13.8.13

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी :फ़िरदौस ख़ान


फ़िरदौस ख़ान

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी… यानी जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है. जन्म स्थान या अपने देश को मातृभूमि कहा जाता है. भारत और नेपाल में भूमि को मां के रूप में माना जाता है. यूरोपीय देशों में मातृभूमि को पितृ भूमि कहते हैं. दुनिया के कई देशों में मातृ भूमि को गृह भूमि भी कहा जाता है. इंसान ही नहीं, पशु-पक्षियों और पशुओं को भी अपनी जगह से प्यार होता है, फिर इंसान की तो बात ही क्या है. हम ख़ुशनसीब हैं कि आज हम आज़ाद देश में रह रहे हैं. देश को ग़ुलामी की ज़ंजीरों से आज़ाद कराने के लिए हमारे पूर्वजों ने बहुत क़ुर्बानियां दी हैं. उस वक़्त देश प्रेम के गीतों ने लोगों में जोश भरने का काम किया. बच्चों से लेकर नौजवानों, महिलाओं और बुज़ुर्गों तक की ज़ुबान पर देश प्रेम के जज़्बे से सराबोर गीत किसी मंत्र की तरह रहते थे. क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल की नज़्म ने तो अवाम में फ़िरंगियों की बंदूक़ों और तोपों का सामने करने की हिम्मत पैदा कर दी थी.

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-क़ातिल में है
वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां
हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है...

देश प्रेम के गीतों का ज़िक्र मोहम्मद अल्लामा इक़बाल के बिना अधूरा है. उनके गीत सारे जहां से अच्छा के बग़ैर हमारा कोई भी राष्ट्रीय पर्व पूरा नहीं होता. हर मौक़े पर यह गीत गाया और बजाया जाता है. देश प्रेम के जज़्बे से सराबोर यह गीत दिलों में जोश भर देता है.

सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्तां हमारा
यूनान, मिस्र, रोमा, सब मिट गए जहां से
अब तक मगर है बाक़ी, नामो-निशां हमारा...

जयशंकर प्रसाद का गीत यह अरुण देश हमारा, भारत के नैसर्गिक सौंदर्य का बहुत ही मनोहरी तरीक़े से चित्रण करता है.
अरुण यह मधुमय देश हमारा
जा पहुंच अनजान क्षितिज को
मिलता एक सहारा...

हिंदी फ़िल्मों में भी देश प्रेम के गीतों ने लोगों में राष्ट्र प्रेम की गंगा प्रवाहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. आज़ादी से पहले इन गीतों ने हिंदुस्तानियों में ग़ुलामी की जंज़ीरों को तोड़कर मुल्क को आज़ाद कराने का जज़्बा पैदा किया और आज़ादी के बाद देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय एकता की भावना का संचार करने में अहम किरदार अदा किया है. फ़िल्मों का ज़िक्र किया जाए तो देश प्रेम के गीत रचने में कवि प्रदीप आगे रहे. उन्होंने 1962 की भारत-चीन जंग के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लो पानी, गीत लिखा. लता मंगेशकर द्वारा गाये इस गीत का तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मौजूदगी में 26 जनवरी, 1963 को दिल्ली के रामलीला मैदान में सीधा प्रसारण किया गया. गीत सुनकर जवाहरलाल नेहरू की आंखें भर आई थीं. 1943 बनी फिल्म क़िस्मत के गीत दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है, ने उन्हें अमर कर दिया. इस गीत से ग़ुस्साई तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के आदेश दिए थे, जिसकी वजह से प्रदीप को भूमिगत होना पड़ा था. उनके लिखे फिल्म जागृति (1954) के गीत आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की और दे दी हमें आज़ादी बिना खडग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल, आज भी लोग गुनगुना उठते हैं. शकील बदायूंनी का लिखा फ़िल्म सन ऑफ इंडिया का गीत नन्हा मुन्ना राही हूं देश का सिपाही हूं, बच्चों में बेहद लोकप्रिय है. कैफ़ी आज़मी के लिखे और मोहम्मद रफ़ी के गाये फ़िल्म हक़ीक़त के गीत कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों, को सुनकर आंखें नम हो जाती हैं और शहीदों के लिए दिल श्रद्धा से भर जाता है. फिल्म लीडर का शकील बदायूंनी का लिखा और मोहम्मद रफ़ी का गाया और नौशाद के संगीत से सजा गीत अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं, सर कटा सकते हैं, लेकिन सर झुका सकते नहीं, बेहद लोकप्रिय हुआ. प्रेम धवन द्वारा रचित फ़िल्म हम हिंदुस्तानी का गीत छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी, नये दौर में लिखेंगे, मिलकर नई कहानी, आज भी इतना ही मीठा लगता है. उनका फिल्म क़ाबुली वाला का गीत भी रोम-रोम में देश प्रेम का जज़्बा भर देता है.

ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन, तुझ पे दिल क़ुर्बान
तू ही मेरी आरज़ू, तू ही मेरी आबरू, तू ही मेरी जान...

राजेंद्र कृष्ण द्वारा रचित फिल्म सिकंदर-ए-आज़म का गीत भारत देश के गौरवशाली इतिहास का मनोहारी बखान करता है.
जहां डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा
वो भारत देश है मेरा, वो भारत देश है मेरा
जहां सत्य अहिंसा और धर्म का पग-पग लगता डेरा
वो भारत देश है मेरा, वो भारत देश है मेरा...

इसी तरह गुलशन बावरा द्वारा रचित फिल्म उपकार का गीत देश के प्राकृतिक खनिजों के भंडारों और खेतीबा़डी और जनमानस से जुड़ी भावनाओं को बख़ूबी प्रदर्शित करता है.
मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती
मेरी देश की धरती
बैलों के गले में जब घुंघरू
जीवन का राग सुनाते हैं
ग़म कोसों दूर हो जाता है
जब ख़ुशियों के कमल मुस्काते हैं...

इसके अलावा फ़िल्म अब दिल्ली दूर नहीं, अमन, अमर शहीद, अपना घर, अपना देश, अनोखा, आंखें, आदमी और इंसान, आंदोलन, आर्मी, इंसानियत, ऊंची हवेली, एक ही रास्ता, क्लर्क, क्रांति, कुंदन, गोल्ड मेडल, गंगा जमुना, गंगा तेरा पानी अमृत, गंगा मान रही बलिदान, गंवार, चंद्रशेखर आज़ाद, चलो सिपाही चलो, चार दिल चार रास्ते, छोटे बाबू, जय चित्तौ़ड, जय भारत, जल परी, जियो और जीने दो, जिस देश में गंगा बहती है, जीवन संग्राम, जुर्म और सज़ा, जौहर इन कश्मीर, जौहर महमूद इन गोवा, ठाकुर दिलेर सिंह, डाकू और महात्मा, तलाक़, तू़फान और दीया, दीदी, दीप जलता रहे, देशप्रेमी, धर्मपुत्र, धरती की गोद में, धूल का फूल, नई इमारत, नई मां, नवरंग, नया दौर, नया संसार, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, प्यासा, परदेस, पूरब और पश्चिम, प्रेम पुजारी, पैग़ाम, फरिश्ता और क़ातिल, अंगारे, फ़ौजी, बड़ा भाई, बंदिनी, बाज़ार, बालक, बापू की अमर कहानी, बैजू बावरा, भारत के शहीद, मदर इंडिया, माटी मेरे देश की, मां बाप, मासूम, मेरा देश मेरा धर्म, जीने दो, रानी रूपमति, लंबे हाथ, शहीद, आबरू, वीर छत्रसाल, दुर्गादास, शहीदे-आज़म भगत सिंह, समाज को बदल डालो, सम्राट पृथ्वीराज चौहान, हम एक हैं, कर्मा, हिमालय से ऊंचा, नाम और बॉर्डर आदि फिल्मों के देश प्रेम के गीत भी लोगों में जोश भरते हैं. मगर अफ़सोस कि अमूमन ये गीत स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस या फिर गांधी जयंती जैसे मौक़ों पर ही सुनने को मिलते हैं, ख़ासकर ऑल इंडिया रेडियो पर.

बहरहाल, यह हमारे देश की ख़ासियत है कि जब राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवय या इसी तरह के अन्य दिवस आते हैं तो रेडियो पर देश प्रेम के गीत सुनाई देने लगते हैं. बाक़ी दिनों में इन गीतों को सहेजकर रख दिया जाता है. शहीदों की याद और देश प्रेम को कुछ विशेष दिनों तक ही सीमित करके रख दिया गया है. इन्हीं ख़ास दिनों में शहीदों को याद करके उनके प्रति अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है. कवि जगदम्बा प्रसाद मिश्र हितैषी के शब्दों में यही कहा जा सकता है-
शहीदों की चिताओं लगेंगे हर बरस मेले
वतन पे मरने वालों का यही बाक़ी निशां होगा…



10.8.13

कहो न कि मैं भी चोर हूँ


वरुण जी के ब्लॉग से साभार 
किसी  के   खिलाफ   क्यों हैं  आप …… कभी सोचा आपने ?
      न आपने कभी भी न सोचा होगा सोचने के लिए खुद का अपना चिन्तन ज़रूरी है. आपकी सोच तो केवल सूचना आधारित है तो आप स्वयं कितना  सोचेंगे और  क्या सोचेंगे ?
मैं नहीं कहता काबुल में केवल घोड़े मिलते हैं पर आप अवश्य कहते हैं क्योंकि आपने जो सूचना प्राप्त की उसके मुताबिक़ यही सत्य है मित्र।
  अक्सर  व्यवस्था को गरियाने वाले लोग मुझे मिले हैं जब मेरे मोहल्ले में सड़क न थी तब नगर निगम को लोगों ने इतना कोसा इतना कोसा कि सतफेरी बीवी सौतन को भी न कोसती हो किन्तु सड़क बनाते ही हमारे सभी नागरिक सरेआम पूरे अधिकार से घरेलू कूडा करकट सड़क पे डाल रहे है। किसी को कोई आत्मिक दर्द नहीं।  उधर किसी गली से खबर आई की सार्वजनिक नल से  नल की टौंटी चुरा   के घर में रखने वालो की कमी नहीं अरे हाँ सरकारी बल्व ट्यूब लाइट के चोर चहुँओर बसे है. इतना ही नहीं लोग  गरीबी रेखा के साथ रहना पसंद करते हैं गोया गरीबी रेखा , गरीबी रेखा  न होकर अभिनेत्री रेखा हो। यानी कैसे भी हो लाभ होता रहे।

 
    अस्पतालों से मुफ्त की दवाएँ हासिल करना , मुफ्त में आयोजनों के पास हासिल करने की ज़द्दो-ज़हद करने वाले इस व्यवस्था-विरोधी समाज से ही आतें हैं।  बिजली चोरी तो बड़े बड़ों का शगल बन गया है. कुल मिला समूचे-समाज पर "कनक-शक्ति"(चोरों का देवता) का आशीर्वाद बना रहता है.
  आप ही बताएं  अब जिस समाज पर ऐसे देवता का  आशीर्वाद बना हो उस की व्यवस्था कैसी होगी ?  नकारात्मकता फैलाने वाले लोग हर जगह हैं  वास्तविकता ये नहीं है कि समूची व्यवस्था आज गर्त में जा गिरी है बल्कि अच्छाइयों को लिखा और  दिखाया नहीं जा रहा है। आप किसी को बिना सोचे समझे चोर कहें तो आप वास्तव में केवल नकारात्मकता आधारित सूचनाओ के शिकार हैं।  मौलिक चिन्तन नज़र  नहीं आता  है आप में  तब जब की आप किसी के भी खिलाफ कुछ भी बोलने लगते हैं आप शुचिता पूर्ण चिन्तक बने
सकारात्मकता बोयें।
नक़्शे पा आज़कल नहीं बनते
आप क्यों राह पे नहीं चलते ?
उड़ रहे लोग हवा में देखो
या अपाहिज हैं जो नहीं चलते ?

5.8.13

किशोर कुमार अदभुत व्यक्तित्व : {साभार भारतकोश}

साभार : जागरण जंक्शन 
 किशोर कुमार का जन्म 4 अगस्त, 1929 ई. को खंडवा, मध्य प्रदेश में एक बंगाली परिवार में हुआ था। किशोर कुमार एक विलक्षण शख़्सियत रहे हैं। हिन्दी सिनेमा की ओर उनका बहुत बड़ा योगदान है। किशोर कुमार के पिता कुंजीलाल खंडवा शहर के जाने माने वक़ील थे। किशोर चार भाई बहनों में सबसे छोटे थे। सबसे छोटा होने के नाते किशोर कुमार को सबका प्‍यार मिला। इसी चाहत ने किशोर को इतना हंसमुख बना दिया था कि हर हाल में मुस्कुराना उनके जीवन का अंदाज बन गया। उनके सबसे बड़े भाई अशोक कुमार मुंबई में एक अभिनेता के रूप में स्थापित हो चुके थे और उनके एक और भाई अनूप कुमार भी फ़िल्मों में काम कर रहे थे।
किशोर कुमार बचपन से ही एक संगीतकार बनना चाहते थे, वह अपने पिता की तरह वक़ील नहीं बनना चाहते थे। किशोर कुमार ने 81 फ़िल्मों में अभिनय किया और 18 फ़िल्मों का निर्देशन भी किया। फ़िल्म ‘पड़ोसन’ में उन्होंने जिस मस्त मौला आदमी के किरदार को निभाया वही किरदार वे ज़िंदगी भर अपनी असली ज़िंदगी में निभाते रहे। हिन्दी सिनेमा में इलैक्ट्रिक संगीत लाने का श्रेय किशोर कुमार को जाता है।
अभिनेता के रूप में शुरुआत
किशोर कुमार के. एल. सहगल के गानों से बहुत प्रभावित थे, और उनकी ही तरह गायक बनना चाहते थे। किशोर कुमार के भाई अशोक कुमार की चाहत थी कि किशोर कुमार नायक के रूप में हिन्दी फ़िल्मों के हीरो के रूप में जाने जाएं, लेकिन किशोर कुमार को अदाकारी की बजाय पा‌र्श्व गायक बनने की चाहत थी। किशोर कुमार ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा कभी किसी से नहीं ली थी। किशोर कुमार की शुरुआत एक अभिनेता के रूप में फ़िल्म ‘शिकारी’ (1946) से हुई। इस फ़िल्म में उनके बड़े भाई अशोक कुमार ने प्रमुख भूमिका की थी। किशोर कुमार ने 1951 में फणी मजूमदार द्वारा निर्मित फ़िल्म ‘आंदोलन’ में हीरो के रूप में काम किया मगर फ़िल्म फ्लॉप हो गई। 1954 में किशोर कुमार ने बिमल राय की ‘नौकरी’ में एक बेरोज़गार युवक की संवेदनशील भूमिका कर अपनी अभिनय प्रतिभा से भी परिचित किया। इसके बाद 1955 में बनी ‘बाप रे बाप’, 1956 में ‘नई दिल्ली’, 1957 में ‘मि. मेरी’ और ‘आशा’, और 1958 में बनी ‘चलती का नाम गाड़ी’ जिस में किशोर कुमार ने अपने दोनों भाईयों अशोक कुमार और अनूप कुमार के साथ काम किया और उनकी अभिनेत्री मधुबाला थी।
गायकी की शुरुआत
किशोर कुमार को पहली बार गाने का मौक़ा 1948 में बनी फ़िल्म ‘ज़िद्दी’ में मिला। फ़िल्म ‘ज़िद्दी’ में किशोर कुमार ने देव आनंद के लिए गाना गाया था। ‘जिद्दी’ की सफलता के बावज़ूद उन्हें न तो पहचान मिली और न कोई ख़ास काम मिला। किशोर कुमार ने गायकी का एक नया अंदाज बनाया जो उस समय के नामचीन गायक रफ़ी, मुकेश और सहगल से काफ़ी अलग था। किशोर कुमार सन् 1969 में निर्माता निर्देशक शक्ति सामंत की फ़िल्म ‘आराधना’ के ज़रिये गायकी के दुनिया में सबसे सफल गायक बन गये। किशोर कुमार को शुरू में एस डी बर्मन और अन्य संगीतकारों ने अधिक गंभीरता से नहीं लिया और उनसे हल्के स्तर के गीत गवाए गए, लेकिन किशोर कुमार ने 1957 में बनी फ़िल्म “फंटूस” में ‘दुखी मन मेरे’ गीत को गाकर अपनी ऐसी धाक जमाई कि जाने माने संगीतकारों को किशोर कुमार की प्रतिभा का लोहा मानना पड़ा। किशोर कुमार को इसके बाद एस डी बर्मन ने अपने संगीत निर्देशन में कई गीत गाने का मौक़ा दिया।
आर डी बर्मन के संगीत निर्देशन में
आर डी बर्मन के संगीत निर्देशन में किशोर कुमार ने मुनीम जी, टैक्सी ड्राइवर, फंटूश, नौ दो ग्यारह, पेइंग गेस्ट, गाईड, ज्वेल थीफ़, प्रेमपुजारी, तेरे मेरे सपने जैसी फ़िल्मों में अपनी जादुई आवाज़ से फ़िल्मी संगीत के दीवानों को अपना दीवाना बना लिया। एक अनुमान के मुताबिक किशोर कुमार ने वर्ष 1940 से वर्ष 1980 के बीच के अपने करियर के दौरान क़रीब 574 से अधिक गाने गाए।
अन्य भाषाओं में गीत
किशोर कुमार ने हिन्दी के साथ ही तमिल, मराठी, असमी, गुजराती, कन्नड़, भोजपुरी, मलयालम और उड़िया फ़िल्मों के लिए भी गीत गाए।
फ़िल्म फेयर पुरस्कार
किशोर कुमार को आठ फ़िल्म फेयर अवार्ड मिले हैं। किशोर कुमार को पहला फ़िल्म फेयर अवार्ड 1969 में ‘अराधना’ फ़िल्म के गीत ‘रूप तेरा मस्ताना प्यार मेरा दीवाना’ के लिए दिया गया था। किशोर कुमार की ख़ासियत यह थी कि उन्होंने देव आनंद से लेकर राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन के लिए अपनी आवाज़ दी और इन सभी अभिनेताओं पर उनकी आवाज़ ऐसी रची बसी मानो किशोर ख़ुद उनके अंदर मौजूद हों।
वैवाहिक जीवन
किशोर कुमार की पहली शादी रुमा देवी के से हुई थी, लेकिन जल्दी ही शादी टूट गई और इस के बाद उन्होंने मधुबाला के साथ विवाह किया। उस दौर में दिलीप कुमार जैसे सफल और शोहरत की बुलंदियों पर पहुँचे अभिनेता जहाँ मधुबाला जैसी रूप सुंदरी का दिल नहीं जीत पाए वही मधुबाला किशोर कुमार की दूसरी पत्नी बनी। 1961 में बनी फ़िल्म ‘झुमरु’ में दोनों एक साथ आए। यह फ़िल्म किशोर कुमार ने ही बनाई थी और उन्होंने ख़ुद ही इसका निर्देशन किया था। इस के बाद दोनों ने 1962 में बनी फ़िल्म ‘हाफ टिकट’ में एक साथ काम किया जिस में किशोर कुमार ने यादगार कॉमेडी कर अपनी एक अलग छवि पेश की। 1976 में उन्होंने योगिता बाली से शादी की मगर इन दोनों का यह साथ मात्र कुछ महीनों का ही रहा। इसके बाद योगिता बाली ने मिथुन चक्रवर्ती से शादी कर ली। 1980 में किशोर कुमार ने चौथी शादी लीना चंद्रावरकर से की जो उम्र में उनके बेटे अमित से दो साल बड़ी थीं।
हिन्दी सिनेमा जगत में प्रचलित किस्से
किशोर कुमार की आवाज़ की पुरानी के साथ-साथ नई पीढ़ी भी दीवानी है। किशोर जितने उम्दा कलाकार थे, उतने ही रोचक इंसान भी थे। उनके कई किस्से हिन्दी सिनेमा जगत में प्रचलित हैं।
रशोकि रमाकु
किशोर कुमार को अटपटी बातों को अपने चटपटे अंदाज में कहने का फ़ितूर था। ख़ासकर गीतों की पंक्ति को दाएँ से बाएँ गाने में किशोर कुमार ने महारत हासिल कर ली थी। नाम पूछने पर वह कहते थे- रशोकि रमाकु।
तीन नायकों को बनाया महानायक
किशोर कुमार ने हिन्दी सिनेमा के तीन नायकों को महानायक का दर्जा दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। उनकी आवाज़ के जादू से देव आनंद सदाबहार हीरो कहलाए। राजेश खन्ना को सुपर सितारा कहा जाने लगा और अमिताभ बच्चन महानायक हो गए।
मनोरंजन कर
किशोर कुमार ने बारह साल की उम्र तक गीत-संगीत में महारत हासिल कर ली थी। किशोर कुमार रेडियो पर गाने सुनकर उनकी धुन पर थिरकते थे। किशोर कुमार फ़िल्मी गानों की किताब जमा कर उन्हें कंठस्थ करके गाते थे। घर आने वाले मेहमानों को किशोर कुमार अभिनय सहित गाने सुनाते तो ‘मनोरंजन-कर’ के रूप में कुछ इनाम भी माँग लेते थे।
बाथरूम गायक
एक दिन अशोक कुमार के घर अचानक संगीतकार सचिन देव वर्मन पहुँच गए। बैठक में उन्होंने गाने की आवाज़ सुनी तो दादा मुनि से पूछा, ‘कौन गा रहा है?’ अशोक कुमार ने जवाब दिया- ‘मेरा छोटा भाई है’। जब तक गाना नहीं गाता, उसका नहाना पूरा नहीं होता।’ सचिन-दा ने बाद में किशोर कुमार को जीनियस गायक बना दिया।
दो बार आवाज़ उधार ली
मोहम्मद रफ़ी ने पहली बार किशोर कुमार को अपनी आवाज़ फ़िल्म ‘रागिनी’ में गीत ‘मन मोरा बावरा’ के लिए उधार दी। दूसरी बार शंकर-जयकिशन की फ़िल्म ‘शरारत’ में रफ़ी ने किशोर के लिए- ‘अजब है दास्ताँ तेरी ये ज़िंदगी’ गीत गाया।
महमूद से लिया बदला
महमूद ने फ़िल्म ‘प्यार किए जा’ में कॉमेडियन किशोर कुमार, शशि कपूर और ओमप्रकाश से ज़्यादा पैसे वसूले थे। किशोर को यह बात अखर गई। किशोर कुमार ने इसका बदला महमूद से फ़िल्म ‘पड़ोसन’ में दुगुना पैसा लेकर लिया।
खंडवे वाले की राम-राम
किशोर कुमार ने जब-जब स्टेज-शो किए, हमेशा हाथ जोड़कर सबसे पहले संबोधन करते थे- ‘मेरे दादा-दादियों।’ मेरे नाना-नानियों। मेरे भाई-बहनों, तुम सबको खंडवे वाले किशोर कुमार का राम-राम। नमस्कार।
हरफनमौला
किशोर कुमार का बचपन तो खंडवा में बीता, लेकिन जब वे किशोर हुए तो इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ने आए। हर सोमवार सुबह खंडवा से मीटरगेज की छुक-छुक रेलगाड़ी में इंदौर आते और शनिवार शाम लौट जाते। सफर में वे हर स्टेशन पर डिब्बा बदल लेते और मुसाफ़िरों को नए-नए गाने सुनाकर मनोरंजन करते थे।
खंडवा की दूध जलेबी
किशोर कुमार ज़िंदगीभर कस्बाई चरित्र के भोले मानस बने रहे। मुंबई की भीड़-भाड़, पार्टियाँ और ग्लैमर के चेहरों में वे कभी शामिल नहीं हो पाए। इसलिए उनकी आख़िरी इच्छा थी कि खंडवा में ही उनका अंतिम संस्कार किया जाए। इस इच्छा को पूरा किया गया, वे कहा करते थे- ‘फ़िल्मों से संन्यास लेने के बाद वे खंडवा में ही बस जाएँगे और रोजाना दूध-जलेबी खाएँगे।
प्रिय गायक
लता मंगेशकर को किशोर कुमार गायकों में सबसे ज़्यादा अच्छे लगते थे। लता जी ने कहा कि किशोर कुमार हर तरह के गीत गा लेते थे और उन्हें ये मालूम था कि कौन सा गाना किस अंदाज़ में गाना है। किशोर कुमार लता जी की बहन आशा भोंसले के भी सबसे पसंदीदा गायक थे और उनका मानना है कि किशोर अपने गाने दिल और दिमाग़ दोनों से ही गाते थे। आज भी उनकी सुनहरी आवाज़ लाखों संगीत के दीवानों के दिल में बसी हुई है और उसका जादू हमारे दिलों दिमाग़ पर छाया हुआ है।
मृत्यु
वर्ष 1987 में किशोर कुमार ने मुंबई की भागम-दौड़ वाली ज़िंदगी से उब कर यह फैसला किया कि वह फ़िल्मों से संन्यास लेने के बाद वापस अपने गाँव खंडवा जाकर रहेंगे। लेकिन उनका यह सपना भी अधूरा ही रह गया। 13 अक्टूबर 1987 को उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वह पूरी दुनिया से विदा हो गये।भले ही वो आज हमारे बीच नहीं है। लेकिन अपनी सुरमयी आवाज़ और बेहतरीन अदायकी से वो हमेशा हमारे बीच रहेंगे।

2.8.13

घीसू-माधौ आज़ तक ज़िंदा हैं लुटते पिटते

                                   
   यूं तो दुनिया बेहद रंगीन खुशमिज़ाज़ लोगों का बाज़ार है पर करीब़ से देखिये उफ़्फ़ कितनी बेनूर भयानक बदमिज़ाज़ सब अपने अपने हाथौ मे अपनी अपनी ढफ़ली लिये गलियों चौबारों में बजाए जा रहे हैं. किसका राग कौन सुन रहा है किसी को भी पता नहीं. पता हो भी कैसे ? सुबह अखबार आया तो बांचा फ़िर लगे पूरे दिन सियासी बतकहाव करने. फ़लां मंत्री ने ये किया ढिकां संतरी ने वो किया. खुद का पाज़ामा देखते नहीं कि नाड़े की एक डोर लटक के बदहवास लापरवाह होने का ऐलान किये जा रहा है. ससुरा दिल्ली से भोपाल तक की सियासत पे बात करते करते जीभ भी नहीं थकती मुओं की गोया सियासी लोग इनकी सुन रहे होंगे . यक़ीन मानिये चौबीस घंटे में लोग आठ घंटे सरकार को गरियाने, सल्लू मियां कैटरीना के ब्रेक-अप जैसी बकवास में बिताते हैं. शहर तो शहर गांव के गांव चंडू खाने हो गये हैं. जिस देश के लोग आठ घण्टे के बकवासी हों उस देश में डालर और टमाटर सबके दाम बढ़ने तय हैं.
  हमारा किराने वाला पुराना खिलाड़ी है कांग्रेसी को देख पक्का कांग्रेसी भाजपाई को देख पक्का भाजपाई हो जाता है. यूं तो उसके ग्राहकों में आधे से ज़्यादा सरकारी आदमी हैं पर निज़ी तौर पर सबके अपने अपने विचार बिंदू हैं. माधौ कांग्रेस का पक्का समर्थक बस किराने वाला दादू उसे देख मनमोहन जी की ऐसी तारीफ़ करता है  कि कल्लू खुश इत्ता खुश कि एक किलो शक्कर तौलने दादू ने कित्ते बांट रखा उसे परवा नहीं होती. माधौ की बीवी गुसयाती है-दिन भर टुन्न रहते हो ले आए न आठ सौ ग्राम शक्कर
उधर घीसू मोदी से उम्मीद लगाए बैठे हैं कि प्रभू रामराज लाएंगे किराने की दुक़ान पे घीसू की बड़ी तारीफ़ करता है दादू किराने वाला  घीसू भैया अगर मोदी जी............
  मोदी जी सुनते ही घीसू के मुख से आज़ादी के बाद से देश की दुर्गति का हिसाब-किताब पेश होता है. फ़िर उसे दो-हज़ार की उधारी अढ़ाई हज़ार बता के दादू हिसाब चुकता करवाए तो भी भाई को होश नही रहता.
                                कुल मिला कर घीसू-माधौ आज़ तक ज़िंदा हैं लुटते पिटते लापरवाह जी रहे है.. इनकी अपनी कोई  सोच नही है इनके सर सियासत का इश्क़ इस क़दर हावी है कि समय बे समय सियासी बहस मुसाहिबे में मुखरित हो जाते हैं । इलेक्शन क़रीब है देखिये इन वाकवीरों की वाणी से हर सीट का नफ़ा-नुकसान निकलेगा । सच  कहूं आप मानेगें मेरा कहा तो सुनिए सच यही है कि - ये घीसूओं माधवों का हिन्दुस्तान है. एक बेतरतीब मंज़र पैदा करते ये लोग कभी कभार  सल्लू की कार से कुचले जाते हैं वरना इनको सामाजिक-आर्थिक  गैर बराबरी रोज़िन्ना कुचलती है।  
                             आप हम सब अपने अपने एक  एक सिगमेंट का निर्माण करते हैं अपने इर्द गिर्द उसी में जीना चाहते हैं।  घीसूओं माधवों का अपना सिगमेंट है.आपके हमारे सिगमेंट से बड़ा है.  ध्यान रहे जब इनके हाथ मुट्ठियां बन  बगावत के लिए तन जाएँगी तब सर्वत्र अराज़कता हिंसा होगी इस तथ्य  को हम आप नकार नहीं सकते। नक्सलवाद इसी का उदाहरण है.  घीसूओं माधवों के  सिगमेंट में  खोने का भय नहीं है।  वह  खोयेगा क्या  है.……।  समझ रहे हैं न।               
           इस सचाई को आप देख-सुन और समझ सकते है.………कहीं भी कभी भी. ।      





30.7.13

कौन टाइप के हो समीर भाई

                                   
जनम दिन मुबारक हो समीर भाई 
 
 कौन टाइप के हो समीर भाई , हमाए जनम के ठीक चार महीने पहले यानी 29 जुलाई 1963 को दुनियां मेँ तुम  आए. को जाने कब बडे भये हमें न ई पता इत्तो जानत हैं की   हमाइ तुमाइ पहचान  कालेज के दौर में भइ थी. तब तुम  सदर से जबलपुर की नपाई शुरू  कर दिन भर में कित्ता जबलपुर नाप जोख लेत हते ..  हम तो भैया बस अंजाद (अंदाज़) लगाते रह जाते की अधारताल से आबे  वारे  दोस्त बताते -''यार, लाल से तो अब्भई अधारताल मे मिले बो रांझी जाएंगे . तब भैया आपके पास लेम्ब्रेटा रही है न । हमें का मालूम हतो कै हमाई तुमाई मुलाक़ात बीस साल बाद ब्लॉगर के रूप में भई है वरना तुमाई लम्ब्रेटा की फोटू नंबर के साथ हेंचवा लेते नितिन पोपट भैया से .तुम कौन टाइप हो तुमई  हेंचवा लेते । 
        एक बात और हमाओ तुमाओ जबलपुर अब बदल गयो भैज्जा सिटी काफी हाउस में सदर में गंजीपुरा वारे काफी हाउस में अब कोऊ ऐसी चर्चा                 
सुनो तुमाए सदर वालो कॉफ़ी-हाउस भौतई बदल गओ है  नई  होय आज कल के एक बीता कमर बारे मौड़ा-मोड़ी आत हैं काफी पीयत हैं फुर्र से बाइक लैखें मौड़ा जा बाजू मौड़ी बा बाजू निकल जात है. बाप कमाई पे ऐश करत हैं खुद कमाएँ तो जाने तब हम ओरे चन्दा कर खें काफी पियत हते आप कमाई भी कर लेट हते पर अब देखो बाप कमा कमा के जेबकट बनो जात रहो है मौड़ा - मौड़ी। …….  अब जाने दो भैया मरहई खों। …  आप जानतइ हो एक बात नई जा है की अब मानस भवन बिल्लकुल बदल गओ है । पर इतै वारे बिलकुल नईं बदले मालवी-चौक से हल्के रगड़ा किमाम १२० वारे पान लगवाए एक उतइ मसक लओ बाक़ी जेब में रक्खे । रफ़ी स्मॄति वारो प्रोग्राम देखत सुनत गए .. पान  खात खात पिच्च पिच्च ठठरी बंधों ने मानस-भवन आडीटोरियम की दीवारन की तो ....... दई... बस दो प्रोग्राम हो पाए हैं होली तक देखने पीक से इत्तो माडर्न आर्ट बना हैं ………  के कि खुद महान चित्रकारन की आत्माएं  इतै कार्यशाला करत नज़र आहैं... बड्डॆ सच्ची बात है.. पिकासो आहैं सदारत के लाने  । 
अंग्रेज़ गये अग्रेज़ी छोड़ गए
इन भुट्टॆ वालों के पास 
  हमने सुनी  है कि -  तुम जा साल सुई नईं आ रए.. नै आओ जबलपुर में रखो का है.. हम भी इतै हफ़्ता-खांड में आत हैं . तुम्हैं मालूम हो गओ हूहै कै कानपुर वारे फ़ुरसतिया भैया इतई हैं   . राजेश डूबे जी खूब कार्टून पेले पड़े हैं  फेस बुक पे ।    
       किसलय जी हरियाए से हैं  महेन भैया मज़े में कहाए । बबाल की न पूछियो - तुम तो जानत हो बडॊ़ अलाल अपनो बबाल ।  संजू नै तो कसम खा लई है कि बे अपने बिल से तब निकल हैं जब समीर दादा आंहैं । अरे एक बात बताने हती- गढा़ ओव्हर ब्रिज़ पे दुकान बज़ार खुल गओ है. आज़कल भुट्टा बिक रये हैं. हमें दस रुपैया को एक मिलो नगर निगम वारों को मुफ़त में मिलत है ऐंसी हमने सुनी है.. सच्ची का है भूट्टा बारो जाने कि खुद भुट्टा जाने नगर निगम के करमचारी से हम काय पूछैं.. ? 

पहाड के जा तरफ़ सबरे जैसे हथे औंसई हैं बदल तो तुम गये दो साल हो गये न आए न राम-जुहार भई … कौन टाईप के अदमी हो समीर भाई ? 
         जौन  टाईप के अदमी हो रहे आओ आने  तो हों आ जाने आज तो जनम दिन की बधाई लै लो दद्दा । .  

28.7.13

महिलाओं एवम बच्चों के विरुद्ध अपराधों की रोकथाम के लिये समन्वित कोशिशें आवश्यक जस्टिस के. के. लाहौटी

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री के.के. लाहोटी ने कहा कि महिलाओं और बच्चों के प्रति बढ़ते अपराध की रोकथाम का दायित्व पूरे समाज का है ।
समाज में नागरिक, शासन तंत्र और न्यायपालिका सभी शामिल है ।
  पहला दायित्व है अपराध करने की मनोभावना पर पूर्ण अंकुश लगे और यदि अपराध होता है तो अपराधी को शीघ्र कठोर दण्ड मिले ।  पीड़ित को त्वरित राहत पहुंचायी जाय ।

       मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री लाहोटी शनिवार को जबलपुर के तरंग प्रेक्षागृह में मध्य प्रदेश राज्यविधिक सेवा प्राधिकरण और मध्य प्रदेश पुलिस (महिला अपराध)जबलपुर जोन के संयुक्त तत्वावधान में महिला एवं बच्चों के अधिकारों की संरक्षा और उनके प्रति बढ़ते अपराधों की रोकथाम में न्यायपालिका,पुलिस और प्रशासन के दायित्व विषय पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला को मुख्य अतिथि कीआसंदी से संबोधित कर रहे थे ।  कार्यशाला की अध्यक्षता पुलिस महानिदेशक श्री नंदन दुबे ने की ।
मचासीन अतिथि 

       संभागायुक्त जबलपुर संभाग दीपक खाण्डेकर, प्रमुख सचिव महिला बाल विकास बी.आर. नायडू, कार्यशाला में 15 जिलों के कलेक्टर्स, पुलिस अधीक्षक तथा पुलिस, प्रशासन, राजस्व, महिला एवं बालविकास, जिला न्यायालयों के न्यायाधीशगण और संबंधित विभागों के अधिकारी मौजूद थे ।

       मुख्य न्यायाधीश श्री लाहोटी ने कहा कि महिला और बच्चों के प्रति संवेदनशील व्यवहार, सम्मानभाव और उन्हें सुरक्षित माहौल का उच्च नैतिक गुण तथा परम्परा भारतीय समाज में रही है ।  लेकिनकिन्हीं कारणों से धीरे-धीरे इसमें कमी आयी है ।  समाज को इस ओर ध्यान देना होगा ।

       मुख्य न्यायाधीश श्री लाहोटी ने कहा कि महिलाओं और बच्चों के प्रति बढ़ते अपराधों के मद्देनजरसर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश जारी किये हैं ।  जिनका मध्य प्रदेश में पालन सुनिश्चित किया जा रहा है।  नियमों, कानूनों में सुधार किया गया है ।  उन्हें और सख्त भी बनाया गया है । न्यायालय नेमहिला-बच्चों के प्रति अपराध प्रकरणों का निराकरण करने में शीघ्रता लायी है ।
द्वितीय सत्र 

       मुख्य न्यायाधीश ने मध्य प्रदेश की पुलिस की सराहना करते हुए कहा कि पुलिस ने ऐसे प्रकरणों परअपेक्षित अनुसंधान आदि कार्रवाई को समय-सीमा में पूरा कर न्यायालय को त्वरित न्याय प्रदान करने मेंसहयोग प्रदान किया है । जिससे न्यायालय महिलाओं के प्रति अपराधिक प्रकरणों का निराकरण दो माह सेकम समय में करने में सक्षम हुए हैं ।  मुख्य न्यायाधीश श्री लाहोटी ने बताया  मुख्य न्यायाधीश श्री लाहोटी ने कहा कि राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के द्वारा भी इस दिशा में विशेषप्रयास किये जा रहे है ।  सर्वोच्च न्यायालय के बचपन बचाओ तथा महिला संरक्षण के निर्देशों तहत कार्यकिया जा रहा है ।  राज्य व्यापी वृहद लोक अदालत में बड़ी संख्या में प्रकरणों का निराकरण सुनिश्चितकराया गया ।  जो कि प्रदेश के लिये एक मिशाल रहा ।  श्री लोहाटी ने कहा ऐसे प्रयास निरन्तर जारी रहनेचाहिये ।  तभी पुलिस, न्यायपालिका और शासन तंत्र पर महिलाओं और बच्चों का विश्वास सुरक्षा औरआदर भाव सुदृढ़ होगा ।  बच्चों और महिलाओं को पुलिस थाने आने और अपनी परेशानी बताने में भयनहीं लगेगा ।

       मुख्य न्यायाधीश श्री लाहोटी ने कहा कि अमेरिका में बच्चों को भरपूर आदर-सम्मान प्राप्त होता है ।बच्चों के मामले देखने वाले पुलिस अधिकारी का व्यवहार बच्चों के प्रति बहुत अच्छा तथा संवेदनाओं से भरा रहता है । अमेरिका में यदि 911 नंबर डायल हुआ है तो तुरन्त पुलिस बिना देर किये जहां से फोन किया गया है उस स्थान पर पहुंचती है तथा पूंछताछ करती है कि कहीं किसी बच्चे को कोई परेशानी तो नहींहै ।  उन्होंने कहा कि महिला एवं बच्चों के अपनी सुरक्षा के प्रति ऐसा ही दृढ़ विश्वास पैदा करना हमारादायित्व है ।

       इस अवसर पर पुलिस महानिदेशक नंदन दुबे ने अपने उद्बोधन में कहा महिलाओं और बच्चों केअधिकारों की संरक्षा व उनके प्रति बढ़ते अपराधों की रोकथाम में न्यायपालिका पुलिस एवं प्रशासन कादायित्व महत्वपूर्ण विषय है । यह समाज के भीतर के अपने लोगों से संबंधित है ।  उन्होंने कहा आवश्यकहै समाज समझे उन्हें क्या सुधार करना है ।  श्री दुबे ने कहा इस विषय पर समाज की संवेदनशीलताआवश्यक है ।  उन्होंने कहा हमें अपने सोच के तरीकों में बदलाव आवश्यक है ।  पुलिस महानिदेशक नेकहा बहू-ससुराल पहुंच जाये तो उसे विदेशी न समझा जाये ।  उसे अपनी बेटी की तरह व्यवहार कियाजाये, न कि अत्याचार । श्री दुबे ने बच्चों से भीख मंगवाना और महिलाओं से वैश्यावृत्ति कराने विषय परअपनी बात रखते हुए कहा यह गलत और अनैतिक है ।  हमारे शास्त्रों में नारी को पूज्यनीय माना गया है । उन्होंने सामाजिक बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया ।  दतिया और उमरिया जिले में विदेशी महिलाओं के साथ घटित घटना की चर्चा करते हुए कहा कम समय में पीड़ित को न्याय मिलने को अच्छी शुरुआत निरूपित किया.

       इसी अवसर पर प्रमुख सचिव महिला बाल विकास बी.आर. नायडू ने कहा महिला एवं बच्चों केअधिकारों के कानून एक महत्वपूर्ण विषय है, इसे समझने व जानने की आवश्यकता है ।  उन्होंने कहा आज यह कार्यशाला आयोजित की गई है, इसे प्रदेश के अन्य संभागों और जिलों में की जायेगी । श्री नायडू ने कहा इसमें स्वयंसेवी संगठनों को जोड़ना होगा ।  उन्होंने कहा जनजागरूकता कार्यक्रमों के लिए राशि की कमी नहीं है ।श्री नायडू ने यह भी कहा कि- सरकार निचले स्तर तक ऐसे संसाधन पहुंचाने के लिये वचनबद्ध है ताकि कानूनों का अधिकतम लाभ पीढितों  को प्राप्त हो सके. 
              महिला एवम बाल विकास विभाग के मैदानी अमले तक कानूनो की जानकारी देने विभाग कृत संकल्पित है. ऐसी कार्यशालाओ का आयोजन जिला एवम खण्ड स्तर तक किया जावेगा। 
      द्वितीय सत्र में भी प्रमुख सचिव महिला बाल विकास बी.आर. नायडू की सक्रीय भागीदारी उल्लेखनीय रही. 

       सदस्य सचिव मध्य प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण अनुराग श्रीवास्तव ने इस मौके पर कहामहिला एवं बच्चों के अधिकारों के संरक्षण पर आधारित यह कार्यशाला आयोजित की गई है, उक्त कार्यशालामध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधिपति एवं कार्यपालक अध्यक्ष मध्य प्रदेश राज्यविधिक सेवा प्राधिकरण जबलपुर के मार्गदर्शन पर आयोजित है ।  आपकी प्रेरणा से इसी तरह के कार्यक्रमकिये जायेंगे ।
              मृत्युदण्ड के आठ प्रकरणों में चार प्रकरणों में अपील उच्च न्यायालय द्वारा निराकृत की जा चुकी है ।  शेष शीघ्र निराकरण कीस्थिति में है ।  यह महिलाओं और बच्चों के प्रति संवेदनशीलता में हुयी वृद्धि तथा जागरूकता का प्रतीक है कानूनो में नये परिवर्तन आये है, कार्यशाला मे इन्ही बदलाव के साथ न्यायपालिका,पुलिस और प्रशासन के दायित्व  पर चर्चा करना कार्यशाला का महत्वपूर्ण बिंदू है.

       कार्यशाला में पुलिस महानिरीक्षक (महिला अपराध) जबलपुर जोन प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव ने इस मौकेपर कहा प्रदेश में महिलाओं और बच्चों के प्रति बढ़ते अपराधों की रोकथाम के लिए अपने तरह का यहपहला विशेष प्रयास है ।  उन्होंने कहा इस कार्यशाला में 15 जिलों के अधिकारियों को समग्र प्रशिक्षण दियाजायेगा । सुश्री श्रीवास्तव ने कहा इस कार्यशाला में महत्वपूर्ण बात यह है कि जागरूकता और प्रशिक्षणकार्यक्रम में न्यायपालिका का विशेष एवं महत्वपूर्ण सहयोग मिला ।

कार्यशाला में कलेक्टर्स, पुलिस अधीक्षकों के साथ चयनित अनुविभागीय दण्डाधिकारी,तहसीलदार, नायब तहसीलदार, प्रशासनिक अधिकारी, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के जिला चिकित्साअधिकारी एवं ब्लाक मेडिकल आफीसर, महिला एवं बाल विकास विभाग अंतर्गत जिला महिला एवं बालविकास अधिकारी और एक ब्लाक स्तरीय अधिकारी महिला सशक्तिकरण अधिकारी, पुलिस विभाग केअधिकारीगण शामिल हए ।

       कार्यशाला में जबलपुर, नरसिंहपुर, कटनी, सिवनी, छिंदवाड़ा, बालाघाट, मंडला, डिंडौरी, रीवा, सतना,सीधी, सिंगरौली, शहडोल, उमरिया और अनूपपुर जिलों के अधिकारी शामिल हुए । कार्यशाला का आयोजनमहिलाओं और बच्चों को समाज में बेहतर सुरक्षित वातावरण प्रदान करने की दिशा में अनूठे प्रयास कीशुरूआत है। कोशिश हैं उन्हें अच्छे माहौल के साथ सुरक्षा और त्वरित न्याय मिले।

       कार्यशाला में बताया गया कि लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, घरेलू हिंसा सेसंरक्षण, महिला अपराधों के रोकथाम को प्रभावी बनायें कानून में बदलाव लाकर उन्हें अधिक प्रभावीबनाया गया है। विवेचना में गुणात्मक सुधार आयेगा। म.प्र. शासन के निर्देशानुसार अधिक गुणवत्तायुक्त त्वरित प्रयास होंगे।  कार्यशाला में पूरे दिवस महिला एवं बच्चों से संबंधित अपराध होने पर सी.आर.पी.सी. और आई.पी.सी. में हुए परिवर्तन की जानकारी दी गई ।
---------------- झलकियां-------------
  • कार्यशाला में लिये निर्णय अनुसार  न्यायविदों के प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में घरेलू हिंसा-प्रतिरक्षण अधिनियम  एवम प्रक्रिया विषय को शामिल किया जाएगा
  • पुलिस विभाग एवम महिला बाल विकास विभाग भी सतत प्रशिक्षण के पक्षधर नज़र आए. 
  • पुलिस महिला बाल विकास एवम सेवा प्रदाताओं की मध्य  समन्वय की की कमीं को स्वीकारते हुए समन्वय बढ़ाने पर जोर दिया गया. 
  • जस्टिस लाहौटी ने मीडिय़ा को सकारात्मक प्रयासों को उभारने की सलाह दी. 

                   (समाचार सहयोग :- उपसंचालक सूचना एवं प्रकाशन विभाग मध्य-प्रदेश भोपाल ) 

23.7.13

आप बोलोगें "मुकुल जी, आपका तो जलजला है..!!"

डा. अवध तिवारी

फ़न उठा  कर  मुझको  ही डसने चला है,
सपोला वो ही मेरी, आस्तीनों में पला है.!
वक़्त मिलता तो समझते आपसे तहज़ीब हम -
हरेक पल में व्यस्तता और तनावों का सिलसिला है.
जो कभी भी न मिला, न मैं उसको जानता-
वो भी पत्थर आया लेके जाने उसको क्या गिला है.


हमारी कमतरी का एहसास हमको ही न था -
हम गए गुज़रे दोयम हैं ये सबको पता है. 
जीभ देखो इतनी लम्बी, कतरनी सी खचाखच्च -
आप अपनी सोचिये, इन बयानों में क्या रखा है .?
ये अभी तो ”मुकुल” ही है- पूरा खिलने दीजिये-
आप बोलोगें "मुकुल जी, आपका तो जलजला है..!!"
                   















19.7.13

ज्ञानरंजन जी के घर से लौट कर

              
 ज्ञानरंजन जी  के घर से लौट कर बेहद खुश हूं. पर कुछ दर्द अवश्य अपने सीने में बटोर के लाया हूं. नींद की गोली खा चुका पर नींद आयेगी मैं जानता हूं. खुद को जान चुका हूं.कि उस दर्द को लिखे बिना निगोड़ी नींद आएगी.  एक कहानी उचक उचक के मुझसे बार बार कह रही है :- सोने से पहले जगा दो सबको. कोई गहरी नींद सोये सबका गहरी नींद लेना ज़रूरी नहीं. सोयें भी तो जागे-जागे. मुझे मालूम है कि कई ऐसे भी हैं जो जागे तो होंगें पर सोये-सोये. जाने क्यों ऐसा होता है
          ज्ञानरंजन  जी ने मार्क्स को कोट किया था चर्चा में विचारधाराएं अलग अलग हों फ़िर भी साथ हो तो कोई बात बने. इस  तथ्य से अभिग्य मैं एक कविता लिख तो चुका था इसी बात को लेकर ये अलग बात है कि वो देखने में प्रेम कविता नज़र आती है :- 
प्रेम की पहली उड़ान  
तुम तक मुझे बिना पैरों 
के ले  आई..!
तुमने भी था स्वीकारा मेरा न्योता
वही  मदालस एहसास
होता है साथ    
तुम जो कभी कह  सकी 
हम जो कभी सुन  सके !
उसी प्रेमिल संवाद की तलाश में 
प्रेम जो देह से ऊपर
प्रेम जो ह्रदय की धरोहर  
उसे संजोना मेरी तुम्हारी जवाबदेही  
नहीं हैं हम पल भर के अभिसारी 
उन दो तटों सी जी साथ साथ रहतें हैं 
बीच  उनके जाने कितने धारे बहते हैं 
अनंत तक साथ साथ 
होता है  मिलने का विश्वास 
तुम जो निश्छल कल कल सरिता सी 
आज भी मेरे  
गिर्द 
भगौना भर कामना लेकर आतीं हो 
मुस्कुराती और फिर अचानक 
खुद को खुद की परिमिति में 
बाँध 
बाँध देती हो मुझे 
मेरी परिधि में 
जहां से शुरू होती है 
शाश्वत प्रीत यात्रा ....
सच  तुम निर्दयी नहीं हो .
   एक  विवरण जो ज्ञानरंजन जी ने सुनाया उसी को भुला नही पा रहा हूं वो कहानी बार बार कह रही है सबको बताओगे मुझे सबों तक ले चलो तो कहानी की ज़िद्द पर प्रस्तुत है वही ज़िद्दी कहानी
          “ एक राजा था, एक रानी थी, एक राज्य तो होगा ही .रानी अक्ल से साधारण, किन्तु  शक्ल से असाधारण रूप से सामान्य थी. वो रानी इस लिये थी कि एक बार आखेट के दौरान राजा बीमार हो गया. बीमार क्या साथियों ने ज़हर दे दिया मरा जान के छोड़ भी दिया. सोचा मर तो गया है भी मरा होगा तो   कोई जंगली जानवर का आज़ का भोजन बन जाएगा. बूढ़ी मां के लिये बूटियां तलाशती एक वनबाला ने उस निष्प्राण सी देह को देखा. वनबाला ने छुआ जान गई कि कि अभी इस में जीवन शेष है. सोचा मां की सेवा के साथ इसे भी बचा लूं पता नहीं कौन है . जी जाए तो ठीक जिये तो मेरे खाते में एक पुण्य जुड़ जाएगा . बूटी खोजी और बस उसे पिलाने की कोशिश  . शरीर के भीतर कैसे जाती बूटी बहुत जुगत भिड़ाती रही फ़िर  के ज़रिये बूटी का सत डाल दिया उसकी नाक में. इंतज़ार करती रही कब जागे और कब वो मां के पास वापस जाए . आधी घड़ी बीती थी कि राज़ा को होश ही गया. राजा ने बताया कि उसने शिकार की तलाश में भूख लगने पर आहार लिया था ,
वनबाला समझ गई की राजा खुद शिकार हुआ है . उसने कहा – ”राजन, आप अब यहीं रहें मैं आपके महल में जाकर पुष्टि कर लूं कि षड़यंत्र में जीते लोग क्या कर रहे हैं. आप मेरा ऋण चुकाएं. मेरी बीमार मां की सेवा करें. गांव से कंद मूल फ़ल लेकर राजधानी में बेचने निकली. वहां देखा राजभवन बनावटी शोक में  डूबा था. राजपुरोहित ने प्रधान मंत्री से सलाह कर राजा के मंद-बुद्धि भाई को राजा बना दिया था. सच्चे नागरिक उन सत्ताधारियों के प्रति मान इस कारण रख रहे थे क्योंकि उनने प्रत्यक्ष तया सत्ता तो छीनी थी. राजा के असामयिक नि:धन से जनता दु:खी थी. वनबाला ने राजपुरोहित और प्रधान-मंत्री के व्यक्तित्व का परीक्षण किया. ज़ल्द ही जान गई.. वे महत्वाकांक्षी विद्वान हैं. साथ हिंसक भी हैं.राजपुरोहित की पड़ताल में उस कन्या ने पाया कि राज़ पुरोहित तो राजा का वफ़ादार था अपनी पत्नि-पुत्री का ही . उसकी घरेलू नौकरानी बन के देखा था उसने पुरोहित पुत्री के सामने पत्नी पर कोड़े बरसाते हुए. पुत्री भी कम दु:खी थी. पिता की जूतियों से गंदगी साफ़ करती थी. पिता के वस्त्र भी धोती यानी हर जुल्म सहती. वन बाला समझ चुकी थी  जिस देश का विद्वान ही ऐसी हरकतें करे ,वहां जहां नारी का सम्मान हो वो देश देश नहीं नर्क हो जावेगा. बस अचानक एक रात बिना कुछ कहे पुरोहित की नौकरी से भाग के वन गई वापस. राज़ा को हालात बताए. और फ़िर राजा को साथ में शहर फ़िर ले आई अपने  प्रिय राजा को देख जनता में अदभुत जोश उमड़ गया. ससम्मान फ़िर राजा ने गद्दी पर बैठाया महल की कमान सम्हाली वनबाला ने फ़िर वो रानी बनी. ये थी वो कहानी जो कभी मां ने सुनाई ही- एक राजा था, एक रानी थी,यहीं से शुरु होती थी मां की कहानियां. मुझे नहीं मालूम था क्यों सुनाई थी सव्यसाची ने ये कहानी पर आज़ पता चला कि क्यों सुनाई थी.ये एक लम्बा सिलसिला है रुकेगा बहीं सब जानते हैं
                  इस कहानी का प्रभाव मेरे मानस पर गहरा है . पर जिसे नानी-दादी-मां कहानी नहीं सुना पातीं उसके हालत पर गौर करें एक कहानी ये भी है:-

                 एक बात जो मुझे बरसों से चुभ रही है जो शक्तिवान है उसे भगवान मान लेतें हैं शक्ति बहुधा मूर्खों के हाथों में पाई जाती है. जिनकी आंखों में तो विज़न नहीं ही होती है होता मानस में रचनात्मकता. एक दिन एक मूर्ख ने भरी सभा में कंधे उचका-उचका केपाप-पुण्यकी परिभाषा खोज़ रहा था.कुछ मूर्ख भय वश उत्तर भी खोजने लगे कुछ ने दिये भी उत्तर शक्ति शाली था सो नकार दिया उसने . उसे आज़ भी उसी उत्तर की तलाश है इसी खोज-तपास में वह जो भी कर रहा होता है एक सैडिस्ट की तरह करता है. यदी कहीं कोई भगवान है तो ऐसों को समझ दे बेचारा पाप-पुण्य के भेद क्यों खोजे………शायद मां से उसे ऐसी कहानियां सुनी होंगीं जो उसे जीवन के भेद बताती. इसका दूसरा पहलू ये है कि उसे मालूम है जीना भी एक कला है वो एक कलाकार. वो कलाकार जो हंस की सभा में हंस बनके शब्दों का जाल बुनता है कंधे उचकाता है और ऐसे काम करता करता है मनोवैग्यानिक-नज़रिये से केवल एक सैडिस्ट ही कर सकता है. इस किरदार को फ़िर कभी शब्दों में उतारूंगा आज़ के लिये बस इतना ही   
यश भारत 

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