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पलाश से संवाद !

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श्रीमति रानी विशाल जी के ब्लाग   काव्यतरंग  से साभार                      पलाश तुम भी अज़ीब हो कोई तुम्हैं  वीतरागी समझता है तो कोई अनुरागी. और तुम हो कि बस सिर पर अनोखा रंग लगाए अपने नीचे की ज़मीन तक  को संवारते दिखते हो. लोग हैरान हैं... सबके सब अचंभित से तकते हैं तुमको गोया कह पूछ रहे हों.. हमारी तरह चेहरे संवारों ज़मीन को क्यों संवारते हो पागल हो पलाश तुम .. ?                         जिसके लिये जो भी हो तुम मेरे लिये एक सवाल हो पलाश,   जो खुद तो सुंदर दिखना चाहता है पर बिना इस बात पर विचार किये ज़मीन का श्रृंगार खुद के लिये ज़रूरी साधन से करता है.. ये तो वीतराग है. परंतु प्रियतमा ने कहा था – आओ प्रिय तुमबिन लौहित अधर अधीर हुए अरु पलाश भी  डाल-डाल  शमशीर हुए. रमणी हूं रमण करो फ़िर चाहे भ्रमण करो.. फ़ागुन में मिलने के वादे प्रियतम अब तो  तीर हुए ...!!                   मुझे तो तुम तो वीतरागी लगते हो.. ये तुम्हारा सुर्ख लाल  रंग जो हर सुर्ख लाल रंग से अलग है.. अपलक देखता हूं तो मुझे लगता है... कोई तपस्वी युग कल्याण के भाव  लिये योगमुद्रा में है. तुम चिंतन में हो

भारतीय राष्ट्रीय खाद्य पदार्थ कसम

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                    राम धई, राम कसम, अल्ला कसम, रब दी सौं, तेरी कसम, मां कसम,पापा कसम, आदि कसमें भारत का  लोकप्रिय खाद्य पदार्थ हैं. इनके खाने से मानव प्रजाति को बहुत कुछ हासिल होता है. चिकित्सालय में डाक्टर बीमारी के लिये ये खाना वो मत खाना जैसी सलाह खूब देते हैं पर किसी चिकित्सक ने कसम नामक खाद्य-पदार्थ के सेवन पर कभी एतराज़ नहीं जताया. न तो किसी वैद्य ने न हक़ीम ने, और तो और  चौंगा लगा के  फ़ुटपाथ पे ज़वानी बचाए रखने वाली दवा बेचने वाले भाईयों तक ने इसको खाने से रोका नहीं.    यानी कुल मिला कर क़सम किसी प्रकार से नुक़सान देह नहीं डाक्टरी नज़रिये से. क़ानूनी नज़रिये से देखिये फ़िल्मी अदालतों में कसम खिलावाई जातीं हैं. हम नौकरी पेशा लोगों से सेवा पुस्तिका में कसम की एंट्री कराई जाती है. और तो और संसद, विधान सभाओं , मंत्री पदों अन्य सभी पदों पर चिपकने से पेश्तर इसको खाना ज़रूरी है.       कसम से फ़िलम वालों को भी कोई गुरेज़ नहीं वे भी  तीसरी कसम ,  कसम    सौगंध ,  सौगंध  गंगा मैया के  ... ,    बना चुके हैं.  गानों की मत पूछिये कसम   का स्तेमाल  खूब किया है गीतकारों ने. भी. 

डिंडोरी में पूरे उत्साह से मनाया गया महिला दिवस

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मान.न्यायाधीश श्री वीरेंद्र सिंह राजपूत जी अतिरिक्त जिला एवम सत्र न्याया. नगर पंचायत अध्यक्ष श्रीमति सुशीला मार्को एकीकृत बाल विकास सेवा परियोजना डिण्डौरी में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन विधिक सहायता प्राधिकरण डिण्डौरी महिला शक्ति संगठन पतांजली योग संस्थान डिण्डौरी एवम  नव-गठित महिला सशकितकरण विभाग डिण्डौरी के संयुक्त तत्वधान में आयोजित हुआ कार्यक्रम अध्यक्षता करते हुए एडीसनल डिसिट्रक्ट जज श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत ने कहा महिला दिवस पर विधिक सेवा प्रधिकरण द्वारा जागरूकता शिविर लगाकर हम दूर गांव तक महिलाओं के हितों के संरक्षण के लिए बनाये गये कानूनों एवं प्रक्रियाओं की जानकारी उपलब्ध करा रहे है। किसी भी प्रकार के महिला विरोधी उपराध के रोक थाम तथा उससे बचाव के लिए पक्षकार को जरूरी  खर्च एवम अधिवक्ता उपलब्ध कराने का कार्य भी विघिक सेवा प्रधिकरण के द्वारा किया जाता है। मान. न्यायाधीश श्री मनोज तिवारी                श्री मुख्य न्यायिक दण्डाधिकारी श्री मनोज तिवारी ने कहा की महिलाओं एवं बच्चों के लिए मौजूदा लाभ ,करने में बाल विकास सेवाओं का महत्वपूर्ण योगदान है।

छांह आंचल की पाने जन्म लेता विधाता भी

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वही  क्यों कर  सुलगती है      वही  क्यों कर  झुलसती  है  ? रात-दिन काम कर खटती, फ़िर भी नित हुलसती है . न खुल के रो सके न हंस सके पल –पल पे बंदिश है हमारे देश की नारी,  लिहाफ़ों में सुबगती  है ! वही तुम हो कि  जिसने नाम उसको आग दे  डाला वही हम हैं कि  जिनने  उसको हर इक काम दे डाला सदा शीतल ही रहती है  भीतर से सुलगती वो..!   कभी पूछो ज़रा खुद से वही क्यों कर झुलसती है. ? मुझे है याद मेरी मां ने मरते दम सम्हाला है. ये घर,ये द्वार,ये बैठक और ये जो देवाला  है ! छिपाती थी बुखारों को जो मेहमां कोई आ जाए कभी   इक बार   सोचा था कि "बा" ही क्यों झुलसती है  ? तपी वो और कुंदन की चमक हम सबको पहना दी पास उसके न थे-गहने  मेरी मां , खुद ही गहना थी ! तापसी थी मेरी मां ,नेह की सरिता थी वो अविरल उसी की याद मे अक्सर  मेरी   आंखैं  छलकतीं हैं. विदा   के   वक्त   बहनों   ने   पूजी   कोख    माता   की छांह   आंचल   की   पाने   जन्म   लेता   विधाता   भी मेरी   जसुदा   तेरा   कान्हा   तड़पता   याद   में   तेरी उसी   की   दी   हुई   धड़कन   इस   दिल   में   धड़कती   है . आज़ की

नारी : रहम की मोहताज नहीं, असीमित शक्तियों का भण्डार :रीता विश्वकर्मा

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रीता विश्वकर्मा स्वतंत्र पत्रकार/सम्पादक www.rainbownews.in (ऑन लाइन हिन्दी न्यूज पोर्टल) ई-मेल-  rainbow.news@rediffmail.com   8765552676 ए  9369006284 जिस तरह भक्त शिरोमणि हनुमान जी को उनकी अपार-शक्तियों के बारे में बताना पड़ता था और जब लोग समय-समय पर उनका यशोगान करते थे, तब-तब बजरंगबली को कोई भी कार्य करने में हिचक नहीं होती थी, भले ही वह कितना मुश्किल कार्य रहा हो जैसे सैकड़ो मील लम्बा समुद्र पार करना हो, या फिर धवलागिर पर्वत संजीवनी बूटी समेत लाना हो...आदि। ठीक उसी तरह वर्तमान परिदृश्य में नारी को इस बात का एहसास कराने की आवश्यकता है कि वह अबला नहीं अपितु सबला हैं। स्त्री आग और ज्वाला होने के साथ-साथ शीतल जल भी है।  आदिकाल से लेकर वर्तमान तक ग्रन्थों का अध्ययन किया जाए तो पता चलता है कि हर स्त्री के भीतर बहुत सारी ऊर्जा और असीमित शक्तियाँ होती हैं, जिनके बारे में कई बार वो अनभिज्ञ रहती है। आज स्त्री को सिर्फ आवश्यकता है आत्मविश्वास की यदि उसने खुद के ‘बिलपावर’ को स्ट्राँग बना लिया तो कोई भी उसे रोक नहीं पाएगा। स्त्री को जरूरत है अपनी ऊर्जा, स्टैमिना, क्षमताओं

यहां चंदा मांगना मना है !

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साभार नवभारत टाइम्स                        पिछले कई बरस से एक आदत लोगों में बदस्तूर देखी जा रही है. लोग हर कहीं चंदाखोरी ( बिलकुल हरामखोरी की तरह ) के लिये निकल पड़ते हैं. शाम तक जेब में उनके कुछ न कुछ ज़रूर होता है. भारत के छोटे-छोटे गांवों तक में इसे आसानी से देखा जा सकता है.                 कुछ दिन पहले एक फ़ोन मिला हम पारिवारिक कारण से अपने कस्बा नुमा शहर से बाहर थे ट्रेन में होने की वज़ह से सिर्फ़ हमारे बीच मात्र हलो हैल्लो का आदान-प्रदान हो पा रहा था. श्रीमान जी बार बार इस गरज़ से फ़ोन दागे जा रहे थे कि शायद बात हो जावे .. क़रीबन बीसेक मिस्ड काल थे. डोढी के जलपान-गृह में रुके तो  फ़ुल सिगनल मिले तो हम ने उस व्यक्ति को कालबैक किया. हमें लग रहा था कि शायद बहुत ज़रूरी बात हो  सो सबसे पेश्तर हम उन्हीं को लगाए उधर से आवाज़ आई -भैया, आते हैं रुकिये.. भैया.!  भैया..!! जे लो कोई बोल रहा है ? कौन है रे..? पता नईं कौन है..  ला इधर दे.. नाम भी नईं बताते ससुरे.......! हल्लो......  जी गिरीश बोल रहा हूं.. नाम फ़ीड नहीं है क्या.. बताएं आपके बीस मिस्ड काल हैं..                   

आतंकवाद क्या ब्लैकहोल है सरकार के लिये

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                                                                                                           उसे मालूम न था कि हर  अगला पग उसे मृत्यु के क़रीब ले जा रहा है. अपने कल को सुंदर से अति सुंदर सिक्योर बनाने आया था वो. उस जानकारी न थी कि कोई भी सरकार किसी हादसे की ज़िम्मेदारी कभी नहीं लेती ज़िम्मेदारी लेते हैं आतंकी संगठन सरकार तो अपनी हादसे होने की वज़ह और  चूक से भी मुंह फ़ेर लेगी. संसद में हल्ला गुल्ला होगा राज्य से केंद्र पर केंद्र से राज्य पर बस एक इसी  आरोप-प्रत्यारोप के बीच उसकी देह मर्चुरी में ढेरों लाशों के बीच पड़ी रहेगी तब तक जब तक कि उसका कोई नातेदार आके पहचान न ले वरना सरकारी खर्चे पे क्रिया-कर्म तो तय है.     काजल कुमार  जी की आहत भावना                                  आम भारतीय अब समझने लगा है कि  आतंकवाद से जूझने शीर्षवालों के पास कोई फ़ुल-प्रूफ़ प्लान नहीं है. यदि है भी तो इस बिंदु पर कार्रवाई के लिये कोई तीव्रतर इच्छा शक्ति का आभाव है. क्यों नहीं खुलकर जनता के जानोमाल की हिफ़ाज़त का वादा पूरी ईमानदारी से किया जा रहा है या फ़िर  कौन सी मज़बूरिया

अधमुच्छड़ ज़ेलर जो आधों को इधर आधों को उधर भेजता है.. बाक़ी को यानी "शून्य" को अपने पीछे लेके चलता है.

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                     कई वर्षों से हमारी समझ में ये बात क्यों न आ  रही है कि दुनिया बदल रही है. हम हैं कि अपने आप को एक ऐसी कमरिया से ढांप लिये है जिस पर कोई दूजा रंग चढ़ता ही नहीं. जब जब हमने समयानुसार खुद को बदलने की कोशिश की है या तो लोग   हँस दिये यानी हम खुद मिसफ़िट हैं बदलाव के लिये .    शोले वाले अधमुच्छड़ज़ेलर और उनका  डायलाग याद है न ... "हम अंग्रेजों  के ज़माने के जेलर हैं  "                         अधमुच्छड़  ज़ेलर ,  आधों को इधर आधों को उधर भेजता है.. बाक़ी को यानी "शून्य" को अपने पीछे लेके चलता है.  सचाई यही है मित्रो, स्वयं को न बदलने वालों के साथ निर्वात (वैक्यूम) ही  रहता है.                               इस दृश्य के कल्पनाकार एवम  लेखक की मंशा जो भी हो मुझे तो साफ़ तौर यह डायलाग आज़ भी किसी भी भौंथरे व्यक्तित्व को देखते आप हम दुहराया करते हैं.       आज़ भी आप हम असरानी साहब पर हँस  देते हैं. हँसिये  सलीम   जावेद  ने बड़ी समझदारी और चतुराई  से कलम का प्रयोग किया  ( जो 90 % दर्शकों के श्रवण- ज़ायके से वे वाक़िफ़ थे ) और असरानी साहब से कहलवाया

अमिताभ बच्चन पर आरोप है कि उनने स्तर मैंटेन नहीं किया ..?

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बीमार हूं सोचा आराम करते  करते सदी के महानायक यानी  अमिता-अच्चन- और रुखसाना सुल्ताना की बिटिया अमृता सिंह  अभीनीत फ़िल्म देख डालूं जी हां पड़े पड़े  मैने फ़िलम देखी  बादल-मोती वाली फ़िलम देखी नाम याद आया न हां वही 1985 में जिसे मनमोहन देसाई ने बनाई थी      मर्द      जिसको दर्द नहीं होता ..बादल यानी सफ़ेद घोड़ा जो अमिताभ को अनाथाश्रम से लेकर भागता है वही अमिताभ जब जवान यानी बीसपच्चीस बरस का होने तक युवा  ही पाया .            मित्रो हिंदी फ़िल्मो   को आस्कर में इसी वज़ह से पुरस्कार देना चाहिये.. पल पल पर ग़लतियां करने वाली फ़िल्में.. श्रेणी में  सदी का महानायक कहे जाने  का दर्ज़ा  अमिताभ बच्चन जी को ऐसी ही फ़िल्मों के ज़रिये मिला.       उस दौर की फ़िल्में  ऐसी ही ग़लतियों से अटी पड़ीं हुआ करतीं थीं. भोले भाले दर्शकों की जेब से पैसे निकलवाने और टाकीज़ों में चिल्लर फ़िंकवाने अथवा  दर्शकों की तालियां बजवाने के गुंताड़े में लगे ऐसे निर्माताऒं ने  भारत को कुछ दिया होगा.आप सबकी तरह ही  मैं बेशक अमिताभ की अभिनय क्षमता फ़ैन हूं.. अदभुत सम्मोहन है उनमें आज़ भी पर  आनंद  1971    मिली