संदेश

मेरा डाक टिकट

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                    इस स्टैम्प के रचयिता हैं  ब्ला० गिरीश के अभिन्न मित्र राजीव तनेजा वो दिन आ ही गया जब मैं हवा में उड़ते हुए अपना जीवन-वृत देख रहा था..                 से मन में इस बात की ख्वाहिश रही कि अपने को जानने वालों की तादात कल्लू को जानने वालों से ज़्यादा हो और जब मैं उस दुनियां में जाऊं तब लोग मेरा पोर्ट्फ़ोलिओ देख देख के आहें भरें मेरी स्मृति में विशेष दिवस का आयोजन हो. यानी कुल मिला कर जो भी हो मेरे लिये हो सब लोग मेरे कर्मों कुकर्मों को सुकर्मों की ज़िल्द में सज़ा कर बढ़ा चढ़ा कर,मेरी तारीफ़ करें मेरी याद में लोग आंखें सुजा सुजा कर रोयें.. सरकार मेरे नाम से गली,कुलिया,चबूतरा, आदी जो भी चाहे बनवाए.  जैसे....? जैसे ! क्या जैसे..! अरे भैये ऐसे "सैकड़ों" उदाहरण हैं दुनियां में , सच्ची में .बस भाइये तुम इत्ता ध्यान रखना कि.. किसी नाले-नाली को मेरा नाम न दिया जाये.         और वो शुभ घड़ी आ ही गई.उधर जैसे ही किराने-परचून की दूकानों का ठेका मल्टी नेशन को मिला और   गैस सिलेंडर के दाम बढ़े इधर अपना बी.पी. और अपन न चाह के भी चटक गए. घर में कुहराम,

बंगला सांप और मैं..!!

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फ़ोटो : उदंति.काम ब्लाग से साभार                   सरकारी जीव को तबादले से डरना किसी की नज़र में भले ही कायरता हो अदद सरकारी मुलाज़िम होने के नाते अपन को असलियत की जानकारी है. तबादला सरकारी जीव की नियति है होता है होना भी चाहिये न होगा तो जीव कुएं का दादुर होवेगा अपना भी हुआ कई बार उनका नहीं हुआ तो हो जाएगा कब तक किसे पटा के रखेंगें बताओ भला.. आज़ पटी तो इधर न पटी तो उधर झट बोरिया बिस्तरा बंध जाएगा ..इधर. अपने राम को बदली का आर्डर मिला उधर सा’ब जी ने रवानगी का रम्मन्ना पकड़ाया अपन तुरत फ़ुर्र. लोग गणित-गुंताड़ा लगाएं उसके पहले हमारी रवानगी ने साबित कर दिया कि "ये दुनियां ये महफ़िल मेरे काम की... "हा हा हा          कुछ मित्र मरहम लगाने की अदा से आए हमें मालूम था कि पादरी फ़ूट फ़ूट के रोएगा हरिया झूठा टसुए बहाएगा, जूली मैम बिदाई के वक़्त जो बोल रही होगी ठीक उससे उलट सोच रही होगी .. अच्छा टला खूब डांटता था. अरे हां अपन ने मरहम न लगवाया तो उनको बुरा अवश्य लगा जो बड़े जतन से मरहम में नमक मिला के लाए थे.  नसीरुद्दीन पालिशड बातें करता हुआ अपनी क़मीनगी का इज़हार कर रहा था कुल म

सत्य

ओह सत्य जब जब तुम  बन जाते लकीर  तब बेड़ियों से जकड़ लेते हैं तुमको... जकड़ने वाले...!! हां सच.. जब तुम गीत बन के  गूंजते हो तब हां.. तब भी  लोग  कानों में फ़ाहे  ठूंसकर खुर्द-बुर्द होने के गुंताड़े में  लग जाते हैं. हां सत्य  जब भी तुमने मुखर होना चाहा तब तब  ये  बिखरने से भयातुर  दैत्याकार  नाक़ाम कोशिशें करतें  जब जब तुम प्रखर होते तब तब ये  अपने अपने आकाशों से  से आ रही तेजस्वी धूप को  टेंट-कनातों से रोकते  कितने मूर्ख लगते है न .. सत्य ..!!  

गुरप्रीत पाबला नहीं रहे

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श्री बी.एस.पाबला जी  के सुपुत्र चिंरंजीव गुरप्रीत सिंह पाबला का आकस्मिक नि:धन के समाचार से जबलपुर के ब्लागर्स बेहद दुखी है .........स्तब्ध हैं ..................               दिवंगत आत्मा की शांति के लिये ईश्वर से विनत प्रार्थना के साथ पाबला परिवार को इस अपूरणीय क्षति से व्युत्पन्न पीढ़ा को सहने की शक्ति प्रार्थना है.  

स्वतंत्रता और हिंदी : आयुषि असंगे

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                      स्वतंत्रता और हिंदी विषय स्वयमेव एक सवाल सा बन गया है.  15 अगस्त 1947 के बाद हिंदी का विकास तो हुआ है किंतु हिंदी उच्च स्तरीय रोजगारीय भाषा की श्रेणी में आज तक स्थापित नहीं हो सकी. जबकि तेज गति से अन्य अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं का विकास हुआ है उतनी ही तेजी से  स्वतंत्रता के पश्चात  हिंदी भाषा की उपेक्षा की स्थिति सामने आई है. जिसका मूल कारण है हिंदी को रोजगार की भाषा के रूप में आम स्वीकृति न मिलना. विकाशशील राष्ट्रों में उनके सर्वागीण विकास के लिये  भाषा के विकास को प्राथमिकता न देना एक समस्या है. हिन्दी ने आज जितनी भी तरक्की की है उसमें सरकारी प्रयासों विशेष रूप से आज़ादी के बाद की सभी भारत की केन्द्रीय सरकारों का योगदान नगण्य है. आज जहाँ विश्व की सभी बड़ी भाषायें अपनी सरकारों और लोगों के प्यार के चलते तरक्की कर रहीं है वहीं विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा हिन्दी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. 26 जनवरी 1950 को जब भारतीय संविधान लागू हुआ तब हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया. पहले 15 साल तक हिन्दी के साथ साथ अंग्रेजी को भी राजभाषा का दर्जा दिया गया, यह तय

भई ये पेंटिंग नहीं रगड़े की पिच्च है..!!

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कला साधना के लिये मशहूर शहर में अपने कलासाधक मित्र से पूछ बैठा- भई, क्या चल रहा है..? सिगरेट का कश खींचते बोले- बस यूं ही फ़ाकाकशी में हूं.  और ज़ीने का ज़रिया ..? बस, अब मिल गया,  क्या..? ज़रिया.. ! न, गिरीश भाई नज़रिया,      "नज़रिया" शब्द का अर्थ लगाए हम उनसे विनत भाव से विदा लेकर कामकाज़ निपटाने चल पड़े. मुलाकात वाली बात भी आई गई हो गई कि एक दिन वही हमारे मित्र दरवाज़े ज़िंदगी के दर्द भरे गीतों का पोटला लेके पधारे. संग साथ ले आए आए अपनी बीवी को बोले भैया -कलाकारों का भारी शोषण है. अब तो हमारी ज़िंदगी दूभर हो गई..अब बताइये क्या खाएं  अपन भी कृष्ण बन गये लगा साक्षात सुदामा पधारे हमारे द्वारे बस हमारे हुक़्म पर चाय पेश हुई.. हम भी करुणामय हो गये.उनकी बातें सुनकर  हमारी अदद शरीक़-ए-हयात ने कहा - कुछ मदद कीजिये इनकी  ! बस बीवी के आदेश को राजाज्ञा मान हम ने तय कर लिया इस मित्र की मदद तो करनी ही है. सो हमने कहा -भई पब्लिसिटी खाते से आपको हम अपनी सामर्थ्य अनुसार काम देते रहेंगें. आपसे बड़ा वादा तो नहीं पर हां थोड़े थोड़े काम आपके खाते में ज़रूर आएंगें.      

अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर मीट लखनऊ में

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खबरिया चैनल आज़तक के संस्थापक एस.पी.सिंह का भावपूर्ण स्मरण किया गया

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मुंबई । दिल्ली हो या मुंबई आधुनिक भारतीय पत्रकारिता के महानायक और हिंदी न्यूज़ चैनल 'आजतक' के संस्थापक संपादक सुरेंद्र प्रताप सिंह यानी एस.पी सिंह को चाहने वाले और मानने वाले हर जगह है. एस.पी.सिंह स्मृति  समारोह मुंबई में आयोजित किया गया तो यहाँ भी उनके चाहने वाले और साथ काम कर चुके पत्रकार पहुंचें. उनसे जुडी यादों को बांटा. उन्हें याद किया और भावुक भी हुए.  वरिष्ठ पत्रकार विश्वनाथ सचदेव ने एस.पी सिंह को याद करते हुए कहा कि उनकी सबसे बड़ी खासियत थी कि वे आने वाले कल को पहचानने की कोशिश करते थे और उसी हिसाब से नए - नए प्रयोग करते थे. उनके टेलीविजन के सफ़र पर बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि आजतक ने एस.पी को जो पहचान दी वह अद्वितीय है. बुलेटिन के अंत में एस.पी कहते थे, यह थी खबरें आजतक, इंतज़ार कीजिये कल तक और लोग इंतज़ार करते थे.  एस.पी. सिंह के ज़माने में आजतक के मुंबई ब्यूरो में कार्यरत नीता  कोल्हटकर ने एस.पी को याद करते हुए कहा कि अंग्रेजी माध्यम से होते हुए भी वे मुझे आजतक में लेकर आये. लेकिन उन्होंने कहा कि पंडिताना हिंदी को भूल जाओ. सरल, सहज और आम लोगों की भाषा का इ

" दैहिक (अनाधिकृत?) आकांक्षाओं के प्रबंधन

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लाइफ़-स्टाइल में बदलाव से ज़िंदगियों में सबसे पहले आधार-भूत परिवर्तन की आहट के साथ कुछ ऐसे बदलावों की आहट सुनाई दे रही है जिससे सामाजिक व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन अवश्यंभावी है. कभी लगता था मुझे भी कि सामाजिक-तानेबाने के परम्परागत स्वरूप को आसानी से बदल न सकेगा . किंतु पिछले दस बरसों में जिस तेजी से सामाजिक सोच में बदलाव आ रहे हैं उससे तो लग रहा कि बदलाव बेहद निकट हैं शायद अगले पांच बरस में... कदाचित उससे भी पहले .कारण यह कि अब "जीवन को कैसे जियें ?" सवाल नहीं हैं अब तो सवाल यह है कि जीवन का प्रबंधन कैसे किया जाए. कैसे जियें के सवाल का हल सामाजिक-वर्जनाओं को ध्यान रखते हुए खोजा जाता है जबकि जीवन के प्रबंधन के लिये वर्जनाओं का ध्यान रखा जाना तार्किक नज़रिये से आवश्यक नहीं की श्रेणी में रखा जाता है.जीवन के जीने के तौर तरीके में आ रहे बदलाव का सबसे पहला असर पारिवारिक व्यवस्थापर खास कर यौन संबंधों पड़ता नज़र आ रहा है. बेशक विवाह नर-मादा के व्यक्तिगत अधिकार का विषय है पर अब पुरुष अथवा महिला के जीवन की व्यस्तताओं के चलते उभरतीं दैहिक (अनाधिकृत?) आकांक्षाओं के प्रबंधन का अध

विद्रूप विचारधाराएं और दिशा हीन क्रांतियों का दौर

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देश के अंदर भाषाई, क्षेत्रीयता, जाति,धर्माधारित वर्गीकरण करना भारत की अखण्डता एवम संप्रभुता पर सीधा और घातक हमला है . देश आज एक ऐसे ही संकट के करीब जाता नज़र आ रहा है जाने क्या हो गया है कि  हम  कहीं भी कुछ भी सहज महसूस नहीं कर पा हैं . अचानक नहीं सुलगा असम अक्सर पूर्वोत्तर राज्यों के बारे में सोचता हूं रोंगटे खड़े हो जाते हैं वहां तीसेक साल से घुट्टी में पिलाई जा रही है कि इंडियन उनसे अलग हैं.साल भर पहले दिल्ली प्रवास के समय मित्रों की आपसी चर्चा के दौरान जब इस  तथ्य का खुलासा हुआ तो हम सब की रगों में विषाद भर गया मेरे मित्र ललित शर्मा और पाबला जी सहित हम सब घण्टों इस बात को लेकर तनाव में रहे थे. बस इतना ही हम कर सकते थे सो कर दिया पर जिनके पास ऐसी सूचना बरसों से है वे इस विषय में शांत क्यों हैं.. क्या हुआ हमारी स्वप्नजीवी सरकार को कि भारत को तोड़ने की कोशिशों का शमन करने कोई सख्त कदम नहीं उठा पा रही. उनकी क्या मज़बूरियां हैं इसका ज़वाब मांगना अब ज़रूरी हो गया है.                     विद्रूप-विचारधाराएं भाषाई आधार पर गठित राज्य की सड़ांध है. अब देखिये यू.पी. बिहार के लोगों को हिरा

न ही तुम हो स्वर्ण-मुद्रिका- जिसे तपा के जांचा जाए.

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जितनी बार बिलख बिलख के रोते रहने को मन कहता उतनी बार मीत तुम्हारा भोला मुख सन्मुख है रहता....! ************************* सच तो है अखबार नहीं तुम , जिसको को कुछ पल बांचा जाये. न ही तुम हो स्वर्ण-मुद्रिका- जिसे तपा के जांचा जाए. मनपथ की तुम दीप शिखा हो यही बात हर गीत है कहता जितनी बार बिलख बिलख के ............... ************************* सुनो प्रिया मन के सागर का जब जब मंथन मैं करता हूं तब तब हैं नवरत्न उभरते और मैं अवलोकन करता हूँ हरेक रतन तुम्हारे जैसा.. ? तुम ही हो ये मन   है  कहता. जितनी बार बिलख बिलख के ...............   *************************

वाह मनीष सेठ वाह बाबा हमें गर्व है आप पर ..!!

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हमारे मित्र मनीष सेठ इन दिनों कटनी में एकीकृत बाल विकास सेवा विभाग के  जिला अधिकारी हैं. बेहद चंचल हंसमुख हमारे अभिन्न मित्र हैं. हम आपस में   लड़ते झगड़ते भी खूब हैं.. स्वभाविक है इस सबके बिना मज़ा कहां आता है दोस्तों में.. और फ़िर जबलपुरिया नमक पानी ऐसा ही तो है कि बिना लड़े-झगड़े खाना पचता ही नहीं .. आपस में बाबा का संबोधन किया करतें हैं हम बात  1999 की दीवाली की है.. अचानक सड़क पर चलते चलते मुझे जाने क्या हुआ क्रेचेस फ़िसल गई और पोलियो वाले पैर में फ़ीमर बोन का भयानक फ़्रेक्चर फ़ीमर बोन कनेक्टिंग बाल से टूट कर अलग हो गई थी. कुछ मित्र होते हैं जो बुरे वक्त में नज़दीक होते हैं सबसे पहले मित्र मनीष सेठ ही थे जो मेरे सामने दिखे लगभग डपटते हुए उनको बोलते सुना -"बेवकूफ़ हो, मालूम है कि दीवाली के दिन बाज़ार में कार रिक्शे विक्शे जा नहीं पाते पैदल ही जाता पड़ता है तो क्या ज़रूरत थी कि बाज़ार जाओ, " .. इस बात में एक वेदना की प्रतिध्वनि मुझे आज़ भी याद है. आज़ वो घटना ताजी हो गई जब मेरे मेल बाक्स में ये संदेश मिला जो श्री आदित्य शर्मा जी का लिखा हुआ था.. आप ही देखिये आप भी कह

लखनऊ की एक शाम दुनिया भर के ब्लॉगरों के नाम.

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अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन  की लखनवी शाम यानि अवध की एक शाम ही नहीं पूरा का पूरा दिन दुनिया के हिन्दी ब्लॉगरों के नाम होने जा रहा है । देश व विदेश के ब्लॉगर अगले महीने लखनऊ मे जुटेंगे ।  नए मीडिया के सामाजिक सरोकार पर बात करेंगे । इस बहस-मुहाबिसे मे पिछले कुछ दिनों से चर्चा के केंद्र मे रहे इस नए मीडिया पर मंथन होगा। साथ ही  सकारात्मक ब्लोगिंग को बढ़ावा देने वाले  51  ब्लॉगरों को   ' तस्लीम परिकल्पना सम्मान- 2011'   से नवाजा जाएगा । साथ ही   हिंदी ब्लोगिंग दशक के सर्वाधिक चर्चित पांच ब्लोगर और पांच ब्लॉग के साथ-साथ दशक के चर्चित एक ब्लोगर दंपत्ति को भी परिकल्पना समूह द्वारा   सम्मानित किया जाएगा ।     यह सम्मान   27 अगस्त को राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह मे आयोजित अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन   मे दिये जायेंगे  । कौन-कौन आ रहे हैं, जानने के लिए आगे पढ़ें >>>> ..