26.6.12

मारे खुशी के निर्भय के हिज्जे बड़े हो गए ...बस और क्या..!!

निर्भय को उम्मीद न थी की मैं  उनसे बाल कटवाने पहुँचूंगा .उस रात इंदौर जाते वक्त हरदा रुका तो लगा अपनी सोलह बरस पुराने कर्मस्थान टिमरनी  को अभिनंदित कर आऊँ जाने की वज़ह भी थी सो वापस टिमरनी पहुँचा. निर्भय की दूकान पर गाड़ी रुकते ही निर्भय अपना   आल्हाद आवाज़ में बदलने की कोशिश करने लगा  पर निर्भय के मुंह से आवाज़ न  निकल सकी .जब निकली तो  मारे खुशी के  निर्भय के हिज्जे बड़े हो गए सच .और  जब हमने कहा -"भाई निर्भय हम आए हैं आपसे बाल-कटवाने " तो फिर क्या था अब तो निर्भय के मुंह से आवाज़ निकलनी ही बंद हो गई। यानी कुल मिला कर नि:शब्द ..   दरअसल निर्भय के मन में आने वाले  विचारों और उनकी अभिव्यक्ति में अंतराल होता है। जिसे  आम बोलचाल में लोग हकलाना कहते हैं। लेकिन मेरी सोच भिन्न है मैं निर्भय को न तो  हकला  मानता  हूँ और न ही उसे किसी को हकला कहलवाना  मुझे पसंद है। मेरी नज़र में निर्भय के हिज्जे ज़रा से बड़े हो गए हैं और कुछ नहीं है। लोग  अक्सर निर्भय जैसे लोगों को  हँसने का साधन बना लेते हैं। शायद हम सबसे बड़ी भूल करते हैं किसी की दैव प्रदत्त  विकृति की वज़ह से उस पर हँसते हैं ...... हमें एक बार सोचना चाहिये किसी की विकृति पर क्यों हँसें क्या ज़रूरी है ऐसा करना ? 
      हां एक बात ज़रूर मुस्कुराने योग्य मुझे ज्ञात हुई की निर्भय के  हिज्जे बड़े होने की वज़ह से वो किसी के सेलफोन काल का ज़वाब खुद नहीं देता अक्सर अपने बेटे को पकड़ा देता है ताकि काल करने वाले का अधिक खर्च  न हो। जब वो लोगों का इतना ध्यान रखता है तो हम क्यों हँसते हैं उस पर...?
 यही सवाल है जो मुझे साल रहा है .  क्या आप देंगे इसका ज़वाब शायद नहीं ..   

22.6.12

बॉस इज़ आलवेज़ राइट .. प्लीज़ डोंट फ़ाइट ...

सर्वशक्तिवान  बॉस  
की वक्र-दृष्टि से
स्वयम  बॉस  ही बचाते हैं.  
 
                            सरकारी गैर-सरकारी दफ़्तरों, संस्थानों के प्रोटोकाल में कौन ऊपर हो कौन नीचे ये तय करना आलमाईटी यानी सर्व-शक्तिवान  बॉस नाम के जीवट जीव का कर्म  है. इस कर्म पर किसी अन्य के अधिकार को अधिकारिता से बाहर जाकर अतिचार का दोष देना अनुचित नहीं माना जा सकता. एक दफ़्तर का   बॉस   जो भी तय करता है वो उसके सर्वश्रेष्ठ चिंतन का परिणाम ही कहा जाना चाहिये.उसके किये पर अंगुली उठाना सर्वथा अनाधिकृत रूप से किये गये कार्य यानी "अनुशासनहीनता" को क़तई बर्दाश्त नहीं  करना चाहिये. 
 हमारे एक मित्र हैं गिलबिले  एक दिन बोले- बॉस सामान्य आदमी से भिन्न होता है ..!
हमने कहा -भई, आप ऐसा कैसे कह सकते हैं ? प्रूव कीजिये ..
 गिलबिले :- उनके कान देखते हैं.. हम आपकी आंखे देखतीं हैं. 
हम:-"भैये तो फ़िर आंख ?"
गिलबिले:- आंख तो तिरछी करने के लिये होतीं हैं..सर्वशक्तिवान  बॉस  
की वक्र-दृष्टि से स्वयम  बॉस  ही बचाते हैं.दूजा कोई नहीं. गिलबिले जी के ब्रह्म ज्ञान के हम दीवाने हो गए बताया तो उनने  बॉसों के बारे में बहुत कुछ पर हज़ूर यक़ीन मानिये खुलासा हम न कर पाएंगे बस इत्ती बात को सार्वजनिक करने की अनुमति हमको मिली थी सो कर दी. और आगे-पीछे की बात उनके रिटायर होने के बाद पेंशन केस निपटने के बाद खोल दूंगा वरना अब कोई दूसरे परसाई जी तो हैं नहीं जो  "भोला राम का जीव" की तर्ज़ पर गिलबिले जी का जीव लिखेंगे..    
                               एक मातहत अपने बास के मुंह देखे आचरण से क्षुब्द हो   बॉस   के  बॉस  यानी परबॉस के पास शिकायत लाया. परबॉस के साथ उसकी चर्चा  का संपादित अंश देखिये 
मातहत:- सर, हमारे बॉस दोहरा व्यव्हार करते हैं..
परबॉस :- हमारे भी करते थे . कोई नई बात नहीं !
मातहत:- मान्यवर, भेद की दृष्टि की वज़ह से उत्पादन प्रभावित हो रहा है..!
परबॉस :- देश की जी.डी.पी. में हमारी कम्पनी के अवदान का परसेंटेज़ .0001 से भी कम है फ़िर आप काहे चिंता कर रहे हैं, शांति से काम कीजिये  बॉस   इज़ आलवेज़ राइट .. प्लीज़ डोंट फ़ाइट ...विद यौर बॉस. ही इस सहस्त्रबाहु अंडरस्टैण्ड मिस्टर.. कल्लू जी. डू यौर जाब ओ.के.
       माथे पर तनाव लिये कल्लू जी वापस अपना सा मुंह लेकर कारखाने वापस लौटे तो बॉस ने मुस्कुरा कर उनका स्वागत किया यह पूछते हुए कि-"ब्रह्म-ज्ञान मिला कल्लू जी."
                           कल्लू जी की बीवी ने भी तो समझाया था माना नहीं मरदूद सोच रहा था उपर वाले कृपा करेंगें.. हुई क्या न .. होती भी कैसे "बॉस   इज़ आलवेज़ राइट ..!"
                      कल्लू भाई ने तत्क्षण जीने का तरीक़ा बदल दिया. बस फ़िर क्या था वो आनंद के सागर गोते लगाते हुए संस्थान का कामकाज सम्हाल रहे हैं.
                 कल्लू ने सहकर्मी महेश तिवारी के गुरुमंत्र को गांठ में बांध लिया कि- दुनिया के अधिकांश बॉस नामक जीव को व्यवस्था को चलाने दो तरह के के लोग चाहिये एक वो जो रुटीन के कामकाज निपटाएं..दूसरा वो प्रोटीन के कामकाज़ निपटाए. 
                                         रुटीन के काम वो जो संस्थान के लिये सेटअप के साथ ही तय कर दिये जाते हैं. प्रोटीन के कामकाज़ का अर्थ है.वो कार्य जो बॉस के वास्ते किये जाते हैं.  बॉस   को उससे ताज़गी और स्फ़ूर्ति हासिल होती है. अन्ना-टीम को क्या मालूम कि कि दुनिया भर की व्यवस्था चलाने के लिये कुपोषित बॉसों की नहीं सुपोषित बॉसों की ज़रूरत होती है. उनको कल्लू टाइप के मातहतों की ज़रूरत होती है जो प्रोटीन और अन्य सूक्ष्म-पोषक तत्व उपलब्ध कराते रहें. 

नोट : आलेख के साथ प्रस्तुत कैरीकैचर भाई 
अजय झा का है. जो एक मशहूर चिट्ठाकार हैं.  

नोट:- इस आलेख के सभी पात्र मेरे दिमाग पैदाइश है अग़र किसी की करतूत इन पात्रों की करतूतों से मेल खाएं तो वह एक संयोग ही होगा 

17.6.12

“बाबूजी तुम हमें छोड़ कर…..!”

साभार : मल्हार ब्लाग से
मेरे सपने साथ ले गए
दु:ख के झंडे हाथ दे गए !
बाबूजी तुम हमें छोड़ कर
नाते-रिश्ते साथ ले गए...?
काका बाबा मामा ताऊ
सब दरबारी दूर हुए..!
बाद तुम्हारे मानस नाते
ख़ुद ही हमसे दूर हुए.

अब तो घर में मैं हूँ माँ हैं
और पड़ोस में विधवा काकी
रातें कटती अब भय से
नींद अल्ल-सुबह ही आती.

क्यों तुम इतना खटते थे बाबा
क्यों दरबार लगाते थे
क्यों हर एक आने वाले को
अपना मीत बताते थे

सब के सब विदा कर तुमको
तेरहीं तक ही साथ रहे
अब माँ-बेटी के साथी
जीवन के संताप रहे !!


अब सबको पहचान लिया है
अपना-तुपना जान लिया है
घर में क्यों आते थे ये सारे 
मैंने तो पहचान लिया है

• गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"

माता-पिता के लिये सिर्फ़ एक दिन नियत मत करो ..भई..!!


जब लौटता दफ़्तर से रास्ते में मुझे एक ज़रूरी काम होता है. बिना ड्रायवर को ये कहे कि ज़रा रुकना मैं वो काम पूरा कर ही लेता हूं जानते हैं कैसे डा. वेगड़ के पिता माता यानी  अमृतलाल जी बेगड़ सपत्नीक शाम छै: बजे के आस पास अपने घर से निकलते हैं शाम की तफ़रीह पर और मुझे लगता है देव-पुरुष सहचरी के साथ मुझे दर्शन देने स्वयम बाहर आते हैं. 

_____________________________________
                मेरे सहकर्मी धर्मेंद्र के बाबूजी फ़्रीडम फ़ाइटर के सी जैन  शाम पांच बजे से बेटे का इंतज़ार करती इनकी आंखें ..... 
फ़ादर्स डे पर  ..... धर्मेंद्र कहते हैं.. "सर,अपन तो पिता के नाम पूरी ज़िंदगी कर दें तो बहुत छोटी सी बात है...!!".




___________________________________ 
आते ही सबसे दयनीय पौधे के पास गए

फ़िर अगले ही पल मुस्कुराने लगते
मेरे बाबूजी  सुबह सबेरे की अपने  
छत वाले गार्डन तक जाते हैं गार्डन वाले बच्चों  दुलारते हैं.. पौधे भी एहसास कर ही लेते होंगे :-''पितृत्व कितना स्निग्ध होता है "  नन्हे-मुन्ने पौधे  इंतज़ार करते हैं.बाबूजी बगीचे में आते ही  आते ही सबसे दयनीय पौधे के पास जाते उसे सहलाते  फिर एक दूसरे बच्चे पास की सबसे जरूरत मंद के पास सबसे पहले. ऐसे हैं बाबूजी. जी जैसे मेरे पास सबसे पहले 
___________________________________________
अंजना जी के बाबूजी कैलेण्डर कलाकार डा हेमराज जैन अब नेत्र-ज्योति विहीन हैं पर आज भी कल की स्मृतियों को बांटते हैं बच्चों में  ......








माता-पिता के लिये सिर्फ़ एक दिन नियत मत करो पूरा जीवन भी नियत करोगे तो कम होगा भई 


बस थोड़ा सा हम खुद को बदल लें तो  लगेगा कि :-भारत में वृद्धाश्रम की ज़रुरत से ज़्यादा ज़रुरत है पीढ़ी की सोच बदलने की.

अगर आप की तरह इनके भी पिता होते तो सच 

बालगृह के बच्चे माता-पिता 
इनके लिये एक संज्ञा  मात्र है
अर्थ की तलाश में 
ये बच्चे 


मेरे बाबूजी के लिये ये फ़ूल.....
हा हा 



13.6.12

पापा, क्यों भौंकते हैं................ये कुत्ते ?

बात दसेक साल पुरानी है. मेरी बिटिया श्रद्धा ने पूछा-"पापा, क्यों भौंकते हैं................ये कुत्ते ?"
         जवाब क्या दूं सोच में पड़ गया. नन्हीं सी बिटिया को जवाब देने से इंकार भी तो नहीं कर सकता थी और न ही जवाब सोच पा रहा था . अक्सर बच्चों के पूछे गये सवालों को से अचकचाकर जवाब न होने की स्थिति में  गार्ज़ियन्स इधर उधर की बात  करने लगते हैं अपन भी तो आम अभिभावक ही हैं. अपने राम को ज़्यादा सोचने का न तो वक़्त था और न ही कोई ज़वाब जो बाल सुलभ सवाल को हल कर दे. अब आप ही बताइये क्या ज़वाब देता. फ़िर भी हमने छत्तीसगढ़ के  सुप्रसिद्ध ब्लॉग लेखक श्री  अवधिया जी के कथन   को उत्तर बनाया :-"संसार में भला ऐसा कौन है जिसके भीतर कभी बदले की भावना न उपजी हो 
मनुष्य तो क्या पशु-पक्षी तक के भीतर बदले की भावना उपजती है। 
यही कारण है कि कुत्ता कुत्ते पर और कभी कभी इन्सान पर भी गुर्राने लगता है ।"
पापा, क्यों भौंकते हैं................ये कुत्ते ?
अब आप इस सवाल का विग्रह कीजिये एक ....पापा, क्यों भौंकते हैं.........?
एक भाग है:.."पापा, क्यों भौंकते हैं......?"
और दूसरा:- "ये कुत्ते ?"
अमेरिकन एस्किमो डॉग जिसे हम
पामेरियन कहते हैं
                            हा हा समझ गये तभी हँस   रहें न आप सचमुच में कितने समझदार हैं..!
.हों भी क्यों न  ... ऐसा सवाल तो आपके बच्चों ने भी तो किया होगा. बच्चे सच ही तो बोलते हैं.वास्तव में सवाल तो यही था कि-"पापा आप भौंकते क्यों हैं...?
          बिटिया को क्या बताता -जस संगति तस गुन दिखलावा... ये अलग बात है कि संदल का असर सांप पर और सांप का असर संदल पर नहीं पड़ता पर "कुत्तव भौंक" के मामले में यह सिद्धांत लागू नहीं होता.हर एक भौंक का गहरा असर हम पर पड़ता है. हम भौंकना इनसे ही सीखते हैं गाहे बगाहे अपनी बात बनती न देख भौंकने लगते हैं.अगर पास से भौंकना न हो सका तो दूर जाकर . कुछ कुत्ते जो पामेरियन नस्ल के सफ़ेद बाल वाले होते हैं उनकी भौंकने की स्टाइल आपने देखी ही होगी.. वे अपने घर के दरवाजे से खतरे की ओर मुंह करके भौंकते हैं .. अगर आसन्न खतरा उसे देख ले तो पामेरियन साहब झट से कमरे में घुस जाते हैं.. कोई कोई तो मालिक-मालकिन की गोद तक खोजतें हैं. कुछ बहादुर किस्म के "पामेरियन साहब" खतरे की और मुंह कर भौंकते रहते हैं किंतु हौले हौले पीछे खिसकते हुए. 
      ठीक ऐसे ही कुछ कुत्तव-गुण हम पर भी तारी हैं तभी तो बच्चे पूछने लगे हैं..पापा, क्यों भौंकते हैं.....?          
  उत्तर  में हमआप कह सकते हैं "संसार में भला ऐसा कौन है जिसके भीतर कभी बदले की भावना न उपजी हो ?  
मनुष्य तो क्या पशु-पक्षी तक के भीतर बदले की भावना उपजती है। 
यही कारण है कि इंसान तक इंसान पर और कभी कभी कुत्तों पर भी गुर्राने लगता है ।
विग्रह के उपरांत शेष बचे वाक्य को देखिये-"ये कुत्ते....?"
ये कुत्ते का ज़वाब अब आप खोजते रहिये हम तो चले कुत्तों से माफ़ी मांगने ........  
 ___________________________
कुत्ते पर इंसानी नस्ल का रंगत  
चढ़ गई ये जानकर
अपनी वफ़ादारी का यशगान कर
एक बुज़ुर्ग कुत्ता
इन दिनों 
कुत्ता सुधार अभियान 
चला रहा है !!
नई पौध को आदमियत से 
बचाव के नुस्खे बता रहा है.
सामने भीड़ में बैठे कुत्ते 
उसपर भौंक रहे थे..
उसे कुत्ता सुधार अभियान 
जारी रखने से रोक रहे थे..
एक कुत्ते ने मीडिया को बताया 
"इस अभियान से कई घरेलू कुत्तों  के रोजगार पर पड़ेगा ..
जो कुत्ता बंगलों मे रह रहा है 
बेचारा सड़क पर कुत्ते की मौत मरेगा ?
इस खूसट को कौन बताए 
हम कुत्तों पर किसका रंग  चढ़ेगा..?
हम पर इंसानी रंग कभी न चढ़ पाएगा
हमारी बात कुत्ते कुत्ते तक पहुंचाइये
इस बूढ़े-खूंसठ से हमारा पिण्ड छुड़वाइये "
___________________________
307728_Save Money Be Happy - 500x350















______________________________________

11.6.12

Ability Unlimited Talk Show With Guruji Syed Sallauddin Pasha


मिसफ़िट पर शीघ्र गुरुजी सैयद सलाउद्दीन पाशा से सीधी बात शीघ्र लाइव प्रसारित एवम प्रसारित होगी
उम्मीद है आपने विकलांगों पर केंद्रित "सत्य मेव जयते" का एपीसोड  कल यानी  दिनांक 10/06/2012 को देखा ही होगा
यहां यानी बैमबसर पर देखिये जल्द ही
"Talk Show With Guruji Syed Sallauddin Pasha "
________________________

________________________

यू ट्यूब पर शो देखिये

5.6.12

शो मस्ट गो आन


साभार:-"Owaisihospital "
वातावरण की गहमा गहमीं के बाद  एक निर्वात सी स्थिति थी सहमे सहमे चेहरे . कुछ देर पहले की ही तो बात है   स्ट्रैचर  पर बेहोश देह आई.सीं.यू. में प्रवेश करा दी मुस्तैद स्टाफ़ ने. लगभग भागता हुआ ड्यूटी-डाक्टर मरीज के लिये सही डाक्टर को बुलाने में सफ़ल हो जाता है. अगले दस मिनिट में  आत्मविश्वास से लकदक एक काया प्रवेश करती है आई.सी.यू. में. परिजन नि:शब्द किंतु उनकी पथराई आंखें अपलक गोया पूछतीं हैं -"बचालोगे न ? "
             कुछ देर के बाद ही स्ट्रैचर को मरीज़ सहित ओ.टी. में आकस्मिक आपरेशन  के लिये ले जाया गया. और अगले पंद्रह मिनिट बाद हताश डाक्टर के मुंह से "सारी" निकलता है. परिजनों में से किसी एक के मुंह से चीख.. और एक धैर्यवान युवक सम्भवत: बेटा तो न था पडौसी सी रहा होगा..(बेटे तो विदेशों में होते हैं ) जेब से रुपये निकालते हुये  रिशेप्शन पर कुछ बतियाता है.
     फ़र्स्ट फ़्लोर से ग्राउंड-फ़्लोर तक के सारे मरीज़ों के परिजनों के चेहरों पर एक अज़ीब सा भाव था. भयातुर ही तो थे वे ..
   पडौसी का बेटा सेल फ़ोन से  :- "बोस साहब नहीं रहे.." की सूचना जारी करता है.  मेरे लगभग बराबर खड़ा डाक्टर बुदबुदा रहा था..."पता नहीं बाडी कब ले जाते हैं ?" आनन फ़ानन बोस साहब के पडौस वाला लड़का सब कुछ व्यवस्थित कर देता है. बोस साहब जो अब बोस साहब न होकर बाडी थे को घर ले जाया जाता है.
आधे घण्टे बाद एक निर्वात सी स्थिति थी सहमे सहमे चेहरे धीरे धीरे नार्मल होने लगते हैं. जैसे कुछ हुआ ही न हो.
एक युवा बाप के कष्ट को न देख सकने की स्थिति देख कर मुक्ति की कामना करता है उसकी सुर्ख लिपिस्टिक वाली बीवी सहमति जताती है. कुछ लोग बुके लेकर हालिया भर्ती मिश्रा साहब को फ़िल्मी स्टाइल में पेईंग वार्ड में घुसते हैं. विधायक जी सदलबल क्षेत्र के यशस्वी दादाजी के हालचाल लेने उनके कमरे में घुस जाते हैं. मौका मिलते ही वो लड़का उस लड़की से बातें करने लगता है. सच शो फ़िर से चालू हो जाता है कभी न रुकने वाला शो..
 





तुम जो बिच्छू हो तुम्हारे पास डंक ही एक मात्र विकल्प


साभार: हिंदी-लतीफ़े
अक्सर
खुद से पूछता हूं
एक हारी देह लेकर
अब तक ज़िंदा क्यों हूं..?
खुद से पूछने का मतलब है
कि -"शायद अब कोई निर्णय लेना है"
मुझे खुल के कुछ कह देना है ..!!
पर नि:शब्द हो जाता हूं ..
तुम्हैं देखकर...
तुम जो मुझे
ग़लत साबित कर खुद से कभी नहीं पूछते
कुछ भी...!!
आज़ भी षड़यंत्रों की बू आई थी
तुम्हारे कथन से
तुम जो
थकते नही हो
गलीच आचरण से..
चलो ठीक है ..
मैंने भी बहते हुए बिच्छूओं को बचाने का लिया है संकल्प..
तुम जो बिच्छू हो तुम्हारे पास डंक ही एक मात्र विकल्प

27.5.12

एक वसीयत : अंतिम यात्रा में चुगलखोरों को मत आने देना

साभार in.com
एक बार दिन भर लोंगों की चुगलियों से त्रस्त होकर एक आदमी बहुत परेशान था. करता भी क्या किससे लड़ता झगड़ता उसने सोचा कि चलो इस तनाव से मुक्ति के लिये एक वसीयत लिखे देता हूं सोचते सोचते कागज़ कलम उठा भी ली कि बच्चों की फ़रमाइश के आगे नि:शब्द यंत्रवत मुस्कुराता हुआ निकल पड़ा बाज़ार से आइसक्रीम लेने . खा पी कर बिस्तर पर निढाल हुआ तो जाने कब आंख की पलकें एक दूसरे से कब लिपट-चिपट गईं उस मालूम न हो सका. गहरी नींद दिन भर की भली-बुरी स्मृतियों का चलचित्र दिखाती है जिसे आप स्वप्न कहते हैं .. है न..?
   आज  वह आदमी स्वप्न में खुद को अपनी वसीयत लिखता महसूस करता है. अपने स्वजनों को संबोधित करते हुये उसने अपनी वसीयत में लिखा
मेरे प्रिय आत्मिन
 सादर-हरि स्मरण एवम असीम स्नेह ,
                   आप तो जानते हो न कि मुझे कितने कौए कोस रहे हैं . कोसना उनका धर्म हैं .. और न मरना मेरा.. सच ही कहा है किसी ने कि -"कौए के कोसे ढोर मरता नहीं है..!"ढोर हूं तो मरना सहज सरल नहीं है. उमर पूरी होते ही मरूंगा.मरने के बाद अपने पीछे क्या छोड़ना है ये कई दिनौं से तय करने की कोशिश में था तय नहीं कर पा रहा था. पर अब तय कर लिया है कि एक वसीयत लिखूं उसे अपने पीछे छोड़ जाऊं . इस वसीयत के अंतिम भाग में  उन सबके नाम उजागर करूं जो दुनियां में चुगलखोरी के के क्षेत्र में  निष्णात हैं.
             प्रिय आत्मिनों..! ऐसे महान व्यक्तित्वों को मेरी शव-यात्रा में आने न देना.. चाहे चोरों को बुलाना, डाकूओं को भी गिरहकटों को हां उनको भी बुला लेना.. आएं तो रोकना मत . बेचारों ने क्या बिगाड़ा किसी का. अपने पापी पेट के कारण अवश्य अपराधी हैं ... इनमें से कोई बाल्मीकी बन सकता है पर चुगलखोर .. न उनको मेरी शव-यात्रा में न आने देना.
                                                                                                                          तुम्हारा ही
                                                                                                                            "मुकुल "
    इन पंक्तियों के लिखे जाने के बाद उस  स्वप्न दर्शी ने महसूस किया कि एक दैत्य उसके समक्ष खड़ा है. दैत्य को देख उसको अपने कई गहरे दोस्त याद आए.दैत्य से बचाव के लिये जिसे पुकारने भी  कोशिश करता तुरंत उसी मित्र का भयावह चेहरा स्वप्न-दर्शी को दैत्य में दिखाई देता.. अकुलाहट घबराहट में उसे महसूस हुआ कि वो मर गया ..
                        खुद के पार्थिव शरीर को देख रहा था. बहुतेरी रोने धोने की आवाज़ें महसूस भी कीं.. मर जो गया था किसी से कुछ न कह पा रहा था.किसी को ढांढस तक न बंधा सका.
        अपनी देह को अर्थी में कसा देखा उसने. परिजन दिख रहे थी. पर मित्र........ गायब थे.. अचानक उसके सामने वही दैत्य प्रगट हुआ. दैत्य ने पूछा-"क्या, मर कर भी चिंता मग्न हो..!"
स्वप्नदर्शी:-”हां, मेरे अभिन्न मित्र गायब हैं..?"
दैत्य :-"मैने सबको रोक दिया वे चुगलखोरी के अपराध में लिप्त थे न.. तुम्हारी वसीयत के मुताबिक़ वे तुम्हारी शव-यात्रा से वंचित ही रहेंगें.."
                     स्वपनदर्शी को अपनी वसीयत पर गहरा अफ़सोस हुआ.. रो पड़ा तभी पत्नी ने उसके मुंह से निकलती अजीबो-गरीब आवाज़ सुन कर जगाया.. क्या हुआ तुम्हैं ...?
 नींद से जागा वो वास्तव में जाग चुका था............ अपनी वसीयत लिखने की इच्छा खत्म कर दी.. दोस्तों ये ही आज़ की सच्चाई..
   सूचना 
इस आलेख के सभी पात्र एवम स्थान काल्पनिक हैं इनका किसी भी जीवित मृत व्यक्ति से कोई सम्बंध नहीं.. यदि ऐसा पाया जाता है तो एक संयोग मात्र होगा 
भवदीय:गिरीश बिल्लोरे मुकुल

21.5.12

बिजली दफ़्तर वाला बाबू जो रोटी के अलावा गाली भी खाता है..

                       दीक्षित जी के लबों पर मातृभग्नि अलंकरण यूं बसते हैं गोया किसी सर्वग्य विप्र के मुंह में वेद मंत्र. दीक्षित जी एकता नगर के निवासी श्रीमन दीक्षित जी के रहते मुहल्ले की एकता कभी भंग नहीं होती. आठ-दस आवारा किस्म के लौंडे-लपाड़ियों का झुण्ड विप्रवर के इर्द-गिर्द हुआ करता है. कारण कि कभी कभार भाई "अद्धा-पौआ" की भेंट दे देते हैं. अब बताएं... इन लड़कों को अगर मुफ़्त में वो मिल जाए जिसकी वज़ह से ग़ालिब मशहूर शायर हुए. अब इन मुस्टण्डों को दीक्षित साहब को बकौल ग़ालिब 
"एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब .देना ही है न . तो क्या देंगे  ?" लिहाज़ा हज़ूर का जिस वक़्त आदेश हुआ सेना कूच कर देती. मुए इतनी बात अपने मां-बाप की मानते तो यक़ीनन अब तक किसी रईसजादे के दामाद होते. अब आप इन मयकशों को बुरा न कहिये चचा ग़ालिब कह ही चुके हैं 
""ग़ालिब" बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे
ऐसा भी कोई है के सब अच्छा कहें जिसे"
    मेरी नज़र से देखिये इनकी हैसियत मालवीय-चौक पे घूमते उस सांड़ से कमतर नहीं जिसके जिस्म के दक्षिणावर्त्य में त्रिशूल का निशान नज़र आता है. ऐसी ही फ़ौज़ लेकर घूमते अपने दीक्षित जी सुरा के नशे में जब घर पहुंचे तो बीवी बच्चों को बिना बिजली के अधजगे पाया बस जाग उठा इनका पौरुष .
पूछा ही होगा-"कम्लैंट कर दी "
हां,
कब ..?
दस बजे
अच्छा सालों ने अभी तक नहीं सुधारी और बस फ़िर क्या था खूते की तलाश थी ही मुसटंडों को गुहारा जा पहुंचे बिजली दफ़्तर 
       हां तो भाईयो रात 1:22 बजे हमे भी बंद बिजली चालू कराने बिजली दफ़्तर में  फ़ोन लगाया था. उधर से  आवाज़ आई जी साहब बताएं..
इधर से हम बोले-"भाई, पोल नम्बर X-35.."
उधर से वो बोला-"सा’ब, स्टाफ़ निकल चुका है, अंसारी साब को भी बता दिया है "
इधर से हम-"अंसारी कौन है बिजली दुरुस्त करेगा क्या..?"
उधर से वो बोला-"सा’ब हमारा अफ़सर है उसका नम्बर लीजिये.."
इधर से हम-"हम क्या करेंगें..!"
उधर से वो-  "तो साब जितना मेरा काम था कर दिया बाक़ी अंसारी साब जाने "
          अच्छा फ़ोन नम्बर दो देखूं तुम्हारे अंसारी क्या जानते हैं. खुशी खुशी नम्बर देकर मुझसे पिंड छुड़ा ही रहा था कि एक दानवी आवाज़ जिसका हर दूसरा शब्द बिजली वालों की मां-बहन के खिलाफ़ था . बहुत बुरा लग रहा था मुझे सो मैने पूछा- ये कौन है..?
उधर से वो बोला एक उपभोक्ताजी हैं इनकी बिजली बंद है सो यहां गाली-गलौच कर रहें हैं. हमारी मां-बहन ... दूसरी ओर से आवाज़ आई.. "तेरी.. तो..चौबे  किससे बतिया रहा है ला मुझसे बात करा.. "
       छीन ही लिया होगा उसने फ़ोन और फ़िर  फ़ोन पर चीख चीख के बिजली उस बिजली दफ़्तर से लेकर मुख्यालय तक को ये सोच के गरिया रहा था गोया कि दूसरी ओर से फ़ोन सुनने वाले हम यानी इस लेख के लेखक बिजली कम्पनी के प्रवक़्ता हों.
इधर से हम बोले-"भाई हम भी शिकायत ही दर्ज़ करा रहें हैं "
उधर से वो-"स्साले तुम जैसे आराम तलब लोगों की वज़ह से ही बिजली वाले गर्राए हैं  आओ मिल के इनकी.?"
         उसने फ़ोन फ़टाक से रख दिया बहुत देर तक बिजली न आने की वज़ह से हमने फ़िर से फ़ोन लगाया अब हमको मालूम था चौबे बाबू फ़ोन उठाएंगे .
निहायत अफ़सराना अंदाज़ में हम बोले-"चौबे........... क्या हुआ   पोल नम्बर X-35 का..
उधर से चौबे- ”सर, टीम वापस आ गई है, बता रहें हैं केबिल बर्स्ट हुआ है दिन में ही लगेगा”
इधर से हम-भई, तुम लोग पुलिस को क्यों नही बुलाते कौन था वो गंदी गंदी गालियां दे रहा था..?
 हवलदार: साब बिजली दफ़्तर से अब स्टाफ़ फ़ोन नहीं करता
  इंस्पेक्टर :  काहे करेगा- हम समझा आएं हैं..हमको बुलवाया 
तो फ़िर पिटोगे बेहतर है कि गाली से उत्तेजित न होना 
साभार :JNI सुल्तानपुर

 उधर से चौबे-सा’ब वो एकता नगर वाले दीक्षित जी हैं कुछ लड़कों के साथ आए थे. पुलिस भी क्या करेगी हमको तो रोज़ ड्यूटी पे आना है.
रात भर गर्मी से निज़ात पाने जागता जागता सोच रहा था कितने स्वार्थी हैं हम जो किसी निरीह को गरियाते हैं हैं उसकी मां-बहन के खिलाफ़ अश्लील सम्बोधन करते हैं कहां गया हमारा विप्रत्व क्या इसी दिन के लिये हम आज़ाद हुए थे . मन तो करता है तुम्हारे साथ वही सलूक किया जाए पर न न मुझे तुम्हारी मां-बहन के प्रति उतनी ही श्रद्धा है दीक्षित जी जितनी अपनी . एक बार सोचो कि बिजली दफ़्तर के मज़बूर बाबू की जगह तुम होते और कोई तुम्हारे साथ ऐसा हादसा घटित करता तब.. ?



सूचना 
इस आलेख के सभी पात्र एवम स्थान काल्पनिक हैंइनका किसी भी जीवित मृत व्यक्ति से कोई सम्बंध नहीं.. यदि ऐसा पाया जाता है तो एक संयोग मात्र होगा 
भवदीय:गिरीश बिल्लोरे मुकुल

20.5.12

रवींद्र प्रभात वार्ता से वार्ता : मिसफ़िट : सीधीबात पर








एक ऐसी ई-पत्रिका जिसमें  आप साहित्य ,
संस्कृति और सरोकार से एकसाथ रूबरू होते हैं .
 जहां आपकी सदिच्छा के अनुरूप सामग्रियां मिलती है.
 जो आपकी सृजनात्कता को 
पूरे विश्व की सृजनात्मकता से जोड़ने को सदैब प्रतिबद्ध रहती है.             



Free live streaming by Ustream

17.5.12

एक हैलो से हिलते लोग..!!

छवि साभार : समय लाइव
    उस वाले  मुहल्ले में अकेला रहने वाला वह बूढ़ा रिटायर्ड अफ़सर .मुझे सुना दिया करता था.अपना अतीत..बेचारा मारे ईमानदारी सबसे खुल्लम-खुला पंगे लेता रहा ईमानदार होने के कई नुकसान होते हैं.  
फ़ूला यानी उसकी  सतफ़ेरी बीवी कई बार उसे समझा चुकी थी कि -”अब, क्या करूं तुम पे ईमानदारी का भूत सवार है बच्चों का क्या होगा गिनी-घुटी पगार में कुछ किया करो...!  पर बीवी का भी कहा न माना . बार बार के तबादलों से हैरान था. एक पोस्ट  पे बैठा बैठा रिटायर हो गया. भगवान के द्वारे पर न्याय का विश्वासी  उसे अपने जीवन काल में कभी न्याय मिला हो उसे याद नहीं भगवान की अदालत का इंतज़ार करता वो वाक़ई कितना धैर्यवान दिखता है अब जो बात बात पे उलझा करता था .                

               सात बच्चों का बाप आज़ औलादों से कोसा जा रहा है-"वर्मा जी भी तो बाप हैं उनके भी तो आपसे ज़्यादा औलादें थीं सब एक से बढ़कर एक ओहदेदार हैं..एक तुम थे कि ढंग से हायरसेकंड्री भी न पढ़ा पाए..वो तो नाना जी न होते तो .!" फ़ूला के मरने के बाद एक एक कर औलादों ने  बाप से विदा ली. वार त्यौहार बच्चों की आमद होती तो है ऐसी आमद जिसके पीछे  बच्चों का लोकाचार छिपा होता है. बूढ़े को लगता है कि घर में उसके औलादें नहीं बल्कि औलादों की मज़बूरियां आतीं हैं.
           अस्सी बरस की देह ज़रा अवस्था की वज़ह से ज़र्ज़र ज़रूर थी पर चेहरा वाह अदभुत आभा मय सच कितना अच्छा दीप्तिमान चेहरा चोरों के चेहरे चमकते नहीं वो चोर न था लुटेरा भी नहीं एथिक्स और सीमाओं की परवाह करने वाला रिटायर्ड बूढ़ा आदमी दुनियां से नाराज़ भी नहीं दिखा कभी होता भी किस वज़ह से उसकी ज़िंदगी को जीने की एक वज़ह थी हर ऊलज़लूल स्थिति से समझौता न करने की प्रवृत्ति . और यही बात इंसान को पुख्ता बनाती है. दफ़्तर से बच्चों के लिये स्टेशनरी न चुराने वाला हर हस्ताक्षर की क़ीमत न वसूलने वाला व्यवस्था से लगातार जूझता रहा. किसी भी हैल्लो पर न हिलने वाले बुज़ुर्ग ने बताया था – क्या बताएं.. एक बार आला अफ़सर से उसके तुगलक़ी फ़रमान को मानने इंकार करने की सज़ा भोगी सड़ता चला गया एक ही ओहदे पर वरना आज मैं “….” होता…!
मैने पूछा-’दादा, क्या हुआ था..?’
वो-“कुछ नहीं मैनें उसे कह दिया था.. बेवज़ह न दबाओ साहब, मैं मैं हूं आप नहीं हूं जो एक हैलो से हिल जाऊं..!
-मैं-“फ़िर..?”
वो-“फ़िर क्या, बस नतीज़ा मेरा रास्ते लगातार बंद होने लगे कुछ दिन बिना नौकरी के रहा फ़िर आया तो माथे पे कलंक का टीका कि ये.. अपचारी है..?”
 आज़ वो बूढ़ा मुझे अखबार के निधन वाले कालम में मिला “श्री.. का दु:खद दिनांक .. को हो गया है. उनकी अंतिम-यात्रा उनके निवास से प्रात: साढ़े दस बजे ग्वारीघाट के लिये प्रस्थान करेगी-शोकाकुल- अमुक, अमुक, तमुक तमुक.. ..कुल मिला कर पूरी खानदान लिस्ट ..”
 ड्रायवर चलो आज़ आफ़िस बाद में जाएंगें पहले ग्वारीघाट चलें. रास्ते से एक माला खरीदी . शव ट्रक से उतारा गया मैने माला चढ़ाई चरण-स्पर्श किया बिना इस क़ानून की परवाह किये लौट आया कि दाह-संस्कार के बाद वापस आना है. सीधे दफ़्तर आ गया .
  ड्रायवर बार बार मुझे देख रहा था कि मैं आज़ स्नान के लिये घर क्यों नहीं जा रहा हूं…अब आप ही  बताएं किसी पवित्र निष्प्राण को स्पर्श कर क्या नहाना ज़रूरी है..?

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...