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7.3.11

औरत जो दुनियां चलाती है चुपचाप

साभार:पलकों के सपने से 
बचपन से बोझ उठाती देखता था उन औरतों को जो सर पर पीतल की कसैड़ी (गघरी ) रख  मेरे घर के सामने से निकला करतीं थीं बड़ी बाई राम राम हो का हुंकारा भरके. घर के भीतर से मां सबकी आवाज़ पर जवाब दे पाती न दे पाती पर तय यही था. कभी कभार  कोई-कोई औरत घर के आंगन में डबल डेकर पानी का कलशा रख मां से मिलने आ जातीं थीं. हालचाल जान लेने के बाद फ़िर घर को रवाना. रेलवे में नौकरी करते गैंग-मैन,पोर्टर,खलासियों की औरतें हर तीज त्यौहार पर मां से मिलने ज़रूर आती. हां तीज से याद आया मां के नेतृत्व में फ़ुलहरे के नीचे हरतालिका तीज का व्रत रखीं औरतैं पूजा करतीं थीं.रतजगा होता. बाबूजी पूरे आंगन में बिछायत करवा देते थे. देर रात तक पुरुषों की भजन-मंडलियां लोक भजन गातीं.भीतर शिव पूजन जारी रहता. हमारे जुम्मे हुआ करती थी चाय बना के पिलाने की ड्यूटी. मां डांट कर औरतों को भूखा न रहने की हिदायत देंतीं. यह भी कि किसी भी क़िताब पुराण में नही लिखा कि भूखा ही रहा जाये. सब औरतें इतना जान चुकीं थीं कि "बड़ी-बाई यानि मेरी मां"झूठ नहीं कहेंगी.रात भर जागती औरतों में फ़ल बाटती मां याद आ रही है आज खूब. जाने कितने शराबी कर्मचारियों को बेटे की तरह फ़टकार लगाया करती थी मां. कईयों ने शराब छोड़ी, कई मां के सामने कसम उठाते कि अब जुए में पैसा न गंवाएंगे. हां तो ऐसी ही तीजा की रात गंदी सी गांव की कोई औरत भी आई मां पूछा -कौन हो..?
"इतै पास के गांव में रहत हूं बड़ी बाई" 
ट्रेन छूट गई क्या..?
नईं बाई, घर से भाग-खैं (भागकर) आई हूं, मरनें है मोहे. मेरो अदमी खूब मारत है, 
मां को माज़रा समझ आ गया था मानो. उसे स्नेह से बेटी कहा. पूछा उपासी हो ?
हां,..यह सुनते ही करुणा से भर आई थी मां .और भाव भरे भावुक मन से उसे बेटी संबोधित क्या किया बस जैसे मृत-प्राय: देह में प्राण वायु का संचार कर दिया मां ने. उसे भरपेट केले-सेव देने देने का आदेश मिला. फ़िर पूजन में शामिल किया . साहस का उपदेश देती रही उस रात सारी औरतों को. किसी को बताया कै घर का बज़ट बनाओ तो किसी को बेटी की शादी १८ के बाद करने की समझाइश दी.उस औरत में रात भर मां के साथ रहने का असर ये हुआ कि अल्ल-सुबह उसे घर जाने की याद आ गई. शायद साहस भी समस्याओं से जूझने का.मां सबसे कहती थी :-"तुम दुनिया चलाती हो, तो साहस से चलाओ, मन से पावन रहो बच्चों की देख भाल ऐसे करो जैसे कि कोई गोपाल की पूजा अरचना कर रही हो एक दिन आएगा जब  औरत को आदर-मान मिलेगा पर साहस ज़रूरी है"
अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष
 "सविता बिटिया का कम्प्यूटर ज्ञान "
  मेरे घर में दो किशोरियां झाड़ू-पौंछा,बरतन साफ़ करती हैं. कल ज़रूरी काम से मुझे निकलना पड़ा. सो पी०सी० पर एक आलेख सेव कर घर से बाहर निकल गया. सीढ़ीयों पर याद आया कि पी०सी० चालू है सो श्रीमति जी से बंद करने को कहा और निकल गया. शाम को श्रीमति जी बोलीं आज़ सविता से तुम्हारा कम्प्यूटर बंद कराया ! यह सुनते ही मुझे  लगा कि शायद ही उसने पूरे प्रोसिस से बंद किया हो. घटना मेरे लिये चकित करने लायक थी.  गुस्सा भी आया श्रीमती जी पर जिसे जप्त कर गया. शाम जब घर आया तो सविता को देख पूछा:-"बेटी तुमको कम्प्यूटर बंद करना आता है"
"हां मामाजी"
"और चालू करना "
"वो भी आता है.."
कैसे, शिवानी (मेरी बेटी) ने सिखाया क्या...?
"न, मैं सीखतीं हूं, कम्प्यूटर क्लास में..
        दिन भर में दो दो बार घर घर जाकर बरतन साफ़ करने वाली इन बेटियों की साधना सीखने नया कुछ करने की ललक से प्रभावित हूं , इस माह से उसका कम्प्यूटर क्लास का खर्च उठाने और खाली समय में पी०सी० चलाने की अनुमति तो दे ही सकता हूं अपनी सविता-बिटिया को.         

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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