सुनूं भी क्यों किसी की क्यों .. एक भी न सुनूं ऐसे किसी की जो गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज़ी बताए .. !! अब भला सरकारी तनख्वाह अंग्रेजी कैलेंडर से ही महीना पूरा होते मिलती है.. है न .. कौन अमौस-पूनौ ले दे रहा है तनख्वाह बताओ भला हमको तो खुश रहने का बहाना चाहिये. आप हो कि हमारी सोच पर ताला जड़ने की नाकामयाब कोशिश कर रहे हो .
अल्ल सुबह वर्मा जी, शर्मा जी वगैरा आए हैप्पी-न्यू ईयर बोले तो क्या उनसे झगड़ लूं बताओ भला .
चलो हटाओ सुनो पुराने में नया क्या खास हुआ अखबार चैनल वाले बताएंगे हम तो आम आदमी ठहरे खास बातों से हमको क्या लेना . अखबार चैनल वालों की मानें तो नए पुराने वर्ष कुल मिला कर एक सा होता है हर बार कोई न कोई अच्छाई या बुराई साथ लेके आते जाते रहते हैं.
हम जो आम आदमी का जीवन जीते हैं बेशक़ खुशी के बहाने खोजते हैं. ज़रा सी भी खुशी मिले झूम जाते हैं. और और क्या बस आगे क्या कहूं सदा खुश रहिये .. वैसे मैं खुश नहीं हूं कुछ अतिमहत्वाकांक्षी एवम अपनी पराजय को पराए सर पे रखने के लिये चुगली करने वालों एवम वालिओं से परीशान हूं.
बहरहाल हेप्पी न्यू ईयर टू आल आफ़ यू
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30.12.13
2014 कल तुम आओगे तब मैं
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मेरे बारे में
- बाल भवन जबलपुर
- जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर
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