संदेश

जसवंत जी आज यही गुन गुना रहें है

मांगो तो हजूर दिल और जाँ सब कुछ तुमको दे दूंगीं

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वो दूर से देख मुस्कुराती शोख चंचल नयनो वाली सुकन्या मुझे भा गई ऊपर की जितनी भी तारिकाएँ हैं उनका हुस्न फीका पड़ गया उसके सामने। मैंने पूछा - मुझे ,कुछ देर का वक्त मिलेगा क्यों नहीं ! ज़रूर मिलेगा । उत्तर में थी मादक खनक ... एक - एक काफी का आफ़र उसमें भी सहज स्वीकृति । मैंने फ़िर कहा - आज मेरी छुट्टी है जबलपुर के पास भेडाघाट है चलो घूम आते हैं । उसमें भी सहमत लगा आज लाटरी लग गई । वीरानी जीवन बगिया में प्रेमांकुर फूट पड़ा .... सोचा आज पहले दिन इतनी समझदार ओर मुझे सहज स्वीकारने वाली अनुगामिनि मिल गई अब जीवन का रास्ता सहज़ ही कट जाएगा। बातों ही बातों में मैंने कहा : तुम मुझे कुछ देने का वादा कर सकोगी ? वादा क्या दे दूंगीं जो कहोगे दिल , हां ज़रूर मोहब्बत ऑफ़ कोर्स वफ़ा क्यों नहीं ? और कभी जब मुझे वक्त की ज़रूरत हो तो ज़नाब ये सब कुछ अभी के अभी या फ़िर कभी ? सोच के बताता हूँ कुछ दिन बाद कह दूंगा । ############################################################## घर में माँ के ज़रिये पापा तक ख़

ब्लागर्स जो सेलिब्रिटीज़ हैं

Amitabh Bachchan Vivek Sharma Akshay Kumar Harbhajan Singh Arbaaz Khan Rahul Bose Arunoday Singh Malavika Sangghvi Madhureeta Anand Dr. Anjali Mukherjee Diana Hayden Pavan Choudary Thota Tharrani RJ Kalindi Shahana Goswami Sudip Bandyopadhyay

जबलपुर रत्न एक नई परंपरा

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यूँ भेजा था न्योता अपने जबलपुर को विश्वास की परंपरा को कायम रखने का संकल्प लिए नई दुनिया">नई दुनिया ने जब रत्नों की तलाश शुरू की थी तो लगा था कि शायद व्यावसायिक प्रतिष्ठान द्वारा की गई कोई शुरुआत जैसी बात होगी ? किंतु जब जूरी ने रत्नों को जनमत के लिए सामने रखा तो लगा नहीं कुछ नया है जिसे सराहा जावेगा आगे चल कर , हुआ भी वही आज मैं जितने लोगों से मिला सबने कहा :"वाह ऐसी व्यक्ति-पूजा विहीन मूल्यांकन की परम्परा ही है विश्वास की परंपरा ओर सम्मानित हुए विशेष सम्मान शिक्षा क्षेत्र : एसपी कोष्टा उद्योग क्षेत्र : सिद्धार्थ पटेल चिकित्सा क्षेत्र : डॉ . सतीश पांडे न्याय क्षेत्र : अधिवक्ता आरएन सिंह पर्यावरण क्षेत्र : योगेश गनोरे छा गए मंत्री जी भा गए बल्लू करीब पांच घंटे तक चले आयोजन के दौरान लोगों का मनोरंजन करने के लिए प्रख्यात बाँसुरी वादक बलजिंदर सिंह बल्लू, पॉलीडोर आर्केस्टा के कलाकारों सहित प्रियंका श्रीवास्तव, प्रसन्न श्रीवास्तव, श्रेया तिवारी ने शानदार रचनाएं पेश कर लोगों को

विश्व के सबसे पहले कामरेड कृष्ण का कर्मवाद चिर स्थाई है

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मेरे कवि अग्रज घनश्याम बादल ने कहा था अपने गीत में " यहाँ खेल खेल में बाल सखा तीनो तिरलोक दिखातें हैं रण भूमि में भी शांत चित्त गीता उपदेश सुनातें है " वही बृज का माखन चोर से महान कूटनितिज्ञ,प्रेम का सर्वश्रेष्ठ आइकान बने कृष्ण को अगर भारत और विश्व अगर सर्वकालीन योगेश्वर कह रहा है तो उसमें मुझे कोई धर्मभीरुता नज़र नहीं आ रही. कृष्ण को यदि भगवान कहा जा रहा है तो गलत नहीं है. कर्म योगी का सबक तत्-समकालीन परिस्थितियों के बिलकुल अनुकूल था. और तो और यह सबक भी उतना ही समीचीन है जितना कल था । जहाँ तक द्वापर काल की ग्रामीण व्यवस्था की कल्पना करें तो प्रतीत होता है कृष्ण के बगैर तत्-समकालीन ग्राम्य-व्यवस्था की पीर को समझने और मज़दूर किसान को शोषण से मुक्ति दिलाने का सामर्थ्य अन्य किसी में भी न था।कृष्ण का कंस शासित मथुरा को गांवों से सुख के साधन वंचित कराने की सफल कोशिश सिद्ध करती है - कि आज से 5100 सौ वर्ष पूर्व भी वो दौर आया था जब सर्वहारा को ठगे जाने की प्रवृत्ति व्याप्त थी योगेश्वर क

बाल श्रम को रोकिये मित्र

सलीम भाई के नाम खुला ख़त

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प्रिय सलीम भाई " आज के परिपेक्ष्य में बात कीजिये हिन्दू धर्म में ये सारी बातें हैं ही नहीं हिंदुत्व केवल और केवल विश्व में सर्वाधिक गंभीर धर्म है न तो इस धर्म ने सत्ता की पीठ पर सवारी कर विश्व में संप्रभुता प्राप्त करने की कोशिश की है नहीं यह आयुधों के सहारे / आतंक के सहारे विश्व पर छाया . इसे मानव ने सहजता से स्वीकारा, हिंदुत्व कभी भी प्रतिक्रया वादी नहीं रहा आप अपने पूर्वजों जो पूछिए या उनका इतिहास जानिए कभी भी औरत को दोयम दर्जा नहीं मिला. मैं साफ़ तौर पर आपको बता दूं आप भारतीय परिवेश में रह कर नकारात्मक सोच की बानगी पेश कर रहें हैं आप गार्गी,मैत्रेयी,सीता,आदि के बारे में जान लें. आप जान लें हिन्दू धर्म में ही नारी को शक्ति कहा है. कट्टर पंथियों नें रजिया सुलतान, को बर्दाश्त नहीं किया. गोंडवाना के इतिहास को देखिये वीरांगना माँ दुर्गावती को भी अंग्रेजों के साथ मिल कर किस ने शहीद कराया सब जानतें हैं. चलिए छोडिये इस धर्म में बिना वामा के कोई अनुष्ठान पूर्ण नहीं माने जाते . जबकि कुछ पूजा गृहों / आराधना स्थानों पर नारी का प्रवेश वर्जित है मित्र इस पर गौर किया कभी आपने. कई धार्म

समाज में बदलने को कुछ बाक़ी नहीं है...?....

विश्व की अधिकाधिक आबादी जिस मूल्यहीनता से गुज़र रही है उसके लिए कितने भी प्रयास कियें जावें मुझे नज़र नहीं आ रहा की कोई परिवर्तन आएगा। आज का दौर "आर्थिक-लिप्सा" का दौर है । कुलमिला कर विश्व को अब एक ऐसे श्रीमद्‍भगवद्‍गीता की ज़रूरत है जो विश्व की इस गन्दगी को समाप्त । केवल और केवल धन की लिप्सा से मुक्ति के लिए सार्थक चिंतन की ज़रूरत है आप सोच रहें होंगे इस तरह के प्रवचनों का आज और वो भी इस ब्लॉग जगत में क्यों कर रहा हूँ...? मेरा यह करने का सीधा-साफ़ कारण यह है कि उपदेश,लेखक,विचारक,जों भी आज बाँट रहे हैं चाहे वो कितना भी सर्व-प्रिय,है शुद्ध व्यापारी नज़र आता है मुझे। इन सभी को आत्मसंयमयोग के स्मरण/अनुकरण की ज़रूरत है। ओशो ने भी कहा है "" यह भी हो सकता है कि आदमी अंधा हो और अपने को जानता हो तो वह आँख वाले से बेहतर है। आखिर तुम्हारी आँख क्या देखेगी? उसने अंधा होकर भी अपने को देख लिया है। और अपने को देखते ही उसने उस केंद्र को देख लिया है जो सारे अस्तित्व का केंद्र है। " इन मुद्दों पर विचार करना ज़रूरी है। यदि अब भी इस और ध्यान नहीं दिया तो कल हम कह देंगें:-&

मुखेटाबाज टिप्पणीकर्ता कोई नाजायज़ जिस्म होगा !

देर रात आज ऑफिस से लौटा हूँ नेट खोला तो भाई महेंद्र मिश्रा जी का यह आलेख पढ़कर दुःख हुआ, किसी का अश्लील अनाम टिप्पणीकार होना उसकी कुंठित बुद्धि का परिचायक है मुझे तो ये लोग नाजायज़ तरीके से दुनियाँ में फ़िर दुनिया से ब्लॉग जगत में आए लोग लगतें है। किसी के आलेख से असहमत होना स्वाभाविक है किंतु इस असहमति को इस तरह व्यक्त करना निकृष्टता है। ऐसे अनाम/गलीच/गंदे टिप्पणीकारों को ईश्वर जितनी ज़ल्दी हो सके सदगति दे ऐसी कामना है । महेंद्र जी हम सभी आपके साथ है ।

ट्रांसलेशन करना गूगल बाबा की क्षमताओं से परे ?

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Home Text and Web Translated Search Tools नीचे लिखे आलेख का हिन्दी तर्जुमा इस लिंक http://translate.google.co.in/translate_t# पर किया NEW DELHI: "The Budget has been formulated against the background of strong recovery in national income and agriculture, and an equally impressive improvement in our balance of payments." That was how Pranab Mukherjee opened his speech the last time he presented a full Budget in 1984. When he starts his speech today, you can bet he won't say that. The radically different situation he now finds himself in — an economy desperately trying to keep its growth momentum in the face of a global slump — will mean he has a more difficult balancing act to do than most finance ministers. Any Budget calls for trade-offs between various desired goals given the finite money available, but Mukherjee has the unenviable job of finding larger than normal amounts of money to fund a stimulus package and various social welfare schemes at a time when a slug

ढाबॉ पे भट्ठियां नहीं देह सुलगती है .

यहाँ भी एक चटका लगाइए जी इक पीर सी उठती है इक हूक उभरती है मलके जूठे बरतन मुन्नी जो ठिठुरती है. अय. ताजदार देखो,ओ सिपहेसलार देखो - ढाबॉ पे भट्ठियां नहीं देह सुलगती है . कप-प्लेट खनकतें हैं सुन चाय दे रे छोटू ये आवाज बालपन पे बिजुरी सी कड़कती है मज़बूर माँ के बच्चे जूठन पे पला करते स्लम डाग की कहानी बस एक झलक ही है बारह बरस की मुन्नी नौ-दस बरस की बानो चाहत बहुत है लेकिन पढने को तरसती है क्यों हुक्मराँ सुनेगा हाकिम भी क्या करेगा इन दोनों की छैंयाँ लंबे दरख्त की है

एक विनम्र आग्रह

मैंने अंकित की मदद से यह साईट बना ली है आप से आग्रह है कि इस साइट को ब्लागर्स के उपयोग के लिए क्या क्या किया जा सकता है यहाँ मुझे बताएं । मिसफिट जो अब डोमेन पर है आप में से कोई भी मुझे ज्वाइन करे कारवां बनता जाएगा इस मामले में सोच साफ़ है "कि हम सब " जिस मिशन को लेकर ब्लॉग पर हैं क्यों न अपनी साइट पर जाएँ हिन्दी के विस्तार के लिए

पर्यावरण दिवस पर विशेष

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जननी जन्म भूमिश्च : को विनत प्रणाम के साथ गीत पुन: दे रहा हूँ ..... काम-की अधिकता के कारण ब्लॉग पर नई पोस्ट संभव नहीं थी ।शायद आपको पसंद आए ..... यदि पसंद नहीं आता है तो कृपया इस आलेख को अवश्य को पढ़ा जाए धरा से उगती उष्मा , तड़पती देहों के मेले दरकती भू ने समझाया, ज़रा अब तो सबक लो यहाँ उपभोग से ज़्यादा प्रदर्शन पे यकीं क्यों है तटों को मिटा देने का तुम्हारा आचरण क्यों है तड़पती मीन- तड़पन को अपना कल समझ लो दरकती भू ने समझाया, ज़रा अब तो सबक लो मुझे तुम माँ भी कहते निपूती भी बनाते हो मेरे पुत्रों की ह्त्या कर वहां बिल्डिंग उगाते हो मुझे माँ मत कहो या फिर वनों को उनका हक दो दरकती भू ने समझाया, ज़रा अब तो सबक लो मुझे तुमसे कोई शिकवा नहीं न कोई अदावत है तुम्हारे आचरण में पल रही ये जो बगावत है मेघ तुमसे हैं रूठे , बात इतनी सी समझ लो दरकती भू ने समझाया, ज़रा अब तो सबक लो। आज जबलपुर के सर्रापीपर में जगत मणि चतुर्वेदी जी एक आयोजन कर रहें हैं जिसके अतिथि वृक्ष होंगें यानी .... यानी क्या देखता हूँ शाम को कार्यक्रम है लौट के रपट मिलेगी