15.11.11

हां मुझ में मै ही रचा बसा हूं

जो दर्द पीकर सुबक न पाया 
वो जिसने आंसू नहीं बहाया .
उसी की ताक़त  से हूं मैं ज़िंदा
उसी ने मुझमें है घर बनाया.
न जाने है कौन वो  जो मुझमे
बसा हुआ है रचा हुआ है...
क़दम मेरे जो डगमगाए 
सम्हाल मुझको वो पथ सुझाए 
हां मुझ में मै ही रचा बसा हूं
तभी तो खुद ही सधा सधा हूं
किसी में खुद की तलाश क्योंकर
मैं खुद ही खुद का खुदा हुआ हूं 
मैं रंग गिरगिट सा नहीं बदलता
मैं हौसलों से पुता हुआ हूं









13.11.11

लोकरंग का सार्थक आयोजन

                   शनिवार दिनांक 12 नवम्बर 2011 को सरस्वतिघाट भेड़ाघाट में   जिला पंचायत अध्यक्ष भारत सिंह यादव,के मुख्य-आतिथ्य, एवम श्री अशोक रोहाणी,पूर्व-सांसद पं.रामनरेश त्रिपाठी,नगर-पंचायत अध्यक्ष श्री दिलीप राय,पूर्व-महापौर सुश्री कल्याणी पाण्डेय के विशिष्ठ आतिथ्य  में आयोजित लोकरंग का शुभारंभ मां नर्मदा एवम सरस्वती पूजन-अर्चन के साथ हुआ .
      इस अवसर पर विचार रखते हुए श्री भारत सिंह यादव ने कहा –“लोक-कलाओं के संरक्षण के लिये ऐसे आयोजन बेहद आवश्यक हैं मेला-संस्कृति के पोषण के लिये भी कम महत्व पूर्ण नहीं हैं ऐसे आयोजन. सरस्वतिघाट पर हो रहे ऐसे आयोजन के आयोजन एवम प्रायोजक दौनों ही साधुवाद के पात्र हैं”.
 पूर्व सांसद श्री रामनरेश त्रिपाठी ने कहा –“मोक्षदायिनी मां नर्मदा के तट पर मां नर्मदा का यशोगान बेशक स्तुत्य पहल है विग्यान के नियमों को उलट देने वाली मां नर्मदा का तट पर आयोजित लोकरंग एक सार्थक-पहल है जिसके साक्षी बन कर हम हितिहास का एक हिस्सा बन रहे हैं.”
 सुश्री कल्याणी पाण्डेय के अनुसार-“ जहां एक ओर मां नर्मदा के तट पर अध्यात्म, संस्कृति को बढ़ावा मिला वहीं पुण्य-सलिला के तट पर अकाल, महामारियों को कोई स्थान नहीं ”
      लोकरंग के प्राम्भिक चरण में डा० नीलेश जैन,नारायण चौधरी, भूपेंद्र सिंह , की उपस्थिति   उल्लेखनीय है.
ग्रामीणों की नज़र मे आयोजन :-
 लोकरंग पर अपनी प्रतिक्रिया पिपरिया निवासी संतोष मल्लाह की प्रतिक्रिया थी “देहात के लाने जो कार्यक्रम ऐंसो लगो जैसों हमाओ कार्यक्रम है.”
सुनाचर निवासी परसुराम विश्वकर्मा की राय थी -“जे लोकगीत हमाई गांव की परम्परा है. हमाए लाने जो कछु करौ बहुतई अच्छौ लगो..”
हल्ला गुल्ला वारे कार्यक्रम तो सब करात हैं हमाए लाने हमाओ कार्यक्रम पहली बार भओ अच्छो लगो भैया ... ये विचार थे झिन्ना निवासी दमड़ी लाल चौधरी के. इसी तरह किशोर दुबे, राजाराम सेन, मनोज जैन, सुरेश तिवारी, धवल अग्रवाल, दीपांकर अग्रवाल, संटू पाल, लखन पटेल, राजू९ जैन, मुन्ना पटेल हनमत सिंह, गनपत तिवारी, मधुरा जैन, विपिन सिंह, बहादुर बर्मन बल्ली-रजक, सोनू श्रीवास्तव, आशीष जैन, चतुर पटैल, उमराव रज़क, अशोक उपाध्याय, भोजराज सिंह, संजय साहू, मोती पाठक , मनोज साहू आदी ने कार्यक्रम की मुक्त कण्ठ सराहना की.
कार्यक्रम के आयोजन में श्री विद्यासागर दुबे, नितिन अग्रवाल (मजीठा),वीरेंद्र गिरी (छेंड़ी) ,दिलीप अग्रवाल (भेड़ाघाट चौक),  एड.सम्पूर्ण तिवारी, गिरीष बिल्लोरे “मुकुल”,डा.लखन अग्रवाल, कंछेदीलाल जैन, महेश तिवारी,सुनील जैन, किशोर दुबे,धर्मेंद्र पुरी,सुरेश तिवारी, विद्यासागर दुबे, राजू जैन,मंजू जैन, संजय साहू, धीरेंद्र प्रताप सिंह, सुखराम पटेल,पं शारदा प्रसाद दुबे, धवल अग्रवाल,गनपत तिवारी,सुधीर शर्मा,सीता राम दुबे,चतुर सिंह पटेल, बल्ली रजक, के साथ क्षेत्रीय सरपंच देवेंद्र पटेल(बिलखरवा),हनुमत सिंह ठाकुर (बिल्हा),लखन पटेल(आमाहिनौता), जग्गो बाई गोंटिया(कूड़न)राजू पटेल (तेवर),डा०राजकुमार दुबे(बंधा),मुन्नाराज (सहजपुर),परसुराम पटेल(सिहौदा),जानकी अनिल पटेल(लामी) की महत्वपूर्ण  भूमिका थी.
छा गये दविंदर सिंह ग्रोवर
सुप्रसिद्ध रंगकर्मी दविंदर सिंह ग्रोवर की एका टीम ने जब लोकनृत्य की प्रस्तुति दी तब क्षेत्रीय जनता ने तालियों से सराहना की कारण था दविंदर का शुद्ध बुन्देली में  लोक गायन . नृत्य निर्देशक श्री दविंदर के हरेक प्रस्तुति में रिर्कार्डेड गीत रचना का प्रयोग नहीं किया गया.. वे स्वयं राई बम्बुलियां, बरेदी गीतों के बोल गा रहे थे. एक अहिंदी भाषी का शुध्द बुंदेली में प्रस्तुति करण पर खचाखच भरा जन सैलाब मोहित सा था.
फ़िल्मी गीत –संगीत पर आधारित एक भी प्रस्तुति नहीं
लोकरंग में एक भी ऐसी प्रस्तुति नहीं देखी गई जिसमें फ़िल्मी गीत संगीत का प्रभाव हो “एकजुट कला श्रम के श्री मनोज चौरसिया का कहना था- लोककलाओं से फ़िल्में हैं फ़िल्मों से लोककलाएं कदापि नहीं.
 बुंदेली-भाषा में संचालन
सम्पूर्ण तिवारी-मनीष अग्रवाल की जोड़ी द्वारा संचालित सम्पूर्ण  कार्यक्रम का संचालन बुंदेली में ही किया
मशहूर लोकगायक मिठाई लाल चक्रवर्ती ने बांधा समा
                       लोकगीतों के सरताज़ मशहूर लोकगायक मिठाई लाल चक्रवर्ती के गाए राई, फ़ाग, डिमरयाई, एवम लोकभजनों ने श्रोताओं का मन मोह लिया.
लाफ़्टर चैलेंज में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुके हास्य-कला कार श्री विनय जैन एवम मनीष जैन ने खूब हसांया बावज़ूद इसके कि उनकी एक किसी भी प्रस्तुति में फ़ूहड़ता एवम वल्गरिटी की झलक न थी कुल मिला कर  हास्य-प्रस्तियां स्तरीय रहीं

8.11.11

तेहरान के मुकाबले ईरानी लोगों को सशक्त करो : डैनियल पाइप्स


 डैनियल पाइप्स
नेशनल रिव्यू आनलाइन
19 जुलाई, 2011

पश्चिमी सरकारों को इस्लामिक रिपब्लिक आफ ईरान के साथ किस ढंग से कार्यव्यवहार करना चाहिये जिसे कि वाशिंगटन ने " आतंकवाद का सबसे सक्रिय राज्य प्रायोजक बताया है'?
ईरान की आक्रामकता 1979 में तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर कब्जे से आरम्भ हुई और इसके कुछ कर्मचारियों को कुल 444 दिनों तक बंधक बना कर रखा। इसके बाद हुए कुछ बडे आक्रमणों में 1983 में बेरूत में अमेरिकी दूतावास पर आक्रमण जिसमें 63 लोग मौत के घाट उतारे गये और अमेरिका की नौसेना बैरक पर आक्रमण जिसमें 241 लोग मारे गये।
अभी हाल में अमेरिका के रक्षा सचिव लिवोन पनेटा ने कहा, " हमें दिखाई दे रहा है कि इन हथियारों में से अधिकतर इराक के रास्ते ईरान को जा रहे हैं और यह निश्चित रूप से हमें क्षति पहुँचा रहा है" । संयुक्त चीफ आफ स्टाफ के अध्यक्ष माइक मुलेन ने इसमें और जोडा कि, " ईरान प्रत्यक्ष रूप से कट्टरपंथी शिया गुटों की सहायता कर रहा है जो कि हमारे सैनिकों को मार रहे हैं" ।
अमेरिका की प्रतिक्रिया मूल रूप से दो वर्ग में विभाजित है: कठोर और कूटनीतिक। पहले वर्ग का मानना है कि तेहरान अब सुधरने वाला नहीं है और टकराव तथा यहाँ तक कि बल प्रयोग की सलाह देता है; इसका अनुमान है कि कूटनीति, प्रतिबंध, कम्प्यूटर वाइरस और सैन्य आक्रमण की धमकी से मुल्लाओं को परमाणु शक्ति सम्पन्न होने से नहीं रोका जा सकता और इसका मानना है कि या तो शासन में परिवर्तन करवाया जाये या फिर ईरानी बम के विरुद्ध सैन्य विकल्प का प्रयोग किया जाये। दूसरी ओर कूटनीतिक वर्ग जो कि सामान्य तौर पर अमेरिका की नीतियों पर नियंत्रण रखती है इस्लामिक रिपब्लिक आफ ईरान के स्थायित्व को स्वीकार करता है और इस बात की अपेक्षा करता है कि तेहरान कूटनीतिक समझौते का समुचित उत्तर देगा।
इस पूरी बहस में सबसे बडा विवाद इस बात पर है कि ईरान के सबसे बडे विरोधी गुट मुजाहिदीने खल्क को अमेरिका सरकार की आतंकवादी सूची में रखा जाये या नहीं। कठोर वर्ग सामान्य रूप से 1965 में स्थापित एमईके को मुल्लाओं के विरुद्ध एक हथियार मानता है (हालाँकि कुछ थोडी संख्या विरोध में भी है) और इसे आतंकवादी सूची से ह्टाने का पक्षधर है। दूसरी ओर कूटनीतिक वर्ग का मानना है कि इसे सूची से हटाने से ईरानी नेता असंतुष्ट होंगे और कूटनीतिक प्रयासों को क्षति होगी साथ ही ईरानी लोगों तक पहुँच बनाने में कठिनाई होगी।
एमईके से सहानुभूति रखने वाले पक्ष का तर्क है कि एमईके का इतिहास वाशिंगटन के साथ सहयोग करने का, ईरानी परमाणु संयंत्र के सम्बंध में मह्त्वपूर्ण खुफिया सूचनायें प्रदान करने और इराक में ईरानी प्रयासों के सम्बंध में भी रणनीतिक खुफिया सूचनायें प्रदान करने का रहा है। इससे आगे जिस प्रकार इस संगठन और नेतृत्व की क्षमता की सहायता से 1979 में शाह के शासन को उलट दिया गया उसी प्रकार शासन में परिवर्तन के लिये इनकी क्षमताओं का उपयोग किया जा सकता है। सडक पर विरोध करने वालों को एमईके के साथ सहयोग के आरोप में गिरफ्तार किया जाना भी विरोध प्रदर्शन में इसकी भूमिका को सिद्ध करता है और साथ ही ये नारे भी कि सर्वोच्च नेता अली खोमैनी " अपराधी" हैं , राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद "तानाशाह" हैं और धार्मिक नेता के राज्य के प्रमुख होने के विरुद्ध नारे।
अमेरिका के अनेक उच्च अधिकरियों ने एमईके को आतंकवादी सूची से निकालने की बात की है इनमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ( जेम्स जोंस), संयुक्त चीफ आफ स्टाफ के तीन अध्यक्ष ( ह्यूज शेल्टन, रिचर्ड मेयर्स, पीटर पेस) , गृहभूमि सुरक्षा के सचिव ( टाम रिज) ,एक महान्यायवादी ( माइकल मुकासे) और आतंकवाद प्रतिरोध के राज्य समन्वयक ( डेल डेली) शामिल हैं। रिपब्लिक और डेमोक्रेट दोनों ही दलों के प्रभावी लोग इस पक्ष में हैं कि इस संगठन को आतंकवादी की सूची से निकाल दिया जाये और इस सूची में दलीय मर्यादा से परे कुल 80 कांग्रेस सदस्य शामिल हैं।
एमईके विरोधी वर्ग इस संगठन को सूची से निकाल दिये जाने के लाभ पर विचार किये बिना तर्क देता है कि अमेरिकी सरकार को आतंकवाद के आरोपों के आधार पर इसे सूची में बनाये रखना चाहिये। उनका इस संगठन को दोषी बनाने का आधार है कि 1970 में इस संगठन ने छ्ह अमेरिकी लोगों की हत्या की थी। वैसे ये आरोप सत्य हैं या नहीं लेकिन आतंकवादी सूची में शामिल करने के लिये आवश्यक है कि आतंकवादी घटना दो वर्ष से हो रही हो और इस आधार पर 1970 की बात करना अप्रासंगिक है।
पिछले दो वर्षों का क्या? एमईके का पक्ष लेने वालों का कहना है कि अमेरिका के आतंकवाद सम्बंधी तीन मुख्य डाटाबेस Rand Database of Worldwide Terrorism Incidents , the Global Terrorism Database और the Worldwide Incidents Tracking system के अनुसार एमईके वर्ष 2006 से पूरी तरह साफ सुथरा पाया गया है।
क्षमता और आशय की बात का क्या? राज्य विभाग की वर्ष 2006 की " Country Report on Terrorism" रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि यह संगठन आतंकवादी घटनाओं की " क्षमता और इच्छा" रखता है लेकिन वर्ष 2007, 2008 और वर्ष 2009 की रिपोर्ट में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है। ब्रिटेन में कोर्ट आफ अपील ने इसे गम्भीरता से नहीं लिया और इसे वर्ष 2008 में ब्रिटेन की आतंकवादी सूची से हटा दिया गया। यूरोपियन संघ ने वर्ष 2009 में इसे आतंकवाद के आरोप से मुक्तकर दिया। फ्रांस की न्यायपालिका ने भी इसके विरुद्ध आतंकवाद के आरोपों को मई 2011 में निरस्त कर दिया।
संक्षेप में, एमईके को आतंकवादी उपाधि देना आधारहीन है। अनेक न्यायालयों द्वारा एमईके की आतंकवादी उपाधि की पुनर्समीक्षा के बाद राज्य सचिव को अत्यंत शीघ्र ही यह सुनिश्चित करना चाहिये कि क्या इस सूची को आगे भी जारी रखना है? ओबामा प्रशासन एक सामान्य ह्स्ताक्षर से ईरानी लोगों को सशक्त कर सकता है कि वह अपने भाग्य पर बने नियंत्रण से बाहर आ सकें और शायद मुल्लाओं के परमाणु पागलपन से भी।
मौलिक अंग्रेजी सामग्री: Empower Iranians vs. Tehran
हिन्दी अनुवाद - अमिताभ त्रिपाठी

7.11.11

बेटी-बचाओ अभियान : वरिष्ट कवि मोहन शशि जी ने लिखी 587 पृष्ट लम्बी कविता "बेटे से बेटी भली "

जबलपुर के वरिष्ट रचनाकार साहित्यकार सोशल-एक्टीविस्ट एवम भास्कर जबलपुर के फ़ीचर-एडिटर  श्रीयुत मोहन "शशि" द्वारा लगातार हृदयाघातों के बावज़ूद बेटी के प्रति सामाजिक नकारात्मक्ता से मानसिक तौर पर विमुक्ति की के लक्ष्य को लेकर 587 पृष्ट लम्बी कविता "बेटे से बेटी भली " लिखी है.
मोहन शशि जी मध्य-प्रदेश की उसी मिलन संस्था के जनक हैं  जिस संस्था ने देश भर को एक सांस्कृतिक आंदोलन के लिये  दिशा दी थी.
शशि जी बातचीत का एक एपीसोड पेश है


शशि जी से  बैमबज़र पर एक भैंटवार्ता सुनिये


587 पृष्ठीय कविता जो मध्य-प्रदेश सरकार के बेटी-बचाओ अभियान का एक तरह से समर्थन है के लोकार्पण के पूर्व "मोहन शशि जी से  श्री विजय तिवारी किसलय की भेंटवार्ता" सुन सकते हैं .


 विस्तृत आलेख हिंदी साहित्य संगम पर अवश्य देखिये 

3.11.11

ठेस : रेणु


         कुछ न लिखने का मन कर रहा है.. कई कहानियों को नेट पर देख कर लगा कि कितने महान कथाकार थे वे जिनकी अभिव्यक्ति में सहज और सरल प्रवाह देखा जा सकता है. आज़ भी अक्सर उभर उभर कर कहतीं है ये कहानियां कि वाकई साहित्य के ये पुरोधा सैंत में कहलाए "पुरोधा "  आज़ रेणु की लिखी मेरी प्रिय कहानी "ठेस" पोस्ट के रूप में दे रहा हूं 
                खेती-बारी के समय, गाँव के किसान सिरचन की गिनती नहीं करते. लोग उसको बेकार ही नहीं, 'बेगार' समझते हैं. इसलिए, खेत-खलिहान की मजदूरी के लिए कोई नहीं बुलाने जाता है सिरचन को. क्या होगा, उसको बुलाकर? दूसरे मजदूर खेत पहुँच कर एक-तिहाई काम कर चुकेंगे, तब कहीं सिरचन राय हाथ में खुरपी डुलाता दिखाई पड़ेगा- पगडण्डी पर तौल तौल कर पाँव रखता हुआ, धीरे-धीरे. मुफ्त में मजदूरी देनी हो तो और बात है.
..
आज सिरचन को मुफ्तखोर, कामचोर या चटोर कह ले कोई. एक समय था, जबकि उसकी मड़ैया के पास बड़े-बड़े बाबू लोगो की सवारियाँ बंधी रहती थीं. उसे लोग पूछते ही नहीं थे, उसकी खुशामद भी करते थे. "..अरे, सिरचन भाई! अब तो तुम्हारे ही हाथ में यह कारीगरी रह गयी है सारे इलाके में. एक दिन भी समय निकालकरचलो. कल बड़े भैया की चिट्ठी आई है शहर से- सिरचन से एक जोड़ा चिक बनवा कर भेज दो.'
मुझे याद है.. मेरी माँ जब कभी सिरचन को बुलाने के लिए कहती, मैं पहले ही पूछ लेता, "भोग क्या क्या लगेगा?"
माँ हँस कर कहती, "जा- जा, बेचारा मेरे काम में पूजा-भोग की बात नहीं उठता कभी."
ब्राह्मणटोली के पंचानंद चौधरी के छोटे लड़के को एक बार मेरे सामने ही बेपानी कर दिया था सिरचन ने- "तुम्हारी भाभी नाखून से खांट कर तरकारी परोसती है. और इमली का रस साल कर कढ़ी तो हम कहार-कुम्हारों की घरवाली बनाती हैं. तुम्हारी भाभी ने कहाँ से बनायीं!"
इसलिए सिरचन को बुलाने से पहले मैं माँ को पूछ लेता..
सिरचन को देखते ही माँ हुलस कर कहती, "आओ सिरचन! आज नेनू मथ रही थी, तो तुम्हारी याद आई. घी की डाड़ी (खखोरन) के साथ चूड़ा तुमको बहुत पसंद है न... और बड़ी बेटी ने ससुराल से संवाद भेजा है, उसकी ननद रूठी हुई है, मोथी के शीतलपाटी के लिए."
सिरचन अपनी पनियायी जीभ को सम्हाल कर हँसता- "घी की सुगंध सूंघ कर आ रहा हूँ, काकी! नहीं तो इस शादी ब्याह के मौसम में दम मारने की भी छुट्टी कहाँ मिलती है?"
सिरचन जाति का कारीगर है. मैंने घंटो बैठ कर उसके काम करने के ढंग को देखा है. एक-एक मोथी और पटेर को हाथ में लेकर बड़े जातां से उसकी कुच्ची बनाता. फिर, कुच्चियों को रंगने से ले कर सुतली सुलझाने में पूरा दिन समाप्त... काम करते समय उसकी तन्मयता में ज़रा भी बाधा पड़ी कि गेंहुअन सांप की तरह फुफकार उठता- "फिर किसी दूसरे से करवा लीजिये काम. सिरचन मुंहजोर है, कामचोर नहीं."
बिना मजदूरी के पेट-भर भात पर काम करने वाला कारीगर. दूध में कोई मिठाई न मिले, तो कोई बात नहीं, किन्तु बात में ज़रा भी झाल वह नहीं बर्दाश्त कर सकता.
सिरचन को लोग चटोर भी समझते हैं... तली-बघारी हुई तरकारी, दही की कढ़ी, मलाई वाला दूध, इन सब का प्रबंध पहले कर लो, तब सिरचन को बुलाओ; दुम हिलाता हुआ हाज़िर हो जाएगा. खाने-पीने में चिकनायी की कमी हुई कि काम की सारी चिकनाई ख़त्म! काम अधूरा रखकर उठ खड़ा होगा- "आज तो अब अधकपाली दर्द से माथा टनटना रहा है. थोड़ा- सा रह गया है, किसी दिन आ कर पूरा कर दूँगा.".. "किसी दिन"- माने कभी नहीं!

मोथी घास और पटरे की रंगीन शीतलपाटी, बांस की तीलियों की झिलमिलाती चिक, सतरंगे डोर के मोढ़े, भूसी-चुन्नी रखने के लिए मूंज की रस्सी के बड़े-बड़े जाले, हलावाहों के लिए ताल के सूखे पत्तों की छतरी-टोपी तथा इसी तरह के बहुत-से काम हैं, जिन्हें सिरचन के सिवा गाँव में और कोई नहीं जानता. यह दूसरी बात है कि अब गाँव में ऐसे कामों को बेकाम का काम समझते हैं लोग- बेकाम का काम, जिसकी मजदूरी में अनाज या पैसे देने की कोई ज़रुरत नहीं. पेट-भर खिला दो, काम पूरा होने पर एकाध पुराना-धुराना कपडा दे कर विदा करो. वह कुछ भी नहीं बोलेगा...
कुछ भी नहीं बोलेगा, ऐसी बात नहीं.सिरचन को बुलाने वाले जानते हैं, सिरचन बात करने में भी कारीगर है... महाजन टोले के भज्जू महाजन की बेटी सिरचन की बात सुन कर तिलमिला उठी थी- ठहरो! मैं माँ से जा कर कहती हूँ. इतनी बड़ी बात!"
"
बड़ी बात ही है बिटिया! बड़े लोगों की बस बात ही बड़ी होती है. नहीं तो दो-दो पटेर की पटियों का काम सिर्फ खेसारी का सत्तू खिलाकर कोई करवाए भला? यह तुम्हारी माँ ही कर सकती है बबुनी!" सिरचन ने मुस्कुरा कर जवाब दिया था.
उस बार मेरी सबसे छोटी बहन की विदाई होने वाली थी. पहली बार ससुराल जा रही थी मानू. मानू के दूल्हे ने पहले ही बड़ी भाभी को ख़त लिख कर चेतावनी दे दी है- "मानू के साथ मिठाई की पतीली न आये, कोई बात नहीं. तीन जोड़ी फैशनेबल चिक और पटेर की दो शीतलपाटियों के बिना आएगी मानू तो..." भाभी ने हँस कर कहा, "बैरंग वापस!" इसलिए, एक सप्ताह से पहले से ही सिरचन को बुला कर काम पर तैनात करवा दिया था माँ ने- "देख सिरचन! इस बार नयी धोती दूँगी, असली मोहर छाप वाली धोती. मन लगा कर ऐसा काम करो कि देखने वाले देख कर देखते ही रह जाएँ."
पान-जैसी पतली छुरी से बांस की तीलियों और कमानियों को चिकनाता हुआ सिरचन अपने काम में लग गया. रंगीन सुतलियों से झब्बे डाल कर वह चिक बुनने बैठा. डेढ़ हाथ की बिनाई देख कर ही लोग समझ गए कि इस बार एकदम नए फैशन की चीज बन रही है, जो पहले कभी नहीं बनी.
मंझली भाभी से नहीं रहा गया, परदे के आड़ से बोली, "पहले ऐसा जानती कि मोहर छाप वाली धोती देने से ही अच्छी चीज बनती है तो भैया को खबर भेज देती."
काम में व्यस्त सिरचन के कानों में बात पड़ गयी. बोला, "मोहर छापवाली धोती के साथ रेशमी कुरता देने पर भी ऐसी चीज नहीं बनती बहुरिया. मानू दीदी काकी की सबसे छोटी बेटी है.. मानू दीदी का दूल्हा अफसर आदमी है."
मंझली भाभी का मुंह लटक गया. मेरे चाची ने फुसफुसा कर कहा, "किससे बात करती है बहू? मोहर छाप वाली धोती नहीं, मूँगिया-लड्डू. बेटी की विदाई के समय रोज मिठाई जो खाने को मिलेगी. देखती है न."
दूसरे दिन चिक की पहली पाँति में सात तारे जगमगा उठे, सात रंग के. सतभैया तारा! सिरचन जब काम में मगन होता है तो उसकी जीभ ज़रा बहार निकल आती है, होठ पर. अपने काम में मगन सिरचन को खाने-पीने की सुध नहीं रहती. चिक में सुतली के फंदे डाल कर अपने पास पड़े सूप पर निगाह डाली- चिउरा और गुड़ का एक सूखा ढेला. मैंने लक्ष्य किया, सिरचन की नाक के पास दो रेखाएं उभर आयीं. मैं दौड़ कर माँ के पास गया. "माँ, आज सिरचन को कलेवा किसने दिया है, सिर्फ चिउरा और गुड़?"
माँ रसोईघर में अन्दर पकवान आदि बनाने में व्यस्त थी. बोली, "मैं अकेली कहाँ-कहाँ क्या-क्या देखूं!.. अरी मंझली, सिरचन को बुँदिया क्यों नहीं देती?"
"
बुँदिया मैं नहीं खाता, काकी!" सिरचन के मुंह में चिउरा भरा हुआ था. गुड़ का ढेला सूप के किनारे पर पड़ा रहा, अछूता.
माँ की बोली सुनते ही मंझली भाभी की भौंहें तन गयीं. मुट्ठी भर बुँदिया सूप में फेंक कर चली गयी.
सिरचन ने पानी पी कर कहा, "मंझली बहूरानी अपने मैके से आई हुई मिठाई भी इसी तरह हाथ खोल कर बाँटती है क्या?"
बस, मंझली भाभी अपने कमरे में बैठकर रोने लगी. चाची ने माँ के पास जा कर लगाया- "छोटी जाति के आदमी का मुँह भी छोटा होता है. मुँह लगाने से सर पर चढ़ेगा ही... किसी के नैहर-ससुराल की बात क्यों करेगा वह?"
मंझली भाभी माँ की दुलारी बहू है. माँ तमक कर बाहर आई- "सिरचन, तुम काम करने आये हो, अपना काम करो. बहुओं से बतकुट्टी करने की क्या जरूरत? जिस चीज़ की ज़रुरत हो, मुझसे कहो."
सिरचन का मुँह लाल हो गया. उसने कोई जवाब नहीं दिया. बांस में टंगे हुए अधूरे चिक में फंदे डालने लगा.
मानू पान सजा कर बाहर बैठकखाने में भेज रही थी. चुपके से पान का एक बीड़ा सिरचन को देती हुई बोली, इधर-उधर देख कर कहा- "सिरचन दादा, काम-काज का घर! पाँच तरह के लोग पाँच किस्म की बात करेंगे. तुम किसी की बात पर कान मत दो."

सिरचन ने मुस्कुरा कर पान का बीड़ा मुँह में ले लिया. चाची अपने कमरे से निकल रही थी. सिरचन को पान खाते देख कर अवाक हो गयी. सिरचन ने चाची को अपनी ओर अचरज से घूरते देखकर कहा- "छोटी चाची, ज़रा अपनी डिबिया का गमकौआ ज़र्दा खाते हो?... चटोर कहीं के!" मेरा कलेजा धड़क उठा.. यत्परो नास्ति!
बस, सिरचन की उँगलियों में सुतली के फंदे पड़ गए. मानो, कुछ देर तक वह चुपचाप बैठा पान को मुँह में घुलाता रहा. फिर, अचानक उठ कर पिछवाड़े पीक थूक आया. अपनी छुरी, हँसियाँ वैगरह समेट सम्हाल कर झोले में रखे. टंगी हुई अधूरी चिक पर एक निगाह डाली और हनहनाता हुआ आँगन के बाहर निकल गया.
चाची बड़बड़ाई- "अरे बाप रे बाप! इतनी तेजी! कोई मुफ्त में तो काम नहीं करता. आठ रुपये में मोहरछाप वाली धोती आती है.... इस मुँहझौंसे के मुँह में लगाम है, न आँख में शील. पैसा खर्च करने पर सैकड़ों चिक मिलेंगी. बांतर टोली की औरतें सिर पर गट्ठर लेकर गली-गली मारी फिरती हैं."
मानू कुछ नहीं बोली. चुपचाप अधूरी चिक को देखती रही... सातो तारें मंद पड़ गए.
माँ बोली, "जाने दे बेटी! जी छोटा मत कर, मानू. मेले से खरीद कर भेज दूँगी."
मानू को याद आया, विवाह में सिरचन के हाथ की शीतलपाटी दी थी माँ ने. ससुरालवालों ने न जाने कितनी बार खोल कर दिखलाया था पटना और कलकत्ता के मेहमानों को. वह उठ कर बड़ी भाभी के कमरे में चली गयी.
मैं सिरचन को मानाने गया. देखा, एक फटी शीतलपाटी पर लेट कर वह कुछ सोच रहा है.
मुझे देखते ही बोला, बबुआ जी! अब नहीं. कान पकड़ता हूँ, अब नहीं... मोहर छाप वाली धोती ले कर क्या करूँगा? कौन पहनेगा?.. ससुरी खुद मरी, बेटे बेटियों को ले गयी अपने साथ. बबुआजी, मेरी घरवाली जिंदा रहती तो मैं ऐसी दुर्दशा भोगता? यह शीतलपाटी उसी की बुनी हुई है. इस शीतलपाटी को छू कर कहता हूँ, अब यह काम नहीं करूँगा.. गाँव-भर में तुम्हारी हवेली में मेरी कदर होती थी.. अब क्या ?" मैं चुपचाप वापस लौट आया. समझ गया, कलाकार के दिल में ठेस लगी है. वह अब नहीं आ सकता.
बड़ी भाभी अधूरी चिक में रंगीन छींट की झालर लगाने लगी- "यह भी बेजा नहीं दिखलाई पड़ता, क्यों मानू?"
मानू कुछ नहीं बोली. .. बेचारी! किन्तु, मैं चुप नहीं रह सका- "चाची और मंझली भाभी की नज़र न लग जाए इसमें भी."
मानू को ससुराल पहुँचाने मैं ही जा रहा था.
स्टेशन पर सामान मिलते समय देखा, मानू बड़े जातां से अधूरे चिक को मोड़ कर लिए जा रही है अपने साथ. मन-ही-मन सिरचन पर गुस्सा हो आया. चाची के सुर-में-सुर मिला कर कोसने को जी हुआ... कामचोर, चटोर...!
गाड़ी आई. सामान चढ़ा कर मैं दरवाज़ा बंद कर रहा था कि प्लेटफॉर्म पर दौड़ते हुए सिरचन पर नज़र पड़ी- "बबुआजी!" उसने दरवाज़े के पास आ कर पुकारा.
"
क्या है?" मैंने खिड़की से गर्दन निकाल कर झिडकी के स्वर में कहा. सिरचन ने पीठ पर लादे हुए बोझ को उतार कर मेरी ओर देखा- "दौड़ता आया हूँ... दरवाज़ा खोलिए. मानू दीदी कहाँ हैं? एक बार देखूं!"
मैंने दरवाज़ा खोल दिया.
"
सिरचन दादा!" मानू इतना ही बोल सकी.
खिड़की के पास खड़े हो कर सिरचन ने हकलाते हुए कहा, "यह मेरी ओर से है. सब चीज़ है दीदी! शीतलपाटी, चिक और एक जोड़ी आसनी, कुश की."
गाड़ी चल पड़ी.
मानू मोहर छापवाली धोती का दाम निकाल कर देने लगी. सिरचन ने जीभ को दांत से काट कर, दोनों हाथ जोड़ दिए.
मानू फूट-फूट रो रही थी. मैं बण्डल को खोलकर देखना लगा- ऐसी कारीगरी, ऐसी बारीकी, रंगीन सुतलियों के फंदों को ऐसा काम, पहली बार देख रहा था.

1.11.11

न्यू-मीडिया : नये दौर की ज़रूरत

                        अंतर्जाल पर भाषाई के विकास के साथ ही एक नये दौर में मीडिया ने अचानक राह का मिल जाना इस शताब्दी की सबसे बड़ी उपलब्धि है.विचारों का प्रस्फ़ुटन और उन  विचारों को प्रवाह का पथ मिलना जो शताब्दी के अंत तक एक कठिन सा कार्य लग रहा था अचानक तेजी से इतना सरल और सहज हुआ कि बस  सोचिये की बोर्ड पर टाइप कीजिये और एक क्लिक में मीलों दूरी तय करा दीजिये....प्रस्फ़ुटित विचारों की मंजूषा को. बेशक एक चमत्कार वरना अखबार का इंतज़ार,जिससे आधी अधूरी खबरें..मिला करतीं थीं श्रृव्य-माध्यम यानी  एकमात्र आकाशवाणी वो भी सरकार नियंत्रित यानी सब कुछ एक तरफ़ा और  तयशुदा कि देवकी नंदन पाण्डेय जी कितना पढ़ेगें आठ बजकर पैंतालीस मिनिट वाली न्यूज पर. यानी खुले पन का सर्वथा अभाव समाचार सम्पादकों की मर्ज़ी पर खबरों का प्रकाशन अथवा प्रसारण तय था .सरकारी रेडियो टीवी (दूरदर्शन) की स्वायत्तता तो आज़ भी परिसीमित है. 
      निजी चैनल्स एवम सूचना प्रसारण के निजी साधनों का आगमन कुछ दिनों तक तो आदर्श रहा है किंतु लगातार विचार प्रवाह में मीडिया घरानो संस्थानों का धनार्जन करने वाला दृष्टिकोण न तो समाचारों के साथ पूरा न्याय कर पा रहा है न ही समाचारों से इतर अन्य कार्यक्रमों में कोई मौलिकता दिखाई दे रही. जबकि लोग मीडिया की ओर मुंह कर अपनी अपनी अपेक्षाओं का एहसास दिला रहे हैं. यानी कुल मिला कर मीडिया संस्थानो की अपनी व्यावसायिक एवम नीतिगत मज़बूरियां "न्यू-मीडिया" के परिपोषण के लिये एक महत्व-पूर्ण कारक साबित हुईं हैं. 
न्यू-मीडिया   
  1. वेब-पोर्टल्स
  2. सोशल-साइट
  3. माईक्रो-ब्लागिंग/नैनो-ब्लागिंग
  4. ब्लागिंग
  5. पाडकास्टिंग
  6. वेबकास्टिंग
         न्यू-मीडिया के इस  बहुआयामी  स्वरूप ने आम आदमी को एक दिलचस्प और सतत वैश्विक-जुड़ाव का अवसर दिया जबकि आज़ से लगभग पच्चीस बरस पहले किसी को भी यह गलत फ़हमी सम्भव थी कि मीडिया के संस्थागत संगठनात्मक स्वरूप में कोई परिवर्तन सहज ही न आ सकेगा. रेडियो,सूचना का आगमन अखबार, टी. वी.टेलेक्स,टेली-प्रिंटर, फ़ैक्स,फ़ोन,तक सीमित था. संचार बहुत मंहगा भी था तब. एक एक ज़रूरी खबर को पाने-भेजने में किस कदर परेशानी होती थी उसका विवरण  आज की पीड़ी से शेयर करो तो वह आश्चर्य से मुंह ताक़ती कभी कह भी देती है –“ओह ! कितना कुछ अभाव था तब वाक़ई !!
    और अब उन्हीं ज़रूरतों की बेचैनीयों ने बहुत उम्दा तरीके से सबसे-तेज़” होने की होड़ लगा दी.इतना ही नहीं   “मीडिया के संस्थागत संगठनात्मक स्वरूप में बदलाव” एकदम क़रीब आ चुका है.ब्लागिंग के विभिन्न स्वरूपों जैसे टेक्स्टके साथ ही साथ नैनो और माइक्रो ब्लागिंग का ज़माना भी अब पुराना हो चला तो फ़िर नया क्या है.. नया कुछ भी नहीं बस एकाएक गति पकड़ ली है वेबकास्टिंग ने पाडकास्टिंग के बाद . और यही परम्परागत दृश्य मीडिया के संस्थागत आकार के लिये विकल्प बन चुका है. लोगों के हाथ में थ्री-जी तक़नीक़ी वाले सेलफोन हैं.जिसके परिणाम स्वरूप अन्ना के तिहाड़ जेल में जाने पर वहां जमा भीड़ का मंज़र लोग अपने घर-परिवार को दिखाते रहे. जबकि  न्यूज़ चैनल से खबर आने में देर लगी. ये तो भारत का मामला था मध्य-एशिया के देशों की हालिया क्रांति में भी न्यू-मीडिया की भागीदारी की पुष्टि हुई है. 
एक नज़र  वेबकास्टिंग के अचानक विस्तार पर 
            18 जनवरी 2011 को छपी इस खबर का स्मरण कीजिये जो नवभारत-टाइम्स ने छापी थी हुआ भी ऐसा ही ऐसे समारोह के प्रसारण के लिये स्थापित चैनल्स को उपयोग में लाना बेहद खर्चीला साबित होता और फ़िर दीक्षांत समारोह कोई क्रिकेट मैंच अथवा अमेरीकी राष्ट्राध्यक्ष की भारत यात्रा तो नहीं थी जिसके लिये सारे खबरिया संस्थान अपने कैमरे फ़िट करते .
              इसी क्रम  में आपको यह भी स्मरण होगा ही कि पटना- विधानसभा चुनाव में जिले के चौदह विधानसभा क्षेत्रों के 3872 बूथों में से 166 बूथों का लाइव वेब कास्टिंग किया गया । वेब कास्टिंग में बाधा उत्पन्न न हो इसके लिए जिला तथा अनुमंडल स्तर पर ट्रबुल शूटर टीम‘ का गठन किया गया है जो 30 अक्टूबर से काम करना शुरू कर देगी। चुनाव आयोग के निर्देशानुसार 31 अक्टूबर को लाइव वेब कास्टिंग का मॉक प्रस्तुतीकरण किया गया. वेब कास्टिंग के लिए उन्हीं बूथों का चयन किया गया है जहां इंटरनेट कनेक्टिविटी और लीगल बिजली कनेक्शन उपलब्ध थे। नोडल पदाधिकारी विनोद आनंद ने बताया था कि 166 बूथों में से 159 पर लैडलाइन व बूथों पर वाइमेक्स की सुविधा उपलब्ध करायी है। मालूम हो कि एक लैडलाइन कनेक्शन का चार्ज 2700 रुपये व एक वाइमेक्स का चार्ज 4200 रुपये है। वेब कास्टिंग होने वाले हर बूथों पर एक कम्प्यूटर ऑपरेटर व एक बीएसएनएल के कर्मचारी मौजूदगी थी ।      
                जिस लैपटॉप से वेब कास्टिंग होना है उसमें 20 फीट की दूरी को कवर करने वाला वेव कैम और लगभग पचास तरह के सॉफ्ट वेयर का इस्तेमाल किया जाएगा। मतदान के दौरान निर्वाध वेब कास्टिंग के लिए जेनरेटर की व्यवस्था भी की गयी ।
हिन्दी ब्लागिंग में वेब कास्टिन्ग का प्रयोग उत्तराखण्ड के खटीमा शहर में दिनांक 09-01-2011 एवम 10-01-2011 को  साहित्य शारदा मंच के तत्वावधान में डारूपचन्द्र शास्त्री मयंक’ की  दो पुस्तकों क्रमशः सुख का सूरज” (कविता संग्रह) एवं नन्हें सुमन (बाल कविता का संग्रह) का लोकार्पण समारोह एवं ब्लॉगर्स मीट के सीधे प्रसारण से किया गया. जिसमें  किसी भी हिंदी ब्लॉगर सम्मलेन और संगोष्ठी के लिए यह प्रथम अवसर था जिसका जीवंत प्रसारण अंतर्जाल के माध्यम से किया हो. समारोह का जीवंत प्रसारण पूरे समारोह के दौरान खटीमा से पद्मावलि ब्लॉग के पद्म सिंह और अविनाश वाचस्पति के साथ  जबलपुर से मिसफिट-सीधीबात  ब्लॉग के संचालक यानी  मैने किया . बस फ़िर क्या था सिलसिला जारी रहा बीसीयों टाक-शोसाक्षात्कार के साथ साथ दिल्ली से 30 अप्रैल 2011 के कार्यक्रम का सीधा प्रसारण किया. यह प्रयोग सर्वथा प्रारम्भिक एकदम कौतुकपूर्ण  प्रदर्शन था लोग जो हिंदी ब्लागिंग के लिये समर्पित हैं उनको यह क़दम बेहद रुचिकर लगा.
    इस घटना ने प्रिंट मीडिया को भी आकृष्ट किया यशभारत जबलपुरकादम्बिनी और अमर-उजाला जैसे अखबारों  में पियूष पाण्डॆ जी एवम सुषांत दुबे के आलेख एवम समाचार आलेख बाक़ायदा छापे गए.
वेबकास्टिंग किसी भी घटना का सीधा अथवा रिकार्डेड  प्रसारण है जो थ्री-जी तक़नीकी के आने के पूर्व यू-ट्यूबustream, अथवा बैमबसरजैसी साइट्स के ज़रिये सम्भव थी. आप इसके ज़रिये घटना को रिकार्ड कर लाईव अथवा रिकार्डेड रूप में अंतरजाल पर अप-लोड कर सकतें हैं.
  इसके लिये आप http://bambuser.com/  अथवा www.ustream.tv पर खाता खोल के जीवंत कर सकते हैं उन घटनाओं को आपके इर्द गिर्द घटित हो रहीं हों. इतना ही नहीं इस तक़नीकी के ज़रिये आप भारत में पारिवारिक एवम घरेलू आयोजनो को अपने उन नातेदारों तक भेज सकतें हैं जो कि विश्व के किसी भी कोने में हैं अपनी रोज़गारीय मज़बूरी की वज़ह से.

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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...