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प्रवासी हिंदी साहित्य : कुछ प्रश्नों के उत्तर (अभिव्यक्ति की संपादक पूर्णिमा वर्मन का वक्तव्य)

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                       मिसफ़िट पर   पिछली पोस्ट में एक ब्लागर (शायद-साहित्यकार नहीं) के द्वारा  घोषित वाक्य से मुझे बेहद हैरानी थी  हैरानी इस लिये कि कुछ लोग बेवज़ह ही लाइम लाईट में बने रहने के लिये उलजलूल बातें किया करते हैं. हालिया दौर में ऐसे लोगों की ओर से कोशिश रही  है कि किसी न किसी रूप में सनसनीखेज बयान/आलेख पेश कर हलचल पैदा की जाए. कुछ इसी तरह के सवाल    प्रवासी साहित्य के विषय में हमेशा से बहुत से प्रश्न उठाए जाते रहे हैं। हाल ही में यमुना नगर में आयोजित एक सेमीनार में अभिव्यक्ति की संपादक पूर्णिमा वर्मन ने इनके उत्तर देने की कोशिश की है  उनका वक्तव्य यहाँ जस का तस  प्रकाशित किया जा रहा है.  प्रवासी हिंदी साहित्य : कुछ प्रश्नों के उत्तर यमुना नगर में आयोजित सेमीनार में अभिव्यक्ति की संपादक पूर्णिमा वर्मन का वक्तव्य नमस्कार- आज के इस सत्र में अनेक प्रवासी लेखकों की अनेक कहानियों पर चर्चा सुनकर कल उपजा बहुत सी निराशा का बादल तो छँट गया। जानकर अच्छा लगा कि इतने सारे लोग प्रवासी कहानियाँ पढ़ते हैं और अधिकार से उनके संबंध में कुछ कहने की सामर्थ्य रखते हैं। कल के अनेक सत्रों म

सुशील कुमार ने कहा :- पूर्णिमा वर्मन हो या सुमन कुमार घई जी , इनको साहित्य की अद्यावधि गतिविधियों की जानकारियाँ नहीं रहती।

नेट पर साहित्य - भाग -2 -सुशील कुमार सुशील कुमार ON  SATURDAY, FEBRUARY 19, 2011                                      भईया  ,  ब्लॉग पर आकर सिर्फ़ गाल बजाने से कुछ नहीं होगा। आप कुछ साहित्यकारों जैसे डा. नामवर सिंह ,   सर्वश्री राजेन्द्र यादव ,  अशोक वाजपेयी , मंगलेश डबराल ,  अरुण कमल ,  ज्ञानेन्द्रपति ,  नरेश मेहता ,  एकांत श्रीवास्तव ,  विजेन्द्र ,  खगेन्द्र ठाकुर इत्यादि या आपको जो भी लब्ध-प्रतिष्ठ लेखक-कवियों के नाम जेहन में हैं ,  के नेट पर योगदान को बतायें और यहाँ चर्चा करें। पूरा खुलासा करें कि कौन-कौन सी चीजें नेट पर हिन्दी साहित्य में ऐसी आयी हैं जो अभिनव हैं यानि नूतन हैं और उन पर  प्रिंट के बजाय सीधे नेट पर ही काम हुआ है ,  ।   तभी आपके टिप्प्णी की सार्थकता मानी जायेगी और आपको ज्ञान-गंभीर पाठक माना जायेगा, केवल शब्दों की बखिया उघेरने और हवा में तीर चलाने से काम नहीं चलने को है ,  वर्ना "मैं तेरा  ,  तू मेरा"  यानि तेरी-मेरी वाली बात ब्लॉग पर तो लोग करते ही हैं। ( आगे यहां से   )                         इस आलेख का औचित्य आपसे जानना चाहता हूं आपको चैट आमंत्रण भेजा ह

संगीता पुरी जी की कहानी मेरी जुबानी:अर्चना चावजी (पाडकास्ट)

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साभार: " स्वार्थ "ब्लाग से                आज इस व्‍हील चेयर पर बैठे हुए मुझे एक महीने हो गए थे। अपने पति से दूर बच्‍चों के सानिध्य में कोई असहाय इतना सुखी हो सकता है , यह मेरी कल्‍पना से परे था। बच्‍चों ने सुबह से रात्रि तक मेरी हर जरूरत पूरी की थी। मैं चाहती थी कि थोडी देर और सो जाऊं , ताकि बच्‍चे कुछ देर आराम कर सके , पर नींद क्‍या दुखी लोगों का साथ दे सकती है ? वह तो सुबह के चार बजते ही मुझे छोडकर चल देती। नींद के बाद बिछोने में पडे रहना मेरी आदत न थी और आहट न होने देने की कोशिश में धीरे धीरे गुसलखाने की ओर बढती , पर व्‍हील चेयर की थोडी भी आहट बच्‍चों के कान में पड ही जाती और वे मां की सेवा की खातिर तेजी से दौडे आते , और मुझे स्‍वयं उठ जाने के लिए फिर मीठी सी झिडकी मिलती। ( आगे= यहां ) संगीता पुरी जी की कहानी का वाचन करते हुए मैं अभिभूत हूं.

गौरैया तुम ये करो

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एक खबर जागने की तुम सुबह से ही लेकर आ जाती हो ये नहीं कहती तुम भी जागो मुंडेर पर चहकना तुम्हारा जगा देता है सुनो अब से कुछ और देर बाद बताने आया करो ! मुझे सोने दो जागते ही मुझे नहीं सुननी वो गालियां जो गांव की गलियों से शहर तक देतें हैं लोग व्यवस्था वश एक दूसरे को हां गौरैया तुम ये करो उन जागे हुओं को जगा दो उनको बता दो मुझे चाहिये मेरे मेरे पुराने गांव मेरे  पुराने शहर हां गौरैया तुम ये करो

एक मै और एक तू......हम बने तुम बने एक दूजे के लिए

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हिंद-युग्म साधकों की साधना अंतरज़ाल के लिये एक अनूठा उपहार है. और जब मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिलता तो मैं सब कुछ छोड़कर पूरी लगन से काम करतीं हूं. मुझे ही नही सभी को हिंद-युग्म की प्रतीक्षा होती है. मिसफ़िट पर सादर प्रस्तुत है हिन्द-युग्म से साभार  आवाज हिन्दयुग्म से ओल्ड इज़ गोल्ड श्रंखला---भाग 8 और 9----- एक मै और एक तू ---  हम बने तुम बने एक दूजे के लिए- -----  

बाबूजी

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(इस आलेख का प्रकाशन मेरे एक ब्लाग पर हो चुका है किंतु उस ब्लाग पर आवाज़ाही कम होने तथा पोस्ट में लयात्मकता के अभाव को दूर करते हुए यह पोस्ट पुन: सादर प्रेषित है  की )  बाबूजी उन प्रतीकों में से एक हैं जो अपनी उर्जा को ज़िंदगी के उस मोड़ पर भी तरोताजा रखते है जहां जाकर सामान्य लोग क्षुब्ध दिखाई देते हैं . हाल ही बात है   अरविन्द भाई को बेवज़ह फोटोग्राफी के लिए बुलवाया बेवज़ह . बेवज़ह इस लिए क्योंकि न तो कोई जन्म दिन न कोई विशेष आयोजन न ब्लागर्स मीट यानी शुद्ध रूप से   मेरी इच्छा   की पूर्ती ! इच्छा   थी   कि बाबूजी   सुबह सबेरे की अपने गार्डन वाले बच्चों को कैसे दुलारते हैं इसे चित्रों में दर्ज करुँ कुछ शब्द जड़ दूं एक सन्देश दे दूं कि :- '' पितृत्व कितना स्निग्ध होता है " हुआ भी यही दूसरे माले पर   मैं और अरविन्द भाई उनका इंतज़ार करने लगे . जहां उनके दूसरे बच्चे यानी नन्हे-मुन्ने पौधे   इंतज़ार कर रहे थे दादा नियत समय पर तो नहीं कुछ देर से ही आ सके आते ही सबसे दयनीय पौधे के पास गए उसे सहलाया फिर एक दूसरे बच्चे की आसपास की साल-सम्हाल ही बाबूजी ने. यानी सबसे जरूरत मं

वही क्यों कर सुलगती है ? वही क्यों कर झुलसती है ?

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वही  क्यों कर  सुलगती है     वही  क्यों कर  झुलसती  है  ? रात-दिन काम कर खटती, फ़िर भी नित हुलसती है . न खुल के रो सके न हंस सके पल –पल पे बंदिश है हमारे देश की नारी,  लिहाफ़ों में सुबगती  है ! वही तुम हो कि  जिसने नाम उसको आग दे  डाला वही हम हैं कि  जिनने  उसको हर इक काम दे डाला सदा शीतल ही रहती है  भीतर से सुलगती वो..!   कभी पूछो ज़रा खुद से वही क्यों कर झुलसती है. ? मुझे है याद मेरी मां ने मरते दम सम्हाला है. ये घर,ये द्वार,ये बैठक और ये जो देवाला  है ! छिपाती थी बुखारों को जो मेहमां कोई आ जाए कभी   इक बार   सोचा था कि "बा" ही क्यों झुलसती है ? तपी वो और कुंदन की चमक हम सबको पहना दी पास उसके न थे-गहने  मेरी मां , खुद ही गहना थी ! तापसी थी मेरी मां ,नेह की सरिता थी वो अविरल उसी की याद मे अक्सर  मेरी   आंखैं  छलकतीं हैं. विदा के वक्त बहनों ने पूजी कोख   माता की छांह आंचल की पाने जन्म लेता विधाता भी मेरी जसुदा तेरा कान्हा तड़पता याद में तेरी उसी की दी हुई धड़कन इस दिल में धड़कती है . आज़ की रात फ़िर जागा  उसी की याद में

एक बार तो दे दो दिल से आशीर्वाद :- "पुत्रीवति भव:"

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सलमा अंसारी                    एक बार तो दे दो  दिल से आशीर्वाद :- " पुत्रीवति भव: " दिल से आवाज़ क्यों नहीं निकलती क्या वज़ह है किन संस्कारों ने जकड़ी हैं आपकी जीभ ऐसा आशीर्वाद देने में क्यों नही उठते हाथ आपके कभी ? क्यों मानस पर छा जाता है लिंग  भेदी पर्दा ? इन सवालों के ज़वाब अब तो खोज लीजिये सरकार . क्या आप के मन में इस बयान से भी तनिक हलचल पैदा नहीं हो सकी लड़की को पैदा होते ही मार देना... . कितनी आर्त हो गई होगी यह मां इस बयान को ज़ारी करते हुए. मोहतरमा सलमा अंसारी का यह बयान हल्के से लेना हमारी भूल होगी. वास्तव में जब कलेजों में दर्द की लक़ीरें बिजली की तरह दौड़तीं हैं तब ही उभरीं हैं कराहें इसी तरह की. मुस्लिम औरतों के तालीम की वक़ालत करने वाली इन मोतरमा के दिल में हिंदुस्तान की नारियों के लिये दर्द ही नज़र आ रहा है मुझे तो. उनके बयान में एक आह्वान और एक सुलगती हुई क्रांति का सूत्रपात दिखाई दे रहा है. देश के उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी की पत्नी सलमा अंसारी के दिल में समाज के गरीब और पिछड़े लोगों के प्रति दर्द हैं। यही वजह है कि   उन्होंने 1998 मे

एक "हाड़ौती" गीत -दुर्गादान जी का...अनवरत से

अनवरत उक्त ब्लॉग से की उक्त पोस्ट से ---गाया गीत आदरणीय दुर्गादान जी से क्षमायाचना सहित प्रस्तुत कर रही हूँ ."हाड़ौती" भाषा का ज्ञान न होने से गलतियाँ  हुई है,जिससे द्विवेदी जी ने अवगत कराया है ....पर अनुमति देने के लिए आभारी भी हूँ आदरणीय द्वय की..... शीघ्र ही आदरणीय़ दुर्गादान जी की आवाज में भी सुना जा  सकेगा...द्विवेदी जी प्रयासरत हैं...तब तक के लिए इसे ही सुने ----- सच्चा शरणम --------    चलते रहने वाले हिमान्शु जी का ब्लॉग उक्त ब्लॉग पर आप सुन सकते है "सखिया आवा उड़ि चली"

शारदे मां शारदे मन को धवल विस्तार दे

दिव्य चिंतन नीर अविरल   गति   विनोदित   देह   की ! छब तुम्हारी शारदे मां   सहज सरिता     नेह की !! घुप अंधेरों में फ़ंसा मन   ज्ञान   दीपक बार     दे …!!   शारदे मां शारदे मन को धवल   विस्तार दे मां तुम्हारा चरण - चिंतन , हम तो साधक हैं अकिंचन - डोर थामो मन हैं चंचल ,  मोहता क्यों हमको   कंचन ? ओर चारों अश्रु - क्रंदन ,    सोच को विस्तार   दे …!! शारदे मां शारदे मन को धवल   विस्तार दे  अर्चना चावजी के सुरों में सुनिये यह वंदना  दे