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17.3.11

नेता रमईराम नामी नहीं सुनामी


                    आज़ से 28 बरस पहले की बात है रमई राम यानी मुहल्ले के उदीयमान नेताजी पांव में स्लीपर डाले मालवीय चौक पे मिलते थे वहीं होती थी उनकी सुबह . और शाम तक स्ट्रीट लाईट जलवा के ही कुछ देर के लिये घर को कूच करते थे ताकि बाप-मताई को बता आवैं कि चिंता मत करियो हम ज़िंदा हैं. श्याम टाकीज (मालवीय चौक) से ही मेरा कालेज जाने का रास्ता था. रमईराम वहीं कहीं हमारे लौटने के वक़्त यानी बारह बजे के आसपास जो उनकी अल्ल सुबह होती थी. जनसहभागिता से चाय आलू बण्डा इत्यादी का सेवन कर रहे होते थे.हमको पता चल चुका था कि वे घसीट-घसाट के मैट्रिक पास हुए थे.चुनावों के समय उनकी शान देखते बनती. हर प्रत्याशी उनको पैसा देते वे सभी को आश्वासन जिताने की गारंटी.हमलोगों तक के नाम उनको रटे थे. रमई  की याद दाश्त नामों के  मामले में बहुत पक्की थी. उनकी तारीफ़ हर नेता उनके लग्गू-भग्गू यानी सभी जो सियासी थे सभी किया करते एक बार हम उनसे पूछ बैठे:-"दादा, आप का तो बड़ा नाम है हर आम-खास के बीच फ़ेमस हो आप बड़ॆ नामी हो ".
वो अपनी अचानक हुई  तारीफ़ से  लजाते हुए बोले:- अरे गिरीश, नामी तो चोर भी होता है डाकू भी अपन तो सुनामी हैं..?
 हम:-”दादा,सुनामी..?"    
वो:-हिंदी तो पढ़े हो न   सु यानी  अच्छा और  कु यानी  बुरा
हम:-जी जानता हूं. सु यानी  अच्छा और  कु यानी  बुरा
वे बोले:- मैं नामी ही नहीं "सुनामी" हूं.
 जी दादा आप सुनामी हो. अब आपके नाम के आगे सुनामी शब्द जोड़ दूंगा बतौर विशेषण .
           रमई जी की किस्मत का ताला एक दिन खुला वे एक बड़े नेता की चिलम  भरते-भरते रमई राम जी  कोई बड़ा ओहदा पा गये थे . अब उनका घर-द्वार सब कुछ है. पढ़ेलिखे नौकरी शुदा बच्चों के बाप हैं . खास पार्टी के वरिष्ठ  नेता हैं. कार पे चलते हैं. पिछले हफ़्ते बाज़ार में मिल गये हमने छेड़ दिया "दादा, आप तो नामी ओह माफ़ी चाहूंगा सुनामी रमई राम जी  हैं न ..?"
 वे खिसियानी हंसी हंसते दांत निपोरते हुए बोले :-”तुम गिरीश अब तक नहीं बदले. 
  सच "सुनामी" किसी भी देश के लिये कितनी घातक है आज़ जान पाया हूं.. . 

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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