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आधा लाख लोग पढ़ चुके होंगे मिसफ़िट को इस धनतेरस...तक

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ब्लाजगत को नमन न्यू-मीडिया ने गोया एक अनोखी क्रांति को जन्म दिया है.  क्रांति जिसके सकारात्मक और नकारात्मक दौनों पहलू हैं. मिसफ़िट को मैने साल भर से अधिक समय पूर्व ज्वाइन किया. गिरीष जी का आमंत्रण पाडकास्टिंग की वज़ह से था मेरे लिये. अचानक वेबकास्टिंग का प्रयोग हुआ मैने भी अपना खाता खोला वेबकास्टिंग में. सच कितना तेज़ बदलाव जीवंत संपर्क सहज अभिव्यक्ति और ढेरों पाठक नित नऎ आलेख, जानकारियां एक क्लिक मात्र से वाक़ई कमाल है. इन दिनों मिसफ़िट अपने तरीके से सृजन-यात्रा के एक नये मुक़ाम पर पहुंच रहा है.. अगले कुछ घण्टों में पाठक संख्या 49,834 से बड़कर आधा लाख हो जाएगी ये तय है. पर इसमें सबसे बड़ा अवदान आपके स्नेह का ही तो है.         मिसफ़िट :सीधीबात को आपका प्रोत्साहन एवम स्नेह इसी प्रका मिलेगा हमें उम्मीद है  आप सभी के प्यार और प्रोत्साहन के लिए आभार .......अब तक बहुत अच्छा समय बीता ,अनुभव भी अच्छा रहा बहुत कुछ सीखा,.....खोया भी और पाया भी....कोशिश रहेगी कि हर पल कुछ नया करूँ........

साहब आए और गये

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    विक्रम की पीठ पे लदा बेताल टाइम पास करने की गरज़ से बोला :- विक्रम,   साहब का आने और वापस जाने के बीच से  एक  बरसाती नदी की तरह सियासती नदी उन्मुक्त रूप से बहा करती है. सुनो कल सा’ब आएंगे ? अच्छा कल ! काहे से आएंगे .. चलो अच्छा हुआ वो पुराना वाला था न ससुरा हर छुट्टी में आ धमकता था.. इनमें एक बात तो है कि ये .. छुट्टी खराब नहीं करते थे  ज़्यादा परेशान भी नहीं करते.  और ये अरे राम राम........मत पूछो गुप्ता बाबू..        इस "अरे राम राम........मत पूछो गुप्ता बाबू.." में जितना कुछ छिपा है उसे आसानी से कोई भी समझ सकता है.        पुराना साहब अक्सर बुरा और उपेक्षा भाव से भरे "ससुरा" शब्द से कमोबेश हर डिपार्टमेंट में अलंकृत हुआ करता है. जितने भी साहब टाइप के पाठक इस आलेख को बांच रहे हैं बाक़ायदा अपनी स्थिति को खुद माप सकते है.यानी आज़ से उम्दा और कल से बेदतर न कुछ था न होगा ऐसा हर सरकारी विभाग में देखा जा सकता है. कल ही की बात है एक विभाग का अधिकारी अपने आकस्मिक आन पड़े कार्यों के चलते दिल्ली मुख्यालय से रीजनल आफ़िस आए स्थानीय अधिकारी  निर्देश के परिपालन में  क

न मैं कंटक व्यस्त-पथ का न मैं पहिया पार्थ रथ का

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कल एक आलेख पढ़ा है न आपने अपने कुछ खास मित्रों के लिये लिखा आलेख आज इस गीत में उतर आया है अजित गुप्ता जी ने आलेख को देख कर कहा था  नेपथ्‍य से बहुत कुछ कहा गया है। सच !! कहा भी ऐसा ही था. अजित जी   नेपथ्य की ध्वनियां उन तक पहुंच भी जाएं तो शायद ही मित्र गण खुद को आगे के लिये बदल पाएं. आज़ सोचा कि शायद उनको विश्वास दिलाने में सफ़ल हो जाऊं कदाचित जो मेरे साथ किया आगे से किसी और के साथ न करेंगें !! जो भी हो लिखना था लिख मारा

दोस्तों सुनो जो अब तक न कह सका था..!!

                                                 मैं जानता हूं कि आज़ तुम झुका हुआ सर लेकर किस वज़ह से मेरे तक आ रहे हो  . सच आज तुम्हारे झुक जाने के लिये मैं बेहद खुश हूं. ऐसा नहीं है न ही मैं किसी किसी झूठे यक़ीन के साथ ज़िंदा हूं. हां बस इतना ज़रूर है कि तुमने मुझे बर्बाद करने के लिये जितने प्रयास किये सच मैं उतना ही मज़बूत हुआ केवल इसी लिये तुम्हारी आभारी हूं.   बेशक एक ज़िंदा एहसास लेकर हूं कि वो सुबह ज़रूर आएगी जो सुबह मुझे इर्द-गिर्द के अंधेरों से विमुक्त करेगी. पर तुम जो अंधेरों के संवाहक हो बेशक यही अंधेरा तुमको डसेगा यह सच है.                                 मुझे अभ्यास है पराजय का तुम्हैं अभ्यास नहीं है मुझे मालूम है कि तनिक सी पराजय  भी तुम्हारे लिये बेशक जान लेवा साबित होगी. पर जब अपने सीने के ज़ख्मों को " गिनता हूं देर रात तक", तब मुझे बस तुम्हारे षड़यंत्रों के चक्रव्यूह साफ़ साफ़ नज़र आ जाते हैं फ़िर भी दोस्तो मैं यक़ीन करो बायस नहीं हूं. यक़ीन करों तुम्हारा शिकार मैं तुम पर आक्रमण करने पर यक़ीन नहीं करता वरन तुमको आक्रामकता का शिकार होने से बचा लेने का हिम

ज़ील ने गलत नहीं लिखा पर संतुलित नहीं लिखा

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" मेरे देश की धरती गद्दार उगले , उगले रोज़ मक्कार ...."  शीर्षक से ज़ील ने अपने ब्लाग ZEAL पर  जो लिखा उसमें कोई गलत बात मुझे समझ नहीं आ रही ज़ील क्या कोई भी सच्चा भारतीय   प्रशांत भूषण से सहमत न होगा. भारत की अखण्डता को बनाए रखने के लिये उनका यह बयान  सर्वथा ग़लत है. आपको याद दिला दूं कि प्रशांत भूषण ने क्या कहा "  प्रशांत भूषण ने   पिछले महीने 26 सितम्बर को कश्मीर मसले पर कहा था कि सालों से मौजूद सेना को वहां से हटा लेना चाहिए। साथ ही कश्मीर में लागू 'सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम' को हटा लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा था कि भारत के किसी भी क्षेत्र के लोग अगर भारत में नहीं रहना चाहते है तो ऐसी स्थति में वहां जनमत संग्रह कराया जाना चाहिए। " ( स्रोत : दैनिक भास्कर )      क्या यह बयान उचित है कोई भी सच्चा देशभक्त इसे स्वीकरेगा कदापि नहीं न ही उसे स्वीकारना चाहिये. भारत सरकार ने भी अपना मत स्पष्ट रूप से रक्खा है -" सरकार का कहना है कि वो प्रशांत भूषण की राय से सहमत नहीं हैं. सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने कहा कि वो प्रशांत के निजी बयान हो

क्या आपके फ़ादर अली ने भी कभी पहनी है ऐसी घड़ी..?

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भास्कर से साभार     बूचड़खाने से चीखते पुकारते कटते पशुओं की सी स्थिति हो चुकी है गोया हमारे चिंतन के लिये विषय चुक से गए हों  अपने इर्द-गिर्द देखिये कोई मौन-दृढ़ता युक्त व्यक्तित्व आपको क़तई नज़र न आएंगें. हम किसे सच मानें किसे झूठ इतना तक सामर्थ्य शेष नहीं रहा . कारण कारण क्या है बताते शर्म आती है सच जानना है तो जान ही लो :-"हम एक मानसिक दीवालियेपन वाले दौर में आ चुकें हैं !" सूचनाऒं की बौछार को हम सत्य मान लेते हैं.   हमारी नज़र में हम उम्दा हैं बाक़ी सब बाक़ी सब दोयम दर्ज़े के . यानी सरो-पा नैगिटिविटि . दस बरस पहले एक दम्पत्ति दीवाली की खरीदी के वास्ते पास के शहर से आई थी. उन दिनों वीडियो-गेम्स का बड़ा चलन था. स्टेटस सिंबल बढ़ाने किये जाने वाले यत्नों में  सपूत के लिये वीडियो-गेम खरीदता जोड़ा  आपस में बतिया रहा था गुप्ता जी के बेटे के पास जो है उससे बेहतर है न ये . गुप्ता जी उनका सहकर्मी या पड़ौसी था. पेशे से अफ़सर ये लोग वाक़ई आपसी स्पर्द्धा में बच्चों तक को घसीट लेते है .गुप्ता जी के बेटे से बेहतर वीडियो-गेम उनके पास होना क्यों ज़रूरी है इस बात की पतासाजी करन

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता..

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मीना कुमारी  ( 1 अगस्त ,  1932  -  31 मार्च ,  1972 )  भारत  की एक मशहूर अभिनेत्री थीं। इन्हें खासकर दुखांत फ़िल्म में उनकी यादगार भूमिकाओं के लिये याद किया जाता है।  1952  में प्रदर्शित हुई फिल्म  बैजू बावरा  से वे काफी वे काफी मशहूर हुईं। मीना कुमारी का असली नाम  माहजबीं बानो  था और ये  बंबई  में पैदा हुई थीं । उनके पिता अली बक्श भी फिल्मों में और  पारसी रंगमंच  के एक मँजे हुये कलाकार थे और उन्होंने कुछ फिल्मों में  संगीतकार  का भी काम किया था। उनकी माँ प्रभावती देवी (बाद में इकबाल बानो),भी एक मशहूर नृत्यांगना और अदाकारा थी जिनका ताल्लुक  टैगोर  परिवार से था । माहजबीं ने पहली बार किसी फिल्म के लिये छह साल की उम्र में काम किया था। उनका नाम मीना कुमारी  विजय भट्ट  की खासी लोकप्रिय फिल्म  बैजू बावरा  पड़ा। मीना कुमारी की प्रारंभिक फिल्में ज्यादातर पौराणिक कथाओं पर आधारित थे। मीना कुमारी के आने के साथ  भारतीय सिनेमा  में नयी अभिनेत्रियों का एक खास दौर शुरु हुआ था जिसमें  नरगिस , निम्मी, सुचित्रा सेन और  नूतन  शामिल थीं। 1953  तक मीना कुमारी की तीन सफल फिल्में आ चुकी थीं जिनमें :

हर जन्मदिन एक नई शुरुआत...

ये आजकल के बच्चे भी बहुत मन मानी करते हैं ..सुनते नहीं है जल्दी ..हाँ..हाँ कह कर बात को टाल देते हैं पर उन्हें नहीं पता कि ..माँ इतनी आसानी से हार नहीं मानती ...... आज करना ही पड़ा----सुनिये केवल राम जी के  विचार उनके जन्मदिन पर उनकी ही आवाज में ...

राज का काज

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सरकारी महकमों  में अफ़सरों  को काम करने से ज़्यादा कामकाज करते दिखना बहुत ज़रूरी होता है जिसकी बाक़ायदा ट्रेनिंग की कोई ज़रूरत तो होती नहीं गोया अभिमन्यु की मानिंद गर्भ से इस  विषय  की का प्रशिक्षण उनको हासिल हुआ हो.             अब कल्लू को ही लीजिये जिसकी ड्यूटी चतुर सेन सा’ब  ने "वृक्षारोपण-दिवस" पर गड्ढे के वास्ते  खोदने के लिये लगाई थी मुंह लगे हरीराम की पेड़ लगाने में झल्ले को पेड़ लगने के बाद गड्डॆ में मिट्टी डालना था पानी डालने का काम भगवान भरोसे था.. हरीराम किसी की चुगली में व्यस्तता थी सो वे उस सुबह  "वृक्षारोपण-स्थल" अवतरित न हो सके जानतें हैं क्या हुआ..? हुआ यूं कि सबने अपना-अपना काम काज किया कल्लू ने (गड्डा खोदा अमूमन यह काम उसके सा’ब चतुर सेन किया करते थे), झल्ले ने मिट्टी डाली, पर पेड़ एकौ न लगा देख चतुर सेन चिल्लाया-"ससुरे   पेड़ एकौ न लगाया कलक्टर सा’ब हमाई खाल खींच लैंगे काहे नहीं लगाया बोल झल्ले ? " हरीराम को यह करना था   झल्ले बोला:-"सा’ब जी हम गड्डा खोदने की ड्यूटी पे हैं खोद दिया गड्डा बाक़ी बात से हमको का ?"

यशभारत ने छापा : ब्लाग इन मीडिया

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  ब्लाग इन मीडिया      एक  था  रावण  बहुत बड़ा प्रतापी यशस्वी राज़ा, विश्व को ही नहीं अन्य ग्रहों तक विस्तारित उसका साम्राज्य  वयं-रक्षाम  का उदघोष करता  आचार्य चतुरसेन शास्त्री  के ज़रिये  जाना था रावण के पराक्रम को. उसकी साम्राज्य व्यवस्था को. ये अलग बात है कि उन दिनों मुझमें उतनी सियासी व्यवस्था की समझ न थी. पर एक सवाल सदा खुद  पूछता रहा-  क्या वज़ह थी कि राम ने रावण को मारा ?  राम   को हम भारतीय जो  आध्यात्मिक धार्मिक भाव से देखते हैं  राम को मैने कभी भी एक राजा के रूप में आम भारतीय की तरह मन में नहीं बसाया. मुझे उनका करुणानिधान स्वरूप ही पसंद है. किंतु जो अधिसंख्यक आबादी के लिये करुणानिधान हो वो किसी को मार कैसे सकता है ? और जब एक सम्राठ के रूप में राम को देखा तो सहज दृष्टिगोचर होती गईं सारी रामायण कालीन स्थितियां राजा रामचंद्र की रघुवीर तस्वीर साफ़ होने लगी (आगे पढ़ने क्लिक कीजिये इधर)

मोरा गोरा अंग ..बन्दिनी आवाज़ श्रद्धा बिल्लोरे की आवाज़ में

mora gora rang by Shraddha Billore (mp3)

बेटी बचाओ अभियान : बालाघाट में स्मृति ईरानी को जन सैलाब ने किया भावुक

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जबलपुर में  बेटी बचाओ अभियान के सफ़ल आयोजनों की खबरें लगातार मिल रही है .. इस बीच बालाघाट से प्राप्त रिपोर्ट अनुसार स्मृति इरानी ने की उपस्थिति से अभूतपूर्व रहा शुभारम्भ समारोह  बेटियाँ मातृ शक्ति हैं, इनका संरक्षण समाज और देश के अस्तित्व के लिये जरूरी है। बालाघाट में बेटी बचाओ अभियान का शुभारंभ करते हुए सांसद श्रीमती स्मृति ईरानी ने कहा कि मध्यप्रदेश ने जन-कल्याण की ऐसी योजनाएँ बनाई हैं जिसे सारे राष्ट्र ने न केवल सराहा है बल्कि अपनाया भी है। इस मौके पर समारोह के आयोजक सहकारिता एवं लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री श्री गौरीशंकर बिसेन भी उपस्थित थे। इस अवसर पर बेटियों वाले माता-पिता को सम्बल कार्ड वितरित किये गये। श्रीमती स्मृति ईरानी ने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार केवल बेटी बचाने का काम ही नहीं कर रही है बल्कि उसने बेटी को लक्ष्मी के रूप में पूजने की परम्परा शुरू की है और उसे अपने पैरों पर खड़े होने में मदद कर रही है। उन्होंने कहा कि बेटियाँ तो मातृ शक्ति हैं। एक सक्षम माँ ही बेटी को बचाने में अहम भूमिका निभा सकती है और उसका भविष्य उज्जवल बना सकती है। श्रीमती ईरानी ने कहा कि म.प्र.

क्यों मारा राम ने रावण को ?

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साभार : ताहिर खान      एक  था  रावण  बहुत बड़ा प्रतापी यशस्वी राज़ा, विश्व को ही नहीं अन्य ग्रहों तक विस्तारित उसका साम्राज्य  वयं-रक्षाम  का उदघोष करता  आचार्य चतुरसेन शास्त्री  के ज़रिये  जाना था रावण के पराक्रम को. उसकी साम्राज्य व्यवस्था को. ये अलग बात है कि उन दिनों मुझमें उतनी सियासी व्यवस्था की समझ न थी. पर एक सवाल सदा खुद  पूछता रहा- क्या वज़ह थी कि राम ने रावण को मारा ? राम   को हम भारतीय जो  आध्यात्मिक धार्मिक भाव से देखते हैं  राम को मैने कभी भी एक राजा के रूप में आम भारतीय की तरह मन में नहीं बसाया. मुझे उनका करुणानिधान स्वरूप ही पसंद है. किंतु जो अधिसंख्यक आबादी के लिये करुणानिधान हो वो किसी को मार कैसे सकता है ? और जब एक सम्राठ के रूप में राम को देखा तो सहज दृष्टिगोचर होती गईं सारी रामायण कालीन स्थितियां राजा रामचंद्र की रघुवीर तस्वीर साफ़ होने लगी                                          रामायण-कालीन वैश्विक व्यवस्था का दृश्य  रावण के संदर्भ में   हिंदी विकीपीडिया   में दर्ज़ विवरण को देखें जहां बाल्मीकि के हवाले से (श्लोक सहित ) विवरण दर्ज़ है-  अहो रूपम