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फिलीस्तीनियों के "वापसी के अधिकार" को समाप्त करना

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डैनियल पाइप्स 1967 से 1993 के मध्य पश्चिमी तट या गाजा से कुछ सैकडों की संख्या में ही फिलीस्तीनियों ने इजरायली अरब लोगों से विवाह कर (जो कि इजरायल की कुल जनसंख्या का पाँचवा भाग हैं) और इजरायल की नागरिकता प्राप्त कर इजरायल में निवास करने के अधिकार को प्राप्त किया। इसके बाद ओस्लो समझौते ने कम चर्चित परिवार पुनर्मिलन प्रावधानों के द्वारा इस छोटी सी धारा को एक नदी में परिवर्तित कर दिया। 1994 से 2002 के मध्य फिलीस्तीन अथारिटी के 137,000 निवासी इजरायल में आ चुके हैं और उनमें से अनेक छल और बहुविवाह में संलिप्त हैं। इजरायल के समक्ष दो कारण हैं जिसके चलते उसे इस अनियंत्रित आप्रवास से चिंतित होना चाहिये। पहला, यह सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न करता है। शिन बेट सुरक्षा सेवा के प्रमुख युवाल दिस्किन ने 2005 में ध्यान दिलाया था कि आतंक की गतिविधियों में लिप्त पाये गये 225 इजरायली अरब में से 25 जो कि 11 प्रतिशत है अवैध रूप से परिवार पुनर्मिलन प्रावधानों के तहत इजरायल में प्रविष्ट हुए थे। वे 19 इजरायलियों को मारने आये और 83 को घायल किया और उनमें से सबसे अधिक दुष्ट शादी तुबासी था जिसने कि 2002

कविता और गीत : गिरीश बिल्लोरे मुकुल

कविता "विषय '', जो उगलतें हों विष उन्हें भूल  अमृत बूंदों को उगलते कभी नर्म मुलायम बिस्तर से सहज ही सम्हलते विषयों पर चर्चा करें अपने "दिमाग" में कुछ बूँदें भरें ! विषय जो रंग भाषा की जाति गढ़तें हैं ........! वो जो अनलिखा पढ़तें हैं ... चाहतें हैं उनको हम भूल जाएँ किंतु क्यों तुम बेवज़ह मुझे मिलवाते हो इन विषयों से .... तुम जो बोलते हो इस लिए कि तुम्हारे पास जीभ-तालू-शब्द-अर्थ-सन्दर्भ हैं और हाँ  तुम अस्तित्व के लिए बोलते हो- इस लिए नहीं कि  तुम मेरे शुभ चिन्तक हो ।   शुभ चिन्तक  रोज़ रोटी  चैन की नींद !! गीत:- अनचेते अमलतास नन्हें कतिपय पलाश। रेणु सने शिशुओं-सी नयनों में लिए आस।। अनचेते चेतेंगें सावन में नन्हें इतराएँगे आँगन में पालो दोनों को ढँक दामन में। आँगन अरु उपवन के ये उजास। ख़्वाबों में हम सबके बचपन भी उपवन भी। मानस में हम सबके अवगुंठित चिंतन भी। हम सब खोजते स्वप्नों के नित विकास।। मौसम जब बदलें तो पूत अरु पलाश की देखभाल तेज़ हुई साथ अमलतास की आओ सम्हालें इन्हें ये तो अपने न्यास।।

कुछ तो है दुनिया में अच्छा..क्या हर तरफ़ बुराई है ?

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हम कह दें वो अफ़साने और तुम कहदो तो सच्चाई बोल बोल के  झूठ इस तरह शोहरत तुमने पाई है ...!! **************** जैसा देखा इंसा सनमुख वैसी बात कहा करते हो लगता है गिरगिट को घर में मीत सदा रक्खा करते हो बात मेरी बिखरे आखर हैं और तुम्हारी रूबाई है...!!     बोल बोल के  झूठ इस तरह शोहरत तुमने पाई है ...!! **************** मन चाहा लिक्खा करते हो मनमाना नित बोल रहे हो चिंतन हीन मलिन चेहरे को  लेके इत उत डोल रहे हो कुछ तो है दुनिया में अच्छा..क्या हर तरफ़ बुराई है ?     बोल बोल के  झूठ इस तरह शोहरत तुमने पाई है ...!! *****************

तू चाहे मान ले भगवान किसी को भी हमने तो पत्थरों में भगवान पा लिया !!

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उनको यक़ीन हो कि न हो हैं हम तो बेक़रार चुभती हवा रुकेगी क्या कंबल है तारतार !! मंहगा हुआ बाज़ार औ’जाड़ा है इस क़दर- हमने किया है रात भर सूरज का इंतज़ार.!! हाक़िम ने  फ़ुटपाथ पे आ बेदख़ल किया - औरों की तरह हमने भी डेरा बदल दिया ! सुनतें हैं कि  सरकार कल शाम आएंगें- जलते हुए सवालों से जाड़ा मिटाएंगें ! हाक़िम से कह दूं सोचा था कि सरकार से कहे मुद्दे हैं बहुत उनको को ही वो तापते रहें....! लकड़ी कहां है आपतो - मुद्दे जलाईये जाड़ों से मरे जिस्मों की गिनती छिपाईये..!!  जी आज़ ही सूरज ने मुझको बता दिया कल धूप तेज़ होगी ये  वादा सुना दिया ! तू चाहे मान ले भगवान किसी को भी हमने तो पत्थरों में भगवान पा लिया !!  कहता हूं कि मेरे नाम पे आंसू गिराना मत  फ़ुटपाथ के कुत्तों से मेरा नाता छुड़ाना मत  उससे ही लिपट के सच कुछ देर सोया था- ज़हर का बिस्किट उसको खिलाना मत !!

तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय हिंदी उत्सव का सम्मान समारोह के साथ समापन

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तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय हिंदी उत्सव का दिनांक 12 जनवरी को सम्मान समारोह के साथ समापन हुआ जिसमें प्रसिद्द साहित्यकार कुंवर नारायण द्वारा देश – विदेश के हिंदी साहित्यकारों , विद्वानों को सम्मानित किया गया । इनमें भारत मे बल्गारिया के राजदूत श्री  कोस्तोव, प्रसिद्ध लेखिका चित्रा मुद्गल, प्रसिद्ध शायर शीन काफ निज़ाम, इटली के प्रो. श्याम मनोहर पांडेय,  प्रवासी साहित्यकार  उषा राजे सक्सेना, ( ब्रिटेन) शैल अग्रवाल,( ब्रिटेन) अनिता कपूर ( अमरीका), दीपक मशाल, ( उतरी आयरलेंड) स्नेह ठाकुर ( कनाडा) कैलाश पंत, महेश शर्मा, विमला सहदेव को पुरस्कार प्रदान किया गया। सम्मान प्रदान करते हुए श्री कुंवर नारायण ने कहा कि भाषा और साहित्य के क्षेत्र में गहन अध्ध्यन और शोध की आवश्यकता है। उन्होंने मध्यकाल में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा भारतीय ज्ञान को एशिया और दूरस्थ देशों में ले जाने को प्रेरणा का स्रोत बताया। उन्होंने  पुस्तकें ले जाते बोद्ध भिक्षुओं को  संस्कृति का वाहक बताया। उन्होने सम्मान विजेताओं को पुरस्कार देते हुए कहा कि उनकी हिदी के प्रति निष्ठा और समर्पण की सराहना की । रत्नाकर पांडेय ने इस अवसर

नाई के नौकर की समयबद्धता और और भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार..

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                                                   बिना शेव चेहरा जाहिल गवांरपने से लबालब होना साबित करता है पर गुरुवार घर में सेव करने की सख्त पाबंदी के चलते आफ़िस जाने से पहले यादव कालोनी के  श्रेष्ठ सैलून चोरी से पर जाना लाज़िमी था  सो चले गये. धर्म भीरू हम मन ही मन भगवान की प्रार्थना करते निकल पड़े ड्रायवर बोला -सा’ब, आफ़िस..? न, ज़रा यादव कालोनी होके चलतें आफ़िस शेविंग कराके ही जाऊंगा. डर था कि  चपरासी समुदाय और बाबू साहबान क्या सोचेंगे.बोलेंगे भी. आज़ बिल्लोरे जी को तो देखो कैसे दिख रए हैं..बस इसी इकलौते भय से  भगवान को मन ही मन सैट किया और सैलून में जा घुसे.. दो बंदे एक मालिक दूसरा उसका कर्मचारी बाक़ायदा अभिवादन की औपचारिकता के साथ खाली कुर्सी पे बैठने का आग्रह करते नज़र आये.मेरी शेविंग के लिये दौनों में अबोला काम्पीटिशन चल पड़ा मालिक ने तेज़ आवाज़ में चल रहे  टी.वी. को कम करने की हिदायत मातहत को दी घर से हनुमान चालीसा पाठ बांचने के बाद " कोलावरी-डी " बहुत सुकू़न से सुनने की तमन्ना तो भी मैने शराफ़त और सदाचारी होने का अभिनय किया. कर्मचारी को दूसरे काम में लगा

नन्हां दिन जाड़े का

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मेरा ट्रेनिंग कालेज  जनवरी-दिसंबर 1996 की यादें आज ताज़ा हो आईं .नौकरी में ट्रेनिंग की ज़रूरी रस्म के लिये  लखनऊ के  गुड़म्म्बा गांव में हमें  ट्रेनिंग कालेज . ट्रेनिंग के लिये भेजा सरकारी फ़रमान का अनादर करना हमारे लिये नामुमकिन था. सो निकल पड़े . जाते वक़्त ये याद न रहा कि उत्तर भारत में गज़ब जाड़ा पड़ता है.  सुईयां चुभोती शीतलहर और उत्तर भारत के जाड़े का एहसास मेरे लिये बिलकुल नया था सच इतनी सर्दी से मुक़ाबले का मौका मेरे लिये पहला ही था.    इतनी सर्दी कि शरीर को गर्म रखना मेरे लिये एक भारी आफ़त का काम था. वो लोग जिनको जाड़ा जाड़ा महसूस न होता उनको देखना मेरे लिये अचम्भे की बात थी.जाड़ा तो जबलपुर में भी गज़ब होता है पर हिमालय को चूम के आने वाली हवाएं बेशक हड्डियों तक को बाहर पडे़ लोहे के सरिये की तरह ठण्डी जातीं थी वहां.उस दिन जब मेरा सब्र टूट गया तब मित्र ने कहा भाई कुछ लेते क्यों नहीं..?     उस रविवार लखनऊ घूमने की गरज़ से हम दोस्त विक्रम पे सवार हो निकल पड़े खूब पैदल घूमें चिकन के कपड़े खरीदे सोचा रिक्शे की सवारी कर लें जबलपुरिया रिक्शों से अलग लखनवी रिक्शे छ