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12.12.09

जिस दिन से देश आज़ाद हुआ है हम हमारे हक़ से ज़्यादा शायद ही कुछ सोच पा रहे हैं.....?

                                          जीवन भर प्रिवलेज़ के आदी हम लोग किस मार्गदर्शक मशाल की तलाश में हैं समझ में नहीं आ रहा हम किस दिशा में सोच रहे हैं और किस दिशा में जा रहें हैं. जिस दिन से देश आज़ाद हुआ है हम हमारे हक़ से ज़्यादा शायद ही कुछ सोच पा रहे हैं.....? क्यों आखिर क्यों हमें आने वाले समय का ख्याल नहीं होता बस आत्म-केन्द्रित सोच कुंठित वृत्ति इसके आगे भी कुछ सोचा-समझा है हमने तो आत्म-प्रसंशा के लिए .
                            आज का दौर वो दौर है जिस दौर में राजनैतिक दबाव में आकर मशीनरी को काम करना होता है नियमों को बलाए-ताक रखवाने में अग्रणी राज-नीतिज्ञों को अपने "शक्तिवान होने का दुरुपयोग न तो करना चाहिए और न हीं अपने इर्द-गिर्द स्वपन-दिखाने वाला आभा मंडल ही बनाना चाहिए " नियमों के अनुसार कार्य कराने और शास्त्री जी की तरह सादगी पूर्ण विचार वान  देश का सच्चा सेवक होता है  बाकी जो भी देश सेवक होने का दावा करतें हैं नाटकबाज़ नज़र आतें हैं दुनिया को.................................!
                                                         

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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