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9.3.10

स्त्री-विमर्श के लिए वास्तविक-विषय वस्तु को खोजें इस चर्चा में

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शिखा वार्ष्णेय जी से आज  भारतीय एवं पश्चिमी परिवेश में  हुई बातचीत से यह तय हो गया है की स्त्री-विमर्श की विषय वस्तु जो आजकल संचार माध्यमों पर हावी है वो कदापि उपयुक्त नहीं है. आज उनके ब्लॉग स्पंदन पर जो कविता है उसमें जो भी कुछ शामिल है वो है उंचाइयो की तलाश और खुली हवा की अपेक्षा.
बंद खिड़की के पीछे खड़ी वो,
सोच रही थी कि खोले पाट खिड़की के,
आने दे ताज़े हवा के झोंके को,
छूने दे अपना तन सुनहरी धूप को.
उसे भी हक़ है इस
आसमान की ऊँचाइयों को नापने का,
खुली राहों में अपने ,
अस्तित्व की राह तलाशने का,[आगे पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये  ]
           शिखा वार्ष्णेय जी के अंतस में पल रही कवयत्री का दर्शन देखिये उनकी ही इन पंक्तियों  में
अपने लिए उठे ये हाथ , तो शिखा! क्या बात हुई
होगी दुआ कुबूल, जो कर किसी बेबस के वास्ते
आइये स्त्री-विमर्श के लिए वास्तविक-विषय वस्तु को खोजें इस चर्चा में 
 
इस तरह मनाया हमने गाँव में जाकर महिला दिवस

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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