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17.6.12

“बाबूजी तुम हमें छोड़ कर…..!”

साभार : मल्हार ब्लाग से
मेरे सपने साथ ले गए
दु:ख के झंडे हाथ दे गए !
बाबूजी तुम हमें छोड़ कर
नाते-रिश्ते साथ ले गए...?
काका बाबा मामा ताऊ
सब दरबारी दूर हुए..!
बाद तुम्हारे मानस नाते
ख़ुद ही हमसे दूर हुए.

अब तो घर में मैं हूँ माँ हैं
और पड़ोस में विधवा काकी
रातें कटती अब भय से
नींद अल्ल-सुबह ही आती.

क्यों तुम इतना खटते थे बाबा
क्यों दरबार लगाते थे
क्यों हर एक आने वाले को
अपना मीत बताते थे

सब के सब विदा कर तुमको
तेरहीं तक ही साथ रहे
अब माँ-बेटी के साथी
जीवन के संताप रहे !!


अब सबको पहचान लिया है
अपना-तुपना जान लिया है
घर में क्यों आते थे ये सारे 
मैंने तो पहचान लिया है

• गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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