"फ़िज़ूल का रोना धोना छोड़ो.. पहले देश के हालात सुधारो फ़िर रोकना हमें..!!"
हज़ूर की शान में कमी आते ही हज़ूर मातहओं को कौआ बना देने में भी कोई हर्ज़ महसूस नहीं करते. मार भी देते हैं लटका भी देते हैं .. सच कितनी बौनी सोच लेकर जीते हैं तंत्र के तांत्रिक .जब भी जवाव देही आती है सामने तो झट अपने आप को आक्रामक स्वरूप देते तंत्र के तांत्रिक बहुधा अपने से नीचे वाले के खिलाफ़ दमन चक्र चला देते हैं. कल ही की बात है एक अफ़सर अपने मातहतों से खफ़ा हो गया उसके खफ़ा होने की मूल वज़ह ये न थी कि मातहत क्लर्कों ने काम नहीं किया वज़ह ये थी कि वह खुद पत्र लिखने में नाक़ामयाब रहा. और नाकामी की खीज़ उसने अपने मातहतों को गरिया के निकाली. नया नया तो न था पर खेला खाया कम था पत्रकारों ने घेर लिया खूब खरी खोटी सुनाई उसे . शाम खराब हो गई होगी उसकी ..अगली-सुबह क्लर्क को बुलाया आर्डर टाइप कराया एक मातहत निलम्बित. दोपहर फ़ोन लगा लगा के पत्रकारों को सूचित करने लगा-”भाई साहब एक कौआ मार दिया है.. कल से व्यवस्था सुधर जाएगी..!” फ़ोन सुन कर एक पत्रकार बुदबुदाया -”"स्साला कल से स्वर्ग बन जाएगा शहर लगता है..!” Mikiki Foot