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2.6.17

जबलपुर स्टेशन पहुँचे जय-वीरू...... : ज़हीर अंसारी

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जय और वीरू आज अचानक जबलपुर रेलवे स्टेशन पहुँच गए। दोनों को शायद राजधानी जाना था, कौन सी राजधानी की ट्रेन तत्काल मिलेगी, यह जानने के लिए वो सीधे प्लेटफ़ार्म नम्बर एक पर पहुँच गए। इनके पास कोई लगेज नहीं था, न ही साथ में कोई दो-पाया साथी। दोनों ने पहले इधर-उधर देखा फिर बेधड़क प्लेटफ़ार्म स्थित एकीकृत क्रू लॉबी में घुस गए। दोनों इतने हट्टे-कट्टे थे कि किसी की हिम्मत ही नहीं हुई उन्हें रोकने की। उलटे जो लोग लॉबी में काम कर रहे थे, उनमें कुछ डर के मारे बाहर भाग खड़े हुए।
जय और वीरू शान से अंदर गए, चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई। शायद जानना चाह रहे थी कौन सी ट्रेन राजधानी जाएगी। दोनों दो-तीन मिनिट वहीं खड़े रहे। भाषा प्रोब्लम होने की वजह से उनका किसी ने न तो अभिवादन किया, न किसी से उन्हें रिस्पांस दिया। वहाँ मौजूद कुछ कर्मचारी उनकी डील-डौल देखकर घबरा गए। ये दोनों मुस्तंडे 'खेलने दो वरना खेल बिगड़ेंगे' की तर्ज़ पर थोड़ी देर खड़े रहे, जब कोई रिस्पांस नहीं मिला तो उनमें एक ने गंदगी फैला दी।
आप सोच रहे होंगे कि यहाँ शोले फ़िल्म के जय और वीरू की बात हो रही है मगर ऐसा नहीं है। यहाँ दो हष्ट-पुस्ट बैलों की बात हो रही है। गुरुवार की रात नौ बजे दो तंदूरुस्त बैल प्लेटफ़ार्म नम्बर एक पर कहीं से घुस आए। ये किधर से आए, ये तो रहस्य है। आते ही दोनों पहले डाक आफिस में घुसने का प्रयास किया, वहाँ से हकाले गए तो बाज़ू वाली क्रू लॉबी में घुस गए। एक बैल ने अंदर खड़े-खड़े गोबर कर दिया। लगा कि उसे 'ज़ोर' से आई थी। लॉबी से ये दोनों बाहर निकले तो यात्री ऐसे तितर-बितर हुए जैसे आतंकवादी घुस आए हों। हालाँकि की बैलों की हरकतें कुछ इसी तरह की थी।
वहाँ से भगाए तो प्लेटफ़ार्म पर टहलने लगे। इसी प्लेटफ़ार्म पर मुंबई जाने वाली महानगरी आने वाली थी लिहाज़ा वहाँ मौजूद यात्रियों ने हिम्मत करके उन्हें भगाया तो ये दोनों बैल मस्त टहलते हुए सिग्नल की तरफ़ निकल गए।
बैलों की हरकतों से तो ऐसा महसूस हुआ कि जैसे इन्हें ट्रेन में बैठकर फ़ौरन दिल्ली जाना है और वहाँ जाकर पशुओं को लेकर बनाई जा रही नीति के सिलसिले में कोई ज्ञापन देना है।

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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