सत्ता लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
सत्ता लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

19.10.11

दोस्तों सुनो जो अब तक न कह सका था..!!

                                                 मैं जानता हूं कि आज़ तुम झुका हुआ सर लेकर किस वज़ह से मेरे तक आ रहे हो . सच आज तुम्हारे झुक जाने के लिये मैं बेहद खुश हूं. ऐसा नहीं है न ही मैं किसी किसी झूठे यक़ीन के साथ ज़िंदा हूं. हां बस इतना ज़रूर है कि तुमने मुझे बर्बाद करने के लिये जितने प्रयास किये सच मैं उतना ही मज़बूत हुआ केवल इसी लिये तुम्हारी आभारी हूं.   बेशक एक ज़िंदा एहसास लेकर हूं कि वो सुबह ज़रूर आएगी जो सुबह मुझे इर्द-गिर्द के अंधेरों से विमुक्त करेगी. पर तुम जो अंधेरों के संवाहक हो बेशक यही अंधेरा तुमको डसेगा यह सच है. 
                               मुझे अभ्यास है पराजय का तुम्हैं अभ्यास नहीं है मुझे मालूम है कि तनिक सी पराजय  भी तुम्हारे लिये बेशक जान लेवा साबित होगी. पर जब अपने सीने के ज़ख्मों को " गिनता हूं देर रात तक", तब मुझे बस तुम्हारे षड़यंत्रों के चक्रव्यूह साफ़ साफ़ नज़र आ जाते हैं फ़िर भी दोस्तो मैं यक़ीन करो बायस नहीं हूं. यक़ीन करों तुम्हारा शिकार मैं तुम पर आक्रमण करने पर यक़ीन नहीं करता वरन तुमको आक्रामकता का शिकार होने से बचा लेने का हिमायती हूं. मुझे तुम्हारी हर क़मीनगी से दोहरी ताक़त मिली है.. तुम्हारी तारीफ़ क्यों न करूं. तुम जो मेरे जीवन को मज़बूती देते रहे हो. तुमको मार देता ..? न ऐसा क्यों करूं तुम ही तो वो हो जिसकी वजह से मुझे रणकौशल का ग्यान हुआ है. मेरे गुरु हुए न तुम. 
    ओह..! ये क्या दु:खी मत हो रोना भी मत मुझे न तो तुम रुला सकते न ही मार सकते और न ही भुला सकते तुम्हारा मुझसे भयभीत होकर पीछे से वार करना बेशक तुम्हारे स्वान-चरित्र का सूचक है जो मालिक की रक्षा के वास्ते नहीं आसन्न भय से भयातुर होकर पीछे से भौंकता है. काट भी लेता है. तुम में और स्वान में फ़र्क करना मुझे कतई अच्छा नहीं लगता. 
   ओह..! ये क्या तुम्हारा सत्ता के निकट बने रहने का शौक कदाचित तुम्हारे अंत का कारण न बन जाए यही भय सदा सालता है मुझे.. पर यही तो प्राकृतिक न्याय है दोस्त शायद तुम्हारे इंतज़ार में है..   
पता नहीं किस कारण से तुम भयातुर हो सच यक़ीन करो मैं हर स्थिति में मित्र भाव से भरा हूं तुम जो हमेशा शत्रु होने का एहसास दिलाते रहे एक बार मुझे देखो गौर से एक दावानल हूं जो जला देगा अनचाहे खरपतवार तुम्हारे मन के  और तुम उस कंचन-काय होकर सामने होगे.. तब तक शायद मै न रहूं.. 

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

Wow.....New

अलबरूनी का भारत : समीक्षा

   " अलबरूनी का भारत" गिरीश बिल्लौरे मुकुल लेखक एवम टिप्पणीकार भारत के प्राचीनतम  इतिहास को समझने के लिए  हमें प...

मिसफिट : हिंदी के श्रेष्ठ ब्लॉगस में