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15.4.14

मुझे ऐसा मोक्ष नहीं चाहिये

हां मां सोचता हूं 
मुझे भी मुक्ति चाहिये.. 
वेदों पुराणों ने 
जिसे मोक्ष  कहा है..!
कहते हैं कि 
सरिता में अस्थियों के प्रवाह से 
मुक्ति मिलती है.... 
औरों की तरह मेरी अस्थियां भी
सरिता में प्रवाहित होंगी..?
मां,
तुम्हारे पावन प्रवाह को मेरी अस्थियां 
दूषित करेंगी
न मुझे ऐसा मोक्ष नहीं चाहिये
बार बार जन्म लेना चाहता हूं
तुम्हारे तटों को बुहारने 
तुमको पावन सव्यसाची मां कह के पुकारने
मुझे जन्म लेना ही होगा.. 
मुक्ति मोक्ष न अब नहीं.. 
बस तेरे सुरम्य तटों पर 
जन्मता रहूं..
बारंबार ......
कोल-भील-किरात- मछुआ 
मछली- पक्षी- कछुआ 
कुछ भी बनूं सुना है....
तेरे तट में 
सब दिव्य हो जाते हैं... 
मां... रेवा.... सच यही मोक्ष है न........




मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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