशिफ़ल को बाचूंगा.. घर में बहुत हंगामा होगा बाहर भी . फ़िर कोई कहेगा अर्र ये क्या अपना नया तो "ये नहीं गुड़ी पड़वा" को आएगा . उसकी कही एक कान से सुन दूजे निका दूंगा . हर साल वो यही कहता है पर मै नहीं सुनता उसको    सु नूं भी क्यों किसी की क्यों .. एक भी न सुनूं ऐसे किसी की जो  गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज़ी बताए .. !! अब भला सरकारी तनख्वाह अंग्रेजी कैलेंडर से ही महीना पूरा होते मिलती है.. है न .. कौन अमौस-पूनौ ले दे रहा है तनख्वाह  बताओ भला हमको तो खुश रहने का बहाना चाहिये. आप हो कि हमारी सोच पर ताला जड़ने की नाकामयाब कोशिश कर रहे हो .      अल्ल सुबह वर्मा जी, शर्मा जी वगैरा आए हैप्पी-न्यू ईयर बोले तो क्या उनसे झगड़ लूं बताओ भला .     चलो हटाओ सुनो पुराने में नया क्या खास हुआ  अखबार चैनल

तुम बिन माँ भावों ने सूनेपन के अर्थ बताए !!

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  मां सव्यसाची प्रमिला देवी की पुण्यतिथि  28.12.2013  पर पुनर्पाठ  सव्यसाची स्व. मां         यूं तो तीसरी हिंदी दर्ज़े तक पढ़ी थीं मेरी मां जिनको हम सब सव्यसाची कहते हैं क्यों कहा हमने उनको सव्यसाची क्या वे अर्जुन थीं.. कृष्ण ने उसे ही तो सव्यसाची कहा था..? न वे अर्जुन न थीं.  तो क्या वे धनुर्धारी थीं जो कि दाएं हाथ से भी धनुष चला सकतीं थीं..?  न मां ये तो न थीं हमारी मां थीं सबसे अच्छी थीं मां हमारी..!  जी जैसी सबकी मां सबसे अच्छी होतीं हैं कभी दूर देश से अपनी मां को याद किया तो गांव में बसी मां आपको सबसे अच्छी लगती है न हां ठीक उतनी ही सबसे अच्छी मां थीं .. हां सवाल जहां के तहां है हमने उनको सव्यसाची   क्यों कहा..! तो याद कीजिये कृष्ण ने उस पवित्र अर्जुन को "सव्यसाची" तब कहा था जब उसने कहा -"प्रभू, इनमें मेरा शत्रु कोई नहीं कोई चाचा है.. कोई मामा है, कोई बाल सखा है सब किसी न किसी नाते से मेरे नातेदार हैं.." यानी अर्जुन में तब अदभुत अपनत्व भाव हिलोरें ले रहा था..तब कृष्ण ने अर्जुन को सव्यसाची सम्बोधित कर गीता का उपदेश दिया.अर्जुन से मां  की

हर मोड़ औ’ नुक्कड़ पे ग़ालिब चचा मिले

हर मोड़ औ ’ नुक्कड़ पे ग़ालिब चचा मिले ग़ालिब की शायरी का असर देखिये ज़नाब ************* कब से खड़ा हूं ज़ख्मी-ज़िगर हाथ में लिये सब आए तू न आया , मुलाक़ात के लिये ! तेरे दिये ज़ख्मों को तेरा इं तज़ार है – वो हैं हरे तुझसे सवालत के लिये ! ************* उजाले उनकी यादों के हमें सोने नहीं देते. सुर-उम्मीद के तकिये भिगोने भी नहीं देते. उनकी प्रीत में बदनाम गलियों में कूचों में- भीड़ में खोना नामुमकिन लोग खोने ही नहीं देते. ************* जेब से रेज़गारी जिस तरह गिरती है सड़कों पे तुमसे प्यार के चर्चे कुछ यूं ही खनकते हैं....!! कि बंधन तोड़कर अब आ भी जाओ हमसफ़र बनके   कितनी अंगुलियां उठतीं औ कितने हाथ उठते हैं.? **************** पूरे शहर को मेरी शिकायत सुना के आ मेरी हर ख़ता की अदावत निभा के आ ! हर शख़्स को मुंसिफ़ बना घरों को अदालतें – आ जब भी मेरे घर आ , रंजिश हटा के आ !!

.संदीप आचार्य को श्रद्धांजली : श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’

गौरा रंगा, लम्बा कद, हंसमुख चेहरा, सुन्दर व सौम्य मुस्कान के साथ सरल स्वभाव जी  संदीप आचार्य जिसने इंडियन आइडल सीजन 2 में प्रथम स्थान प्राप्त कर अपनी धमाकेदार एंट्री 2006 में करी आज वह हमारे बीच नहीं रहा। राजस्थान की मरूनगरी बीकानेर के इस चहेते व लाडले को आज अंतिम विदाई देने जैसे सारा शहर ही उमड़ पड़ा था। काल के क्रूर हाथों ने संदीप को हमारे से छीन लिया लेकिन मानो किसी को यह विश्वास ही नहीं हो रहा था कि संदीप हमारे बीच नहीं रहा। संदीप जब किसी से भी मिलता तो अपने से बड़ों के पैर छूने नहीं भूलता था और बच्चों से उसका खास लगाव था और बच्चों के साथ खेलना उनकी बाल सुलभ हरकतों में शामिल होकर बच्चा बन जाता संदीप की आदत में था। बच्चों के लिए संदीप हमेशा चाचा और मामा रहा और संदीप हर बच्चे को अपनी ओर से चाॅकलेट देना या केाई गिफ्ट देना नहीं भूलता था। मेरे से संदीप का जुड़ाव वैसे तो संदीप के बचपन से ही था। मेरे मामाजी मोटूलाल जी हर्ष ’मोटू महाराज’ और संदीप के पिताजी विजय कुमार जी आचार्य ‘गट्टू महाराज’ शुरू से ही मित्र हैं और उनका काम धंधा भी किसी समय साथ रहा है। इसलिए मेरे लिए संदीप के पिताजी