30.9.09

नए ब्लाग का स्वागत कीजिए

 राज दरबार

जनतंत्र ब्लाग

महावीर

कहीअनकही बातें

Media house

रवि वार्ता ( Ravi Varta )

आम आदमी

नए ब्लागस का स्वागत कीजिए इनमे एक ब्लाग "रविकिशन जी"का है . भोजपुरी अभिनेता के इस ब्लॉग 'रवि वार्ता' को भी दुलारिये अन्य ब्लाग्स के साथ ताकि सभी को आपका स्नेह मिल सके .
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 ब्लॉगवाणी से साभार 
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29.9.09

ब्लागवाणी "बवाल की मनुहार या धमाल"

प्रिय
बवाल जी
आपका आलेख देखा समीर भाई की आपके आलेख पर चिन्ता जायज है. आप स्पष्ट कीजिए अपने कथन को..........?
सूरज तो रोज़ निकलेगा दिनचर्या सामान्य सी रहेगी, किन्तु सूर्योदय पर "करवा-चौथ" की पारणा का संकल्प लेना कहां तक बुद्धिमानी होगी. ब्लागवाणी का बंद होना हिन्दी ब्लागिंग के नेगेटिव पहलू का रहस्योदघाट्न करता है.
हिन्दी चिट्ठों के संकलकों की सेवाएं पूर्णत: नि:शुल्क अव्यवसायिक है जिसकी वज़ह से आज़ सोलह हज़ार से ज़्यादा चिट्ठे सक्रिय हैं......न केवल ब्लागवाणी बल्कि चिट्ठाजगत का भी विशेष अविस्मरणीय अवदान है.जो साधारण ब्लागर के लिए उस मां के अवदान की तरह है जो सेवाएं तो देती है किंतु इस सेवा के पेटे कोई शुल्क कभी नहीं लेती..... यदि यह बुरा है तो संकलकों के विरोधी सही हैं....उनकी बात मान के सब कुछ तहस नहस कर दिया जाए
मुझे लगता है कि संकलकों के पीछे जो लोग काम करतें हैं वे समय-धन-उर्ज़ा का विनियोग इस अनुत्पादक कार्य के लिए क्यों कर रहें हैं........... शायद उनकी भावना "हिन्दी-ब्लागिंग" को उंचाईयां देना ही है......... मेरी तुच्छ बुद्धि तो यही कह रही है आपकी पोस्ट में आपने जो सवाल खडे किए हैं उससे आपकी तकनीकि मालूमात तो उज़ागर हो रही है...? किंतु छोटे भाई रचनात्मकता-सतत सृजन की आदतें भी एक पहलू है जिसका अनदेखा आपसे होगा शायद पोष्ट लिखते वक्त आप थके हुए होंगें.... कोई बात नहीं.......... सुधार कर लीजिए ..............
जहां तक मेरी पोष्ट पर प्रकाशित एक अनाम टिप्पणीकर्ता{जिसे मैं जबलपुरिया बोली में "......"मानता हूं} की टिप्पणी का सवाल है उनकी हीनता का परिचय है.
आपका आलेख आपके आपके स्पष्ट विचारों का होना ज़रूरी है .
साफ़ साफ़ कहो न "ब्लागवाणी हमारी पसंद है उसे हमें वापस लाने मैथिली जी सिरिल जी के पास दिल्ली चलना है टिकट बुक करा रहा हूं चलोगे बवाल "
ताज़ा खबर :- ब्लागवाणी वापस आई : सभी मित्रों को बधाई 

28.9.09

ब्लागवाणी का ये कैसा फ़ैसला

अब ब्लागवाणी को पीछे छोडकर आगे जाने का समय आ गया है इस  टिप्पणी के साथ ब्लागवाणी टीम ने अपाने आप को ब्लागर्स से दूर कर लिया . इस संकलक ने आगे कहा :-"इसलिये आज जरूरी है कि ब्लागवाणी पसंद और उसमें बनाये गयी सुरक्षा तकनीकों के बारे में बताया जाये क्योंकि इसकी क्रेडिबिलिटी से उन सब ब्लागों की क्रेडिबिलिटी जुड़ी है जिन्हें पसंद किया गया है, और उन सब ब्लागरों की भी जो पसंद करते हैं.
अगर आपने ब्लागवाणी पसंद का उपयोग किया हो तो यह देखा होगा कि एक पसंद देकर दोबारा दूसरी पसंद देने से नहीं होती. ऐसा सुनिश्चित करने के लिये कई मिली-जुली तकनीकों का इस्तेमाल किया गया था जिसमें IP Address, Cookies, Sessions आदी का इस्तेमाल होता है. इसलिये ब्लागवाणी की पसंद का दुरुपयोग साधारण प्रयोक्ता के लिये आसान नहीं था.
ब्लागवाणी को सुचारू रूप से चलाना के लिये कई तकनीके और सिस्टम बनाये गये थे जिनसे उसके कामकाज में विराम न हो और वह निर्बाध रूप से चलती रहे. ब्लागवाणी का हर हिस्सा कई तरीके की सुरक्षा तकनीकों का इस्तेमाल करता है, ब्लागवाणी पर आने वाली हर पसंद का पूरा हिसाब रखा जाता है. ब्लागवाणी पर आने वाली हर पोस्ट पर आने वाली हर पसंद का समय एवं IP address ब्लागवाणी के डाटाबेस में मौजूद है.
पिछले कुछ समय में एसी ब्लाग पोस्ट आयीं जिनमें ब्लागवाणी की पसंद का दुरुपयोग करके बेबात बढती पसंद पर चिंता जताई गई थी. अपने इन्टरनेट कनेक्शन को बार-बार डिसकनेक्ट करके फिर से कनेक्ट कर IP बदल कर और ब्राउज़र में कैश मिटाकर या IP बदलने वाले औजरों का प्रयोग करके पसंद बढाने के बारे में बताया गया था.
इन पसंदो का अध्ययन कर पाया गया कि नकली पसंद की IP में पैटर्न थे (जैसे सिर्फ आखिरी अंको का बदलना, आदि). एक सुरक्षा प्रोग्राम बनाया गया जो समय-समय पर चलकर इस पैटर्न को डिटेक्ट करके नकली पसंद निकालता है. अगर किसी ब्लाग पर निश्चित प्रतिशत से अधिक नकली पसंदे आयीं हों तो वह प्रोग्राम उस ब्लाग पर आने वाली पसंदे कुछ समय के लिये रोक देता है.
सुरक्षा उपाय तभी ज्यादा कारगर होते हैं जब हैकरों को उनके बारे में पता न हो. इसलिये सुरक्षा उपाय हमेशा गुप्त रखे जाते हैं जिनके बारे में कोई पब्लिक अनाउंसमेंट नहीं की जाती. जानकारी सार्वजनिक करने का अर्थ है कि इनका तोड़ निकालने का साधन दे देना. दूसरे क्या ब्लागवाणी हर सवाल उठाने वाले ब्लागर की बढ़ी हुई पसंद की ip सार्वजनिक करती रहती ? यह अपमानजनक होता या सम्मानजनक? यह नकली पसंद किसी अन्य द्वारा भी तो की जा रही हो सकती थी. ब्लागवाणी के पास इन पसंदों की आईपी पता और समय मौजूद है.
अंतत:
ऐसा नहीं है कि हम सोचते नहीं हैं, या हमारी विचारधारा नहीं है. हमने कभी भी उनको अपने काम पर हावी नहीं होने दिया. ब्लागवाणी इसका सबूत कैसे दे? क्यों दे?
ब्लागवाणी चलाना हमारी मजबूरी कभी न थी बल्कि इस पर कार्य करना नित्य एक खुशी थी. पिछले दो सालों में बहुत से नये अनुभव हुए, मित्र भी मिले. उन सबको सहेज लिया है, लेकिन अब शायद आगे चलने का वक्त है. तो फिर अब हम कुछ ऐसा करना चाहेंगे जिससे फिर से हमें मानसिक और आत्मिक शांति मिले.
इन दो सालों में आप सबके हार्दिक सहयोग मिला इसके लिये बहुत आभार. अब ब्लागवाणी को पीछे छोडकर आगे जाने का समय आ गया है."

विदा दीजिये ब्लागवाणी को,
टीम ब्लागवाणी
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ब्लॉगवाणी के संचालकों से एक विनम्र आग्रह है की यह सही है "कि ब्लागवाणी चलाना हमारी मजबूरी कभी न थी बल्कि इस पर कार्य करना नित्य एक खुशी थी  किन्तु आपके अवदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता. आप प्रतिदिन एक सूची मात्र जारी कीजिए ...... ये नंबर वन की दौड़ ........... आज की स्थिति में न सिर्फ आपकी वरन आम ब्लॉगर की नज़र में भी ठीक न थी. न है...... हो सकता है कि मुझसे कई मित्र असहमत होंगे किन्तु मैं कहे देता हूं जो मेरे मन में है -"जिसे आज गर्म जोशी से स्वीकारा सराहा और पसंद किया जाता है उसे कल कोई चर्चा में भी लाए इसकी कोई गारंटी नहीं अत: मेरी राय  है संकलकों को अपना काम जारी रखना चाहिए...........टिकेगा वही जो प्रभावशाली होगा ...... कुम्हडे के फूल न टिके हैं न टिक सकते हैं " अगर ब्लागवाणी इन पसंद जुगाडू लोगों से आजिज़ आ कर काम बंद करती है तो पुन: विचारण का अनुरोध स्वीकारिए ............
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27.9.09

घूसखोरी के अलावा कौनसा उदाहरण जहां "समाजवाद" का अर्थ समझाया जा सके बच्चों को ...?


पाठ्य क्रम का प्रथम पाठ भारतीय सरकारी व्यवस्था और उत्कोच के बीच एक ऐसा समीकरण है जिसे हर सामान्य बुद्धि वाला प्राणी समझ लेता है. इस पोस्ट की आधार पोस्ट में कहा गया है एक सिविल सेवा प्रशिक्षण में गए उनके मित्र को सेलरी-स्लिप का पांच सौ रुपया देना पडा ? मित्र इधर वो बेचारा बाबू किस किस को छोडेगा अब इस बात को सीधे प्रशिक्षण के पाठ्यक्रम में कैसे शामिल करेगा कोई संस्थान सो बाबू साहब ने इसे "घूस-विग्यान:आओ करके सीखें" की शैली में सिखा दिया.अब भैया आप ही बताईये इस तरह की घूसखोरी के अलावा कौनसा उदाहरण जहां "समाजवाद" का अर्थ समझाया जा सके बच्चों को ...?

26.9.09

श्री जब्बार ढाकवाला की सदारत में कवि-गोष्ठी

                               

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                     अपने आप में ज़माने की पीर को समोने से  शायरों कवियों का वज़ूद  है . शायर का दिल तो होता है उस बच्चे के उन हाथों की मानिंद जो हाथ में अम्मी-अब्बू,खाला,ताया,ताऊ,यानी बड़े बुजुर्गों से मिली ईदी से भरे होते हैं . इसी रेज़गारी की साल-सम्हाल में लगा बच्चा जब उसे सम्हाल नहीं पाता और यकायक बिखर जाती है रेज़गारी ठीक उसी तरह शायर-कवि-फनकार भी बिखर हर्फ़-हर्फ़  जाता है गीत में ग़ज़ल में नज़्म में जिसकी आवाज़ से सारे आलम में एक सनाका सा खिंच जाता है ..... कहीं कोई नयन नीर भरा होता है तो कहीं कोई दिल ही दिल में  खुद-ब-खुद सही रास्ते की कसम खा लेता है.   ______________________________________________________________________________________________
     जबलपुर में 25/09/09 को ज़नाब  :श्री जब्बार ढाकवाला आयुक्त,आदिम जाति कल्याण विभाग ,मध्य-प्रदेश की सदारत  में एक गोष्ठी का आयोजन "सव्यसाची-कला-ग्रुप'' की और से किया गया .  श्री बर्नवाल,आयुध निर्माणी,उप-महाप्रबंधक,जबलपुर इस के अध्यक्ष थे.गिरीश बिल्लोरे मुकुल के  संचालन में  होटल कलचुरी जबलपुर में आयोजित कवि-गोष्ठी में इरफान "झांस्वी",सूरज राय सूरज,डाक्टर विजय तिवारी "किसलय",रमेश सैनी,एस ए सिद्दीकी, और विचारक सलिल समाधिया  ने काव्य पाठ किया .
विस्तृत रिपोर्ट किसलय जी के  ब्लॉगपर शीघ्र 











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25.9.09

बिंदु-बिंदु विचार

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कल एक कवि गोष्टी करनी है बताओ किस किस को बुला लूं..?
 मेरे सवाल पर भाई सलिल समाधिया बोले-"क्या बताऊँ आप से बेहतर किसे जानकारी है शहर के कवियों के बारे में मैं तो किसी को जानता नहीं ?
सलिल भाई,मैं सभी को जानता हूँ इसी  कारण पशोपेश में हूँ ....! 
मेरा हताशा भरा उत्तर सुनकर सलिल भाई का ठहाका गूंजने लगा .
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योग निद्रा 
 वो सरकारी आदमी योग निद्रा में लीन अपनी  फाइल पर निपूते की संपदा पर बैठे सांप सा बैठा हुआ था,कल्लू की मौत के बाद अनुकम्पा नियुक्ति के केस में कल्लू की औरत से कुछ हासिल करने की गरज से उसकी फाइल एक इंच भी नहीं खिसका रहा था. एक दिन अचानक बाबू बालमुकुन्द नामदेव का निधन हार्ट अटैक से हो गया और एक नए बाबू ने कुर्सी सम्हाली . दौनों विधवाए की अनुकम्पा नियुक्ति की फाइल को लेकर उसी टेबल के सामने बैठीं थी. और नए गुप्ता बाबू योग निद्रा में थे . 

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23.9.09

बबली जी की टिप्पणी

   "जय माता दी " 
आज़ आपका ब्लाग देखा कई दिनों से बिज़ी था सो नए डवलप्मेंट बीस-पचीस बार घुटना खुजाने के बाद पकड पाया. फ़र्ज़ी नाम से अभद्र टिप्पणी करने वालों की "आत्मा" के मरने की खबर आपको मिल चुकी होगी. वैसे ब्लागिंग में आपसी पीठ खुजाउ प्रवृत्ति को सभी अच्छी तरह समझतें हैं. मुझे तो यकीन नहीं हो रहा आप सरीखे ब्लागर से किसी की कोई "रार" हो सकती है. किंतु आपको एक बात साफ़ तौर पर बता दूं कि "कुछ गुरु चेला" हिंदी-ब्लागिंग की जिस प्रकार दुर्गति कर रहे हैं वैसी कल्पना किसी ने नहीं की थी. मुझे पुख्ता सूचना है कि हिन्दी ब्लागिंग में कुछ  "गिरोह" सक्रीय हैं जो ये सब कराते रहतें है. इससे उनको आनंद की अनुभूति ठीक वैसे ही होती है जैसे की -"किसी गधे को बैसाख माह में दूर तक घास चरने से होती है  "

आप के मुद्दे को लेकर  कल दिनांक 24 /09/09 को  रात्रि आठ बजे  सिटी-काफ़ी हाउस में एक शोक (खोज) सभा रखी गई है जिसका सारा खर्च मैं वहन करने जा रहा हूं आप सभी ब्लागराने-जबलपुर नाव पर बैठकर सादर आमंत्रित हैं.   बबली जी     की इन लाइनों को देखकर लगता नहीं की वे ही "हुन्गामा"  हैं

न तुमसे कोई शिकवा है और न कोई गम,
सिर्फ़ मेरा चेहरा देखा पर दिल नहीं देखा सनम,
याद हर पल आयेगी वो साथ गुज़रे मीठे पल,
जब जब सोचूंगी तुम्हें, आंखों से आंसू आयेंगे निकल !



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 प्रेम-शर्मा जी के आलेख पर टिप्पणी चस्पा कर के किसी विधर्मी ब्लागर ने उनके पुरुषत्व को चुनौती दे डाली. शर्मा जी न केवल सरनेम से शर्मा हैं वे वाकई में अनावश्यक विवादों का जोखिम नहीं उठाते यानि कुल मिला कर सादगी भरी है उनमें....उनके साथ जो हुआ दुखद है . और शर्मा जी को जब पता चला कि टिप्पणी कार का आई पी पता "बबली जी" का है और विवाद में उनका नाम आ रहा है तो "बबली जी " जो एक प्रतिष्ठित ब्लागर हैं को अपना पक्ष रखना ज़रूरी है .... ?
हो सकता है कि वे अभी बिज़ी हों किंतु ऐसा करना {अपना पक्ष रखना} ज़रूरी है.
रहा ब्लागजगत में इस प्रकार की घटनाओं का मामला सो बता दूं कि "कुछ लोग मैने भी चिन्हित किए हैं"-जो इस तरह के विवादों के जनक हैं ........... वैसे मुझे भी यकीन नहीं हो रहा कि बबली जी ये कर सकतीं हैं..... ? किंतु शर्मा जी भी उथले नहीं हैं उनकी सोच साफ़ है.


21.9.09

संस्कार धानी के शताब्दी सूर्य :"छैल कवि "

एक हादसे ने बिस्तर पर लगातार लेते रहने को मज़बूर कर दिया था मुझे 1999 की दीपावली बाज़ार से खरीददारी की गरज से अपने भतीजे भतीजी अंकुर आस्था को लेकर निकला था सारी खरीददारी के बाद जाने कैसे स्लिप हो गया फीमर बोन फ्रेक्चर का कष्ट आज तक साथ है । हाल चाल लेने तो कई लोग आए उनमें गीतकार अभय तिवारी ने सुझाया :-"गिरीश भाई , पड़े पड़े और कमजोर हो जाओगे "
"तो क्या करुँ...?"
"मेरी मदद पलंग पर लेटे-लेटे........कल से मैं स्वतंत्र मत के साहित्यिक पन्ने के लिए सामग्री संग्रह कर के ला दूगां आप करना सम्पादन । उस समय दैनिक अखबार स्वतंत्र मत के साहित्यिक पन्ने के लिए प्राप्त सामग्री में से मेरे पास "श्रीयुत हरिकृष्ण त्रिपाठी द्वारा लिखित "कुछ पांडू लिपियाँ स्केन कर आप सुधि जनों के लिए सादर





18.9.09

" परोसते परोसते भूल गए कि परसाई के लिए कुछ और भी ज़रूरी है !"

प्रगतिशील लेखक संघ जबलपुर इकाई एवम विवेचना ने 22/08/09 को परसाई जी को याद न किया होता तो तय था कि अपने राम भाई अनिल पांडे के घर की तरफ़ मुंह कर परसाई जी को समझने की कोशिश करते . जिनके परसाई प्रेम के कारण तिरलोक सिंह से खरीदा "परसाई-समग्र" आज अपनी लायब्रेरी से गुमशुदा है .हां तो परसाई जी को याद करने जमा हुए थे "प्रगतिशील-गतिशील" सभी विष्णु नागर को भी तो सुनना था और देखे जाने थे राजेश दुबे यानि अपने "डूबे जी" द्वारा बनाए परसाई के व्यंग्य-वाक्यों पर बनाए "कार्टून".कार्यक्रम की शुरुआत हुई भाई बसंत काशीकर के इस वाक्य से कि नई पीडी परसाई को कम जानती है अत: परसाई की रचनाऒं पाठ शहर में मासिक आवृत्ति में सामूहिक रूप हो. इन भाई साहब के ठीक पीछे लगा था एक कार्टून जिसमे एक पाठक तल्लीन था कि उसे अपने पीछे बैठे भगवान का भी ध्यान न था सो हे काशीकर जी आज़ के आम पाठक के लिए कैटरीना कैफ़ वगैरा से ज़रूरी क्या हो सकता है. आप नाहक प्रयोग मत करवाऎं.फ़िर आप जानते हो कि शहर जबलपुर की प्रेसें कित्ते सारे अखबार उगल रोजिन्ना उगल रहीं हैं,दोपहर शाम और पाक्षिक साप्ताहिक को तो हमने इसमें जोडा ही नहीं ! फ़िर टीवी और धर्मपत्नि (जिनके पास पत्नि नहीं हैं उनकी प्रेमिकाऎं जिनके पास वे भी नहीं हैं उनकी "......") के लिये वक्त निकालना कितना कठिन है. आप हो कि बस........?
मित्रो बसंत काशीकर ने परसाई रचनावलि से "संस्कारों और शास्त्रों की लडाई "का पाठ किया.रचना तो सशक्त थी ही वाचन भी श्रवणीय रहा है.फ़िर बुलाए गए अपने मुख्य अतिथि श्री विष्णु नागर जी जो साहित्यकारों खेमेंबाज़ी(जिसके लिए प्रगतिशील कदाचित सर्वाधिक दोषी माने गए हैं) को लेकर दु:खी नज़र आए उनने सूचित किया कि "बनारस के बाद दिल्ली हिन्दी-साहित्य के लिये बेहद महत्वपूर्ण स्थान है वहां भी स्थापित साहित्यकारों के लघु-समूह हैं जो अपने समूह से इतर किसी को स्वीकारते ही नहीं" आदरणीय नागर जी आपको "नैनो-तकनीकी" की जानकारी तो होगी ही. तभी "ममता जी ने अपने प्रदेश में इसका विरोध किया ताकि बंगाल के लोगों की "सोच" में इस तकनीकी का ’वायरस’ प्रविष्ट न हो. लेकिन इस तकनीकी को साहित्यकारों ने सबसे पहले अपनाया".......हमारी संस्कारधानी में तो यह व्यवस्था बकौल प्रशांत कौरव "शहर-कोतवाली,थाना,चौकी,बीट,का रूप ले चुकी है...नए-नए लडकों का साहित्यिक खेमेबाज़ी को इस नज़रिए से देखना परसाई जी की देन नहीं तो और क्या है..? खैर छोडिए भी आपके वक्तव्य में साहित्यकारों की आत्म-लिप्तता के तथ्य का ज़िक्र आया मेरा व्यक्तिगत मत है इसे "आत्म-मुग्धता" मानिए और जानिए..!! आप तो मालवा से वास्ता रखतें हैं वहां की बुजुर्ग महिलाएं कहतीं सुनी जातीं हैं "काणी अपणा मण म सुहाणी.." स्थिति कमोबेश यही तो है. आपने अपने वक्तव्य में कई बार सटीक मुद्दे उठाए जैसे लेखक को उच्चें नाम वाले पाठक की तलाश है जैसे नामवर सिंह जिनके नाम का बार बार उल्लेख करते हुए आपने कहा कि लेखक इस तरह के पाठक चाहतें हैं ! इस वास्तविकता से कोई भी असहमत नहीं. आपसे इस बिन्दू पर भी सहमति रखी जा सकती है "कि प्रकाशक अफ़सर प्रज़ाति के साहित्यकार को मुक्तिबोध का दर्ज़ा दे देता है " वैसे आपको सूचित कर दूं कि मैं भी छोटी नस्ल का अधिकारी हूं अधिकारी तो हूं आपकी सलाह मानते हुए किताब नहीं छपवाउंगा. शायद आप आई०ए०एस० अधिकारी जैसे अशोक बाजपेयी,श्रीलाल शुक्ल,आदि को इंगित कर कह रहे थे सो सहमत हैं सभी. वैसे इन दौनों ने हमारी समझ से कोई ऐसा काम नहीं किया जिससे साहित्यकार बिरादरी के नाम पे बट्टा लगे . अशोक जी के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है किन्तु शुक्ल जी की किताब तो हम अधिकारीयों के लिए महत्वपूर्ण है. अपने भाषण में आपने इस बात का भी ज़िक्र किया कि आपने परसाई जी से कहा था (जिसका आपको मलाल भी है) "कई दिनों से आप बाहर नहीं लेखन पर इसका प्रभाव पडा है ".....अपने कथन में भूल स्वीकारोक्ति का सम्मान करता हूं नागर जी ......
इस सचाई से कोई इंकार ही नहीं कर सकता कि नित नए गैर बराबरी के कारण उभर रहे हैं सर्वहारा को इस्तेमाल पूरी ताकत और चालाकी से किया जा रहा है . किसी साहित्यकार की कलम ने " सर्वहारा-शोषण की नई तकनीकि का भाण्डा नहीं फ़ोडा .
सुधि पाठको विष्णु नागर के बाद बारी आई मेरे मुहल्ले के निवासी जो डाक्टर मलय की बतौर अध्यक्ष उन्हौनें बताया :"परसाई ने स्वयं व्यंग्य को विधा में नहीं रखा वे (परसाई जी) अपने लेखन को इसे "स्प्रिट" मानते थे जबकी मेरा मत है कि उनके लेखन में सटायर-स्प्रिट है अत: व्यंग्य-विधा है" डाक्टर मलय का कहना है कि परसाई जी का मूल्यांकन नहीं किया गया.
कार्यक्रम में कार्टूनिष्ट राजेश दुबे यानि डूबे जी को संचालक भाई बांके बिहारी व्यौहार का सामने आमंत्रित न करना सबको चौंका रहा था कि हिमांशु राय की पहल पर डूबे जी बुलवाए गए उनसे कुछ कहने का अनुरोध हुआ हाथ जोडकर कहा "मैने जो कहना था कार्टूनों के ज़रिए कह दिया"
विशेष-बिन्दू और लोग जो मौज़ूद थे वहां
पूरे कार्यक्रम का सारभूततत्व परसाई जी के मूल्यांकन न किए जाने का बिन्दू रहा.
इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर की प्रस्तुति विवेचना के कलाकारों नें की
वक्तव्यों में लेखन,पठन-पाठन,के संकट के साथ परसाई जी के समकालीन व्यक्तित्वों का उल्लेख किया गया
कार्यक्रम में रजनीश के अनुयायी "स्वामी राजकुमार भारती" उपस्थित थे.
परसाई को औरों के सामने अपने तरीके से परोसने वालों को मलाल है कि उनका मूल्यांकन अभी भी शेष है
परसाई जी इतने मिसफ़िट तो न थे कि आलोचक भाई उनका मूल्यांकन नहीं कर पाए... चिन्ता मत कीजिए महानता के मूल्यांकन के लिए समय सीमा का निर्धारण स्वयम विधाता ने करने की कोशिश नहीं की मामला समय को सौंप दीजिए.
हां एक बात और ये जो आपने सवाल उठाया है कि अब एका नहीं रहा तो आप तो तय कर चुकें हैं मुक्तिबोध के साथ सारे विषय चुक गए हैं जब विषय की यह गति है तो साहित्यिक संगठन की ज़रूरत क्या है ?

16.8.09

मांगो तो हजूर दिल और जाँ सब कुछ तुमको दे दूंगीं



वो दूर से देख मुस्कुराती शोख चंचल नयनो वाली सुकन्या मुझे भा गई ऊपर की जितनी भी तारिकाएँ हैं उनका हुस्न फीका पड़ गया उसके सामने।
मैंने पूछा - मुझे ,कुछ देर का वक्त मिलेगा
क्यों नहीं ! ज़रूर मिलेगा ।
उत्तर में थी मादक खनक ...एक-एक काफी का आफ़र उसमें भी सहज स्वीकृति मैंने फ़िर कहा -आज मेरी छुट्टी है जबलपुर के पास भेडाघाट है चलो घूम आते हैं उसमें भी सहमत लगा आज लाटरी लग गई वीरानी जीवन बगिया में प्रेमांकुर फूट पड़ा .... सोचा आज पहले दिन इतनी समझदार ओर मुझे सहज स्वीकारने वाली अनुगामिनि मिल गई अब जीवन का रास्ता सहज़ ही कट जाएगा।
बातों ही बातों में मैंने कहा: तुम मुझे कुछ देने का वादा कर सकोगी ?
वादा क्या दे दूंगीं जो कहोगे
दिल,
हां ज़रूर
मोहब्बत
ऑफ़ कोर्स
वफ़ा
क्यों नहीं ?
और कभी जब मुझे वक्त की ज़रूरत हो तो
ज़नाब ये सब कुछ अभी के अभी या फ़िर कभी ?
सोच के बताता हूँ कुछ दिन बाद कह दूंगा
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घर में माँ के ज़रिये पापा तक ख़बर की मुझे ".......'' से प्यार हो गया है । अब चाहता हूँ कि मैं शादी भी उसी से करुँ ! घर से इजाज़त मिलते ही मैंने फोन डायल किया....98........... लेटेस्ट रूमानी गीत न होकर "एक मीरा का भजन हे री मैं तो प्रेम दीवानी मेरा....''सुन कर लगा आग उधर भी तेज़ है इश्क की जैसी इधर धधक रही है ।
बातों ही बातों में मैंने उससे वो सब दिल,मोहब्बत, वफ़ा और वक्त की मांग कीउसने कहा शाम को तुम्हारे घर रहीं हूँये सब साथ ले आउंगी
शाम को पापा,माँ,दीदी अपनी होने वाली बहू का इंतज़ार कर रहे थे। मेरे मन में भी चाकलेट के रूमानी विज्ञापन वाले प्यार का जायका ज़ोर मार रहा था। एक खूबसूरत नाज़नीन का घर में आना मेरे लिए दिल,मोहब्बत, वफ़ा और वक्त साथ लाना मेरी उपलब्धि थी ।
सभी सभी उससे बारी बारी बात कर रहे थे अन्त में मुझे मौका मिला . मैने पूछा "वो सब जो मैने कहा था "
"हां लाई हूं न"
सुनहरी पर्स खोल कर उसने मेरे हाथों रख दीं - दिल,मोहब्बत,वफ़ा और वक्त की सीडीयां और पूछने लगी : पुरानी फ़िल्मों के शौकीन लगतें हैं आप . ?
"हां"
अब मुझे फ़िल्म ज़हर और ज़ख्म की सी डी ज़रूर ला देना .
ज़रूर ला दूंगी.... पर एक हफ़्ते बाद कल मेरी एन्गेज़्मेंट है. एन्गेज़्मेंट के बाद हम दौनो हफ़्ते भर साथ रहेंगे एक दूसरे को समझ तो लें .

ब्लागर्स जो सेलिब्रिटीज़ हैं


14.8.09

जबलपुर रत्न एक नई परंपरा


यूँ भेजा था न्योता
अपने जबलपुर को


विश्वास की परंपरा को कायम रखने का संकल्प लिए नई दुनिया">नई दुनिया ने जब रत्नों की तलाश शुरू की थी तो लगा था कि शायद व्यावसायिक प्रतिष्ठान द्वारा की गई कोई शुरुआत जैसी बात होगी ? किंतु जब जूरी ने रत्नों को जनमत के लिए सामने रखा तो लगा नहीं कुछ नया है जिसे सराहा जावेगा आगे चल कर , हुआ भी वही आज मैं जितने लोगों से मिला सबने कहा :"वाह ऐसी व्यक्ति-पूजा विहीन मूल्यांकन की परम्परा ही है विश्वास की परंपरा ओर सम्मानित हुए विशेष सम्मान शिक्षा क्षेत्र : एसपी कोष्टा उद्योग क्षेत्र : सिद्धार्थ पटेल चिकित्सा क्षेत्र : डॉ. सतीश पांडे न्याय क्षेत्र : अधिवक्ता आरएन सिंह पर्यावरण क्षेत्र : योगेश गनोरे
छा गए मंत्री जी भा गए बल्लू
करीब पांच घंटे तक चले आयोजन के दौरान लोगों का मनोरंजन करने के लिए प्रख्यात बाँसुरी वादक बलजिंदर सिंह बल्लू, पॉलीडोर आर्केस्टा के कलाकारों सहित प्रियंका श्रीवास्तव, प्रसन्न श्रीवास्तव, श्रेया तिवारी ने शानदार रचनाएं पेश कर लोगों को मुग्ध कर दिया।बलजिंदर सिंह ने जब बांसुरी से "तू ही रे" और "पंख होते तो उ़ड़ जाती रे" की तान छे़ड़ी तो मेरे मन को किसी भी तरह की बाहरी हलचल बर्दाश्त नहीं हो रही उद्योगमंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने साबित कर दिया कि वे वास्तव में एक स्थापित कलाकार हैं । मंत्रीजी ने देशभक्ति गीत "कर चले हम फिदा जानो तन साथियों" "छोटी-छोटी गैया, छोटे-छोटे ग्वाल" पेश किया। प्रियंका के गीत "बलमा खुली हवा में" से लोग सावन के भीने अहसास में खो गए। जबकि प्रसन्न श्रीवास्तव ने "मेरे महबूब कयामत होगी" सुनाकर लोगों को किशोर कुमार की याद ताजा करा दी।
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संस्कारधानी के सपूत न्यायविदों की वर्तमान पी़ढ़ी के लिए ऋषितुल्य न्यायमूर्ति जीपी सिंह को पहला "जबलपुर रत्न" सम्मान आज़ सबसे ज़्यादा चर्चा का विषय रहा नई दुनिया ने इन विभूति का सम्मान कर विश्वास की परम्परा को कायम रखा
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तरंग प्रेक्षागृह में गुरुवार शाम एक गरिमामय समारोह में जबलपुर रत्न सहित साहित्य-कला, शिक्षा, चिकित्सा, न्याय, समाजसेवा, पर्यावरण, उद्योग, खेल क्षेत्रों की नौ हस्तियों को रत्न सम्मान दिया गया जिनमें । समारोह की अध्यक्षता मप्र उच्च न्यायालय के प्रशासनिक न्यायाधीश जस्टिस आरएस गर्ग ने की, मुख्य अतिथि निर्माता-निर्देशक सुभाष घई थे। इस मौके पर बतौर अतिथि संगीतकार आदेश श्रीवास्तव और निर्देशक विवेक शर्मा के अलावा नईदुनिया समूह के प्रधान संपादक पद्मश्री आलोक मेहता भी विशेष रूप से उपस्थित थे। रूपरेखा की विस्तृत जानकारी स्थानीय संपादक आनंद पांडे ने दी। कार्यक्रम को संगीतकार आदेश श्रीवास्तव और निर्देशक विवेक शर्मा ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम का संचालन प्रदीप दुबे व सुरेंद्र दुबे "(सव्यसाची अलंकरण से अलंकृत) "ने किया। अंत में आभार प्रदर्शन महाप्रबंधक मनीष मिश्रा ने किया।
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संस्कार धानी जबलपुर के नौ रत्न
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जबलपुर के रत्न : साहित्य-डा०चित्रा चतुर्वेदी/कला-अरुण पांडे/समाज-सेवा: पुष्पा बेरी/खेल-रत्न :मधु यादव/शिक्षा रत्न : ईश्वरी प्रसाद तिवारी/उद्योग-रत्न:वी एन दुबे /चिकित्सा-रत्न:डा0 एम सी० डाबर/न्याय-रत्न :एस सी दत्त/पर्यावरण रत्न: नरसिंह रंगा
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सुभाष घई ने कहा : "बच्चों के मामले सही सोच की ज़रूरत है उनकी प्रतिभा को पहचानिये /आजाद भारत में अंग्रेजियत की सेवा पर टिप्पणी करते हुए सुभाष घई ने कहा गुलामी के दौर में हमने उनकी सेवा की आज पश्चिमी संस्कृति की नक़ल कर उनकी सेवा कर रहें हैं "/अपार संभावनाएं है रजत पट पर प्रतिभाओं की मया नगरी को हमेशा ज़रूरत थी , है और रहेगी ।
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आलेख : गिरीश बिल्लोरे मुकुल / सहयोग श्रीमती सुलभा बिल्लोरे /राजेश दुबे "डूबे जी" एवं शैली खत्री

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