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3.4.11
31.3.11
विजयी था विजय है मेरी, करते रहो लाख मनचीते !!
मैं तो मर कर ही जीतूंगा जीतो तुम तो जीते जीते !
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कितनी रातें और जगूंगा कितने दिन रातों से होंगे
कितने शब्द चुभेंगें मुझको, मरहम बस बातों के होंगे
बार बार चीरी है छाती, थकन हुई अब सीते सीते !!
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अपना रथ सरपट दौड़ाने तुमने मेरा पथ छीना है.
अपना दामन ज़रा निहारो,कितना गंदला अरु झीना है
चिकने-चुपड़े षड़यंत्रों में- घिन आती अब जीते-जीते !!
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अंतस में खोजो अरु रोको, अपनी अपनी दुश्चालों को
चिंतन मंजूषाएं खोलो – फ़ैंको लगे हुए तालों को-
मेरा नीड़ गिराने वालो, कलश हो तुम चिंतन के रीते !!
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सरितायें बांधी हैं किसने, किसने सागर को नापा है
लक्ष्य भेदना आता मुझको,शायद तथ्य नहीं भांपा है
विजयी था विजय है मेरी, करते रहो लाख मनचीते !!
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मेरे बारे में
- बाल भवन जबलपुर
- जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर
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