17.9.11

मुकुल की खरी खोटी कविताएं


एक : अपने वज़ूद के बारे में
हम जो
भयभीत हैं
बिना रीढ़ की हड्डी वाले
जीव से 
हम लोग जो 
किये जा रहे हैं
समझौते 
लगातार मुंह झुकाए
व्यवस्था की विद्रूपताओं से 
आईना देखिये और
एक बार पूछिये खुद से .. 
"
अपने वज़ूद के बारे में"
खुद से एक सवाल
कहीं ’ तलुवे जीभ से चाटते 
पालतू तो नहीं दिख रहैं..?
______________________
दो :मुझे कानों से देखने लगे हो..?
मुझे तुम जानते नहीं
पहचानते नहीं
फ़िर भी मेरे बारे में
अफ़वाह फ़ैलाते तुम..!!
शायद भयभीत हो 
मुझसे ?
पर क्यों .. 
क्या तुम भी मुझे कानों से देखने लगे हो
______________________
तीन:एक एहसास
तुमको अनुमति
थी न 
कि तुम मेरे सामने 
ज़हर का प्याला 
तैयार कर 
मुझे विषपान कराओ..!
पर ये क्या ?
तुम विश्वास-घात
कर रहे हो
अब शायद ही माफ़ करूं तुमको 
हां..तुम को जो 
विश्वासघाती हो गये हो ..!! 





15.9.11

जलाओ दिए - गोपालदास नीरज जी की एक रचना.


जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना      


जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना 
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए
नई ज्योति के धर नए पंख झिलमि,
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ल,
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐस,
निशा की गली में तिमिर राह भूल,
खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगम
ऊषा जा न पानिशा आ ना पाए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना 
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए। 
सृजन है अधूरा अगर विश्‍व भर मे,
कहीं भी किसी द्वार पर है उदास,
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेग,
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यास,
चलेगा सदा नाश का खेल यूँ ह,
भले ही दिवाली यहाँ रोज आ
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना 
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए। 
मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग मे,
नहीं मिट सका है धरा का अँधेर,
उतर क्यों न आयें नखत सब नयन क,
नहीं कर सकेंगे ह्रदय में उजेर,
कटेंगे तभी यह अँधरे घिरे अ,
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आ
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना 
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।

              नीरज जी की अन्य रचनाएं कविताकोष से साभार 

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