अनिल भाई आपने सच माँ-की-ममता को अपने ब्रांड के साथ जोड़ कर कर जो विज्ञापन बनवाए बेजोड़ हैं।आप ने सहवाग की माताजी वाले विज्ञापन के बाद आज मातृभक्त पुत्रों और उनकी पत्नियों को जो शिक्षा दी सच कितनी उपयोगी साबित हो रही है आप इस बिन्दु से अनभिज्ञ हैं ...शायद ...!!
27.7.08
अनिल अम्बानी की नज़र में "केदारनाथ हो या....!!"
अनिल भाई आपने सच माँ-की-ममता को अपने ब्रांड के साथ जोड़ कर कर जो विज्ञापन बनवाए बेजोड़ हैं।आप ने सहवाग की माताजी वाले विज्ञापन के बाद आज मातृभक्त पुत्रों और उनकी पत्नियों को जो शिक्षा दी सच कितनी उपयोगी साबित हो रही है आप इस बिन्दु से अनभिज्ञ हैं ...शायद ...!!
तुमको सोने का हार दिला दूँ
सुनो प्रिया मैं गाँव गया था
भईयाजी के साथ गया था
बनके मैं सौगात गया था
घर को हम दौनों ने मिलकर
दो भागों मैं बाँट लिया था
अपना हिस्सा छाँट लिया था
पटवारी को गाँव बुलाकर
सौ-सौ हथकंडे आजमाकर
खेत बराबर बांटे हमने
पुस्तैनी पीतल के बरतन
आपस मैं ही छांटे हमने
फ़िर खवास से ख़बर बताई
होगी खेत घर सबकी बिकवाई
अगले दिन सब बेच बांच के
हम लौटे इतिहास ताप के
हाथों में नोट हमारे
सपन भरे से नयन तुम्हारे
प्लाट कार सब आ जाएगी
मुनिया भी परिणी जाएगी
सिंटू की फीस की ख़ातिर
अब तंगी कैसे आएगी ?
अपने छोटे छोटे सपने
बाबूजी की मेहनत से पूरे
पतला खाके मोटा पहना
माँ ने कभी न पहना गहना
चलो घर में मैं खुशियाँ ला दूँ
तुमको सोने का हार दिला दूँ
=>गिरीश बिल्लोरे मुकुल
18.7.08
16.7.08
12.7.08
नीरज जी के नाम खुला ख़त
शुक्रिया आप के आलेख भी जबरदस्त होते हैं
मधुबाला की तस्वीर को परिभाषित करतीं आपकी ये
पंक्तियाँ जो मधुबाला को मोनालिसा से तौलतीं हैं
मुझे आपसे जोड़े रखने का मुख्य कारण है:-
जो बात गीता में अन्जील और कुरान में है
उसी तरह की सदाकत तेरी मुस्कान में है
और ये तो कमाल है
भीगती "नीरज" किसी की याद में
आँख को सबसे छुपाना सीखिए
यायावर जी को और विस्तार पथ प्रशस्त करने
आपने जो पोस्ट लिखी वहीं से ये दोहे
तुम साँसों में बस गयीं,बन बंसी अभिराम
तन वृन्दावन हो गया,पागल मन घनश्याम
ज्ञानी,ध्यानी,संयमी,जोगी,जती,प्रवीण
फागुन के दरबार में,सब कौडी के तीन
आपकी चयन प्रकृति का परिचय है
फ़िर जिस लज़ीज तरीके से "बेक्ड-समोसे" परोसे उसके लिए
सुबह-सुबह शुक्रिया
बेहतरीन ब्लॉग के लिए बधाइयों के ट्रक मुंबई में इस पते पर भेज दूँ
नीरज गोस्वामी
मुम्बई, महाराष्ट्र, इंडिया
किंतु पूरा पता मिलता तो उम्दा होता खैर कोई गल नहीं
आपके पूरे ब्लॉग में ये बात मुझे सटीक नहीं लगती
जिंदगी भाग दौड़ की "नीरज"
यूँ लगे नीम पर करेला है
ये मेरी सोच है बुरा मत मानिए आप जैसा मुम्बइया-भाषा:"बिंदास" व्यक्ति नीम का करेला हो ही नहीं सकता
भाऊ को जब आपने इतना बता ही दिया की :-"भाऊ मैं ही नहीं सारे ब्लोगर सिर्फ़ अपने आत्म सम्मान और संतुष्टि के लिए लिखते हैं और हमारे इस समाज में इतनी एकता है की एक आवाज़ पर इकठ्ठा हो सकते हैं"
ये सही है आपको अनवरत बधाइयां
मेरा प्रिय गीत
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Wow.....New
धर्म और संप्रदाय
What is the difference The between Dharm & Religion ? English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...
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