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24.9.20

न ही तुम हो स्वर्ण-मुद्रिका- जिसे तपा के जांचा जाए


जितनी बार बिलख बिलख के 
रोते रहने को मन कहता
उतनी बार मीत तुम्हारा भोला मुख
मेरे ही सन्मुख है रहता....!
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सच तो है अखबार नहीं तुम,
जिसको को कुछ पल बांचा जाये.
न ही तुम हो स्वर्ण-मुद्रिका-
जिसे तपा के जांचा जाए.
मनपथ की तुम दीप शिखा हो
यही बात हर गीत है कहता
जितनी बार बिलख बिलख के ...........
*************************
सुनो प्रिया मन के सागर का
जब जब मंथन मैं करता हूं
तब तब हैं नवरत्न उभरते
अरु मैं अवलोकन करता हूँ
हरेक रतन तुम्हारे जैसा..!
तुम ही हो , मन  है कहता.
जितनी बार बिलख बिलख के ...............
मनके मनके साझा करतीं
पीर अगर तो मुस्कातीं तुम ।
पर्व दिवस के आने से पहले
कोना कोना चमकाती तुम !
दुविधा अरु संकट के पल में
मातृ रूप , तुम में मन लखता ।।
जितनी बार बिलख बिलख के ............
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*
छाया :- मुकुल यादव

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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