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घरेलू हिंसा से बचाव के लिये चयन में पोस्टर होर्डिंग कार्टून सहयोग

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(एक)  कार्टूनिष्ट राजेश दुबे   (दो)  कार्टूनिष्ट राजेश दुबे   मध्य-प्रदेश में घरेलू हिंसा से बचाव के लिये क्या करें.. ! इस सवाल को सवाल न रहने दें.. बस आप 1090 पर डायल कर अपने खिलाफ़ हो रही हिंसा की सूचना दर्ज़ कराएं.. किसी भी स्थिति में मदद आप तक पहुंचना तय है.. .... यदि आप किसी घरेलू हिंसा की शिकार किसी अन्य को हिंसा से बचाना चाहते हैं तो भी आप 1090 पर डायल कर  हो रही हिंसा की सूचना दर्ज़ कराएं..  सूचना दाता का नाम गोपनीय रखा जाता है.. तो फ़िर क्यों न चुप्पी तोड़ी जाए...  कार्टूनिष्ट राजेश दुबे    द्वारा बनाए गये इन कार्टूनस में अंतर बताएं तथा रेटिंग करें .. सर्वाधिक रेटिंग वाले कार्टून का प्रयोग होर्डिंग / पोस्टर के रूप में किया जावेगा.. इस हेतु प्रचार सामग्री तैयार की जानी है.  पोस्टर होर्डिंग कार्टून चयन में सहयोग हेतु अपनी पसंद बताएं..

ताल लय सुर की देवी लता जी कुछ तथ्य

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शहीद-स्मारक जबलपुर में प्रतिभा-पर्व के रूप में लता जी का जन्मोत्सव  मनाया गया जन्म दिवस के पूर्व  २३ सितम्बर को आज़ का दौर गीत-संगीत के लिये बेशक उकताहट का दौर है. यह दौर न तो संगीत के लिये न  गीत के लिये और न ही सुरों के लिये माकूल है. कोलावरी डी और चिकनी चमेलियों वाले दौर में कोई भी गला जो शारदा से वर प्राप्त हो जोखिम उठाना नहीं चाहेगा.  वास्तव में लोगों की रुचि में अज़ीबो ग़रीब स्थिति दिखाई दे रही है. लोगों के ज़ेहन में कोई ऐसा कैनवास ही नहीं बचा जिस पर वे संगीत के रथ पर आरुढ़ भावों की अनुकृति अपने एहसासों के ज़रिये उकेर सकें. संगीत क्या हल्ला-गुल्ला.. बस और क्या...? अब तो कोई भी  ऐसा  गीत नहीं बनता जिसे कोई गुनगुनाए.. बस शोर ही शोर . लता जी भी आहत हुईं हैं, इस तरह के वातावरण से.  आइये जानें लता जी के बारे में कुछ तथ्य -        28 सितम्बर 1929 को इंदौर में जन्मी लता जी ने अब तक 3000 से अधिक गीत गाए हैं.   फिल्म फेयर पुरस्कार ( 1958, 1962, 1965, 1969, 1993 and 1994) , राष्ट्रीय पुरस्कार ( 1972, 1975 and 1990) ,महाराष्ट्र सरकार पुरस्कार ( 1966 and 1967)1969 - पद्म भूषण, 1974

नेताजी ने सिद्धांत .. बाबा ने वेदांत तज़ा.

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कुत्तों का बास अधीनस्त कुत्तों को एक तस्वीर दिखाते हुए बोला  - मित्रो इसे देखा हैं.. ? कुत्ते - (समवेत स्वरों में) अरे टामी सर फ़ोटू लेकर तलाशने की बीमारी कब से लग गई.. बास..? बास - बास इज़ आल वेज़ राईट समझे जित्ता पूछा उत्ता बताओ.. इस तस्वीर की  मैंने कापीयां कराई है.. सब ले जाओ इसकी पता साज़ी करके लेकर आओ .     सारे कुत्ते भुनभुनाते हुए निकले .. कोई उनकी भुनभुनाहट का सारांश था "बताओ भई, क्या ज़माना आ गया है.. हमारे बास को हमारी घ्राण-शक्ति पर से भरोसा जाता रहा. अरे हम एक बार सूंघ लेते तो आदमी की राख तक को सूंघ के बता देते कि किसकी भस्मी है... उफ़्फ़... बड़ा आया बास कहलाने के क़ाबिल नहीं है.. स्साला.. आदमियों के साथ रह के कुत्तव विहीन हो गया है . कुत्तों को इस क्रास बीट की बात वैसे भी न पसंद थी .बास था सो मज़बूरी थी सुनने की ... बास की सुनना संस्थागत मज़बूरी थी वरना देसी कुत्ते  किसकी सुनते हैं. बहरहाल तस्वीर वाले आदमी की तलाश में निकले कि हमारा निकलना हुआ. हम निकले निकलते ही कुछ एक जो मुहल्ले के थे अनदेखा करके निकल गये . पराए मोहल्ले वाला घूर-घूर हमें तक रहा था.हम डरे डरे

" दण्ड का प्रावधान उम्र आधारित न होकर अपराध की क्रूरता आधारित हो !"

                  भारतीय न्याय व्यवस्था ने एक बार फ़िर साबित कर दिया है कि -भारतीय न्याय व्यवस्था बेशक बेहद विश्वसनीय एवम विश्वास जनक है. दामिनी के साथ हुआ बर्ताव अमानवीय एवम क्रूरतम जघन्य था. सच कितने निर्मम थे अपराधी उनके खिलाफ़ ये सज़ा माकूल है. जुविलाइन एक्ट की वज़ह से मात्र तीन बरस की सज़ा पाने वाला अपराधी भी इसी तरह की सज़ा का पात्र होना था . किंतु मौज़ूदा कानून के तहत लिए गए निर्णय पर  टीका टिप्पणी न करते हुये एक बात सबके संग्यान में लाना आवश्यक है कि - "यौन अपराधों के विरुद्ध सज़ा एक सी हो तो समाज का कानून  के प्रति नज़रिया अलग ही होगा."       सुधि पाठको ! यहां यह कहना भी ज़रूरी हो गया है कि- यौन अपराध,  राष्ट्र के खिलाफ़ षड़यंत्रों, राष्ट्र की अस्मिता पर आघात करने वाले विद्रोहियों, आतंकवादियों के द्वारा की गई राष्ट्र विरोधी गतिविधियों से कम नहीं हैं  . अतएव इस अपराध को रोकने कठोरतम दण्ड के प्रावधान की ज़रूरत है. इतना ही नहीं ऐसे आपराधिक कार्य में अवयष्क  को उसकी अवयष्कता के आधार पर कम दण्ड देना  सर्वथा प्रासंगिक नहीं है. राज्य के विरुद्ध अपराध के संदर्भ में देखा ज

धार्मिक उन्माद से शोक ग्रस्त हूं.. क्या लिखूं दोस्तो ?

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आपदाग्रस्त उत्तराखंड में टी.एच.डी.सी. की मनमानी

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जून की आपदा में पूरे उत्तराखंड में जगह - जगह गांव - घर - जमीनें धसकी है। किन्तु फिर भी अलकनंदा पर प्रस्तावित विष्णुगाड - पीपलकोटी जलविद्युत परियोजना  (400  मेवा )  की कार्यदायी संस्था टी . एच . डी . सी . विस्फोटो का प्रयोग कर रही है। विष्णुगाड - पीपलकोटी बांध के विद्युतगृह को जाने वाली सुरंग निर्माण के कारण हरसारी गांव के मकानों में दरारें पड़ी है ,  पानी के स्त्रोत सूखे है ,  फसल खराब हुई है। लोगो ने बांध का विरोध किया है। नतीजा यह है कि लगभग दस वर्षो बाद भी प्रभावितों की समस्याओं का निराकरण नही हुआ है। बांध का विरोध इसलिये बांध कंपनी द्वारा झूठे मुकद्दमों में फंसाने की कोशिशे जारी।  हरसारी के प्रभावित समाज - सरकार के सामने एक दिन के उपवास पर बैठे है। ताकि बांध कंपनी की मनमानी और लोगो की पीड़ा सामने आये। एक आपदाग्रस्त राज्य में टी . एच . डी . सी .  द्वारा नई आपदा लाने को स्वीकार नही किया जायेगा। गोपेश्वर में जिलाधीश कार्यालय के बाहर धरने पर शहरी विकास मंत्री एंव चमोली जिला आपदा प्रभारी श्री पीतम सिंह पंवार और श्री अनुसूया प्रसाद मैखुरी उपाध्यक्ष विधानसभा ने लोगो से मुलाकात की और

हम भी पिटे थे जब रुपया गिरा था जेब से

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वन इंडिया से साभार  हम भी पिटे थे जब रुपया गिरा था जेब से हमाए बाबूजी भी बड़े तेज़ तर्रार थे हम जैसे 50 साल के पार वालों के बाबूजीयों की   हिटलरी सर्वव्यापी है. हुआ यूं कि हमारी लापरवाही की वज़ह से हम हमारी जेब का एक रुपया ट्प्प से गिरा घर आए हिसाब पूछा एक रुपिया  कम मिला ... साहू जी ( किरानेवाले) कने गये  हमने पूछा भैया हमारा रुपिया गिर गया इधर ! उनने भी खोजा न मिला ....वापस घर पहुंचे .       घर पहुंचते ही एक रुपिए के पीछे बाबूजी के चौड़े हाथ वाले दो झापड़ ने हमको रुपैये की कीमत समझा दी... वैसे हमाये वित्त मंत्री जी भी पचास के पार के हैं.. उनके बाबूजी हमारे बाबूजी टाइप के न थे . .. हो सकता है हों पर हमारी तरह तमाचा न मिला हो जो भी हो भारत का रुपिया गिरा है तो उसका दोषी भारत के वित्तमंत्री तो हैं ही हम आप कम नहीं हैं.   यानी हमारी विदेशी आस्थाओं में इज़ाफ़ा हो रहा है.विदेशी  सोना खरीदो सेलफ़ोन खरीदो, पक्का है विदेशी मुद्रा में भुगतान करना होगा. हमारा खज़ाना खाली होना तय है.  आभार  sealifegifts    मैं पूछता हूं  आर्थिक समझ कितने भारतियों को है..? शायद कुछ ही लोग हैं

स्वातंत्र्यवीर श्री मांगीलाल गुहे दिवंगत

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श्रीयुत मांगीलाल जी गुहे दिवंगत 90 वर्षीय क्रांतिकारी स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी श्रीयुत गुहे जी का दु:खद निधन आज प्रात: जबलपुर में हो गया। अंतिम  यात्रा   दिनांक 30.9.2013  ( प्रात: 10 बजे) को उनके निवास  गौरैया प्लाट मदन महल जबलपुर से  ग्वा रीघाट मुक्तिधाम के लिए प्रस्थान करेगी . नार्मदीय  ब्राह्मण समाज एवं परिजन - क्रांतिवीर श्रीयुत गुहे जी को  विनत  श्रद्धांजलि एवं  शोकाकुल परिवार को दुःख सहने की शक्ति हेतु  माँ नर्मदा से प्रार्थना  रत हैं

सुर्खियों से दूर रहे स्वातंत्र्यवीर : श्री मांगीलाल गुहे

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श्रीयुत गुहे ने गांधी जी के निर्देशों पर सदा अमल किया 1942 में महा. गांधी के “करो या मरो” नारे से प्रभावित होकर अंग्रेज सरकार की पत्राचार व्यवस्था को खत्म करने हरदा के लेटर बाक्सों को बम से नेस्तनाबूत किया,साथ ही डाक गाड़ी के दो डब्बों के बीच यात्रा करते हुए रस्सी में हंसिया बांध कर रेल लाइन के किनारे के टेलीफ़ोन तारों को काटा ताकि टेलीफ़ोनिक एवम टेलीग्राफ़िक संचार व्यवस्था छिन्न भिन्न हो हुआ यही .उनकी ज़रा सी चूक जान लेवा हो सकती थी. पर युक्तियों और सतर्क व्यक्तित्ववान श्री गुहे ऐसा कर साफ़ बच निकले. श्री गुहे बताते हैं कि मुझसे लोग दूरी बनाते थे . ऐसा स्वभाविक था. लोग क्यों अग्रेजों के कोप का शिकार होना चाहते. श्रीयुत गुहे हमेशा कुछ ऐसा कर गुज़रते जो विलायती कानून की खिलाफ़त और बगावत की मिसाल होता पर हमेशा वे सरकारी की पकड़ में नहीं आ पाते .कई बार ये हुआ कि अल्ल सुबह हरदा की सरकारी बिल्डिंग्स पर यूनियन जैक की जगह तिरंगा दिखाई देता था. ये करामात उसी क्रांतिवीर की थी जिसे तब उनकी मित्र मंडली मंगूभाई के नाम से सम्बोधित पुकारती थी.उनका एक ऐसा मित्र भी था जो सरकारी रिश्वत की गिरफ़्त

यमुनाघाट चित्रकला : अभिव्यक्ति पर

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अभिव्यक्ति : सुरुचि की - भारतीय साहित्य, संस्कृति, कला और दर्शन पर आधारित। बंदऊं गुरु पद कंज पूर्णिमा वर्मन जी  अंतरजाल पर    पूर्णिमा वर्मन अपने  साहित्यिक  दायित्व का निर्वहन करते जो भी कुछ दे रहीं हैं उससे उनकी कर्मशील प्रतिबद्धता  उज़ागर होती है. अगर मैं नेट पर हूं तो पूर्णिमा वर्मन, बहन श्रृद्धा जैन और भाई समीरलाल की वज़ह से इनका कर्ज़ उतार पाना मेरे लिये इस जन्म में असम्भव है... हिंदी विकी पर उनका परिचय कुछ इस तरह है " पूर्णिमा वर्मन   (जन्म २७ जून, १९५५,   पीलीभीत   ,   उत्तर प्रदेश ) [1] , जाल-पत्रिका   अभिव्यक्ति   और   अनुभूति   की संपादक है।   पत्रकार   के रूप में अपना कार्यजीवन प्रारंभ करने वाली पूर्णिमा का नाम   वेब   पर   हिंदी   की स्थापना करने वालों में अग्रगण्य है। उन्होंने प्रवासी तथा विदेशी हिंदी लेखकों को प्रकाशित करने तथा अभिव्यक्ति में उन्हें एक साझा मंच प्रदान करने का महत्वपूर्ण काम किया है।   माइक्रोसॉफ़्ट   का यूनिकोडित हिंदी   फॉण्ट   आने से बहुत पहले   हर्ष कुमार   द्वारा निर्मित   सुशा फॉण्ट   द्वारा उनकी जाल पत्रिकाएँ अभिव्यक्ति तथा अनुभूत