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27.3.08

विश्व रंगकर्म दिवस संगोष्ठी में"उड़नतश्तरी"


जबलपुर के रंगकर्म से जुड़े लोग आज विश्व रंग कर्म दिवस पर जुटे चंचला बाई कालेज के खुले मंच पर । त्रिलोक सिंह-कर्मयोगी कृष्ण सा उनका व्यक्तित्व को भी याद किया , Sameer Lal आज अतिथि थे उडन तश्तरी ....के रूप में आप जानते ही है इनको , भावना का देश है भारत के कवि बुरहानपुर से दादा आचार्य डाक्टर भृगुनंदन जी जो समयचक्र के mahendra mishra [महेन्द्र मिश्र जी] के साथ आए थे । ब्लागिंग पे भी चर्चा हुई कविता पाठ हुआ , सूरज राय सूरज,अरुण पान्डे,डाक्टर मलय शर्मा,डा० श्याम सुन्दर मिश्र, विजय तिवारी "किसलय", राजीव गुप्त, यानी विवेचना रंग-मंडल के लिए-"जबलपुर चौपाल" वाले पंकज स्वामी"गुलुश" के न्योते सभी "दाएं-बाएँ" वाले सब आए थे , आते क्यों न किसी टेंट-हाउस,वालों का कार्य-क्रम थोडे न था।
विवेक पांडे की कविता Vivek Pandey, पे चटका लगाइए सुन लीजिए जी। ये ROHIT JAIN, भी छा गए थे किन्तु मुझे जिस युवक की कविता ने रोमांचित कर दिया था उसे समीर जी अपने ब्लोंग पर पोस्ट कर रहे हैं । मुझे क्या सभी को अंतस तक छू -रहे हैं युवा कवि राजेश वर्मा [जोअपनी राख को गंगा में न बहाने की इच्छा रखतें है,]सहित अरुण यादव , अमर सिंह परिहार,संतोष राजपूत,

सुयोग पाठक SUYOG PATHAK के संगीत निर्देशन मन [जन] गीतों की प्रस्तुति से शुरू समागम में डाक्टर मलय जी का वक्तव्य "कविता को लेकर मुझे इस कारण अच्छा लगा क्योंकि वे आशावादी हों गए हैं कविता को लेकर -उन्होने माना कि युवा पौध के पास शब्द,भाव,विषय सब कुछ है॥!" [ " ....!!" अब जाके पता चला कि कविता के विषय चुके नहीं हैं...?]

पंकज गुलुश ने बलोगिंग पर चर्चा की किन्तु अल्प [मित]भाषी होने की वज़ह से ज़्यादा नहीं बोल सके। डाक्टर विजय तिवारी "किसलय" का उल्लेख पूरे वक्तव्य में नहीं हुआ किन्तु विजय भाई को बुरा भी नहीं लगा क्योंकि वे गंभीर ब्लॉगर जो हैं...स्व-नाम-धन्य फोटो ग्राफर श्री जे० एस० मूर्ति,अरुण पांडे , सभी ने सांस्कृतिक चैतन्य के "महत्त्व" को रेखांकित किया ।ये भी तय हुआ कि जबलपुर में साहित्य की नियमित गतिविधियों को एक स्वरूप दिया जाएगा ।जो तय किया अरुण पांडे जी ने जो मेरे वक्तव्य के दौरान क्षेपक लगाने मंच पर आए थे। जबकि ब्लागिंग को बढावा देने का दायित्व मेरा,समीर जी,किसलय जी , पंकज जी का होगा....!!नई-दुनिया जबलपुर ने अपनी रिपोर्ट टाँगी,-"हम हैं ताना,हम हैं बाना" शीर्षक की खूंटी पर, यही गीत गाया था सुयोग पाठक एवं साथियों ने जो रपट का शीर्षक बना। कुल मिला के कविता,नाटक,सुर-संगीत,और ब्लागिंग सभी विषय को स्पर्श करती संगोष्ठी सदभावों के अलावा गतिविधियों को जीवंत रखने की प्रतिज्ञा के साथ समाप्त हुआ जैसे कि आम तौर पर होता है । फिर सब अपनी-अपनी समस्याओं को सुलझानें के गुन्ताडे़में व्यस्त हों जाते हैं। जैसे मैं अरुण पांडे जी के घर के सामने से निकल जाऊँगा रोज़ , वैसे ही जैसे मलय शर्मा जी मेरे घर के सामने से रोज़िन्ना निकलते हैं....!!या इन्द्र पांडे , रमेश सैनी, वगैरा जैसी व्यस्तता होगी सबकी ।

इस बीच पंकज गुलुश ने बताया है कि-....छै: नए ब्लॉगर आने वाले हैं .....हम तो स्वागत माल लेकर इंतज़ार करेंगे ही।

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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