18.7.13

मिड डॆ मील व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन की दरकार

मिड डॆ मील व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन की दरकार से अब इंकार बेमानी होगा.

मिड-डे मील से 22 बच्चों की मौत, 

के बाद व्यवस्था में अगर कोई परिवर्तन न हुआ तो बेशक कुछ और हादसे हमारे सामने होंगे. स्कूलों मे मिड डॆ मील के लिये मौज़ूदा व्यवस्था निरापद कदापि इस वज़ह से नहीं कही जा सकती क्योंकि गुणवत्ता और स्वच्छ्ता इसके सबसे महत्वपूर्ण बिंदू हैं  जिन पर नज़र रखना सहज नहीं है. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में.   देश की सर्वोच्च अदालत के निर्देश के बाद  लागू  इस व्यवस्था में सरकारों ने काफ़ी अधिक कोशिशें कीं हैं पर आप देखेंगे कि सरकारी मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम में स्तरीय गुणवत्ता और स्वच्छ्ता को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं. यहां स्वयम जागरूक जनता भी व्यवस्था की अनदेखी की दोषी है. ऐसा नहीं है कि सरकार ने ”सु्रक्षा के तौर तरीके न सुझाए होंगे ” परन्तु निचले स्तर तक गुणवत्ता और स्वच्छ्ता के मापदण्डों को हू बहू लागू किया जाना कठिन है.
गुणवत्ता और स्वच्छ्ता के मापदण्डों की अनदेखी का परिणाम है बिहार. मूल रूप से मिड डे मील व्यवस्था को निरापद बनाने के लिये ज़रूरी है कि सरकारें केवल स्वच्छ्ता और गुणवत्ता से क़तई समझौता न करे. वरना बिहार का यह मन्ज़र आम हो जाएगा. सरकारों को इसकी गुणवत्ता बनाए रखने के लिये ज़रूरी है कि व्यवस्था पर सूक्ष्म चिंतन करे
            व्यवस्था में सुधार के सुझाव

  1.  निरापद एवम सुरक्षित पाक़शाला - किसी भी खाद्य पदार्थ के निर्माण के लिये निरापद एवम सुरक्षित पाक़शाला का होना अनिवार्य है. जिसके अभाव में स्तरीय आहार व्यवस्था की कल्पना करना एक स्वप्न मात्र है.
  2.  स्वच्छता एवम गुणवत्ता -  स्वच्छता एवम गुणवत्ता के संदर्भ में आमूल-चूल परिवर्तन बेहद आवश्यक है. कठोर नियमों को लचीला बनाते हुए प्रूडॆंट-शापिंग प्रणाली को महत्व देने की ज़रूरत है. आहार निर्माण के लिये वांछित  कच्चे माल की खरीददारी  जिला अथवा अनुभाग स्तर पर किसी खाद्य-विशेषज्ञ  की मदद लेकर ही की जानी चाहिए .साथ ही पाकशाला में स्वच्छता के मापदंडों की अनदेखी भी ऐसी घटनाओं की आवृत्ति करा सकती हैं .  
  3.  सामाजिक दखल -  समुदाय की सकारात्मक दखल के बगैर व्यवस्था में सुधार की अपेक्षा भी बेमानी है.समुदाय के पाजिटिव व्यक्ति अच्छी तरह से कार्य करने का  प्रेशर बना सकते हैं .
  4.  खाद्य-अपमिश्रण क़ानून के तहत सतत कार्रवाई करना भी ज़रूरी है.
  5. प्रबंधकीय ज्ञान  .का अभाव भी इस अव्यवस्था के लिए ज़वाबदेह है. जिसे दूर करना आवश्यक है. 
  6. उत्तरदायित्व निर्धारण .सामूहिक रसोई के प्रबंधन से लेकर हर छोटी बड़ी व्यवस्था में उत्तरदायित्व का पूर्व से निर्धारण आवश्यक है .

17.7.13

...और अब वह सम्पादक हो : डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी

                             
डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
आखिर वह सम्पादक बन ही गए। मुझसे एक शाम उनकी मुलाकात हो गई। वह बोले सर मैं आप को अपना आदर्श मानता हूँ। एक साप्ताहिक निकालना शुरू कर दिया है। मैं चौंका भला यह मुझे अपना आदर्श क्यों कर मानता है, यदि ऐसा होता तो सम्पादक बनकर अखबार नहीं निकालता। जी हाँ यह सच है, दो चार बार की भेंट मुलाकात ही है उन महाशय से, फिर मुझे वह अपना आइडियल क्यों मानने की गलती कर रहे हैं। मैं किसी अखबार का संपादक नहीं और न ही उनसे मेरी कोई प्रगाढ़ता। बहरहाल वह मिल ही गए तब उनकी बात तो सुननी ही पड़ी। 

उनकी मुलाकात के उपरान्त मैंने किसी अन्य से उनके बारे में पूँछा तो पता चला कि वह किसी सेवानिवृत्त सरकारी मुलाजिम के लड़के हैं। कुछ दिनों तक झोलाछाप डाक्टर बनकर जनसेवा कर चुके हैं। जब इससे उनको कोई लाभ नहीं मिला तब कुछ वर्ष तक इधर-उधर मटर गश्ती करने लगे। इसी दौरान उन्होंने शटर, रेलिंग आदि बनाने का काम शुरू किया कुछ ही समय में वह भी बन्द कर दिए और अब सम्पादक बनकर धन, शोहरत कमाने की जुगत में हैं। पढ़े-लिखे कितना है यह तो किसी को नहीं मालूम लेकिन घर-गृहस्थी, खेती बाड़ी का कार्य उन्हें बखूबी आता है। घर का आँटा, सरसों पिसाने-पेराने से लेकर मण्डी से सब्जी, आरामशीन से लकड़ी लाना आदि काम वह बखूबी करते हैं और घर के मुखिया द्वारा दिए गए पैसों में से अपने गुटखा आदि का कमीशन निकाल लेते हैं।
अब वह सम्पादक बन गए हैं। वह कर्मकाण्ड भी कर लेते हैं, मसलन हिन्दू पर्वों पर यजमानों के यहाँ जाकर पूजा-पाठ करवाते हैं। लोगों के अनुसार वह एक सर्वगुण सम्पन्न 40 वर्षीय युवक हैं। वह विजातियों के प्रति नकारात्मक रवैय्या अपनाते हैं और स्वजातियों को थोड़ा बहुत सम्मान देते हैं। वही अब सम्पादक बन गए हैं। वह वाचाल हैं न जानते हुए भी अगले के सामने इस तरह बोलेंगे जैसे वह हर क्षेत्र और विषय में पारंगत हों। वह बाल-बच्चेदार व्यक्ति हैं। पत्नी की डाँट भी खाते हैं। येनकेन-प्रकारेण पत्नी और बच्चों की जरूरतें पूरी करते हैं। इन सबके बावजूद वह कभी भी मेरे सानिध्य में नहीं रहे फिर भी मैं उनका आदर्श हूँ, यह मेरे लिए सर्वथा शोचनीय विषय है। 
वह जब मुझसे एकाएक मिले थे, उस समय शाम का वक्त था। मैं एक परिचित की दुकान पर बैठा था और वह पत्नी-पुत्र सहित खरीददारी करने आए थे। मैंने औपचारिकता वश पूँछ लिया कि आज कल क्या कर रहे हो तभी वह बोले थे कि आप मेरे आदर्श हैं अखबार का प्रकाशन शुरू कर दिया है और सम्पादक बन गया हूँ। पहले तो मुझे घोर आश्चर्य हुआ फिर अन्दर की बात अन्दर ही रखकर उनको बेस्ट काम्पलीमेण्ट्स दिया। इसी बीच उनकी पत्नी और पुत्र ने सामान खरीद लिया था और वह भी औपचारिक रूप से बोले चलता हूँ सर। मैंने कहा ठीक है जावो ऊपर वाला तुम्हारा कल्याण करे। इतने से आपसी संवाद उपरान्त वह पत्नी-पुत्र समेत मोटर बाइक पर बैठकर चले गए। मैं भी कुछ देर तक अपने परिचित की दुकान पर बैठा जगमगाती रोशनी में हवा और रोशनी दोनों का लेता रहा, सोचा यदि शीघ्र वापसी करूँगा तो घर पर बिजली नहीं होगी अंधेरे में हैण्डफैन चलाना पड़ेगा। 
तभी दुकानदार ने कहा सर जी रात्रि के 9 बज गए हैं वह अपनी दुकान बढ़ाना चाहता है, साथ ही उसने यह भी बताया कि पावर सप्लाई आ गई है। मैंने कहा ठीक है डियर तुम अपनी दुकान बढ़ाओ, मैं भी चलता हूँ। फिर शब्बा खैर कहकर मैं वापस हो लिया। रात में भोजन करता नहीं, दो-एक गिलास द्रव पीकर रात बिताता हूँ, यदि मूड बना तो कुछ लिखता हूँ। सम्पादक जी की मुलाकात के उपरान्त लिखने का मूड हो आया सो यह आलेख आपके सामने है। सम्पादक जी मनुवादी व्यवस्था की उस जाति के जीव हैं, जो अपने को सर्वोच्च मानता है और अन्य सभी से सम्मान-आदर की अपेक्षा करता है जबकि अन्य जाति बिरादरी के लोग उनकी कौम से सम्मान पाना तो दूर नजदीक फटक पाने की हिम्मत नहीं कर पाते हैं। 
हालांकि यदि पालिटिकल सिनेरियो देखा जाए तो उनकी नस्ल के नेता निम्न स्तर तक गिर कर वोटबैंक वाली पार्टियों के प्रमुखों की जी-हुजूरी करते हैं। छोड़िए भी कहाँ सम्पादक जी की बात और कहाँ जातीय पॉलिटिक्स की बात? सम्पादक जी को किसी ने समझा दिया है कि 10 से 25 प्रतियाँ फाइल छपवाकर शासकीय विज्ञापनों की मान्यता प्राप्त कर लो साथ ही खुद भी मान्यता प्राप्त पत्रकार बन जावोगे। फिर ऐशो-आराम की हर वस्तु तुम्हारे कदमों पर लोगों द्वारा न्यौछावर होती रहेगी। इसी गलत फहमी का शिकार बने सम्पादक जी एक साप्ताहिक समाचार-पत्र छाप रहे हैं और शासकीय मान्यता हेतु सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के कार्यालय का चक्कर लगा रहे हैं। 
इनके सलाहकार ने उन्हें बताया है कि सम्पादक बनने का कोई मापदण्ड नहीं है आप चोर, उचक्के, अपराधी न हों तो शासकीय मान्यता मिल जाएगी। बस आप का नाम थाने के रजिस्टर संख्या 8/10 में न अंकित हो। सम्पादक बनकर आपका रूतबा बुलन्द होगा, साथ ही पुलिस और प्रशासन में आपकी पैठ भी होगी और हर गलत-सही कार्य कराने में सक्षम हो जाओगे। अपने स्वजातीय सलाहकार की बातें मानकर उन जैसा कर्मठ व्यक्ति आखिरकार सम्पादक बन ही गया।

13.7.13

7 वें अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन पर एक रिपोर्ट : आशीष कंधवे

वेब पत्रिका से साभार 
                       सेम रिप, कम्बोडिया, 17 जून, 2013 21वीं सदी के पहले दशक के हिंदी साहित्य, भाषा और इतिहास के विकास की चर्चा एवं अवलोकन करते हैं तो छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर स्थित संस्था सृजनगाथा डॉट कॉमके योगदान को स्वीकारना आवश्यक हो जाता है। वैसे तो हिंदी के उद्भव, शैशव एवं वर्तमान, सभी दौर में छत्तीसगढ़ राज्य (पूर्व में वृहद् मध्य प्रदेश) ने यथासंभव योगदान हिंदी के प्रचार-प्रसार एवं उन्नयन में दिया है। हिंदी के प्रचार-प्रसार एवं साहित्य संवर्धन के लिए वैसे तो कई संस्थाएं देश भर में सराहनीय कार्य कर रही हैं परन्तु श्री जयप्रकाश मानस द्वारा स्थापित संस्था सृजनगाथा देश ही नहीं अपितु विश्व के अनेक देशों में हिंदी को प्रतिष्ठित तथा प्रचलित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली संस्था के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल रही है।
प्रयास व्यक्तिगत अथवा सामूहिक जो भी हो, परिप्रेक्ष्य सिर्फ एक ही होना चाहिए-हिंदी का उन्नयन। अनेकों ऐसे उदाहरण हैं जिसमें व्यक्तिगत प्रयास ने हिंदी के संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, परन्तु सामूहिक प्रयासों का अपना विशिष्ट महत्व होता है। योजनाबद्ध ढंग और शीघ्रता के साथ प्रयास सामूहिक ही हो सकता है जिसके लिए संस्थाएं अपनी महत्तर भूमिका निभाती रही हैं।
सृजनगाथा डॉट कॉमहिंदी की सृजनगाथा में अनेक संस्थाओं को सहयोगी संस्था के रूप में शामिल करके उद्देश्यों एवं कार्यों को गति दी है तथा सामूहिक प्रयासों को सफलता के लक्ष्य तक पहुंचाया है। आयोजन की सहयोगी संस्थाओं के रूप में चर्चित साहित्यिक पत्रिका आधुनिक साहित्यनई दिल्ली, वीणा कैसेट्स जयपुर, प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान रायपुर, लोकसेवा संस्थान रायुपर,दैनिक उजाला भारत बाडमेर ने सातवें अन्तरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन (14-24 जून, 2013, कम्बोडिया-वियतनाम-थाईलैंड) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सम्मेलन का उद्घाटन दिनांक 17 जून, 2013 को कम्बोडिया के ऐतिहासिक शहर सेम रिप के होटल पैसेफिक के भव्य सभागार में शुरू हुआ। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में राजस्थान से आये वरिष्ठ जनसंचार विशेषज्ञ एवं सृजनगाथा डॉट कॉमके मुख्य संरक्षक डॉ. अमर सिंह राठौर मंच पर शोभायमान थे, वहीं अध्यक्षता मुंबई से आयीं सुप्रसिद्ध कथाकार एवं साहित्यकार श्रीमती संतोष श्रीवास्तव ने किया। कार्यक्रम को गरिमा प्रदान करने के लिए विशिष्ट अतिथि के रूप में मंच पर रायपुर से आये राजा समुद्र सिंह, प्रसिद्ध राजस्थानी गीतकार श्री कल्याण सिंह राजावत, वरिष्ठ पत्रकार-कवि राकेश अचल, उत्तराखण्ड भाषा संस्थान की निदेशिका डॉ. सविता मोहन, एवं दिल्ली से पधारीं कवयित्री-चित्रकार श्रीमती संगीता गुप्ता भी मंच पर मौजूद थी। कार्यक्रम का संचालन कवि एवं आधुनिक साहित्य के संपादक आशीष कंधवे ने बड़ी कुशलता से किया।
सृजनगाथा डॉट कॉम को 2.25 लाख का सम्मान
मुख्य अतिथि डॉ. अमर सिंह राठौर ने अपने उद्बोधन में सृजनगाथा डॉट कॉमके द्वारा किये जा रहे प्रयासों की भूरि-भूरि प्रशंसा की और यह आश्वासन भी दिया कि संस्था को हिंदी के विकास, वर्चस्व एवं विस्तार के लिए जो भी आवश्यकता होगी उसकी पूर्ति की जाएगी जिससे संस्थान निरन्तर अपनी सेवाएं राष्ट्रहित में देती रहें। उन्होंने सृजनगाथा डॉट कॉमको एक लाख रुपये की सहायता राशि भी देने की घोषणा की। छत्तीसगढ़ से पधारे वरिष्ठ हिंदी सेवी, प्रशासनिक अधिकारी राजा समुद्र सिंह ने भी सृजनगाथा डॉट कॉम के द्वारा किये जा रहे प्रयासों को गति देने के लिए सवा लाख रुपए का आर्थिक सहयोग देने की घोषणा की।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करतीं हुईं डॉ. संतोष श्रीवास्तव ने कहा कि सृजनगाथा एवं सभी संस्थाएं जो इस कार्यक्रम में सहयोग कर रही हैं वह अपने-अपने प्रांत की अग्रणी संस्थाएं हैं। बिना किसी सरकारी अनुदान अथवा सहयोग के इस सभी संस्थाओं द्वारा किये जा रहे प्रयास अत्यन्त सराहनीय हैं। मैं इस सभी संस्थाओं के उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हूं।
दर्जनों भर किताबों का लोकार्पण
उद्घाटन सत्र में कई महत्वपूर्ण पुस्तकों का लोकार्पण भी हुआ जिसमें मुख्य रूप से हिंदी का सामथ्र्य-आलेख संग्रह (संपादक-जयप्रकाश मानस एवं आशीष कंधवे), बारह सत्ते चैरासी-काव्य संग्रह (संपादक-आशीष कंधवे), नीले पानियों की शायराना हरारत-संस्मरण (संतोष श्रीवास्तव), मेरी प्रिय कहानियां-कहानी संग्रह (हेमचंद्र सकलानी), कुँहासे के बाद-कविता संग्रह (डॉ. कल्पना वर्मा),आधुनिक साहित्य-जुलाई-सितम्बर 2013 अंक (संपादक-आशीष कंधवे), समिधा-कहानी संग्रह (उदयवीर सिंह), सच बोलने की सजा-कविता संग्रह (डॉ. सुनील जाधव), विपथगा-उपन्यास (मृदुला झा), सृजन-सौंदर्य-समीक्षा (भगवान भास्कर), एक कहानी ऐसी भी-कहानी संग्रह ( डॉ. सुील जाधव), मन की पतंगें-कविता संग्रह (प्रवीण गोधेजा), दरवाजे के उस पार-कविता संग्रह (प्रवीण गोधेजा), यादों से संवाद-कविता संग्रह (रेणु पंत), मानस जीवन शूल भरा-आत्मकथा (भगवान भास्कर), लेखन-अर्द्धवार्षिक पत्रिका (सह-संपादक मोतीलाल) एवं स्वर सरिता-मासिक पत्रिका (प्रबंध संपादक हेमजीत मालू) हैं।
श्री राजेश्वर आनदेव ने उद्घाटन सत्र में पधारे सभी विशिष्ट अतिथियों एवं सभागार में उपस्थित सभी प्रतिभागियों, रचनाकारों,लेखकों एवं भाषाविदों का धन्यवाद ज्ञापन बड़े ही मनोयोगपूर्ण ढंग से किया।
भूमण्डलीकरण और हिंदी विषय को लेकर द्वितीय सत्र में मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार एवं व्यंग्यकार डॉ. हरीश नवल मंच पर उपस्थित थे। सत्र की अध्यक्षता बीकानेर से आये हिंदी के विद्वान श्री देवकृष्ण राजपुरोहित ने किया। विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती अजित गुप्ता, स्वामी शिवज्योतिषानंद, प्रवासी संसार के संपादक श्री राकेश पाण्डेय एवं श्री सुशील कुमार गुप्ता भी मंच पर उपस्थित थे। सुरुचिपूर्ण संचालन डॉ. अनुपम आनंद ने किया जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष हैं।
इस सत्र में देश के अनेक विश्वविद्यालयों, संस्थाओं, अखबारों से आये हिंदी सेवियों ने अपने-अपने आलेखों का पाठ किया और हिंदी के वर्तमान परिदृश्य से सभागार में उपस्थित सभी लोगों को अवगत कराया।
सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए डॉ. हरीश नवल ने बड़ा ही ओजस्वी उद्बोधन दिया जिससे सभागार में उपस्थित सभी प्रतिभागी मंत्रमुग्ध हो गये। उन्होंने कहा कि भाषा और संस्कृति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। भाषा बचेगी तो संस्ड्डति संरक्षित रहेगी और संस्कृति संरक्षित रहेगी तो भाषा बचेगी। जरूरत दोनों को बचाने की है जिसकी बागडोर युवाओं के हाथों में है। डाॅ. नवल ने जयप्रकाश मानस द्वारा किये जा रहे भागीरथी प्रयास को समाज के लिए एक अनुपम उदाहरण बताया तथा सृजनगाथा और सभी सहयोगी संस्थाओं को इस बात के लिए साधुवाद भी दिया कि इस भोगवादी, पश्चिमवादी समय में भी आप अपने निजी प्रयासों से संस्कृति एवं भाषा के संवर्धन एवं संरक्षण के लिए इतना बड़ा प्रयास कर रहे हैं।
दरख़्तों के साये में धूप
तृतीय सत्र अर्थात् सांगीतिक सत्र का आरंभ दुष्यंत कुमार की ग़ज़लों से हुआ। जहां प्रख्यात संगीतकार कल्याण सेन द्वारा प्रख्यात ग़ज़लगो दुष्यंत कुमार की रचना दरख़्तों के साये में धूपनामक आयोजन में प्रस्तुत इस गायन ने सभी को गुनगुनाने के लिए मजबूर कर दिया वहीं सत्यप्रकाश झा के द्वारा हरिवंशराय की रचना मधुशालाकी प्रस्तुति भी सराहनीय थी। जयपुर की जानीमानी कोरियोग्राफर श्रीमती चित्रा जांगिड़ द्वारा प्रस्तुत राजस्थानी लोकनृत्य और छत्तीसगढ़ की सुपरिचित कलाकार ममता अहार द्वारा प्रस्तुत मीरा पर अभिकेंद्रित एक नृत्य नाटिका ने सबका मन मोह लिया। श्री अरविन्द मिश्र और अहफाज रशीद के कुशल संचालन ने सांस्कृतिक सत्र को विशेष बना दिया।
हवा हूं हवा मैं
चतुर्थ सत्र अन्तर्राष्ट्रीय रचना पाठ का सत्र था। वरिष्ठ गीतकार श्री कल्याण सिंह राजावत इस सत्र के मुख्य अतिथि थे वहीं वरिष्ठ हिंदी साहित्यकार कर्नल रतन जांगिड़ कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे। मंच की शोभा विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री मथुरा कालोनी, अरविन्द सिंह रावत, मशहूर उद्योगपति श्री हेमजीत मालू, वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण नागपाल तथा दिल्ली के वरिष्ठ समाजसेवी एवं सुन्दरलाल जैन अस्पताल के अध्यक्ष श्री वीरेन्द्र कुमार जैन ने बढ़ाई तथा सिद्धहस्त संचालन शायर मुमताज के हाथों में था।
जहां प्रमिला वर्मा, हेमचन्द सकलानी, मृदुला झा, उदयवीर सिंह, कृष्ण नागपाल और कर्नल रतन जांगिड़ ने अपनी-अपनी कहानी का पाठ किया वहीं विख्यात व्यंग्यकार डॉ. हरीश नवल ने अपने विशिष्ट अंदाज में व्यंग्य का पाठ कर सभागार को सम्मोहित कर दिया। श्री मथुरा कालोनी ने अपने नाटक का अंश पढ़ा। कल्याण सिंह राजावत, सविता मोहन, आशीष कंधवे, संगीता गुप्ता, सुधा नवल, टी.डी. चोपड़ा, पुष्पा गोस्वामी, अरविन्द मिश्रा, अजित गुप्ता, रेणु पंत, भगवान भास्कर, राजश्री रावत, चेतना भारद्वाज, संदीप तिवारी, शोभना मित्तल, अलका मोहन, आभा चौधरी, प्रवीण गोधेजा, संतोष श्रीवास्तव, विद्या सिंह, शोभा मुंगेर, राजकुमार मुंगेर और महराजीलाल साहू के गीत, ग़ज़ल और मुक्त छंद की कविताओं ने सभी का मन मोह लिया।
वैसे तो सभी ने अपने-अपने अंदाज में रचनाओं का पाठ किया परन्तु विशेष रूप से जयप्रकाश मानस द्वारा प्रस्तुत केदारनाथ अग्रवाल की कविता हवा हूं, हवा मैं बंसती हवा हूंकी विशिष्ट प्रस्तुति हर किसी के दिल में अलग से स्थान बनाने में सफल रही। कुशल संचालक मुमताज की ग़ज़लों को भी लोगों ने खूब सराहा।
रचनाकारों को प्रमोद वर्मा सम्मान
पंचम तथा अंतिम सत्र अलंकरण समारोह की अध्यक्षता रायपुर-छत्तीसगढ़ से आये राजा समुद्र सिंह ने किया तथा विख्यात संगीतकार कल्याण सेन मुख्य अतिथि थे। अलंकरण समारोह को विशिष्टता प्रदान करने के लिए मंच पर श्री अमर सिंह राठौर,हरीश नवल, संतोष श्रीवास्तव, सविता मोहन, देवकृष्ण राजपुरोहित, राजेश आनदेव तथा उमेश पाण्डेय मौजूद थे। संचालन पुणे से आये चन्द्रकांत मिशाल तथा आकाशवाणी भोपाल से आयीं चेतना भारद्वाज ने बड़े ही सुरुचिपूर्ण ढंग से किया। इस सत्र में सभी प्रतिभागियों को स्मृति-चिन्ह एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया। इस सत्र में सभी प्रतिभागी रचनाकारों को प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान की पहल पर प्रमोद वर्मा सम्मानसे विभूषित किया गया
यात्रा को रोमांचक बनाने के लिए थाइलैंड, कम्बोडिया और वियतनाम के लगभग सभी महत्वपूर्ण तथा ऐतिहासिक महत्व के स्थानों का भ्रमण भी शामिल किया गया था। जहां कम्बोडिया के सीएम रिप शहर में स्थित अंकोरवट के मंदिर को देखना इस यात्रा की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि रही वहीं वियतनाम के हो ची मिंच सिटी के नजदीक स्थित युद्धक्षेत्र को देखना भी अत्यन्त रोमांचकारी था। इसके अलावा कम्बोडिया की राजधानी नोम फेन, पोए पेट् तथा सीएम रिप, वियतनाम का व्यावसायिक शहर हो ची मिंच सिटी तथा थाईलैंड की राजधानी बैंकाक एवं पटाया को देखना भी महत्वपूर्ण रहा। समग्रता में कहें तो यह यात्रा साहित्यिक रूप से समृद्ध तो थी ही सांस्कृतिक पर्यटन के दृष्टिकोण से भी अत्यन्त सफल रही।
8 वाँ अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन - मास्को में

सृजन-सम्मान सृजन गाथा डॉट कॉम द्वारा यह भी घोषणा की गई है कि रायपुर, बैंकाक, मारीशस, पटाया, ताशकंद (उज्बेकिस्तान), संयुक्त अरब अमीरात तथा कंबोडिया- वियतनाम में सात अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलनों के सफलतापूर्वक आयोजन के पश्चात 8 वाँ अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन मास्को एवं सैंट पीटरबर्ग (रूस) में 11 अप्रैल 2014 से किया जायेगा जो समाजवादी दर्शन के जनक कार्ल मार्क्स और लेनिन को समर्पित होगा

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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...