26.3.11

नारीवादी विमर्श :कुछ तथ्य

गतांक में आपने पढ़ा "आप को जीवन का युद्ध लड़ना है किसे अपनी सखी बनाएंगी ? मनु की तरह आपकी बरछी,बाण,कृपाण कटारी जैसी  सहेलियां कौन हैं ? कभी सोचा इस बारे में ! नहीं तो बता दूं कि वो है….

1.  ................................................................“हर दिन उन आईकान्स को देखो जो कभी कल्पना चावला है, तो कभी बछेंद्री पाल है, सायना-नेहवाल है जो आपके समकालीन आयकान हैं ” इनकी कम से कम छै: सहेलियां तो होंगी ही"
अब आगे :-
भानु चौधरी के ब्लाग से साभार 
                                   एक युद्ध जो अक्सर तुम को लड़ना होता है जानती हो वो क्या है...? खुद को साबित करने वाला युद्ध. कभी कभी तुम खुद को नहीं मालूम होता कि "फ़िट हो " शायद मालूम रहता है  गोया तुम कंफ़्यूज़ ज़ल्द हो जाती हो.मुझे एक घटना याद आ रही है. अभिलाषा और उसकी छोटी बहन बरेला के पास सलैया गांव में अपने परिवार के साथ रहती है. उसे आंगनवाड़ी-वर्कर इस कारण बना दिया कि वो ही उस गांव की पढ़ी-लिखी यानी हायर सेकण्ड्री पास लड़की है. उसकी एक छोटी बहन भी है. व्यक्तित्व के लिहाज़ से देखा तो सामान्य से हट के किंतु सौम्य शांत, मुझे लगता था कि ये बेटियां अपेक्षाकृत सामान्य ग्रामीण बालिकाऒं से जुदा हैं. उसके पिता अक्सर मुझसे मिलने आते  थे . एक पार उनका लम्बे समय तक न मिलना मेरे लिये चिंता का कारण बना सो मैने फ़ोन लगा के पूछा:-"भाई, क्या हुआ पटेल जी कई दिनों से दिखे नहीं "
पटेल जी बोले:-"बस, थोड़ा बीमार था आता हूं किसी दिन "
      पटेल  जब आये तो उनने बताया:-"साहब, एक रात मुझे हैजा हो गया था.."
      मैने पूछा :-"फ़िर पटेल साहब, ?"
      फ़िर क्या दौनों मौड़ियों (बेटियों) ने मुझे बचा लिया... एक ने मोटर सायकल चलाई दूसरी ने मुझे बीच मैं बिठाया और खुद पीछे बैठी... जबलपुर लें आईं. मेडीकल में भर्ती किया. 
        रात बारह बजे के बात गांव की सुनसान सड़कों पर बाईक पर बीमार बाप को लेकर जबलपुर तक लेकर आईं बेटियां "डरीं तो होंगी पर क्या खूब एड है कि डर के आगे जीत है...जीत गईं बेटियां."
 बचा लिया बीमार बाप को . बस अपने आप की ताक़त को पहचानने की ज़रूरत है न 
बताओ बेटियो ऊंट देखा हा है न सबने 
हां की आवाज़ सुनते ही मैने अपनी बात आरंभ की... उसकी गरदन लम्बी क्यों है..?
                              अगर मैं ग़लत नहीं हूं तो.... ऊंची-ऊंची झाड़ियों से पत्ती खाने के लिये उनमे आये आए जनेटिक-बदलाव की वज़ह से...ऊंट की गरदन ऊंची हो गई... ( हो सकता है मै गलत हूं पर यह एक उदाहरण है) तो क्या तुम में कोई परिस्थिति जन्य बदलाव नहीं आ सकता. आ सकता है बदलाव आप ला सकतीं हैं विकास की यात्रा में सक्रिय-भागीदारी के लिये ज़रूरी है "दृढ़ता" जो हासिल होती है.... स्वस्थय-शरीर से जिसमें स्वस्थ्य एवम सुदृढ़ता मन रहता है जो "आत्म-शक्ति" को बल एवम पाज़ीटिव ऊर्जा देता है अब बताओ बेटियो क्या आप सुबह से नाश्ता करके आईं हो ?
हाथ उठाओ कितनों ने आज सुबह ...? मेरे सवाल पर पचास फ़ीसदी ने हाथ उठाया तो मैने कहा "यानी पचास फ़ीसदी ने आज़ नाश्ता नही किया ?
सशक्तिकरण का नारा साकार कैसे होगा...? कमज़ोर रेतीली ज़मीन पर मज़बूत मक़ान की कल्पना बेमानी है. 
                        बेटियो तुम्हारा हक़ है सुन्दर दिखना इस हक ने तुमको श्रृंगार करना सिखाया उसी का लाभ उठा सुन्दरता बढ़ाने वाले प्रसाधनों की बिक्री करने वाले तुम उसी पर आसक्त हो किंतु मेरी एक बात सुनो बेटियो ! जो तेजस्विता और सुंदरता प्राकृतिक साधनों से मिलती है वो इन सौंदर्य-प्रसाधनो से कदापि नहीं. उसके लिये तुम्हारा समय पर आहार लेना, शरीर में आयरन की मात्रा को बनाए रखना ज़रूरी है जो हासिल होता है प्राकृतिक साधनों से .गुड़ जिसे तुम नकार देती हो रोज़ खाके तो देखो . शम जिस विकास पथ पर जा रहे हैं उस पर केवल ऊर्ज़ा-वान ओजस्वी चेहरे वाले व्यक्तित्व  ही आगे जाएंगे और मैं थके उदास बीमार चिंतित चेहरे पसंद नहीं करता न ही डरे हुए चेहरों से मुझे लगाव है. मुझे मेरी चहकती बेटियां चाहिये रस्सी कूदती झूले झूलतीं बेटियों से मिला मेरी बेटियो 
हां एक बात और मुझे उन बेटियों से भी तो मिलना है जो सुंदर राजकुमार को जीवन साथी बनाने के सपने देख रहीं हैं हां वो तो तुम सब देख रही हो न ? तो एक सपना और दिखाना चाहता हूं मेरी बेटियां   हृष्टपुष्ट संतानों का सपना देखें पर क्या इस आठ-नौ ग्राम हीमोब्लोबिन वाली काया सफ़ल मां बन सकती है न क्या ज्ञानविहीन बेटी मेरे कुल का नाम रोशन करेगी ?    नहीं उसके लिए मेरी सलाह है जैसा मैं शिवानी श्रद्धा से कहता हूँ अक्सर :"सोचो फिर चलो आगे बड़ो आगे बढ़ने के बाद वापस मत लौटो लक्ष्य को पाने विकल्पों का उपयोग करो विकल्प दिमाग के कम्प्यूटर की हार्ड डिस्क में होते हैं यदी तुमने सही तरीके से  नालेज गेन किया है तो मै तुम्हारे  प्रथम स्थान पर आने के लिये लालायित नहीं हूं बल्कि गहराई से किये  गये अध्ययन का लालची हूं  "

   

25.3.11

नारीवादी विमर्श :कुछ तथ्य

आज दिनांक 25 मार्च 2011 को जबलपुर के माता गुजरी महाविद्यालय      
      जबलपुर में मेरा वक्तव्य था. वक्तव्य का एक अंश सुधि पाठकों के विचार हेतु 
सादर प्रस्तुत है   
              आज मैं अपनी बेटियों के साथ कल के भारत में उनकी भूमिका पर विमर्श करने आया हूं तो तय है कि यहां न तो मुझसे अतिश्योक्ति युक्त कुछ कहा जाएगा और न ही मैं कोई कहानी युक्त प्रवचन दे सकूंगा. मै यह भी साफ़ कर देना चाहता हूं कि :-“आप मुझे उतना ही स्वीकारें जितना युक्ति संगत हो न कि आप पूरी तरह मेरे वक्तव्य सहमत हो जाएं ऐसी मेरी मंशा भी नहीं है बल्कि आपको “चिंतन का पथ” किधर से है समझाने का प्रयास करूंगा”
बेटियो

अक्सर आप को अपनी विचार धारा और सोच का विरोध होते देख दु:ख होता है , है न …? ऐसा सभी के साथ होता है पर बालिकाओं के साथ कुछ ज़्यादा ही होता है क्योंकि हमारी सामाजिक व्यवस्था एवम पारिवारिक व्यवस्था इतनी उलझी हुई होती है कि कि बहुधा हम सोच कर भी अपने सपने पूरे नहीं कर पाते . बमुश्किल दस प्रतिशत बेटियां ही अपने सपनों को आकार दे पातीं हैं…!
पर क्या बेटियां सपने देखतीं हैं..?
हां, मुझे विश्वास है की वे सपने देखतीं हैं… परंतु कैसे ….क्या गहरी नींद वाले …क्योंकि कहा गया है कि जागते हुए सपने देखना वर्जित है…है न यही कारण न यह बात बिलकुल गलत है जागते हुए ही सपने देखो सोते वक्त मानस को बेफ़िक्री के हवाले कर दो  !
चलो एक बात पूछता हूं :- “विकास क्या है ?”
हां सही कहा विकास “डेवलपमेंट” ही है. जो किसी देश की स्थिति को दर्शाता है कि उसकी सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक दशा कैसी है.अब मैं पूछना चाहता हूं कि  “विकास में आपका कितना योगदान होना चाहिये पुरुष के सापेक्ष्य  ?
उत्तर तय है- “बराबरी का..”
पर क्या मिलता है..?
क्यों ..?
क्योंकि आप कमज़ोर हैं और कमजोर हिस्सा सबसे पहले धराशायी होता है जलजलों में. भारत की नारीयां कमज़ोर नहीं नब्बे प्रतिशत काम करतीं और फ़िर भी स्वयं आपको मज़बूत बनना है कैसे बनना है इसके सूत्र देता हूं आगे   
   पहले भ्रूण में आपकी उपस्थिति को रोकने वाली घटनाऒं पर विचार करो बेटियो घर में भ्रूण के लिंग-परीक्षण का विरोध करना नारी सशक्तिकरण की दिशा का पहला क़दम होगा
                आप का जन्म एक महत्व पूर्ण घटना है इस दुनियां के लिये आपका जन्म लेते ही रोना बायोलाजिकल क्रिया है किंतु माता-पिता का सुबकना, दादी का झिड़कना, ताने मिलना कितना हताश कर देता है. और आयु के साथ  तुम लड़की हो तुमको ये करना है ये नहीं करना है जैसी लक्ष्मण रेखाएं आपके इर्द गिर्द खींच दी जातीं हैं  ” 
मुझे तुम सबसे उम्मीद है कि तुम “सीता-रेखा” खींच सकोगी  और बता दोगी   सभ्य समाज की असभ्य अराजक व्यवस्था को अपनी ताक़त का नमूना.
नारीमुक्ति का शब्द  पाश्चात्य देशों का है  . तभी तो  सीमा हीन, उच्छंखताऒं भरा है यह आंदोलन. पर भारत में इसे जस का तस स्वीकारा नहीं गया. हमारा संकल्प है “नारी-सशक्तिकरण”  भारत में नारी के लिये चिंतन के लिये हमको पश्चिम की ओर मुंह ताक़ने की ज़रूरत नहीं. हमारे देश के संदर्भ में “नारी-सशक्तिकरण” के लिये रानी झांसी एक बेहतरीन उदाहरण है. सुभद्रा जी जो संस्कारधानी से ही थीं ने अपनी कविता में “मनु की सखियों का ज़िक्र किया किया-“बरछी,बाण,कृपाण कटारी उसकी यही सहेली थी. है न ?
आप को जीवन का युद्ध लड़ना है किसे अपनी सखी बनाएंगी ? मनु की तरह आपकी बरछी,बाण,कृपाण कटारी जैसी  सहेलियां कौन हैं ? कभी सोचा इस बारे में ! नहीं तो बता दूं कि वो है….
1.  आपका ग्यान
2.  आपकी सेहत
3.  आपका सकारात्मक चिंतन
4.  आपकी दृढ़ता
5.  आपके संकल्प
6.  आपकी जुझारू वृत्ति
      यही आपकी आंतरिक सखियां हैं जो आपके काम आयेंगी. क्या आप सुदृढ़ता चाहतीं हैं..? यानि आप में “स्वयम-सशक्तिकरण” की ज़िद है तो एक सूत्र देता हूं :-“हर दिन उन आईकान्स को देखो जो कभी कल्पना चावला है, तो कभी बछेंद्री पाल है, सायना-नेहवाल है जो आपके समकालीन आयकान हैं ” इनकी कम से कम छै: सहेलियां तो होंगी ही…
 (क्रमश:जारी)

रंग पंचमी तक होली होली ही होती है

आज़ क्रिकेट के रंग में  विश्व यहां तक की गूगल बज़ तक सराबोर था.
आस्ट्रेलिया को हराना विश्व कप का रास्ता साफ़ करने के बराबर है.
इसी हंगामा खेज मौके पर ब्लागवुड के समाचार सुनिये

                             मिडियम वेब चार दो शुन्य मेगाहार्टज पर ये ब्लॉगवुड का रेडियो केन्द्र है , सभी श्रोताओं को रंग पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।अब आप ललित शर्मन: से ब्लॉग वुड के बचे-खुचे मुख्य समाचार सुनिए।
टेक्स्ट में बांचिये इधर 




23.3.11

भगतसिंह का अन्तिम खत ......

शहीद भगतसिंह का अन्तिम खत ...दीपक "मशाल" की आवाज में





और ये रहा तीनों वीरों का लिखा संयुक्त पत्र 
महोदय,
उचित सम्मान के साथ हम नीचे लिखी बाते .आपकी सेवा में रख रहे हैं -
भारत की ब्रीटिश सरकार के सर्वोच्च अधिकारी वाइसराय ने एक विशेष अध्यादेश जारी करके लाहौर षड़यंत्र अभियोग की सुनवाई के लिए एक विशेष न्यायधिकर्ण (ट्रिबुनल ) स्थापित किया था ,जिसने 7 अक्टुबर ,1930 को हमें फांसी का दंड सुनाया | ह
मारे विरुद्ध सबसे बड़ा आरोप यह लगाया गया हैं कि हमने सम्राट जार्ज पंचम के विरुद्ध युद्ध किया हैं |
न्यायालय के इस निर्णय से दो बाते स्पष्ट हो ज़ाती हैं -पहली यह कि अंग्रेजी जाति और भारतीय जनता के मध्य एक युद्ध चल रहा हैं |दूसरी यह हैं कि हमने निशचित रूप में इस युद्ध में भाग लिया है |अत: हम युद्ध बंदी हैं | यद्यपि इनकी व्याख्या में बहुत सीमा तक अतिशयोक्ति से काम लिया गया हैं , तथापि हम यह कहे बिना नहीं रह सकते कि ऐसा करके हमें सम्मानित किया गया हैं |पहली बात के सम्बन्ध में हमें तनिक विस्तार से प्रकाश डालना चाहते हैं |
हम नही समझते कि प्रत्यक्ष रूप से ऐसी कोई लड़ाई छिड़ी हुई हैं | हम नहीं जानते कि युद्ध छिड़ने से न्यायालय का आशय क्या हैं ? परन्तु हम इस व्याख्या को स्वीकार करते हैं और साथ ही इसे इसके ठीक सन्दर्भ को समझाना चाहते हैं | ………………….
पूरा पत्र "दखल की दुनियां" पर देखिये  

22.3.11

जबलपुरिया होली : ढोलक-मंजीरे की थाप तो गोया थम ही गईं

टिमकी वाली फ़ाग न सुन पाने का रंज गोलू भैया यानी
जितेंद्र चौबे को भी तो है  
                होली की हुल्लड़ का पहला सिरा दूसरे यानी आखिरी सिरे से बिलकुल करीब हो गया है यानी बस दो-चार घण्टे की होली. वो मेरा ड्रायवर इसे अब हादसा मानने लगा है. कह रहा था :-"बताईये, त्यौहार ही मिट गये शहरों का ये हाल है तो गांव का न जाने क्या होगा. " उसका कथन सही है. पर उसके मन में तनाव इस बात को लेकर था कि शुक्रवार  को मैने उसे समय पर नहीं छोड़ा. होलिका दहन के दिन वो चाह रहा था कि उसे मैं इतना समय दूं कि वो दारू-शारू खरीद सके समय रहते. मुन्नी की बदनामी पे नाचना या शीला की ज़वानी पर मटकना होगा... उसे. 
             यूं तो मुझे भी याद है रंग पंचमी तक किसी पर विश्वास करना मुहाल था दसेक बरस पहले. अगले दिन के अखबार बताते थे कि फ़ंला मुहल्ले में तेज़ाब डाला ढिकां मुहल्ले में चाकू चला.अपराधों का बंद होना जहां शुभ शगुन है जबलपुरिया होली के लिये तो दूसरी तरफ़ ढोलक-मंजीरे की थाप तो गोया थम ही गईं जिसके लिये पहचाना जाता था मेरा शहर अब बरसों से फ़ाग नहीं सुनी....इन कानों ने. अब केवल शीला मुन्नी का शोर सुनाई दिया. कुछेक पुराने मुहल्लों में फ़ागों का जंगी मुक़ाबला हुआ भी हो तो उनकी कवरेज किसी अखबार के लिये कोई खबर कैसे हो सकती है अब जब की बड़ी-बड़ी बेशकीमतीं खबरें होतीं हैं उनके लिये.  
             खैर जब भी मौका मिलेगा फ़ाग सुन लेंगे किसी गांव में जाकर पर ये सच है कि उधर भी पहले से बताना होगा. तब कहीं जुड़ाव होगा फगुआरों का अगरचे उनके बीच  हालिया चुनावों की कोई रंजिश शेष न रही हो तो. वरना गांवों में न तो अलगू चौधरी रह गये न जुम्मन शेख, जिनके मुंह से परमेश्वर बोलता था. अब तो बस एलाटमेंट और निर्माण कार्य बोलते हैं गांव ... मनरेगा भी चीख पुकार करने लगा है. मुझे क्या लेना देना इन बातों से खोज ही लूंगा टिमकी बजाने वाले, फ़ाग गाने वाले झल्ले बर्मन, खेलावन दाहिया के गांव को जो  पूरी तल्लीनता से फ़ाग गाते हैं.
          हां पंद्रह  बरस पुरानी बात याद आ रही  आर आई   रामलाल चढ़ार से सुनी थी फ़ागें .. है किसान मेले में  ...तब से आज़ तक हज़ूर एक भी आवाज़ नहीं पड़ी इन कानों में फ़ाग की. इसुरी तुम्हारी सौं झूठ नहीं बोल रा हूं....अब तो भूल ही गया फ़ाग की धुनें .  
      चित्र-परिचय :- ऊदय शर्मा टिमकी वादक S/O मूंछ वाले ललित शर्मा, उदास चेहरा:-गोलू भैया          

जबलपुर में आज़ होंगे फ़ुरसतिया जी और अलबेला खत्री

प्रिय ब्लागर साथियो
सादर अभिवादन 
                आज़ सुबह पधार चुके हैं फ़ुरसतिया जी जबलपुर तो देर रात तक भाई अलबेला खत्री का संक्षिप्त प्रवास होगा जबलपुर शहर में . शाम को सभी स्थानीय - ब्लागर्स मित्रों से अनुरोध है कि आप चाहें तो संपर्क कर सकतें है . साथ ही यह भी कि जबलपुर का ऐसा गुलाल इन के गालों पर रगड़  दीजिये जो कभी न छूटे .

21.3.11

सुनामी के बाद रेडियेशन के खतरे अंतर्राष्ट्रीय पावर लिफ़्टर्स का जापान दौरा अनिश्चितता में

                                                        भारत के लिये पदक हासिल वाले खिलाड़ियों में पावर लिफ़्टर्स का योगदान कमतर नहीं.किंतु यह खेल औलोंपिक खेलों में शामिल  न होने की वज़ह से उपेक्षा का शिकार रहा है. संजय बिल्लोरे का कहना है कि :-" राष्ट्रीय-स्तर पर आयोजित टूर्नामेंट्स के लिये तो हम स्वयम संसाधन जुटा पाते हैं किंतु अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में भागीदारी के लिये बेहद मशक्क़त करनी होती संसाधन जुटाने में . मिसफ़िट पर वेबकास्टिंग के दौरान उन्हौने बताया कि बहुत दुखी है जापान सुनामी के बाद रेडियेशन के खतरे अंतर्राष्ट्रीय पावर लिफ़्टर्स का जापान दौरा अनिश्चितता में है. तथापि वे आगामी २६ फ़रवरी २०११ को कानपुर में आयोजित राष्ट्रीय-स्तर पर आयोजित टूर्नामेंट में भाग लेंगे.


मेरे मुहल्ले मे आये थे अमिताभ बच्चन जी

ग्वारीघाट की शाम कोशिश थी कि सबसे पहले माई को गुलाल अर्पण करूं  कल 19 मार्च 2011 की तस्वीर है
उसपार होली के लिये सज़ा संवरा गुरुद्वारा 

इस पार चिन्मय शुभम गोलू भैया के साथ दीप दान की जुगत लगा रहे थे
आज तो गज़ब ही हो गया हमारी सुबह देर रात तक मोहल्ले में व्यस्त रहने की वज़ह से 

अरे क्या सजल अमिताभ बच्चन जी से लम्बा है इस साल इसके हाथ  पीले करना है
मिलें या लिखें आपका नाम व पता किसी को नही बताऊंगा 
वैसे उज्जवल भी लाइन में लगा . जो रह जाए बाद में ट्राय करते रहना 
वैसे शादी तो करेंगे पर बेचेंगे नहीं  हम इन को 

गौर दादा जी को तिलक लगाते अमिताभ बच्चन 

और फ़िर फ़ोटो खिचवा ही लिया लम्बू जी ने
सच आज़ आये थे अमिताभ जी जबलपुर 
मुहल्ले में टोली का घूमना एक मज़ेदार और अनोखा पहलू है आज़ फ़िर एक बार मलय जी की लायब्रेरी को देखने का मौका मिला 


मलय जी,बाबूजी,मिश्रा जी, वर्मा जी, सभी तो थे साथ साथ 

कविवर मलय का ये अदभुत चित्र


जी भूल ही गया था भतीजा चिन्मय बच्चों मे खोजे न मिल रहा था आज़, 

जाने  क्या खोजतीं आखैं वर्मा जी की राख का ढेर है शोला है न चिंगारी है..
 कल रात जली हुई राख बनी होलिका के पास खड़े  नायडू भैया जेब में हाथ डाले विचार मग्न  यही गुनगुना रहे हैं 

मेरे परियोजना अधिकारी मित्रों में सबसे इन्नोसेंट 
         "दीपेन्द्र है जिनको दीपू कहता हूं"
मनीष शर्मा के क्या कहने
हमारे ग्रुप के सबसे शातिर लगता है किंतु है नही
जी पुनीत यानि गिलबिल

ये है मनीष सेठ खूब हंसा रहे थे  जज़ूर कोई दर्द था जिसे छिपा रहे थे

ये अपन साफ़्ट ड्रिंक पी रहे थे तब की फ़ोटो 

ये भी अपन ही हैं 

दीपेंद्र भाई एक दम मस्त ड्रायवर 


गिलबिल और शर्मा जी 

सेठ जिनको फ़त्ते कहो कोई हर्ज़ नहीं

20.3.11

फ़ागुन के गुन प्रेमी जाने, बेसुध तन अरु मन बौराना

फ़ागुन के गुन प्रेमी जाने, बेसुध तन अरु मन बौराना
या जोगी पहचाने फ़ागुन , हर गोपी संग दिखते कान्हा
रात गये नज़दीक जुनहैया,दूर प्रिया इत मन अकुलाना
सोचे जोगीरा शशिधर आए ,भक्ति - भांग पिये मस्ताना
प्रेम रसीला, भक्ति अमिय सी,लख टेसू न फ़ूला समाना
डाल झुकीं तरुणी के तन सी, आम का बाग गया बौराना
जीवन के दो पंथ निराले,कृष्ण की भक्ति अरु प्रिय को पाना
दौनों ही मस्ती के पथ हैं , नित होवे है आना जाना--..!!
चैत की लम्बी दोपहरिया में– जीवन भी पलपल अनुमाना
छोर मिले न ओर मिले, चिंतित मन किस पथ पे जाना ?
गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”

18.3.11

एक ईमेल मुझे रोज़ मिलेगा

मुझे एक ई मेल रोज़ मिलती है गायत्री-चिंतन की ओर से जिसे प्राप्त आप भी कीजिये यहां से "ईमेल"

विज्ञान के दो पक्ष

विज्ञान के दो पक्ष हैं। एक पदार्थ विज्ञान, दूसरा चेतना विज्ञान (आत्म-विज्ञान)। दोनों का अपना-अपना कार्यक्षेत्र और अपना-अपना प्रतिफल है।
चेतना के सम्बन्ध में लोग कुछ कहते सुनते तो रहते हैं, पर उस सत्ता का स्वरूप, उद्देश्य, आनंद खोजने के लिए उत्साहित नहीं होते।
कारण भौतिक क्षेत्र के लिए आकर्षित उत्तेजित हुई मनोभूमि अपना समूचा चिंतन और कर्तृत्व इसी एक केन्द्र पर नियोजित किये रहती है। यह सब चलता और बढ़ता भी इसलिए रहता है की उसके लाभ परिणाम तत्काल प्रत्यक्ष रूप से दृष्टिगोचर होते हैं।
शरीर प्रत्यक्ष दीखता है। वैभव प्रत्यक्ष दीखता है। विनोद का प्रत्यक्ष अनुभव होता है। वाहवाही लूटने में भी अहंता की पूर्ति होती है। इसी परिधि में सामान्य जन सोचते और दौड़-धूप करते पाए जाते हैं।
जबकि चेतना का आत्मिक क्षेत्र गहराई में उतरने, अंतर्मुखी होने और बारीकी से समझने पर स्पष्ट होता है।
इतना झंझट कौन उठाये? तात्विक दृष्टिकोण कौन अपनाये? उथला स्तर उथली उपलब्धियों से संतुष्ट हो जाता है। बच्चों के लिए गुब्बारा, झुनझुना, चॉकलेट, बिस्कुट ही बहुत कुछ है। उसे बालू के घरोंदे बनाने और टूटी टहनियों के बगीचे लगाने में उत्साह रहता है क्योंकि उन कृतियों का प्रतिफल चर्मचक्षुओं से दृष्टिगोचर होता है।
बालबुद्धि की सीमा प्रत्यक्षवाद तक ही सीमित है। जो तत्काल हाथ लगा वही सब कुछ है। इन प्रयासों की मानवी परिणति प्रतिक्रिया क्या हो सकती है, यह सोच सकना दूरदर्शी विवेकशीलता का काम है, किन्तु कठिनाई यह है कि उस दिव्य दृष्टि को विकसित होने का अवसर ही नहीं मिला।
कल्पना, विचारणा, कुशलता, चतुरता जैसे सभी पक्ष भौतिक उत्पादन उपभोग में ही लगे रहते हैं। इतना अवसर, अवकाश ही नहीं मिलता कि चेतना की सत्ता, शक्ति और महत्ता को गंभीरतापूर्वक समझने का प्रयत्न कर सके।

- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

वांग्मय क्र. २  - जीवन देवता की साधना- आराधना -१.११

Look Deep, Look Inside....

Science has two fields — The material field and The spiritual field (the realm of consciousness). Both these fields operate in their own unique area and yield their own distinct rewards.
People hear or talk about consciousness but rarely become enthusiastic about the deeper meaning into its manifestation, its purpose and the bliss it can offer.
The human mentality in general is conditioned to the material world and therefore its thoughts and efforts usually remain focused on the material world. This pursuit is encouraged by the fact that the gains and results in the material world are quite self evident i.e. they can be seen or perceived physically.
For example, we can touch and see our body, we can see material wealth, and we can experience pleasure. Fame earned through material gains appeases our ego, thus most people only think and act within the sphere of the material world.
On the other hand, the field of consciousness can be experienced only when one dwells deeper into it, becomes introspective and seeks to understand it thoroughly.
Who is willing to put in the hard efforts? Who would like to adopt a deeper spiritual outlook which is required for such pursuit? An ordinary mind is content with ordinary things. For example, a balloon, a chocolate, or a biscuit will make innocent children feel happy. They love to make sand-castles and pretend gardens because they can instantly see the results of their efforts.
Naive minds cannot think beyond what it can see and requires instant results is everything. It takes some serious farsighted thinking to sense the consequences of having such a mentality.Unfortunately, it deprives people of a valuable opportunity to develop divine vision.
The faculties of imagination, thinking, talent, etc. would all remain preoccupied in procuring and enjoying material pleasures. This would leave almost no time or opportunity for any meaningful efforts towards knowing the authority, power and importance of consciousness i.e. the spiritual realm.

 - Pt. Shriram Sharma Acharya
Translated from -
 The complete works of Pt. Shriram Sharma Acharya
(Jeevan Devta Ki Sadhna Aradhana) Vol 2 - Page 1.11

17.3.11

नेता रमईराम नामी नहीं सुनामी


                    आज़ से 28 बरस पहले की बात है रमई राम यानी मुहल्ले के उदीयमान नेताजी पांव में स्लीपर डाले मालवीय चौक पे मिलते थे वहीं होती थी उनकी सुबह . और शाम तक स्ट्रीट लाईट जलवा के ही कुछ देर के लिये घर को कूच करते थे ताकि बाप-मताई को बता आवैं कि चिंता मत करियो हम ज़िंदा हैं. श्याम टाकीज (मालवीय चौक) से ही मेरा कालेज जाने का रास्ता था. रमईराम वहीं कहीं हमारे लौटने के वक़्त यानी बारह बजे के आसपास जो उनकी अल्ल सुबह होती थी. जनसहभागिता से चाय आलू बण्डा इत्यादी का सेवन कर रहे होते थे.हमको पता चल चुका था कि वे घसीट-घसाट के मैट्रिक पास हुए थे.चुनावों के समय उनकी शान देखते बनती. हर प्रत्याशी उनको पैसा देते वे सभी को आश्वासन जिताने की गारंटी.हमलोगों तक के नाम उनको रटे थे. रमई  की याद दाश्त नामों के  मामले में बहुत पक्की थी. उनकी तारीफ़ हर नेता उनके लग्गू-भग्गू यानी सभी जो सियासी थे सभी किया करते एक बार हम उनसे पूछ बैठे:-"दादा, आप का तो बड़ा नाम है हर आम-खास के बीच फ़ेमस हो आप बड़ॆ नामी हो ".
वो अपनी अचानक हुई  तारीफ़ से  लजाते हुए बोले:- अरे गिरीश, नामी तो चोर भी होता है डाकू भी अपन तो सुनामी हैं..?
 हम:-”दादा,सुनामी..?"    
वो:-हिंदी तो पढ़े हो न   सु यानी  अच्छा और  कु यानी  बुरा
हम:-जी जानता हूं. सु यानी  अच्छा और  कु यानी  बुरा
वे बोले:- मैं नामी ही नहीं "सुनामी" हूं.
 जी दादा आप सुनामी हो. अब आपके नाम के आगे सुनामी शब्द जोड़ दूंगा बतौर विशेषण .
           रमई जी की किस्मत का ताला एक दिन खुला वे एक बड़े नेता की चिलम  भरते-भरते रमई राम जी  कोई बड़ा ओहदा पा गये थे . अब उनका घर-द्वार सब कुछ है. पढ़ेलिखे नौकरी शुदा बच्चों के बाप हैं . खास पार्टी के वरिष्ठ  नेता हैं. कार पे चलते हैं. पिछले हफ़्ते बाज़ार में मिल गये हमने छेड़ दिया "दादा, आप तो नामी ओह माफ़ी चाहूंगा सुनामी रमई राम जी  हैं न ..?"
 वे खिसियानी हंसी हंसते दांत निपोरते हुए बोले :-”तुम गिरीश अब तक नहीं बदले. 
  सच "सुनामी" किसी भी देश के लिये कितनी घातक है आज़ जान पाया हूं.. . 

15.3.11

न वो बौद्ध है न वो शिंतो


उसे मालूम है कि
वो लहरों से जीतेगा नही
यह भी कि
तस्वीर के अलावा 
उसकी डूबती देह को 
कोई खींचेगा नहीं 
वो जो जापान में रहता था
हां ! कल केवल 
मरे लोगों की गिनती 
में शुमार जाएगा.
न वो बौद्ध है
                                                                                 न वो   शिंतो   
               वो बस जलजले में 
               डूब के मरता हुआ 
             जापानी
       जीता भी तो कब तक
         विकिरण से मरना तय है


ओह निप्पन हम हतप्रभ,स्तब्ध चकित तुमको देख रहें



ओह निप्पन 
हम हतप्रभ,स्तब्ध चकित
तुमको देख रहें
कितने दर्द तुम्हारे भाग में लिक्खे गये
हिरोशिमा तथा नागासाकी
 वाले निप्पन
अमेरिका का कहर भोगने के
जी उठने वाले निप्पन 
तरक्की किसे कहते हैं
हर हार के बाद सिखाते हो
शोक गीत से शायद ही
धीरज मिले….तुमको
जो
66 बरस बाद एक बार फ़िर
 शोक में डूबा देख
मेरे मन में सुनामी सा उठ रहा है बार बार
सैलाब 
ओ द्वीपों वाले देश
सुनामी को तुम ही जानते हो
तुम्ही ने उसे नाम भी दिया
तुम कितना भोगते हो
पैगोडाओं में रखे उन अवशेषों को भी
सुनामी ने निगला तो होगा
उन अवशेषों की वापस 
तथागत से 
 मांगते हम 
तुम्हारा साहस 
"साहस"
जिस के तुम
पर्याय हो
सहित ६८०० द्वीपों की पीढा के सहने की
शक्ति  मिले तुमको
उफ़ निप्पन तुम
रेडियेशन के दुष्प्रभाव की प्रयोगशाला
बनते हो 
सदा 
हम हैं तुम्हारे साथ 
मन में है भाव आर्त 
क्या कहा..?
राज़नैतिक विश्व ?
नहीं 
अब ज़रुरत है
मानवीय-विश्व की
जहां न सीमाएं हैं 
न शख्सियतें 
जो 
न जाने क्यों  
विकास के नाम पर
गाल-बजातीं हैं
खतरों की फसलें उगातीं हैं
बस इंसानियत के क़ानून हों 
यह हमने तुम्हारी  पीडा से जाना है
- विकास के पीछे के 
सोये हुए विनाश  को पहचाना है 
शायद समझेंगी 
विश्व भर की सत्ताएं 
मानवी देहों की कीमत  !!
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निप्पन =सूर्योदय वाला देश

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