संजय कुमार के ब्लॉग से एक कविता..............
"मैंने देखा है सब कुछ"
मैंने देखा है सब कुछ
मैंने देखा है, खिलखिलाता बचपन
डगमगाता यौवन, और कांपता बुढ़ापा
मैंने देखा है सब कुछ
मैंने देखे बनते इतिहास और बिगड़ता भविष्य
टूटतीं उम्मीदें और संवरता वर्तमान
मैंने देखा है सब कुछ
मैंने देखी है बहती नदियाँ ,और ऊंचे पहाड़
मैंने देखी है जमीं और आसमान
बारिस की बूँदें और तपता गगन
मैंने देखीं हैं खिलती कलियाँ और खिलते सुमन
मैंने देखा है सब कुछ
मैंने देखी है दिवाली , और होली के रंग
मैंने देखी है ईद , और भाईचारे का रंग
मैंने देखे मुस्कुराते चेहरे और उदासीन मन
मैंने देखा है सब कुछ
मैंने देखा लोगों का बहशीपन और कायरता
मैंने देखा है साहस और देखी है वीरता
मैंने देखा इन्सान को इन्सान से लड़ते हुए
भाई का खून बहते हुए , और बहनों का दामन फटते हुए
मैंने देखा है माँ का अपमान, और पिता का तिरस्कार
मैंने देखा प्रेमिका का रूठना , और प्रेमी का मनाना
मैंने देखा है सब कुछ
मैं कभी हुआ शर्म से गीला, तो कभी फख्र से
कभी जीवन की खुशियों से, तो कभी दुखों से
मैंने देखा लोगों द्वारा फैलाया जातिवाद और आतंकवाद
मैंने देखी इमानदारी और, चारों और फैला भ्रष्टाचार
मैंने देखा झूठ और सच्चाई
इंसानों के बीच बढती हुई नफरत की खाई
मैंने देखा है सब कुछ
मैंने देखा है सब कुछ अपनी इन आँखों से
ये आँखें नहीं सच का आईना हैं और आईना कभी झूठ नहीं बोलता
हाँ मैंने देखा है ये सब कुछ .............................
30.6.10
26.6.10
न पक इतना कि डाली से नाता टूट जाएगा- पके अमरूदों डाली से गिर जाने की आदत है !
न तुझसे कोई शिक़वा है, न एक भी शिकायत है
खु़दा जाने , तेरे दिल में क्यों पलती अदावत है !
तुझे महफ़ूज़ रक्खा जिन आस्तीनों ने अब तक
ये क्या कि आज़कल तुझको उनसे भी शिक़ायत है !
न पक इतना कि डाली से नाता टूट जाएगा-
पके अमरूदों डाली से गिर जाने की आदत है !
अग़रचे हो सही शायर हुदूदें लांघना मत तुम
ये क्या सांपों की बस्ती के सपोलों की सी आदत है..?
ख़ुदा की राह पे चलना कोई सीखे या न सीखे
किसी वादे को न तोड़ें यही उसकी इबादत है.!
खु़दा जाने , तेरे दिल में क्यों पलती अदावत है !
तुझे महफ़ूज़ रक्खा जिन आस्तीनों ने अब तक
ये क्या कि आज़कल तुझको उनसे भी शिक़ायत है !
न पक इतना कि डाली से नाता टूट जाएगा-
पके अमरूदों डाली से गिर जाने की आदत है !
अग़रचे हो सही शायर हुदूदें लांघना मत तुम
ये क्या सांपों की बस्ती के सपोलों की सी आदत है..?
ख़ुदा की राह पे चलना कोई सीखे या न सीखे
किसी वादे को न तोड़ें यही उसकी इबादत है.!
24.6.10
रक्त-दान ,देह-दान...................महादान .........मानते हैं .....सतीश जी .......और आप???
नमस्ते ..........
आओ आज सब मिल करे प्रार्थना .................सतीश सक्सेना जी की पसंद की ..........इसे पसंद करते हुए वे कहते है .........
आओ आज सब मिल करे प्रार्थना .................सतीश सक्सेना जी की पसंद की ..........इसे पसंद करते हुए वे कहते है .........
20.6.10
कुपोषण : सामाजिक तहक़ीक़ात
जी हां ये सच है कि कुपोषण को हम खत्म कर सकते हैं यदि संकल्प लें तो कोई भी ताक़त नहीं जो हमारे देश इस समस्या को मुक्त करने से हमको रोके !!
जी हां , भारत वर्ष में कुपोषण की समस्या को एक जटिल सवाल की तरह पेश किया है जो वास्तव में उतनी जटिल है नहीं इसे आसानी से दूर किया जा सकता है . यदि कुछ एतियात बरतें तो भारत के माथे लगे इस कलंक को आसानी से हटाया जा सकता है . कुछ अति उत्साही लोग भारत को ईथोपिया के साथ ला के खड़ा करने कि कोशिश करतें हैं. जो वाक़ई एक सनसनाहट फ़ैलाने की नाक़ाम कोशिश है
अगर हम कारणों पर गौर करें तो पाएंगे कि सामाजिक सोच ही इस समस्या का दोषी है. समाज़ का बेटियों को बोझ समझना इस के कारणों में से एक कारण है
- बेटे की प्रतीक्षा करते दम्पत्ति परिवार का आक़ार बढ़ा लेतें हैं.
- उन बेटियों को बोझ मानना जो किशोरावस्था आते-आते ब्याह दी जाती हैं यानि बेहद कठिन उम्र होतीं हैं किशोर-वय की बेटियों को इस उम्र में जो नहीं देते परिवार . इस स्थिति के चलते भटकाव आ ही जाता है. किशोरी को बिना फ़िज़िकली स्ट्रांग एवं प्रजनन के योग्य होने संबंधी बातों का ज्ञान दिए इस बात का ज्ञान अवश्य ही दे दिया जाता है कि तुम पराई हो . तुम्हारा कल ससुराल के लिए विधाता ने बनाया है.. ससुराल जाते ही बिटिया के पांव भारी होते ही पुत्र वती भव: का आशीर्वाद दिया जाता है . किसी ने कभी गर्भवती महिला को पुत्रीवती होने का आशीर्वाद नहीं दिया. खानपान में अनियमितता, आहार थाली में अपर्याप्तता तत्वों युक्त भोज्य पदार्थों से जैसे तैसे पेट भर लेने की आदत आम भारतीय औरत की हो जी जाती है. मैने अपनी दादी-नानी और मां को कभी समय पर आहार लेते नहीं देखा. मेरी दादी और मां दौनो ही गाहे बगाहे एनीमिया की शिकार हो जाती थीं. किंतु जब बहुत बीमार हो जातीं थी तब ही आराम करते देखा है हमने वरना बस सदा काम ही काम. दूसरों के लिये जीना उनका धर्म था. ये करिश्मा ही था कि हम बच्चों का जन्म के समय का वज़न 3.00 किलो ग्राम से कम न था और हम कुपोषण का शिकार नहीं हुए किन्तु उन दौनों को जीवन भर अल्परक्तता से जूझना पड़ा. यद्यपि यह मसला विषयेतर है किंतु यह सत्य है कि अल्प-आय वाले परिवारों की अल्प-रक्तता ग्रस्त महिलाएं इससे अधिक कठिन स्थितियों से जूझतीं हैं. किशोरियों के स्वास्थ्य को लेकर सरकारें कुछ कम कर रहीं हैं ऐसा कहना ग़लत ही नहीं बल्की सफ़ेद झूठ है.हमारे पास इसे देखने का वक़्त होना चाहिये . सरकारों ने जो किया या जो कर रहीं है उसे आप भी देखिये और एक ज़िम्मेदार भारतीय नागरिक होकर ग़रीब अशिक्षित परिवारों को जानकारी ज़रूर दीजिये
किशोरीयां को अपने स्वास्थ्य की देखभाल के लिये मानसिक रूप से तैयार करने की ज़िम्मेदारी समाज की और परिवारों की है. ताकि प्रजनन के पूर्व वे स्वस्थ्य हों. तथा प्रजनन के वक़्त अल्परक्तता को समय रहते आकार हीन कर दें.
क्रमश: जारी आगे देखिये : कुपोषण कारण और निदान , हमारे प्रयास
संदर्भ (लिंक्स) 18.6.10
पाबला जी की सराहना करें हम
हिन्दी ब्लाग एग्रीगेटर में एक और एग्रीगेटर को पाकर सभी प्रसन्न हैं
आईये मैं आप हम-सब मिलकर इसका स्वागत करें इस प्रयास के लिये पाबला जी को एक बार फ़िर बधाईयां
चित्र साभार : कार्टून-टुडे
16.6.10
एक गीत.....................पॉड्कास्ट...................गीत...... शास्त्री जी (मयंक ) का........
नमस्ते.............आज सुनिए ........ ये गीत ........इस गीत की लय के लिए रावेन्द्रकुमार रवि जी की आभारी हूँ ........(आपको शायद पता न हों वे अच्छा गाते भी हैं.) ................
इसे यहाँ पढे........
इसे यहाँ पढे........
14.6.10
दिलीप जी का गीत सुनिये अर्चना चावजी के सुरों में
भोपाल त्रासदी का ये चित्र देखा और मन विचलित हो गया..दिलीप भाई ने .इससे ही प्रेरित होकर ये रचना लिखी...
थी कभी छत पर मेरे कुछ धूप आकर तैरती...
थी कभी छत पर मेरे कुछ धूप आकर तैरती...
और नीचे छाँव भी थी सुस्त थोड़ी सी थकी...
छाँव के कालीन पर नन्हा खिलौना रेंगता...
कुछ उछलती कूदती साँसों को मुझपे फेंकता...
हाँ वो बचपन था कभी कुछ झूमता कुछ डोलता...
आँख मून्दे मुँह सटाये मुझसे क्या क्या बोलता....
फिर तभी आवाज़ कोई खनखनाते प्यार की...
कुछ तो ख़ाले धूप मे क्यूँ खेलता तू हर घड़ी...
फिर मेरी उंगली पे चादर थी कई लटका गयी...
प्यार ममता आज फिर नीयत मेरी भटका गयी...
फिर तभी वो घूमते पहिए वहाँ आकर रुके...
चूमने मुन्ने को दो लब थे ऊँचाई से झुके...
फिर धरी थी हाथ उसके चमचमाती कुछ खुशी...
फिर उतरकर लाड़ ने मासूमियत थी गोद ली...
फिर किवाडो मे छिपे जा प्यार के पंछी सभी...
मैने भी थोडा उचक्कर एक ठंडी साँस ली...
पेड़ था पीपल का इक मैं जाने कबसे था खड़ा...
पर बगल के लाल घर ने था सदा बाबा कहा...
हाँ बहू ही थी मेरी वो नित्य आकर पूजती...
बंधनों मे बाँध कर कुछ मांगती कुछ पूछती...
रात अपनी डाल से सहला रहा था छत वही...
बह रही ममता हृदय से देख कुछ पाया नही...
देखते ही देखते था इक धुआँ सा छा गया...
आज फिर हैवान कोई रंग अपना पा गया...
देखते ही देखते सब सत्य यादें बन गये...
वो हँसी खाँसी मे बदली और सन्नाटे हुए....
लाल सूरज तो उगा पर चादरें फीकी हुई...
सामने थी प्यार की तस्वीर वो बिखरी हुई....
छाँव के कालीन के नीचे ही वो रखे गये...
याद मे उनकी उन्ही पे पात सब गिरते रहे...
आज मैं बस खोखला सा एक मृत कंकाल हूँ...
याद का धन हूँ संजोए फिर भी मैं कंगाल हूँ...
धूप ने भी छाँव को अब घर निकाला दे दिया...
कल सुना हैवान ने भी कुछ निराला कह दिया...
वो हज़ारों ख्वाब जो बिखरे यही पर धूल मे...
कल हज़ारों मे ही सारे मैय्यतों पर बिक गये...
इंसाफ़ की मूरत ने पट्टी और कस कर बाँध ली...
राजनेता गीदड़ों ने भी है चुप्पी साध ली....
आज फिर इंसान की कीमत कहीं पर लग गयी...
और जाने आँख कितनी, राह तक तक थक गयी...
लाश को क्या बेचते हो, याद ये बेचो ज़रा...
इस ज़मीन के खोल अंदर झाँक कर देखो ज़रा...
हो भले कुछ हड्डियाँ या राख हो अंदर बची...
ढूँढती इंसाफ़ को वो आँख अब भी है खुलीअर्चना जी की आवाज़ में अब सुनिये यह गीत
मेरी आवाज़ में अब सुनिये: मन बैठा विजयी सा रथ में !!
इश्क-प्रीत-लव:
पर प्रकाशित गीत मेरी आवाज़ में सुनना चाहेंगे जो इन सभी सुधि पाठकों भाया :निलेश माथुर जी,संगीता स्वरुप ( गीत ), दिव्या जी ,राम त्यागीजी , विनोद कुमार पांडेय जी,अमिताभ मीत जी,अजय कुमार जी ,दिलीपभाई ,डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक , एम वर्मा जी ने आप को भी पसन्द आयेगा तय है
पर प्रकाशित गीत मेरी आवाज़ में सुनना चाहेंगे जो इन सभी सुधि पाठकों भाया :निलेश माथुर जी,संगीता स्वरुप ( गीत ), दिव्या जी ,राम त्यागीजी , विनोद कुमार पांडेय जी,अमिताभ मीत जी,अजय कुमार जी ,दिलीपभाई ,डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक , एम वर्मा जी ने आप को भी पसन्द आयेगा तय है
13.6.10
ब्लॉग पोस्ट---------------------------------फ़िरदौस खान
नमस्ते............आज एक नया प्रयास है ..........कुछ कहने से बेहतर होगा.................सुनना..........
इसे यहाँ पढे.........
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इसे यहाँ पढे.........
12.6.10
एक गीत.....................पॉड्कास्ट.......
मेरे प्रयास को सराहने केलिए मै आप सभी श्रोताओं की आभारी हूँ.....आगे भी सहयोग मिलता रहेगा इसी कामना के साथ .............आपके सुझावों का स्वागत है.........
आज प्रस्तुत है................
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी की इस रचना को आप यहाँ पढ सकते हैं.................
http://uchcharan.blogspot.com/
10.6.10
एक लघुकथा....................पॉड्कास्ट.........
नमस्कार..............‘‘मिसफ़िट:सीधीबा त‘‘ पाडकास्टर के रूप में मेरी पहली कोशिश .............................आज इस ब्लॉग पर ये मेरा पहला प्रयास है ...................सुझाव सादर अपेक्षित है.........
आज सुनिए....... दीपक"मशाल" की लिखी एक लघुकथा................शीर्षक है ------"दाग अच्छे हैं"............. आप इसे यहाँ पढ सकते हैं
आज सुनिए....... दीपक"मशाल" की लिखी एक लघुकथा................शीर्षक है ------"दाग अच्छे हैं"............. आप इसे यहाँ पढ सकते हैं
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31.5.10
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