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भ्रष्टाचार के कब्ज़े में व्यवस्था : सूचना के अधिकार का खुल के प्रयोग हो

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भ्रष्टाचार एक गम्भीर समस्या है इस हेतु क्या प्रयास हों अथवा होने चाहिये इस सम्बंध में सरकारी इंतज़ाम ये हैं :- केन्द्रीय सतर्कता आयोग, भारत :- केन्द्रीय सूचना आयोग, भारत एन्टी-करप्शन ब्यूरो , भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, १९८८   T HE PREVENTION OF CORRUPTION ACT, 1988 किंतु कितने कारग़र हैं इस पर गौर करें तो हम पाते हैं कि आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं. कारण जो भी हो  राज्य सरकारों ने भी अपने स्तर पर अपने ढांचे में इन व्यवस्थाओं को शुमार किया है. इससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा ? वास्तव में ऐसा नहीं हुआ. जहां तक राजनैतिक परिस्थियों का सवाल है वे इसके प्रतिकूल नज़र नहीं आ रहीं फ़िर किस तरफ़ से पहल हो आम आदमी सोचता है तो तुरंत मीडिया को अपना मान बैठता है पर इसे प्रबंधित करना अब आसान है. तो फ़िर क्या करें कैसे होगा इस समस्या का निदान और कैसे निपटेंगे हम इस समस्या से क़ानूनी प्रावधानों से हट कर भी कुछ सार्थक-प्रयास भारत विश्व में किस नम्बर का भ्रष्ट देश है यह कहना आसान नहीं. बस सरकारी महक़मों मे भ्रष्ट आचरणों की परिपाटी हो ऐसा है नहीं. वास्तव में ईमानदार वही जिसे मौक़ा नहीं मिला.मुझे मेरे एक मित्र ने बत

आओ थोडा सोचे----एक बच्चे की तरह

कभी-कभी बच्चे ऐसी सीख दे जाते हैं कि हम सोचने पर मजबूर हो जाते है- कि हम ऐसे क्यों नही है? क्यों हमारी सोच बडे होने पर संकीर्ण होती जाती है। अपनी गलती को स्वीकार करने मे कितनी देर लगा देते है हम । मै एक स्कूल में काम करती हूँ , इसलिए बच्चों से ही मुझे बहुत कुछ सीखने को मिलता है------- कई बार बच्चे स्कूल में झगडते रहते हैं ----मेडम इसने "ऐसा " कहा----नो मेडम, इसने पहले कहा , किसी से भी पूछ लिजिए ।----और हम उनके झगडे को , सुलझाने को पूछते रहते हैं----क्यो आपने "ऐसा" कहा?----नो मेडम----फ़िर दूसरे से भी वही सवाल---- क्यों आपने?---नो मेडम!!!!! तो फ़िर झगडा क्यों? और इसके बाद उन्हें वही कहानी सुना देते है----कि एक बार एक संत किसी पेड के नीचे बैठे थे ।एक आदमी आकर उन्हे गंदी-गंदी गाली देता है फ़िर भी वे शांत बैठे रहते है , थोड़ी देर बाद वो आदमी थक कर चला जाता है । उसके जाने के बाद सब उस संत से पूछते है----आपको वो इतनी गालीयाँ दे रहा था ,आपने उससे कुछ कहा क्यों नही? वे संत जबाब देते है---- " मैने गालीयाँ उससे ली ही नहीं , वो तो उसके

"असफ़लता"

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मां ने कहा था सदा से असफ़ल लोगों जीवन हुये के दोषों को अंवेषण करने का खुला निंमंत्रण है..... लोगों के लिये. कोई भी न रुकता पराजित के मन की समकालीन परिस्थियों को समझने बस दोष दोष और दोष जी हां यहीं से शुरु होती हैं ग्लानि जो कभी कुंठा तो कभी बगावत और कभी अपराध की यात्रा अथवा कभी पलायन . बिरले पराजित ही स्वयम को बचा पातें हैं. इस द्वंद्व से यक़ीन कीजिए....मां ने सही ही तो कहा था .

अवकाश आवेदन

पूज्य एवम प्रियवर सादर-अभिवादन विगत कई माहों से शासकीय कार्य दबाव एवम अत्यधिक कार्य से मुझे ब्लागिंग के साथ न्याय करने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है.यह कार्य  न तो उचित है और न ही इसे मान्य किया जावेगा. चिंतन उर्जा विहीन ब्लाग लिखने की  चिंता से  लिखी गई पोस्ट का स्तर कैसा होगा आप सब जानते हैं. आपसे एक माह तक दूर रहूंगा यद्यपि अर्चना चावजी मिसफ़िट पर तथा दिव्य-नर्मदा वाले आचार्य संजीव वर्मा सलिल भारत-ब्रिगेड पर आते रहेंगे उनको आपका स्नेह मिलेगा मुझे यक़ीन है.  आपको मेरी याद आये तो मेल ज़रूर कीजिये सादर गिरीश बिल्लोरे मुकुल

जिन्दगी का गीत ---मेरे साथ गाइये

 सुनिये---शुक्रवार,२४अक्तूबर २००८ को पोस्ट की गई दिगंबर नासवा जी की ये रचना---ज़िंदगी का गीत ज़िंदगी का रंग हो वो गीत गाना चाहिए यूँ कोई भी गीत नही गुन-गुनाना चाहिए शहर पूरा जग-मगाता है चरागों से मगर स्याह मोड़ पर कोई दीपक जलाना चाहिए दोस्तों की दोस्ती पर नाज तो करिये मगर दुश्मनों को देख कर भी मुस्कुराना चाहिए मंज़िलें को पा ही लेते हैं तमाम राहबर रास्ते के पत्थरों को भी उठाना चाहिए चाँद की गली मैं सूरज खो गया अभी अभी आज रात जुगनुओं को टिम-टिमाना चाहिए आदमी और आदमी के बीच का ये फांसला सुलगती सी आग है उसको बुझाना चाहिए एक बेहतरीन रचना को वाक़ई गुनगुनाना चाहिये.  एक गज़ब रचना है प्रस्तुति में जो भी कमीं हो अवश्य बताएं सादर अर्चना चावजी

"पश्चाताप : आत्म-कथ्य"

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र वीजा जी के इस बात से "सौ फ़ीसदी सहमत हूं. l"और घरेलू हिंसा के सम्दर्भ में इन प्रयासों को गम्भीरता से लेना चाहिये.मुझे इस बात को एक व्यक्तिगत घटना के ज़रिये बताना इस लिये ज़रूरी है कि इस अपराध बोध को लेकर शायद मैं और अधिक आगे नहीं जा सकता. मेरे विवाह के कुछ ही महीने व्यतीत हुए थे . मेरी पत्नी कालेज से निकली लड़की अक्सर मेरी पसंद की सब्जी नहीं बना पाती थीं. जबकि मेरे दिमाग़ में परम्परागत अवधारणा थी पत्नी सर्व गुण सम्पूर्ण होनी चाहिये. यद्यपि मेरे परिवार को परम्परागत अवधारणा पसंद न थी किंतु आफ़िस में धर्मेंद्र जैन का लंच बाक्स देख कर मुझे हूक सी उठती अक्सर हम लोग साथ साथ खाना खाते . मन में छिपी कुण्ठा ने एक शाम उग्र रूप ले ही लिया. घर आकर अपने कमरे में पत्नी को कठोर शब्दों (अश्लील नहीं ) का प्रयोग किये. लंच ना लेने का कारण पूछने पर मैंने उनसे एक शब्द खुले तौर पर कह दिया :-"मां-बाप ने संस्कार ही ऐसे दिये हैं तुममें पति के लिये भोजन बनाने का सामर्थ्य नहीं ?" किसी नवोढ़ा को सब मंज़ूर होता है किंतु उसके मां-बाप का तिरस्कार कदापि नहीं. बस क्या था बहस शुरु.और बहस के तीखे होत

"एक मुलाकात, एक फ़ैसला"

नमस्कार र्मै अर्चना चावजी मिसफ़िट-सीधीबात पर आप सभी का स्वागत करती हूँ, आइये आज आपकी मुलाकात जिस ब्लॉगर से करवा रही हूँ सुनिए उन्हीं की एक रचना उन्हीं की आवाज में --- मै आभारी हूँ रचना बजाज जी की जिन्होंने मिसफ़िट-सीधीबात के लिए अपना अमूल्य समय दिया। रचना जी का ब्लाग " मुझे भी कुछ कहना है "की ब्लागर रचना बजाज…मूलत: मध्यप्रदेश की हैं. अभी नासिक (महा.) मे रहती हैं. जीवन के उतार चड़ाव के बीच दुनिया भर के दर्द को समझने और शब्दों में उतारने वाली रचना जी की लेखनी की बानगी पेश है... रोटी -२ रोटी -२ इसलिये कि एक बार पहले भी मै रोटी की बात कर चुकी हूं…. आज फ़िर करना पड़ रही है…… बात वही पुरानी है, गरीबों की कहानी है, मुझे तो बस दोहरानी है.. इन दिनो दुनिया भर मे भारत के विकास की तूती बोलती है, लेकिन देश के गरीबों की हालत हमारी पोल खोलती है…. विकास के लिये हमारे देश का मजदूर वर्ग अपना पसीना बहाता है, लेकिन देश का विकास उसे छुए बगैर, दूर से निकल जाता है… भारत आजादी के बाद हर क्षेत्र मे आगे बढ़ा है, लेकिन उसका गरीब आदमी अब भी जहां का तहां खडा है….ं हमारे देश मे अमीरी और गरीबी क

एक प्रेरणादायक प्रसंग--महेन्द्र मिश्र जी के ब्लॉग से

सुनिये महेन्द्र मिश्र  जी के ब्लॉग समयचक्र से एक प्रेरणादायक प्रसंग--- एक निवेदन यहाँ भी 

एक मुलाक़ात प्रशांत श्रीवास्तव के साथ

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''मिसफ़िट : सीधीबात पर पिछले दिनों आपने प्रशांत श्रीवास्तव की ग़ज़ल देखी और प्रशांत भाई को दुलारा मैं आपका आभारी हूं, आज प्रशांत भाई आपसे मुलाक़ात के लिये हाज़िर हैं  पेशे-ख़िदमत प्रशांत भाई का इन्टरव्यू यू-ट्यूब के ज़रिये (भाग एक=यूट्यूब पर सीधे देखने क्लिक कीजिये " इधर " (भाग दो :"यू ट्यूब पर देखने इधर क्लिक कीजिये" और एक मधुर गीत सुनना चाहें तो बाकी सब आल इस वेल

प्रशांत श्रीवास्तव शानू की ग़ज़ल

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                   मेरे अज़ीज़ मित्र इस वक़्त मध्य-प्रदेश सरकार के राजस्व महक़मे में तहसीलदार का ओहदा रखते हैं. तमाम सरकारी कामकाज़ के साथ हज़ूर के दिल में छिपा शायर नोट शीट, आर्डरशीट से इतर बहुत उम्दा काम ये कर रहें हैं कि अपने दिल में बसे शायर को सरकारी मसरूफ़ियत का हवाला देकर रुलाते नहीं. बाक़ायदा ग़ज़ल लिखते हैं. मौज़ूदा हालातों से जुड़े रहतें हैं.  रौबदार विभाग के  नाजुक़ ख्याल अफ़सर की ग़ज़ल की बानगी नीचे स्कैन कर पेश है. पसंद आयेगी ज़रूर मुझे यक़ीन है. कौमी एकता के इर्दर्गिर्द  घूमते विचारों को करीने से संजोता है शायर प्रशांत और बुन लेता है एक गज़ल 

मुन्डी भेजो मुंडी

मनीष भाई के भेजे गए एस एम एस वाकई बेहद मजेदार होते होते हैं नमूना देखिये :- एक अपहर्ता ने श्रीमति ”क” का अपहरण कर पति श्री ख को उसकी अंगुलि के एक हिस्से के साथ संदेश भेजा-”मैने तुम्हारी बीवी का अपहरण किया है बतौर प्रूफ़ अंगुली भेज रहा हूं बीवी को ज़िन्दा ज़िन्दा चाहते हो तो पचास लाख भेजो ”पति ने तुरंत उसी पते पे उत्तर भेजा :”इस सबूत से  प्रूफ़ नही होता कि वो मेरी ही पत्नी की अंगुली है कोई बड़ा प्रूफ़ भेजो भाई ..... मुन्डी भेजो मुंडी  ” आप भी चाहें तो भेज सकतें है क्या कोई जोक याद नहीं ? कोई बात नहीं इधर जाएँ => "JOKS"

इलैक्ट्रानिक मीडिया को आत्म नियंत्रित होना ही होगा

  मीडिया को आत्म नियंत्रित होना होगा     भारतीय संविधान पर आस्था रखने वाले निर्णय से अविचलित होंगे     सायबर कैफ़े पर सतत निगरानी ज़रूरी     अवांछित/संदिग्ध गतिविधियों सूचना देने पुलिस को अवश्य दी जावे     किसी भी उकसाउ भड़काउ बयान बाज़ी से बचिये ( विस्तार- से इधर देखिये )

अरे दिमाग पे असर कैसे होगा तुम्हारे दौनो कानों की घुटने से दूरी नापी कभी ?

हरिवंशराय जी के पोते हैं जो कहेंगे वो हम सुनेंगे बोलते हैं अब बोलने के लिये किसी भाषा की ज़रूरत नहीं "What an idea sir ji...!!"  इस बिन्दु पर मन में विचार चल रहा था कि अचानक एक अज़नवी मेरे एन सामने आ खड़ा हुआ बोलने लगा तुमाए मन की बात का खुलासा कर दूं...? मुझे लगा परम ज्ञानी की परीक्षा क्यों न लूं सो हां कर दी  वो बोला :- सेलवा के एड की बात सोचत हौ न बाबू...? हां लोग काहे इन झूठी बात को मानत ह्वें  दादू....? इ झुट्टा ह्वै ... कम्पनी जुट्ठी ह्वे हामाए फ़ोनवा का मीटर ऐसने घूमत है कि बस बिना बात कै ४०० सौ रुपिया ज़ादा का बिल थमा देवत है कम्पनी ? दादू बोला :- मूरुख ब्लागर उही तो वो बोलत ह्वै...? वो चेतावनी दैके समझा रहा है  कम्पनी का फ़ण्डा ''अब बोलने के लिये किसी भाषा की ज़रूरत नहीं समझे बिना बोले का पैसा लगेगागुरु '' हम चकरा गये कि कित्ती दूर से दादू कौड़ी लाया होगा सो हमने पूछा :- दादू, आप ओकर हर बात मानत  हौ ... हम उसकी का उसके बाप दादा सबकी मानत हैं मधुशाला से शराबी तक दादू ने ये कहते हुए कांधे पे टंगे खादी के झुल्ले से बाटल निकाली और पूछा:- पियोगे..? ”न..” न सुनते