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बुधवार, फ़रवरी 08, 2023
भारतीय मानव सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार की पड़ताल
शनिवार, जनवरी 28, 2023
क्या 90 दिनों के बाद पाकिस्तान को पानी मिलना बंद हो जाएगा?
28 जन॰ 2023
सिंधु जल संधि: 90 दिन में समाप्त हो जाएगी..?
इस समझौते के अनुसार, तीन "पूर्वी" नदियों — ब्यास, रावी और सतलुज — का नियंत्रण भारत को, तथा तीन "पश्चिमी" नदियों — सिंधु, चिनाब और झेलम — का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया। हालाँकि अधिक विवादास्पद वे प्रावधान थे जिनके अनुसार जल का वितरण किस प्रकार किया जाएगा, यह निश्चित होना था। क्योंकि पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियों का प्रवाह पहले भारत से होकर आता है, संधि के अनुसार भारत को उनका उपयोग सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन हेतु करने की अनुमति है। इस दौरान इन नदियों पर भारत द्वारा परियोजनाओं के निर्माण के लिए सटीक नियम निश्चित किए गए। यह संधि पाकिस्तान के डर का परिणाम थी कि नदियों का आधार (बेसिन) भारत में होने के कारण कहीं युद्ध आदि की स्थिति में उसे सूखे और अकाल आदि का सामना न करना पड़े।( विकिपीडिया से साभार)
उपरोक्त समस्त बिंदु पब्लिक डोमेन में उपलब्ध हैं। इधर भारत में सिंधु वॉटर ट्रीटी यानी सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार करने का मन बना लिया है।
भारत सरकार इस समझौते पर पुनर्विचार करना चाहती है। यह सही वक्त है जब पाकिस्तान को घुटनों पर लाया जा सके । परंतु इस समझौते का एक पक्ष है अंतरराष्ट्रीय बैंक जिसे हम विश्व बैंक के नाम से जानते हैं। यद्यपि इस समझौते रिव्यु के लिए समझौते में ही बिंदु मौजूद थे। भारत सरकार इस पर क्या निर्णय लेती है और किस तरह से पाकिस्तान को अपने आतंकी स्वरूप से बाहर आने की बात कहती है यह अलग बात है परंतु सिंधुदेश बलूचिस्तान केपीके और पश्तो डोगरा आबादी के अधिकांश लोग जाते हैं कि किसी भी स्थिति में एक बूंद भी पानी पाकिस्तान को ना दिया जाए।
भारत एक मानवतावादी देश है शायद यह ना कर सकेगा। परंतु आजादी के चाहने वाले बलोच एक्टिविस्ट चाहते हैं कि यदि मानवता को आधार बनाया जाता है तो पाकिस्तान ने हजारों बच्चों को युवाओं को अगवा करके उनकी लाशें बाहर फेंक दी हैं ऐसे देश के लिए मानवीयता के आधार पर छूट देना ठीक नहीं है। इस समय बलूचिस्तान एवं सिंधुदेश के एक्टिविस्ट खुलेआम कहते हैं कि-" भारत एक ऐसा राष्ट्र बन चुका है जिसकी आवाज विश्व समझ रहा है सुन रहा है, अगर भारत सिंधु देश एवं बलूचिस्तान केपीके एवं पश्तो लोगों के मानव अधिकार को संरक्षित करते हैं तो विश्व में एक नई मिसाल कायम होगी।
पाकिस्तान की जर्जर हालत देखते हुए मदद करने की इच्छा तो सभी की होती है परंतु पाकिस्तान की चरित्रावली पर नजर डालें तो इस देश ने केवल टेररिस्ट पैदा किए हैं, दक्षिण एशिया में चीन की सहायता से अस्थिरता पैदा करने के लिए इस देश अर्थात पाकिस्तान ने सबसे आगे रहकर काम किया है।
भारत के पास दो विकल्प हैं
[ ] समझौता रद्द कर दिया जाए
[ ] समझौता सिंधु देश तथा बलूचिस्तान केबीके पीओके मुजाहिर, पश्तो सहित तमाम अल्पसंख्यकों एवं गैर मुस्लिम के अलावा गैर पंजाबियों के मानव अधिकार की गारंटी मांग कर समझौता रिन्यू किया जाए
भारत दोनों ही एक्शन ले सकता है जैसा कि बलूचिस्तान के एक्टिविस्ट कहते हैं। दोनों की परिस्थिति में भारत का विश्व स्तर पर सम्मान बढ़ना स्वाभाविक है।
इस संबंध में एक्टिविस्टों की सकारात्मक उम्मीद है।
बुधवार, जनवरी 25, 2023
असहमति मैत्री को खंडित करने का आधार नहीं है
असहमति मैत्री को खंडित नहीं करती। ऐसा किसने कह दिया कि कोई किसी के विचार से सहमत हो वह साथ नहीं रह सकता?
बहुतेरे लोग ऐसे होते हैं, जो असहमति के आधार पर परिवार तक तोड़ देते हैं।
वेदांत का सार है सत्संग विमर्श और आपसी विचार विनिमय। क्या आपने इस एंगल से सोचा है?
सनातन में हजारों वर्ष पहले शास्त्रार्थ को मान्यता मिली है। पश्चिमी विद्वान वाल्टेयर ने असहमति को भलीभांति परिभाषित किया है। असहमति का अर्थ आपसी द्वंद्व नहीं है।
सहमति के साथ सह अस्तित्व बेहद प्रभावशाली आध्यात्मिक दार्शनिक बिंदु है।
कई लोग असहमति को आधार बनाकर बेहद संवेदनशील हो जाते हैं। इससे संघर्ष भी पैदा हो जाता है। वास्तव में असहमति का संघर्ष से कोई लेना देना नहीं है। संघर्ष एक मानसिक उद्वेग है जो शारीरिक या बौद्धिक रूप से नकारात्मकता को जन्म देता है।
इससे उलट असहमति एक तात्कालिक या दीर्घकालिक परिस्थिति भी हो सकती है। परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि कोई भी असहमति को आधार बनाकर युद्ध करने लगे।
स्वस्थ समाज में स्वस्थ मस्तिष्क के लोग अक्सर आपस में असहमत होने के बावजूद एकात्मता के साथ रहते हैं। ठीक उसी तरह जैसे कि शक्कर की बरनी छोटे या बड़े शक्कर के दाने होने से शक्कर की मूल प्रवृत्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता।
मित्रों कभी मेरी किसी भी मित्र के साथ असहमति होती है अथवा हो गई हो तो मुझ पर क्रोधित मत होना क्योंकि मैं असहमति के आधार पर द्वंद के जन्म से सहमत नहीं रहता। मेरे एक पूज्य वरिष्ठ अधिकारी हैं जो बेहद करुणा भाव से मुझे देखते हैं उनसे कई मुद्दों पर वैचारिक असहमति या हैं परंतु उनका इसने मुझ पर सदा बरसता है। यही महात्मा गांधी महात्मा गौतम बुद्ध महावीर स्वामी भगवान श्री राम जैसे महान व्यक्तियों द्वारा बताया गया मार्ग है। भारतीय जीवन दर्शन जीवंत दर्शन है। भारतीय जीवन दर्शन की शुचिता के लिए हर असहमति के प्रति सम्मान व्यक्त करने से हमारा जीवन सुदृढ़ एवं पवित्र हो जाता है। यही हर मुमुक्षु के लिए सनातनी संदेश है। हाल के दिनों में हम सब सहमति और असहमति के साथ दो भागों में विभक्त हैं। एक व्यक्ति लोगों के माइंड को पढ़कर एक पर्ची पर कुछ लिख देता है। और उसे ईश्वर की कृपा कहकर स्वयं को उस प्रक्रिया से ही अलग कर लेता है। दूसरी ओर एक युवा लड़की माइंड रीडिंग करके अपने हुनर को जादूगरी की श्रेणी में रखती है। दोनों में फर्क यह है कि एक अपनी माइंड रीडिंग की योग्यता रखते हुए भी अस्तित्व को ब्रह्म के आशीर्वाद को महान बताता है जबकि दूसरी ओर वही युवा बालिका अपने आप को मैजिशियन बताती है। एक टीवी चैनल इससे धजी का सांप बनाकर पेश करता है। इससे दर्शक और पाठक भ्रमित हो जाते हैं। जबकि इसका अर्थ यह है कि अगर यह जादू होता इसे बहुत से लोग आसानी से सीख लेते परंतु सवा सौ करोड़ से अधिक जनसंख्या में से मात्र कुछ ही लोग इस तरह की क्रिया प्रदर्शित कर पाते हैं। कुल मिलाकर आस्तिक लोग इसे ईश्वर की कृपा मानते हैं जबकि नास्तिक ऐसी प्रक्रियाओं को पाखंड कहते हैं अथवा जादूगरी मान लेते हैं। अगर मैं हर असहमत व्यक्ति से दूरी बनाने लगूं अथवा दुश्मनी पालूँ तो मुझसे बड़ा मूर्ख कौन होगा भला?
वर्तमान युग में यही एक बहुत बड़ी कमी है।
यही योग अहंकार और स्वयं को सिद्ध करते रहने का युग है। इस युग में हम सोचते हैं कि जो कर रहे हैं वह हम ही कर रहे हैं। ऐसी अवधारणा लोकायत विचारकों अर्थात नास्तिकों की होती है। नास्तिक जिनको ब्रह्म के अस्तित्व पर तनिक भी भरोसा नहीं होता मान लिया जाए कि ब्रह्म नहीं है उस नास्तिक की दृष्टि में परंतु यह कोई कारण नहीं है कि आस्तिक और नास्तिक के बीच आपस में कोई झगड़ा हो जाए। दोनों एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाएं।
भारत का सनातन चिंतन सत्य के लिए संघर्ष करता है, वैचारिक संघर्ष, कभी कभार ही जय दवा सुर संग्राम, राम रावण युद्ध अथवा महाभारत हुए हैं। यह सब धर्म युद्ध थे।
जबकि जिहाद और क्रुसेड निरंतर चल रहे हैं। विचारधाराऐं जब संघर्ष को जन्म देती हों तो निरंतर चलने वाले युद्ध हुआ करते हैं। ऐसे युद्ध विध्वंस की ओर ले जाते हैं।
भारतीय परंपराओं में कुछ बदलाव आयातित विचारधारा के कारण आ चुका है। हम श्रेय लेने की मरीचिका
(Mirage ) दौड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं।
साफ है कि अब हम तो सोचते हैं कि यह कार्य मैंने किया इसका श्रेय मुझे मिलना चाहिए। ऐसी स्थिति में एकात्मता खंडित हो जाती है।
आस्तिक लोग वास्तव में ऐसे विचारकों से भिन्न होते हैं, जो आत्म केंद्रित होकर हम सब के कांसेप्ट को छोड़कर सब हम के कॉन्सेप्ट पर आ जाते हैं।
एक बार की सत्य घटना में आपको बताता हूं किसी व्यक्ति पर मुझे अनायास क्रोध आ गया। उसने मुझसे कुछ गलत बयानी की थी। परंतु दूसरे ही पल मुझे यह महसूस हुआ कि-" जो मैं कर रहा हूं वह मैं नहीं कर रहा हूं यह ईश्वर द्वारा किया गया कार्य है।"
तब तुरंत ही मैंने महसूस किया-" उस व्यक्ति ने जो किया है, वह उसने नहीं बल्कि ईश्वर की इच्छा के अनुकूल हुआ है।" इतना सोचते ही कुछ व्यक्ति के प्रति घृणा का भाव तुरंत समाप्त होगया।
मस्तिष्क पूरी तरह से सामान्य प्रशांति में फलक पर गतिमान हो गया। फलस्वरूप न तो मैं हिंसक बन पाया और न ही हिंसा करने के लिए मुझे मेरे शारीरिक संवेग ने प्रेरित किया।
एक अनुचित हिंसा करने से मैं बच गया।
सच मायने में यह घटना असामान्य हो सकती है।
क्योंकि अपराधी को अपराध का दंड मिलना चाहिए था। परंतु मेरे विचार से मैंने यह कार्य ईश्वर पर छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद वही व्यक्ति बेहद दीन हीन स्थिति में मेरे सामने आया। मैं समझ चुका था कि यह व्यक्ति ईश्वरीय दंड का भागी हो चुका है।
कोई व्यक्ति यदि धन पद प्रतिष्ठा और सत्ता का अधिकारी बन जाए और अहंकार तथा स्वयं के सम्मान की ज्यादा फिक्र करने लगे तो वह किसी भी स्थिति में न तो सहज रह सकता है और न ही सार्वजनिक भलाई के कार्य कर सकता है।
अगर वही व्यक्ति इन सबके होते हुए भी अहंकार से मुक्त रहता है तो वह सबसे पवित्र मुमुक्षु बनता है ।
इस प्रकार अहंकार आत्म प्रदर्शन और स्वयं को श्रेष्ठ करते रहने के लिए रास्ते बनाता है। इन रास्तों में आए किसी भी अवरोध के विरुद्ध वह व्यक्ति सक्रिय हो जाता है। अवरोध चाहे व्यक्ति हो या विचार। अहंकारी व्यक्ति जो आत्म केंद्रित भी होता है ऐसे व्यक्तियों और विचारों को समूल नष्ट करते हैं।
ठीक उसी तरह जैसे दारा शिकोह को औरंगजेब ने हाथी के पैरों से कुचलवा दिया था। ठीक वैसे ही जैसे हिटलर और स्टालिन ने भी ऐसा ही कुछ किया। मित्रों रावण के चरित्र को ध्यान से देखिए असहमति के कारण उसने अपने छोटे भाई को लात मारकर लंका से बाहर कर दिया। मित्रों आप सोचिए हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से भिन्न होता है। उसकी पसंद भिन्न होती है उसकी आदतें भिन्न होती है उसका चिंतन भी भिन्न होता है। परंतु इस आधार पर अगर संघर्ष होने लगे तो पृथ्वी पर मानवता समाप्त हो जाएगी।
हो सकता है आप मेरे विचारों से सहमत हूं आपकी असहमति का सम्मान करते हुए मैं आपको प्रणाम करता हूं।
*ॐ श्री राम कृष्ण हरि:*
रविवार, जनवरी 22, 2023
पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने सिद्ध कर दिया कि सनातन विज्ञान भी है
धीरेंद्र शास्त्री क्या करते हैं..?
युवा कथावाचक शास्त्री जी एक पर्चे पर सामने आए हुए व्यक्ति जीवन से जुड़े कुछ मुद्दों को सामने रखते हैं। और उसे अभिव्यक्त भी करते हैं उतना ही अभिव्यक्त करते हैं जिससे व्यक्ति की निजता समाप्त ना हो। लोग उनके पास अपनी समस्या लेकर जाते हैं। धीरेंद्र शास्त्री के सामने खड़ा हुआ व्यक्ति उनसे सहमत हो जाता है। जितने भी प्रकरण अब तक देख पाया हूं किसी भी अर्जी लगाने वाले ने उनकी बातों पर अविश्वास प्रगट नहीं किया।
धीरेंद्र जी जो करते हैं उसका मतलब क्या है?
वीरेंद्र एक सामान्य व्यक्ति हैं जो अतिंद्रीय परीक्षण करने में सक्षम है। वह किसी के मस्तिष्क में क्या चल रहा है इस तथ्य का भली-भांति मूल्यांकन कर लेते हैं अगर इसे हम धर्म से न भी जोड़े तो यह एक अतींद्रिय विज्ञान है। कुछ दिनों पहले कुछ वीडियो देखें जो एक युवा लड़की के थे। वह सुहानी शाह बालिका किसी भी व्यक्ति के फोन नंबर इत्यादि का विवरण सामने रख देती थी। यहां तक कि वह उसके मस्तिष्क में चल रहे विचारों को भी सामने प्रस्तुत कर देती थी। उसे महाराष्ट्र के कई पुलिस अधिकारियों के सामने प्रदर्शन हेतु बुलाया जाता रहा है। उनके कई शो होते हैं. इन दौनों सुहानी और धीरेन्द्र जी , सूक्ष्म रूप से परकाया में अवस्थित मष्तिष्क में प्रवेश करतें हैं और उसमे चल रहे विचार-प्रवाह को पढ़ लेते हैं.
साइकोलॉजिकल परीक्षण करने में सक्षम थी। इसे ईश्वर की कृपा या एक साइक्लोजिकल अरेंजमेंट यह आपके ऊपर है।
जहां तक धीरेंद्र जी का प्रश्न है उनको उनके ईष्ट हनुमान जी के भक्त होने के कारण नकारा जाना किस हद तक उचित है।
केवल विज्ञान ही सर्वोपरि है तब हमारे मस्तिष्क में अच्छे बुरे विचारों का प्रवाह कहां से होता है?
इस बिंदु पर विचार करने पर महसूस होता है कि जो हमें अंतस की प्रेरणा जिसे अंग्रेजी में इनट्यूशन कहते हैं कैसे मिलती है?
लेकिन बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री के किसी भी तथ्य में गलती नहीं होती। और वह स्वीकारते हैं कि वह सक्षम नहीं है ईश्वर उन्हें प्रेरित करते हैं। और जो वह कहते हैं वही सत्य हो जाता है। लोगों से वार्ता के दौरान पता चला कि बागेश्वर धाम के पंडित युवा विद्वान शास्त्री भले ही अंग्रेजी न जाने परंतु इस अतिंद्रीय सनातन विज्ञान से भली-भांति परिचित है। एक रिटायर्ड आईएएस अफसर उन पर अवैध भूमि कब्जे की बात कर रहे हैं। उनका आरोप हो सकता है सही है परंतु इसका निराकरण मीडिया ट्रायल पर नहीं किया जा सकता है इसका निराकरण प्रशासनिक व्यवस्था द्वारा किया जा सकता है। एक रिटायर्ड आईएएस का यह कहना कि उनके द्वारा भूमि अतिक्रमण की गई है तो मेरा यह प्रश्न है कि किन कारणों से प्रशासन उस पर ध्यान नहीं दे रहा। वास्तव में यह एक तरह से उस प्रतिभाशाली देवदूत के विरुद्ध षड्यंत्र कारी वक्तव्य है।
इन दौनों सुहानी और धीरेन्द्र जी में फर्क क्या है...?
1.
सुहानी
: स्वयम को मैजीशियन कहती है
2. धीरेन्द्र : स्वयम को शून्य मानते हैं. ईश्वर को श्रेय
देते हैं
3. सुहानी : पैसा लेकर शो करती है.
4. धीरेन्द्र : धीरेन्द्र ऐसा नहीं करते .
5. सुहानी : सुहानी नंबरों/अक्षरों/नामों पर केन्द्रित
हैं
6. धीरेन्द्र : धीरेन्द्र, नंबरों/अक्षरों/नामों के साथ साथ विवरणात्मक तथ्य रखतें हैं.
7. सुहानी एवं धीरेन्द्र में टेलीपैथिक-संवेग के संचार
की क्षमता है.
8.
दौनों
ही साय्क्लोज़िष्ट नहीं हैं.
इस मुद्दे पर एक तथ्य है और स्पष्ट है कि बागेश्वर के इन युवा योगी माइंड रीडिंग के ही नहीं बल्कि परिस्थितियों का भी अवलोकन कर लेते हैं। वे लंबे-लंबे स्टेटमेंट लिख कर दर्शनार्थियों को देते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि सुहानी अथवा इसी तरह के काम करने वाले माइंड रीडर मैजिशियन के सवालों का संक्षेप में उत्तर देते हैं।
सामान्य माइंड रीडर वैकल्पिक रेमेडीज पर विचार नहीं कर पाते जबकि वे ऐसा करते हैं। क्योंकि वह मेडिसिन अथवा अन्य किसी तरह के विकल्प नहीं बता सकते अतः बागेश्वर महाराज जी केवल ईश्वर आराधना मंत्र जाप इत्यादि के संबंध में जानकारी देते हैं। जो ठीक है इस आधार पर अंधविश्वास फैलाने का मामला कैसे बन सकता है?
रविवार, जनवरी 15, 2023
अपने आप से सवाल करिए- मैं कौन हूं?
प्रश्न के उत्तर में बहुत कुछ मिल जाएगा। अक्सर हम अपने आप को जो दिखते हैं वह समझ लेते हैं। यह एक हद तक सहज हो सकता है परंतु वास्तविकता यह नहीं है।
बुल्ले शाह जब इस सवाल को नहीं हल कर पाते तो उनका ह्रदय इस सवाल को एक गीत में पूरी करुणा के साथ सामवेदी करुणामय गीत के रूप में अगुंजित हो जाता है- बुल्ले की जाणा मैं कौन..?
लौकिक कृष्ण मथुरा से द्वारका तक विभिन्न लीलाओं के साथ यात्रा करते हैं यही जानने के लिए न मैं कौन हूं?
राम को भी नहीं मालूम था कि वे नर नहीं नारायण है ऐसा कुछ लोग कहते हैं। सत्य जो भी हो अद्वैत सिद्ध कर देता है कि हम नारायण अर्थात ब्रह्मांश ही तो हैं।
Then why do wars happen?
यह सवाल भी ठीक है। हम संघर्ष क्यों करते हैं? वास्तव में हम बार-बार भूल जाते हैं कि हम ब्रह्म है। अद्वैत यही तो कहता है न?
किसी भी तत्व चिंतक दृष्टा के मस्तिष्क में सबसे पहला एकमात्र सवाल यही होता है कि मैं कौन हूं..?
अपने मामा जी एवं साहित्यकार श्री राजेंद्र शर्मा जी से चर्चा करने पर उन्होंने बताया-"एक किशोर वय का बालक, श्री भगवदपाद के तपस्या स्थल पर खड़ा गुरु की प्रतीक्षा कर रहा था।
तपस्या की विश्राम में गुरु ने पूछा -"कौन हो बालक?
शंकर ने कहा यही तो मैं जानना चाहता हूं?
यह लघु प्रश्नोत्तरी सामान्य नहीं थी। इसमें विराट का बोध होता है। पर कभी-कभी चकित हो जाते हैं हम सब जब विराट का सारांश निकालना कठिन हो जाता है। जबकि युवा शंकर ने बहुत जल्द ही तत्व ज्ञान प्राप्त कर लिया। विभिन्न विचारों मतों संप्रदायों में विभक्त भारतीय जीवन क्रम को एकीकृत किया और हमें एक पंचायतन आराधना के लिए सौंप दी। पंचायतन जानते हैं न जी हां जो आपके घर में पूजा स्थल पर लगा होता है। आर्थिक क्षमता अनुसार कोई लोहे का सिहासन बनवा ता है तो कोई सोने या चांदी का बनवा लेता है। उसमें अपने सभी प्रभु को बैठा देता है। हर सनातन प्रवाह में बहने वाला व्यक्ति उसका परिवार अपने पंचायतन में शिव विष्णु शक्ति लड्डू गोपाल आदि आदि अपने मनचाहे स्वरूप में स्थापित कर उनकी आराधना करते हैं। लोकायत इसे आडंबर कहता है। आर्य समाजी इसे अस्वीकार्य करता है। आयातित संप्रदाय तो बिल्कुल पसंद नहीं करता। ऐसे में सामुदायिक एकात्मता की परिकल्पना किस तरह की जाए यह विचार करने योग्य है।
लोकायत परंपरा हमें ब्रह्म से भी मुक्त कर देती है। ब्रह्म के अस्तित्व को अस्वीकार करना लोकायत का मूल आधार है । सब एक ब्रह्म का उद्घोष करते हैं परंतु हर एक का अपना-अपना अलग-अलग ब्रह्म है। कोई ब्रह्म से मिलकर आ जाता है। अद्वैत की माने तो ब्रह्म से मिलना सहज नहीं है, और कठिन भी नहीं। पर जो ब्रह्म से मिलकर आते हैं, अगर लोकायत भाषा में मैं प्रश्न करूं तो भी घबरा सकते हैं! ऐसी कोई कठिन प्रश्न नहीं करूंगा। क्योंकि सद्गुरु स्वामी श्रद्धानंद नाथ कहते हैं कि -"अलख निरंजन" यह कोई साधु या भिक्षुक द्वारा उच्चारित उद्घोष नहीं है। यह विस्तृत अध्यात्म का उद्घाटन है। आंख में आज लेने के बाद काजल किसे दिखा है? ब्रह्म वही है आंख में आंजना आना चाहिए न..?
मैं अगर कहता हूं कि -"जब कभी बुद्ध से भेंट होती है तो बुद्ध मुझे उपनिषदों के अनु गायक से प्रतीत होते हैं।" तो गलत क्या कहता हूं। बार-बार कबीर कठोरता से ब्रह्म तत्व का परिचय देते हैं, तो भी समझ में नहीं आता। हम उलझते जाते हैं प्रक्रियाओं को धर्म मान लेते हैं और स्वर्ग नरक जैसे काल्पनिक शब्दों के खोजते रहते हैं या उसकी परिकल्पना करते रहते हैं।
अरे भाई, रुको जरा रुको पहले समझ तो लोग अनहलक का अर्थ क्या है, अलख निरंजन के बारे में कभी चिंतन किया है? कभी ध्यान से सुना है की महात्मा बुद्ध क्या कह रहे हैं?
संभवत है अभी तक इस दिशा में सोचा ही नहीं। कभी किसी के विचारों को तू कभी किसी प्रक्रिया को या किसी डॉक्ट्रिन को धर्म कह दिया या किसी पंथ के नारे को धर्म कह दिया? यह क्या हो रहा है? पहली बात तो बुल्ले शाह को नहीं सुना कि बुल्ले शाह क्या पूछ रहे हैं?
ध्यान से सुनो बुद्ध ने कहा था -अप्प दीपो भव:, अपनी जान गवा देने वाला सूफी अन हलक का उद्घोष कर रहा था। ब्रह्म को लोकायत परंपरा तर्क से परीक्षित करती रहे, चार्वाक और जावली कुछ भी करें हमें उनसे कोई शिकायत नहीं क्योंकि वह जिसे धर्म समझ बैठे वह प्रक्रिया थी वह अनुशासनिक व्यवस्था रही। आत्मिक विकास के लिए तो सनातन अध्यात्म की उपयोगिता को नकारने की क्षमता किसी में नहीं है। एक थे प्रोफेसर रजनीश कहते हैं वह भगवान बन गए फिर वह समुद्र बन गए बस भगवान समुद्र इतनी ही यात्रा है क्या? यात्रा तो बहुत बड़ी है, इस यात्रा पर निकलने वाला जानता है और गाता है.."निर्गुण रंगी चादरिया जो उड़े संत सुजान"
ब्रह्म के अस्तित्व को नकारो स्वीकारो, इससे ब्रह्म को क्या फर्क पड़ने वाला है। तुम का कैसा भी विरूपण करो कोई फर्क नहीं पड़ता। एक बार आत्म योग मुद्रा में बैठो हजारों हजार संदेश मस्तिष्क पर मिलेंगे इसमें किसी मीडियेटर की भी जरूरत नहीं है। बस कुछ विचार जो इन संदेशों को रोकते हैं उनसे जरा सा दूर हो जाओ। उदाहरण के तौर पर मैं एक मनुष्य हूं तुम भी एक मनुष्य हो मैं सिर्फ तुम्हारे बारे में सोचते हुए तुम्हारी गलतियां कमियां त्रुटियां अपराध आदि का विश्लेषण करता रहूं या तुम मेरी तरह ऐसा ही करो इससे तुम्हारे मस्तिष्क में आने वाली वायरलेस संदेश अवरुद्ध हो जाते हैं।
फिर तुम किसी के पीछे पीछे भागते हो और उस व्यक्ति से मदद लेकर ब्रह्म से मिलना चाहते हो। ऐसा न हुआ है न होगा और सुना ही हो रहा है।
श्री राम कृष्ण हरि
रविवार, जनवरी 08, 2023
समाज सुधारक बनाम इंजीनियर मिस्त्री और चेला
रविवार, दिसंबर 25, 2022
रविवार, दिसंबर 11, 2022
टाइम मशीन से समय यात्रा की परिकल्पना केवल एक फेंटेसी है
आईए देखते हैं उनके आर्टिकल में क्या लिखा गया है
"आज जिस बिंदु पर चर्चा करना चाहता हूँ वो सनातन शब्द –नेति नेति या नयाति नयाति ... अर्थात ये भी नहीं अरे भाई ये नहीं और ये भी नहीं !
कई दिनों से एक बात कहनी थी परन्तु सोचता था कि – संभव है कि आगे आने वाले और बीते समय की यात्रा की जा सकती हो.
फिर चिंतन करके पाया वास्तव में यह एक असत्य थ्योरी ही है. जिसे मानवीय मनोरंजन के लिए गढ़ा गया है .
ये अलहदा तथ्य है कि “आर्टीशियल इंटेलिजेंस में असीमित संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता कि AI की मदद से हम प्राचीन समय यानी बीते पल या समय का रिक्रिएशन कर सकते हैं।
इतना ही नहीं हम आने वाले समय को प्री-क्रिएट भी कर सकते हैं...
पर यह सत्य है कि ऐसे रिक्रिएशन और प्री क्रिएशन आभासी ही होंगे इनका भौतिक अस्तित्व नहीं होगा ।
इन दृश्यों में वास्तविकता कतई नहीं होगी।
पराशक्तियाँ भी ऐसा कुछ करा सकतीं हैं. फिर भी पराशक्तियां कुछ कर या करा सकतीं हैं तो ... केवल इतना कि आपको बीता समय हूबहू दिखा दे। इससे अधिक भविष्य की झलक किसी स्वप्न के रूप में दिखा देंगी ।
भविष्य से भी आपको पर शक्तियां रूबरू कर सकती हैं। ध्यान रहे फिर भी यह सब केवल आभासी होगा .
*किशोरावस्था में अनेकों बार मैंने महसूस किया था कि- "मैं सायकल और बाइक चला रहा हूँ. ऐसा अनुभव जागते हुए तो कदापि नहीं केवल स्वप्न में यह संभव था ।*
*जबकि मुझे जानने वाले सभी जानते हैं कि ऐसा संभव कदापि नहीं है. क्योंकि मेरे दाएं अंग में पोलियो से ग्रसित है, मसल्स हैं ही नहीं ।
शरीर यंत्र का संचलन असामान्य एवं अतिरिक्त गैजेट्स अर्थात सहायक-उपकरण पर निर्भर है ।
सुधि जन जानें कि फिर भी यदि मैं दावा करूँ कि मैंने सायकल चलाई है तो केवल केवल आभासी विवरण मात्रा होगा।.
इसी प्रकार मेरा एक और मत यह भी है कि जो घटना भविष्य में आकार लेगी उसका अनुमान मात्र लगाया जा सकता है तथा उसे वर्चुअल रूप से महसूस किया जा सकता है या उसका रीक्रिएशन किया जा सकता है न कि उस तक भौतिक रूप से ।
एक मित्र ने दावा किया कि - "समय यात्रा संभव है ..!"
बिना विरोध किये मैंने पूछा कि- अगर मेरा जन्म 1963 में हुआ है 2050 में मेरी उम्र क्या होगी ...?
मित्र ने सटीक गणना करते हुए बताया कि जिस माह एवं तारीख में तुम्हारा जन्म हुआ है 2050 के उस माह और तारीख पर तुम 87 वर्ष के हो जाओगे.
मेरा अगला सवाल था कि तुम मुझसे दूर कहीं रहकर 2050 में टाइम मशीन के ज़रिये समय यात्रा { time-tour } कर मिल सकते हो ?
मित्र जो टाइम मशीन के ज़रिये समय की यात्रा को मानता था ने उत्साहित होकर कहा – अवश्य . मेरा उत्तर था कि टाइम-मशीन के ज़रिये तुम अकेले 2050 में गए हो न कि मैं..! अर्थात टाइम मशीन या कोई एडवांस तकनीकी से केवल आभासी दृश्य को आप देख सकते हैं न कि उसे तोवास्तविकता के साथ महसूस कर सकते हैं।
किसी भी व्यक्ति ने कॉविड-19 के कालखंड की कल्पना नहीं की होगी। हां इस घटना के आधार पर भविष्य की परिकल्पना अवश्य की जा सकती है। इल्यूजन हो सकते हैं परंतु यथार्थ नहीं।
इस बात से सहमत अवश्य हूँ कि मेरी आवाज़ जो तरंगें बन कर खुले आकाश में अन्य तरंगों से मिल जातीं हैं । उनको विशेष यांत्रिक सहायता से री – क्रियेट किया जा सकता है.
घटनाएं घटित हो जाने के बाद भौतिक रूप से न तो शेष रहतीं हैं जिन तक किसी मशीन के सहारे जाया ही जा सकता है न ही वे घटित होने के पूर्व किसी को नजर नहीं आ सकतीं .
मित्र ने कहा कि- "फिर तुम नेति-नेति पर भरोसा क्यों करते हो ..?"
ब्रह्मांड बहुत विशाल है, ब्रह्मांड में कई गैलक्सी है, गैलेक्सी में हजारों लाखों तारामंडल है, आज तारीख का एक सिस्टम है एक परिवार है, जैसे हमारे सूर्य का सोलर सिस्टम .
अब आप ब्रह्मांड में कितनी गैलेक्सियां खोजेंगे , कितने सितारे देखेंगे, कितने सौरमंडल से परिचित होंगे। यहाँ नेति नेति अर्थात नयाति नयाति का अर्थ यही है .
टाइम-ट्रेवल की अवधारणा को प्रचारित करने का कारण केवल हबर्ट जार्ज वेल्स के उपन्यास द टाइम मशीन और उस पर आधारित बनी फिल्मों के लिए दर्शक जुटाना मात्र था.
टाइम-ट्रेवल को या टाइम टूर को लेकर तार्किक आधार पर पूरी ज़िम्मेदारी के साथ इस अवधारणा को खारिज करता हूँ.
यात्रा का अर्थ समझने के पूर्व सभी समझते ही हैं कि यात्रा एक भौतिक क्रिया है . जिसकी दिशा, गति, उद्देश्य, माध्यम, और यात्री सब कुछ तय शुदा है. ये तय करने वाला शरीरी होता है जिसे यात्री कहा जाता कि उसे किस दिशा, गति, उद्देश्य, माध्यम, से यात्रा करनी है. आइये आगे टाइम-ट्रेवल की थ्यौरी की विवशाताओं को दिशा, गति, उद्देश्य, माध्यम, आदि के साथ-साथ कर लेते हैं
दिशा :- हर यात्रा की दिशा तय है अर्थात किसी भी डायरेक्शन में कोई कहीं भी जा सकता है.
तय जाने वाले को करना है कि वह किस डायरेक्शन में जावेगा।.
समय की कोई दिशा तय नहीं होती . दूसरे शब्दों में कहें तो समय हर दिशा में विस्तारित है।
आज 3 जुलाई 2018 है कल 2 जुलाई 2018 थी. मुझे बीते कल के 12:45 बजे में जाना है तो कौन सी दिशा तय करूंगा ? समय-यात्रा का सिद्धांत यहाँ विवश है .
[ ] गति :- मेरी गति क्या होनी चाहिए ? समय यात्रा का सिद्धांत यहाँ भी मौन ही होगा .
[ ] उद्देश्य :- सामान्य यात्राओं एवं समय यात्रा दौनों के उद्देश्य निर्धारित हो सकते हैं परंतु क्या समय यात्रा में पिछले दिन की घटना की छवि वास्तविक अच्छा भौतिक रूप में रनज़र आ सकती है..? यकीनन आपका उत्तर न में ही होगा .....
सामान्य यात्रा के लिए माध्यम होता है अर्थात यात्रा किसी साधन से की जाती है जैसे- रेल, बस, कार, वायुयान, आदि आदि . जिनके उपयोग से एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाया जा सकता है। परंतु समय की यात्रा के मामले में ऐसा कैसे संभव है।
आभासी यात्रा का साधन आभासी ही होगा जैसे स्वप्न, यह काल्पनिक दृश्य। अर्थात रात्रि अथवा दिवस में किसी बीते समय से पीछे या आगे जाने के लिए किसी मशीन की कल्पना ही आधारहीन सोच है.
अगर मशीन बन भी गई तो वह आपको बेहोश करने की मशीन होगी जिसकी वज़ह से आप अन्य मुद्दों के लिए बेहोश हो जाएंगे और केवल भूत और भविष्य की काल्पनिक घटनाओं में खोते चले जाएंगें जैसे आप सपने देख रहे हो
भौतिक रूप से आप मशीन में समाधि अवस्था में होते हैं।
मष्तिष्क के साथ साथ केवल आपकी देखने एवम महसूस करने की प्रणाली ठीक ई काम करेगी
यह प्रणाली स्वप्न देखने की प्रणाली है। अब बताओ भला स्वप्न देखने के लिए भी कोई मशीन आवश्यक होती है। सपने देखने के लिए केवल किसी मशीन की ज़रूरत होती है तो वह है आपका सूक्ष्म और स्थूल शरीर ।
रविवार, दिसंबर 04, 2022
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सोमवार, नवंबर 21, 2022
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सोमवार, नवंबर 14, 2022
भारत में आरक्षण : सामाजिक इंजीनियरिंग का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण
हाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक आधार पर सवर्णों को आरक्षण देने के संबंध में जो परदेस पारित किए हैं उससे स्पष्ट है कि हमारी न्याय व्यवस्था भी वंचित वर्ग के लिए पूरी तरह से सहानुभूति पूर्वक दृष्टिकोण अपना रही है। सामाजिक इंजीनियरिंग का जीता जागता उदाहरण आरक्षण माना जा सकता है। यद्यपि बहुत से विचारक जातिगत आरक्षण के विरुद्ध हैं। क्योंकि जब योग्यता का प्रश्न उठता है तो आरक्षित संवर्ग एक फॉर्मेट के तहत कम योग्यता धारित करने के बावजूद किसी अधिक योग्य व्यक्ति के समकक्ष होता है। यह अकाट्य सत्य है। परंतु सत्य यह भी है कि आरक्षण का कारण अपलिफ्टमेंट ऑफ द वीकर सेक्शन Upliftment of the Weaker Section ही है। सुप्रीम कोर्ट का यह कहना कि आरक्षण वैयक्तिक हितों को साधने का कारण नहीं होना चाहिए। यह सामाजिक इंजीनियरिंग के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश भी है। जहां तक शासकीय सेवाओं में आरक्षण का प्रश्न है मेरे हिसाब से आरक्षण का अवश्य केवल एक बार दिया जाना ठीक होता है। जबकि पदोन्नति में आरक्षण को लेकर सबकी अपनी अपनी राय हो सकती है। लेकिन सामाजिक इंजीनियर के परिपेक्ष में यह एक तरह से अनुचित ही है। वैसे व्यक्तिगत राय पर सभी सहमत होंगे ऐसा कदापि मेरी अपेक्षा नहीं है।
संक्षेप में हम सवर्ण आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की सहमति के संबंध में देखें तो... सुप्रीम कोर्ट ने केवल जाति के आधार पर आरक्षण के विरुद्ध न होते हुए आर्थिक आधार पर आरक्षण की समीक्षा की गई है।
केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को दिए गए आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण को वैध बताते हुए, इससे संविधान के उल्लंघन के सवाल को नकार दिया। हालांकि, चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच संदस्यीय बेंच ने 3-2 से ये फैसला सुनाया है। इससे यह साफ हो गया कि केंद्र सरकार ने 2019 में 103वें संविधान संशोधन विधेयक के जरिए जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को शिक्षा और नौकरी में 10 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था की थी, संविधान का उल्लंघन नहीं है।
याचिकाकर्ता द्वारा सवर्ण आरक्षण को असंवैधानिक करार देने की याचना की थी। परंतु सामाजिक इंजीनियरिंग के परिपेक्ष्य में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी बेहद प्रासंगिक और अनुकूल है। आप गंभीरता से विचार कीजिए तो आप पाएंगे कि सामाजिक समरसता और एकात्मता के लिए सामाजिक न्याय सर्वोच्च प्राथमिकता वाला कंपोनेंट है। वर्तमान संदर्भ में देखा जाए तो विगत 10 वर्षों में सामाजिक जातिगत व्यवस्था समाप्त होती नजर आ रही है। पहले तो वैवाहिक संदर्भों में केवल अपनी बिरादरी में ही विवाह को मान्यता प्राप्त होती थी परंतु अब अधिसंख्यक वैवाहिक अनुष्ठान अंतर्जातीय विस्तार ले चुके हैं। और आने वाले समय में जातिगत व्यवस्था लगभग समाप्त हो जाएगी।
आरक्षण समतामूलक समाज की अवधारणा पर आधारित व्यवस्था है। भारतीय व्यवस्था में socio-economic पहलुओं पर विचार करना आगामी समय के लिए सुव्यवस्थित करने की योजना बनाना हम सबका सामाजिक दायित्व है। दीर्घकाल में जातिगत सामाजिक व्यवस्था पूर्णत: समाप्त हो सकती है। वर्तमान में एक नए तरह के भारत ने आकार लिया है। सामाजिक संरचना के प्रतिमानों में बदलाव आ रहा है, परंपराएं भी बदली जा रही हैं या कुछ परंपराएं स्वयं ही बदल गई हैं। बदलते परिवेश में सामाजिक परिस्थितियों में बदलाव ठीक वैसा ही है जैसे- ईसा पूर्व गौतम बुद्ध का अभ्युदय होना। गौतम बुद्ध ने समतामूलक समाज की स्थापना की बुनियाद रखी थी। उनके संदेश आर्थिक समानता के लिए जितने प्रभावी रहे हैं उससे कहीं अधिक सामाजिक समानता और एकात्मता के पक्षधर थे। महात्मा बुद्ध के अधिकांश उपदेशों में एकात्मता समरसता एवं शांति के उन समस्त बिंदुओं को समावेशित किया गया है जिन बिंदुओं पर भारतीय दर्शन में उपनिषदों में मार्ग स्थापित किया था। भारतीय सनातनी व्यवस्था समतामूलक समाज की व्यवस्था के प्रति सतर्क और सजग रही है। भारत में जैनमत, बुद्धिज़्म,शैव,शाक्त, वैष्णव, चार्वाक, सूफी, यहां तक कि विदेशों से आए इस्लाम और क्रिश्चियनिटी को भी मान्यता मिली। जातिवादी व्यवस्था को समाप्त करने की दिशा में अगर जातिगत आरक्षण एक उत्प्रेरक है तत्व है तो दूसरी ओर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश सामाजिक इंजीनियरिंग के लिए महत्वपूर्ण घटक सिद्ध होगा। कुल मिलाकर कल्याणकारी राज्य की कल्पना को आकार देने के लिए माननीय न्यायालय का नजरिया प्रत्येक नागरिक के बीच सामाजिक आर्थिक राजनीतिक परिपेक्ष्य में बेहद प्रभावशाली फैसला है। यह भारत संदर्भ में टर्निंग प्वाइंट सिद्ध होगा।
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