2.9.10

कर्म योगी के बगैर भारत...! सम्भव न होता


कृष्ण के रूप में आज जिसे याद किया वो बेशक एक अदभुत व्यक्तित्व ही रहा होगा युगों युग से जिसे भुलाये न भुला पाना सम्भव हो सच जी हां यही सत्य है जो ब्रह्म है अविनाशी है अद्वैत है चिरंतन है . सदानन्द है.. वो जो सर्व श्रेष्ठ है जिसने दिशा बदल दी एक युग की उसे शत शत नमन





वो जो सब में है वो जिसमें सब हैं यानि एक ”सम्पूर्णता की परिभाषा” वो जिसे आसानी से परिभाषित कैसे करें  हमारे पास न तो शब्द हैं न संयोजना सच उस परम सत्य को हम आज ही नहीं सदा से कन्हैया कह के बुलाते हैं . सन्त-साधु, योगी,भोगी, ग्रहस्थ, सभी उसके सहारे होते हैं , सच उस परम तत्व को शत शत नमन
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स्वर: रचना, प्रस्तुति :अर्चना, आलेख: मुकुल
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31.8.10

आज़ मिसफ़िट बातें :- सल्लू मियां अब कहावत बदल दी जावेगी

http://im.rediff.com/movies/2005/oct/05poster1.jpg
ऑटो एक्सपो: विवेक ओबराय ने लांच की इंपेरेटर     अपने दबंग सल्लू मियां यानी सलमान खान से विवेक ओबराय कान पकड़ के (अपने)एवम किंग खान ने हाथ जोड़कर माफ़ी मांगी इस बात को पब्लिक लगभग भूल गई थी...कि समाचार चेनलस को मौका चाहिये था विवेक और शाहरुख की माफ़ीनामा वाली क्लिपिंग्स दिखाने का सो हज़ूर आज़ दबंग के प्रमोशन मीटिन्ग में पत्रकारों ने पूछ ही लिया . दबंग सल्लू मियां ने बताया कि उनने किसी को भी माफ़ नहीं किया . एक पत्रकार पूछना चाह रहा था:-भाईजान, तो उनकी माफ़ी क्या थी पर बेचारा दबंगियत से डरासहमा कुछ न पूछ सका. पूछता तो कुछ उल्टा सीधा ज़वाब मिलता . शायद ये सोच के भी न पूछा हो:-”सलमान से खुदा भी डरता है...?”  
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मिसफ़िट पर उन बुकीज़ का हार्दिक  स्वागत है जिनके द्वारा क्रिकेट का खेल एक तरह से नियंत्रित किया जाता है. पर अपने पाबला जी और ललित जी कुछ समझते ही नहीं. सही-गलत के गुणा-भाग में लगे हैं. अरे भाई आज़ समझे कि न मैं तो कब से इन दौनो साहबान को बता रहा था किरकिट का खेल बुकी भैया लोग खिलवाते हैं पर कोई माने तब न...?
अब सारे ब्लागर्स मिल के इन बुकीज़ का स्वागत करने का सबको पता चल गया न अब जनता के सर से किरकिट का भूत उतर जाएगा 
ललित भैया ने पूछा :-”दादा, फ़िर किस का भूत चढ़ेगा पब्लिक पे ”
तो भैया जी ,दीदीयां , सखियां सब कान  खोल के सुन लीजिए इब ब्लागिंग का भूत चढ़ने वाला है इसी लिये इन बुकीज़ का स्वागत करवा दीजिये हा हा ही ही हू हू 
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29.8.10

एक कविता --शिल्पकार ललीत शर्मा जी की .....मेरे मुख से ................

आज ये कविता ललित शर्मा जी के ब्लॉग से ---जितनी मुश्किल गाने में हुई ,उतनी ही पोस्ट लगाने में भी ......


आदरणीय ललित जी से क्षमा माँगते हुए सुना रही हू क्योकि इसे गाने के लिए थोडा बदलना पडा मुझे .....




इसे पढ़िए यहाँ --------शिल्पकार के मुख से ...

28.8.10

व्यंग्य: ये आपके मित्र करते क्या हैं..!”

                                              आज़ आफ़िस में मैने सहकर्मी को  बातों बातों में बताया  मेरे एक मित्र  हैं जिनके पास शब्दों का अक्षय भण्डार है. विचारों की अकूत सम्पदा है, कुल मिला कर ज्ञानवान उर्जावान मेरे मित्र को हम अपने बीच का ओशो मानते हैं. उनकी  तर्क-क्षमता  के तो भाई हम कायल हैं.... 
सहकर्मी  ने पूछा कि :”ये आपके मित्र करते क्या हैं..!” 
मैं :-  सोचा न आपने ऐसे व्यक्ति के बारे में सोचना भी चाहिये जी ज़रूरी है पर आपको बता दूं कि वो उस कार्य को नही  करते हैं जो आप हम  करते करते हैं. जैसे हम-आप नौकरी-धन्धा आदि कुछ करते हैं है न वो ये नहीं करते. जी शादी -शुदा हैं...?
...न भई न ये भी नहीं की उनने . 
तो फ़िर क्या..करते है ..?
जी , एक बात बताओ..? 
पूछो...?
आपने अपने सहकर्मी के खिलाफ़ बास से कल चुगली की थी न...?
सहकर्मी :- अरे ये कोई बात हुई... भाई गलत बातें साहब को बताना ज़रूरी थी  न सो बता दिया. इसमें चुगली जैसी बात कहां..?
जो भी हो वो ये नहीं करते ...!
सहकर्मी थोड़ा झल्लाया पर उसकी खीज पता नहीं क्यों उभर नहीं पाई. एक दीर्घ चुप्पी के बाद उसने पूछा-सा’ब, अब तो बताईये वे करते क्या हैं. 
मैने कहा:- कल हम सबने मिल कर गुप्ता जी के ट्रांसफ़र वाली बात छिपाई थी न गुप्ता जी से ...? यहां तक के सरकारी मेल डिलीट तक कर दी पूरे कमीने पन से ..... हमने ताकि गुप्ता स्टे न पा सके है न ...!
हमारे इस काम  का आपके मित्र से क्या वास्ता ?
वास्ता है न भाई मेरा मित्र इतना कमीनापन नहीं करता जितना हम ने मिलकर किया . 
अब सहकर्मी लगभग आग बबूला होने की जुगत में था कि मैंने कहा:- भाई, भगवान से डरते हो...?
जी 
कितना ?
अटपटे सवाल में अटका सहकर्मी तुरंत तो कुछ  बोल न सका फिर धीरे से बोला :-''बहुत,,,!''
मैंने कहा:- वो नहीं डरता पूरा नास्तिक लगता है ...!
तत्क्षण सहकर्मी ने दावा ही ठोंक दिया :-लगता क्या है ही नास्तिक..फिर भी आप उसके मित्र हो...?
  जी था हूं और रहूंगा भी क्योंकि वो बिना किसी को जाने कोई राय कायम नहीं करता जैसा आपने उसे समझे बगैर नास्तिक होने का दावा कर लिया . भाई मैंने कहा था न कि वो नास्तिक लगता है , दावा तो तुम ने कर दिया कि ''लगता क्या है ही नास्तिक..'' बिना जाने समझे अरे वो भगवान से क्यों डरे ? डरे वो जो पापों में लिप्त है हमारी तरह. 
सहकर्मी ने मुझ से दूर भागने की एक कोशिश और की बोला:-सा’ब, चलूं एक ज़रूरी फ़ाईल निपटाना है . 
अब आप ही बताइये मेरा मित्रता जिससे है वो  कितना मिसफ़िट है है न....?

24.8.10

सचमुच रिश्ते आभाषी नहीं होते

https://mail.google.com/mail/?ui=2&ik=f28b6629c4&view=att&th=12a9fbf76a62a2d0&attid=0.1&disp=inline&realattid=f_gd7j8cjz0&zw 



भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना गीत के भावों के ओतप्रोत आज का दिन भारतीय संस्कृति का वो त्यौहार है जो मन मानस की    पाकीज़ा सोच को आज और
                             (अर्चना चावजी के स्वर में राखी का उपहार )
पुख्ता कर देता है. आज के लिए बहन फिरदौस का जिक्र सबसे पहले करूंगा जिनकी राखी मुझे सबसे पहले मिली .....
और मिला ये संदेश 

रक्षाबंधन के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं...    
                                                                                                            
 फ़िरदौस ख़ान     
  
तभी हरनीत का फोन मिला भैया आ रही हूं कि सेल फोन ने बताया कि शोभना चौधरी का संदेश खुलने को बेताब है
माथे पे तिलक 
चेहरे पे प्यार 
मुंह में मिठाई 
तोहफा-उपहार 
कच्चे धागे ने 
किया हाथों का श्रंगार 
लो मन गया राखी का त्यौहार
 प्यारे  भैया
राखी के इस अवसर पर प्यार दुआएँ भेज रही हूँ
दूर भले हूँ तन से लेकिन मन में भैया दूर नही हूँ
इस राखी को बाँध कलाई पर, तुम देना मान
तुमसा भाई पाकर मैं एक खुशनसीब बहन बनी हूँ
आपकी बहन

श्रद्धा  जैन 
 इस के अलावा हम सारे भाई  जी हाँ आज हम सौ से अधिक  लोग मिल कर होटल गेलेक्सी में एकत्रित होंगे मनाएंगे रक्षाबंधन हर बरस की तरह मेरा कुटुंब बहुत बड़ा है बिल्लोरे परिवार की तीन पुश्तें जुड़ेंगी यहाँ फिर क्या खूब  दृश्य होगा आप कल्पना नहीं कर सकते ६ माह के मनन मुम्बइ वाले प्रभात की बेटी ख़ुशी /ख्वाइश  से लेकर ९० साल के बड़े पापा पुरुषोत्तम जी सहित सब सभी जुड़ेंगे बस माँ सव्यसाची न होगी जिनने दस बरस पहले ये परम्परा शुरू कराई थी ......
मेरी बेटियां अक्सर मेरी कलाई पर सजी राखियाँ गिनतीं है कोहनी तक सजा मेरा हाथ देख खूब खुश होतीं हैं 
उन लोगों को बता दूं की बेटियाँ न इस त्यौहार के वास्ते बल्कि सारी कायनात के लिए कितनी ज़रूरी हैं जो बेटियों को जन्म नहीं लेने देते सच कितने अभागे और दुष्ट होते है हैं न ..................... चलिए आज स्वप्न-मंजूषा वाली अदा जी को भी जन्म दिन की शुभ कामनाएं दें दें जो किसी की बेटी ही तो हैं जिनने देश का नाम विदेशों में रोशन किया

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...