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29.3.21

फागुन के गुन प्रेमी जाने

*होली पर हार्दिक शुभकामनाएं*
फागुन के गुन प्रेमी जाने, 
बेसुध तन अरु मन बौराना ।
या जोगी पहचाने फागुन, 
हर गोपी संग दिखते कान्हा ।। 

रात गये नजदीक जुनहैया, 
दूर प्रिया इत मन अकुलाना ।
सोचे जोगीरा शशिधर आए, 
भक्ति - भांग पिये मस्ताना ।। 

प्रेम रसीला, भक्ति अमिय सी, 
लख टेसू न फूला समाना ।
डाल झुकीं तरुणी के तन सी, 
आम का बाग गया बौराना ।। 

जीवन के दो पंथ निराले, 
कृष्ण भक्ति अरु प्रिय को पाना ।
दोनों ही मस्ती के पथ हैं, 
नित होवे है आना जाना...!! 

चैत बैसाख की गर्म दोपहरिया – 
सोच के मन लागा घबराना ।
छोर मिले न ओर मिले, 
चिंतितमन किस पथ पे जाना ? 

मन से व्याकुल तन से आकुल
राधारमण का कौन ठिकाना ।
बेसुध बैठ गई सखि मैं तो-
देख मेरा सखि तापस बाना ।।

गोकुल छोड़ गए जब से तुम
छूटा हमारा भी पानी-दाना ।
प्राण की राधा झुलसी झुलसी
तुरतई अब किसन को होगा आना ।।

💐💐💐💐💐💐
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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