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तूने दस्तक ज़रूर दी होगी..?

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पीपुल्स समाचार जबलपुर में किसलय,महेन्द्र,गिरीश,और सुमित्र जी

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किसलय जी , महेन्द्र मिश्र जी हम हैं जी ,फ़िर सुमित्र जी

मज़ाक मज़ाक में एक पोस्ट

ब्लागजगत में समझौतावादी लक्षण दिखाई दे रहे हैं..डी. के.  साहब की यह पोस्ट उकसाती नज़र आ रही है हा हा हा .....गोदियाल सा’ब ने बीज बो दिया ...ही...ही....ही....? पी. डी सा’ब अभी हम सब ने   [यह शब्द नवीन प्रतिस्थापित है ] सुबह सुबह आदरणीय ज्ञानदत्त  पाण्डे जी के स्वास्थ्य की मंगल कामना की है और यह अपेक्षा ............ बात कुछ हज़म नहीं हुई. वैसे इस तरह के आह्वान की ज़रूरत क्यों आन पड़ी पी.डी. सा’ब. सच मानिये कोई भी इस तरह की कल्पना लेकर ब्लागिंग के लिये नहीं आता बस वह आता है लिखने के वास्ते और दिशा तय कर देतें हैं हम लोग जो पहले से मैदान में डटें हैं. ब्लाग पर वानरी हड़्कम्प का न होना चिन्ता का विषय नहीं भले ही मज़ाक में में चिंता व्यक्त की गई हो. आपकी मज़ाहिया प्रतिटिप्पणी के गहरे अर्थ हैं:- पं.डी.के.शर्मा"वत्स" , @सुरेश चिपलूनकर जी,भाई जल्दी से फुर्सत मे आईये...अब तो ये शान्ति  कुछ असहनीय सी होने लगी है :-) यह टिप्पणी मनुष्य के अंतस में बसे एक सत्य को उज़ागर करती है........ युद्ध की प्रतीक्षा शांति से अधिक की जाती है.हर व्यक्ति इसमें शामिल होता है जिनका वर्गीकरण निम्नानुसार है :

आंचल के आंचल का अमिय

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ड्राईंग रूम दीवारों दाग बना रही अपनी बेटी को चाक देते वक्त  आंचल ने सोचा न था कि अनिमेष उसे  अचानक रोक देगा , अनिमेष का मत था कि घर को सुन्दर सज़ा रहने दो आने जाने वाले लोग क्या कहेंगे ? ”कहने दो, मुझे परवाह नहीं, बच्ची का विकास अवरुद्ध न हो ” "भई, ये क्या, तुम तो पूरे घर को " "हां, अनिमेष मैं अपनी बेटी के विकास के रास्ते तुम्हारी मां की तरह रोढ़े न अटकाने दूंगी समझे..?" अनिमेष को काटो तो खून न निकले वाली दशा का सामना अक्सर करना होता था, उसे अच्छी तरह याद है मां ने पहली बार अक्षर ज्ञान कराया था उसे तीलियों के सहारे. ड ण आदि के लिये रंगीन  ऊन का अनुप्रयोग करने वाली तीसरी हिन्दी पास मां के पास दुनियादारी गिरस्ती के काम काज़ के अलावा भी पर्याप्त समय था हम बच्चों के वास्ते. आंचल के आंचल में अमिय था  किन्तु वक्त नहीं  तनु बिटिया के पेट  में बाटल का दूध ............उसका विरोध करना भी हमेशा अनिमेष को भारी पड़ता था. आंचल का जीवन बाहरी दिखावे का जीवन   था. उसे मालूम था कि किसी भी तरह अपनी स्वच्छन्दता को कायम रखेगी  आंचल ! तर्क का कोई मुकाबला न कर पाना अनिमेष क

बी.बी.सी. पर देखिये

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मंगलौर हादसे के शिकार एवम विमान पर न चढ़ पाने वाले यात्रीयों की सूची बी. बी. सी . द्वारा जारी की गई है हर्षिनी पूंजा एरों जोएल फर्नांडीज निहा इम्तियाज़ टी.वी. भास्करन कोमलवैली एलिंकील नारायण कंथव राव वाणी नारायण राव वैष्णवी नारायण राव मोहम्मद इश्क रफ़ीक अहमद हसन अब्बा अबूबकर हिबा अज़ीना (बच्चा) मुशीना (बच्चा) हाइफ़ा हशा (नवजात बच्ची) जोएनरिचर्ड सलदन्हा उमर फ़ारूक मुहम्मद शाहिदा नुशरथर ज़ीशान अब्दुल रहमान कन्नुर जुलेखा बानो नज़ीमा मुहम्मद अशरफ सत्यनारायण बलाकुर्या सुजाता राव फतीमामेहजान शफक़त रशद शफ़कत महमूद (नवजात बच्चा) खदर अम्मांगोद मुहम्मद शफी सुहैब मुहमम्द नासिर (बच्चा) बीबी सरां (बच्चा) नबीहा मुहम्मद नासिर (बच्चा) मुहम्मद अशरफ मैमूना अशरफ अशहाज़ अब्दुल्ला (बच्चा) आएशा अफशीं (बच्चा) पल्लवी शकुंतला लोबो वेनीशनिकोला लोबो (बच्चा) वैशालीफ्लायड लोबो (बच्चा) के.एम. अब्दुल्ला मर्विन डीसूज़ा (सवार नहीं हो पाए) रोस्ली शिबू गोडविना थॉमस (बच्चा) ग्लोरिया थॉमस (बच्चा) भागली प्रभाकर कमांडम कुनहाब्दुल्ला शशिकांत पूंजा

“कुपोषण एक अहम् मुद्दा होना ही चाहिये !“

कुपोषण एक अहम् मुद्दा होना ही चाहिये एन डी टी वी की इस एक्सक्लूजिव रिपोर्ट अवश्य  देखिये :-'' कमी की कीमत '' भारत के संदर्भ  में यह अब तक की सबसे प्रभावशाली जन चेतना फैलाने वाली इस रिपोर्ट में. कुपोषण को लेकर जो बात कही गई है उसका वास्ता हम से है और हो भी क्यों न एक अरब हो रहे होने जा रहे हम लोगों के कल की तस्वीर साफ़ सुन्दर और ताज़ी हो...... मित्रो शब्दों नारों से नहीं भारत की तस्वीर बदलेगी हमारी सोच को आकार देने से.....! साथियो हाथ बढ़ाने की ज़रूरत है....आपको क्या करना है.............. कच्ची उम्र में सामाजिक सम्मान रीतियों  के नाम पर बालिकाओं के  विवाह  रोकें हर मां को  चिकित्सक की देखरेख में सुरक्षित प्रसव के लिये प्रेरित करें सहयोग करें बेटियों में होने वाली खून की कमी को रोकें गर्भवति महिला को आयरन के उपयोग की प्रेरणा दें  शिशु को कम से कम चार माह तक सिर्फ़ माता के दूध की सलाह दी जाये  बच्चे  को कम से कम पांच बार भोजन स्वच्छता  जन्म में अन्तर  सूक्ष्म-पोषक तत्व के प्रयोग पर बल 

मेरी प्रतिमा की स्थापना

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बात पिछले जन्म की है. मैं नगर पालिका में मेहतर-मुकद्दम था.पांच वार्ड मेरे नियंत्रण में साफ़ सुथरे हुआ करते थे. लोगों से मधुर सम्बंध यानी जब वे गरियाते तो हओ भियाजी कह के उनका आदर करता. सदाचारी होने की वज़ह से लोग भी कल्लू मेहतर का यानी मेरा मान करने लगे.इसका एक और कारण ये था कि मैने सरकारी खज़ाना लूटने वाले एक अपराधी से पैसा बरामद कराया पूरा धन सरकार के अफ़सरों को वापस कराया . इधर परिवार में मैं और दुखिया बाई  ही थे. मेरी  पहली पत्नी दुखिया बाई से हमको कोई संतान न थी सो दूसरी ब्याहने की ज़िद करती थी दुखिया. उसके  आगे अपने राम की एक न चली. सो दुखिया  की एक रिश्तेदारिन को घर बिठाया. यानि दो से तीन तीन से चार होने में बस नौ माह लगे. दुखिया बाई का दु:ख मानों कोसों दूर हो गया. नवजात शिशु को स्नेह की दोहरी छांह मिली. घर में खुशहाली जीवंत खेतों की मानिंद मुस्कुरा रही थी. ग़रीब का सुख फ़ूस के  तापने से इतर क्या हो सकता है. भारतीय गंदगी को साफ़ करते कराते टी.बी. का शिकार हो गये हम. और अचानक गांधी जयंती को हमारी मौत हो गई.  ब्राह्मणों-बनियों-ठाकुरों-लोधियों  की चाकरी करते कराते पचास की उमर में